लोकतांत्रिक जनसंघर्ष एवं आंदोलन
अतिलघु उत्तरीय प्रश्न
1. जनसंघर्ष के रूप में राजनीतिक आंदोलन के उदाहरण दें|
उत्तर:-
चिली में सैनिक तानाशाही के विरुद्ध राजनीतिक आंदोलन, नेपाल में राजशाही के विरुद्ध आंदोलन, पोलैंड में एकल दल की तानाशाही के विरुद्ध जनसंघर्ष तथा म्यांमार में सैनिक शासन के विरुद्ध चल रहा जनसंघर्ष इत्यादि|
2. जनसंघर्ष के रूप में सुधारवादी आंदोलन के उदाहरण प्रस्तुत करें|
उत्तर:-
महाराष्ट्र में दलित पैंथर्स का आंदोलन, भारतीय किसान यूनियन का आंदोलन, आंध्र प्रदेश में महिलाओं द्वारा चलाया गया ताड़ी विरोधी आंदोलन
3. जनसंघर्ष के दो पक्षों का उल्लेख करें|
उत्तर:-
दो पक्ष—- नाकारात्मक और साकारात्मक
नाकारात्मक अर्थ में वर्तमान व्यवस्था के विरुद्ध अपनी संतुष्टि तथा असहमति को अभिव्यक्ति करता है| तथा सकारात्मक दृष्टि से सामाजिक तथा राजनीतिक व्यवस्था में जो विकृतियाँ उत्पन्न होती है उन्हें दूर करने के उद्देश्य से किया गया जनसंघर्ष अथवा आंदोलन|
4. जनसंघर्ष की एक उपयोगिता बताएं|
उत्तर:-
जनसंघर्ष की सबसे बड़ी उपयोगिता यह है कि यह लोकतंत्र की स्थापना और उसकी वापसी में तो सहायक होता ही है, लोकतांत्रिक शासन व्यवस्था में लोकतंत्र के विस्तार में भी सहायक होता है|
5. जनसंघर्ष या आंदोलन की सफलता के लिए क्या आवश्यक है?
उत्तर:-
जनसंघर्ष या आंदोलन की सफलता के लिए आवश्यक है कि इसका संचालन किसी संगठन द्वारा किया जाए| नेपाल में सात राजनीतिक दलों के गठबंधन तथा माओवादियों के सहयोग से जन संघर्ष सफल हुआ|
6. नर्मदा बचाओ आंदोलन का मुख्य उद्देश्य क्या था?
उत्तर:-
नर्मदा बचाओ आंदोलन का मुख्य उद्देश्य कृषि क्षेत्र में सुधार के लिए सरकार का ध्यान आकृष्ट करना रहा है|
7. लोकतंत्र की बहाली के लिए किस देश में सप्तदलीय गठबंधन तैयार किया गया था?
उत्तर:-
नेपाल
8. सूचना के अधिकार के लिए सर्वप्रथम कहाँ और कब आवाज उठाई गई थी?
उत्तर:-
राजस्थान के भीम तहशील में, 1990 में
9. दलित पैंथर्स नामक संगठन कहाँ स्थापित किया गया था?
उत्तर:-
महाराष्ट्र में
लघु उत्तरीय प्रश्न
1. दबाव समूह किसे कहते हैं? इसके उदाहरण दें|
उत्तर:-
दबाव समूह का लक्ष्य सत्ता पर प्रत्यक्ष नियंत्रण करने अथवा सत्ता में भागीदारी करने से नहीं होता| जब कभी जनसंघर्ष या आंदोलन होता है तब राजनीतिक दलों के साथ साथ दबाव समूह भी उसमें सम्मिलित हो जाते हैं और वे संघर्षकारी समूह बन जाते हैं| दबाव समूह किसी आंदोलन का समर्थन किसी विशेष उद्देश्य की पूर्ति के लिए करते हैं| उद्देश्य की पूर्ति के बाद उनका सत्ता से कोई लेना देना नहीं होता| दबाव समूह के उदाहरणों में 1974 की संपूर्ण क्रांति नेपाल में सात राजनीतिक दल, किसान, मजदूर व्यावसायियों शिक्षक अभियंता के समूह बोलिविया में फोडेकोर इत्यादि दबाव समूह के उदाहरण है|
2. दबाव समूह तथा राजनीतिक दल में मुख्य अंतर बताएं|
उत्तर:-
राजनीतिक दल एवं दबाव समूह में सबसे बड़ा अंतर यह है कि राजनीतिक दल का उद्देश्य सत्ता में परिवर्तन लाकर उसपर आधिपत्य करना होता है, वहीं दबाव समूह का लक्ष्य सत्ता पर प्रत्यक्ष नियंत्रण करने अथवा सत्ता में भागीदारी नहीं होता| दबाव समूह किसी आंदोलन का समर्थन किसी विशेष उद्देश्य की पूर्ति के लिए करते हैं| उद्देश्य की पूर्ति के बाद उनका सत्ता से कोई लेना देना नहीं होता| इसके विपरीत राजनीतिक दल उद्देश्य की पूर्ति के बाद सत्ता पर नियंत्रण भी करना चाहते हैं|
3. लोकतांत्रिक शासन व्यवस्था में हित समूहों की उपयोगिता पर प्रकाश डालें|
उत्तर:-
लोकतांत्रिक शासन व्यवस्था में हित समूहों की भूमिका काफी महत्वपूर्ण है| जो निम्न हैं——
सरकार को सजग बनाए रखना—-
दबाव समूह विभिन्न तरीकों से सरकार का ध्यान जनता की उचित मांगों की ओर दिलाकर एक साकारात्मक प्रभाव डालते हैं| इसके लिए हित समूह जनता का समर्थन और सहानुभूति भी प्राप्त करने की कोशिश करते हैं|
आंदोलन को सफल बनाना——
लोकतांत्रिक राजनीतिक व्यवस्था में कयी तरह के जन आंदोलन चलते रहते हैं हित समूह या दबाव समूह ऐसे आंदोलनों को सफल बनाने में सक्रिय भूमिका निभाते हैं|
दबाव समूह और उनके द्वारा चलाए गए आंदोलनों सभी लोकतंत्र की जड़ें और मजबूत हुई है| लोकतंत्र की सफलता के मार्ग में हित समूह बाधक नहीं है, बल्कि सहायक होती है|
4. हित समूह या दबाव समूह राजनीतिक दलों पर किस प्रकार प्रभाव डालते हैं|
उत्तर:-
दबाव समूह सक्रिय राजनीति में हिस्सा नहीं लेते, परंतु अपने उद्देश्य की पूर्ति के लिए राजनीतिक दलों पर भी प्रभाव डालते हैं| प्रत्येक आंदोलन का राजनीतिक पक्ष अवश्य होता है जिसके कारण दबाव समूह एवं राजनीति दलों के बीच प्रत्यक्ष अथवा अप्रत्यक्ष संबंध अवश्य स्थापित हो जाता है| कभी कभी राजनीतिक दल ही सरकार को प्रभावित करने के उद्देश्य से दबाव समूहों का गठन कर डालते हैं| ऐसे समूहों का नेतृत्व भी राजनीतिक दल ही करने लगते हैं| ऐसे दबाव समूह उस राजनीतिक दल की एक शाखा के रूप में काम करने लगते हैं|
5. जं संघर्ष का अर्थ स्पष्ट करें|
उत्तर:-
जन संघर्ष का अर्थ जनता द्वारा कुछ निश्चित बातों या वस्तुओं से संतुष्ट नहीं रहने पर सत्ता के विरुद्ध किया जानेवाले संघर्ष है| जनसंघर्ष अथवा जन आंदोलन का अर्थ वर्तमान व्यवस्था के विरुद्ध अपनी असंतुष्टि तथा असहमति को अभिव्यक्त करना है| यह जनसंघर्ष का नकारात्मक अर्थ है| लेकिन साकारात्मक अर्थ में सामाजिक और राजनीतिक व्यवस्था में अनेक विकृतियाँ उत्पन्न होती रहती है| इन विकृतियों को दूर करने के उद्देश्य से जो जन संघर्ष अथवा आंदोलन होते हैं उसे जन संघर्ष का सकारात्मक पक्ष कहा जाता है|
6. जनसंघर्ष के विभिन्न प्रकारों का वर्णन करें|
उत्तर:-
जनसंघर्ष के अर्थ के आधार पर इसके कयी प्रकार भी होते हैं| राजनीतिक जनसंघर्ष के प्रकारों में मुख्य है—- चिली में सैनिक तानाशाही के विरुद्ध, नेपाल में राजशाही के विरुद्ध, पोलैंड में एकल दल की तानाशाही के विरुद्ध जनसंघर्ष तथा वर्तमान में म्यांमार में सैनिक शासन के विरुद्ध चल रहा जनसंघर्ष|कभी कभी लोकतांत्रिक व्यवस्था में भी जनसंघर्ष सत्ता के अधिकार के दुरुपयोग के विरुद्ध भी होता है| जैसे 1974 का जनसंघर्ष जो भारत में हुआ| कुछ जनसंघर्ष को सुधारवादी आंदोलन के नाम से भी जाना जाता है जैसे—— किसान आंदोलन, मजदूर आंदोलन, नारी उत्थान आंदोलन| लोकतांत्रिक सामाजिक आंदोलन भी जनसंघर्ष का एकरूप है जिसमें धर्म, भाषा, संस्कीर्ति, जाति इत्यादि पर आधारित समुदायों के संघर्ष के रूप में देखने को मिलता है|
7. सूचना का अधिकार का आंदोलन पर एक संक्षिप्त टिप्पणी लिखें|
उत्तर:-
सूचना का अधिकार आंदोलन का प्रारंभ 1990 में हुआ| राजस्थान में काम कर रहे मजदूर किसान शक्ति संगठन ने सरकार के सामने यह मांग रखी कि विकास के कार्यों में मजदूरों को दी जाने वाली मजदूरी का सार्वजनिक खुलासा किया जाए| अप्रैल 1996 में राजस्थान के व्यवहार नामक शहर में इस आंदोलन ने व्यापक रूप धारण कर लिया| लोगों ने यह अनुभव किया कि उनकी आजीविका और जीवन से इस आंदोलन का गहरा संबंध है| इस आंदोलन के दौरान सूचना का अधिकार का नारा दिया गया| इस अधिकार के लिए धरना और प्रदर्शन शुरू हो गये| राजस्थान सरकार को जन आंदोलन के सामने झुकना पड़ा और 2000 में सूचना का अधिकार संबंधी कानून बनाया| अंततः 2005 में केन्द्र सरकार ने सूचना का अधिकार अधिनियम बनाया|
दीर्घ उत्तरीय प्रश्न
1. लोकतंत्र में जनसंघर्ष की उपयोगिता पर प्रकाश डालें|
उत्तर:-
विभिन्न देशों में जनसंघर्ष की विवेचना से यह स्पष्ट है कि लोकतंत्र में इसकी अनेक उपयोगिताएँ है जिनमें कुछ निम्न महत्वपूर्ण उपयोगिता है——
लोकतंत्र के विस्तार में सहायक——-
जनसंघर्ष की सबसे बड़ी उपयोगिता यह है कि यह लोकतंत्र की स्थापना और उसकी वापसी मे तो सहायक होता ही है, लोकतांत्रिक शासन व्यवस्था में लोकतंत्र के विस्तार में भी सहायक होता है| जनसंघर्ष के माध्यम से लोकतंत्र ये भागीदारी प्राप्त करने वालों को भी सफलता मिलती है| इससे लोकतंत्र का विस्तार होता है तथा लोकतंत्र की जड़ें और मजबूत होती है|
लामबंदी और संगठन को बल—–
जनसंघर्ष लोगों की लामबंदी और उन्हें संगठित करने में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है| जनसंघर्ष की सफलता इसीपर निर्भर करती है$
विभिन्न संगठनों और राजनीतिक दलों को सक्रिय करने में सहायक——-
जनसंघर्ष होने पर विभिन्न संगठनों तथा राजनीतिक दलों की सक्रियता बढ़ जाती है| अनेक दबाव एवं हित समूह इसमें सम्मिलित होकर जनसंघर्ष को सफल बना देते हैं
2. नेपाल में लोकतंत्र की वापसी का सविस्तार वर्णन करें|
उत्तर:-
नेपाल में लोकतंत्र की वापसी के लिए व्यापक जनसंघर्ष हुआ| नेपाल में इक्कीसवीं शताब्दी के पूर्व ही लोकतंत्र की स्थापना हो चुकी थी| नेपाल के पूर्ववर्ती राजा वीरेन्द्र विक्रम सिंह ने नेपाल में लोकतंत्र की स्थापना के मार्ग प्रशस्त कर दिया था और स्वयं को औपचारिक रूप से राज्य का प्रधान बनाए रखा| परंतु दुर्भाग्यवश उनकी हत्या कर दी गई| ज्ञानेंद्र नेपाल के नये राजा बने जिनका लोकतांत्रिक शासन व्यवस्था में विश्वास नहीं था| उन्होंने 2002 में संसद को भंगकर पूर्ण राजशाही की घोषणा कर दी| 2005 में राजा ज्ञानेंद्र ने जनता के द्वारा निर्वाचित सरकार को भंग करते हुए तत्कालीन प्रधानमंत्री शेख बहादुर देउबा को अपदस्थ कर दिया| देश में आपातकाल की घोषणा कर दी गई| इतना ही नहीं अपने अधीन नये मंत्रिमंडल का गठन करते हुए तीन वर्ष तक सभी अधिकार अपने हाथ में लेने की भी घोषणा कर दी| राजा ज्ञानेंद्र के इस फैसले के खिलाफ नेपाल में लोकतंत्र की वापसी के लिए देश के प्रमुख राजनीतिक दलों ने आपस में समझौता कर सात दलों के गठबंधन की स्थापना कर ली| आगे चलकर माओवादी आंदोलनकारी जो राजशाही के विरुद्ध पहले से सक्रिय थे इस गठबंधन में शामिल हो गये| नेपाल में लोकतंत्र की बहाली के लिए राजनीतिक शक्तियों के एकजुट हो जाने से जनता के बीच एक नया संदेश गया| जनता खुलकर लोकतंत्र की वापसी के लिए आंदोलन जो 6 अप्रैल 2006 से सात राजनीतिक दलों के गठबंधन द्वारा चलाया गया था के साथ जुड़ गयी| इस प्रकार यह आंदोलन जनसंघर्ष में बदल गया| राजशाही के विरुद्ध जनता के आक्रोश के जनसैलाब के आगे राजशाही को झुकना पड़ा| 24 अप्रैल 2006 के दिन नेपाल नरेश ज्ञानेंद्र ने संसद को बहाल कर सत्ता सात राजनीतिक दलों के गठबंधन को सौंपने की घोषणा कर दी| इस प्रकार नेपाल में लोकतंत्र की वापसी के साथ जनसंघर्ष का अंत हो गया|
3. भारत में 1974 के संघर्ष का वर्णन करें|
उत्तर:-
जनसंघर्ष सिर्फ लोकतंत्र की स्थापना अथवा वापसी के लिए नहीं होता है, बल्कि एक लोकतांत्रिक और निर्वाचित सरकार को जनता की माँग मानने के लिए बाध्य करने के उद्देश्य से भी होता है|कुछ जनसंघर्ष ऐसे भी है जो एक निर्वाचित सरकार को बदलने के उद्देश्य से भी होता है |भारत में 1974 का जनसंघर्ष इसका ज्वलंत उदाहरण है| 1974 के जनसंघर्ष की पृष्ठभूमि बिहार में तत्कालीन सरकार के विरुद्ध छात्र आंदोलन से तैयार हुई| उसके बाद केन्द्र की कांग्रेसी सरकार की गलत नीतियों के कारण विभिन्न राजनीतिक दलों ने विकल्प की तलाश शुरू कर दी| 14 अप्रैल 1974 को दिल्ली में तत्काल कांग्रेस के बीजू पटनायक के निवास स्थान पर भारतीय क्रांति दल के चौधरी चरण सिंह की अध्यक्षता में आठ गैर कांग्रेसी राजनीतिक दलों के विलय का निर्णय लिया गया| इसके ठीक एक दिन पहले 13 अप्रैल को दिल्ली के गांधी शांति प्रतिष्ठान में जनता समाज का गठन किया गया जिसमें जयप्रकाश नारायण और आचार्य कृपलानी की सक्रियता अधिक देखी गई| धीरे धीरे तत्कालीन कांग्रेसी सरकार के विरुद्ध लोग संगठित होते गए और संपूर्ण देश में आंदोलन प्रारंभ हो गया| यह आंदोलन जयप्रकाश नारायण की संपूर्ण क्रांति के नाम से प्रसिद्ध हो गया| इस आंदोलन को जनता का अपार समर्थन मिला| इस प्रकार इसने जनसंघर्ष का रुप धारण कर लिया| जनता पार्टी का गठन हुआ| आंदोलन को दबाने का भरसक प्रयास किया गया, परंतु यह जनसंघर्ष दबने की जगह उग्र रूप लेता गया| सरकार को राष्ट्रीय आपात की घोषणा करनी पड़ी|1977 में देश में आम निर्वाचन हुआ तो जनता पार्टी को पूर्ण बहुमत मिला और केन्द्र में पहली बार मोरारजी देसाई के प्रधानमंत्रित्व में गैर कांग्रेसी सरकार का गठन हुआ|
4. जनसंघर्ष में राजनीतिक दलों एवं दबाव समूहों की भूमिका का वर्णन करें|
उत्तर:-
लोकतंत्र में जनसंघर्ष तभी सफल होता है जब इसका संचालन किसी संगठन द्वारा किया जाता है| नेपाल में सात राजनीतिक दलों के गठबंधन तथा माओवादियों के सहयोग से जनसंघर्ष सफल हुआ| म्यांमार में नेशनल लीग फार डेमोक्रेसी नामक राजनीतिक दल की नेत्री आंग सान सूची के नेतृत्व में लोकतंत्र की वापसी का जनसंघर्ष जारी है| बोलिविया में फेडेकोर नामक संगठन के नेतृत्व में जनसंघर्ष चला जिसे किसानों, मजदूरों छात्र संघों और सोशलिस्ट पार्टी नामक राजनीतिक दल का भी समर्थन प्राप्त था| भारत में भी 1974 के जयप्रकाश नारायण के जन आंदोलन को छात्रों, वकीलों, शिक्षकों इत्यादि के संघों के समर्थन के साथ साथ जनतंत्र समाज जैसी गैर राजनीतिक संस्था एवं विभिन्न राजनीतिक दलों का भी समर्थन प्राप्त था| इससे यह स्पष्ट होता है कि विभिन्न संगठनों अथवा विभिन्न वर्गों के संघों के माध्यम से आंदोलन करके सरकार को अपनी माँग मानने के लिए बाध्य किया जाता है| इसे दबाव समूह के नाम से जाना जाता है| इन दबाव समूहों से जनसंघर्ष को तो सफल बनाया ही जाता है, नागरिकों की भी सत्ता में भागीदारी बढ़ जाती है| दबाव समूहों की भूमिका भी जनसंघर्ष में काफी महत्वपूर्ण मानी जाती है| दबाव समूहों द्वारा ही सरकार की नीतियों को प्रभावित किया जाता है और जनता की मांगों को सरकार से मानने के लिए भी दबाव डाला जाता है| विभिन्न पेशे में लगे लोग जैसे वकील शिक्षक, डाक्टर, अभियंता, सरकारी कर्मचारी अपने अपने हितों की रक्षा के लिए जब संघ बनाते हैं तो उसे हित समूह कहा जाता है| जब ऐसे समूह द्वारा अपने पक्ष में सरकार को निर्णय करने के लिए बाह्य किया जाता है तब हित समूह दबाव समूह के रूप में कार्य करने लगते हैं| आधुनिक युग में राजनीतिक दल विभिन्न हितों का प्रतिनिधित्व करने में असमर्थ हो जाते हैं| अत: राजनीतिक दलों के साथ साथ अनेक हित समूहों का भी विकास हो जाता है| इस तरह हम कह सकते हैं कि जनसंघर्ष में राजनीतिक दलों के साथ साथ समूहों की भूमिका काफी महत्वपूर्ण होती है|
5. भारत में हित समूहों का विवेचना करें|
उत्तर:-
हित समूह व्यक्तियों के वैसे समूह कहा जाता है जो किसी विशेष लाभ के लिए आपस में बंधे होते हैं| शिक्षक संघ, छात्र संघ, मजदूर संघ, दुकानदार संघ, डाक्टर संघ, वकील संघ, आदि ऐसे हित समूह है जो अपने वर्ग के लोगों के हितों के लिए संघर्षरत रहते हैं| वे सरकार पर अपने वर्ग के हितों के अनुरूप निर्णय लेने के लिए दबाव डालते हैं| भारत में भी विभिन्न हित समूहों का विकास तेजी से हो रहा है| इनको मुख्यतः दो भागों में बांटा जाता है——- परंपरागत हित समूह एवं आधुनिक हित समूह| परंपरागत हित समूहों में वैसे समूहों के नाम आते हैं जिनका संगठन जाति, धर्म तथा समुदाय विशेष के हितों की पूर्ति के लिए किया जाता है| ऐसे हित समूहों में विभिन्न जातियों के संगठन, धर्म एवं संप्रदाय के आधार पर गठित संघ, जैसे विश्व हिंदू परिषद, जमायते इस्लाम, अकाली दल, परिगणित जाति संघ, कायस्थ सभा, पारसी सम्मेलन, ईसाई सभा आदि आते हैं| आधुनिक हित समूह में व्यापारिक एवं औद्योगिक हित समूह, मजदूर संघ, किसान संगठन विद्यार्थी परिषद, महिला उत्थान मंच, प्रशासनिक कर्मचारी संघ तथा अन्य शिक्षित वर्ग के संघ जाते हैं|
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