हमारी वित्तीय संस्थाएँ
अतिलघु उत्तरीय प्रश्न
1. वित्तीय संस्थाओं से आप क्या समझते हैं?
उत्तर:-
वित्तीय संस्थाएँ वे संस्थाएँ हैं जो देश या राज्य के आर्थिक विकास के लिए उद्यम एवं व्यवसाय को अल्प या दीर्घकाल के लिए साख या ऋण का लेन देन का कार्य करती है| जैसे— बैंक, सहकारी साख समितियाँ
2. वित्तीय संस्थाओं का मुख्य कार्य क्या है?
उत्तर:-
वित्तीय संस्थाओं का मुख्य कार्य जमा स्वीकार करना अल्पकालीन या दीर्घकालीन साख या ऋण को देना है| वित्तीय संस्थाएँ व्यावसायिक संस्थाओं को वित्तीय सुविधाएँ जैसे—– ड्राफ्ट और साख पत्र जारी करना, ऋण पत्रों की गारंटी इत्यादि देने का कार्य भी करती है|
3. छोटे किसानों को वित्त या साख की आवश्यकता क्यों होती है?
उत्तर:-
छोटे किसानों की आर्थिक तंगी के कारण खाद, बीज, हल बैल आदि खरीदने के लिए अल्पकालीन या मध्यकालीन तथा कृषि के क्षेत्र में स्थायी सुधार के लिए दीर्घकालीन साख की आवश्यकता होती है|
4. बैंकों के ऋण जमा अनुपात का क्या अभिप्राय है?
उत्तर:-
ऋण जमा अनुपात का अभिप्राय राज्य में बैंकों द्वारा एकत्र किए गए जमा में से ऋण की माँग पूरी करने हेतु दी गई राशि के परिमाण से है|
5. बिहार में सहकारी वित्तीय संस्थाओं की क्या स्थिति है?
उत्तर:-
सहकारी वित्तीय संस्थाओं की बिहार में स्थिति संतोषजनक नहीं है| राज्य के कृषि ऋणों में सहकारी बैंकों की हिस्सेदारी मात्र 10℅ है तथा राज्य के 16 जिलों में इन बैंकों का कोई अस्तित्व नहीं है|
6. सहकारिता से आप क्या समझते हैं?
उत्तर:-
सहकारिता एक ऐच्छिक संगठन है जो सामान्य आर्थिक एवं सामाजिक हितों की वृद्धि के लिए समानता के आधार पर स्थापित किया जाता है| सहकारिता का अर्थ मिलकर कार्य करना है|
7. प्रारंभिक कृषि साख समितियाँ क्या है?
उत्तर:-
प्रारंभिक कृषि साख समितियाँ एक ग्राम स्तर पर स्थापित किया जाता है| प्रारंभिक कृषि साख समितियाँ प्रायः उत्पादक कार्यों के लिए किसानों को अल्पकालीन तथा मध्यकालीन ऋण प्रदान करती है|
8. सहकारी विक्रय समितियाँ क्या है?
उत्तर:-
सहकारी विक्रय समितियाँ गैर साख कृषि समितियाँ है| सहकारी वित्तिय समितियाँ अपने सदस्यों द्वारा उत्पादित फसल को बेचने के लिए प्रतिनिधि का कार्य करती है तथा साथ ही उनकी उपज के बदले ऋण प्रदान करती है|
9. स्वयं सहायता समूह से आप क्या समझते हैं?
उत्तर:-
स्वयं सहायता समूह ग्रामीण निर्धन परिवारों तथा विशेषकर महिलाओं के सहायता के लिए अपनाया गया एक तरीका है| इसमें गाँव के व्यक्ति या महिलाएँ ही 15 से 20 सदस्यों को संगठित कर अपने विकास के लिए नियमित छोटे बचत कर संगठन या समूह का निर्माण करते हैं|
10. स्वयं सहायता समूहों के संचालन में महिलाओं की क्या भूमिका होती है?
उत्तर:-
स्वयं सहायता समूह में ग्रामीण क्षेत्र के निर्धन व्यक्तियों विशेषकर महिलाओं को छोटे छोटे स्वयं सहायता समूहों में संगठित करना है| महिलाओं को आत्मनिर्भर तथा स्वावलम्बी बनाने के उद्देश्य से उनके समूहों को बैंक लघु ऋण उपलब्ध कराती है| इसिलिए महिलाओं भूमिका स्वयं सहायता समूहों में महत्वपूर्ण हो जाती है|
11. स्वयं सहायता समूहों से निर्धन परिवारों को क्या लाभ हुआ है?
उत्तर:-
स्वयं सहायता समूहों का निर्माण मुख्यतः निर्धन परिवारों की सहायता के लिए अपनाया गया एक तरीका है| इसके माध्यम से सरकार अथवा बैंक उन्हें कर्ज से उबरने में सहायता प्रदान करती है| इससे किसानों की जमीन की सुरक्षा तथा सेठ, साहुकारों के चंगुल से बचने में सहायता प्रदान होती है|
12. सूक्ष्म वित्त योजना से आप क्या समझते हैं?
उत्तर:-
सूक्ष्म वित्त योजना में स्वयं सहायता समूहों के माध्यम से निर्धन परिवारों को बैंक आदि संस्थागत स्रोतों से साख अथवा ऋण की सुविधा प्रदान होती है|
13. वित्तीय संस्थाओं के दो प्रकार कौन कौन से है?
उत्तर:-
राष्ट्रीय वित्तीय संस्थाएँ तथा राज्य स्तरीय वित्तीय संस्थाएँ
14. प्रति मोहम्मद युनूस कौन है?
उत्तर:-
यह बांग्लादेश के प्रसिद्ध अर्थशास्त्री हैं जिन्होंने बंग्लादेश में ग्रामीण बैंक की स्थापना गरीब और निर्धन परिवारों की सहायता के लिए किया| प्रो० युनूस 2005 का नोवेल शांति पुरूस्कार प्राप्त है|
15. नाबार्ड का पूरा नाम क्या है?
उत्तर:- नेशनल बैंक फार एग्रीकल्चर एंड रूरल डेवलपमेंट (राष्ट्रीय कृषि एवं ग्रामीण विकास बैंक)
16. हमारे देश की वित्तीय संस्थाओं को कितने वर्गों में विभाजित किया जाता है?
उत्तर:-
हमारे देश की वित्तीय संस्थाओं को प्रायः दो वर्गों में विभाजित किया जाता है—- मुद्रा बाजार की वित्तीय संस्थाएँ तथा पूंजी बाजार की वित्तीय संस्थाएँ|
17. मुद्रा बाजार की वित्तीय संस्थाओं में कौन सर्वाधिक महत्वपूर्ण है?
उत्तर:-
मुद्रा बाजार की वित्तीय संस्थाओं में व्यावसायिक बैंक सर्वाधिक महत्वपूर्ण है|
18. देशी बैंकर किसे कहते हैं?
उत्तर:-
देशी बैंकरों के अंतर्गत व्यापारी, महाजन, साहूकार आदि जैसे असंगठित क्षेत्र की वित्तीय संस्थाओं को सम्मिलित किया जाता है जो काल से भारतीय पद्धति के अनुसार कार्य करते आ रहे हैं|
19. पूंजी बाजार क्या है?
उत्तर:-
पूंजी बाजार वह है जिसमें व्यावसायिक संस्थानों के हिस्सों तथा ऋण पत्रों का क्रय विक्रय होता है|
20. विकास वित्त संस्थाएँ क्या है?
उत्तर:-
कृषि एवं उद्योग की दीर्घकालीन वित्त की आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए सरकार ने देश में कयी विशिष्ट वित्तीय संस्थाओं की स्थापना की है जिन्हें विकास वित्त संस्थाओं की संज्ञा दी जाती है|
21. बिहार में सहकारी वित्तीय संस्थाओं की क्या स्थिति है?
उत्तर:-
बिहार में सहकारी समितियों की स्थिति संतोषजनक नहीं है तथा राज्य के कृषि ऋण में इनकी हिस्सेदारी मात्र 10 प्रतिशत है|
22. प्रारंभिक गैर कृषि साख समितियाँ क्या है?
उत्तर:-
प्रारंभिक गैर कृषि साख समितियाँ मुख्यतः नगरों में गैर कृषि कार्यों के लिए साख की व्यवस्था करती है तथा छोटे कारीगर, शिल्पी आदि इनके सदस्य होते हैं|
23. हमारे देश में सहकारी बैंकों के मुख्य प्रकार क्या है?
उत्तर:-
हमारे देश में सहकारी बैंकों के तीन मुख्य रूप या प्रकार है—— केन्द्रीय सहकारी बैंक, राज्य सहकारी बैंक तथा भूमि विकास बैंक
24. केंद्रीय सहकारी बैंकों का मुख्य कार्य क्या है?
उत्तर:-
केंद्रीय सहकारी बैंकों का मुख्य कार्य प्रारंभिक समितियों का संगठन करना और उन्हें वित्तीय सहायता प्रदान करना है|
25. स्वयं सहायता समूहों से ग्रामीण परिवार किस प्रकार लाभान्वित हुए हैं?
उत्तर:-
स्वयं सहायता समूहों की सहायता से निर्धन ग्रामीण परिवारों को बैंक आदि संस्थागत स्रोतों से भी ऋण मिलने लगा है तथा इससे महाजनों, साहूकारों आदि पर उनकी निर्भरता कम हुई है|
लघु उत्तरीय प्रश्न
1. सरकार को साख या ऋण लेने की आवश्यकता क्यों होती है?
उत्तर:-
सरकार को विकासात्मक कार्यों जैसे—- परिवहन, संचार, विद्युत, गैस तथा विनिर्माण के अतिरिक्त कृषि, कुटीर एवं लघु उद्योगों को अनुदान तथा निर्धन परिवारों को आर्थिक सहायता प्रदान करने के लिए धन की आवश्यकता होती है| इस प्रकार सरकार का व्यय उसकी आय की तुलना में अधिक होता है और इस घाटे को पूरा करने के लिए केन्द्रीय तथा अन्य बैंकों से साख या ऋण लेने की आवश्यकता होती है|
2. मुद्रा बाजार तथा पूंजी बाजार की वित्तीय संस्थाओं में अंतर बताएं|
उत्तर:-
मुद्रा बाजार तथा पूंजी बाजार, वित्तीय संस्थाओं के दो वर्ग है| मुद्रा बाजार की वित्तीय संस्थाएँ साख या ऋण का अल्पकालीन लेन देन करती है| इसके विपरीत पूंजी बाजार की संस्थाएँ उद्योग तथा व्यापार की दीर्घकालीन साख की आवश्यकताओं को पूरा करती है| मुद्रा बाजार में बैंक तथा देशी बैंकर आदि है तथा पूंजी बाजार में शेयर मार्केट शामिल हैं|
3. देशी बैंकर से आप क्या समझते हैं?
उत्तर:-
मुद्रा बाजार में उन सभी वित्तीय संस्थाओं को सम्मिलित किया जाता है जो अल्पकालीन साख अथवा ऋण लेन देन का कार्य करती है| भारतीय मुद्रा बाजार के दो मुख्य अंग है तथा इसे दो स्पष्ट वर्गों में विभाजित किया जा सकता है—– आधुनिक अथवा संगठित क्षेत्र तथा देशी अथवा असंगठित क्षेत्र| पहले वर्ग में आधुनिक बैंक है जिनकी कार्यविधि यूरोपियन बैंकों के समान है| संगठित क्षेत्र की वित्तीय संस्थाओं पर रिजर्व बैंक का प्रभावपूर्ण नियंत्रण होता है| भारतीय मुद्रा बाजार के असंगठित क्षेत्र में देशी बैंकर आते हैं जो प्राचीनकाल से भारतीय पद्धति के अनुसार कार्य करते आ रहे हैं| इन्हें देश के विभिन्न भागों में साहूकार, महाजन, सेठ, सर्राफ आदि कयी नामों से पुकारा जाता है| असंगठित क्षेत्र की वित्तीय संस्थाओं का सबसे बड़ा दोष यह है कि इनपर रिजर्व बैंक अथवा सरकार का समुचित नियंत्रण नहीं है| भारत में ग्रामीण साख का बड़ा भाग अभी भी देशी बैंकरों या साहूकारों से लिया जाता है| बैंक तथा सहकारी संस्थाएँ ग्रामीण परिवारों की ऋण संबंधी आवश्यकताओं का लगभग आधा भाग ही पूरा कर पाती है| इनकी शेष आवश्यकताएँ असंगठित क्षेत्र की संस्थाओं से पूरी होती है| लेकिन, देशी बैंकर या साहूकार ग्रामीण परिवारों से बहुत ऊंची दर पर ब्याज वसूल करते हैं तथा इनका कयी अन्य प्रकार से शोषण भी करते हैं| सरकार ने देशी बैंकरों पर नियंत्रण के लिए आवश्यक कानून बनाए है, लेकिन उनका व्यवहार में कार्यान्वयन नहीं हो पाता है|
4. उद्योग एवं व्यापार को दीर्घकालीन ऋण प्रदान करने वाली विशिष्ट वित्तीय संस्थाओं का उल्लेख करें|
उत्तर:-
उद्योग एवं व्यापार को दीर्घकालीन साख प्रदान करने वाली संस्थाओं में भारतीय औद्योगिक वित्त निगम, भारतीय औद्योगिक विकास बैंक, भारतीय औद्योगिक साख एवं निवेश निगम यूनिट ट्रस्ट आफ इंडिया निर्यात आयात बैंक आदि महत्वपूर्ण है|
5. बिहार के क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों के कार्यों की समीक्षा कीजिये—–
उत्तर:-
सरकार ने 1975 से कृषि एवं ग्रामीण क्षेत्र के निवासियों को साख प्रदान करने के लिए क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों की स्थापना की है| इन बैंकों की कार्य पद्धति व्यापारिक बैंकों के समान ही है, लेकिन इनका कार्यक्षेत्र अपेक्षाकृत सीमित है| बिहार में 5 क्षेत्रीय ग्रामीण बैंक है तथा इनमें प्रत्येक बैंक राज्य के एक विशेष क्षेत्र में सेवा प्रदान करते हैं| ये बैंक है मध्य बिहार क्षेत्रीय ग्रामीण बैंक (पंजाब नेशनल बैंक द्वारा प्रायोजित) , समस्तीपुर क्षेत्रीय ग्रामीण बैंक (भारतीय स्टेट बैंक द्वारा प्रायोजित) , उत्तर बिहार ग्रामीण बैंक और कोशी क्षेत्रीय ग्रामीण बैंक (सेंट्रल बैंक आफ इंडिया द्वारा आयोजित) तथा बिहार क्षेत्रीय ग्रामीण बैंक (यूनाइटेड कामर्शियल बैंक द्वारा प्रायोजित) | वर्ष 2006-07 में इनकी 1465 शाखाएँ थी जिनमें लगभग 86 प्रतिशत ग्रामीण क्षेत्रों में अवस्थित है| राज्य के सभी क्षेत्रीय बैंकों में निवेश तथा ऋण जमा अनुपात की दृष्टि से मध्य बिहार क्षेत्रीय ग्रामीण बैंक सबसे आगे है जिसका कृषि एवं गैर कृषि दोनों प्रकार के ऋणों में सर्वाधिक हिस्सा है| वर्ष 2007-08 में बिहार के क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों द्वारा वितरित कृषि और गैर कृषि ऋण की मात्रा 1370 करोड़ रुपये थी जिसमें 953 करोड़ रुपये कृषि ऋण था| लेकिन, बिहार के लगभग सभी क्षेत्रीय ग्रामीण बैंक रुग्ण अवस्था में है जिन्हें रिजर्व बैंक ने पुनर्स्थापित करने का सुझाव दिया है|
4. उद्योग एवं व्यापार को दीर्घकालीन ऋण प्रदान करने वाली विशिष्ट वित्तीय संस्थाओं का उल्लेख करें|
उत्तर:- उद्योग एवं व्यापार को दीर्घकालीन साख प्रदान करने वाली संस्थाओं में भारतीय औद्योगिक वित्त निगम, भारतीय औद्योगिक विकास बैंक, भारतीय औद्योगिक साख एवं निवेश निगम यूनिट ट्रस्ट आफ इंडिया निर्यात आयात बैंक आदि महत्वपूर्ण है|
5. बिहार के क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों के कार्यों की समीक्षा कीजिये|
उत्तर:-
सरकार ने 1975 से कृषि एवं ग्रामीण क्षेत्र के निवासियों को साख प्रदान करने के लिए क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों की स्थापना की है| इन बैंकों की कार्य पद्धति व्यापारिक बैंकों के समान ही है, लेकिन इनका कार्यक्षेत्र अपेक्षाकृत सीमित है| बिहार में 5 क्षेत्रीय ग्रामीण बैंक है तथा इनमें प्रत्येक बैंक राज्य के एक विशेष क्षेत्र में सेवा प्रदान करता है| ये बैंक है मध्य बिहार क्षेत्रीय ग्रामीण बैंक (पंजाब नेशनल बैंक द्वारा आयोजित), समस्तीपुर क्षेत्रीय ग्रामीण बैंक (भारतीय स्टेट बैंक द्वारा आयोजित), उत्तर बिहार ग्रामीण बैंक और कोशी क्षेत्रीय ग्रामीण बैंक (सेंट्रल बैंक आफ इंडिया द्वारा आयोजित) तथा बिहार क्षेत्रीय ग्रामीण बैंक (यूनाइटेड कामर्शियल बैंक द्वारा आयोजित) | वर्ष 2006-07 में इनकी 1465 शाखाएँ थी जिनमें लगभग लगभग 86℅ ग्रामीण क्षेत्रों ग्रामीण क्षेत्रों में अवस्थित है| राज्य के सभी क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों में निवेश तथा ऋण जमा अनुपात की दृष्टि से मध्य बिहार क्षेत्रीय ग्रामीण बैंक सबसे आगे है जिसका कृषि एवं गैर कृषि दोनों प्रकार के ऋणों में सर्वाधिक हिस्सा है| वर्ष 2007-08 में बिहार के क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों द्वारा वितरित कृषि और गैर कृषि ऋण की मात्रा 1370 करोड़ रुपये थी जिसमें 953 करोड़ रुपये रुपये कृषि ऋण था| लेकिन, बिहार के लगभग सभी क्षेत्रीय ग्रामीण बैंक रुग्ण अवस्था में है जिन्हें रिजर्व बैंक ने पुनर्स्थापित करने का सुझाव दिया है|
6. बिहार की राजकीय वित्तीय संस्थाओं पर एक संक्षिप्त टिप्पणी लिखें|
उत्तर:-
राजकीय वित्तीय संस्थाएँ वे है जो सरकार की सहायता से वृहत एवं लघु उद्योगों की वित्त या साख की आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए स्थापित की जाती है| केंद्र सरकार के समान ही बिहार सरकार ने भी राज्य में विभिन्न क्षेत्र में क्षेत्र के उद्योगों को प्रोत्साहन देने के लिए 12 वित्तीय संस्थाओं की स्थापना की थी| इनमें बिहार राज्य वित्त निगम और बिहार राज्य ऋण एवं निवेश निगम सर्वाधिक महत्वपूर्ण है| इन दोनों संस्थाओं का उद्देश्य राज्य के उद्योगों को वित्तीय सहायता उपलब्ध कराना है| लेकिन, बहुत कम ऋण वसूली के कारण अभी व्यवहार में इन संस्थाओं ने ऋण प्रदान करने का काम बंद कर दिया था| कुछ समय पूर्व अब राज्य सरकार ने इन दोनों संस्थाओं के पुनरुद्धार का काम अपने हाथ में ले लिया है और इनकी अधिकांश देनदारियों को समाप्त करने की प्रक्रिया चल रही है शेष 10 संस्थाओं में बिहार सरकार ने बिहार राज्य इलेक्ट्रॉनिक विकास निगम तथा बिहार राज्य फिल्म एवं वित्त निगम को छोड़कर अन्य सभी को बंद करने का निर्णय लिया है|
7. बैंक जमा कितने प्रकार के होते हैं?
उत्तर:-
स्थायी जमा—-
इसे सावधि जमा भी कहते हैं| इसमें बैंक एक निश्चित अवधि के लिए राशि जमा कर लेती है और उसकी निकासी समय से पूर्व नहीं होती|
चालू जमा—-
इसे मांग जमा भी कहते हैं| इसमें व्यक्ति अपनी इच्छानुसार रुपया जमा या निकाल सकता है|
संचयी जमा—–
इस जमा में बैंक ग्राहकों को निकासी के अधिकार को सीमित कर देता है| इसमें एक निश्चित रकम से अधिक निकासी नहीं हो सकती है|
आवर्ती जमा—-
आवर्ती जमा खाते में ग्राहकों को प्रतिमाह एक निश्चित राशि जमा करना होता है| आवर्ती जमा एक निश्चित अवधि (60 माह या 72 माह) तक होता है|
8. व्यावसायिक बैंकों द्वारा ऋण प्रदान करने के मुख्य तरीके क्या है?
उत्तर:-
लोगों की बचत को जमा के रूप में स्वीकार करना तथा ऋण या कर्ज देना व्यावसायिक बैंकों का एक महत्वपूर्ण कार्य है| बैंकों द्वारा ऋण प्रदान करने के मुख्य तरीके निम्नलिखित हैं———–
अधविकर्ष—–
इसके अंतर्गत बैंक अपने ग्राहकों को उनकी जमा राशि से अधिक रकम निकालने की सुविधा देता है|
नकद साख—-
इसमें साख में बैंक अपने ग्राहकों को माल आदि की जमानत पर ऋण देते हैं|
ऋण एवं अग्रिम——
इसमें बैंक अपने ग्राहकों को उचित जमानत के आधार पर पूर्व निश्चित अवधि के लिए ऋण देते हैं|
विनिमय विलों का भुगतान—–
व्यावसायिक बैंक विनिमय बिलों को भुनाकर भी व्यापारियों को ऋण देते हैं|
9. प्रारंभिक गैर साख कृषि समितियों के कार्यों का उल्लेख करें|
उत्तर:-
कृषि के क्षेत्र में मुख्यतया दो प्रकार की सहकारी समितियाँ पायी जाती है—– प्रारंभिक कृषि साख समितियाँ तथा प्रारंभिक गैर साख कृषि समितियाँ| प्रारंभिक कृषि साख समितियाँ कृषि कार्यों के लिए अल्पकालीन एवं मध्यकालीन ऋण प्रदान करती है| इसके विपरीत, प्रारंभिक गैर साख कृषि समितियाँ किसानों की ऋण संबंधी नहीं, वरन अन्य प्रकार की आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए बनायी जाती है| इन समितियों का मुख्य कार्य कृषि उपज की बिक्री, उन्नत खेती की व्यवस्था, भूमि की चकबंदी, गृहनिर्माण आदि होता है|गैर साख कृषि समितियों में सहकारी विक्रय समितियाँ सर्वाधिक महत्वपूर्ण है| इसका कारण यह है कि अधिकांश भारतीय किसान अत्यंत निर्धन एवं अशिक्षित होते हैं| साधनों के अभाव में ये अपनी उपज को अधिक समय तक सुरक्षित नहीं रख सकते| उन्हें बाजार की स्थिति एवं मूल्यों की भी जानकारी नहीं रहती है| अत: वे अपनी उपज को अलाभकर समय, अलाभकर स्थान तथा अलाभकर मूल्य पर ही बेचने के लिए बाभ्य हो जाते हैं| विक्रय समितियाँ किसानों को मध्यस्थों एवं व्यापारियों के अनुचित व्यवहार से सुरक्षा प्रदान करती है| ये समितियाँ अपने सदस्यों द्वारा उत्पादित फसल को बेचने के लिए उनके प्रतिनिधि का कार्य करती है| इसके साथ ही ये उनकी उपज के बदले ऋण प्रदान करती है|
10. कुटीर एवं लघु उद्योग उद्योगों के क्षेत्र में किस प्रकार की सहकारी समितियाँ स्थापित की जाती है?
उत्तर:-
कुटीर एवं लघु उद्योगों के क्षेत्र में सहकारिता का महत्वपूर्ण स्थान है| इस क्षेत्र में भी सहकारी समितियाँ भी दो प्रकार की होती है—— साख समितियाँ तथा गैर साख समितियाँ|
प्रारंभिक गैर कृषि साख समितियाँ——-
व्यवसाय में लगे हुए व्यक्तियों को साख सुविधा प्रदान करने के लिए प्रारंभिक गैर कृषि साख समितियों की स्थापना की जाती है| इस प्रकार की समितियाँ प्रायः नगरों में स्थित है तथा इन्हें नगर साख समिति भी कहते हैं|
प्रारंभिक गैर कृषि गैर कृषि समितियाँ——
प्रारंभिक गैर कृषि गैर साख समितियाँ साख देने के लिए वरन् कारीगरों तथा शिल्पकारों को अन्य आर्थिक कार्यों में सहायता प्रदान करने के उद्देश्य से स्थापित की जाती है| इनमें औद्योगिक समितियाँ, मत्स्य पालन समितियाँ तथा बुनकर समितियाँ अत्यंत महत्वपूर्ण है|
11. वित्तीय संस्थाओं से आप क्या समझते हैं? इनका मुख्य कार्य क्या है?
उत्तर:-
आधुनिक अर्थव्यवस्थाओं के संचालन में साख की भूमिका अत्यधिक महत्वपूर्ण होती है| आज प्रायः सभी प्रकार की उत्पादक क्रियाओं के लिए वित्त या साख की आवश्यकता होती है| वित्तीय संस्थाओं के अंतर्गत बैंक, बीमा कंपनियों, सहकारी समितियों तथा महाजन, साहूकार आदि देशी बैंकरों को सम्मिलित किया जाता है जो साख अथवा ऋण के लेन देन का कार्य करती है| लोग प्रायः अपनी बचत बैंक आदि संस्थाओं में जमा अथवा निवेश करते हैं| वित्तीय संस्थाएँ इस बचत को स्वीकार करतीं हैं और इसे ऐसे व्यक्तियों को उधार देती है जिन्हें धन की आवश्यकता है| इस प्रकार, वित्तीय संस्थाएँ ऋण लेने और देनेवाले व्यक्तियों के बीच मध्यस्थ का कार्य करती है|
12. किसानों को वित्त साख की आवश्यकता क्यों होती है?
उत्तर:-
भारत में किसानों को अल्पकालीन, मध्यकालीन एवं दीर्घकालीन तीन प्रकार के साख की आवश्यकता होती है| अल्पकालीन साख की आवश्यकता प्रायः 6 से 12 महीने तक की होती हैं, इसलिए इसे मौसमी साख भी कहते हैं| इनकी माँग खाद एवं बीज खरीदने, मजदूरी चुकाने तथा ब्याज आदि का भुगतान करने के लिए की जाती है| प्रायः फसल कटने के बाद किसान इन्हें वापस लौटा देता है| मध्यकालीन साख कृषि यंत्र, हल, बैल आदि खरीदने के लिए ली जाती है| इनकी अवधि प्रायः एक वर्ष से 5 वर्ष तक की होती है| दीर्घकालीन साख की अवधि प्रायः 5 वर्षों से अधिक की होती है| किसानों को सिंचाई की व्यवस्था करने, भूमि को समतल बनाने तथा महंगे कृषि यंत्र आदि खरीदने के लिए इस प्रकार के ऋण की आवश्यकता होती है| ये ऋण क्षेत्र में स्थायी सुधार लेने के लिए होते हैं|
13. भारतीय किसानों को किन साधनों या वित्त संस्थाओं से साख प्राप्त होता है?
उत्तर:-
भारतीय किसानों को संस्थागत एवं गैर संस्थागत दोनों ही साधनों से साख की प्राप्ति होती है| वित्त या साख के संस्थागत साधनों में बैंक और सहकारी संस्थाओं से प्राप्त होनेवाले ऋण प्रमुख है| हमारे देश में ग्रामीण साख के क्षेत्र में बैंक एवं सहकारी संस्थाओं का योगदान निरंतर बढ़ रहा है| वर्तमान में ये संस्थाएँ कृषि साख की आवश्यकताओं का 50℅ से भी कुछ अधिक भाग पूरा करती है| लेकिन, संस्थागत साधनों से प्राप्त होनेवाले ऋण की मात्रा अपर्याप्त होने के कारण आज भी ग्रामीण साख का एक बड़ा भाग गैर संस्थागत अथवा महाजन, साहूकार आदि अनौपचारिक स्रोतों से लिया जाता है| लेकिन, अनौपचारिक क्षेत्र के ऋणदाता बहुत ऊंची दर से ब्याज वसूल करते हैं, किसानों से बहुत कम मूल्य पर उनका अनाज खरीद लेते हैं तथा निर्धन ग्रामीण परिवारों का कयी अन्य प्रकार से भी शोषण करते हैं|
14. व्यावसायिक बैंक से आप क्या समझते हैं?
उत्तर:-
बैंक वह संस्था है जो मुद्रा तथा साख का व्यापार करती है| साधारणतः बैंक से हमारा अभिप्राय व्यावसायिक बैंकों से ही होता है| किसी भी देश के उद्योग तथा व्यापार के विकास में इन बैंकों का महत्वपूर्ण योगदान होता है| व्यावसायिक अथवा व्यापारिक बैंक लाभ करनेवाली संस्था है| इनका मुख्य कार्य जनता की बचत को जमा के रूप में स्वीकार करना, व्यापारियों को अल्पकालीन ऋण देना तथा साख का निर्माण करना है| भारतीय बैंकिंग कंपनी अधिनियम के अनुसार बैंक या बैंकिंग कंपनी वह कंपनी है, जो उधार देने के लिए या विनियोग करने के लिए जनता से जमा के रूप में मुद्रा स्वीकार करती है और जो मांगने पर चेक, ड्राफ्ट, आर्डर तथा अन्य किसी प्रकार से इनका भुगतान करती है|
15. व्यावसायिक बैंक कितने प्रकार की जमा स्वीकार करते हैं? संक्षिप्त विवरण दीजिये|
उत्तर:;
लोगों की बचत को जमा के रूप में स्वीकार करना व्यावसायिक बैंकों का सबसे महत्वपूर्ण कार्य है| बैंक प्रायः तीन प्रकार के खातों में रकम जमा करते हैं—– स्थायी जमा, चालू जमा तथा संचयी बैंक जमा| स्थायी जमा एक निश्चित अवधि के लिए होती है तथा सामान्यतः इसके पूर्व इस खाते से रकम वापस नहीं ली जा सकती| ऐसे जमा पर ब्याज की दर अपेक्षाकृत ऊंची रहती है| चालू जमा खाते में धन जमा करने या निकालने पर किसी प्रकार का प्रतिबंध नहीं रहता और जमाकर्ता इसमें किसी भी समय रुपया जमा कर सकता है या निकाल सकता है| इस जमा पर बैंक प्रायः कुछ भी ब्याज नहीं देते या नाममात्र का ब्याज देते हैं| संचयी अथवा बचत जमा मुख्यतः मध्य वर्ग की सुविधा के लिए होता है| इस खाते में धन जमा करने पर कोई प्रतिबंध नहीं रहता, लेकिन रुपया निकालने पर प्रायः प्रतिबंध रहता है| इस जमा पर ब्याज दर स्थायी जमा से कम रहतीं है|
16. बिहार की वित्तीय वर्ष को कितने वर्गों में बांटा जाता है? इनका संक्षिप्त वर्णन करें—
उत्तर:-
बिहार को वित्तीय संस्थाओं को दो मुख्य वर्गों में बांटा जा सकता है—- संगठित क्षेत्र की सहायता वित्तीय संस्थाएँ तथा असंगठित क्षेत्र की गैर संस्थागत संस्थाएँ| संस्थागत वित्तीय संस्थाएँ वे हैं जिनपर रिजर्व बैंक अथवा सरकार का नियंत्रण रहता है| इसके विपरीत गैर संस्थागत वित्तीय संस्थाओं में महाजन, भू स्वामी, व्यापारी आदि शामिल हैं जो साख के परंपरागत स्रोत है| इन संस्थाओं पर सरकार का कोई प्रभावपूर्ण नियंत्रण नहीं है| राज्य में कार्यरत वित्त के संस्थागत साधनों के भी तीन मुख्य प्रकार है— बैंकिंग संस्थाएँ, राज्य की वित्तीय संस्थाएँ तथा राष्ट्रीय वित्तीय संस्थाएँ| इनमें बैंकिंग संस्थाएँ सर्वाधिक महत्वपूर्ण है| बैंकिंग संस्थाओं में व्यावसायिक बैंक, क्षेत्रीय ग्रामीण बैंक तथा सहकारी बैंकों को सम्मिलित किया जाता है|
17. सहकारिता से आप क्या समझते हैं? बिहार में सहकारी वित्तीय संस्थाओं की क्या स्थिति है?
उत्तर:-
सहकारिता का अर्थ मिलकर कार्य करना है| सहकारिता एक ऐच्छिक संगठन है जो सामान्य आर्थिक एवं सामाजिक हितों में वृद्धि के लिए समानता के आधार पर स्थापित किया जाता है| इस प्रकार का संगठित सामूहिक हित के लिए कार्य करता है| सहकारी संगठनों के तीन मुख्य तत्व या विशेषताएँ हैं| यह एक ऐच्छिक संगठन है, इसकी स्थापना सामान्य उद्देश्यों की पूर्ति के लिए की जाती है तथा इसका संगठन एवं प्रबंध प्रजातान्त्रिक सिद्धांतों के आधार पर होता है| सहकारी संस्थाओं को कृषि ऋण का आदर्श स्रोत माना जाता है| परंतु, बिहार में सहकारी समितियों के पास साधनों का अभाव है, इनका प्रबंध और संचालन दोषपूर्ण है तथा राज्य के कृषि ऋण में सहकारी बैंकों की हिस्सेदारी मात्र 10℅ है|
18. प्रारंभिक कृषि साख समितियों तथा प्रारंभिक गैर कृषि साख समितियों में क्या अंतर है?
उत्तर:-
प्रारंभिक कृषि साख समितियाँ ग्राम स्तर पर स्थापित की जाती है तथा इनका कार्य क्षेत्र प्रायः एक गाँव तक ही सीमित रहता है| ये समितियाँ केवल कृषि कार्य के लिए अल्पकालीन एवं मध्यकालीन ऋण प्रदान करती है| इन समितियों द्वारा मुख्यतया उत्पादक कार्यों के लिए ही ऋण दिए जाते हैं, जैसे खाद, बीज, कृषि यंत्र आदि खरीदने के लिए| इसके विपरीत, प्रारंभिक गैर कृषि साख समितियाँ कृषि के अतिरिक्त किसी अन्य व्यवसाय में लगे हुए व्यक्तियों को साख सुविधा प्रदान करती है| इस प्रकार की समितियाँ अधिकांशतः नगरों में स्थापित की जाती है जहाँ छोटे कारीगर, शिल्पी तथा श्रमिक इनके सदस्य होते हैं|
19. स्वयं सहायता समूह से आप क्या समझते हैं?
उत्तर:-
पिछले कुछ वर्षों के अंतर्गत निर्धन परिवारों को कर्ज या उधार देने के कुछ नये तरीके अपनाए गये हैं| इनमें एक तरीका ग्रामीण क्षेत्र के निर्धन व्यक्तियों को छोटे छोटे स्वयं सहायता समूहों में संगठित करना और उनकी बचत पूंजी को एकत्रित करने पर आधारित है| एक विशेष सहायता समूह में एक दूसरे के पड़ोसी लगभग 15-20 सदस्य होते हैं| समूह के ये सदस्य नियमित रूप से बचत करते हैं और इस बचत से ही इनकी पूंजी का निर्माण होता है| सदस्य अपनी ऋण की आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए छोटे मोटे कर्ज इस स्वयं सहायता समूह से ही ले सकते हैं| यदि यह समूह नियमित रूप से बचत करता है तो एक दो वर्ष बाद वह किसी बैंक से ऋण लेने योग्य हो जाता है| बैंक समूह के नाम पर ऋण देता है तथा इसका उद्देश्य स्वरोजगार के अवसरों का सृजन करना होता है|
20. सूक्ष्म वित्त योजना क्या है?
उत्तर:-
अब अनेक विकासशील देश यह अनुभव कर रहे हैं कि सरकार द्वारा चलाए जा रहे पारंपरिक गरीबी उन्मूलन कार्यक्रमों से निर्धनता की समस्या का समाधान संभव नहीं है| इसका प्रमुख कारण यह है कि इस प्रकार की निर्धनता मुख्यतया इन देशों की कमजोर ग्रामीण अधिसंरचना के कारण उत्पन्न होती है| इस दृष्टि से सूक्ष्म वित्त निर्धनता निवारण का एक सक्षम विकल्प है| सूक्ष्म वित्त कार्यक्रम द्वारा स्वयं सहायता समूहों को व्यावसायिक बैंकों, क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों तथा सहकारी बैंकों से सहलग्न करने अर्थात जोड़ने का प्रयास किया जाता है| इस प्रकार इस योजना से निर्धन परिवारों को स्वयं सहायता समूहों के माध्यम से बैंक आदि संस्थागत स्रोतों से साख अथवा ऋण सुविधाएँ उपलब्ध हो जाती है|
21. कृषि उद्योग एवं व्यापार को दिर्घकालिन ऋण प्रदान करनेवाली विशिष्ट वित्तीय संस्थाओं का उल्लेख करें|
उत्तर:-
स्वतंत्रता प्राप्ति के पश्चात कृषि, उद्योग एवं व्यापार की दीर्घकालीन वित्त की आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए भारत सरकार की सहायता से देश में कयी विशिष्ट वित्तीय संस्थाओं की स्थापना हुई है| कृषि साख की दृष्टि से इनमें राष्ट्रीय कृषि एवं ग्रामीण विकास बैंक सबसे प्रमुख है| इसकी स्थापना 1982 में हुई है| इस बैंक का मुख्य कार्यालय मुम्बई में है तथा इसकी देश में 16 क्षेत्रीय कार्यालय है| उद्योग एवं व्यापार को दीर्घकालीन साख प्रदान करने वाली संस्थाओं में भारतीय औद्योगिक वित्त निगम, भारतीय औद्योगिक विकास बैंक, भारतीय औद्योगिक साख एवं निवेश निगम, भारतीय जीवन बीमा निगम, यूनिट ट्रस्ट आफ इंडिया, निर्यात आयात बैंक आदि महत्वपूर्ण है| ये संस्थाएँ औद्योगिक संस्थानों की स्थापना तथा उनके विकास एवं विस्तार के लिए बहुत वृहत पैमाने पर वित्त या साख की व्यवस्था करती है| इन संस्थाओं द्वारा इस बात की भी देखरेख की जाती है कि व्यावसायिक संस्थान इनके वित्त का नियोजित ढंग से उपयोग करते हैं| लेकिन, इन विशिष्ट वित्तीय संस्थाओं की स्थापना होने पर भी भारत में दीर्घकालीन पूंजी का अभाव है| इसका एक प्रमुख कारण हमारे देश में बचत की निम्न दर है|
22. बिहार में सहकारिता आंदोलन पर एक संक्षिप्त टिप्पणी लिखे ं|
उत्तर:-
सहकारिता आंदोलन के विकास की दृष्टि से बिहार भारत का एक पिछड़ा राज्य है| यद्यपि स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद राज्य में इस आंदोलन की प्रगति हुई है, फिर भी बिहार इस क्षेत्र में कयी अन्य राज्यों से पीछे है| बिहार राज्य में 1904 से सहकारी साख समितियों की स्थापना होने लगी| 1941 में प्रांतीय सरकार ने बिहार में सहकारिता आंदोलन के पुनरुत्थान के लिए एक सहकारिता पुनरुत्थान योजना प्रस्तुत की| पंचवर्षीय योजनाओं के अंतर्गत राज्य में सहकारिता के विकास पर विशेष बल दिया जा रहा है| इस समय राज्य में कयी प्रकार की सहकारी समितियों की वित्तीय स्थिति संतोषजनक नहीं है| कृषि एवं समवर्गी क्षेत्रों के विकास में सहकारिता के महत्व को देखते हुए अभी हाल में सहकारी प्रक्षेत्र के लिए सरकार ने एक कार्ययोजना तैयार की है| इसमें पांच विशिष्ट क्षेत्रों की पहचान की गई है जिनमें सहकारिता की महत्वपूर्ण भूमिका हो सकती है—- अल्पकालिक कृषि ऋण, कृषि लागत सामग्रियों की आपूर्ति, फसल बीमा, भंडारण एवं विपणन तथा कृषि विस्तार सेवाएँ | बिहार में बुनकरों की बड़ी संख्या होने के कारण बुनकर सहकारी समितियों का विशेष महत्व है| राज्य में लगभग 1071 सहकारी बुनकर समितियाँ है जिनके पास 10000 से अधिक हथकरघे है| राज्य सरकार ने बुनकरों के लिए विपणन सहायता, प्रशिक्षण केंद्रों का आधुनिकीकरण तथा कार्यस्थल की मरम्मत आदि की योजनाएँ आरंभ की है| ऋण माफ़ी योजना के अंतर्गत सरकार ने इनके 12.24 करोड़ रुपये के ऋणों की माफ़ी का अनुमोदन किया है|
दीर्घ उत्तरीय प्रश्न
1. मुद्रा बाजार की प्रमुख वित्तीय संस्थाओं की व्याख्या कीजिये—
उत्तर:-
वित्तीय संस्थाओं को प्रायः दो वर्गों में विभाजित किया जाता है—- मुद्रा बाजार की वित्तीय संस्थाएँ तथा पूंजी बाजार की वित्तीय संस्थाएँ| मुद्रा बाजार की वित्तीय संस्थाएँ साथ या ऋण का अल्पकालीन लेन देन करती है| इसके विपरीत, पूंजी बाजार की संस्थाएँ उद्योग तथा व्यापार की दीर्घकालीन साख की आवश्यकताओं को पूरा करती है| मुद्रा बाजार की वित्तीय संस्थाओं में बैंकिंग संस्थाएँ सर्वाधिक महत्वपूर्ण है| भारतीय बैंकिंग प्रणाली के शीर्ष पर रिजर्व बैंक आफ इंडिया है जिसकी स्थापना अप्रैल 1935 में हुई थी| यह भारत का केंद्रीय बैंक है जो देश की संपूर्ण बैंकिंग व्यवस्था का नियमन एवं नियंत्रण करता है| भारत की बैंकिंग प्रणाली व्यावसायिक बैंकों पर आधारित है| व्यावसायिक बैंकों का मुख्य कार्य जनता की बचत को जमा के रूप में स्वीकार करना तथा उद्योग एवं व्यवसाय को उत्पादन कार्यों के लिए ऋण प्रदान करता है| व्यावसायिक बैंक कयी प्रकार की अन्य वित्तीय सेवाएँ भी प्रदान करते हैं, जैसे मुद्रा का हस्तांतरण, साख पत्र जारी करना इत्यादि| कुछ समय पूर्व तक हमारे देश के अधिकांश व्यावसायिक बैंकों की शाखाएँ शहरी क्षेत्रों में स्थित थी| ये बैंक उद्योग एवं व्यापार के लिए केवल अल्पकालीन ऋण की व्यवस्था करते थे| परंतु, हमारी अर्थव्यवस्था में बैंकिंग के महत्व को देखते हुए सरकार ने देश के प्रमुख व्यावसायिक बैंकों का राष्ट्रीयकरण कर लिया है| इसका मुख्य उद्देश्य समाज के पिछड़े और उपेक्षित वर्ग को वित्तीय सहायता प्रदान करने के लिए ग्रामीण क्षेत्रों में इनकी अधिक से अधिक शाखाओं का विस्तार करना था| 1975 से सरकार ने ग्रामीण क्षेत्र के निवासियों को ऋण प्रदान करने के लिए क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों की एक नयी योजना आरंभ की है| इन बैंकों का मुख्य कार्य ग्रामीण क्षेत्र के छोटे एवं सीमांत किसानों, कृषि, श्रमिकों, कारीगरों, छोटे व्यापारियों आदि को आर्थिक सहायता प्रदान करता है| कृषि साख की आवश्यकताओं को पूरा करने वाली वित्तीय संस्थाओं में सहकारी साख समितियों की भूमिका भी महत्वपूर्ण है| ग्रामीण तथा कृषि क्षेत्र की वित्तीय संस्थाओं को सुदृढ़ बनाने के लिए सरकार ने जुलाई 1982 में राष्ट्रीय कृषि एवं ग्रामीण विकास बैंक की स्थापना की है| यह बैंक कृषि तथा ग्रामीण साख की पूर्ति के लिए देश की शीर्ष संस्था है| भारतीय मुद्रा बाजार का एक असंगठित क्षेत्र भी है जिसे देशी बैंकर की संज्ञा दी जाती है| यह क्षेत्र प्राचीन पद्धति के अनुसार ऋणों के लेन देन का कार्य करता है तथा इसे देश के विभिन्न भागों में साहूकार, महाजन, चेट्टी, सर्राफ आदि नामों से पुकारा जाता| भारत के ग्रामीण क्षेत्रों में आज भी देशी बैंकरों की ही प्रधानता है|
2. पूंजी बाजार क्या है? इसके कार्यों की विवेचना कीजिये—-
उत्तर:-
पूंजी बाजार वह है जिसमें व्यावसायिक संस्थाओं के हिस्सों तथा ऋण पत्रों का क्रय विक्रय होता है| उद्योग एवं व्यापार की साख या पूंजी की दीर्घकालीन आवश्यकता की पूर्ति पूंजी बाजार से होती है| आधुनिक समय में सभी वृहत उद्योग या संस्थान संयुक्त पूंजी कंपनी के रूप में चलाए जाते हैं जिसमें बहुत बड़ी मात्रा में पूंजी या साख की आवश्यकता होती है| व्यावसायिक बैंकों द्वारा इतनी मात्रा में पूंजी या साख की व्यवस्था संभव नहीं है| संयुक्त पूंजी कंपनी दीर्घकालीन पूंजी की आवश्यकता की पूर्ति अंशपत्रों या हिस्सों को विक्रय कर तथा ऋण पत्रों के निर्गमन द्वारा करती है| संयुक्त पूंजी कंपनी के हिस्सों और ऋण पत्रों का क्रय विक्रय पूंजी बाजार में होता है| पूंजी बाजार के दो मुख्य अंग होते हैं|
प्राथमिक बाजार——
प्राथमिक बाजार का संबंध कंपनियों के नये हिस्सों के निर्गमन से होता है|
द्वितीयक बाजार—–
द्वितीयक बाजार को स्टाक एक्सचेंज अथवा शेयर बाजार भी कहते हैं| इस बाजार में संयुक्त पूंजी कंपनियों के वर्तमान हिस्सों और ऋण पत्रों का क्रय विक्रय होता है| हमारे देश में मुंबई देश की वित्तीय गतिविधियों का केंद्र है| मुंबई का शेयर बाजार दबाव स्ट्रीट में स्थित है जिसके माध्यम से इस पूंजी बाजार का संचालन होता है|
3. बिहार की वित्त व्यवस्था में व्यावसायिक बैंकों की भूमिका का विवेचना कीजिये—-
उत्तर:-
बिहार में कार्यरत वित्तीय संस्थाओं को हम दो मुख्य वर्गों में विभाजित कर सकते हैं—–
संस्थागत वित्तीय संस्थाएँ तथा गैर संस्थागत वित्तीय संस्थाएँ| संस्थागत वित्तीय संस्थाएँ वे है जिनपर रिजर्व बैंक अथवा सरकार का नियंत्रण रहता है| इसके विपरीत, गैर संस्थागत वित्तीय संस्थाओं में महाजन, भूस्वामी, व्यापारी आदि शामिल हैं जो साख के परंपरागत स्रोत है| वित्त के संस्थागत स्रोतों में व्यावसायिक बैंक अत्यधिक महत्वपूर्ण है| व्यावसायिक बैंक कृषि एवं उद्योग दोनों ही क्षेत्रों को साख प्रदान करते हैं, जबकि क्षेत्रीय बैंक तथा सहकारी संस्थाएँ मुख्यतया कृषि एवं ग्रामीण साख की व्यवस्था करती है| यद्यपि व्यावसायिक बैंकों में राष्ट्रीयकृत बैंकों के साथ ही निजी व्यावसायिक बैंक और विदेशी बैंक भी शामिल हैं, लेकिन बिहार की वित्त व्यवस्था राष्ट्रीयकृत बैंकों पर ही आधारित है| देश के प्रमुख व्यावसायिक बैंकों के राष्ट्रीयकरण के पश्चात बिहार में व्यावसायिक बैंकों का विस्तार हुआ है| लेकिन, देश के अन्य राज्यों की अपेक्षा अभी भी हमारे राज्य में इनकी संख्या कम है| वर्तमान में देश के व्यावसायिक बैंकों की कुल संख्या का मात्र 4.58℅ ही बिहार में है| यह इसकी जनसंख्या के हिस्से से काफी कम है| वर्ष 2007-08 में बिहार में व्यावसायिक बैंकों की कुल 3,769 शाखाओं में से 61.9 प्रतिशत ग्रामीण क्षेत्रों में, 20.8 प्रतिशत अर्द्ध शहरी क्षेत्रों में तथा शेष 17.3 प्रतिशत शहरों में अवस्थित थे| बिहार में व्यावसायिक बैंकों का ऋण जमा अनुपात भी बहुत कम है| ऋण जमा अनुपात बैंकों द्वारा एकत्र किए गए जमा में से ऋण की माँग पूरी करने हेतु दी गई राशि के परिमाण को व्यक्त करता है| 1990 के दशक तक बिहार में ऋण जमा अनुपात देश में लगभग सबसे कम था| 2000-01 के बाद इसमें थोड़ा सुधार हुआ है, लेकिन 2007-08 में भी यह देश में लगभग न्यूनतम है| बिहार में व्यावसायिक बैंक ऋण प्रदान करने के मुख्य स्रोत है| राज्य के कुल ऋण वितरण का लगभग 65℅ इन्हीं के माध्यम से होता है| राष्ट्रीयकरण के बाद व्यावसायिक बैंकों का बिहार में ग्रामीण क्षेत्र में बहुत विस्तार हुआ है| लेकिन, अभी भी इनके द्वारा दी जानेवाली कृषि साख की मात्रा बहुत कम है|
4. राष्ट्रीय कृषि एवं ग्रामीण विकास बैंक के कणों की व्याख्या कीजिये—-
उत्तर:-
ग्रामीण तथा कृषि क्षेत्र की वित्तीय संस्थाओं को सुदृढ़ बनाने के लिए सरकार ने जुलाई 1982 में राष्ट्रीय कृषि एवं ग्रामीण विकास बैंक की स्थापना की यह बैंक कृषि तथा ग्रामीण साख की पूर्ति के लिए देश की शीर्ष संस्था है| देश में कृषि ग्रामीण साख की आवश्यकताओं की पूर्ति तथा इस कार्य में संलग्न विभिन्न संस्थाओं के कार्यों में समन्वय स्थापित करने का कार्य करता है| कृषि एवं अन्य क्रियाकलापों के लिए ऋण उपलब्ध कराने तथा इस संबंध में नीति निर्धारण के लिए यह एक शीर्ष संस्था है| विकास कार्यों के लिए निवेश तथा उत्पादक ऋण देने वाली संस्थाओं के पुनर्वित के लिए मुख्य प्रतिनिधि का कार्य करता है| राष्ट्रीय कृषि एवं ग्रामीण विकास बैंक का दूसरा महत्वपूर्ण कार्य पुनर्वास योजनाएँ तैयार, करना उनपर निगरानी रखना तथा ऋण उपलब्ध कराने वली संस्थाओं का पुनर्गठन एवं उनके कर्मचारियों का प्रशिक्षण है| बैंक का एक अन्य कार्य ऋण वितरण प्रणाली की क्षमता को बढ़ाने के लिए उनकी संस्थागत व्यवस्था को विकसित करना है| इसके साथ ही यह परियोजनाओं की देखरेख तथा मूल्यांकन करता है जिनके लिए उसने पुनर्वित की व्यवस्था की है| लघु सिंचाई, कृषि यंत्रीकरण, स्वर्ण जयंती ग्राम स्वरोजगार योजना स्वयं सहायता समूह तथा ग्रामीण गैर कृषि प्रक्षेत्र आदि के लिए वर्ष 2007-08 में नाबार्ड द्वारा बिहार में लगभग 194 करोड़ रुपये का ऋण वितरित किया गया है|
5. आर्थिक विकास में वित्तीय संस्थाओं की भूमिका की विवेचना कीजिये—–
उत्तर:-
आज सभी प्रकार की उत्पादक क्रियाओं के लिए वित्त या साख की आवश्यकता होती है| अत: देश और राज्य की प्रगति के लिए वित्तीय संस्थाओं का विकसित होना अनिवार्य है| आधुनिक समय में अधिकांश भुगतान चेक, ड्राफ्ट, क्रेडिट कार्ड आदि के माध्यम से किए जाते हैं| इसके द्वारा लेन देन तथा ऋणों आदि का भुगतान अधिक सुगमता और शीघ्रता से किया जा सकता है| वित्तीय संस्थाओं द्वारा प्रदान की जानेवाली साख सुविधाओं (साख की गारंटी इत्यादि) से व्यापार का जोखिम और लागत दोनों घट जाता है| एक विकसित वित्तीय प्रणाली राष्ट्र की बचत को एकत्र करने और उसके उचित निवेश में सहायक होती है| वित्तीय संस्थाएँ बचत तथा निवेश करने वाले व्यक्तियों के बीच मध्यस्थ का कार्य करती है| इनके माध्यम से जनता की बचत ऐसे व्यक्तियों के पास पहुंच जाती है जो इसका अधिक कुशल प्रयोग कर सकते हैं| विगत वर्षों के अंतर्गत हमारे देश की वित्तीय संस्थाओं का बहुत तेजी से विकास एवं विस्तार हुआ है| अब ये संस्थाएँ बचत करने वाले व्यक्तियों को कयी प्रकार के जमा योजनाओं में धन लगाने की सुव प्रदान करती है| इससे बचत और पूंजी निर्माण को प्रोत्साहन मिला है| इसके साथ ही अब उद्यमियों को वित्तीय संस्थाओं के माध्यम से पूर्व की अपेक्षा अधिक सुगमता से साख या ऋण उपलब्ध होने लगा है| इससे उद्योग एवं व्यापार के विकास में बहुत सहायता मिली है| बैंक तथा सहकारी समितियों द्वारा ग्रामीण क्षेत्रों में साख सुविधाओं के विस्तार से कृषि साख की व्यवस्था में भी सुधार हुआ है| इससे कृषि की आधुनिक एवं उन्नत पद्धति का प्रयोग करना संभव हो गया है| बिहार की वित्तीय संस्थाओं में व्यावसायिक बैंक, सहकारी बैंक, भूमि विकास बैंक तथा क्षेत्रीय ग्रामीण बैंक महत्वपूर्ण है| परंतु, विगत वर्षों के अंतर्गत इनका राज्य में बहुत कम विस्तार हुआ है|
6. व्यावसायिक बैंक के प्रमुख कार्यों का वर्णन कीजिये—-
उत्तर:-
किसी भी देश के आर्थिक विकास में बैंक महत्वपूर्ण योगदान करते हैं| सामान्यतः एक व्यावसायिक बैंक के निम्नलिखित हैं—–
जमा स्वीकार करना——
लोगों की बचत को जमा के रूप में स्वीकार करना व्यावसायिक बैंकों का सबसे महत्वपूर्ण कार्य है| व्यक्ति अपने बचत को सुरक्षा की दृष्टि से बैंकों के पास जमा कर देते हैं जिसपर उन्हें ब्याज भी मिलता है| व्यावसायिक बैंक प्रायः तीन प्रकार के खातों में रकम जमा करते हैं—— स्थायी, चालू तथा संचयी बैंक जमा
ऋण या कर्ज देना——
व्यक्ति को ऋण या कर्ज देना व्यावसायिक बैंकों का दूसरा महत्वपूर्ण कार्य है| व्यावसायिक बैंक प्रायः उत्पादक कार्यों के लिए अल्पकालीन ऋण प्रदान करते हैं| बैंक अपने ग्राहकों की रकम को जमा करता है और उसे उनलोगों को कर्ज के रूप में देता है| बैंकों द्वारा ऋण प्रदान करने के मुख्य तरीके निम्नलिखित हैं——
अधिविकर्ष, नकद साख, ऋण एवं अग्रिम तथा विनिमय विलों का भुगतान
एजेंसी संबंधी कार्य——
व्यावसायिक बैंक अपने ग्राहकों के लिए उनके एजेंट का कार्य करता है| बैंक के इन कार्यों को एजेंसी संबंधी कार्य कहते हैं| बैंक के एजेंसी संबंधी कार्यों में निम्नलिखित कार्य प्रमुख है—— ग्राहकों के लिए भुगतान करना, ग्राहकों की ओर से भुगतान करना, प्रतिभूतियों का क्रय विक्रय तथा प्रतिनिधि का कार्य
सामान्य उपयोगिता संबंधी कार्य——
व्यावसायिक बैंकों द्वारा कयी अन्य कार्य भी संपन्न किये जाते हैं| इन्हें सामान्य उपयोगिता संबंधी कार्य कहा जाता है| सामान्य उपयोगिता संबंधी कार्यों में बैंकों के निम्नलिखित कार्य आते हैं—–
मुद्रा का स्थानांतरण, साख पत्र तथा यात्री चेक जारी करना, बहुमूल्य वस्तुओं की सुरक्षा, ए०टी०एम० एवं क्रेडिट कार्ड सुविधा तथा व्यापारिक सूचना तथा आंकड़े एकत्र करना|
इस प्रकार व्यावसायिक बैंकों द्वारा अनेक महत्वपूर्ण कार्यों का संपादन किया जाता है|
7. सहकारिता क्या है? भारत में सहकारिता के विकास का संक्षिप्त परिचय दीजिये–
उत्तर:-
सहकारिता का अर्थ मिलकर कार्य करना है| सहकारिता एक ऐच्छिक संगठन है जो सामान्य आर्थिक एवं सामाजिक हितों में वृद्धि के लिए समानता के आधार पर स्थापित किया जाता है| इस प्रकार का संगठन सामूहिक हित के लिए कार्य करता है| भारतीय सहकारी नियोजन समिति के अनुसार, सहकारिता एक ऐसा संगठन है जिसमें व्यक्ति स्वेच्छा के आधार पर अपनी आर्थिक उन्नति के लिए सम्मिलित होते हैं| भारत में सहकारिता का प्रारंभ 1904 में सहकारी साख समिति अधिनियम पारित होने के साथ हुआ| इस अधिनियम के अनुसार गाँवों या नगरों में कोई भी दस व्यक्ति मिलकर सहकारी साख समिति की स्थापना कर सकते थे| लेकिन, इस अधिनियम का मुख्य दोष यह था कि इसमें गैर साख समितियों की स्थापना के लिए कोई प्रावधान नहीं था| अत: 1912 में एक दूसरा अधिनियम पारित कर देश में गैर साख समितियों के गठन की अनुमति प्रदान की गई| सहकारिता की प्रगति के मूल्यांकन तथा इस संबंध में आवश्यक सुझाव देने हेतु सरकार ने 1915 में मैकलगन समिति की नियुक्ति की| इस समिति ने सहकारी समितियों को और अधिक सुदृढ़ बनाने के लिए कयी महत्वपूर्ण सुझाव दिए| 1919 में सहकारिता को प्रांतीय विषय बना दिया गया| 1929-30 की मंदी का सहकारिता के विकास पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ा| कृषि पदार्थों के मूल्य में कमी आ जाने से किसानों की स्थिति बिगड़ गई और उन्होंने इस आंदोलन से अपना हाथ खींच लिया| 1937 में रिजर्व बैंक के अधीन खोले गए कृषि साख विभाग से सहकारिता के विकास को बहुत प्रोत्साहन मिला है| स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद वर्षों में सहकारिता के प्रसार और इसे सशक्त बनाने के लिए सरकार द्वारा विशेष प्रयास किए गए हैं| योजना आयोग के अनुसार इसका उद्देश्य गाँवों की प्रगति और ग्रामीण समाज का पुनर्गठन करने के साथ ही कुटीर एवं लघु उद्योगों का विकास करना भी है| इन प्रयासों के फलस्वरूप विगत 40 वर्षों में सहकारिता की काफी प्रगति हुई है| जहाँ 1950-51 में सहकारी समितियों की संख्या मात्र 1 लाख 5 हजार तथा उनकी सदस्य संख्या 44 लाख थी वहाँ जून 1990 में सभी प्रकार की सहकारी समितियों की संख्या 3 लाख 50 हजार और उनकी सदस्यता 16 करोड़ हो गई थी| वर्तमान समय में सहकारी संस्थाएँ विभिन्न क्षेत्रों में कार्यरत हैं| साख की व्यवस्था करने के साथ ही ये किसानों को उन्नत बीज एवं उर्वरक उपलब्ध कराती है तथा उनकी उपज के विक्रय आदि की व्यवस्था करती है| इनसे कुटीर एवं लघु उद्योगों को भी बहुत प्रोत्साहन मिला है|
8. हमारे देश में सहकारी बैंकों के मुख्य प्रकार क्या है?
उत्तर:-
सहकारिता के क्षेत्र में सहकारी बैंकों का महत्वपूर्ण स्थान है| हमारे देश में इन बैंकों के तीन मुख्य रूप है—-
केन्द्रीय सहकारी बैंक—–
केन्द्रीय सहकारी बैंकों का मुख्य कार्य प्रारंभिक समितियों का संगठन करना तथा उन्हें वितीय सहायता प्रदान करता है| अपनी अंशपूंजी एवं जमा राशि, जनता द्वारा जमा की गई राशि तथा राज्य सहकारी बैंक से प्राप्त ऋण एवं अग्रिम केन्द्रीय सहकारी बैंकों के पूंजी के मुख्य स्रोत है| केन्द्रीय सहकारी बैंक उन सभी कार्यों का संपादन करते हैं जो एक व्यावसायिक बैंक द्वारा किए जाते हैं, जैसे—- जनता के धन को जमा के रूप में स्वीकार करना, ऋण देना, चेक, बिल, हुंडी आदि का भुगतान करना आदि|
राज्य सहकारी बैंक——
प्रत्येक राज्य में इस प्रकार का केवल एक ही बैंक होता है जो उसके मुख्यालय में स्थित होता है| राज्य सहकारी बैंक राज्य के सभी केंद्रीय सहकारी बैंकों के प्रधान होते हैं| राज्य सहकारी बैंक के वित्तीय साधन उनकी अपनी अंशपूंजी, केन्द्रीय सहकारी बैंक एवं जनता की जमाराशि तथा राज्य सरकार से प्राप्त ऋण एवं अग्रिम है| राज्य सहकारी बैंकों का मुख्य कार्य केंद्रीय सहकारी बैंकों का संगठन तथा उन्हें ऋण प्रदान करना है|
भूमि विकास बैंक—-
प्रारंभिक कृषि साख समितियाँ कृषि की अल्पकालीन एवं मध्यकालीन साख की आवश्यकताओं को पूरा करती है| भूमि विकास बैंक किसानों के लिए दीर्घकालीन ऋण की व्यवस्था करते हैं| दीर्घकालीन ऋषि सिंचाई, ट्रैक्टर आदि जैसे महंगे कृषि यंत्र, पुराने ऋणों के भुगतान तथा भूमि में स्थायी सुधार के लिए होते हैं| भूमि विकास बैंक को पहले भूमि बंधक बैंक भी कहा जाता था| भूमि विकास बैंक अपनी अंशपूंजी, जमाराशि तथा ऋण पत्रों की बिक्री आदि से वित्तीय साधन एकत्र करते हैं| भूमि विकास बैंक भी दो प्रकार की होती है—– केंद्रीय भूमि विकास बैंक तथा प्रारंभिक भूमि, विकास बैंक| देश के कयी राज्यों में प्रारंभिक भूमि विकास बैंक नहीं है| ऐसे राज्यों में किसानों को सीधा केंद्रीय भूमि विकास बैंक से ही ऋणों की प्राप्ति होती है|
9. सहकारिता के मूल तत्व क्या है? हमारे राज्य के विकास में इसकी भूमिका का वर्णन करें—
उत्तर:-
सहकारिता एक ऐसा संगठन है जिसमें व्यक्ति स्वेच्छा से अपनी आर्थिक उन्नति के लिए सम्मिलित होते हैं| सहकारिता के मूल तत्व अग्रलिखित है— सहकारिता एक ऐच्छिक संगठन है, इसमें सभी सदस्यों को समान अधिकार प्राप्त होते हैं, इसकी स्थापना समान आर्थिक हितों की प्राप्ति के लिए होती है, इसका प्रबंध प्रजातांत्रिक सिद्धांतों के आधार पर होता है| बिहार एक ग्रामप्रधान राज्य है| यहाँ की लगभग 90℅ जनसंख्या ग्रामीण क्षेत्रों में निवास करती है| इनमें अधिकांश कृषि एवं इससे संबद्ध क्रियाकलापों द्वारा जीविकोपार्जन करते हैं| बिहार के ग्रामीण परिवारों में बहुत छोटे अथवा सीमांत किसानों तथा भूमिहीन श्रमिकों की संख्या सर्वाधिक है| इस प्रकार के सीमित साधनों वाले व्यक्ति सहकारी संस्थाओं के माध्यम से ही अपने आर्थिक हितों में वृद्धि कर सकती है| वर्तमान में सहकारी संस्थाएँ कृषि ऋण की आवश्यकताओं का एक बहुत छोटा भाग पूरा करती है| परिणामतः महाजनों आदि पर छोटे किसानों की निर्भरता बहुत अधिक है| सहकारिता के विस्तार से ग्रामीण क्षेत्रों में महाजनों और साहूकारों का प्रभुत्व कम होगा तथा ब्याज की दरों में गिरावट आएगी| सहकारी संस्थाएँ कृषि उपज के विक्रय, भूमि की चकबंदी तथा उन्नत खेती की व्यवस्था करने में भी सहायक हो सकती है|राज्य के विभाजन के पश्चात बिहार के अधिकांश बड़े और मंझोले उद्योग झारखंड में चले गए हैं, तथा राज्य में छोटे आकारवाले उद्योगों की प्रधानता है| लघु उद्योग प्रक्षेत्र में भी अतिलघु तथा कारीगर आधारित उद्योगों की बहुलता है| लेकिन, पूंजी के अभाव में बिहार के अधिकांश कुटीर एवं लघु उद्योग रुग्ण हो गये हैं| वास्तव में, बिहार में रुग्ण औद्योगिक इकाइयों की संख्या देश में सबसे अधिक है| इनके पुनरुद्धार में सहकारी संस्थाएँ सहायक हो सकती है|
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