मुद्रा बचत एवं साख
अतिलघु उत्तरीय प्रश्न
1. वस्तु विनिमय क्या है?
उत्तर:-
किसी वस्तु या सेवा का विनिमय अन्य वस्तु या सेवा के साथ प्रत्यक्ष रूप से होना वस्तु विनिमय है|
2. आवश्यकताओं के दोहरे संयोग से आप क्या समझते हैं?
उत्तर:-
आवश्यकताओं के दोहरे संयोग से तात्पर्य व्यक्तियों के आवश्यकताओं में भिन्नता का होना है| जिससे वस्तुओं के वस्तु विनिमय प्रणाली में कठिनाई आती है|
3. मुद्रा के प्रयोग से विनिमय का कार्य कैसे सरल हो जाता है?
उत्तर:-
मुद्रा के प्रयोग से विनिमय का कार्य सरल हो जाता है क्योंकि कोई भी व्यक्ति अपनी वस्तु बेचकर मुद्रा प्राप्त कर लेता है और उससे अपनी आवश्यकता की अन्य वस्तुएँ खरीदता है|
4. किस धातु का धातु मुद्रा के रूप में सर्वाधिक प्रयोग हुआ है?
उत्तर:- चांदी और सोना धातु का
5. ऐसे प्रमुख अर्थशास्त्रियों का उल्लेख करें जिनकी मुद्रा की परिभाषा उसकी सर्व मन्यता पर आधारित है|
उत्तर:- मार्शल, राबर्टसन और सेलिगमैन
6. मुद्रा की वैधानिक परिभाषा क्या है?
उत्तर:-
मुद्रा की वैधानिक परिभाषा मुद्रा के राजकीय सिद्धांत पर आधारित है| जर्मन अर्थशास्त्री प्रो० नैप के अनुसार, कोई भी वस्तु जो राज्य द्वारा मुद्रा घोषित कर दी जाती है, मुद्रा कहलाती है|
7. मुद्रा का प्रधान या प्राथमिक कार्य क्या है?
उत्तर:-
मुद्रा का प्रधान या प्राथमिक कार्य विनिमय का माध्यम है|
8. मुद्रा से उपभोक्ताओं को क्या लाभ होता है?
उत्तर:-
उपभोक्ता अपनी इच्छा एवं सुविधानुसार मुद्रा खर्च कर सकता है| तथा अपनी सीमित आय से अधिकतम संतोष प्राप्त कर सकता है| उपभोक्ता मुद्रा के द्वारा ही वस्तुओं से मिलनेवाली उपयोगिताओं की तुलना कर संतोष प्राप्त करता है|
9. राष्ट्रीय आय के वितरण म मुद्रा किस प्रकार सहायता करती है?
उत्तर:-
वर्तमान में वस्तुओं का उत्पादन कयी साधनों के सहयोग से संपन्न होता है| उत्पादन के विभिन्न साधनों की उत्पादकता को मापने का कार्य मुद्रा के द्वारा ही संपन्न हो सकता है| इस प्रकार मुद्रा राष्ट्रीय आय के वितरण में भी सहायता प्रदान करता है|
10. बचत क्या है?
उत्तर:-
आय का वह भाग जो वर्तमान में उपभोग न किया जाए बचत कहलाता है| बचत से पूंजी का निर्माण होता है| आय बढ़ने से बचत करने की इच्छा में वृद्धि होती है|
11. साख से आप क्या समझते हैं?
उत्तर:-
साख का संबंध विश्वास या भरोसा करने से है| अर्थात जब हम किसी व्यक्ति या संरथा की साख का उल्लेख करते हैं, तब इससे उसकी ईमानदारी तथा ऋण लौटाने की क्षमता का बोध होता है|
12. साख मुद्रा का सृजन किसके द्वारा किया जाता है?
उत्तर:-
साख मुद्रा का निर्माण देश के व्यावसायिक बैंकों द्वारा किया जाता है|
13. मुद्रा क्या है?
उत्तर:-
मुद्रा वह है जो विनिमय के माध्यम एवं मूल्य मापक का कार्य करती है तथा जिसके रुप में धन या संपत्ति का संग्रह किया जाता है|
14. वस्तु मुद्रा किसे कहते हैं?
उत्तर:-
प्राचीन काल में पशु चमड़ा, अनाज आदि विभिन्न वस्तुओं का मुद्रा के रूप में प्रयोग किया जाता था, जिसे वस्तु मुद्रा या पदार्थ मुद्रा कहते हैं|
15. धातु मुद्रा क्या है?
उत्तर:-
धातु मुद्रा किसी न किसी धातु की बनी होती है तथा इसके अंतर्गत धातु के बने सिक्के चलन में होती है|
16. किस धातु का धातु मुद्रा के रूप में सर्वाधिक प्रयोग हुआ है?
उत्तर:-
विभिन्न अवसरों पर लोहा, तांबा, पीतल, चांदी आदि प्रायः सभी धातुओं का मुद्रा के रूप में किया गया है, लेकिन इनमें सोना तथा चांदी का मुद्रा के रूप में सर्वाधिक प्रयोग हुआ है|
17. पत्र मुद्रा क्या है?
उत्तर:-
पत्र मुद्रा एक विशेष प्रकार के कागज पर लिखा हुआ प्रतिज्ञा पत्र है जिसमें निर्गमन अधिकारी मांग करने पर उसमें अंकित राशि देने का वचन देता है|
18. विधिग्राह्म मुद्रा किसे कहते हैं?
उत्तर:-
विधिग्राह्म मुद्रा उसे कहते हैं जिस देश के अंदर वैधानिक मान्यता प्राप्त रहती है|
19. सांकेतिक मुद्रा क्या है?
उत्तर:-
सांकेतिक मुद्रा तांबा, गिलट आदि निम्न धातु की बनी होती है तथा यह गौण या सहायक मुद्रा का कार्य करती है|
20. मुद्रा विनिमय का सर्वोत्तम साधन है| क्यों?
उत्तर:-
मुद्रा विनिमय का सर्वोत्तम साधन है क्योंकि इसमें सर्वग्राह्यता का गुण होता है जिससे प्रत्येक व्यक्ति अपनी वस्तु या सेवा के बदले इसे बिना संकोच के स्वीकार कर लेता है|
21. ऐसे प्रमुख अर्थशास्त्रियों का उल्लेख करें जिनकी मुद्रा की परिभाषा उसकी सर्व मान्यता पर आधारित है?
उत्तर:-
मार्शल, राबर्टसन, सेलिगमैन आदि जैसे अर्थशास्त्रियों की परिभाषा मुद्रा की सर्व मान्यता एवं उसकी सामान्य स्वीकृति के गुण पर आधारित है|
22. क्या चेक को मुद्रा कहा जा सकता है?
उत्तर:-
चेक को मुद्रा नहीं कहा जा सकता, क्योंकि इसमें विधिग्राह्मता तथा सर्व मान्यता अथवा सामान्य स्वीकृति का गुण नहीं है|
23. किस मुद्रा में वहनीयता अधिक होती है?
उत्तर:-
पत्र मुद्रा में वहनीयता सबसे अधिक होती है तथा इसे बहुत आसानी से एक स्थान से दूसरे स्थान पर ले जाया जा सकता है|
24. मुद्रा का प्रमुख दोष क्या है?
उत्तर:-
मुद्रा का सबसे प्रमुख दोष इसके मूल्य में होनेवाले तीव्र आकस्मिक परिवर्तन है तथा इन परिवर्तनों का हमारी अर्थव्यवस्था पर अत्यंत प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है|
25. किसने कहा था कि, यदि मुद्रा हमारी अर्थव्यवस्था का हृदय नहीं तो रक्त प्रवाह अवश्य है?
उत्तर:- ट्रेस्कॉट
26. चीन में सिक्कों का प्रचलन कब से मिलता है?
उत्तर:- 300 वर्ष पूर्व से
लघु उत्तरीय प्रश्न
1. मुद्रा आवश्यकताओं के दोहरे संयोग की समस्या का कैसे समाधान करती है?
उत्तर:-
मुद्रा के आविष्कार के पूर्व वस्तु विनिमय का प्रचलन था| परंतु, इसके अंतर्गत वस्तुओं का आदान प्रदान तभी किया जा सकता है, जब दो व्यक्तियों की पारस्परिक आवश्यकताओं में समानता हो| उदाहरण के लिए एक समय में एक व्यक्ति की आवश्यकता एक गाय की है, परंतु दूसरे व्यक्ति के पास एक बकरी है तो इस अवस्था में विनिमय संभव नहीं है| इस प्रकार मुद्रा के प्रयोग से आवश्यकताओं के दोहरे संयोग की समस्या समाप्त हो गई|
2. वस्तु मुद्रा से आप क्या समझते हैं?
उत्तर:-
अति प्राचीनकाल में जब मुद्रा का प्रचलन नहीं था उस समय मनुष्य मुद्रा के रूप में वस्तुओं का प्रयोग किया गया| आखेट युग में जानवरों के खाल या चमड़े का पशुपालन युग में गाय, बैल या बकरी का तथा कृषि युग में कृषि पदार्थों का मुद्रा के रूप में उपयोग किया गया इसे वस्तु मुद्रा कहा गया|
3. किसी व्यक्ति की बचत करने की क्षमता को प्रभावित करने वाला सबसे महत्वपूर्ण तत्व क्या है?
उत्तर:-
बचत करने की शक्ति या क्षमता को प्रभावित करने वाला सबसे महत्वपूर्ण तत्व व्यक्ति की आय तथा आय का समाज में वितरण है| जिस देश में राष्ट्रीय आय का वितरण असमान होता है, वहाँ बचत करने की शक्ति अधिक होती है|
4. किसी व्यक्ति की बचत करने की इच्छा किन बातों से प्रभावित होती है?
उत्तर:-
बचत करने की मात्रा बचत करने की इच्छा पर निर्भर करती है| बचत करने की इच्छा मनुष्य, अनिश्चित भविष्य को देखकर और सोचकर, पारिवारिक स्नेह के कारण, धनी व्यक्तियों के प्रतिष्ठा और सम्मान देखकर करता है| कुछ व्यक्ति स्वभाव से कंजूस होते हैं उनमें बचत करने की इच्छा अधिक होती है|
5. साख की उत्पत्ति एवं विकास की विवेचना कीजिये-
उत्तर:-
साख की उत्पत्ति का इतिहास मुद्रा से भी बहुत पुराना है| वस्तु विनिमय में भी भविष्य में भुगतान करने के वादे पर उधार लेने और देने का कार्य होता था| परंतु, वर्तमान की अपेक्षा उस समय साख का क्षेत्र बहुत सीमित था|
मुद्रा के आविष्कार के बाद साख प्रणाली का बहुत अधिक विस्तार हुआ है| मौद्रिक अर्थव्यवस्था में ऋणों के लेन देन का कार्य अधिक सुगम है तथा इसमें ऋणदाता केवल ऋणी व्यक्ति की ईमानदारी एवं उसकी ऋण लौटाने की सामर्थ्य की जांच करता है| प्रारंभ में केवल उपभोग के लिए साख की मांग होती थी| साख की मांग ऐसे व्यक्तियों द्वारा की जाती थी जिनकी आय व्यय की अपेक्षा कम होती थी| लेकिन, औद्योगिक क्रांति के बाद बड़े पैमाने पर उत्पादन होने लगा तथा औद्योगिक प्रगति के साथ साथ साख की मांग भी बढने लगी| अब साख की पूर्ति उन लोगों के द्वारा की जाने लगी, जिनके पास संचित धनराशि थी| लेकिन, इस प्रकार के व्यक्ति बिखरे हुए थे| इसके फलस्वरूप ऐसी संस्थाओं की आवश्यक अनुभव होने लगी, जो विभिन्न व्यक्तियों के पास बिखरी हुई धनराशि को एकत्र कर ऐसे व्यक्ति या संस्थाओं को कर्ज दें जिन्हें उनकी आवश्यकता है| बैंक की स्थापना से यह कमी भी पूरी हो गई| इन्होंने ऋणी एवं ऋणदाताओं के बीच मध्यस्थ का कार्य करना प्रारंभ कर दिया जिससे साख की मात्रा में बहुत अधिक वृद्धि हुई है|
6. साख के गुण या लाभ बताए-
उत्तर:-
अर्थव्यवस्था के संचालन में साख की भूमिका अत्यधिक महत्वपूर्ण है| साख पूंजी को गतिशीलता प्रदान कर उद्योग एवं व्यापार के विकास में योगदान देता है| साख के प्रचलन से पूंजी की उत्पादकता में वृद्धि होती है| साख का प्रयोग से अधिकांश लेन देन साख पत्रों (चेक, ड्राफ्ट) के माध्यम से होते हैं| इससे मुद्रा की आवश्यकता घट जाती है| साख से बचत और पूंजी निर्माण में भी वृद्धि होती है साख का विस्तार और संकुचन अधिक सरलता एवं शीघ्रता से किया जा सकता है|
7. वस्तु विनिमय क्या है? सोदाहरण समझाएँ—
उत्तर:-
आदिकाल में मनुष्य का व्यापार पूर्णतः वस्तु विनिमय पर आधारित था| जब किसी वस्तु या सेवा का विनिमय किसी अन्य वस्तु या सेवा के साथ प्रत्यक्ष रुप से किया जाता है तब इसे वस्तु विनिमय कहते हैं| इसमें विनिमय के लिए द्रव्य या मुद्रा का प्रयोग नहीं होता| उदाहरण के लिए, जब एक किसान चावल देकर जुलाहे से कपड़ा लेता है, तब हम इसे वस्तु विनिमय कहेंगे| इस प्रकार, वस्तु विनिमय से हमारा अभिप्राय एक ऐसी प्रणाली से है जिसमें किसी एक वस्तु का दूसरी वस्तु के साथ प्रत्यक्ष आदान प्रदान होता है तथा दोनों पक्षों में विनिमय की इकाइयाँ भौतिक वस्तुएँ और सेवाएँ होती है| वस्तु विनिमय का प्रारंभिक स्वरूप था तथा अब यह प्रणाली लगभग समाप्त हो गई है|
8. विनिमय के मुख्य स्वरूप कौन कौन से है?
उत्तर:-
विनिमय के दो प्रधान रूप है—– वस्तु विनिमय प्रणाली तथा मौद्रिक विनिमय प्रणाली| जब किसी वस्तु या सेवा का विनिमय किसी अन्य वस्तु या सेवा के साथ प्रत्यक्ष रुप से किया जाता है, तब इसे वस्तु विनिमय कहते हैं| अति प्राचीन काल में वस्तु विनिमय प्रणाली का प्रचलन था| इसके अंतर्गत वस्तुओं की प्रत्यक्ष अदला बदली होती है| इसिलिए इसे प्रत्यक्ष विनिमय भी कहते हैं| इसके विपरीत, जब वस्तुओं और सेवाओं का विनिमय मुद्रा के माध्यम से होता है तो इसे मौद्रिक विनिमय कहते हैं| इसके अंतर्गत वस्तुओं या सेवाओं का विनिमय प्रत्यक्ष रूप से न होकर परोक्ष रूप से होता है| अतः, इसे अप्रत्यक्ष विनिमय भी कहते हैं| उदाहरण के लिए, एक किसान पहले अपना अनाज बेचकर रूपये प्राप्त करता है और इस रुपये से कपड़ा, चीनी, तेल आदि आवश्यकता की दूसरी वस्तुएँ खरीदता है|
9. विनिमय की आवश्यकता क्यों होती है?
उत्तर:-
आर्थिक विकास के प्रारंभिक काल में मनुष्य की आवश्यकताएँ बहुत सीमित थी और वह स्वयं वस्तुओं का उत्पादन कर उनकी पूर्ति कर लेता था| परंतु, मानव सभ्यता एवं आर्थिक विकास के साथ मनुष्य की आवश्यकताओं में भी वृद्धि होती गयी और वह अपनी सभी आवश्यकताओं को स्वयं पूरा करने में अपने आपको असमर्थ पाने लगा| इस प्रकार, मनुष्य की आवश्यकताओं में वृद्धि के कारण समाज में विनिमय का प्रादुर्भाव हुआ| आधुनिक समय में मनुष्य अपनी सभी आवश्यकताओं की पूर्ति स्वयं नहीं कर सकता| वह केवल एक ही वस्तु का उत्पादन करता है और विनिमय के द्वारा अपनी आवश्यकता की अन्य वस्तुओं को प्राप्त करता है| एक ही वस्तु का उत्पादन करने से उसकी कुशलता एवं कार्यक्षमता में भी वृद्धि होती है| इस प्रकार, आधुनिक युग में विनिमय के द्वारा ही मानवीय आवश्यकताओं की संतुष्टि संभव है|
10. वस्तु या पदार्थ मुद्रा से आप क्या समझते हैं?
उत्तर:-
विनिमय का प्रारंभिक स्वरूप वस्तु विनिमय का था तथा इसके अंतर्गत लोग अपनी वस्तुओं या सेवाओं का प्रत्यक्ष लेन देन करते थे| लेकिन, इसमें अनेक कठिनाइयाँ थी| इस कठिनाई को दूर करने के लिए लोगों ने एक प्रधान वस्तु का चुनाव किया| अब सभी वस्तुओं का मूल्य इस एक वस्तु के द्वारा निर्धारित होने लगा और इसे विनिमय का माध्यम बनाया गया| इसी प्रधान वस्तु को वस्तु मुद्रा कहते हैं| इस प्रकार, वस्तु या पदार्थ मुद्रा मुद्रा का प्राचीनतम रुप है| विभिन्न देशों तथा जातियों ने विभिन्न अवसरों पर अलग अलग वस्तुओं का मुद्रा के रूप में प्रयोग किया है| जैसे— आखेट युग में जानवरों के खाल या चमड़े का, पशुपालन युग में गाय, बैल आदि पशुओं का तथा कृषि युग में कृषि पदार्थों का|
11. मुद्रा का प्रधान या प्राथमिक कार्य क्या है?
उत्तर:-
विनिमय का माध्यम तथा मूल्य मापन का कार्य मुद्रा के प्रधान या प्राथमिक कार्य है| मुद्रा विनिमय का माध्यम है| यह मुद्रा का सर्वाधिक महत्वपूर्ण कार्य है, क्योंकि हमारा संपूर्ण आर्थिक जीवन विनिमय पर ही आधारित है| आज प्रायः सभी प्रकार का विनिमय या व्यापार मुद्रा के माध्यम से होता है| यही कारण है कि इसे विनिमय का माध्यम कहा जाता है| मुद्रा का दूसरा महत्वपूर्ण कार्य सभी वस्तुओं और सेवाओं के मूल्य को मापना है| मुद्रा मूल्य का मापक है| यह मूल्य को मापने में इकाई का कार्य करती है| जिस प्रकार लंबाई को मीटर से या वजन को किलोग्राम से मापते है, ठीक उसी प्रकार किसी वस्तु या सेवा के मूल्य को मुद्रा के द्वारा मापा जाता है| एक आधुनिक अर्थव्यवस्था में मुद्रा कयी अन्य कार्यों का भी संपादन करती है| लेकिन, ये दोनों इसके प्रधान या प्राथमिक कार्य है|
12. मुद्रा की परिभाषा दें—
उत्तर:-
मुद्रा विनिमय का माध्यम है तथा विभिन्न अर्थशास्त्रियों ने इसकी अलग अलग परिभाषा दी है| प्रो० राबर्टसन के अनुसार, मुद्रा से उन सभी पदार्थों का बोध होता है, जिसे वस्तुओं का मूल्य चुकाने तथा अन्य सभी प्रकार के व्यावसायिक दायित्वों को निबटाने के लिए व्यापक रूप से स्वीकार किया जाता है| मार्शल ने मुद्रा की परिभाषा देते हुए बताया है मुद्रा में वे सभी वस्तुएँ सम्मिलित की जाती है जो बिना संदेह अथवा विशेष जांच के वस्तुओं और सेवाओं को खरीदने तथा खर्चों को चुकाने में साधारणतया प्रचलित रहती है| इन परिभाषाओं के आधार पर हम कह सकते हैं कि कोई भी वस्तु जिसे लोग विनिमय के माध्यम के रूप में स्वीकार करते हैं तथा जो मूल्य को मापने एवं संपत्ति के संचय का कार्य करती है, मुद्रा कही जाएगी|
13. बचत क्या है? स्पष्ट करें-
उत्तर:-
किसी भी देश के आर्थिक जीवन में बचत का विशेष महत्व है| बचत के द्वारा ही पूंजी का निर्माण होता है| समाज के प्रत्येक व्यक्ति या परिवार की कुछ आय होती है| इस आय के दो उपयोग हो सकते हैं| प्रायः इसका एक बड़ा भाग उपभोग पर खर्च होता है और शेष बचा लिया जाता है| उपभोग व्यय वस्तुओं और सेवाओं पर किया जाने वाला व्यय है| इस व्यय से मनुष्य की वर्तमान आवश्यकताओं की पूर्ति होती है| बचत आय का वह भाग है जिसका वर्तमान में उपभोग नहीं किया जाता है| उदाहरण के लिए, यदि किसी व्यक्ति की मासिक आय 10,000 रुपये है जिसमें से वह 9000 रुपये उपभोग पर व्यय करता है तो शेष 1000 रुपये उसकी बचत है|
इस प्रकार, कुल आय- उपभोग व्यय=बचत
14. साख का अर्थ स्पष्ट करें—–
उत्तर:-
आज प्रायः सभी प्रकार की उत्पादक क्रियाओं के लिए साख की आवश्यकता होती है| शब्दकोश के अनुसार साख का अर्थ विश्वास या भरोसा करना है| परंतु, साख शब्द का यह व्यापक अर्थ है| आर्थिक शब्दावली में जब हम किसी व्यक्ति या संस्था की साख का उल्लेख करते हैं, तब इससे उसकी ईमानदारी तथा ऋण लौटाने की क्षमता का बोध होता है| जिस व्यक्ति को आसानी से ऋण या उधार मिल जाता है, हम कहते हैं कि उसकी साख अधिक है| नकद लेनदेन में किसी वस्तु के मूल्य का भुगतान तत्काल कर दिया जाता है| लेकिन साख के लेन देन में इस भुगतान को एक निश्चित अवधि के लिए टाल दिया जाता है| यदि माल बेचनेवाले को खरीदने वाले पर विश्वास नहीं हो तो भुगतान को टालना या स्थगित करना संभव नहीं होगा| इस प्रकार, विश्वास ही साख का आधार है|
15. साख पत्र क्या है? कुछ प्रमुख साख पत्रों का उल्लेख करें|
उत्तर:-
साख पत्रों से अभिप्राय उन पत्रों या साधनों से होता है जिनका साख मुद्रा अर्थात भविष्य में भुगतान करने के लिए प्रयोग किया जाता है| इन पत्रों के आधार पर ऋणों का आदान प्रदान तथा वस्तुओं और सेवाओं का क्रय विक्रय होता है| एक आधुनिक अर्थव्यवस्था के संचालन में साख पत्रों की महत्वपूर्ण भूमिका होती है तथा अधिकांश व्यापारिक लेन देन इन्हीं के माध्यम से होता है| वास्तव में मुद्रा नहीं होने पर भी साख पत्र मुद्रा के कार्यों का ही संपादन करते हैं| साख पत्र एक प्रकार का लिखित प्रतिज्ञा पत्र होता है| इसे लिखने वाला व्यक्ति किसी अन्य व्यक्ति अथवा उसके द्वारा आदेशित व्यक्ति या वाहक को तत्काल अथवा एक निश्चित अवधि के पश्चात साख पत्र में उल्लेख की गई रकम अदा करने का वादा करता है| साख पत्रों के कयी प्रकार है जिनमें चेक, ड्राफ्ट, यात्री चेक, हुण्डी, हिक्का या वादापत्र प्रमुख है|
16. एटीएम और क्रेडिट कार्ड क्या है?
उत्तर:-
आधुनिक समय में नगरों में स्थित अधिकांश व्यावसायिक बैंक एटीएम की सुविधा प्रदान करने लगे हैं| एटीएम कार्ड से ग्राहक विशेष बैंकों में स्थापित स्वचालित मशीनों द्वारा किसी भी समय रुपया निकाल सकते हैं अथवा जमा कर सकते हैं| क्रेडिट कार्ड से कोई व्यक्ति कुछ विशेष प्रतिष्ठानों से खरीददारी कर इस कार्ड से उसका भुगतान कर सकता है| इसके अंतर्गत बैंक अपने ग्राहकों के लिए एक अधिकतम राशि निर्धारित कर देता है जिसका वे वस्तुओं और सेवाओं के क्रय के लिए प्रयोग कर सकते हैं| एटीएम तथा क्रेडिट कार्ड प्लास्टिक के बने होते हैं| अत: इन्हें प्लास्टिक मुद्रा भी कहा जाता है|
17. मुद्रा वह धुरी या केन्द्रबिन्दु है जिसके चारों ओर अर्थविज्ञान घूमता है| इस कथन का आशय स्पष्ट करें|
अथवा
मुद्रा आधुनिक अर्थतंत्र की धुरी है| कैसे?
उत्तर:-
हमारी अर्थव्यवस्था में मुद्रा का स्थान बड़ा ही महत्वपूर्ण है| मुद्रा के प्रयोग से उपभोग उत्पादन, विनिमय तथा राजस्व अर्थव्यवस्था के प्रत्येक क्षेत्र को बहुत लाभ हुआ है| मुद्रा के रूप में आय मिलने पर कोई भी व्यक्ति उसे अपनी इच्छा एवं सुविधानुसार खर्च कर सकता है| यह उपभोक्ताओं को अपनी सीमित आय के द्वारा अधिकतम संतोष प्राप्त करने में सहायता करती है| उत्पादकों को भी मुद्रा से अनेक लाभ हुए हैं| मुद्रा के अभाव में बड़े पैमाने का उत्पादन संभव नहीं था| उत्पादकों को मुद्रा के द्वारा उत्पादन के विभिन्न साधनों को जुटाने, कच्चा माल खरीदने, श्रमिकों को पारिश्रमिक देने तथा पूंजी उधार लेने में बहुत आसानी हो गई है| आज मुद्रा विनिमय का भी सर्वमान्य साधन है तथा इसके प्रयोग से वस्तुओं का मूल्य निर्धारण एवं क्रय विक्रय का कार्य अत्यंत सरल हो गया है| मुद्रा के द्वारा ही उत्पादन के विभिन्न साधनों की सीमांत उत्पादकता की माप की जाती है और उनका पारिश्रमिक दिया जाता है| मुद्रा के रूप में सरकार को कर आदि लगाने में भी सुविधा होती है| इस प्रकार मार्शल ने बहुत ठीक कहा है कि मुद्रा वह धुरी या केन्द्र है जिसके चारों ओर अर्थविज्ञान घूमता है|
18. विधिग्राह्म मुद्रा तथा ऐच्छिक मुद्रा में अंतर बताएं—-
उत्तर:-
वैधानिक दृष्टि से मुद्रा को दो वर्गों में विभाजित किया जाता है—–
विधिग्राह्म मुद्रा तथा ऐच्छिक मुद्रा| विधिग्राह्म मुद्रा उसे कहते हैं जिसे देश के अंदर वैधानिक मान्यता प्राप्त रहती है| कानून के मुताबिक, विनिमय कार्यों में अथवा अन्य किसी प्रकार के भुगतान में इसे लेने से इनकार नहीं किया जा सकता है| उदाहरण के लिए, भारतीय रिजर्व बैंक या सरकार द्वारा जारी किए गए नोट और सिक्के विधिग्राह्म मुद्रा है| विधिग्राह्म मुद्रा भी दो प्रकार की होती है—–
सीमित विधिग्राह्म मुद्रा तथा असीमित विधिग्राह्म मुद्रा| सीमित विधिग्राह्म मुद्रा को एक निश्चित सीमा के ऊपर स्वीकार करने के लिए किसी व्यक्ति को बाध्य नहीं किया जा सकता है| उदाहरण के लिए, भारत में छोटे सिक्के 25 रुपये तक ही विधिग्राह्म होतें है| इसके विपरीत, असीमित विधिग्राह्म मुद्रा वह है, जिसे भुगतान के साधन के रूप में किसी भी सीमा तक स्वीकार करना पड़ता है| यदि कोई व्यक्ति इसे असीमित मात्रा में लेने से इनकार करता है तो वह सरकार द्वारा दंडित किया जाता है| ऐच्छिक मुद्रा वह होती है, जिसे स्वीकार करने के लिए कानून किसी व्यक्ति को बाध्य नहीं करता| इस प्रकार की मुद्रा को लोग सुविधा के कारण स्वयं अपनी इच्छा से स्वीकार करते हैं| चेक, ड्राफ्ट, हुंडी इत्यादि ऐच्छिक मुद्रा के उदाहरण है|
19. वास्तविक मुद्रा तथा हिसाब की मुद्रा में क्या अंतर है?
उत्तर:-
प्रो० केन्स ने मुद्रा को दो भागों में विभाजित किया है—– वास्तविक मुद्रा तथा हिसाब की मुद्रा| वास्तविक मुद्रा वह है जो वास्तव में किसी देश में प्रचलित होती है| देश के अंदर वस्तुओं का क्रय विक्रय, ऋणों का लेन देन तथा धन या संपत्ति का संचय इसी मुद्रा के द्वारा होता है| वास्तविक मुद्रा को मुख्य मुद्रा भी कहते हैं| इसके विपरीत, हिसाब की मुद्रा वह है जिसमें सभी प्रकार के हिसाब किताब रखे जाते हैं| इस प्रकार की मुद्रा का चालन में होता आवश्यक नहीं है| हिसाब की मुद्रा को लेखे की मुद्रा भी कहते हैं| सामान्यतः किसी देश में वास्तविक तथा हिसाब या लेखे की मुद्रा एक होती है| लेकिन, संकटकाल में ये अलग अलग भी हो सकती है| उदाहरण के लिए, प्रथम विश्वयुद्ध के समय जर्मनी में वास्तविक तथा हिसाब की मुद्रा दोनों को पृथक कर दिया गया था| उस समय जर्मनी की वास्तविक मुद्रा जर्मन मार्क थी, लेकिन हिसाब की मुद्रा फ्रांसीसी फ्रैंक तथा अमेरिकी डॉलर थी, अर्थात मार्क विनिमय के माध्यम का कार्य करती थी, लेकिन हिसाब किताब रखने के लिए फ्रैंक या डालर का प्रयोग होता था| इसका कारण जर्मन मार्क के मूल्य में गिरावट या अस्थायित्व था|
20. मुद्रा के प्रयोग से वस्तुओं का विनिमय कैसे सरल हो जाता है?
उत्तर:-
वस्तु विनिमय प्रणाली में आवश्यकताओं के दोहरे संयोग का अभाव था| जिससे वस्तुओं का विनिमय संभव नहीं था| मुद्रा से वस्तु विनिमय करने में तथा वस्तुओं के मूल्य मापने में आसानी हो गई| मुद्रा के प्रयोग से आवश्यकताओं के दोहरे संयोग की समस्या भी दूर हो गई|
21. कार्य के अनुसार साख के विनिमय प्रकार क्या है?
उत्तर:-
प्रायः सभी प्रकार के उत्पादक क्रियाकलापों के लिए साख या ऋण की आवश्यकता होती है| इन क्रियाओं के आधार पर साख के निम्नलिखित भेद या प्रकार है—–
औद्योगिक साख—–
उद्योगपतियों द्वारा उद्योगों की स्थापना के लिए जो साख ली जाती है, उसे औद्योगिक साख कहते हैं| इस प्रकार की साख या ऋण भूमि, मकान, मशीन आदि खरीदने के उद्देश्य से लिए जाते हैं| हमारे देश में उद्योगों की बढ़ती हुई आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए इस प्रकार के साख का अभाव है|
व्यावसायिक साख—–
इस प्रकार की साख व्यापारियों द्वारा माल खरीदने, मजदूरी का भुगतान करने तथा प्रचार एवं विज्ञापन आदि के लिए होते हैं|व्यावसायिक साख से अभिप्राय इन्हीं अल्पकालीन ऋणों से होता है|
कृषि साख——
किसानों द्वारा सिंचाई की व्यवस्था करने, भूमि को समतल बनाने, महंगे कृषि यंत्र आदि खरीदने के लिए दीर्घकालीन तथा खाद, बीज आदि के लिए अल्पकालीन ऋण लिए जाते हैं, जिन्हें कृषि संबंधी साख कहते हैं| भारत में कृषि साख के वर्तमान साधन अपर्याप्त है| इससे कृषि कार्यो में असुविधा होती है|
22. समय के अनुसार साख के मुख्य भेद या प्रकार क्या है?
उत्तर:-
साख का प्रायः समय के आधार पर भी वर्गीकरण किया जाता है| समय के अनुसार साख के निम्नलिखित तीन भेद या प्रकार है—-
अल्पकालीन साख—–
अल्पकालीन साख की अवधि अधिक से अधिक एक वर्ष तक की होती है| उद्योगपतियों को कच्चा माल खरीदने, वेतन, मजदूरी आदि का भुगतान करने तथा अन्य दैनिक आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए अल्पकालीन साख की जरूरत होती है| कृषि कार्यो के लिए इस प्रकार की साख प्रायः एक फसल से दूसरी फसल तक के लिए प्राप्त किए जाते हैं तथा फसल कटने के बाद किसान इन्हें वापस लौटा देते हैं|
मध्यकालीन साख—–
एक वर्ष से पांच वर्ष तक की अवधि के ऋण मध्यकालीन साख कहलाते हैं| ये ऋण कृषि तथा उद्योगों के लिए साधारण मूल्य वाली स्थायी संपत्ति खरीदने के लिए होते हैं|
दीर्घकालीन साख——
पांच वर्ष से लंबी अवधि के ऋण दीर्घकालीन कहे जाते हैं| कृषक जमीन, ट्रैक्टर आदि खरीदने तथा अपनी भूमि पर स्थायी सुधार लाने के लिए दीर्घकालीन साख लेते हैं| उद्योगपतियों को कारखाने का निर्माण करने तथा बहुत महंगी मशीन, यंत्र आदि प्राप्त करने के लिए इस प्रकार के ऋण की आवश्यकता होती है| इन ऋणों का भुगतान प्रायः किश्तों में किया जाता है तथा इनपर ब्याज की दर भी अधिक होती है|
दीर्घ उत्तरीय प्रश्न
1. वस्तु विनिमय प्रणाली में मुख्य कठिनाई क्या थी? मुद्रा ने इस कठिनाई को कैसे दूर किया है?
उत्तर:-
वस्तु विनिमय प्रणाली में मुख्य कठिनाई निम्नलिखित थी—–
दोहरे संयोग का अभाव—–
वस्तु विनिमय प्रणाली में आवश्यकताओं के दोहरे संयोग का अभाव था| इसके अंतर्गत ऐसे दो व्यक्तियों में संपर्क होना आवश्यक है जिनके पास एक दूसरे की आवश्यकता की वस्तुएँ हो ं| वास्तविक जीवन में इस प्रकार का संयोग बहुत कठिनाई से होता है|
मापन की कठिनाई——
एक समान मापदंड के अभाव के कारण दो वस्तुओं के बीच विनिमय का अनुपात निश्चित करना कठिन था| जैसे— एक किलोग्राम गेहूँ के बदले कितने गाय या कपड़े दिया जाए यह तय करना मुश्किल था|
अविभाज्य वस्तुओं के विनिमय में उत्पन्न समस्याएँ-
पशुओं को विनिमय करने में काफी कठिनाइयों का सामना करना पड़ता था| क्योंकि इनको विभाज्य करने पर इनकी उपयोगिता नष्ट हो जाती है| जैसे—- एक मीटर कपड़े के बदले घोड़े या गाय का विनिमय| इसमें घोड़े के काटने के बाद उसकी उपयोगिता ही समस्या हो जाएगी|
मूल्य संचयन का अभाव—–
उत्पादित वस्तुओं का दीर्घकाल तक संचित करके नहीं रख सकते| जैसे— फल, फूल, सब्जी, मछली
भविष्य में भुगतान की कठिनाई—–
कुछ ऐसी वस्तुएँ जो उधार के तौर पर दूसरे व्यक्ति से ली गई है यदि उसे कुछ वर्षों बाद वापस कर दी जाती है तो उसकी उपयोगिता या तो घट जाती है या समाप्त हो जाती है|
मूल्य हस्तांतरण की समस्या—-
यदि कोई व्यक्ति एक स्थान से दूसरे स्थान पर जाता है तो ऐसी स्थिति में उसे सारी संपत्ति छोड़ कर जाना पड़ सकता है| वस्तु विनिमय प्रणाली की कठिनाइयों ने ही मुद्रा को जन्म दिया| मुद्रा के विनिमय के माध्यम होने से वस्तु विनिमय प्रणाली के आवश्यकताओं के दोहरे संयोग की कठिनाई दूर हो गई| मुद्रा के द्वारा वस्तुओं और सेवाओं का मूल्य मापने में आसानी हो गयी| मुद्रा के द्वारा अविभाज्य वस्तुओं का आसानी से मूल्य मापन से उनकी समस्या का समाधान भी हो गया| मुद्रा के रूप में संपत्ति का संचय आसानी से होने लगा| इस प्रकार मुद्रा के प्रचलन में आने से वस्तु विनिमय प्रणाली की सभी कठिनाइयों का समाधान आसानी से संभव हुआ|
2. मुद्रा के विकास की विवेचना करें—-
उत्तर:-
वस्तु विनिमय प्रणाली की कठिनाइयों ने ही मुद्रा को जन्म दिया| परंतु, मुद्रा का आविष्कार अचानक नहीं हुआ| मुद्रा के रूप में समय समय पर परिवर्तन होते रहे हैं| विभिन्न देशों एवं विभिन्न जातियों में जो मुद्रा व्यवस्था प्रचलित थी, वह भी एक दूसरे से सर्वथा भिन्न थी| मुद्रा के इतिहास को हम निम्न वर्गों में बांट सकते हैं——-
वस्तु विनिमय प्रणाली——
आरंभ में वस्तु ही मुद्रा का कार्य करता था और एक वस्तु के बदले दूसरे वस्तु दी जाती थी|
वस्तु मुद्रा—–
इसमें युगों के अनुसार वस्तुओं को मुद्रा के रूप में प्रयोग किया जाता था| जैसे— आखेट युग में जानवरों के खाल या चमड़े का पशुपालन युग में गाय, बैल बकरी आदि पशुओं का तथा कृषि युग में कृषि पदार्थों का प्रयोग मुद्रा के रूप में किया जाता था|
धात्विक मुद्रा—-
वस्तु मुद्रा में वस्तुओं को अधिक समय तक संचित नहीं किया जा सकता तथा उनमें वहनीयता के अभाव के कारण धात्विक मुद्रा का प्रचलन आरंभ हुआ| विभिन्न देशों में तथा विभिन्न अवसरों पर लोहा, तांबा, पीतल, सोना, चांदी आदि सभी धातुओं का मुद्रा के रूप में प्रयोग किया गया| इन धातुओं में सोना चांदी का मुद्रा के रूप में सबसे अधिक प्रयोग हुआ है|
सिक्के—–
धातुओं से निर्मित ऐसी धातुओं का प्रचलन हुआ जो देश की सार्वभौम सरकार की मुहर से चालित होता था|
पत्र मुद्रा—–
धातु मुद्रा का प्रयोग अधिक खर्चीला और असुविधाजनक होने के कारण धातु मुद्रा के स्थान पर पत्र मुद्रा का आविष्कार हुआ और धीरे धीरे धातुओं का प्रयोग कम होता गया|
प्लास्टिक मुद्रा—-
ये आधुनिकतम मुद्राओं के रूप में सामने आये है| एटीएम सह डेविड कार्ड, क्रेडिट कार्ड इत्यादि इसके उदाहरण है|
3. मुद्रा की परिभाषा दीजिए तथा इसके प्रमुख कार्यों की व्याख्या कीजिये—-
उत्तर:-
मुद्रा की एक सर्वसम्मत परिभाषा देना कठिन है| मुद्रा के सर्वमान्य के आधार पर कार्यों के आधार पर तथा वैधानिक आधार पर विभिन्न अर्थशास्त्रियों ने अलग अलग परिभाषा दी है| अर्थशास्त्री राबर्टसन के अनुसार, मुद्रा वह वस्तु है जिसे वस्तुओं का मूल्य चुकाने तथा अन्य प्रकार के व्यावसायिक दायित्वों को निपटाने के लिए व्यापक रूप में स्वीकार किया जाता है| परंतु मुद्रा को राज्य द्वारा अनुमोदित होना भी आवश्यक है|आधुनिक अर्थव्यवस्था में मुद्रा अनेक महत्वपूर्ण कार्यों का संपादन करती है|
विनिमय के माध्यम के रूप में—–
मुद्रा विनिमय के माध्यम के रूप में कार्य करता है| इससे वस्तुओं और सेवाओं का किसी भी समय कम किया जा सकता है| क्योंकि हमारा संपूर्ण आधुनिक आर्थिक जीवन विनिमय पर आधारित है| मुद्रा का विधि ग्राह्य तथा सर्वमान्य होने के कारण इसे आसानी से स्वीकार कर लिया जाता है|
मूल्य का मापक—–
मुद्रा के द्वारा सभी वस्तुओं और सेवाओं के मूल्य को मापा जा सकता है| इस प्रकार आज प्रत्येक वस्तुओं का मूल्य मुद्रा के रूप में क्रय किया जा सकता है| मुद्रा मूल्य को मापने में इकाई का कार्य करती है|
मूल्य का संचयन—–
मुद्रा को दीर्घकाल तक हम रख सकते हैं| इसे बचत कर दीर्घकाल की आवश्यकताओं को पूरा कर सकते हैं|
क्रय शक्ति का हस्तांतरण——
मुद्रा का महत्वपूर्ण कार्य क्रय शक्ति का हस्तांतरण है| कोई भी व्यक्ति किसी एक स्थान पर अपनी संपत्ति बेचकर किसी अन्य स्थान पर नयी संपत्ति खरीद सकता है| इसमें मूल्य मुद्रा के आधार पर होता है, अत: क्रयशक्ति को एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति तक आसानी से हस्तांतरित किया जा सकता है|
4. मुद्रा से आप क्या समझते हैं? इसके कार्य क्या है?
उत्तर:-
मुद्रा एक ऐसी वस्तु है जिससे हम सभी परिचित है तथा जिसका हम नित्य व्यवहार के कार्यों में प्रयोग करते हैं| इस प्रकार मुद्रा का हमारे आर्थिक जीवन में बड़ा ही महत्वपूर्ण स्थान है| जैसा कि मार्शल ने कहा है, मुद्रा वह धुरी है जिसके चारों ओर अर्थविज्ञान घूमता है| वास्तव में मुद्रा मनुष्य के महानतम आविष्कारकों में एक है| अर्थव्यवस्था के अंतर्गत मुद्रा का कार्य सर्वोपरि है| यह निम्नलिखित महत्वपूर्ण कार्यों को संपन्न करती है|
विनिमय के माध्यम के रूप में—–
मुद्रा विनिमय का सबसे बड़ा माध्यम है| इसकी सहायता से हम कोई भी वस्तु किसी समय अपनी आवश्यकताओं के अनुरूप खरीद सकते हैं|
मूल्य का मापक—-
मुद्रा मूल्य का मापक भी है| इसके माध्यम से हम किन्हीं दो वस्तुओं के मध्य मूल्य के आधार पर आसानी से विनिमय कर सकती है|
मूल्य का संचयन—–
मुद्रा को हम अपनी आवश्यकताओं के अनुसार दीर्घकाल तक रख सकते हैं| मुद्रा की बचत कर हम अपनी भविष्य की आवश्यकताओं की भी पूर्ति कर सकते हैं|
क्रय शक्ति का हस्तांतरण——
वर्तमान समय में विनिमय का विस्तार हो जाने के कारण दूर दूर तक क्रय विक्रय करने की आवश्यकता पड़ती है| वस्तुओं को एक स्थान से दूसरे स्थान पर ये जानें में कठिनाई होती थी| मुद्रा को बहुत सुगमता से स्थानांतरित किया जा सकता है|
भविष्य के भुगतान के रूप में—–
मुद्रा भविष्य के या विलंबित भुगतान के मान कार्य करती है| मुद्रा का प्रयोग केवल वर्तमान भुगतान के लिए ही नहीं होता, बल्कि भविष्य में भुगतान करने के लिए भी होता है|
5. मुद्रा के महत्व का वर्णन कीजिये|
उत्तर:-
हमारी अर्थव्यवस्था में मुद्रा का स्थान बड़ा ही महत्वपूर्ण है| जैसा कि मार्शल ने कहा, मुद्रा वह धुरी है, जिसके चारों ओर अर्थविज्ञान घूमता है| वास्तव में, मुद्रा मनुष्य के महानतम आविष्कारकों में एक है| जिस प्रकार यंत्र विज्ञान में चक्र, विज्ञान में अग्नि तथा राजनीति में वोट आधार स्तंभ है, उसी प्रकार अर्थशास्त्र एवं मनुष्य के संपूर्ण सामाजिक जीवन में मुद्रा सबसे उपयोगी आविष्कार है| क्या आप सोच सकते हैं कि मुद्रा के अभाव में आपका आर्थिक जीवन कैसा होगा? इस स्थिति में आपको अपना वेतन या पारिश्रमिक किसी ऐसी वस्तु के यप में प्राप्त हो सकता है जिसकी आपको कोई आवश्यकता नहीं है| मुद्रा हमारी क्रय शक्ति का सामन्यीकरण कर देती है जिससे हम इसका अपनी इच्छानुसार प्रयोग कर सकते हैं| मुद्रा के प्रयोग से उपभोक्ता को बहुत अधिक लाभ हुआ है| मुद्रा के रूप में आय प्राप्त होने पर कोई भी व्यक्ति उसे अपनी इच्छा एवं सुविधानुसार खर्च कर सकता है| मुद्रा के द्वारा क्रय शक्ति ऐसे रूप में होती है जिसका हम जिस प्रकार से चाहें उपयोग कर सकते हैं| यह उपभोक्ताओं को अपनी सीमित आय से अधिकतम संतोष प्रदान करने में सहायता करती है| मुद्रा के द्वारा ही वह विभिन्न वस्तुओं से मिलनेवाली उपयोगिताओं की तुलना करता है और उन्हें इस प्रकार प्रयोग में लाता है कि कम से कम लागत या खर्च पर अधिक से अधिक उत्पादन हो| मुद्रा ने वस्तु विनिमय प्रणाली की भी कठिनाइयों को दूर कर दिया है| मुद्रा विनिमय का सर्वमान्य साधन है| इसके प्रयोग से वस्तुओं का क्रय विक्रय तथा मूल्य निर्धारण अत्यंत सरल हो गया है| मुद्रा का व्यवहार होने से बाजार का विस्तार हुआ है तथा व्यापार के परिमाण अथवा मात्रा में अत्यधिक वृद्धि हुई है| मुद्रा राष्ट्रीय आय के वितरण में भी सहायता प्रदान करती है| वर्तमान समय में वस्तुओं का उत्पादन कयी साधनों के सहयोग से होता है| उत्पादन के विभिन्न साधनों की उत्पादकता को मापने का कार्य मुद्रा के द्वारा ही होता है| इस साधनों का पारिश्रमिक भी मुद्रा के रूप में दिया जाता है| मुद्रा से राजस्व के क्षेत्र में भी सहायता मिलती है| सरकार करों के रूप में जनता से आय प्राप्त करती है और इसे सामाजिक कल्याण के कार्यों पर खर्च करती है| ये दोनों ही कार्य मुद्रा के प्रयोग से सरल हो जाते हैं|
6. बचत क्या है? बचत को प्रभावित करने वाले तत्वों की विवेचना कीजिए—
उत्तर:-
किसी देश के आर्थिक जीवन में बचत का विशेष महत्व है| बचत के द्वारा ही पूंजी का निर्माण होता है जिसका उद्योग, व्यापार एवं अन्य उत्पादक क्रियाकलापों में निवेश किया जाता है| परंतु, बचत क्या है? प्रत्येक व्यक्ति या परिवार की कुछ आय होती है| इस आय के दो उपयोग हो सकते हैं| प्रायः इसका एक बड़ा भाग उपभोग पर खर्च होता है और शेष बचा लिया जाता है|इस प्रकार, बचत आय का वह भाग है जिसका वर्तमान में उपभोग नहीं किया जाता है| उदाहरण के लिए, यदि किसी व्यक्ति की मासिक आय 20,000 रुपये है जिसमें से वह 15000 रुपये उपभोग पर व्यय करता है तो 5000 रुपये उसकी बचत है| अत: कुल आय- उपभोग व्यय=बचत
बचत के द्वारा ही पूंजी का निर्माण होता है जो उत्पादक क्रियाकलापों तथापि धन अथवा संपत्ति के उत्पादन में सहायक होती है| प्रो ० केन्स के अनुसार बचत की प्रवृत्ति या मात्रा निम्नलिखित तीन तत्वों से प्रभावित होती है——
बचत करने की शक्ति—–
बचत करने की शक्ति या क्षमता सर्वप्रथम व्यक्ति की आय पर निर्भर करती है| वही व्यक्ति बचत कर सकता है जिसकी आय न्यूनतम आवश्यकताओं की पूर्ति से अधिक है| आय में वृद्धि के साथ ही बचत की मात्रा भी बढती है| बचत करने की शक्ति आय एवं धन के वितरण पर भी निर्भर करती है| जिस देश में आय का वितरण असमान होता है, वहाँ बचत करने की शक्ति भी अधिक होती है| इसका कारण यह है कि आय का समान वितरण होने पर सभी व्यक्तियों की आय कम हो जाती है| बचत करने की शक्ति को प्रभावित करने वाला एक अन्य महत्वपूर्ण तत्व देश के आर्थिक विकास का स्तर है| देश के आर्थिक दृष्टि से विकसित होने पर लोगों की आय अधिक होती है| इससे उनकी बचत करने की शक्ति या क्षमता बढती है|
बचत करने की इच्छा——
बचत की मात्रा बचत करने की इच्छा पर भी निर्भर करती है| बचत करने की शक्ति या क्षमता रहने पर भी अगर लोगों में बचत करने की इच्छा नहीं है, तब संभव नहीं होगी| बचत करने की इच्छा भी कयी बातों से प्रभावित होती है| जो व्यक्ति दूरदर्शी होते हैं वे भविष्य के बारे में सोचते हैं| वे अनिश्चित भविष्य के लिए अपनी आय का कुछ भाग अवश्य बचाकर रखते हैं| पारिवारिक स्नेह, सामाजिक सम्मान, परोपकार की भावना आदि जैसे कयी अन्य व्यक्तिगत तत्व भी बचत करने की इच्छा को प्रभावित करते हैं|
बचत करने की सुविधाएँ—–
बचत करने के लिए देश में बचत करने की सुविधाओं का होना भी आवश्यक है| यदि देश के अंदर शांति नहीं है, बाह्य आक्रमण का डर बना रहता है, लोगों की संपत्ति की सुरक्षा नहीं है, तब स्वभावतः बचत कम होगी| बचत के लिए शांति व्यवस्था का वातावरण होना अत्यंत आवश्यक है| देश में उद्योग तथाकथित व्यवसाय में निवेश के लाभदायक अवसर उपलब्ध रहने पर बचत प्रोत्साहन मिलता है| बचत के लिए मुद्रा के मूल्य में स्थायित्व भी आवश्यक है| मुद्रा के मूल्य में कमी हो जाने पर लोगों की वास्तविकता बचत कम हो जाती है|
7. बैंक किस प्रकार साख का सृजन करते हैं? क्या इनकी साख सृजन अथवा साख निर्माण की क्षमता असीमित है?
उत्तर:-
आधुनिक अर्थव्यवस्था में साख का स्थान अत्यंत महत्वपूर्ण है| साख की वर्तमान आर्थिक प्रणाली की आधारशिला माना गया है| साख अथवा बैंक मुद्रा का निर्माण देश के व्यावसायिक बैंकों द्वारा किया जाता है| बैंक प्रायः उत्पादकों एवं व्यापारियों के लिए अल्पकालीन ऋण या साख की व्यवस्था करते हैं| परंतु बैंक इन्हें किस आधार पर साख प्रदान करते हैं? साख का निर्माण बैंकों में जनता द्वारा जमा किए गए धन के आधार पर होता है| बैंकों के साथ निर्माण की पद्धति को एक उदाहरण द्वारा अधिक स्पष्ट किया जा सकता है| मान लीजिए कि कोई व्यक्ति बैंक के अपने खाते में 10000 रुपये की राशि जमा करता है| चूंकि ग्राहक बैंक में जमा अपने धन को किसी समय भी निकाल सकते हैं, इसिलिए बैंक को इतनी रकम हर समय अपने पास रखनी चाहिए| परंतु, बैंक व्यवहार में ऐसा नहीं करते| अपने अनुभव से ये जानते हैं कि जमाकर्ता अपनी संपूर्ण जमाराशि की मांग एक ही समय नहीं करते| मान लें कि एक निश्चित समय में कुल जमाराशि के 10 प्रतिशत भाग की ही जमाकर्ताओं द्वारा मांग की जाती है| ऐसी स्थिति में 10000 रुपये के जमा में से 1000 रुपये नकद रखकर बैंक शेष 9000 रुपये दूसरों को ऋण या साख के रूप में दे सकता है| बहुत संभव है कि ऋण प्राप्तकर्ता इस 9000 रुपये को पुनः उसी बैंक अथवा किसी अन्य बैंक में जमा कर दे| दूसरे शब्दों में, यह राशि बैंकिंग प्रणाली को फिर जमा के रूप में प्राप्त हो जाती है| अतएव बैंक इस जमा का भी 10 प्रतिशत अर्थात 900 रुपये अपने नकद कोष में रखकर शेष 8100 रुपये पुनः उधार दे सकता है| इस प्रकार बैंक का यह क्रम चलता रहेगा और वह अपनी मूल जमाराशि से कयी गुना अधिक साख का निर्माण कर सकता है| परंतु, बैंकों की साख निर्माण की क्षमता असीमित नहीं होती| नकद मुद्रा साख सृजन का मुख्य आधार है| अतएव केंद्रीय बैंक द्वारा जारी की गई मुद्रा की मात्रा जितनी अधिक होगी, व्यावसायिक बैंक उतना ही अधिक साख का निर्माण कर सकते हैं| यही कारण है कि जब केंद्रीय बैंक मुद्रा की पूर्ति को घटा देता है तब बैंकों की साख सृजन की शक्ति भी स्वत: घट जाती है| इसके अतिरिक्त बैंकों के साख निर्माण की क्षमता केंद्रीय बैंक में रखे जानेवाले नकद कोष के अनुपात जनता की बैंकिंग संबंधी आदतों तथा साख अथवा ऋण की मांग आदि बातों पर भी निर्भर करती है|
8. मुद्रा के आर्थिक महत्व अथवा लाभों का वर्णन कीजिये—-
उत्तर:-
हमारी अर्थव्यवस्था में मुद्रा का स्थान बड़ा ही महत्वपूर्ण है| जैसा कि मार्शल ने कहा है मुद्रा वह धुरी है जिसके चारों ओर अर्थविज्ञान घूमता है| वास्तव में मुद्रा मनुष्य के महानतम आविष्कारकों में एक है| जिस प्रकार यंत्र विज्ञान में चक्र, विज्ञान में अग्नि तथा राजनीति में वोट आधार स्तंभ है, उसी प्रकार अर्थशास्त्र एवं मनुष्य के संपूर्ण सामाजिक जीवन में मुद्रा सबसे उपयोगी आविष्कार है| मुद्रा के मुख्य लाभ निम्नलिखित हैं|
उपभोक्ताओं को लाभ—–
मुद्रा के प्रयोग से उपभोक्ताओं को बहुत अधिक लाभ हुआ है| मुद्रा के रूप में आय प्राप्त होने पर कोई भी व्यक्ति उसे अपनी इच्छा एवं सुविधानुसार खर्च कर सकता है| मुद्रा के द्वारा क्रयशक्ति ऐसे रूप में होती है जिसका हम जिस प्रकार चाहें, उपयोग कर सकते हैं| यह उपभोक्ताओं को अपनी सीमित आय से अधिकतम संतोष प्राप्त करने में सहायता करती है|
उत्पादकों को लाभ—-
उत्पादकों को भी मुद्रा से अनेक लाभ प्राप्त होते हैं| मुद्रा के प्रयोग से ही आज बड़े पैमाने का उत्पादन संभव हुआ है| उत्पादकों को मुद्रा के द्वारा उत्पादन के विभिन्न साधनों को जुटाने, कच्चामाल खरीदने, श्रमिकों को पारिश्रमिक देने तथा पूंजी उधार लेने में बहुत आसानी हो गई है| मुद्रा के उपयोग से ही श्रम विभाजन एवं विशिष्टीकरण की सुविधा प्राप्त हुई है|
विनिमय के क्षेत्र में लाभ—–
मुद्रा के आविष्कार से वस्तु विनिमय प्रणाली की सभी कठिनाईयाँ समाप्त हो गई है| मुद्रा विनिमय का सर्वमान्य साधन है| इसके प्रयोग से वस्तुओं का क्रय विक्रय तथा मूल्य निर्धारण अत्यंत सरल हो गया है| मुद्रा का व्यवहार होने से बाजार का विस्तार हुआ है तथा व्यापार के परिमाण में बहुत वृद्धि हुई है|
वितरण के क्षेत्र में लाभ—-
वर्तमान समय में वस्तुओं का उत्पादन कयी साधनों के सहयोग से होता है| उत्पादन के विभिन्न साधनों की सीमांत उत्पादकता को मापने का कार्य मुद्रा के द्वारा ही होता है| इन साधनों का पुरुस्कार भी मुद्रा के रूप में दिया जाता है| इस प्रकार, मुद्रा राष्ट्रीय आय के वितरण में सहायता करती है|
राजस्व के क्षेत्र में लाभ—-
मुद्रा से राजस्व के क्षेत्र में भी सहायता मिलती है| सरकार करों के रूप में जनता से आय प्राप्त करती है और इसे सामाजिक कल्याण के कार्यों पर खर्च करती है| ये दोनों ही कार्य मुद्रा के प्रयोग से सरल हो जाते हैं| उपर्युक्त लाभों के अतिरिक्त मुद्रा से समाज को और भी अनेक लाभ हुए हैं| मुद्रा के प्रयोग से बचत और पूंजी निर्माण को प्रोत्साहित मिला है तथा पूंजी की गतिशीलता में वृद्धि हुई है| मुद्रा के द्वारा ऋणों के लेन देन तथा अग्रिम भुगतान में सुविधा होती है| एक आधुनिक अर्थव्यवस्था में साख का अत्यधिक महत्व है तथा मुद्रा साख का आधार है|
9. मुद्रा के गुण एवं दोषों की विवेचना कीजिए|
उत्तर:-
मुद्रा के गुण और लाभ—–
प्रश्न संख्या 6 का उत्तर देखें|
मुद्रा एक मिश्रित वरदान नहीं है| लाभ या गुणों के साथ इसमें कुछ दोष भी है| मुद्रा के मुख्य दोष निम्नलिखित हैं—–
मूल्य में अस्थिरता—–
मुद्रा का सबसे प्रमुख दोष इसके मूल्य में होने वाला परिवर्तन है| मुद्रा के मूल्य में तीव्र तथा अचानक होनेवाले परिवर्तनों का हमारी अर्थव्यवस्था पर बहुत बुरा प्रभाव पड़ता है| इसके परिणामस्वरूप उपभोक्ताओं के जीवन स्तर, उद्योग, व्यवसाय तथा व्यापार में भी उतार चढ़ाव उत्पन्न होते हैं| इससे समाज की अपार क्षति होती है| हजारों लोग बेकार हो जाते हैं तथा औद्योगिक विकास अवरुद्ध हो जाता है|
आय और धन के वितरण में असमानता—–
मुद्रा के कारण समाज में संपत्ति का वितरण भी प्रभावित होता है| उत्पादन के साधन कुछ थोड़े से व्यक्तियों के पास एकत्र हो जाते हैं तथा समाज के अधिकतर लोग इससे वंचित रह जाते हैं| इससे समाज में आय और धन के वितरण की विषमता बढती है|
ऋणग्रस्तता में वृद्धि——-
मुद्रा ने उधार लेने और देने के कार्य को सरल बना दिया है| इससे लोगों को ऋण लेने में प्रोत्साहन मिलता है| फलस्वरूप, समाज में ऋणग्रस्तता की मात्रा में वृद्धि हुई है|
आर्थिक सत्ता का केंद्रीकरण—-
मुद्रा के आविष्कार एवं प्रयोग से आर्थिक सत्ता कुछ थोड़े से व्यक्तियों के हाथ में केन्द्रित हो गई है| इससे पूंजीवादी अर्थव्यवस्था की अनेक बुराइयों का जन्म होता है| इस प्रकार, मुद्रा में गुण के साथ ही कुछ दोष भी है| लेकिन, मुद्रा के अधिकांश दोष मानव स्वभाव के कारण उत्पन्न होते हैं तथा उचित नियंत्रण के द्वारा उन्हें दूर किया जा सकता है|
10. साख के मुख्य आधार क्या है? विस्तार पूर्वक चर्चा करें—-
उत्तर:-
विश्वास—–
साख का मुख्य आधार विश्वास है| कोई भी व्यक्ति ऋण लेने वाले के ऊपर भरोसे के आधार पर ही ऋण देता है|
चरित्र—-
ऋणदाता ऋणी व्यक्ति के चरित्र के आधार पर ऋण देता है| यदि ऋणी व्यक्ति चरित्रवान तथा ईमानदार है तो उसे आसानी से ऋण दे दी जाती है|
ऋण चुकाने की क्षमता——
ऋणदाता किसी व्यक्ति को उधार तब देता है जब उस व्यक्ति के भुगतान करने की क्षमता पर पूर्ण विश्वास हो|
पूंजी एवं संपत्ति—–
जिस व्यक्ति के पास जितनी ही अधिक पूंजी अथवा संपत्ति होगी, उसे उतना ही अधिक ऋण मिल सकता है|
ऋण की अवधि—-
ऋण की अवधि का प्रभाव भी साख देने की क्षमता पर पड़ सकता है| ऋण देने वाले को यह भय लगा रहता है कि समय अधिक बीतने पर ऋणी की क्षमता, चरित्र और आर्थिक स्थिति बदल न जाए| सभी बातें साख देने के मुख्य आधार है|
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