Bharti Bhawan Economics Class-10:Chapter-7:Very Short Type Question Answer:Short Type Question Answer:Long Answer Type Question Answer:अर्थशास्त्र:कक्षा-10:अध्याय-7:अति लघु उत्तरीय प्रश्न उत्तर:लघु उत्तरीय प्रश्न:दीर्घ उत्तरीय प्रश्न



             उपभोक्ता जागरण एवं संरक्षण


अतिलघु उत्तरीय प्रश्न




1. उपभोक्ता शोषण से आप क्या समझते हैं? 
उत्तर:-
उत्पादकों तथा विक्रेताओं के द्वारा जब किसी वस्तु को उपभोक्ताओं के बीच बेचा जाता है तथा उपभोक्ताओं द्वारा उसकी गुणवत्ता की जांच करने पर गलत पाया जाता है तो इसे ही हम उपभोक्ता शोषण कहते हैं|
2. बाजार में अनुचित व्यापार कब अधिक होता है? 
उत्तर:-
खाद्यान्न की कमी अत्यधिक होने के कारण या किसी भी वस्तु की बाजार में अत्यधिक मांग होने पर उस वस्तु की कमी होना, बाजार में अनुचित व्यापार को बढ़ावा देता है| कालाबाजारी जमाखोरी इत्यादि अनुचित व्यापार आरंभ हो जाते हैं|
3. बाजार में नियमों और विनियमों की आवश्यकता क्यों पड़ती है? 
उत्तर:-
बाजार में उपभोक्ताओं के शोषण को रोकने तथा उनके अधिकारों की रक्षा के लिए नियमों और विनियमों की आवश्यकता पड़ती है|
4. उपभोक्ता जागरूकता आंदोलन का प्रारंभ सर्वप्रथम किस देश में हुआ? 
उत्तर:- इंग्लैंड
5. उपभोक्ता अधिकारों की घोषणा सर्वप्रथम कब और कहाँ हुई थी? 
उत्तर:- 1962 में संयुक्त राज्य अमेरिका
6. विश्व उपभोक्ता अधिकार दिवस कब मनाया जाता है? 
उत्तर:- 15 मार्च
7. कोपरा क्या है? 
उत्तर:-
सरकार द्वारा 1986 में पारित उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम को ही संक्षेप में कोपरा कहते हैं|
8. क्या कोपरा केवल वस्तुओं के विक्रय पर लागू होता है? 
उत्तर:-
कोपरा वस्तुओं के विक्रय के साथ साथ उपभोक्ताओं के हितों की रक्षा तथा दंड देने के स्थान पर क्षतिपूर्ति की व्यवस्था करती है|
9. जब आप कोई सौंदर्य प्रसाधन या दवा खरीदते हैं तो उसके पैकेट पर किस प्रकार की जानकारी रहती है? 
उत्तर:-
सौंदर्य प्रसाधन या दवा खरीदते समय उसके पैकेट पर उस वस्तु के उत्पादक कंपनी का नाम मूल्य, निर्माण की तिथि, अंतिम तिथि आदि की जानकारी दी हुई रहती है|
10. उपभोक्ताओं के अधिकारों की रक्षा के लिए किस प्रकार के कानून बनाए गए हैं? 
उत्तर:-
उपभोक्ताओं के अधिकारों की रक्षा के लिए उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम 1986 बनाए गए हैं| जो एक कानूनी उपाय है|
11. उपभोक्ताओं की क्षति होने पर उन्हें किस प्रकार का अधिकार प्रदान किया गया है? 
उत्तर:-
उपभोक्ताओं की क्षति होने पर उन्हें क्षतिपूर्ति अधिकार की व्यवस्था की गई है| इसके लिए सरकार ने उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम की व्यवस्था की जिसके अंतर्गत दंड देने के स्थान पर क्षतिपूर्ति की व्यवस्था है|
12. भारतीय मानक ब्यूरो का मुख्य कार्य क्या है? 
उत्तर:-
भारतीय मानक ब्यूरो का मुख्य कार्य विभिन्न वस्तुओं और सेवाओं का मानक तैयार कर उनकी प्रमाणन योजना को संचालित करना है|
13. उपभोक्ता प्रशिक्षण और जागरण के लिए सरकार ने किस नारे का व्यापक रूप में प्रयोग किया है? 
उत्तर:-
उपभोक्ता प्रशिक्षण और जागरण के लिए सरकार ने जागो ग्राहक जागो के नारे का व्यापक रूप में प्रयोग किया है|
14. भारत में राष्ट्रीय उपभोक्ता दिवस कब मनाया जाता है? 
उत्तर:- 24 दिसम्बर
15. उपभोक्ता जागरूकता क्यों आवश्यक है? 
उत्तर:-
उपभोक्ताओं के अधिकारों की सुरक्षा और उनके हितों की रक्षा के लिए उन्हें जागरूक बनाना आवश्यक है|
16. उपभोक्ता इंटरनेशनल क्या है? 
उत्तर:- उपभोक्ता इंटरनेशनल उपभोक्ताओं के हितों की सुरक्षा के लिए एक अंतर्राष्ट्रीय संगठन है|
17. भारत में उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम कब पारित हुआ? 
उत्तर:- 1986
18. उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम 1986 का क्या उद्देश्य है? 
उत्तर:-
इस अधिनियम का उद्देश्य उपभोक्ताओं को अनुचित व्यापारिक व्यवहारों से सुरक्षा प्रदान करने के साथ ही उनकी शिकायतों को दूर करना है|
19. मिलावट का क्या अभिप्राय है? 
उत्तर:-
कयी बार उत्पादक एवं व्यापारी अधिक लाभ अर्जित के लिए घी, तेल, मसालों जैसे महंगे खाद्य पदार्थों, दवाओं, प्रसाधन सामग्री आदि में निम्नस्तर और कम मूल्य की वस्तुओं को मिला देते हैं जिसे मिलावट की संज्ञा दी जाती है|
20. जिला, राज्य और राष्ट्रीय स्तर पर उपभोक्ता न्यायलयों के नाम बताएं|
उत्तर:-
उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम 1986 के अंतर्गत जिला स्तर पर जिला अदालत, राज्य स्तर पर राज्य आयोग तथा राष्ट्र स्तर पर राष्ट्रीय आयोग की स्थापना की व्यवस्था की गई है|
21. उत्पादों के मानकीकरण का क्या अभिप्राय है? 
उत्तर:-
उत्पादों के मानकीकरण का अभिप्राय वस्तुओं और सेवाओं की गुणवत्ता एवं शुद्धता का प्रमाणीकरण करना है|
22. भारत में मानकीकरण का प्रमाणपत्र देनेवाली प्रमुख संस्था का नाम बताएं—
उत्तर:- भारतीय मानक ब्यूरो


लघु उत्तरीय प्रश्न



1. बाजार में उपभोक्ताओं का किस प्रकार से शोषण किया जाता है? 
उत्तर:-
(1) विक्रेता प्रायः वस्तुओं का उचित ढंग से माप तौल नहीं करता तथा माप तौल में कमी करते हैं|
(2) कयी अवसरों पर विक्रेता ग्राहकों से वस्तुओं के निर्धारित खुदरा मूल्य से अधिक राशि वसूलते है|
(3) बाजारों में प्रायः घी, खाद्य पदार्थ, मसालों आदि में मिलावट होती है|
(4) कयी बार विक्रेता या उत्पादक उपभोक्ताओं को गलत था अधूरी जानकारी देकर धोखे में डाल देते हैं|
2. भारत में किन कारणों से उपभोक्ता जागरूकता आंदोलन का प्रारंभ हुआ? संक्षेप में वर्णन करें—
उत्तर:-
भारत में एक सामाजिक शक्ति के रूप में उपभोक्ता आंदोलन का उदय व्यापारियों के अनुचित व्यवसाय व्यवहार के कारण हुआ| स्वतंत्रता प्राप्ति के पश्चात खाद्यान्न की अत्यधिक कमी होने के कारण जमाखोरी और कालाबाजारी बहुत बढ़ गई थी| अत्यधिक लाभ कमाने के लालच में उत्पादक और विक्रेता खाद्य पदार्थों में मिलावट करने लगे थे| इसके विरोध में देश में उपभोक्ता आंदोलन संगठित रूप से प्रारंभ हुआ|1970 के इराक में कयी उपभोक्ता संगठन जन प्रदर्शन तथा पत्र पत्रिकाओं में आलेख प्रकाशित करने लगे थे| सार्वजनिक वितरण प्रणाली में भी विक्रेता उपभोक्ताओं को निर्धारित मात्रा में तथा उचित समय पर वस्तुओं की आपूर्ति नहीं करते थे तथा कयी प्रकार से मनमानी करते थे| विगत वर्षों के अंतर्गत देश में उपभोक्ता संगठनों की संख्या में अत्यधिक वृद्धि हुई है जिन्होंने उपभोक्ताओं को जागरूक बनाने का प्रयास किया है उपभोक्ता आंदोलनों ने व्यापारिक संस्थानों तथा सरकार दोनों को अनुचित व्यवसाय व्यवहार में सुधार लाने के लिए बाध्य किया है| सरकार ने 1986 में उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम को पारित किया|
3. दो उदाहरण देकर उपभोक्ता जागरूकता आंदोलन की आवश्यकता का वर्णन करें—-
उत्तर:-
उपभोक्ता जागरण की आवश्यकता अनेक अवसरों पर महसूस की जाती है जैसे——
शिक्षण संस्थाएं अपने लुभावने प्रचारों के माध्यम से छात्रों को आकर्षित करते हैं, लेकिन वास्तव में वहाँ ऐसी कोई व्यवस्था नहीं होती| डाक्टरों के द्वारा मरीज देखते समय फीस के बारे में जानकारी नहीं दी जाती है जिससे मरीजों का खूब शोषण होता कयी बार डाक्टर की लापरवाही से मरीज की जान भी चली जाती है| अत: इन सभी मामलों से उपभोक्ता जागरूकता आंदोलन की आवश्यकता होती है|
4. कुछ ऐसे कारकों का उल्लेख कर जिनसे उपभोक्ताओं का शोषण होता है? 
उत्तर:-
(1) सूचना का अभाव उपभोक्ता शोषण का एक प्रमुख कारण है| उपभोक्ताओं को बाजार में विभिन्न प्रकार के उत्पादों की गुणवत्ता और मूल्य आदि की सही जानकारी नहीं रहती है|
(2) कुछ आवश्यक उपभोक्ता पदार्थों की आपूर्ति सीमित होती है| फलस्वरूप उत्पादक तथा व्यापारी इनकी जमाखोरी और कालाबाजारी करते हैं, जिससे भी उपभोक्ताओं का शोषण होता है|
(3) सीमित प्रतिस्पर्धा उपभोक्ताओं के शोषण का शोषण का एक अन्य कारण है|
(4) उपभोक्ताओं की अशिक्षा और अज्ञानता भी उनके शोषण का एक प्रमुख कारण साबित होता है|
5. भारत में उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम पारित करने की आवश्यकता क्यों हुई? 
उत्तर:-
भारत में काफी समय पूर्व से ही उपभोक्ताओं को कयी प्रकार से शोषण किया जाता रहा है| कभी माल या सेवा की घटिया किस्म के कारण तो कभी माप तौल के कारण, कभी नकली वस्तु उपलब्ध होने के कारण, कभी वस्तु की कालाबाजारी या जमाखोरी के कारण तो कभी स्तरहीन विज्ञापनों के कारण उपभोक्ताओं की अनदेखी की जा रही थी| सरकार ने उपभोक्ताओं की हितों की रक्षा के लिए समय समय पर कदम उठाते हुए अनेक उपभोक्ता कानून बनाए गए हैं और वर्तमान में सरकार द्वारा विभिन्न माध्यमों से उपभोक्ता को जागरूक बनाने का सतत् प्रयास किया जा रहा है| ताकि लोग अपने अधिकारों को समझ सकें और अपनी शिकायत का निवारण कर सकें| इसी बात को ध्यान में रखते हुए सरकार के सामने उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम (1986) पारित करने की आवश्यकता महसूस हुई|
6. एक उपभोक्ता के रूप में बाजार में अपने कर्तव्यों का वर्णन करें—
उत्तर:-
उपभोक्ताओं के संरक्षण के लिए प्रायः सभी देशों में आवश्यक कानून बनाए गए हैं| परंतु, उपभोक्ताओं के भी कुछ कर्तव्य है तथा इनके शोषण को रोकने के लिए यह आवश्यक है कि वे अधिकारों के साथ ही अपने कर्तव्यों के प्रति भी सचेत हो| एक उपभोक्ता के रूप में हमारे लिए निम्नलिखित कर्तव्यों को ध्यान में रखना आवश्यक है—-
(1) उपभोक्ताओं को न केवल वस्तुओं के क्रय विक्रय के व्यावसायिक पक्षों की जानकारी होनी चाहिए, वरना स्वास्थ्य एवं सुरक्षा की भी जानकारी आवश्यक है| उन्हें कोई भी सामान खरीदते समय उनकी गुणवत्ता और शुद्धता के प्रति पूर्णतः आश्वस्त हो जाना चाहिए| यदि उस सामान या सेवा की गारंटी दी गई है तो गारंटी कार्ड को पूरा कराकर उसे रख लेना चाहिए|
(2) जहाँ कहीं भी संभव हो, खरीदे गये सामान या सेवा की रसीद अवश्य लेनी चाहिए|
(3) अनेक स्थानों पर सरकार अथवा अन्य स्वयंसेवी संस्थाओं द्वारा उपभोक्ता संघों की स्थापना की गई है| उपभोक्ताओं को इनके कार्यकलाप में रूचि लेनी चाहिए|
(4) एक उपभोक्ता द्वारा क्रय की जानेवाली वस्तु कितने ही कम मूल्य की क्यों न हो, उसे अपनी वास्तविक समस्या की शिकायत अवश्य करनी चाहिए|
(5) उपभोक्ताओं को अपने अधिकारों की जानकारी होनी चाहिए और आवश्यकता पड़ने पर उनका प्रयोग करना चाहिए| 
उपभोक्ताओं की जागरूकता और सक्रिय भागीदारी से ही उन्हें उत्पादकों और व्यापारियों के शोषण से बचाया जा सकता है|
7. उपभोक्ता अधिकारों की सुरक्षा संबंधी अधिनियमों की व्याख्या करें—-
उत्तर:-
उपभोक्ता का प्रथम अधिकार सुरक्षा का अधिकार है| इस अधिकार का सीधा संबंध बाजार से खरीदी जानेवाली वस्तुओं और सेवाओं से जुड़ा है| उपभोक्ता को ऐसे वस्तुओं और सेवाओं से सुरक्षा प्राप्त करने का अधिकार है जिससे उसके शरीर या संपत्ति को हानि हो सकती है जैसे—- बिजली का आयरन विद्युत आपूर्ति की खराबी के कारण करंट मार देते हैं या एक डाक्टर आपरेशन करते समय लापरवाही बरतता है जिसके कारण मरीज को खतरा या हानि हो सकती है| 
8. मान लें कि आप किसी खाद्य पदार्थ का एक पैकेट खरीदते हैं| आप इसपर कौन सा व्यापार चिन्ह देखेंगे और क्यों? 
उत्तर:-
पैकेट बंद खाद्य उत्पादों को खरीदते समय निम्नलिखित व्यापार चिन्ह देखेंगे यथा—अवयवों की सूची, वजन या परिमाण, निर्माता का नाम और पता, निर्माण की तिथि इस्तेमाल की समाप्ति, निरामिष/सामिष चिन्ह डाले गए रंग और खुशबू की घोषणा पोषाहार का दावा सम्मिलित पौष्टिक तत्वों की मात्राएं स्वास्थ्य के प्रति हानिकारक चेतावनी इत्यादि| उत्पादकों द्वारा अपनी वस्तुओं के संबंध में जानकारी प्रदान करने से उपभोक्ता इनके गलत होने पर शिकायत कर सकता है तथा वस्तुओं के बदलने तथा हर्जाना की मांग कर सकता है| जिन वस्तुओं पर व्यापार चिन्ह का अंकित है उनकी गुणवत्ता के प्रति ग्राहक आश्वस्त रहता है|
9. उपभोक्ता अपनी एकजुटता का प्रदर्शन कैसे कर सकते हैं? 
उत्तर:-
भारत में उपभोक्ता संरक्षण की धारणा को विकसित करने तथा उपभोक्ता आंदोलन के प्रसार में गैर सरकारी संगठनों की भूमिका भी महत्वपूर्ण है| इन संगठनों ने उपभोक्ताओं को जागरूक उनके बीच एकजुटता का प्रदर्शन तथा उनके मार्गदर्शन का कार्य किया है| हमारे देश में उपभोक्ताओं के शोषण का एक प्रमुख कारण उनकी अशिक्षा और अज्ञानता भी है| ये स्वयंसेवी संगठन उन्हें प्रशिक्षित करने के साथ ही उपभोक्ता अदालतों में भी उनका प्रतिनिधित्व करते हैं|
10. उत्पादों के मानवीकरण के लिए सरकार ने क्या उपाय किये है? 
उत्तर:-
उपभोक्ताओं के हितों की सुरक्षा के लिए उत्पादों का मानकीकरण एक तकनीकी उपाय है| इसके लिए सरकार ने वह ऐसी संस्थाओं की स्थापना की है जो उत्पादों की गुणवत्ता की जांच कर उनका मानक निर्धारित करती है भारतीय मानक ब्यूरो जिसे पहले भारतीय मानक संस्थान के नाम से जाना जाता था, हमारे देश की प्रमुख मानकीकरण संस्था है| इसका मुख्य कार्य विभिन्न वस्तुओं और सेवाओं का मानक तैयार कर उनकी प्रमाणन योजना को संचालित करना है|
11. उपभोक्ता अधिकारों के संरक्षण एवं आर्थिक शोषण के संदर्भ में मानवाधिकार आयोग का महत्व बताएं—-
उत्तर:-
भारत एक लोकतांत्रिक गणराज्य है तथा भारतीय संविधान देश के सभी नागरिकों को कुछ मौलिक अधिकार प्रदान करता है| इन अधिकारों में आर्थिक शोषण से रक्षा का अधिकार भी सम्मिलित हैं| इसके अंतर्गत सभी प्रकार के वेगार तथा बाल श्रम को अवैध करार दिया गया है| हमारे समाज में बेसहारा और कमजोर वर्ग के लोगों का एक लंबे समय से आर्थिक शोषण होता रहा है| सरकार ने आर्थिक रूप से शोषित इन व्यक्तियों के हितों की रक्षा के लिए समय समय पर कयी कानून पारित किए हैं| परंतु, समाज के अधिकांश शोषित व्यक्ति निर्धन और कमजोर वर्ग के है| आवश्यक कानून होने पर भी अशिक्षा, अज्ञानता एवं साधनों का अभाव होने के कारण वे समान सुविधा तथा समान अवसर से वंचित हो जाते हैं| इनके मौलिक अधिकारों की प्रभावपूर्ण सुरक्षा के लिए सरकार ने मानव अधिकार सुरक्षा अधिनियम 1993 के अंतर्गत एक राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग की स्थापना की है| भारत के सर्वोच्च न्यायालय का एक पूर्व मुख्य न्यायाधीश इस आयोग का अध्यक्ष होता है| देश के विभिन्न राज्यों में भी इस प्रकार के आयोग के गठन का प्रावधान है तथा कुछ समय पूर्व हमारे राज्य बिहार में भी इस प्रकार के आयोग की स्थापना हुई है| हमारे संविधान में सात मौलिक अधिकार दिए गए हैं जिनमें समानता का अधिकार, स्वतंत्रता का अधिकार तथा आर्थिक शोषण से संरक्षण के अधिकार शामिल हैं| इन अधिकारों का हनन होने पर कोई भी व्यक्ति मानवाधिकार आयोग को आवेदन दे सकता है| इस आयोग का महत्व इस कारण और बढ़ जाता है कि मानवाधिकारों का उल्लंघन होने पर यह स्वयं भी संज्ञान ले सकता है|
12. आधुनिक समय में उपभोक्ताओं के शोषण की समस्या क्यों गंभीर हो गई है? 
उत्तर:-
प्राचीनकाल में भी उत्पादक या विक्रेता उपभोक्ताओं का शोषण करते थे| परंतु, व्यापार का विस्तार होने के साथ ही आधुनिक समय में यह समस्या अधिक गंभीर हो गई है| आज अखबार, रेडियो, टेलीविजन आदि प्रचार एवं विज्ञापन के कयी साधन उपलब्ध है| उत्पादक इनपर बहुत अधिक धन खर्च करते हैं जिनका भार उपभोक्ताओं को वहन करना पड़ता है| ग्राहकों को आकृष्ट करने के लिए उत्पादक प्रायः अपनी वस्तुओं का भ्रामक प्रचार करते हैं तथा अपनी वस्तु की गलत या अधूरी जानकारी देते हैं| बाजार में एकाधिकार एवं अपूर्ण प्रतियोगिता की स्थिति रहने के कारण उपभोक्ताओं का शोषण होता है| ऐसी स्थिति में वस्तुओं की आपूर्ति पर कुछ थोड़े से उत्पादकों या विक्रेताओं का नियंत्रण रहता है और वे बाजार को अपनी इच्छानुसार प्रभावित कर सकते हैं|
13. भारत में उपभोक्ताओं के शोषण की समस्या बहुत गंभीर है| क्यों? 
उत्तर:-
भारत में उपभोक्ताओं के शोषण की समस्या बहुत गंभीर है| हमारे देश के अधिकांश उपभोक्ता अशिक्षित है तथा उनकी आय का स्तर बहुत निम्न हैं| इसके फलस्वरूप, वे अपने अधिकारों के प्रति जागरूक नही होते| देश में आवश्यक उपभोक्ता पदार्थों का अभाव होने के कारण उन्हें अनेक वस्तुओं और सेवाओं को अधिक मूल्य पर खरीदना पड़ता है अथवा उनके उपभोग से वंचित रह जाना पड़ता है| भारत में उपभोक्ता संघों का पूर्ण अभाव है| उत्पादक एवं व्यापारी इसका अनुचित लाभ उठाकर उपभोक्ताओं का कयी प्रकार से शोषण करते हैं| भारत जैसे विकासशील देशों में कानूनी प्रक्रिया बहुत जटिल और खर्चीली है| इसके फलस्वरूप भी इन देशों में उपभोक्ताओं का शोषण होता है|
14. उपभोक्ता अधिकारों की सुरक्षा संबंधी अधिनियमों की व्याख्या करें—
उत्तर:-
भारत सरकार ने उपभोक्ताओं के अधिकारों की सुरक्षा के लिए समय समय पर कयी अधिनियम या कानून लागू किए है| इनमें माप तौल मानक अधिनियम, खाद्य मिलावट निवारण अधिनियम, आवश्यक वस्तु अधिनियम आदि महत्वपूर्ण है| उपभोक्ताओं के हितों को रक्षा के लिए सरकार ने 1986 में उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम पारित किया जो उपभोक्ता संरक्षण की दृष्टि से सर्वाधिक महत्वपूर्ण है| यह एक अत्यंत प्रगतिशील और व्यापक कानून है| इस अधिनियम के सभी प्रावधान जुलाई 1987 से प्रभावी हुए हैं| उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम सभी प्रकार की वस्तुओं और सेवाओं के विक्रय पर लागू होता है| अक्टूबर 2005 में भारत सरकार ने सूचना के अधिकार के नाम से एक अन्य अधिनियम पारित किया है जो जनहित तथा उपभोक्ता अधिकारों के संरक्षण के लिए अत्यधिक महत्वपूर्ण है|
15. उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम 1986 के मुख्य प्रावधान क्या है? 
उत्तर:-
उपभोक्ताओं के अधिकारों की सुरक्षा एवं उनके शोषण को रोकने के लिए भारत सरकार ने 1986 में उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम पारित किया है| इस अधिनियम में उपभोक्ताओं के संरक्षण के लिए व्यापक प्रावधान किए गए हैं| इसके अंतर्गत अनुचित व्यापार तरीकों का प्रयोग करने वाले उत्पादकों तथा विक्रेताओं को दंड देने के स्थान पर उपभोक्ताओं की क्षतिपूर्ति की व्यवस्था की गई है| इसके लिए राष्ट्रीय, राज्य एवं जिला स्तर पर एक अर्द्ध न्यायिक तंत्र गठित किया गया है|इसे राष्ट्रीय स्तर पर आयोग, राज्य स्तर पर राज्य आयोग तथा जिला स्तर पर जिला अदालत कहा जाता है| इसका मुख्य उद्देश्य उपभोक्ताओं की शिकायतों की शीघ्रता से कम खर्च में दूर करना है| यह अधिनियम वस्तुओं और सेवाओं दोनों के क्रय विक्रय पर लागू होता है|
16. उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम 1986 में उपभोक्ताओं को दिए गए अधिकारों का वर्णन कीजिये–
उत्तर:-
उपभोक्ताओं के हितों की रक्षा के लिए सरकार ने 1986 में उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम पारित किया जो उनकी सुरक्षा की दृष्टि से अत्यधिक महत्वपूर्ण है| इसके अंतर्गत उपभोक्ताओं के संरक्षण के लिए उन्हें निम्नलिखित अधिकार दिए गए हैं——–
(1) जान माल के लिए खतरनाक वस्तुओं व सेवाओं की बिक्री के विरुद्ध सुरक्षा का अधिकार
(2) वस्तुओं एवं सेवाओं की गुणवत्ता, मात्रा, मानक और मूल्य संबंधी सूचना का अधिकार
(3) प्रतिस्पर्धात्मक मूल्यों पर वस्तुओं को प्राप्त करने का अधिकार
(4) उपभोक्ताओं को उचित स्थान पर अपनी शिकायत दर्ज कराने का अधिकार
(5) अनुचित व्यापार तरीकों एवं शोषण के विरुद्ध न्याय पाने का अधिकार
(6) उपभोक्ता प्रशिक्षण का अधिकार
17. यदि उपभोक्ता जिला अदालत के निर्णय से संतुष्ट नहीं है तो वह कब और कहाँ अपील कर सकता है? 
उत्तर:-
यदि कोई उपभोक्ता जिला अदालत के निर्णय से संतुष्ट नहीं है तो वह इसके विरुद्ध राज्य आयोग में अपील कर सकता है| यह अपील जिला अदालत के निर्णय के 30 दिनों के भीतर होनी चाहिए| इसमें अपील करने वाले उपभोक्ता के आवेदन पत्र के साथ जिला अदालत का आदेश संलग्न करना आवश्यक है| इसके साथ ही, इसमें उन कारणों का उल्लेख होगा चाहिए जिनके लिए यह अपील की जा रही है| अपील करने के लिए उपभोक्ताओं को कोई शुल्क नहीं देना पड़ता है| इस अधिनियम के प्रावधानों के अनुसार, अपील का निर्णय उसे दर्ज कराने के लिए 1 से 90 दिनों के पूर्व हो जाना चाहिए|
18. जब आप कोई उपभोक्ता या खाद्य पदार्थ अथवा दवा का एक पैकेट खरीदते हैं तो इनपर किस प्रकार की जानकारियों का होना आवश्यक होता है? 
उत्तर:-
जब हम कोई उपभोक्ता या खाद्य पदार्थ अथवा दवा खरीदते हैं तो उसके पैकेट पर उस वस्तु के अवयवों, मूल्य, निर्माण तिथि, खराब होने की अंतिम तिथि, रख रखाव एवं प्रयोग आदि के बारे में कयी प्रकार की जानकारियाँ रहती है| सरकारी नियमों के अनुसार, बड़े पैमाने पर उत्पादित वस्तुओं के उत्पादकों के लिए इस प्रकार की जानकारी देना आवश्यक होता है| सरकार द्वारा इस प्रकार के नियम इसिलिए बनाए गए हैं क्योंकि उपभोक्ताओं को वस्तुओं एवं सेवाओं के संबंध में सूचना अथवा जानकारी प्राप्त करने का अधिकार है| वस्तुओं और सेवाओं के संबंध में इन जानकारियों के उपलब्ध होने से उपभोक्ता इनके गलत होने पर शिकायत कर सकता है या हर्जाने की मांग कर सकता है|
19. उपभोक्ता के शोषण के क्या कारण है? 
उत्तर:-
वर्तमान समय में व्यापार का विस्तार होने के साथ ही उपभोक्ता शोषण की समस्या बहुत गंभीर हो गई है| उपभोक्ताओं के शोषण के मुख्य कारण निम्नलिखित हैं——-
वस्तुओं का अभाव—-
बाजार में कयी बार कुछ वस्तुओं की पूर्ति कम होती है और उनका अभाव रहता है| इस स्थिति का अनुचित लाभ उठाकर उत्पादक या विक्रेता अपनी वस्तुओं की अधिक मूल्य वसूल करते हैं|
अपूर्ण प्रतियोगिता—–
कयी बार किसी उत्पादक या उत्पादक समूह का कुछ वस्तुओं के उत्पादन और वितरण पर एकाधिकार रहता है| ऐसी स्थिति में वे प्रायः उपभोक्ताओं का शोषण करते हैं|
उपभोक्ताओं की अज्ञानता—–
अनेक अवसरों पर उपभोक्ताओं को बाजार में उपलब्ध वस्तुओं के मूल्य, गुण, संरचना तथा प्रयोग आदि की पूरी जानकारी नहीं रहती है| इसका अनुचित लाभ उठाकर उत्पादक एवं विक्रेता शोषण करते हैं|
अशिक्षा—-
अशिक्षा के कारण विकासशील देशों के अधिकांश उपभोक्ता अपने अधिकारों के प्रति जागरूक नही है| यह उनके शोषण का एक प्रमुख कारण है|
विज्ञापन एवं प्रचार—-
आज अखबार, टेलीविजन आदि विज्ञापन के अनेक साधन उपलब्ध हैं| इनमें वस्तुओं की गुणवत्ता को बहुत बढ़ा चढ़ाकर बताया जाता है अथवा उनका भ्रामक प्रचार किया जाता है|
जटिल कानूनी प्रक्रिया—
भारत जैसे विकासशील देशों में कानूनी प्रक्रिया बहुत जटिल और खर्चीली है| इसके फलस्वरूप, कम आय वाले सामान्य उपभोक्ता बड़े उत्पादकों या व्यापारियों के विरुद्ध कोई कार्वाई नहीं करना चाहते हैं|
20. उपभोक्ताओं के अधिकारों की रक्षा के लिए किए गए उपायों का वर्णन कीजिये—
उत्तर:-
भारत में उपभोक्ताओं के अधिकारों की रक्षा के लिए तीन प्रकार के उपाय अपनाए गये हैं— कानूनी, प्रशासनिक एवं तकनीकी| कानूनी उपायों में 1986 का उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम सबसे महत्वपूर्ण है| इस संबंध में सरकार द्वारा कयी अन्य कानून भी बनाए गए हैं और समय समय पर उनमें आवश्यक संशोधन किया गया है| अनिवार्य उपभोक्ता वस्तुओं का सार्वजनिक वितरण प्रणाली द्वारा वितरण एक प्रशासनिक उपाय है| वस्तुओं का मानकीकरण तकनीकी उपाय है|

उपभोक्ता अधिकारों से संबंधित कानून—–
भारत सरकार ने उपभोक्ताओं के अधिकारों की सुरक्षा के लिए समय समय पर कयी कानून लागू किए हैं| इनमें माप तौल मानक अधिनियम, खाद्य मिलावट निवारण अधिनियम, आवश्यक वस्तु अधिनियम आदि महत्वपूर्ण है| परंतु, उपभोक्ता अधिकारों की सुरक्षा के लिए उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम 1986 सर्वाधिक महत्वपूर्ण है| यह अधिनियम सभी प्रकार की वस्तुओं और सेवाओं के विक्रय पर लागू होता है|
सार्वजनिक वितरण प्रणाली—-
उपभोक्ता संरक्षण के लिए सरकार ने प्रशासनिक उपाय भी किए हैं| इनके शोषण को रोकने के लिए सरकार ने देश में एक व्यापक सार्वजनिक वितरण प्रणाली की स्थापना की है| इससे वस्तुओं की कालाबाजारी, जमाखोरी और मुनाफाखोरी को रोकने में सहायता मिली है|
वस्तुओं का मानकीकरण—–
उपभोक्ताओं के हितों की रक्षा के लिए सरकार ने ऐसी संस्थाओं की स्थापना की है जो विभिन्न उत्पादों का मानक निर्धारित करती है| इसके साथ ही, वे इनकी गुणवत्ता की जांच भ करती है|
दीर्घ उत्तरीय प्रश्न



1. भारत में उपभोक्ताओं का किस प्रकार शोषण किया जाता है? उपभोक्ताओं के क्या अधिकार है तथा उनके संरक्षण के लिए सरकार ने क्या कदम उठाए हैं? 
उत्तर:-
भारतीय अर्थव्यवस्था में उपभोक्ताओं की स्थिति सोचनीय है| वे सदैव व्यवसायियों द्वारा अनुचित लाभ कमाने के उद्देश्य से ठगे जाते हैं, साथ ही उनमें शिक्षा की कमी गरीबी का प्रभाव और जागरूकता अभाव के कारण भी उपभोक्ता शोषण के शिकार होते हैं| वर्तमान समय में ऐसा कोई भी क्षेत्र नहीं है जहाँ उपभोक्ताओं का शोषण नहीं हो रहा हो वह चाहे शिक्षा का क्षेत्र दो या बैंकिंग, दूरसंचार, डाक, खाद्य सामग्री या फिर भवन निर्माण| सभी क्षेत्र में त्रुटि लापरवाही और कालाबाजारी उपभोक्ता के लिए घातक सिद्ध हो रही है| उपभोक्ता का कयी प्रकार से शोषण किया जाता है यानि कभी माल या सेवा की घटिया किस्म के कारण तो कभी कम माप तौल के कारण, कभी नकली वस्तु उपलब्ध होने के कारण, कभी वस्तु की कालाबाजारी या जमाखोरी के कारण तो कभी स्तरहीन विज्ञापनों के कारण|
उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम 1986 की धारा 6 के अंतर्गत उपयोगिताओं को कुछ अधिकार प्रदान किए गए हैं जो निम्नलिखित हैं—–
(1) जान माल के लिए खतरनाक वस्तुओं और सेवाओं की बिक्री के विरुद्ध संरक्षण का अधिकार|
(2) वस्तुओं की सेवाओं की गुणवत्ता, मात्रा, मानक और मूल्य संबंधी सूचना का अधिकार|
(3) विभिन्न वस्तुओं को देख परखकर चुनाव करने तथा प्रतिस्पर्धात्मक मूल्यों पर उन्हें प्राप्त करने का अधिकार|
(4) उपभोक्ताओं को उचित स्थान पर अपनी शिकायत दर्ज कराने का अधिकार
(5) अनुचित व्यापार तरीकों एवं शोषण के विरुद्ध न्याय पाने का अधिकार
(6) उपभोक्ता प्रशिक्षण का अधिकार
उपभोक्ताओं के अधिकार की रक्षा एवं हितों का संरक्षण करने के लिए सरकारी स्तर पर केन्द्रीय उपभोक्ता संरक्षण परिषद एवं राज्य स्तर पर राज्य उपभोक्ता संरक्षण परिषद की स्थापना की गई है| उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम 1986 के तहत उपभोक्ताओं को उनकी शिकायतों के निवारण के लिए व्यवस्था दी गई है जिसे तीन स्तरों पर स्थापित किया गया है—-
(1) राष्ट्रीय स्तर पर राष्ट्रीय स्तरीय आयोग
(2) राज्य स्तर पर राज्य स्तरीय आयोग
(3) जिला स्तर पर जिला मंच (फोरम)
 न्यायिक व्यवस्था उपभोक्ताओं के लिए बहुत ही उपयोगी एवं व्यावहारिक है|
2. उपभोक्ताओं के कुछ अधिकारों को बताएं और उनके प्रत्येक अधिकार पर कुछ पंक्तियाँ लिखें–
उत्तर:-
उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम 1986 की धारा 6 के अंतर्गत उपभोक्ता को कुछ अधिकार दिए गए हैं जो निम्नलिखित हैं——
सुरक्षा का अधिकार——
इस अधिकार का सीधा संबंध बाजार से खरीदी जानेवाली वस्तुओं और सेवाओं से जुड़ा हुआ है उपभोक्ता को ऐसे वस्तुओं और सेवाओं से सुरक्षा प्राप्त करने का अधिकार है जिससे उसके शरीर या संपत्ति को हानि हो सकती है| उदाहरण—- पटना के एक राज्य चिकित्सक ने एक महिला के पेट का आपरेशन किया था| लापरवाही वश एक छोटा तौलिया महिला के पेट के अंदर ही छोड़ दिया था| कुछ दिनों पश्चात महिला के पेट में भयंकर दर्द होने लगा| महिला के परिवार वालों ने जिला उपभोक्ता अदालत तथा पुनः राज्य उपभोक्ता आयोग में इसकी अपील की, जिसने चिकित्सक को लापरवाही का दोषी पाया और उक्त महिला को हर्जाना देने का आदेश दिया|
सूचना का अधिकार—–
उपभोक्ता को वे सभी आवश्यक सूचनाएँ भी प्राप्त करने का अधिकार है जिसके आधार पर वह वस्तुएँ या सेवाएँ खरीदने का निर्णय कर सकते हैं| जैसे—- पैकेट बंद सामान खरीदने पर उसका मूल्य, इस्तेमाल करने की अवधि गुणवत्ता इत्यादि की सूचना प्राप्त करें| उत्पादकों द्वारा अपनी वस्तुओं के संबंध में जानकारी प्रदान करने से उपभोक्ता इनके गलत होने पर शिकायत कर सकता है तथा वस्तुओं को बदलने तथा हर्जाने की मांग कर सकता है| नागरिकों के हित में अब सरकार ने सूचना के अधिकार को बहुत व्यापक बना दिया है|
चयन का अधिकार—-
उपभोक्ताओं को एक अन्य अधिकार चुनाव अथवा चयन का अधिकार है प्रायः इस अधिकार का उल्लंघन उस समय होता है जब किसी वस्तु की आपूर्ति पर किसी एक उत्पादक या विक्रेता का अधिकार होता है| टेलीफोन कनेक्शन, रसोई गैस आदि जैसे वस्तुओं के कुछ थोड़े से विक्रेता होते हैं| इस प्रकार के विक्रेता प्रायः अनावश्यक शर्तें लगाकर उपभोक्ताओं को परेशान करते हैं वे कयी बार उपभोक्ताओं को ऐसी वस्तुओं को खरीदने के लिए भी बाध्य करते हैं जिनकी उन्हें आवश्यकता नहीं होती है| उदाहरण के लिए रसोई गैस का विक्रेता नया कनेक्शन लेते समय उसके साथ चूल्हा खरीदने की शर्तें लगा देता है| यह उपभोक्ताओं के चुनाव के अधिकार की अवहेलना है| किसी भी उपभोक्ता को अपनी आवश्यकतानुसार वस्तुओं को खरीदने अर्थात चयन करने का अधिकार है|
3. अभी हाल में ही भारत सरकार ने सूचना के अधिकार को बहुत व्यापक बना दिया है| सोदाहरण स्पष्ट करें|
उत्तर:-
नागरिकों के हित में अभी हाल ही में सरकार ने सूचना के अधिकार को बहुत व्यापक बना दिया है| अक्टूबर 2005 में भारत सरकार ने सूचना का अधिकार के नाम से एक अधिनियम पारित किया गया है| इस अधिनियम के अंतर्गत किसी व्यक्ति को जनहित में सरकारी विभागों एवं सार्वजनिक संस्थानों के क्रियाकलापों से संबंधित सूचनाएँ प्राप्त करने का अधिकार है| इसके पूर्व सरकारी विभाग और उनके कर्मचारी आम नागरिकों की पहुँच से बाहर थे| सामान्य नागरिकों को सूचना का अधिकार प्रदान करने वाले इस अधिनियम के दूरगामी परिणाम हुए हैं| सूचना का अधिकार का तात्पर्य है— कोई भी व्यक्ति अभिलेख इमेल आदेश, दस्तावेज, नमूने और इलेक्ट्रॉनिक आंकड़ों आदि के रूप में ऐसी प्रत्येक सूचना प्राप्त कर सकता है जिसकी उसे आवश्यकता हो| जिसके लिए आवेदक संबधित लोक सूचना अधिकारी के समक्ष आवेदन करेगा| जिसकी सूचना 30 दिनों में (विशेष परिस्थिति में 48 घंटे) संबंधित व्यक्ति को सूचना उपलब्ध करवाया जाएगा|
4. भारत में उपभोक्ताओं को समर्थ बनाने के लिए सरकार ने क्या कानूनी उपाय किये है? 
उत्तर:-
उपभोक्ताओं के हितों की रक्षा के लिए सरकार द्वारा कानूनी उपाय भी अपनाए गये हैं जो उपभोक्ताओं को समर्थ बनाता है| उपभोक्ताओं के हितों की रक्षा के लिए सरकार ने जो कानूनी उपाय किये है उनमें 1986 का उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम सर्वाधिक महत्वपूर्ण है| इसके अंतर्गत दंड देने के स्थान पर उपभोक्ताओं की क्षतिपूर्ति की व्यवस्था की गई है| उपभोक्ताओं की शिकायतों के समाधान अथवा उपभोक्ता विवादों के निपटारे हेतु सरकार द्वारा उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम 1986 में त्रिस्तरीय अर्द्धन्यायिक व्यवस्था है जिसमें राष्ट्रीय स्तर पर राष्ट्रीय आयोग, राज्यस्तर पर राज्य आयोग तथा जिला स्तर पर जिला मंच (फोरम) की स्थापना की गई है| यह न्यायिक व्यवस्था उपभोक्ताओं के लिए बहुत ही उपयोगी एवं व्यावहारिक है| इस व्यवस्था से उपभोक्ताओं को त्वरित एवं सस्ता न्याय प्राप्त होता है और समय एवं धन की बचत होती है| पहले शिकायत जिला फोरम में की जाती है शिकायतकर्ता अगर संतुष्ट नहीं है तो मामलों को राज्य फोरम किए राष्ट्रीय आयोग में ले जा सकता है| पुनः अगर उपभोक्ता राष्ट्रीय फोरम से संतुष्ट नहीं होता तो वह आदेश के 30 दिनों के अंदर उच्चतम न्यायालय में अपील कर सकता है|
5. उपभोक्ताओं को कौन कौन से अधिकार प्राप्त है? एक उपभोक्ता अपनी शिकायत कहाँ कर सकता है और इसकी क्या विधि है? 
उत्तर:-
उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम 1986 की धारा (6) के अंतर्गत उपभोक्ता को युद्ध अधिकार दिए गए हैं जो निम्नलिखित हैं——
(1) जान माल के लिए खतरनाक वस्तुओं और सेवाओं की बिक्री के विरुद्ध संरक्षण का अधिकार|
(2) वस्तुओं की सेवाओं की गुणवत्ता, मात्रा, मानक और मूल्य संबंधी सूचना का अधिकार|
(3) विभिन्न वस्तुओं को देख परखकर चुनाव करने तथा प्रतिस्पर्धात्मक मूल्यों पर उन्हें प्राप्त करने का अधिकार|
(4) उपभोक्ताओं को उचित स्थान पर अपनी शिकायत दर्ज कराने का अधिकार
(5) अनुचित व्यापार तरीकों एवं शोषण के विरुद्ध न्याय पाने का अधिकार
(6) उपभोक्ता प्रशिक्षण का अधिकार
यदि किसी वस्तु या सेवा का मूल्य तथा उपभोक्ताओं को दी जानेवाली क्षतिपूर्ति की राशि पांच लाख रुपये तक है तब उपभोक्ता इसकी शिकायत जिला अदालत में दर्ज करा सकते हैं यदि किसी वस्तु या सेवा का मूल्य तथा क्षतिपूर्ति की राशि पांच लाख रुपये से बीस लाख रुपये तक है तब राज्य आयोग के पास यह शिकायत की जा सकती है| यदि किसी वस्तु या सेवा का मूल्य तथा क्षतिपूर्ति की राशि बीस लाख रुपये से अधिक होने पर उपभोक्ता राष्ट्रीय आयोग में इसकी शिकायत दर्ज करा सकते हैं|

शिकायत दर्ज कराने की विधि—-
उपभोक्ता द्वारा सादे कागज पर शिकायत की जा सकती है तथा इसके लिए कोई शुल्क नहीं देना पड़ता है| इस प्रकार की कोई भी शिकायत व्यक्तिगत रूप से या डाक द्वारा भेजी जा सकती है| इन शिकायतों में निम्नलिखित सूचनाएँ होनी चाहिए|
(1) शिकायत दर्ज कराने वाले उपभोक्ता का नाम, विवरण और पता
(2) विरोधी पक्ष, अर्थात विक्रेता या उत्पादक का नाम और पता
(3) शिकायत संबंधी तथ्य और इसके समर्थन में दस्तावेज या प्रमाण पत्र|
6. भारत में उपभोक्ता आंदोलन की प्रगति की समीक्षा करें-
उत्तर:-
स्वतंत्रता प्राप्ति के पश्चात खाद्यान्न की अत्यधिक कमी होने के कारण जमाखोरी और कालाबाजारी बहुत बढ़ गई थी| अत्यधिक लाभ कमाने के लालच में उत्पादक एवं विक्रेता खाद्य पदार्थों एवं खाद्य तेल जैसी वस्तुओं में मिलावट भी भी करने लगे थे| इसके विरोध में हमारे देश में उपभोक्ता आंदोलन का एक संगठित रूप में प्रारंभ हुआ| सार्वजनिक वितरण प्रणाली का संचालन बहुत दोषपूर्ण था| राशन दुकानों के विक्रेता प्रायः उपभोक्ताओं को निर्धारित मात्रा में तथा उचित समय पर वस्तुओं की आपूर्ति नहीं करते थे और कयी प्रकार की मनमानी करते थे| उपभोक्ता संगठनों ने इन पर निगरानी रखना और अधिकारियों के पास शिकायत दर्ज करना आरंभ किया| ये संगठन अन्य सार्वजनिक सेवाओं में व्याप्त भ्रष्टाचार का भी विरोध करने लगे|विगत वर्षों के अंतर्गत देश में उपभोक्ता संगठनों की संख्या में बहुत वृद्धि हुई है और इन्होंने उपभोक्ताओं को जागरूक बनाने का प्रयास किया है| इनके प्रयासों के फलस्वरूप, इस आंदोलन ने व्यापारिक संस्थानों तथा सरकार दोनों को अनुचित व्यवसाय व्यवहार में सुधार लाने के लिए बाध्य किया है| देश में एक व्यापक उपभोक्ता आंदोलन को प्रोत्साहन देने के लिए सरकार ने भी कयी उपाय किये है| इस दृष्टि से सरकार द्वारा 1986 में पारित उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम सर्वाधिक महत्वपूर्ण है यह एक अत्यंत प्रगतिशील एवं व्यापक कानून है| हमारा देश विश्व के उन चुने हुए देशों में है जहाँ उपभोक्ताओं के हितों की रक्षा के लिए विशेष उपभोक्ता न्यायालय स्थापित किए गए हैं| विगत कुछ वर्षों में उपभोक्ता आंदोलन की प्रगति अवश्य हुई है, लेकिन इसकी गति बहुत धीमी है| अभी देश में 700 से भी व्यक्ति अधिक गैर सरकारी उपभोक्ता संगठन है, लेकिन इनमें बहुत थोड़े से ही मान्यता प्राप्त है| सरकार इन्हें संगठित करने के लिए प्रयासरत है तथा मान्यता प्राप्त उपभोक्ता संरक्षण संगठनों को आर्थिक सहायता भी प्रदान करती है| लेकिन, भारत में उपभोक्ता आंदोलन को आपेक्षित सफलता नहीं मिली है| हमारे देश में उपभोक्ताओं की शिकायत के निवारण की प्रक्रिया जटिल है| अनेक अवसरों पर उन्हें वकीलों की सहायता लेनी पड़ती है जिससे यह खर्चीली हो जाती है| हमारे देश में छोटे और खुदरा विक्रेताओं की बहुलता है| वे प्रायः ग्राहकों को कोई रसीद नहीं देते और उपभोक्ताओं के लिए प्रमाण एकत्र करना कठिन हो जाता है| उपभोक्ता न्यायालय द्वारा उपभोक्ता विवादों के निपटारे में समय भी बहुत अधिक लगता है|
7. दो उदाहरण देकर उपभोक्ता जागरूकता आंदोलन की आवश्यकता का वर्णन करैं—-
उत्तर:-
भारत जैसे विकासशील देशों में उपभोक्ताओं के शोषण की समस्या अधिक गंभीर है| अपने अधिकारों एवं दायित्वों की जानकारी नहीं रहने के कारण वे प्रायः शोषण के शिकार हो जाते हैं| अत: उनके शोषण को रोकने और उनके अधिकारों की सुरक्षा के लिए उन्हें जागरूक बनाना आवश्यक है| यही कारण है कि भारत सरकार ने उपभोक्ता जागरूकता के लिए कयी प्रकार की योजनाएँ आरंभ की है| आर्थिक क्रियाकलापों का विस्तार होने तथा उपभोक्ताओं की अनभिज्ञता के कारण आज प्रायः सभी क्षेत्र में उनका शोषण होता है| उदाहरण के लिए, मनुष्य के स्वस्थ और दीर्घ जीवन के लिए चिकित्सा सेवाएँ अत्यधिक महत्वपूर्ण है तथा सभी व्यक्तियों एवं परिवारों को समय समय पर इनकी आवश्यकता होती है| लेकिन चिकित्सकों की लापरवाही से कयी बार मरीजों को शारीरिक क्षति हो जाती है| न्याय प्रक्रिया में अत्यधिक विलंब और खर्च के कारण चिकित्सकों द्वारा गलती या लापरवाही हो जाने पर प्रायः मरीज न्यायालय नहीं जाना चाहते हैं| अतएव, उन्हें इस बात के प्रति जागरूक बनाना आवश्यक है कि अब भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने चिकित्सा व्यवसाय को भी उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम 1986 के अंतर्गत एक सेवा घोषित कर दिया है| उपभोक्ता के रूप में एक मरीज को भी उचित इलाज और सुरक्षित रहने का अधिकार है यदि चिकित्सक मरीजों के इलाज में लापरवाही करते हैं अथवा अपने चिकित्सकीय ज्ञान एवं कौशल का प्रयोग नहीं करते तो मरीज को क्षतिपूर्ति का अधिकार है| नीचे के उदाहरण से यह स्पष्ट है कि अपने इस अधिकार के संरक्षण के लिए मरीज तथा उसके परिवार वालों का जागरूक रहना किस प्रकार आवश्यक है| पटना के एक शल्यचिकित्सक ने एक महिला के पेट का आपरेशन किया| आपरेशन पूरा होने के कुछ दिनों बाद ही महिला के पेट में भयंकर दर्द होने लगा| पुनः जांच करने पर पता चला कि आपरेशन के दौरान शल्यचिकित्सक और उसके कर्मचारियों ने लापरवाही से एक छोटा तौलिया उस महिला के पेट के अंदर ही छोड़ दिया था, इससे उसके पेट में हमेशा के लिए खराबी आ गयी थी| सौभाग्यवश, महिला के परिवार वाले जागरूक थे और उनके द्वारा जिला उपभोक्ता अदालत में शिकायत दर्ज की गई| लेकिन प्रमाण की कमी के कारण इसे खारिज कर दिया गया| उन्होंने पुनः राज्य उपभोक्ता आयोग में अपील की, जिस चिकित्सक को लापरवाही का दोषी पाया और उक्त महिला के हर्जाना देने का आदेश दिया| इसीप्रकार हमारे देश में अनेक निजी शिक्षण संस्थान है जो गलत एवं भ्रामक प्रचार तथा झूठे वादे कर छात्रों का शोषण करते हैं| उदाहरण के लिए, संगीता नामक एक छात्रा ने एक निजी कोचिंग संस्थान के दो वर्षीय पाठ्यक्रम में नामांकन कराया और पूरे दो वर्ष के शुल्क के रूप में 60 हजार रुपये जमा किये| लेकिन, कुछ समय बाद उसने अनुभव किया कि वहाँ पढाई मानक स्तर का नहीं है और उसने वर्ष के अंत में पाठ्यक्रम छोड़ देने का निर्णय लिया| जब उसने संस्थान से एक वर्ष बांकी शुल्क लौटने का अनुरोध किया तो, उसने इंकार कर दिया| अत: उसने जिला उपभोक्ता अदालत में मुकदमा दायर किया जिसने इस कोचिंग संस्थान को 30 हजार रुपये लौटने का आदेश दिया|
8. अभी हाल में भारत सरकार ने सूचना के अधिकार को बहुत व्यापक बना दिया है| सोदाहरण स्पष्ट करें—-
उत्तर:-
एक पूंजीवादी अर्थव्यवस्था में विभिन्न प्रकार की वस्तुओं का बहुत बड़े पैमाने पर उत्पादन होता है| एक उपभोक्ता को प्रायः इनके मूल्य, गुणवत्ता आदि की जानकारी नहीं रहती है| इसके फलस्वरूप, वे कयी बार वस्तुओं का गलत चुनाव कर लेते हैं और उन्हें आर्थिक क्षति होती है| जब आप बाजार में कर्ओ सौंदर्य प्रसाधन खरीदते हैं तो उसके पैकेट पर कयी प्रकार की जानकारी रहती है| इस प्रकार की जानकारियाँ उस वस्तु के मूल्य, गुण, निर्माण तिथि, खराब होने की अंतिम तिथि आदि के संबंध में होती है| इसीप्रकार, जब आप कोई दवा खरीदते हैं तो उसके प्रयोग संबंधी निर्देश तथा प्रभावों एवं सावधानियों आदि की जानकारी भी रहती है| सरकारी नियमों के अनुसार, उत्पादकों के लिए इस प्रकार की जानकारी देना अनिवार्य होता है| सरकार द्वारा इस प्रकार के नियम इसिलिए बनाए गए हैं, क्योंकि उपभोक्ताओं को वस्तुओं और सेवाओं के संबंध में सूचना अथवा जानकारी प्राप्त करने का अधिकार है| सूचना के अधिकार के महत्व को देखते हुए नागरिकों के हित में कुछ समय पूर्व सरकार ने इस अधिकार को बहुत व्यापक बना दिया है| अक्टूबर 2005 में भारत सरकार ने सूचना के अधिकार के नाम से एक अधिनियम पारित किया है| इस अधिनियम के अंतर्गत किसी व्यक्ति को जनहित में सरकारी विभागों एवं सार्वजनिक संस्थाओं के क्रियाकलापों से संबंधित सूचनाएँ प्राप्त करने का अधिकार है| इसके पूर्व सरकारी विभाग और उनके कर्मचारी आम नागरिकों की पहुँच से बाहर थे| निम्नलिखित उदाहरण से यह स्पष्ट है कि इस अधिनियम के दूरगामी परिणाम हुए है| रांची के एक कार्यकर्ता सुनील महतो को इस क्षेत्र में बनी कुछ सड़कों के निर्माण में गड़बड़ी की का अंदेशा हुआ| अत: उसने आरटीआई अधिनियम के अंतर्गत राज्य के जिला योजना कार्यालय में 2003-07 की अवधि में निर्मित सडकों के निर्माण के संबंध में जानकारी प्राप्त करने के लिए आवेदन दिया| इसके पश्चात जांच करने पर पता चला कि इस क्षेत्र की सड़कों के निर्माण में भारी घपला हुआ था तथा कुछ सड़कें केवल कागज पर बनी थी| अंततः सड़क निर्माण विभाग को उन सड़कों को दोबारा बनाना पड़ा जिनके जीर्णोद्धार के लिए मंजूरी दी गई थी| इसके साथ ही, विभाग को दोषी अभियंताओं के विरुद्ध कार्रवाई क्यों भी करनी पड़ी|

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