वैश्वीकरण
अतिलघु उत्तरीय प्रश्न
1. वैश्वीकरण से आप क्या समझते हैं?
उत्तर:-
वैश्वीकरण वह प्रक्रिया है जिसके माध्यम से विश्व की विभिन्न अर्थव्यवस्थाओं का एकीकरण होता है| इसके फलस्वरूप वस्तुओं एवं सेवाओं, प्रोद्योगिकी, पूंजी और श्रम का निर्बाध प्रवाह संभव हो पाता है| इसके अंतर्गत बहुराष्ट्रीय कंपनियाँ विदेशों में पूंजी निवेश करके वस्तुओं का उत्पादन शुरू करती है| तथा विभिन्न प्रकार की सेवाएँ उपलब्ध कराती है|
2. एक बहुराष्ट्रीय निगम क्या है?
उत्तर:-
बहुराष्ट्रीय कंपनी या बहुराष्ट्रीय निगम वह है जिसका एक से अधिक देशों में वस्तुओं के उत्पादन पर नियंत्रण या स्वामित्व होता है| बहुराष्ट्रीय कंपनी की क्रियाएँ या व्यापार एक देश में सीमित न होकर अनेक राष्ट्रों में फैली रहती है|
3. बहुराष्ट्रीय कंपनियाँ अन्य कंपनियाँ से किस प्रकार भिन्न होती है?
उत्तर:-
एक बहुराष्ट्रीय निगम वह है जिसका एक से अधिक देशों में वस्तुओं के उत्पादन पर नियंत्रण या स्वामित्व होता है| बहुराष्ट्रीय कंपनियाँ विभिन्न देशों में पूंजी का निवेश करती है| तथा इनके द्वारा किया गया निवेश अरबों रुपयों में होता है| कोका कोला, सैमसंग, इंफोसिस इत्यादि इसी श्रेणी में आते हैं| परंतु अन्य कंपनियों का कार्य छोटे स्तरों पर होता है| एक क्षेत्र विशेष राज्य या देश स्तर पर ही अन्य कंपनियाँ अपनी उत्पादन प्रक्रिया को करती है|
4. विदेश व्यापार विभिन्न देशों के बाजारों को जोड़ता है| कैसे?
उत्तर:-
प्राचीन काल से ही विदेश व्यापार विभिन्न क्षेत्रों को परस्पर जोड़ने का माध्यम रहा है| दो देशों के बीच मुक्त व्यापार होने से वस्तुओं का एक बाजार से दूसरे बाजार से आवागमन होता है| बाजार में वस्तुओं के विकल्प बढ़ जाते हैं तथा दो बाजारों में एक ही वस्तु का मूल्य एकसमान होने लगता है|इस प्रकार विदेश व्यापार विभिन्न देशों के बाजारों को जोड़ने अथवा एकीकरण में सहायक होता है|
5. क्या आप मानते हैं कि फोर्ड मोटर्स एक बहुराष्ट्रीय निगम है?
उत्तर:-
फोर्ड मोटर्स एक अमेरिकी कंपनी है तथा यह विश्व की बड़ी कार निर्माता कंपनियों में सबसे बड़ी है| उसका उत्पादन 26 अलग अलग देशों में फैला हुआ है| फोर्ड मोटर्स एक बहुराष्ट्रीय कंपनी है|
6. विदेशी निवेश से आप क्या समझते हैं?
उत्तर:-
बहुराष्ट्रीय कंपनी अथवा निगम अपने देश के बाहर दूसरे देशों में पूंजी लगाते हैं, उसे विदेशी निवेश कहते हैं| विदेशी निवेश का एकमात्र उद्देश्य लाभ अर्जित करना होता है|
7. वैश्वीकरण को प्रोत्साहित करने वाले प्रमुख कारक क्या है?
उत्तर:-
वैश्वीकरण को प्रोत्साहित करने वाले प्रमुख कारक हैं—- प्रोद्योगिकी, परिवहन प्रोद्योगिकी, सूचना एवं संचार प्रौद्योगिकी तथा विदेशी व्यापार तथा विदेशी निवेशों का उदारीकरण|
8. प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में होने वाली प्रगति ने वैश्वीकरण को कैसे संभव बनाया है?
उत्तर:-
प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में होने वाली प्रगति वैश्वीकरण और विभिन्न देशों के एकीकरण को संभव बनाने वाले कारकों में एक प्रमुख कारक है| परिवहन प्रौद्योगिकी में सुधार होने से सुदूर स्थानों में अध मात्रा में तथा कम समय में वस्तुओं को भेजा जा सकता है| तथा कम समय में वस्तुओं को भेजा जा सकता है| संचार और सूचना प्रौद्योगिकी ने भी विश्व के सभी भागों के निवासी को एक दूसरे से संपर्क और सूचनाओं का आदान प्रदान करने में सुलभता प्रदान की है|
9. सरकारें व्यापार अवरोधक का प्रयोग क्यों करती है?
उत्तर:-
सरकार व्यापार अवरोधक का प्रयोग अपने विदेश व्यापार में कमी या वृद्धि, अर्थात उसे नियमित करने तथा आपतित वस्तुओं की मात्रा एवं प्रकार को निर्धारित करने के लिए करती है|
10. उदारीकरण से आप क्या समझते हैं?
उत्तर:-
उदारीकरण का अर्थ सरकार द्वारा अवरोधों तथा प्रतिबंधों को हटाने की प्रक्रिया है| अर्थात उद्योग एवं व्यापार पर से नियंत्रण या प्रतिबंध हटाना है|
11. विश्व व्यापार संगठन का मुख्य उद्देश्य क्या है?
उत्तर:-
विश्व व्यापार संगठन का मुख्य उद्देश्य अंतर्राष्ट्रीय व्यापार को उदार बनाना तथा वस्तुओं एवं सेवाओं के बाजार का विस्तार करना है|
12. निजीकरण का क्या अभिप्राय है?
उत्तर:-
निजीकरण का अर्थ है—- निजी क्षेत्र द्वारा सार्वजनिक क्षेत्र के उद्यमों पर पूर्णतः अथवा आंशिक स्वामित्व प्राप्त करना तथा उनका प्रबंधन करना|
13. वैश्वीकरण की प्रमुख विशेषता क्या है?
उत्तर:-
आर्थिक स्वतंत्रता और मुक्त व्यापार
14. बहुराष्ट्रीय कंपनी किसे कहते हैं?
उत्तर:-
एक बहुराष्ट्रीय कंपनी या बहुराष्ट्रीय निगम वह है जिसका एक से अधिक देशों में उत्पादन पर नियंत्रण या स्वामित्व होता है|
15. विदेश व्यापार क्या है?
उत्तर:-
जब राजनैतिक दृष्टि से स्वतंत्र दो अलग अलग देशों के बीच वस्तुओं या सेवाओं का लेन देन होता है तब उसे विदेश व्यापार कहते हैं|
16. विश्व व्यापार संगठन की स्थापना कब हुई?
उत्तर:- 1994
17. विश्व व्यापार संगठन का मुख्य कार्यालय कहाँ है?
उत्तर:- जेनेवा
18. वैश्वीकरण से बिहार के किस उद्योग को सबसे अधिक प्रोत्साहन मिला है?
उत्तर:- पर्यटन उद्योग
19. भारत सरकार की नवीन आर्थिक नीति क्या है?
उत्तर:-
भारत सरकार की नवीन आर्थिक नीति के अंतर्गत वे सभी तरीके शामिल हैं जो उद्योग व्यापार एवं भुगतान संतुलन में सुधार के लिए जुलाई 1991 में अपनाए गए|
20. नवीन आर्थिक नीति के मुख्य अंग क्या है?
उत्तर:-
उदारीकरण निजीकरण और वैश्वीकरण सरकार की नवीन आर्थिक नीति के मुख्य अंग है|
21. दो ऐसी समस्याओं का उल्लेख कीजिये जिनके कारण 1991 में भारत को नयी आर्थिक नीति अपनानी पड़ी|
उत्तर:-
मुद्रास्फीति एवं भुगतान संतुलन की समस्या बढती जा रही थी तथा सार्वजनिक क्षेत्र का कार्य संपादन आशा के अनुरूप नहीं हो रहा था|
लघु उत्तरीय प्रश्न
1. अतीत में विश्व के विभिन्न देशों को जोड़ने का प्रमुख माध्यम क्या था? अब वह किस प्रकार भिन्न है?
उत्तर:-
अतीत से ही विदेश व्यापार विभिन्न देशों की परस्पर जोड़ने का माध्यम रहा है| उस समय व्यापार सामुद्रिक मार्गों से होता था| वर्तमान में विदेशी व्यापार से उत्पादक एवं उपभोक्ता दोनों ही लाभान्वित होते हैं| दो देशों के बीच मुक्त व्यापार होने से वस्तुओं के विकल्प बढ़ जाते हैं| तथा बाजारों में एक ही वस्तु का मूल्य एकसमान होने लगता है| इस प्रकार पहले विदेश व्यापार दो देशों को जोड़ने का काम करता था परंतु आज विदेश व्यापार विभिन्न देशों के बाजारों को जोड़ने तथा एकीकरण का काम करता है|
2. विदेशी व्यापार और विदेशी निवेश में अंतर स्पष्ट करें—
उत्तर:-
विदेशी व्यापार में बहुराष्ट्रीय कंपनियाँ या निगम वस्तुओं का विभिन्न देश में व्यापार कर लाभ अर्जित करता था| इसमें उत्पादक और उपभोक्ता दोनों लाभान्वित होते हैं| विभिन्न कंपनियों में प्रतियोगिता के कारण उनकी वस्तुओं की गुणवत्ता बढ़ जाती है| तथा कीमत में कमी आती है| विदेशी व्यापार विभिन्न देशों के बाजारों को जोड़ने अथवा उनके एकीकरण में सहायक होता है| विदेशी निवेश द्वारा बहुराष्ट्रीय कंपनियाँ दूसरे देशों में उत्पादक कार्यों के निवेश करते हैं| विदेशी निवेश का मुख्य उद्देश्य कंपनियों द्वारा लाभ अर्जित करना है|
3. वैश्वीकरण प्रक्रिया में अंतरास्ट्रीय कंपनियों की क्या भूमिका है?
उत्तर:-
वैश्वीकरण प्रक्रिया में अंतर्राष्ट्रीय कंपनियों का महत्वपूर्ण योगदान है| बहुराष्ट्रीय कंपनियों के आगमन से उत्पादन में गुणात्मक परिवर्तन हुए हैं| आरंभ में उत्पादन मुख्यतया किसी देश की सीमाओं के भीतर ही होता था| बहुराष्ट्रीय कंपनियों का एक से अधिक देशों में वस्तुओं के उत्पादन पर नियंत्रण या स्वामित्व होता है| बहुराष्ट्रीय कंपनी विश्व स्तर पर अपनी उत्पाद को बेचता है| इस प्रकार वैश्वीकरण अथवा विभिन्न देशों की अर्थव्यवस्था को जोड़ने में बहुराष्ट्रीय कंपनियों का महत्वपूर्ण योगदान है|
4. विभिन्न देशों को जोड़ने और उनमें संबंध स्थापित करने के क्या तरीके हो सकते हैं?
उत्तर:-
आर्थिक स्वतंत्रता एवं मुक्त व्यापार विभिन्न देशों की अर्थव्यवस्था को जोड़ने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं| विदेश व्यापार विभिन्न देशों को परस्पर जोड़ने का माध्यम रहा हो| विभिन्न देश इस प्रकार के तरीकों तथा अपनी नीतियों में सुधार कर विभिन्न देशों से संबंध स्थापित कर सकते हैं| इसमें उदारीकरण निजीकरण की भी महत्वपूर्ण भूमिका है|
5. अंतर्राष्ट्रीय व्यापार विभिन्न देशों के बाजारों के एकीकरण में किस प्रकार सहायक होता है?
उत्तर:-
प्राचीनकाल से ही विदेश व्यापार विभिन्न देशों को परस्पर जोड़ने का माध्यम रहा है| विदेश व्यापार उत्पादकों को घरेलू बाजार अर्थात अपने देश के बाजार से बाहर से बाहर के बाजारों में पहुँचने का अवसर प्रदान करता है| विभिन्न देशों के उत्पादकों में प्रतियोगिता के कारण वस्तुओं की लागत अर्थात उत्पादन व्यय में कमी होती है| इससे कम मूल्य में ऐसी वस्तुओं के उपभोग का भी अवसर मिलता है| जिनका निर्माण देश में नहीं हो सकता है| इस प्रकार विदेश व्यापार विभिन्न देशों में बाजारों को जोड़ने अथवा उनके एकीकरण में सहायक होता है|
6. सूचना प्रौद्योगिकी वैश्वीकरण से कैसे जुड़ी हुई है? क्या इसके प्रसार के बिना वैश्वीकरण संभव था?
उत्तर:-
वैश्वीकरण को प्रोत्साहित करने वाले कारकों में परिवहन प्रौद्योगिकी से भी अधिक महत्वपूर्ण सूचना एवं संचार प्रौद्योगिकी का विकास है| विभिन्न देशों के बीच सेवाओं के उत्पादन के प्रसार में इस प्रौद्योगिकी की भूमिका अत्यधिक महत्वपूर्ण है| उदाहरण के लिए इस प्रौद्योगिकी की उपलब्धता के कारण लंदन की प्रकाशक कंपनी अपनी प्रकाशन का सभी काम इंटरनेट के माध्यम से भारत के किसी कंपनी को देकर छपाई के कार्यों को कम कीमत में कर लाभ अर्जित कर सकता है| सूचना प्रौद्योगिकी के विकास से कयी प्रकार के नयी औद्योगिक इकाइयों का विकास हुआ है| तथा वैश्वीकरण के ये अंग हो गये हैं| सूचना प्रौद्योगिकी के बिना इस प्रकार के वैश्वीकरण का आज अभाव पाया जा सकता था|
7. विश्व व्यापार संगठन क्या है? यह कब और क्यों स्थापित किया गया?
उत्तर:-
विश्व व्यापार संगठन विश्व के प्रमुख देशों की एक अंतर्राष्ट्रीय संस्था है जिसकी स्थापना 1904 में हुई| महान आर्थिक मंदी (1929-32) तथा द्वितीय महायुद्ध (1939-45) के समय विश्व के प्रायः सभी देशों में विदेशी व्यापार पर कयी प्रकार के प्रतिबंध लगा दिए गए थे| इन प्रतिबंधों के कारण अंतर्राष्ट्रीय व्यापार का क्षेत्र क्रमशः संकुचित होता जा रहा था| अत: व्यापार के विस्तार एवं इसकी सुविधाओं को बढ़ाने के लिए 1948 में जेनेवा में विश्व के 23 देशों के बीच एक समझौता हुआ जिनमें भारत भी सम्मिलित था| यह समझौता ही सामान्य प्रशुल्क एवं व्यापार समझौता, कहा जाता है| इस समझौते का मुख्य उद्देश्य व्यापारिक प्रतिबंधों को कम करना तथा अंतर्राष्ट्रीय व्यापार में विभेदात्मक नीति का बहिष्कार करना था| अब इस संगठन का स्थान विश्व व्यापार संगठन ने ले लिया है| सामान्य प्रशुल्क एवं व्यापार समझौते का उद्देश्य केवल उत्पादित वस्तुओं के व्यापार का विस्तार करना था| विश्व व्यापार संगठन ने इसके अंतर्गत सेवाओं, कृषि उत्पादों तथा व्यापार से संबंधित अन्य विषयों को भी शामिल कर लिया है| विश्व व्यापार संगठन की स्थापना का उद्देश्य अथवा अंतर्राष्ट्रीय व्यापार को भी प्रकार के अवरोधों से मूक्त कराना है| विभिन्न देशों के बीच होने वाले मुक्त व्यापार के कयी लाभ है| इससे विश्व उत्पादन एवं आय में वृद्धि होती है, विश्व व्यापार का विस्तार होता है तथा रोजगार के अवसरों में वृद्धि होती है|अंतर्राष्ट्रीय व्यापार विशिष्टीकरण एवं प्रादेशिक श्रम विभाजन की सुविधा प्रदान करती है| इससे उपभोक्ताओं को भी लाभ होता है और उन्हें कम मूल्य पर ही अधिक उत्तम कोटि की वस्तुएँ प्राप्त होती है| इस प्रकार विश्व व्यापार की स्थापना का उद्देश्य अंतर्राष्ट्रीय व्यापार के विस्तार के लिए इसे यथासंभव मुक्त एवं स्वतंत्र बनाना है|
8. राज्य नियंत्रित उद्योगों से आप क्या समझते हैं? इन उद्योगों का क्या उद्देश्य है?
उत्तर:-
राज्य अनेक अवसरों पर कुछ विशेष सामाजिक एवं आर्थिक उद्देश्यों की पूर्ति के लिए उद्योग धंधों का नियंत्रण और संचालन करती है| राज्य नियंत्रित उद्योगों से अभिप्राय सार्वजनिक क्षेत्र के उद्योगों अथवा सार्वजनिक उपक्रमों से है| हमारे देश के औद्योगीकरण में इन उद्योगों की महत्वपूर्ण भूमिका रही है|
राज्य नियंत्रित उद्योगों का मुख्य उद्देश्य—–
लोकोपयोगी उद्योगों की स्थापना
आधारभूत उद्योगों का विकास
सुरक्षा उद्योगों पर नियंत्रण तथा
विकास संबंधी उद्योगों का विकास करना जिससे आर्थिक स्थायित्व देश या राज्य को प्रदान किया जा सके|
9. विदेशी प्रतिस्पर्धा से भारत के लोगों को कैसे लाभ हुआ है?
उत्तर:-
विदेशी प्रतिस्पर्धा के कारण भारत की बड़ी कंपनियों ने भी आधुनिक प्रौद्योगिकी द्वारा अपनी उत्पादन प्रणाली में सुधार तथा उत्पादन मानकों को ऊंचा उठाने का प्रयास किया है| विदेशी प्रतिस्पर्धा से लोगों के आर्थिक जीवन पर व्यापक प्रभाव देखा गया है| भारतीय बाजारों में मोटरगाड़ियों, सेलफोन, पेय एवं खाद्य पदार्थों आदि उपभोक्ता वस्तुओं की पूर्ति बहुत बढ़ गई है| आज भारत के लोग उत्कृष्ट गुणवत्ता वाले अनेक उत्पादों को मूल्य पर ही खरीद सकते हैं|
10. वस्त्र उद्योग के श्रमिक भारतीय निर्यातक तथा विदेशी बहुराष्ट्रीय निगम प्रतिस्पर्धा से किस प्रकार प्रभावित हुए हैं?
उत्तर:-
वैश्वीकरण से श्रमिकों का जीवन व्यापक रूप से प्रभावित हुआ है| कुशल श्रमिकों की आय में वृद्धि तथा अकुशल श्रमिकों के बदले अस्थायी श्रमिकों को काम पर लगाते हैं| इससे श्रमिक नियमित नहीं होने के कारण कम वेतन या पारिश्रमिक पर ही अधिक कार्य घंटे तक काम करते हैं| भारत सिले सिलाए कपड़ों का एक प्रमुख निर्यातक देश है| विगत वर्षों के अंतर्गत सिले सिलाए वस्त्रों के निर्यात में बहुत अधिक वृद्धि हुई है| भारतीय वस्त्र निर्यातक बड़े पैमाने पर वस्त्रों की आपूर्ति का आदेश प्राप्त करने के लिए अपनी उत्पादन लागत को लगातार घटाने का प्रयास करते हैं| इस प्रकार भारतीय वस्त्र निर्यातकों में प्रतिस्पर्धा से बहुराष्ट्रीय निगमों को कम कीमत पर ही अच्छे गुणवत्ता वाले वस्त्रों की उपलब्धता हो रही है|
11. भारत सरकार द्वारा विदेशी व्यापार एवं निवेश पर अवरोधक लगाने के क्या कारण थे? अब इन अवरोधकों को क्यों हटाया जा रहा है?
उत्तर:-
स्वतंत्रता प्राप्ति के पश्चात भारत सरकार ने आर्थिक विकास की जो नीति अपनायी उसके अंतर्गत सार्वजनिक क्षेत्रों को अत्यधिक महत्व दिया गया था निजी निवेश एवं आयात निर्यात पर कयी प्रकार के प्रतिबंध और नियंत्रण लगाए गए थे और केन्द्रीय नियोजन की नीति अपनायी गयी थी| विदेश व्यापार तथा विदेशी निवेश पर नियंत्रण तथा प्रतिबंध लगाये जाने के पीछे मुख्य कारण घरेलू उद्योगों को प्रोत्साहित करना तथा देश के उत्पादकों को विदेशी प्रतिस्पर्धा से संरक्षण प्रदान करना था| विदेशी व्यापार तथा विदेशी निवेश पर नियंत्रण तथा प्रतिबंध से भारतीय अर्थव्यवस्था की प्रति सर्धात्मक क्षमता पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ा| विदेशी व्यापार की प्रतिकूलता तथा विदेशी विनिमय को गंभीर संकट उत्पन्न होने तथा सरकार के बजट और राजकोषीय घाटे में अत्यधिक वृद्धि के कारण सरकार ने जुलाई 1991 से आर्थिक नीति में सुधार की नीति अपनायी तथा उदारीकरण, निजीकरण एवं वैश्वीकरण की नीति को अपनाया|
12. आपके विचार में विभिन्न देशों के बीच अधिकाधिक न्यायसंगत व्यापार के लिए क्या किया जा सकता है?
उत्तर:-
भारत में उदारीकरण और वैश्वीकरण की नीति लगभग 20 वर्ष पूर्व अपनायी गयी तथा इसके परिणाम मिश्रित कहे जा सकते हैं| शिक्षित, कुशल और साधन संपन्न लोगों ने वैश्वीकरण से उत्पन्न नये अवसरों का यथोचित उपयोग किया है तथा इस वर्ग के लिए यह लाभदायक रहा है| लेकिन, दूसरी ओर, साधनविहीन व्यक्ति इसके लाभों से वंचित रहे हैं| इससे कुशल तथा अकुशल श्रम के बीच आय की असमानताएँ बढ़ गई है| वैश्वीकरण से क्षेत्रीय असमानताओं में भी वृद्धि हुई है| आज वैश्वीकरण एक वास्तविकता है तथा इसके परिणामों की अनदेखी नहीं की जा सकती है| अतएव यह प्रश्न महत्वपूर्ण है कि वैश्वीकरण को न्यायसंगत कैसे बनाया जा सकता है| इसके लिए यह आवश्यक है कि सभी व्यक्तियों एवं क्षेत्रों को असमान अवसर मिले तथा वैश्वीकरण में सभी की हिस्सेदारी सुनिश्चित हो| वैश्वीकरण को न्यायसंगत बनाने में सरकार की भूमिका अत्यधिक महत्वपूर्ण है| वैश्वीकरण फलस्वरूप अब हमारी अर्थव्यवस्था खुली अर्थव्यवस्था हो गई है| परंतु हमारे देश के लघु उद्योगों छोटे उत्पादकों तथा किसानों में भी विदेशों से आयोजित वस्तुओं से प्रतिस्पर्धा करने की क्षमता नहीं है| इन्हें सरकार से उस समय तक आर्थिक मिलनी चाहिए जब तक वे प्रतिस्पर्धा का सामना करने में सक्षम नहीं हो जाते हैं| वैश्वीकरण के प्रभाव को अनुकूल बनाने के लिए सरकार विश्व संगठन से भी समझौते कर सकती है| विकसित देशों द्वारा पर्यावरण तथा श्रम मानकों के आधार पर हमारे निर्यातों पर कयी प्रकार के प्रतिबंध लगाए गए हैं| विश्व व्यापार के सफल संचालन के लिए यह आवश्यक है कि विकसित देश ऐसी व्यापार बाधाओं और अवरोधकों को दूर करें जो विकासशील देशों की बाजार पहुँच में रूकावटें पैदा करती है| इसके लिए भारत तथा अन्य विकासशील देशों को विश्व व्यापार संगठन पर दबाव डालना होगा|
13. वैश्वीकरण से आप क्या समझते हैं?
उत्तर:-
वैश्वीकरण का अर्थ विश्व की विभिन्न अर्थव्यवस्थाओं में सामंजस्य स्थापित करना और उन्हें एक दूसरे से जोड़ना है| इस प्रक्रिया में हम आर्थिक दृष्टि से वैश्विक अथवा अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर पारस्परिक रूप से निर्भर होते हैं| मुक्त व्यापार वैश्वीकरण का आधार है| इस व्यवस्था में वस्तुओं के आयात एवं निर्यात पर कोई प्रतिबंध नहीं होता है| इसके अंतर्गत विश्व की सभी अर्थव्यवस्थाएँ एक बाजार या एक अर्थव्यवस्था हो जाती है| विश्व अर्थव्यवस्थाओं के युग्मन अथवा एकीकरण से उत्पादन के साधनों का इस प्रकार आवंटन होता है जिससे उत्पादन और कुशलता की दृष्टि से सर्वश्रेष्ठ परिणाम प्राप्त होते हैं|
14. वैश्वीकरण के मुख्य अंग क्या है?
अथवा,
वैश्वीकरण की मुख्य विशेषताओं का उल्लेख करें|
उत्तर:-
मुक्त व्यापार वैश्वीकरण का आधार है| मुक्त व्यापार का अभिप्राय विदेश अथवा अंतरर्राष्ट्रीय व्यापार की स्वतंत्रता से है| जब विभिन्न देशों के बीच वस्तुओं के आवागमन पर कोई प्रतिबंध नहीं होता तब इसे मुक्त व्यापार या स्वतंत्र व्यापार की नीति कहते हैं| आर्थिक सुधारों के क्रम में भारत ने भी वैश्वीकरण या मुक्त व्यापार की नीति अपनायी है| यह आशा की जाती है कि यह नीति देश की विकास दर से अधिक तीव्र बनाने में सहायक होगी| वैश्वीकरण नीति के मुख्य अंग या इसकी विशेषताएँ निम्नलिखित हैं——
(1) विभिन्न देशों के बीच वस्तुओं के मुुुक्त प्रवाह को प्रोत्साहित करने के लिए व्यापार अवरोधों में कमी|
(2) पूंजी का मुक्त प्रवाह
(3) प्रोद्योगिकी का मुक्त प्रवाह तथा
(4) श्रम तथा मानव संसाधनों की मुक्त गतिशील
15. वैश्वीकरण को प्रभावित करने वाले कारकों का उल्लेख करें|
अथवा,
प्रोद्योगिकी में होनेवाली प्रगति ने वैश्वीकरण को कैसे संभव बनाया है?
उत्तर:-
वैश्वीकरण को प्रभावित करने वाले कारकों में प्रोद्योगिकी के क्षेत्र में होनेवाली प्रगति महत्वपूर्ण है| उदाहरण के लिए, पिछले लगभग 50 वर्षों में परिवहन प्रौद्योगिकी में बहुत सुधार हुए हैं| इससे भारी और नाशवान वस्तुओं को भी सुदूर देशों में भेजना संभव हो गया है| इसी प्रकार, वायु परिवहन की लागत में गिरावट आने से अब वायुमार्ग द्वारा अपेक्षाकृत अधिक मात्रा तथा बहुत कम समय में वस्तुओं को भेजा जा सकता है| लेकिन, वैश्वीकरण को प्रोत्साहित करने वाले कारकों में परिवहन प्रौद्योगिकी से भी अधिक महत्वपूर्ण सूचना और संचार प्रौद्योगिकी का विकास है| आज विश्व के प्रायः सभी भागों के उत्पादक, विक्रेता एवं ग्राहक एक दूसरे से बहुत शीघ्र संबंध स्थापित कर सकते हैं| इससे केवल वस्तुओं के ही नहीं, वरन सेवाओं के बाजार का भी विस्तार हुआ है|
16. विश्व व्यापार संगठन का मुख्य उद्देश्य क्या है?
उत्तर:-
विश्व व्यापार संगठन की स्थापना का निर्णय अप्रैल 1994 में लिया गया तथा यह संस्था 1995 से कार्यरत हैं| इसका मुख्य उद्देश्य अंतर्राष्ट्रीय व्यापार को उदार बनाना तथा सभी देशों के विदेश व्यापार को मुक्त व्यापार के सिद्धांत के अनुसार संचालित करना है| विश्व व्यापार संगठन का उद्देश्य वस्तुओं के साथ ही सेवाओं के व्यापार में भी सुधार लाना है| इनमें बैंकिंग, बीमा, संचार एवं जहाजरानी जैसी सेवाएँ महत्वपूर्ण है| कयी देशों में ऐसे नियम या प्रावधान है जिनके द्वारा इन सेवाओं के प्रवेश पर प्रतिबंध लगा दिए गए हैं| व्यापार के विस्तार के लिए इस संगठन का उद्देश्य सेवाओं पर लगाए गए इन प्रतिबंधों को समाप्त करना है| इस प्रकार, विश्व व्यापार संगठन का मूल उद्देश्य अंतर्राष्ट्रीय व्यापार को यथासंभव मुक्त एवं स्वतंत्र बनाना है|
17. विश्व व्यापार संगठन के प्रमुख प्रावधानों का उल्लेख करें|
उत्तर:-
अंतर्राष्ट्रीय व्यापार के विस्तार की दृष्टि से विश्व व्यापार संगठन के प्रावधान अत्यधिक महत्वपूर्ण है| इनमें अल्पविकसित अथवा विकासशील देशों के लिए भी कयी प्रावधान है| कृषि के विकास के लिए तीन प्रकार के प्रावधान है| इनमें पहला कृषि वस्तुओं के व्यापार से संबंधित है| दूसरे का संबंध अंतर्राष्ट्रीय व्यापार को प्रभावित करने वाली कृषि नीति से है| तीसरा कृषि बीजों पर विशिष्ट अधिकार का है|
18. उदारीकरण से आप क्या समझते हैं?
उत्तर:-
प्रायः, सरकारें विदेश व्यापार पर कयी प्रकार के नियंत्रण या प्रतिबंध लगा देती है जिन्हें व्यापार अवरोधक कहते हैं| किसी भी देश की सरकार व्यापार अवरोधक का प्रयोग अपने विदेश व्यापार में कमी या वृद्धि तथा आयातित वस्तुओं की मात्रा या प्रकार को निर्धारित करने के लिए कर सकती है| स्वतंत्रता प्राप्ति के पश्चात भारत सरकार ने भी विदेश व्यापार पर कयी प्रकार के नियंत्रण और प्रतिबंध लगा दिए थे| घरेलू उद्योगों को प्रोत्साहन देने के लिए तथा उन्हें विदेशी प्रतिस्पर्धा से संरक्षण प्रदान करने के लिए यह आवश्यक माना गया था| लेकिन, कुछ समय पू्र्व सरकार ने यह अनुभव किया कि अब भारतीय उत्पादकों के लिए विदेशी प्रतिस्पर्धा का सामना करने का समय आ गया है| अत: उसने अपनी नवीन आर्थिक नीति के अंतर्गत अर्थव्यवस्था को खोलने तथा अनावश्यक नियंत्रणों को समाप्त करने का एक व्यापक कार्यक्रम अपनाया है जिसे उदारीकरण की संज्ञा दी जाती है|
19. निजीकरण का क्या अभिप्राय है?
उत्तर:-
निजीकरण की धारणा विगत वर्षों के अंतर्गत भारतीय अर्थव्यवस्था में किए जानेवाले आर्थिक सुधारों से संबंधित है| यह इस विचारधारा के अनुरूप है कि सरकार का कार्य व्यवसाय करना नहीं है| स्वतंत्रता प्राप्ति के पश्चात भारत में सार्वजनिक क्षेत्र का बहुत विस्तार हुआ है| लेकिन, सार्वजनिक उपक्रमों का कार्य संपादन एवं प्रदर्शन आशा के अनुरूप नहीं आ रहा है| इस क्षेत्र के अधिकांश उपक्रम घाटे में चल रहे हैं अथवा बहुत कम लाभ अर्जित करते हैं| अतएव, अब भारत सरकार की विचारधारा एवं उसकी आर्थिक नीति निजीकरण के पक्ष में है| इसके फलस्वरूप निजी क्षेत्र को अनेक प्रतिबंधों से मुक्त कर दिया गया है| अब निजी क्षेत्र कयी ऐसी औद्योगिक क्रियाओं के संचालन में प्रवेश कर सकता है जो इसके पूर्व केवल सार्वजनिक क्षेत्र के लिए सुरक्षित थे| निजी क्षेत्र का विस्तार करने के लिए विदेशी कंपनियों को भी देश में अपने उद्यम स्थापित करने के लिए प्रोत्साहित किया जा रहा है|
20. भारतीय अर्थव्यवस्था के विकास की दृष्टि से वैश्वीकरण की नीति का मूल्यांकन करें—
उत्तर:-
भारत सरकार ने जुलाई 1991 से जो आर्थिक सुधार किए हैं उनसे हमारे देश को विश्व अर्थव्यवस्था से जोड़ने में सहायता मिली है तथा विकास की दृष्टि से इसके कुछ उत्साहवर्धक संकेत मिले हैं| 1992-98 की अवधि में हमारी औसत वार्षिक वीकास दर 6.5 प्रतिशत रही जबकि 1950-80 के बीच यह केवल 3.5℅ थी| 2008 में वैश्विक मंदी आरंभ होने के पूर्व के चार वर्षों में हमारी वार्षिक विकास दर बढ़कर लगभग 9℅ हो गई थी| वैश्वीकरण से हमारी अर्थव्यवस्था को कयी अन्य लाभ भी हुए हैं| वैश्वीकरण के पश्चात हमारे निर्यातों में भी निरंतर वृद्धि हो रही है और अब यह विश्व की कयी बड़ी अर्थव्यवस्थाओं से भी अधिक है| इसी प्रकार अन्य देशों द्वारा भारत में वस्तुओं और सेवाओं के उत्पादन में किया जाने वाला निवेश अर्थात प्रत्यक्ष निवेश बढ़ा हैं| इससे विकास को बहुत प्रोत्साहन मिला है तथा रोजगार के अवसरों में वृद्धि हुई है|
21. वैश्वीकरण एवं विदेशी प्रतिस्पर्धा से भारतीय श्रमिक किस प्रकार प्रभावित हुए हैं?
उत्तर:-
वैश्वीकरण से भारतीय श्रमिकों का जीवन व्यापक रूप से प्रभावित हुआ है| इससे प्रायः कुशल श्रमिकों की आय में वृद्धि हुई है| लेकिन, अकुशल श्रमिकों पर इसका प्रतिकूल प्रभाव पड़ा है| वैश्वीकरण से प्रतिस्पर्धा बहुत बढ़ गई है| प्रतिस्पर्धा के कारण अधिकांश नियोजक रोजगार की शर्तों को लचीला बनाने के लिए प्रयासरत है तथा अपनी आवश्यकतानुसार श्रमिकों को नियुक्ति और उनकी छंटनी करना चाहते हैं| इसका एक उदाहरण परिधान उद्योग है| भारत सिले सिलाए कपड़ों का एक प्रमुख निर्यातक देश है| विगत वर्षों के अंतर्गत हमारे देश से सिले सिलाए कपड़ों के निर्यात में बहुत वृद्धि हुई है| अमेरिका और यूरोप के परिधान उद्योग के अनेक बहुराष्ट्रीय निगम भारतीय उत्पादकों एवं निर्यातकों को वस्त्रों की आपूर्ति के लिए आदेश देता है| अधिकतम लाभ अर्जित करने के लिए विश्व व्यापार से संबद्ध बहुराष्ट्रीय निगम स्वाभावत: सस्ती से सस्ती वस्तुओं की खोज में रहते हैं| इनसे बड़े पैमाने पर वस्त्रों की आपूर्ति का आदेश प्राप्त करने के लिए भारत के परिधान निर्यातकों ने भी अपनी उत्पादन लागत को घटाने का प्रयास किया है| इनके लिए कच्चे माल तथा अन्य लागतों में कमी लाना संभव नहीं है| अतएव नियोजक श्रम लागत को घटाने का प्रयास करते हैं| इसके लिए वे प्रायः दो तरीकों का प्रयोग करते हैं| पहला, जहाँ वे पूर्व में स्थायी श्रमिकों को नियुक्त करते थे वहाँ अब अस्थायी श्रमिकों को काम पर लगाते हैं| इससे उन्हें श्रमिकों को पूरे वर्ष वेतन नहीं देना पड़ता है| दूसरा, अस्थायी श्रमिकों से वे कम वेतन या पारिश्रमिक पर ही अधिक कार्य घंटों तक काम लेते हैं| सेवा नियमित और स्थायी नहीं होने के कारण इस प्रकार के श्रमिक अतिरिक्त समय में भी काम करने के लिए बाध्य होते हैं| यही कारण है कि वैश्वीकरण के पश्चात भारत की अनेक औद्योगिक इकाइयों में श्रमिकों की कठिनाइयाँ बढ़ गई है|
दीर्घ उत्तरीय प्रश्न
1. बहुराष्ट्रीय निगमों से आप क्या समझते हैं? इन्होंने किस प्रकार विभिन्न देशों के उत्पादन को जोड़ने का कार्य किया है?
उत्तर:-
बहुराष्ट्रीय कंपनी वह कंपनी है जिसका एक से अधिक देशों उत्पादन पर नियंत्रण एवं स्वामित्व होता है| ये कंपनियाँ विभिन्न देशों में पूंजी का निवेश करती है| जिनको प्रत्यक्ष विदेशी पूंजी निवेश कहते हैं| कोका कोला, सैमसंग, इंफोसिस इसी श्रेणी में आते हैं| इनके द्वारा किया गया निवेश अरबों रुपयों में होता है| बहुराष्ट्रीय कंपनियों ने विभिन्न देशों के उत्पादन को जोड़ने का कार्य किया है| इन निगमों का मुख्य उद्देश्य अधिकतम लाभ अर्जित करना होता है| इसलिए ये कंपनियाँ या निगम उन देशों में अपने कारखाने और संयंत्र को स्थापित करते हैं जहाँ कम वेतन पर कुशल श्रमिक उपलब्ध हो, उत्पादन के कारकों की आपूर्ति सुनिश्चित हो तथा सड़क, बिजली पानी आदि जैसे आधारभूत संरचनात्मक सुविधाएँ वर्तमान हो| विदेशी उत्पादकों एवं निवेशकों के प्रति सरकार की नीति भी बहुराष्ट्रीय कंपनियों के स्थापित होने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं| कयी बार बहुराष्ट्रीय निगम अन्य देशों की स्थानीय कंपनियों के साथ संयुक्त रूप से उत्पादन करते हैं| बहुराष्ट्रीय निगमों के निवेश का सबसे सामान्य तरीका अन्य देशों की स्थानीय कंपनियों को खरीदना और उसके पश्चात उत्पादन का विस्तार करना है| इस प्रकार, बहुराष्ट्रीय निगम कयी प्रकार से उत्पादन कार्य का विस्तार कर रहे हैं| इनकी उत्पादक गतिविधियों से सुदूर स्थानों का उत्पादन भी प्रभावित हुआ है तथा एक दूसरे से जूड़ता जा रहा है|
2. बहुराष्ट्रीय निगम किस प्रकार दूसरे देशों में उत्पादन पर नियंत्रण या स्वामित्व स्थापित करते हैं?
उत्तर:-
बहुराष्ट्रीय कंपनियों का एक से अधिक देशों में उत्पादन पर स्वामित्व और नियंत्रण होता है| बहुराष्ट्रीय निगम भिन्न भिन्न तरीकों से दूसरे देशों में उत्पादन पर नियंत्रण या स्वामित्व स्थापित करते हैं|
(1) बहुराष्ट्रीय निगम वहाँ पर पूंजी निवेश करते हैं जहाँ पर उत्पादन लागत कम हो तथा लाभ की अधिकतम प्राप्ति ही प्रायः वे कारखाने या संयंत्र की वहाँ स्थापना करते हैं जहाँ कुशल श्रमिकों कच्चे माल की उपलब्धता संभव है|
(2) बहुराष्ट्रीय निगम दूसरे देशों में कयी बार पूरे कार्यालय या उत्पादन इकाई की स्थापना खुद करते हैं| जिसमें भूमि, मशीन, भवन एवं उपकरण पर विदेशी निवेश करते हैं|
(3) कयी बार बहुराष्ट्रीय निगम अन्य देशों की स्थानीय कंपनियों के साथ संयुक्त रूप से उत्पादन करते हैं|
(4) बहुराष्ट्रीय निगम अन्य देशों की स्थानीय कंपनियों को खरीदना और उसके पश्चात उत्पादन का विस्तार करना है|
(5) कयी बार बहुराष्ट्रीय निगम छोटे उत्पादकों को अपनी देख रेख में उत्पादन करने की व्यवस्था करने के साथ हो| उत्पादित वस्तुओं के मूल्य गुणवत्ता के स्तर आदि का निर्धारण करते हैं| अंततः वे इनकी वस्तुओं को खरीदकर अपने व्यापारिक नाम से विभिन्न देशों के बाजारों में बेचते हैं|
3. वैश्वीकरण से आप क्या समझते हैं? वैश्वीकरण को प्रोत्साहित करने वाले कारकों उल्लेख करें—
उत्तर:-
वैश्वीकरण वह प्रक्रिया है जिसके माध्यम से विश्व की विभिन्न अर्थव्यवस्थाओं का एकीकरण होता है| इसके परिणामस्वरूप वस्तुओं एवं सेवाओं, प्रोद्योगिकी, पूंजी और श्रम का निर्वाह संभव हो पाता है| इसमें बहुराष्ट्रीय कंपनियाँ या निगम विदेशों में पूंजी निवेश करके वस्तुओं का उत्पादन शुरू करती है तथा विभिन्न प्रकार की सेवाएँ उपलब्ध कराती है| वैश्वीकरण को प्रोत्साहित करने वाले कारकों में प्रोद्योगिकी में प्रगति, विदेश व्यापार तथा विदेशी निवेशों का उदारीकरण है—-
(1) प्रोद्योगिकी में प्रगति—-
वैश्वीकरण को संभव बनाने वाले कारकों में प्रोद्योगिकी में प्रगति महत्वपूर्ण कारक है| परिवहन प्रोद्योगिकी में सुधार से अब भारी और नाशवान वस्तुओं को सुदूर स्थानों में अधिक मात्रा और कम समय में, कम खर्च में भेजना संभव हो सका है| वैश्वीकरण को प्रभावित करने वाले कारकों में सूचना एवं संचार प्रौद्योगिकी सबसे महत्वपूर्ण वर्तमान समय में दूर संचार, कंप्यूटर और इंटरनेट के क्षेत्र में प्रोद्योगिकी बहुत तेजी से विकसित है तथा कयी नयी प्रकार के उद्योगों का विकास सूचना प्रौद्योगिकी से हुई है जो उद्योग और व्यापार को काफी सहायता पहुँचाती है|
विदेश व्यापार तथा विदेशी निवेशों का उदारीकरण—–
विभिन्न देशों के विदेश व्यापार विदेशी नीतियाँ अगर उदार होती है| तो यह भी वैश्वीकरण की प्रक्रिया को बढाने सहायता प्रदान करती है|
4. भारत के लिए वैश्वीकरण क्यों आवश्यक है? इसके पक्ष में तर्क दीजिये—-
उत्तर:-
भारत सरकार की वर्तमान आर्थिक नीति का उद्देश्य भारतीय अर्थव्यवस्था के वैश्वीकरण के लिए इसमें विश्व स्तर की प्रतिस्पर्द्धात्मक क्षमता का विकास करना है| पूर्व में उद्योग और व्यापार पर कयी प्रकार के प्रतिबंध थे इसके कारण भारत की अर्थव्यवस्था एक बंद व्यवस्था थी तथा इसमें विश्व बाजार की प्रतिस्पर्धा का सामना करने की क्षमता नहीं थी| भारत के लिए वैश्वीकरण निम्नलिखित कारणों से आवश्यक है|
(1) भारत जैसे एक विकासशील देश की आंतरिक बचत पर्याप्त नहीं है| वैश्वीकरण से पूंजी निवेश को प्रोत्साहन मिलेगा|
(2) वैश्वीकरण से भारतीय उद्योगों की कुशलता और उत्पादकता में भी वृद्धि होगी|
(3) वैश्वीकरण से हमारे देश की प्रतिस्पर्द्धात्मक क्षमता को बढाने में सहायता मिल सकती है|
(4) भारत देश में श्रम का बहुल्य है अतः निर्यात की वस्तुओं में श्रम प्रधान तकनीक का प्रयोग कर श्रमिकों के पारिश्रमिक में वृद्धि हो सकती है| इसके लिए वैश्वीकरण आवश्यक है|
(5)वैश्वीकरण शोध, अनुसंधान तथा ज्ञान के प्रसार में सहायक होता है|
(6) वैश्वीकरण से भारत के निर्यात में वृद्धि होगी तथा रोजगार के नये अवसरों का सृजन होगा| इससे बेरोजगारी में कमी आएगी|
(7) वैश्वीकरण से साधनों के सर्वोत्तम उपयोग की संभावना रहती है तथा इससे राष्ट्रीय आय में भी वृद्धि होती है|
(8) वैश्वीकरण से बाजार का क्षेत्र अत्यधिक विस्तृत हो जाता है| इससे उत्पादन लागतों कम हो जाती है और उपभोक्ताओं को सस्ती दर पर उत्तम कोटि की वस्तुएँ प्राप्त होती है|
5. वैश्वीकरण के इतिहास का संक्षिप्त विवरण दीजिये—
उत्तर:-
वैश्वीकरण की धारणा एक नई धारणा नहीं है| मध्यकालीन युग में भी विश्व के अनेक देश व्यापार के माध्यम से परस्पर जुड़े हुए थे और उनके बीच वस्तुओं, विचारों और कौशल का आदान प्रदान होता था| परंतु उस समय परिवहन तथा संचार के साधन सीमित था| वैश्वीकरण की प्रक्रिया का आरंभ आधुनिक युग से हुआ है| इंग्लैंड के औद्योगिक क्षेत्र में 18 वीं तथा 19 वीं शताब्दी में कयी परिवर्तन हुए| 1769 में जैम्स वाट द्वारा वाष्प इंजन के आविष्कार ने आधुनिक कारखाना प्रणाली को जन्म दिया| इंगलैंड के औद्योगिक क्षेत्र में होने वाले परिवर्तन ने कुछ ही समय में यूरोप के अन्य देशों में भी फैल गये तथा उत्पादन एवं व्यापार का क्रमशः विस्तार हो रहा था| रेलवे और वाष्पचालित जहाजों ने उत्पादित भारी और नाशवान वस्तुओं का भी एशिया, अफ्रीका और अमेरिका के सुदूर स्थानों में भेजना संभव बना दिया था| व्यापारियों के लिए संदेश भेजना और एक दूसरे से संपर्क स्थापित करना टेलीग्राफ एवं मुक्त व्यापार की नीति को इंग्लैंड का भी समर्थन मिला जो 19 वीं शताब्दी में विश्व का सबसे प्रभावशाली राष्ट्र था| 1914 और 1945 के बीच विश्व के दो भयंकर महा यद्धों का सामना करना पड़ा इससे देशों की उत्पादन और आर्थिक प्रणाली क्षतिग्रस्त हो गई| युद्ध के पश्चात व्यापार को स्थापित करने में संयुक्त राष्ट्र संघ का महत्वपूर्ण योगदान रहा है| संयुक्त राष्ट्र संघ ने अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष, विश्व बैंक तथा विश्व व्यापार संगठन जैसी कयी संस्थाओं की स्थापना की है जो व्यापार और वैश्वीकरण के विकास एवं विस्तार में सहायक सिद्ध हुए हैं|
6. वैश्वीकरण से बिहार की अर्थव्यवस्था किस प्रकार प्रभावित हुई है?
उत्तर:-
वैश्वीकरण का बिहार पर सकारात्मक एवं नकारात्मक दोनों ही प्रभावों को देखने को मिलता है—-
वैश्वीकरण के कारण बिहार में कृषि उत्पादनों में वृद्धि, विदेशी प्रत्यक्ष निवेशों की प्राप्ति शुद्ध राज्य घरेलू उत्पाद एवं प्रति व्यक्ति शुद्ध राज्य घरेलू उत्पाद में वृद्धि रोजगार के अवसरों में वृद्धि बहुराष्ट्रीय बैंक तथा बीमा कंपनियाँ का आगमन इत्यादि देखा गया है| यह वैश्वीकरण का साकारात्मक प्रभाव देखा गया है| वैश्वीकरण का नाकारात्मक प्रभाव भी बिहार की अर्थव्यवस्था में देखने को मिला है| जैसे कृषि एवं कृषि आधारित उद्योगों की अपेक्षा, कुटीर एवं लघु उद्योगों पर विपरीत प्रभाव, रोजगार पर विपरीत प्रभाव, आधारभूत संरचनाओं में निवेश में कमी| इस प्रकार यह कहा जा सकता है कि यहाँ उद्योगों एवं बड़े व्यापारियों को अधिक लाभ की प्राप्ति हुई है| माल संस्कृति का भी जन्म हुआ हो, परन्तु कृषक एवं आम जनता आज भी इस लाभ से कम लाभ उठा रहे हैं|
7. 1991 के आर्थिक सुधारों से आप क्या समझते हैं? भारत में इन सुधारों की आवश्यकता होती है?
उत्तर:-
आर्थिक सुधारों के अंतर्गत वे सभी तरीके शामिल है जो भारतीय अर्थव्यवस्था के उदारीकरण के लिए 1991 में अपनाए गए|इन सुधारों का मुख्य बल अर्थव्यवस्था की उत्पादकता और कुशलता में वृद्धि के लिए एक प्रतिस्पर्द्धात्मक वातावरण का निर्माण करने पर है| हमारे देश में आर्थिक सुधारों का प्रारंभ विदेशी व्यापार की प्रतिकूलता तथा विभिन्न कारणों से देश में उत्पन्न विदेशी विनिमय के गंभीर संकट की पृष्ठभूमि में हुआ था| अतएव, आर्थिक सुधार की नीतियों में व्यापार एवं पूंजी प्रवाह संबंधी सुधारों को विशेष महत्व दिया गया है| विगत वर्षों के अंतर्गत एशिया के कयी कम विकसित देशों के तीव्र विकास से यह स्पष्ट हो गया है| विगत वर्षों के अंतर्गत एशिया के कयी कम विकसित देशों के तीव्र विकास से यह स्पष्ट हो गया है कि प्रशुल्क एवं व्यापार अवरोधों में कमी होने से निर्यात के साथ ही घरेलू बाजार के लिए उत्पादन बढ़ता है| उसे निर्यातों में वृद्धि होती है और आर्थिक संवृद्धि की दर तीव्र होती है| यही कारण है कि जुलाई 1991 से सरकार ने व्यापार के क्षेत्र में ऐसे कयी सुधार किए हैं जो हमारे देश को विश्व अर्थव्यवस्था से जोड़ने में सहायक हुए हैं| इनमें रूपये का अवमूल्यन, व्यापार मंद में और इसके पश्चात चालू मद में रूपये की पूर्ण परिवर्तनशीलता, आयात प्रणाली का उदारीकरण, प्रशुल्क दरों में कटौती तथा निर्यात वृद्धि के लिए अपनाए गए उपाय महत्वपूर्ण है| प्रत्यक्ष विदेशी निवेश द्वारा सरकार ने पूंजी प्रवाह के अवरोधों को दूर करने का प्रयास किया है| इस प्रकार, भारतीय अर्थव्यवस्था के विकास की दृष्टि से 1991 में प्रारंभ किए गए आर्थिक सुधार अत्यधिक महत्वपूर्ण है| स्वतंत्रता प्राप्ति के पश्चात भारत सरकार ने आर्थिक विकास के लिए जो नीति अपनायी उसमें कयी दोष थे| इस नीति के अंतर्गत देश के आर्थिक विकास में सार्वजनिक क्षेत्र को आवश्यकता से अधिक महत्व दिया गया था, निजी निवेश एवं आयात निर्यात पर कयी प्रकार के नियंत्रण और प्रतिबंध लगाए गए थे तथा केंद्रीय नियोजन की नीति अपनायी गयी थी| यह नीति लगभग 40 वर्षों तक लागू रही तथा बदलती हुई परिस्थितियों के अनुसार इसमें कोई परिवर्तन नहीं किया गया| इसका भारतीय अर्थव्यवस्था की प्रतिस्पर्द्धात्मक क्षमता पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ा| इसी समय कुछ घटनाएँ भी हुई जिनसे हमारा आर्थिक संकट और बढ़ गया| इनमें सोवियत संघ का विघटन, खाड़ी युद्ध, सरकार के बजट, राजकोषीय घाटे ने अत्यधिक वृद्धि आदि महत्वपूर्ण थे| इसके फलस्वरूप, हमारे विदेशी व्यापार की प्रतिकूलता बहुत बढ़ गयी और देश के सामने विदेशी विनिमय का गंभीर संकट उत्पन्न हो गया| अत: जूलाई 1991 में भारत सरकार द्वारा आर्थिक नीति में सुधार की रणनीति अपनायी गयी| इस नीति को नवीन आर्थिक नीति की संज्ञा दी गई तथा उदारीकरण, निजीकरण एवं वैश्वीकरण इसके प्रमुख अंग है| यही कारण है इस नीति को उदारीकरण, निजीकरण एवं वैश्वीकरण की नीति भी कहते हैं|
8. उदारीकरण से आप क्या समझते हैं? इस दृष्टि से भारत सरकार की वर्तमान नीति क्या है?
उत्तर:-
प्रायः सरकारें विदेश व्यापार पर कयी प्रकार के नियंत्रण या प्रतिबंध लगा देती है जिन्हें व्यापार अवरोधक कहते हैं| किसी भी देश की सरकार व्यापार अवरोधक का प्रयोग अपने विदेश व्यापार में कमी या वृद्धि तथा आयातित वस्तुओं की मात्रा या प्रकार को निर्धारित करने के लिए कर सकती है| स्वतंत्रता प्राप्ति के पश्चात भारत सरकार ने भी विदेश व्यापार पर कयी प्रकार के नियंत्रण और प्रतिबंध लगा दिए थे| घरेलू उद्योगों को प्रोत्साहन देने के लिए तथा उन्हें विदेशी प्रतिस्पर्धा से संरक्षण प्रदान करने के लिए यह आवश्यक माना गया था| लेकिन, कुछ समय पूर्व सरकार ने यह अनुभव किया कि अब भारतीय उत्पादकों के लिए विदेशी प्रतिस्पर्धा का सामना करने का समय आ गया है| अत: उसने अपनी नवीन आर्थिक नीति के अंतर्गत अर्थव्यवस्था को खोलने तथा अनावश्यक नियंत्रणों को समाप्त करने का एक व्यापक कार्यक्रम अपनाया है जिसे उदारीकरण की संज्ञा दी जाती है| प्रायः सरकारें विदेशी व्यापार पर कयी प्रकार के नियंत्रण या अवरोध लगा देती है जिन्हें व्यापार अवरोधक कहते हैं| स्वतंत्रता प्राप्ति के पश्चात भारत सरकार ने भी विदेश व्यापार एवं विदेशी निवेश पर कयी प्रकार के नियंत्रण और प्रतिबंध लगा दिए थे| घरेलू उद्योगों को प्रोत्साहन देने तथा देश के उत्पादकों को विदेशी प्रतिस्पर्धा से संरक्षण प्रदान करने के लिए यह आवश्यक माना गया था| 1950 एवं 1960 के दशक भारतीय उद्योगों के विकास के प्रारंभिक चरण थे| इस अवस्था में विदेशी प्रतियोगिता इनके लिए घातक हो सकती थी| यही कारण है कि इस काल में सरकार ने मशीनरी, पेट्रोलियम, उर्वरक आदि जैसी कुछ अति आवश्यक वस्तुओं के आयात की ही अनुमति प्रदान की थी| यह ध्यान आवश्यक है कि विश्व के सभी विकसित देशों ने अपने विकास के प्रारंभिक काल में घरेलू उत्पादकों को विभिन्न प्रकार से संरक्षण प्रदान किया है| लेकिन, कुछ समय पूर्व सरकार ने यह अनुभव किया कि अब भारतीय उद्योगों के लिए विश्व प्रतिबंध का सामना करने का समय आ गया है| अतएव उसनें 1991 में अपनी आर्थिक नीतियों में कुछ महत्वपूर्ण परिवर्तन किए जिन्हें नवीन आर्थिक नीति की संज्ञा दी गई है| इस नीति के लागू होने के बाद अर्थव्यवस्था को अधिक उदार बनाने के लिए सरकार ने विभिन्न नियंत्रणों को समाप्त करने का एक व्यापक कार्यक्रम अपनाया है| इसके अंतर्गत निर्यात एवं आयात की अधिकांश वस्तुओं को लाइसेंस मुक्त कर दिया गया है तथा विदेश व्यापार एवं विदेशी निवेश पर लगाए गए अधिकांश नियंत्रण और प्रतिबंध हटा दिए गए हैं| इस प्रकार, भारत सरकार की वर्तमान नीति अर्थव्यवस्था के उदारीकरण की है| इस नीति का मूल उद्देश्य आर्थिक नियंत्रण तथा प्रतिबंधों में ढील देकर अथवा उन्हें उदार बनाकर अर्थव्यवस्था के कार्य संपादन में कुशलता को बढ़ावा देना है|
9. निजीकरण से आप क्या समझते हैं? इसके लिए सरकार द्वारा क्या तरीके अपनाए जा सकते हैं?
उत्तर:-
निजीकरण की धारणा विगत वर्षों के अंतर्गत भारतीय अर्थव्यवस्था में किए जाने वाले आर्थिक सुधारों से संबंधित है| यह इस विचारधारा के अनुरूप है कि सरकार का कार्य व्यवसाय करना नहीं है| स्वतंत्रता प्राप्ति के पश्चात भारत में सार्वजनिक क्षेत्र का बहुत विस्तार हुआ है| लेकिन, सार्वजनिक उपक्रमों का कार्य संपादन एवं प्रदर्शन आशा के अनुरूप नहीं हो रहा है| इस क्षेत्र के अधिकांश उपक्रम घाटे में चल रहे हैं अथवा बहुत कम लाभ अर्जित करते हैं| अतएव अब भारत सरकार की विचारधारा एवं उसकी आर्थिक नीति निजीकरण के पक्ष में है| इसके फलस्वरूप निजी क्षेत्र को अनेक प्रतिबंधों से मूक्त कर दिया गया है| अब निजी क्षेत्र कयी ऐसी औद्योगिक क्रियाओं के संचालन में प्रवेश कर सकता है जो इसके पूर्व केवल सार्वजनिक क्षेत्र के लिए सुरक्षित थे| निजी क्षेत्र का विस्तार करने के लिए विदेशी कंपनियों को भी देश में अपने उद्यम स्थापित करने के लिए प्रोत्साहित किया जा रहा है| भारत सरकार की वर्तमान आर्थिक नीति निजीकरण की है| यह इस विचारधारा के अनुरूप है कि सरकार का कार्य व्यवसाय करना नहीं है| एक समय था जब कयी पूंजीवादी देशों में भी निजी उपक्रमों का राष्ट्रीयकरण कर लिया गया था| परंतु, अब स्थिति सर्वथा विपरीत है और इनका राष्ट्रीयकरण किया जा रहा है| हमारे देश में निजीकरण का प्रश्न मुख्य रूप से सार्वजनिक प्रतिष्ठानों के स्वामित्व से संबंधित है| स्वतंत्रता प्राप्ति के पश्चात भारत में सार्वजनिक क्षेत्र का बहुत विस्तार हुआ है| लेकिन, सार्वजनिक उपक्रमों का कार्य संपादन एवं प्रदर्शन आशा के अनुरूप नहीं रहा है| इस क्षेत्र के अधिकांश उपक्रम घाटे में चल रहे हैं अथवा बहुत कम लाभ अर्जित करते हैं| अतएव अब भारत सरकार की विचारधारा भी निजीकरण के पक्ष में है| निजीकरण के संदर्भ में एक मत है कि सरकार ऐसे अनेक उद्योग एवं व्यवसाय का संचालन कर रही थी, जो इसे नहीं करना चाहिए था| परिणामतः इनका प्रदर्शन निर्धारित लक्ष्य के स्तर का नहीं रहा है और इन्हें बेच देना चाहिए| इसे विनिवेश की संज्ञा दी गई है| सार्वजनिक उपक्रमों के कार्य संपादन में सुधार लाने के लिए निजीकरण का दूसरा स्वरूप निजी क्षेत्र के साथ साझेदारी है| इसके लिए सार्वजनिक उपक्रमों की शेयर पूंजी का एक भाग निजी उद्यमियों के हाथों बेचा जा सकता है| निजीकरण के लिए इनमें कौन सा विकल्प अपनाया जाए, यह इस बात पर निर्भर करता है कि एक विशिष्ट उपक्रम किस प्रकार की वस्तुओं की उत्पादन करता है| पूर्ण विनिवेश ऐसे उपक्रमों के लिए उचित कहा जा सकता है जिनमें सार्वजनिक क्षेत्र के रहने का कोई औचित्य नहीं है| परंतु यदि उत्पादित वस्तुएँ या सेवाएँ ऐसी श्रेणी में आती है जो सार्वजनिक क्षेत्र के लिए सुरक्षित है तथा अति नर्धन वर्ग की आवश्यकताओं को पूरा करती है तो सरकार को शेयर पूंजी का कम से कम 51℅ हिस्सा अपने पास रखना चाहिए| सरकारी की नवीन आर्थिक नीति निजीकरण के पक्ष में है|निजी क्षेत्र का विस्तार करने के लिए विदेशी कंपनियों को भी देश में अपने उद्यम स्थापित करने के लिए प्रोत्साहित किया जा रहा है|
10. वैश्वीकरण का प्रभाव एक समान है| इससे सामान्य व्यक्तियों का जीवन किस प्रकार प्रभावित हुआ है?
अथवा,
वैश्वीकरण से आम आदमी का जीवन किस प्रकार प्रभावित हुआ है?
उत्तर:-
आमआदमी की श्रेणी में प्रायः निम्न मध्यम एवं निर्धन वर्ग के व्यक्तियों को सम्मिलित किया जाता है जो आराम एवं विलासिता की अधिकांश वस्तुओं के उपभोग से वंचित होते हैं| इनकी आय इतनी कम होती है कि वे अपनी अनिवार्य आवश्यकताओं को ही कठिनाई से पूरा कर पाते हैं| हमारे देश में इस प्रकार के व्यक्तियों की संख्या बहुत अधिक है तथा यह प्रश्न अत्यधिक महत्वपूर्ण है कि इनका आर्थिक जीवन वैश्वीकरण से किस प्रकार प्रभावित हुआ है? भारत सरकार की वैश्वीकरण की नीति लगभग दो दशक पूर्व अपनायी गयी| इसके फलस्वरूप, देश में अनेक बहुराष्ट्रीय कंपनियों का आगमन हुआ है, विदेशी निवेश बढ़ा हैं तथा सकल राष्ट्रीय उत्पाद में वृद्धि हुई है| लेकिन, इससे समाज के सभी वर्ग के लोग समान रूप से लाभान्वित नहीं हुए हैं| विश्व प्रतिस्पर्धा का सामना करने के लिए भारत की बड़ी कंपनियों ने भी अपनी उत्पादन प्रणाली में सुधार तथा उत्पादन मानकों को ऊंचा उठाने का प्रयास किया है| अब भारतीय बाजारों में मोटरगाड़ियों, दुपहिया वाहनों, इलेक्ट्रॉनिक उत्पादों आदि जैसे उपभोक्ता पदार्थों की पूर्ति बहुत बढ़ गई है| आज उपभोक्ताओं के समक्ष पहले से ही अधिक विकल्प उपलब्ध है तथा वे अधिक उत्कृष्ट गुणवत्ता वाले अनेक उत्पादों को कम मूल्य पर ही खरीद सकते हैं| लेकिन, इन उत्पादों के अधिकांश क्रेता धनी एवं संपन्न वर्ग के लोग हैं| इससे आम आदमी अथवा सामान्य वर्ग के उपभोक्ताओं को विशेष लाभ नहीं हुआ है| वैश्वीकरण से भारत के धनी उपभोक्ता तथा बड़े उत्पादक लाभान्वित हुए हैं| लेकिन, बढ़ती प्रतिस्पर्धा ने माध्यम और छोटे उत्पादकों को प्रतिकूल ढंग से प्रभावित किया है| खिलौने, बैटरी, टायर, डेयरी उत्पाद एवं खाद्य तेल के उद्योग कुछ ऐसे उदाहरण है जहाँ प्रतिस्पर्द्धा के कारण छोटे उत्पादकों को भारी नुकसान उठाना पडा है| इसके फलस्वरूप अनेक लघु इकाइयाँ बंद हो गयी है और इनमें कार्यरत श्रमिक बेरोजगार हो गये हैं| ऐसा अनुमान है कि पिछले कुछ वर्षों में लगभग 5 लाख लघु इकाइयाँ बंद हो चुकी है जिससे 25 लाख से भी अधिक श्रमिक बेरोजगार हो गये हैं| भारतीय अर्थव्यवस्था में लघु उद्योगों का स्थान अत्यंत महत्वपूर्ण है तथा कृषि के बाद यह क्षेत्र देश में सबसे अधिक श्रमिकों को रोजगार प्रदान करता है| वैश्वीकरण से श्रमिकों का जीवन व्यापक रूप से प्रभावित हुआ है| इससे प्रायः कुशल श्रमिकों की आय में वृद्धि हुई है| लेकिन, अकुशल श्रमिकों पर इसका प्रतिकूल प्रभाव पड़ा है| प्रतिस्पर्धा के कारण अब अधिकांश नियोजक रोजगार की शर्तों को लचीला बनाने के लिए प्रयासरत है| इसका अभिप्राय यह है कि वे अपनी आवश्यकतानुसार श्रमिकों को नियुक्ति और उनकी छंटनी करने लगे हैं| इसका एक उदाहरण परिधान उद्योग है इसके फलस्वरूप, इस उद्योग के अनेक श्रमिक बेरोजगार हुए हैं और अस्थायी श्रमिक के रूप में कार्य करने के लिए विवश है|
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