Bharti Bhawan Economics Class-10:Chapter-2:Very Short Type Question Answer:Short Type Question Answer:Long Answer Type Question Answer:अर्थशास्त्र:कक्षा-10:अध्याय-2:अति लघु उत्तरीय प्रश्न उत्तर:लघु उत्तरीय प्रश्न:दीर्घ उत्तरीय प्रश्न


                राज्य एवं राष्ट्र की आय



अतिलघु उत्तरीय प्रश्न




1. बिहार राज्य के घरेलू उत्पाद में किस क्षेत्र का सर्वाधिक योगदान होता है? 
उत्तर:- तृतीयक अथवा सेवा क्षेत्र
2. बिहार राज्य की वर्तमान विकास दर क्या है? 
उत्तर:- 5℅
3. राष्ट्रीय आय क्या है? 
उत्तर:- राष्ट्रीय आय किसी देश के अंदर एक निश्चित अवधि में उत्पादित समस्त वस्तुओं और सेवाओं का मौद्रिक मूल्य है| जिसमें विदेशों से प्राप्त होनेवाली आय भी सम्मिलित हैं|
4. राष्ट्रीय आय का सृजन किस प्रकार होता है? 
उत्तर:- राष्ट्रीय आय का सृजन अर्थव्यवस्था में वस्तुओं और सेवाओं की उत्पादन प्रक्रिया के अन्तर्गत होती है|
5. राष्ट्रीय आय को साधन लागत पर राष्ट्रीय आय क्यों कहते हैं? 
उत्तर:- राष्ट्रीय आय का उत्पादन के साधनों पर वितरण होने के कारण इसे साघन लागत पर राष्ट्रीय आय कहा जाता है|
6. भारत में राष्ट्रीय आय की गणना किस संस्था द्वारा की जाती है? 
उत्तर:- केन्द्रीय सांख्यिकी संगठन द्वारा
7. प्रतिव्यक्ति आय से आप क्या समझते हैं? 
उत्तर:- किसी देश की कुल आय में कुल जनसंख्या से भाग देने पर जो भागफल आता है वह उस देश की औसत या प्रतिव्यक्ति आय कहलाती है|
प्रतिव्यक्ति आय=   राष्ट्रीय आय     
                           जनसंख्या
8. बिहार की प्रतिव्यक्ति आय कम होने के क्या कारण है? 
उत्तर:- जनसंख्या वृद्धि, आंचलिक विषमता तथा कमजोर प्रशासन बिहार की प्रतिव्यक्ति आय कम होने के कारण है|
9. बिहार के किस जिले की प्रतिव्यक्ति आय सबसे अधिक और किस जिले की सबसे कम है? 
उत्तर:- पटना, सबसे अधिक और शिवहर, सबसे कम
10. क्या राष्ट्रीय आय में वृद्धि प्रतिव्यक्ति आय को प्रभावित करती है? 
उत्तर:- हां, राष्ट्रीय आय में वृद्धि प्रतिव्यक्ति आय में भी वृद्धि करती है|
11. देश के मानक को कौन सी संस्था निर्धारित करती 
उत्तर:- डायरेक्टर आफ इकोनोमिक्स एंड स्टेटिस्टिक्स
12. भारत की प्रतिव्यक्ति आय अमेरिकी प्रतिव्यक्ति आय का कौन सा हिस्सा है? 
उत्तर:- 1/48 वां
13. किसी देश या राज्य की आय का मुख्य स्रोत क्या होता 
उत्तर:- उसकी उत्पादक क्रियाएँ होती है|
14. बिहार की आय का प्रधान स्रोत क्या है? 
उत्तर:- उसका राज्य घरेलू उत्पाद है|
15. राज्य घरेलू उत्पाद क्या है? 
उत्तर:- राज्य घरेलू उत्पाद राज्य में उत्पादित सभी वस्तुएँ और सेवाएँ है और यह इनके बाजार मूल्य के बराबर होता है|
16. राज्य घरेलू उत्पाद का आकलन किस आधार पर किया जाता है? 
उत्तर:- दो आधार पर—- सकल राज्य घरेलू उत्पाद, शुद्ध राज्य घरेलू उत्पाद
17. एक बंद अर्थव्यवस्था से आप क्या समझते हैं? 
उत्तर:- एक बंद अर्थव्यवस्था आत्मनिर्भर अर्थव्यवस्था होती है तथा इसका विदेशियों से कोई आर्थिक संबंध नहीं रहता है|
18. एक खुली अर्थव्यवस्था क्या है? 
उत्तर:: एक खुली अर्थव्यवस्था वह है जिसका दूसरे देशों से भी व्यापारिक तथा आर्थिक संबंध होता है|
19. कुल घरेलू उत्पाद क्या है? 
उत्तर:- कुल अथवा सकल घरेलू उत्पाद एक देश की भौगोलिक सीमाओं के अंदर एक लेखा वर्ष में उत्पादित सभी अंतिम वस्तुओं और सेवाओं का मौद्रिक मूल्य है|
20. कुल राष्ट्रीय उत्पाद क्या है? 
उत्तर:- कुल राष्ट्रीय उत्पाद देश में एक वर्ष के अन्तर्गत सभी वस्तुओं और सेवाओं का मौद्रिक मूल्य है जिसमें विदेशों से प्राप्त शुद्ध आय भी सम्मिलित रहती है|
21. शुद्ध राष्ट्रीय उत्पाद क्या है? 
उत्तर:- देश के कुल राष्ट्रीय उत्पादन में से व्यय अथवा खर्च की विभिन्न मदों को निकाल देने के बाद जो शेष बचता है, वह शुद्ध राष्ट्रीय उत्पाद है|
22. राष्ट्रीय आय को मापने के मुख्य तरीके क्या है? 
उत्तर:- राष्ट्रीय आय की माप या गणना करने के तीन मुख्य तरीके हैं—- उत्पत्ति गणना पद्धति, आय गणना पद्धति तथा व्यय गणना पद्धति|
23. भारत की राष्ट्रीय आय का सर्वप्रथम किसके द्वारा अनुमान लगाया गया था? 
उत्तर:- संभवतः, सर्वप्रथम दादाभाई नौरोजी ने 1868 में भारत की राष्ट्रीय आय 340 करोड़ रुपये होने का अनुमान लगाया था|
24. भारत के किन राज्यों की प्रतिव्यक्ति आय अपेक्षाकृत अधिक है? 
उत्तर:-
हरियाणा, पंजाब, महाराष्ट्र, गुजरात, तमिलनाडु आदि देश के विकसित राज्य है तथा इनकी प्रतिव्यक्ति आय अपेक्षाकृत अधिक है|
लघु उत्तरीय प्रश्न





1. राज्य घरेलू उत्पाद से आप क्या समझते हैं? 
उत्तर:-
एक लेखा वर्ष में राज्य में उत्पादित सभी वस्तुओं और वस्तुओं को जो बाजार मूल्य के बराबर होता है राज्य घरेलू उत्पाद कहे जाते हैं| इसमें राज्य के विभिन्न क्षेत्रों, कृषि, पशुपालन, उद्योग आदि के द्वारा कुल उत्पादित वस्तुओं और सेवाओं का मूल्य सम्मिलित रहता है|
2. सकल घरेलू उत्पाद और शुद्ध राज्य घरेलू में अंतर कीजिये|
उत्तर:-सकल घरेलू उत्पाद राज्य की सीमाओं के अंदर एक लेखा वर्ष में उत्पादित अंतिम वस्तुओं और सेवाओं का मौद्रिक मूल्य है| इसमें सभी क्षेत्रों द्वारा, उत्पादित वस्तुओं और सेवाओं का मूल्य सम्मिलित रहता है| शुद्ध राज्य घरेलू उत्पाद सकल घरेलू उत्पाद में से व्यय के मदों को घटाने के बाद प्राप्त किया जाता है| इसपर राज्य का प्रतिव्यक्ति आय तथा उनका जीवन स्तर निर्भर करता है|
3. हम स्थिर मूल्यों पर भी राज्य घरेलू उत्पाद का आकलन क्यों करते हैं? 
उत्तर:- किसी राज्य के वास्तविक उत्पादन में बढ़ोतरी या कमी हुई है यह ज्ञात करने के लिए हम स्थित मूल्यों पर राज्य घरेलू उत्पाद का उत्पाद का आकलन करते हैं| स्थिर मूल्यों पर तुलना से राज्य के आर्थिक विकास एवं प्रगति की सही जानकारी मिलती है| 
4. कुल घरेलू उत्पाद क्या है? 
उत्तर:- किसी देश की भौगोलिक सीमाओं के अंदर एक लेखा वर्ष में उत्पादित अंतिम वस्तुओं और सेवाओं का मौद्रिक मूल्य कुल घरेलू उत्पाद है| यह धारणा बंद अर्थव्यवस्था से संबंद्ध है| इसमें कुल घरेलू उत्पादन और कुल राष्ट्रीय उत्पादन दोनों एक दूसरे के बराबर होता है|
5. कुल राष्ट्रीय उत्पादन तथा शुद्ध राष्ट्रीय उत्पादन में अंतर कीजिये|
उत्तर:- किसी भी देश में एक वर्ष के अंतर्गत जिन वस्तुओं और सेवाओं का उत्पादन तथा विनिमय होता है उनके बाजार मूल्य को कुल राष्ट्रीय उत्पादन कहते हैं| कुल राष्ट्रीय उत्पादन में चालू वर्ष में उत्पादित वस्तुओं और सेवाओं का मौद्रिक मूल्य ही शामिल रहता है| परंतु शुद्ध राष्ट्रीय उत्पादन में घिसावट आदि का खर्च निकाल देने के बाद जो कुल राष्ट्रीय उत्पादन में शेष बचता है, वह शुद्ध राष्ट्रीय उत्पादन है| शुद्ध राष्ट्रीय उत्पादन को बाजार मूल्य के रूप में राष्ट्रीय आय भी कहते हैं|
6. राष्ट्रीय आय माप में कठिनाईयाँ उत्पन्न होती है? 
उत्तर:- 
पर्याप्त एवं विश्वस्त आंकड़ों की कमी—-
राष्ट्रीय आय की गणना की अच्छी से अच्छी प्रणाली भी अपनाने पर पर्याप्त एवं विश्वसनीय आंकड़ों की कमी रहती है| पिछड़े देशों की अर्थव्यवस्था के साथ यह समस्या अधिक है|
दोहरी गणना की संभावना—–
राष्ट्रीय आय की गणना करते समय कयी बार एक ही आय को दुबारा दूसरे के आय में गिन लिया जाता है| उदाहरण के लिए एक व्यापारी और उसके कर्मचारी की आय को अलग अलग जोड़ना दोहरी गणना की संभावना है|
मौद्रिक विनिमय प्रणाली का अभाव—–
किसी अर्थव्यवस्था में उत्पादित बहुत सी वस्तुओं का मुद्रा के द्वारा विनिमय नहीं होता है| उत्पादक कुछ वस्तुओं का स्वयं उपभोग कर लेते हैं|  या उनका अन्य वस्तुओं से दूसरे उत्पादक से अदल बदल कर लेते हैं| इस प्रकार ऐसी वस्तुओं का मूल्यांकन किस प्रकार किया जाए यह समस्या राष्ट्रीय आय को मापने में आती है|
7. भारत की राष्ट्रीय आय का अनुमान बताइये| क्या योजना काल में हमारी राष्ट्रीय आय में वृद्धि हुई है? 
उत्तर:- सर्वप्रथम दादाभाई नौरोजी ने 1868 में भारत की राष्ट्रीय आय 340 करोड़ रुपये होने का अनुमान लगाया था| स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद सरकार ने राष्ट्रीय आय का अनुमान लगाने के लिए 1949 में प्रो० पी ० सी ० महालनोबिस की अध्यक्षता में एक राष्ट्रीय आय समिति नियुक्ति किया|1951-52 से केंद्रीय सांख्यिकी संगठन नियमित रूप से राष्ट्रीय आय और उससे संबंधित तथ्यों का अनुमान लगाती है| योजना काल में भारत की राष्ट्रीय आय में सामान्यतः वृद्धि हुई है| 1951 से 2003 के बीच राष्ट्रीय आय एवं कुल उत्पादन में 8 गुणा से भी अधिक वृद्धि हुई है|
8. बिहार के राज्य घरेलू उत्पाद में किस क्षेत्र का योगदान सबसे अधिक होता है? 
उत्तर:- बिहार के राज्य घरेलू उत्पाद में कृषि, उद्योग, परिवहन, व्यापार आदि राज्य के सभी क्षेत्रों द्वारा उत्पादित वस्तुओं और सेवाओं का मूल्य सम्मिलित रहता है| राज्य के इन विभिन्न क्षेत्रों की आय पर ही राज्य की आय निर्भर है तथा इनके बढने से राज्य की आय में भी वृद्धि होती है| विगत वर्षों के अंतर्गत बिहार के प्राथमिक क्षेत्र के उत्पादन में कमी हुई है| जिसका प्रमुख कारण कृषि के क्षेत्र में गिरावट है| द्वितीयक अथवा औद्योगिक क्षेत्र के उत्पादन में कोई विशेष परिवर्तन नहीं हुआ है तथा राज्य के घरेलू उत्पाद में इस क्षेत्र का सबसे न्यून योगदान होता है| वर्तमान में बिहार के राज्य घरेलू उत्पाद में सेवा क्षेत्र का अंशदान सर्वाधिक है जिसमें संचार सेवाएँ,व्यापार, होटल एवं रेस्टोरेंट प्रक्षेत्र सर्वाधिक महत्वपूर्ण है|
9. राष्ट्रीय आय क्या है तथा इसका सृजन किस प्रकार होता है? 
उत्तर:- यदि किसी देश के प्राकृतिक साधनों पर श्रम और पूंजी लगाकर उनका उपयोग किया जाता है तो उससे प्रत्येक वर्ष एक निश्चित मात्रा में वस्तुओं और सेवाओं का उत्पादन होता है| सरल शब्दों में, यह देश की राष्ट्रीय आय है| इस प्रकार, राष्ट्रीय आय एक निश्चित अवधि में देश के कुल उत्पादन का मौद्रिक मूल्य है तथा वस्तुओं और सेवाओं की उत्पादन प्रक्रिया में ही इसका सृजन होता है| आय एक प्रवाह है तथा कुल उत्पादन का प्रवाह ही कुल राष्ट्रीय आय का प्रवाह उत्पन्न करता है| अत:, कुल राष्ट्रीय आय और कुल राष्ट्रीय उत्पादन दोनों एक दूसरे के बराबर होते हैं|
10. प्रतिव्यक्ति आय क्या है? प्रतिव्यक्ति आय और राष्ट्रीय आय में क्या संबंध है? 
उत्तर:-
प्रतिव्यक्ति आय किसी देश के नागरिकों की औसत आय है| कुल राष्ट्रीय आय में कुल जनसंख्या से भाग देने पर जो भागफल आता है उसे प्रतिव्यक्ति आय कहते हैं| इस प्रकार, प्रतिव्यक्ति आय की धारणा राष्ट्रीय आय से जुड़ी हुई है| राष्ट्रीय आय में वृद्धि होने पर प्रतिव्यक्ति आय में भी वृद्धि होती है| लेकिन, राष्ट्रीय आय में वृद्धि होने पर प्रतिव्यक्ति आय में प्रत्येक अवस्था में वृद्धि नहीं होगी| यदि आय में होने वाली वृद्धि के साथ ही किसी देश की जनसंख्या भी उसी अनुपात में बढ़ जाती है तो प्रतिव्यक्ति आय नहीं बढ़ेगी और लोगों के जीवन स्तर में कोई सुधार नही होगा| इसीप्रकार, यदि राष्ट्रीय आय की तुलना में जनसंख्या की वृद्धि दर अधिक है तो प्रतिव्यक्ति आय घट जाएगी|
11. भारत में सर्वप्रथम राष्ट्रीय आय की गणना कब और किसके द्वारा की गई थी? योजना काल में भारत की राष्ट्रीय आय में वृद्धि का अनुमान बताएं|
उत्तर:- स्वतंत्रता पूर्व भारत में राष्ट्रीय आय की गणना करने का कोई सर्वमान्य तरीका नहीं था| संभवतः सर्वप्रथम दादाभाई नौरोजी ने 1868 में भारत की राष्ट्रीय आय 340 करोड़ रुपये होने का अनुमान लगाया था| स्वतंत्रता प्राप्ति के पश्चात पंचवर्षीय योजनाओं के अंतर्गत 1951-52 से भारत में नियमित रूप से राष्ट्रीय आय एवं इससे संबंधित तथ्यों का अनुमान लगाया जाता है| योजना काल में भारत की राष्ट्रीय आय में सामान्यतया वृद्धि हुई है| 1950-51 से 2002-03 के बीच राष्ट्रीय आय एवं कुल राष्ट्रीय उत्पाद 8 गुना से भी अधिक बढ़ गया है| इस अवधि में भारतीय अर्थव्यवस्था की वार्षिक विकास दर औसतन 4.2℅ रही है| वर्तमान मूल्यों पर 2006-07 में भारत की कुल राष्ट्रीय आय 33,25,817 करोड़ रुपये होने का अनुमान था|
12. भारत में राष्ट्रीय आय की गणना किस संस्था द्वारा की गई? इसकी गणना में उत्पन्न कठिनाइयों का वर्णन करें—-
उत्तर:- 1951-52 से भारत में प्रतिवर्ष नियमित रूप से राष्ट्रीय आय की गणना की जाती है| राष्ट्रीय आय संबंधी आंकड़ों को एकत्र करने के लिए भारत सरकार ने एक विशेष संस्था राष्ट्रीय प्रतिदर्श सर्वेक्षण संगठन की स्थापना की है जो केंद्रीय सांख्यिकी संगठन के अधीन है| राष्ट्रीय आय की गणना करने में प्रायः कयी प्रकार की कठिनाइयाँ उत्पन्न होती है| राष्ट्रीय आय की माप या गणना करने के लिए कोई भी तरीका क्यों न अपनाया जाए, पर्याप्त एवं विश्वसनीय आंकड़ों की हमेशा कमी रहती है| भारत जैसे विकासशील और पिछड़े हुए देशों में यह कठिनाई अधिक होती है| राष्ट्रीय आय की गणना करते समय कयी बार एक ही आय को दुबारा गिन लिया जाता है| राष्ट्रीय आय को मापने में इस कारण भी कठिनाई होती है कि देश में उत्पादित बहुत सी वस्तुओं का मुद्रा के द्वारा विनिमय नहीं होता है| 
13. बिहार की प्रतिव्यक्ति आय कम होने के क्या कारण है? बिहार के किस जिले की प्रतिव्यक्ति आय सबसे अधिक और किस जिले की सबसे कम है? 
उत्तर:-
बिहार की गणना देश के सर्वाधिक पिछड़े हुए राज्यों में की जाती है तथा इसकी प्रतिव्यक्ति आय बहुत कम है| इसका प्रधान कारण यहाँ की कृषि की पिछड़ी हुई अवस्था तथा राज्य में उद्योग धंधों का अभाव है| इसके फलस्वरूप बिहार का राज्य घरेलू उत्पाद बहुत कम है| देश के अन्य राज्यों की तुलना में बिहार की जनसंख्या की वृद्धि दर भी अपेक्षाकृत अधिक है| राज्य की जनसंख्या में 1991-2001 की अवधि में 28.62 प्रतिशत की वृद्धि हुई जबकि संपूर्ण भारत के लिए यह वृद्धि दर 21.54 प्रतिशत थी| बिहार सरकार के 2008-09 के आर्थिक सर्वेक्षण के अनुसार, पटना जिले की प्रतिव्यक्ति आय सबसे अधिक (29, 482 रुपये) तथा शिवहर की सबसे कम (₹3.967) है| 
14. कुल राष्ट्रीय आय क्या है? 
उत्तर:-
उत्पादन के दृष्टिकोण से किसी देश की कुल उत्पत्ति एक वर्ष में उत्पादित सभी प्रकार की वस्तुओं और सेवाओं के मौद्रिक मूल्य के बराबर होती है जिसे हम कुल राष्ट्रीय उत्पाद कहते हैं| इस कुल उत्पादन में से कच्चे माल की कीमत, अचल पूंजी की घिसावट, प्रतिस्थापन व्यय आदि घटा देने के बाद जो शेष बचता है, वह शुद्ध राष्ट्रीय उत्पाद होता है, जिसका उत्पादन के विभिन्न साधनों के बीच वितरण किया जाता है| लेकिन, हम वस्तुओं और सेवाओं के मूल्य अथवा कुल राष्ट्रीय उत्पादन की गणना मौद्रिक आय के रूप में भी कर सकते हैं| यदि एक निश्चित अवधि में उत्पादन के साधनों द्वारा प्राप्त आय को जोड़ दिया जाए तो वह देश की कुल राष्ट्रीय आय कही जाएगी| जैसा कि मार्शल ने कहा है—- राष्ट्रीय आय या लाभांश एकसाथ ही शुद्ध उत्पादन तथा उत्पत्ति के सभी साधनों के भुगतान का एकमात्र स्रोत है| 
             इस प्रकार, कुल राष्ट्रीय आय के अंतर्गत (1) श्रमिकों तथा अन्य सभी कर्मचारियों को दी जानेवाली मजदूरी एवं वेतन (2) भूमि का दिया गया लगान तथा मकान का किराया, पूंजी पर दिया जाने वाला ब्याज तथा उद्यमी को प्राप्त होने वाला लाभ सम्मिलित रहता है| उपर्युक्त मुद्दों के अतिरिक्त कुल राष्ट्रीय आय में विदेशी व्यापार से होनेवाली शुद्ध आय भी शामिल होती है| 
इस प्रकार, 
              कुल राष्ट्रीय आय=मजदूरी एवं वेतन+लगान तथा किराया+ब्याज+लाभ+निर्यात से प्राप्त शुद्ध आय
15. शुद्ध राष्ट्रीय आय से आप क्या समझते हैं? 
उत्तर:- कुल राष्ट्रीय आय तथा शुद्ध राष्ट्रीय आय में अंतर है| कुल राष्ट्रीय आय एक वर्ष के अंतर्गत उत्पादन के विभिन्न साधनों को दिया जानेवाला कुल भुगतान है| लेकिन, शुद्ध राष्ट्रीय आय वह आय है जो लोग वास्तव में प्राप्त करते हैं| इसके द्वारा ही देशवासियों के रहन सहन के स्तर का सही अनुमान लगाया जा सकता है| शुद्ध राष्ट्रीय आय को जानने के लिए कुल राष्ट्रीय आय में से निम्नलिखित मदों को घटा देना होता है——-
प्रत्यक्ष एवं अप्रत्यक्ष कर—–
प्रत्यक्ष एवं अप्रत्यक्ष कर दोनों लोगों की आय में कमी लाते हैं| इसिलिए, इन्हें कुल राष्ट्रीय आय में से घटा देना चाहिए|
सरकारी उपक्रमों की आय—–
सरकारी उपक्रमों को प्राप्त होने वाला लाभ वास्तव में सरकार की आय होती है| अत:, इन्हें भी कुल राष्ट्रीय आय में से घटा दिया जाता है|
दान एवं उपहार—-
राष्ट्रीय आय उत्पादन की माप है तथा इसके अंतर्गत केवल उत्पादित वस्तुओं और सेवाओं का मूल्य सम्मिलित रहता है| दान या उपहार किसी वस्तु या सेवा के उत्पादन के बदले में नहीं दिए जाते हैं| यह केवल आय का हस्तांतरण होता है| इसिलिए, इनको कुल राष्ट्रीय आय में से घटा दिया जाता है| दूसरी ओर, शुद्ध राष्ट्रीय आय में सरकार द्वारा दी जानेवाली आर्थिक सहायता तथा विदेशी निवेश से प्राप्त शुद्ध ब्याज या लाभ की रकम जोड़ दी जाती है| अतः, शुद्ध राष्ट्रीय आय=कुल राष्ट्रीय आय-(प्रत्यक्ष एवं अप्रत्यक्ष+सरकारी उपक्रमों की आय+दान एवं उपहार) +(सरकार द्वारा प्रदान की गई आर्थिक सहायता+विदेशी निवेश से प्राप्त शुद्ध ब्याज या लाभ) 
16. साधन लागत एवं बाजार के रूप में राष्ट्रीय आय का अर्थ स्पष्ट करें|
उत्तर:-
कुल राष्ट्रीय उत्पादन को प्राप्त करने में उत्पादन के साधनों के पारिश्रमिक के अतिरिक्त कुछ और भी व्यय होता है| मशीन, यंत्र, कारखाने का भवन अनंत काल तक नहीं बने रहेंगे| उनकी समय समय पर मरम्मत करानी पड़ती है या उन्हें बदलना पडता है| अत:, कुल राष्ट्रीय उत्पादन में से घिसावट आदि खर्च निकाल देने के बाद जो शेष बचता है, शुद्ध राष्ट्रीय उत्पादन है| उत्पादन के विभिन्न साधनों के बीच इसी का वितरण किया जाता है| किसी देश के शुद्ध राष्ट्रीय उत्पादन को वर्तमान उत्पादन के साधन लागत के रूप में अथवा वर्तमान उत्पादन के बाजार मूल्य के रूप में व्यक्त किया जा सकता है| जब शुद्ध राष्ट्रीय उत्पादन को वर्तमान उत्पादन के साधन लागत के रूप में व्यक्त किया जाता है तब उसे साधन लागत के रूप में राष्ट्रीय आय कहते हैं| यह उत्पादन के साधनों को दिए जानेवाले पारिश्रमिक या लागत के बराबर होता है| लेकिन, वस्तुएँ और सेवाएँ बाजार में साधनों के लागत मूल्य पर नहीं बिकती है| इनके बाजार मूल्य में कुछ अन्य तत्व भी शामिल रहते हैं| ये तत्व है अप्रत्यक्ष कर तथा सरकारी सहायता| उदाहरण के लिए, यदि हम बाजार में 10 रुपये में सिगरेट का एक पैकेट खरीदते हैं तो उसमें दो तिहाई उत्पादन के साधनों की लागत रहती है और शेष एक तिहाई सरकार द्वारा लगाया गया अप्रत्यक्ष कर होता है| इस प्रकार, स्पष्ट है कि बाजार मूल्य में साधनों की लागत के अलावा अप्रत्यक्ष कर की रकम भी शामिल रहती है| इसी प्रकार, एक व्यापारी किसान से बाजार मूल्य पर 500 रुपये प्रति क्विंटल गेहूँ खरीदता है, परंतु उसकी साधन लागत 525 रुपये प्रति क्विंटल हो सकती है| लागत से कम मूल्य पर बेचने में भी किसान को कोई घाटा इसिलिए नहीं होगा, क्योंकि 25 रुपये की अतिरिक्त लागत उसे सरकार से सहायता के रूप में मिल जाती है| इस प्रकार, 
(1) कुल राष्ट्रीय उत्पादन- घिसावट एवं प्रतिस्थापन व्यय= शुद्ध राष्ट्रीय उत्पादन= साधन लागत के रूप में राष्ट्रीय आय
(2) बाजार मूल्य के रूप में राष्ट्रीय आय– अप्रत्यक्ष कर+ सरकारी सहायता= साधन लागत के रूप में राष्ट्रीय आय
17. कुल राष्ट्रीय उत्पादन से आप क्या समझते हैं? 
उत्तर:-
किसी भी देश में एक वर्ष के अंतर्गत जिन वस्तुओं और सेवाओं का उत्पादन होता है उनके मौद्रिक मूल्य को कुल राष्ट्रीय उत्पादन कहा जाता है| दूसरे शब्दों में, एक वर्ष के अंदर जिन वस्तुओं और सेवाओं का अंतिम रूप में उत्पादन तथा विनिमय होता है उनके बाजार मूल्य को हम कुल राष्ट्रीय उत्पादन कहते हैं| यहाँ यह ध्यान में रखना चाहिए कि कुल राष्ट्रीय उत्पादन में केवल वे ही वस्तुएँ सम्मिलित हैं जो उपभोक्ताओं द्वारा प्रत्यक्ष अथवा अंतिम रूप में उपभोक्ता की जाती है| उदाहरण के लिए, कपड़ा अंतिम वस्तु है जिसका उपभोग के लिए प्रत्यक्ष रूप से प्रयोग किया जाता है, किंतु कपास या सूत अंतिम वस्तु नहीं है| इस प्रकार, कुल राष्ट्रीय उत्पादन को मापने में वस्तुओं और सेवाओं की गणना एक ही बार होनी चाहिए| दूसरी ध्यान देने की बात है कि कुल राष्ट्रीय उत्पादन में केवल चालू वर्ष में उत्पादित वस्तुओं और सेवाओं का मौद्रिक मूल्य ही शामिल रहता है| इसका कारण है कि कुल राष्ट्रीय उत्पादन एक निश्चित अवधि में ही देश के संपूर्ण उत्पादन की माप है| उदाहरण के लिए, यदि किसी वस्तु का उत्पादन 2008 में हुआ है, लेकिन वह 2009 तब बिक नहीं हो पाई तब उस वस्तु की गणना 2009 के राष्ट्रीय उत्पादन में नहीं होगी| अत:, कुल राष्ट्रीय उत्पादन किसी भी एक वर्ष के अंतर्गत व्यक्तियों, संस्थाओं तथा सरकारी उपक्रमों द्वारा उत्पादित समस्त वस्तुओं का योगफल होता है|
18. शुद्ध राष्ट्रीय उत्पादन क्या है? 
उत्तर:-
जब हम कुल राष्ट्रीय उत्पादन का उल्लेख करते हैं तब हमारा अभिप्राय किसी भी वर्ष के अंतर्गत उत्पादित सभी वस्तुओं और सेवाओं से होता है| लेकिन, इस कुल राष्ट्रीय उत्पादन को प्राप्त करने में कुछ खर्च करना पड़ता है| इस प्रकार, कुल राष्ट्रीय उत्पादन में से खर्च की इन मदों को घटाने के बाद जो शेष बचता है, वह शुद्ध राष्ट्रीय उत्पादन है तथा उत्पादन के विभिन्न साधनों के बीच इसी का वितरण होता है|  शुद्ध राष्ट्रीय उत्पादन को जानने के लिए कुल उत्पादन में से निम्नलिखित मदों पर किए गए व्यय घटा दिए जाते हैं——
चल पूंजी का प्रतिस्थापन व्यय—-
उत्पादन की क्रिया को जारी रखने के लिए बार बार चल पूंजी खरीदनी पड़ती है, क्योंकि इस प्रकार की पूंजी एक ही बार के प्रयोग से समाप्त हो जाती है| अतः शुद्ध राष्ट्रीय उत्पादन की गणना के लिए उत्पादित संपत्ति में से कच्चे माल की कीमत घटाना आवश्यक है|
अचल पूंजी की घिसावट—–
अचल पूंजी, अर्थात मशीनों, यंत्रों आदि का उत्पादन में प्रयोग होने पर उनमें घिसावट होती है, उनकी मरम्मत वगैरह पर खर्च करना पड़ता है तथा एक निश्चित अवधि के बाद उन्हें बदलना पड़ता है| उदाहरण के लिए, यदि एक मशीन का मूल्य 10000 रुपये है और उसकी आयु 10 वर्ष है, तब एक वर्ष के उत्पादन को प्राप्त करने में उस मशीन की 1000 रुपये मूल्य के बराबर घिसावट होती है| इस प्रकार के व्यय कुल उत्पादन में से घटा दिए जाते हैं|
कर एवं बीमा व्यय——
उत्पादकों को केंद्रीय, प्रांतीय तथा स्थानीय अधिकारियों को विभिन्न प्रकार के कर देने पड़ते हैं| उत्पादक एवं व्यावसायिक संस्थान प्रायः दुर्घटना आदि से सुरक्षा के लिए बीमा भी कराते हैं| शुद्ध राष्ट्रीय उत्पादन की गणना करने में कुल उत्पादन में से कर तथा बीमा के रूप में दी गई रकम को भी घटा दिया जाता है| अतः  शुद्ध राष्ट्रीय उत्पादन=कुल राष्ट्रीय उत्पादन- चल पूंजी का प्रतिस्थापन व्यय+ अचल पूंजी की घिसावट आदि का व्यय तथा कर एवं बीमा व्यय
19. सकल घरेलू उत्पाद तथा सकल राष्ट्रीय उत्पाद में अंतर कीजिये——
उत्तर:-
सकल अथवा कुल घरेलू उत्पाद एक देश की भौगोलिक सीमाओं के अंदर एक लेखा वर्ष में उत्पादित अंतिम वस्तुओं और सेवाओं का मौद्रिक मूल्य है| कुल राष्ट्रीय उत्पाद का आकलन भी किसी एक वर्ष में उत्पादित अंतिम वस्तुओं और सेवाओं के बाजार मूल्य के आधार पर किया जाता है| परंतु इसमें विदेशों से प्राप्त आय भी सम्मिलित होती है| कुल घरेलू उत्पादन तथा कुल राष्ट्रीय उत्पादन के अंतर को समझने के लिए एक बंद अर्थव्यवस्था एवं खुली अर्थव्यवस्था के अंतर को जानना आवश्यक है| एक बंद अथवा आत्मनिर्भर अर्थव्यवस्था वह है जिसका विदेशियों से कोई आर्थिक संबंध नहीं होता है| एक बंद अर्थव्यवस्था उस कमरे के समान होती है जिसमें सभी दरवाजे और खिड़कियाँ बंद होती है| इसकी आर्थिक क्रियाओं का शेष विश्व पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता है| इस प्रकार की अर्थव्यवस्था में घरेलू उत्पादन तथा राष्ट्रीय उत्पादन की धारणा को समझना अत्यंत सरल है| यदि देश के प्राकृतिक साधनों पर श्रम और पूंजी लगाकर उनका उपयोग किया जाए, तब प्रतिवर्ष एक निश्चित मात्रा में वस्तुओं और सेवाओं का उत्पादन होता है| यह सकल या कुल घरेलू उत्पादन है| एक बंद अर्थव्यवस्था में कुल घरेलू उत्पादन तथा कुल राष्ट्रीय उत्पादन के बीच कोई अंतर नहीं होता है| परंतु, वर्तमान समय में प्रायः सभी अर्थव्यवस्थाएँ खुली हुई है| इस प्रकार की अर्थव्यवस्थाओं के कुल घरेलू उत्पादन और कुल राष्ट्रीय उत्पादन में निम्नलिखित अंतर होता है——-
(1) यह देश अपने और यहाँ उत्पादित वस्तुओं को विदेशों में भी बेचता है, जिसे निर्यात कहते हैं| इसी प्रकार, वह वस्तुएँ और सेवाएँ विदेशों से खरीदता है अथवा आयात करता है| इसके कुल राष्ट्रीय उत्पादन में इन दोनों का अंतर शामिल रहता है|
(2) यदि देश में विदेशी पूंजी लगी हुई है, तब कुल सूद और लाभ का एक अंश विदेशों को चला जाता है| इसी प्रकार, विदेशों में निवेश की गई पूंजी पर इस देश को सूद तथा लाभ प्राप्त होता है|
(3) यह देश विदेशों को ऋण दे सकता है या उनसे ऋण ले सकता है| इन दोनों के अंतर को शुद्ध विदेशी ऋण कहते हैं|
(4) यह देश अन्य देशों से उपहार प्राप्त कर सकता है तथा उन्हें उपहार दे सकता है| इस प्रकार, कुल राष्ट्रीय उत्पाद= कुल घरेलू उत्पाद+ (निर्यात-आयात) + विदेशी निवेश से प्राप्त शुद्ध आय+ शुद्ध विदेशी ऋण+ विशुद्ध उपहार
20. आय से आप क्या समझते हैं? 
उत्तर:-
जब कोई व्यक्ति शारीरिक अथवा मानसिक कार्य करता है और उस कार्य के बदले उसे पारिश्रमिक प्राप्त होती है, तो उसे आय कहते हैं| उदाहरण—- मजदूर के कार्य के बदले दिया गया पारिश्रमिक
दीर्घ उत्तरीय प्रश्न




1. राष्ट्रीय आय की परिभाषा दीजिये| अल्फ्रेड मार्शल, प्रो० पीगू तथा प्रो० फिशर की राष्ट्रीय आय की परिभाषाओं में क्या अंतर है? 
उत्तर:- 
किसी देश के अंदर एक निश्चित अवधि में उत्पादित समस्त वस्तुओं और सेवाओं का मौद्रिक मूल्य राष्ट्रीय आय है| दूसरे शब्दों में एक वर्ष में किसी देश में अर्जित आय की कुल मात्रा को राष्ट्रीय आय कहते हैं| राष्ट्रीय आय के संबंध में विभिन्न अर्थशास्त्रियों ने अपने अपने विचार प्रकट किए हैं, इनमें मार्शल, पीगू तथा फिशर का विचार राष्ट्रीय आय के निर्धारण में महत्वपूर्ण है;परन्तु इनके विचारों में भी निम्नलिखित विभिन्नताएँ देखने को मिलती है——-
पीगू के अनुसार, “राष्ट्रीय लाभांश किसी समाज की वास्तविक आय का वह भाग है जिसमें विदेशों से प्राप्त आय भी सम्मिलित हैं, जिसे मुद्रा के रूप में मापा जा सकता है|” मार्शल के विचारों से पीगू ने सहमति जताई है और उत्पादित संपत्ति को ही राष्ट्रीय आय का आधार माना है| परन्तु पीगू ने केवल उन्हीं वस्तुओं और सेवाओं को राष्ट्रीय आय में सम्मिलित किया है, जिनका विनिमय होता है, अर्थात जिनका मापन मुद्रा द्वारा हो सके| मार्शल और पीगू के ठीक विपरीत फिशर ने उत्पादन की अपेक्षा उपभोग को राष्ट्रीय आय का आधार माना है| प्रो० फिशर के अनुसार—-“वास्तविक राष्ट्रीय आय वार्षिक शुद्ध उत्पादन का वह भाग है जिसका उस वर्ष में प्रत्यक्ष रूप से उपभोग किया जाता है|” 
2. राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था में मुद्रा के चक्रीय प्रवाह की विवेचना कीजिये|
उत्तर:-
आधुनिक समय में राष्ट्रीय आय की धारणा को प्रायः उत्पादन के साधनों की आय के रूप में व्यक्त किया जाता है तथा इसकी उत्पत्ति अर्थव्यवस्था में वस्तुओं और सेवाओं की उत्पादन प्रक्रिया में होती है| राष्ट्रीय आय की अवधारणा का स्पष्ट ज्ञान प्राप्त करने के लिए अर्थव्यवस्था में आय के चक्रीय प्रवाह को समझना अत्यंत आवश्यक है| आय एक प्रवाह है तथा इसका सृजन उत्पादक क्रियाओं द्वारा होता है| यद्यपि सभी प्रकार की आर्थिक क्रियाओं का अंतिम उद्देश्य उपभोग द्वारा मानवीय आवश्यकताओं की संतुष्टि है, लेकिन उत्पादन के बिना उपभोग संभव नहीं होगा| वस्तुओं और सेवाओं का उत्पादन, उत्पादन के चार साधनों—- भूमि, श्रम, पूंजी एवं उद्यम के सहयोग से होता है| उत्पादन के ये साधन एक निश्चित अवधि में विभिन्न प्रकार की वस्तुओं और सेवाओं का उत्पादन करते हैं| यह उत्पादन प्रक्रिया का पक्ष है| परन्तु, इसका एक दूसरा महत्वपूर्ण पक्ष भी है जिसका संबंध उत्पादन के उन साधनों की आय या पारिश्रमिक से है जिन्होंने इन वस्तुओं और सेवाओं का उत्पादन किया है| इस प्रकार, उत्पादन प्रक्रिया के द्वारा अर्थव्यवस्था में जहाँ एक ओर वस्तुओं और सेवाओं का निरंतर एक प्रवाह जारी रहता है वहाँ एक दूसरा प्रवाह उत्पादन के साधनों की आय के रूप में होता है| यदि हम किसी देश की अर्थव्यवस्था को उत्पादक उद्योगों एवं उपभोक्ता परिवारों के दो क्षेत्र में विभक्त कर दें तो हम देखेंगे कि इनके बीच उत्पादन, आय एवं व्यय का निरंतर एक प्रवाह चल रहा है| उत्पादक या उसकी वस्तुओं का उत्पादन करते हैं| इसके लिए उन्हें उत्पादन के साधनों की सेवाओं की आवश्यकता होती है| इस प्रकार, उत्पादन के क्रम में साधनों की आय का सृजन होता है| उत्पादक उत्पादन के साधनों को उत्पादन क्रिया में भाग लेने के लिए उन्हें जो भुगतान करता है वह उनकी आय कहलाती है| परंतु, किसी भी उत्पादक को उत्पादन के साधनों के पारिश्रमिक का भुगतान करने के लिए आवश्यक साधन कहाँ से प्राप्त होते हैं? वह अपनी उत्पादित वस्तुओं को उपभोक्ता परिवारों के हाथ बेचता है जिससे उसे आय प्राप्त होती है| इसी आय से वह इन साधनों का पारिश्रमिक चुकाता है| विभिन्न उपभोक्ता परिवार ही उत्पादन के साधनों के स्वामी होते हैं तथा उत्पादन के साधन के रूप में उन्हें लगान मजदूरी, ब्याज एवं लाभ प्राप्त होता है| यह उनकी आय होती है| इस आय को पुनः वस्तुओं और सेवाओं पर खर्च करते हैं| इस प्रकार, हम देखते हैं कि अर्थव्यवस्था में उत्पादकों से साधन आय के रूप में आय का चक्रीय प्रवाह उपभोक्ता परिवारों के पास पहुंचता है और पुनः इन परिवारों द्वारा वस्तुओं और सेवाओं पर किए जाने वाले व्यय के माध्यम से उत्पादकों के पास आ जाता है| आय का यह प्रवाह निरंतर जारी रहता है तथा इसे आय का चक्रीय प्रवाह कहते हैं|
3. कुल राष्ट्रीय आय की धारणा कुल राष्ट्रीय उत्पादन की धारणा पर आधारित है| व्याख्या करें—-
उत्तर:-
कुल राष्ट्रीय उत्पादन एक वर्ष के अंतर्गत जिन वस्तुओं और सेवाओं का उत्पादन होता है उनके मौद्रिक मूल्य को कहते हैं| कुल राष्ट्रीय उत्पादन में केवल चालू वर्ष में उत्पादित वस्तुओं और सेवाओं का मौद्रिक मूल्य ही शामिल रहता है| कुल राष्ट्रीय आय की धारणा कुल राष्ट्रीय उत्पादन की धारणा पर आधारित है| क्योंकि हम जानते हैं कि अर्थव्यवस्था में उत्पादन प्रवाह के द्वारा आय के प्रवाह का निर्माण होता है| कुल राष्ट्रीय उत्पादन का प्रवाह ही कुल राष्ट्रीय आय का प्रवाह उत्पन्न करता है| इसलिए उत्पादन के साधनों द्वारा अर्जित आय राष्ट्रीय उत्पादन की सृष्टि करते हैं जो कुल राष्ट्रीय आय के बराबर होता है| इस प्रकार, कुल राष्ट्रीय आय और कुल राष्ट्रीय उत्पादन दोनों समान होते हैं| तथा इनमें कोई मौलिक अंतर नहीं है| इस तरह कुल राष्ट्रीय की धारणा कुल राष्ट्रीय उत्पादन की धारणा पर आधारित है|
4. राष्ट्रीय आय की परिभाषा दीजिये तथा इसे मापने के तरीका की विवेचना कीजिये—-
उत्तर:-
किसी भी देश में एक वर्ष के अंतर्गत जिन वस्तुओं और सेवाओं का उत्पादन होता है उनके मौद्रिक मूल्य को राष्ट्रीय आय कहते हैं| राष्ट्रीय आय में विदेशों से प्राप्त होने वाली आय भी सम्मिलित होती है| राष्ट्रीय आय की धारणा उत्पादन आय एवं व्यय तीनों दृष्टियों से विचार किया जाता है| इन्हीं विचारों के अनुरूप राष्ट्रीय आय की माप या गणना करने के तीन मुख्य तरीके हैं, जो निम्नलिखित हैं——
उत्पत्ति गणना पद्धति——
इसका सर्वप्रथम प्रयोग ब्रिटेन में किया गया था| उतपति गणना पद्धति के अंतर्गत देश की अर्थव्यवस्था को विभिन्न क्षेत्रों में बांट दिया जाता है तथा सभी क्षेत्रों द्वारा एक वर्ष के अंतर्गत उत्पादित सभी वस्तुओं और सेवाओं के बाजार मूल्य तथा शुद्ध निर्यात को जोड़कर कुल उत्पादन एवं राष्ट्रीय आय का पता लगाया जाता है| उत्पत्ति गणना पद्धति के साथ सबसे बड़ी समस्या यह है कि राष्ट्रीय आय की गणना करने में प्रायः दोहरी गणना की संभावना रहती है| उदाहरण के अंतर्गत चीनी में गन्ने का मूल्य भी शामिल हैं, यदि हम दोनों की कीमत अलग अलग जोड़े तो दोहरी गणना की संभावना उत्पन्न हो जाती है|
आय गणना पद्धति—–
आय गणना पद्धति के अनुसार किसी देश के सभी नागरिकों और व्यवसाय संस्थाओं की आय की गणना की जाती है तथा उनकी शुद्ध आय के योगफल को राष्ट्रीय आय कहा जाता है| यह पद्धति विकसित देशों में उपयुक्त है|
व्यय गणना पद्धति—–
इस विधि में वस्तुओं और सेवाओं पर किए गए अंतिम व्यय को मापने का प्रयास किया जाता है| इसमें निजी उपभोग व्यय सरकारी व्यय घरेलू निजी निवेश तथा वस्तुओं और सेवाओं के शुद्ध निर्यात को जोड़कर राष्ट्रीय आय की गणना की जाती है| यह प्रणाली अधिक लोकप्रिय नहीं है, क्योंकि व्यय संबंधी सही जानकारी कठिन है|
5. किसी देश के आर्थिक विकास में राजकीय, राष्ट्रीय एवं प्रतिव्यक्ति आय का क्या प्रदान होता है? 
उत्तर:- राजकीय आय का अभिप्राय राज्य अथवा सरकार को प्राप्त होनेवाली समस्त आय से है| आधुनिक सरकारों का उद्देश्य देश में लोककल्याणकारी कार्यों को कर आर्थिक विकास करना है| स्पष्ट है कि राजकीय आय अधिक होने पर ही सरकार विकास कार्यों में अधिक योगदान कर सकती है| अर्द्ध वकसित एवं विकास शील अर्थव्यवस्थाओं में सरकार के सहयोग से ही सुदृढ़ आर्थिक संरचना का निर्माण किया जा सकता है| आर्थिक विकास का राष्ट्रीय आय से घनिष्ठ संबंध है| देश के आर्थिक विकास के लिए राष्ट्रीय आय में वृद्धि आवश्यक है| सामान्यता राष्ट्रीय आय में वृद्धि होने पर देशवासियों की प्रतिव्यक्ति आय भी बढ़ती है|  इस प्रकार राष्ट्रीय एवं प्रतिव्यक्ति आय में वृद्धि होने पर देशवासियों के जीवन स्तर में सुधार होता है जो देश के आर्थिक विकास का सूचक है| इस प्रकार किसी भी देश के आर्थिक विकास में राजकीय, राष्ट्रीय एवं प्रतिव्यक्ति आय का महत्वपूर्ण योगदान होता है| ये तीनों ही हमारे आर्थिक जीवन रहन सहन के स्तर और विकास को प्रभावित करते हैं| 
6. राष्ट्रीय आय की परिभाषा दीजिये| इसकी कौन सी परिभाषा सबसे उपयुक्त है? 
उत्तर:-
आधुनिक अर्थशास्त्र का अध्ययन राष्ट्रीय आय की धारणा से संबद्ध है| राष्ट्रीय आय का स्तर किस प्रकार निर्धारित होता है, किन कारणों से इसमें परिवर्तन होते हैं तथा इसमें वृद्धि या कमी के क्या कारण है, ये अत्यंत महत्वपूर्ण है|राष्ट्रीय आय की मुख्यतः तीन परिभाषाएँ दी जाती है—-
मार्शल की परिभाषा——-
अलफ्रेड मार्शल के अनुसार, ” किसी देश का श्रम और पूंजी उसके प्राकृतिक साधनों पर क्रियाशील होकर प्रतिवर्ष वस्तुओं का एक शुद्ध समूह उत्पन्न करते हैं, जिसमें भौतिक और अभौतिक पदार्थ तथा सभी प्रकार की सेवाएँ सम्मिलित रहती है| यह देश की वास्तविक विशुद्ध वार्षिक आय या राष्ट्रीय लाभांश है|” The labour and capital of a country acting on its natural resources produce annually a certain net aggregate of commodities, material and immaterial including services of all kinds. This is the true net income or revenue of the country or the national dividend. 
इस प्रकार, मार्शल के अनुसार, देश के प्राकृतिक साधनों पर श्रम और पूंजी का प्रयोग करने से प्रतिवर्ष वस्तुओं और सेवाओं का एक समूह पैदा होता है, जिसे कुल उत्पत्ति कहते हैं| लेकिन, यह कुल उत्पादन विशुद्ध राष्ट्रीय आय नहीं है, क्योंकि इसे प्राप्त करने में मशीनों आदि की घिसावट के रूप में पिछली आय का भी कुछ अंश खर्च हुआ है| इसिलिए एक वर्ष के उत्पादन में अचल पूंजी की घिसावट, प्रतिस्थापन व्यय आदि निकालने के बाद जो शेष बचता है, वह उस वर्ष की राष्ट्रीय आय है|
प्रो० पीगू की परिभाषा—–
प्रो० पीगू के अनुसार, ” राष्ट्रीय लाभांश किसी समाज की वास्तविक आय का वह भाग है जिसमें विदेशों से प्राप्त आय भी सम्मिलित हैं, जिसे मुद्रा के रूप में मापा जा सकता है|
National dividend is that part of the objective income of community, including of course, income derived abroad which can be measured in money. 
मार्शल की तरह पीगू ने भी उत्पादित संपत्ति को ही राष्ट्रीय आय का आधार माना है, लेकिन इन्होंने केवल उन्हीं वस्तुओं तथा सेवाओं को राष्ट्रीय आय में सम्मिलित किया है जिनका विनिमय होता है, अर्थात जिन्हें मुद्रा मापा जा सकता है|
प्रो० फिशर की परिभाषा——-
प्रो० फिशर के अनुसार, वास्तविक राष्ट्रीय आय वार्षिक शुद्ध उत्पादन का वह भाग है जिसका उस वर्ष में प्रत्यक्ष रूप से उपभोक्ता किया जाता है| 
The true national income is that part of annual net produce which is directly consumed during that year. 
इस प्रकार, मार्शल और पीगू के ठीक विपरीत फिशर ने उत्पादन की अपेक्षा उपभोग को राष्ट्रीय आय का आधार माना है| इनके अनुसार, उत्पादित वस्तुओं में कुछ पूंजीगत वस्तुएँ भी होती है| अत: केवल उन्हीं वस्तुओं की राष्ट्रीय आय में गणना होनी चाहिए जिनका उस वर्ष में उपभोग होता है| इस प्रकार, विभिन्न अर्थशास्त्रियों ने राष्ट्रीय आय की धारणा पर अलग अलग दृष्टिकोण से विचार किया है| लेकिन, इनमें मार्शल की परिभाषा ही सबसे सरल एवं उपयुक्त जान पड़ती है| फिशर की परिभाषा अधिक निश्चित होते हुए भी व्यावहारिक दृष्टि से दोषपूर्ण है क्योंकि एक वर्ष के अंतर्गत उपभोग की जानेवाली वस्तुओं की गणना का कार्य बहुत कठिन है| इसी प्रकार, पीगू ने वस्तुओं और सेवाओं के बीच एक कृत्रिम विभाजन कर दिया है| इनके अनुसार, जिन वस्तुओं या सेवाओं का विनिमय नहीं होता तथा जिनके लिए कोई भुगतान नही किया जाता है, उनकी राष्ट्रीय आय में गणना नहीं होगी| अतः मार्शल की परिभाषा ही अधिक व्यापक तथा व्यावहारिक है| 
7. राष्ट्रीय आय को मापने या उसकी गणना करने की कौन कौन सी विधियाँ है? उनका संक्षेप में उल्लेख करें|
उत्तर:-
एक अर्थव्यवस्था में वस्तुओं और सेवाओं के उत्पादन के साथ ही आय का सृजन होता है| इस आय को हम पुनः वस्तुओं और सेवाओं पर व्यय करते हैं| इस प्रकार, हम राष्ट्रीय आय को वस्तुओं एवं सेवाओं के प्रवाह, आय प्रवाह तथा व्यय प्रवाह के रूप में व्यक्त कर सकते हैं| इन्हीं धारणाओं के अनुरूप राष्ट्रीय आय की माप या गणना करने की भी निम्नलिखित मुख्य विधियाँ है—-
उत्पत्ति गणना पद्धति—–
इस तरीके का प्रयोग सर्वप्रथम 1907 में ब्रिटेन में किया गया था| उत्पत्ति या उत्पादन गणना पद्धति के अंतर्गत देश की अर्थव्यवस्था को कृषि, उद्योग, व्यापार, परिवहन आदि क्षेत्रों में बांट दिया जाता है| इसके पश्चात इन सभी क्षेत्रों द्वारा एक वर्ष के अंतर्गत उत्पादित सभी वस्तुओं और सेवाओं के बाजार मूल्य तथा शुद्ध निर्यात को जोड़कर कुल उत्पादन एवं राष्ट्रीय आय का पता लगाया जाता है| परंतु, इस विधि द्वारा राष्ट्रीय आय की गणना करने में प्रायः दोहरी गणना की संभावना रहती है| उदाहरण के लिए, चीनी के मूल्य में गन्ने का मूल्य भी शामिल हैं| यदि हम इन दोनों के मूल्य को राष्ट्रीय आय में जोड़ देते हैं तो एक ही वस्तु की दोबारा गणना हो जाएगी| अतः उत्पादित वस्तुओं और सेवाओं के मूल्य की माप के लिए कयी बार मूल्य योग विधि का प्रयोग किया जाता है| इस विधि के अनुसार, यह आकलन किया जाता है कि उत्पादन की विभिन्न इकाइयों ने प्रत्येक स्तर पर किसी वस्तु के मूल्य में कितनी वृद्धि की है| इससे राष्ट्रीय आय में एक ही वस्तु के दोबारा गणना होने की संभावना नही रहती है|
आय गणना पद्धति—-
इस विधि के अनुसार, देश के सभी नागरिकों और व्यावसायिक संस्थाओं की आय गणना की जाती है तथा उनकी शुद्ध आय के योगफल को राष्ट्रीय आय कहा जाता है| लेकिन, यह पद्धति एक ऐसे देश के लिए अधिक उपयुक्त है जहाँ अधिकांश व्यक्ति आयकर चुकाते है| इस स्थिति में उनकी आय का वितरण आसानी से प्राप्त होता है| परंतु, इस तरीके का प्रयोग करने में भी इस बात का ध्यान रखना आवश्यक है कि एक ही आय को दोबारा नहीं गिन लिया जाए|
व्यय गणना पद्धति—–
यह विधि एक वर्ष के अंतर्गत वस्तुओं एवं सेवाओं पर किए गए अंतिम व्यय को मापने का प्रयास करती है| इसमें निजी उपभोग व्यय, सरकारी व्यय, निजी घरेलू निवेश तथा वस्तुओं और सेवाओं के शुद्ध निर्यात को जोड़कर राष्ट्रीय आय की गणना की जाती है| लेकिन, यह प्रणाली अधिक लोकप्रिय नहीं है, क्योंकि व्यय संबंधी सही जानकारी प्राप्त करना बहुत कठिन है|
8. राष्ट्रीय आय की गणना का महत्व बताएं—-
उत्तर:-
राष्ट्रीय आय संबंधी आंकड़े कयी दृष्टियों से महत्वपूर्ण है| इनसे हमें किसी देश की अर्थव्यवस्था के कार्य संपादन तथा वर्तमान स्थिति का ज्ञान प्राप्त होता है| राष्ट्रीय आय का विवेचना निम्नलिखित कारणों से महत्वपूर्ण है——
आर्थिक विकास का मापदंड——-
राष्ट्रीय आय किसी देश के आर्थिक विकास एवं प्रगति का मापदंड होता है| यदि देश के कुल उत्पादन तथा राष्ट्रीय आय में वृद्धि हो रही है तो सामान्यतः इसका अर्थ यह होगा कि अरे विकास की दिशा में अग्रसर है|
जीवन स्तर की जानकारी—–
राष्ट्रीय आय के अध्ययन से देशवासियों के जीवन स्तर की भी जानकारी प्राप्त होती है| राष्ट्रीय आय में वृद्धि होने पर प्रतिव्यक्ति आय बढ़ती है| इसके फलस्वरूप देशवासियों का जीवन स्तर भी बढ़ता है| इस प्रकार राष्ट्रीय आय आर्थिक कल्याण को प्रभावित करती है| जैसा कि प्रो० हेबरलर ने कहा है, अन्य बातों के समान रहने पर, राष्ट्रीय आय के अधिक होने से आर्थिक कल्याण भी अधिक होता है|
अर्थव्यवस्था के विभिन्न क्षेत्रों का ज्ञान—-
राष्ट्रीय आय के माध्यम से हमें यह पता चलता है कि कृषि, उद्योग, व्यापार आदि अरे के विभिन्न क्षेत्रों में क्या परिवर्तन हुए हैं तथा देश की कुल राष्ट्रीय आय में उनका क्या योगदान है|
समाज में धन का वितरण—-
राष्ट्रीय आय से इस बात का भी पता चलता है कि देश में उत्पादित आय एवं संपत्ति का वितरण किस प्रकार हुआ है| राष्ट्रीय आय में वृद्धि होने पर भी यदि समाज में आय का वितरण असमान है तो अधिकांश लोगों के जीवन स्तर में सुधार नही होगा|
आर्थिक नीति निर्धारण—–
देश की आर्थिक नीति के निर्धारण में भी राष्ट्रीय आय की भूमिका महत्वपूर्ण है| राष्ट्रीय आय की गणना में एकत्र किए जाने वाले आंकड़ों के आधार पर ही सरकार बजट बनाती है तथा रोजगार, कर, सार्वजनिक व्यय तथा मुद्रा एवं साख नीति का निर्माण करती है|
तुलनात्मक अध्ययन—–
तुलनात्मक आर्थिक विवेचन के लिए भी राष्ट्रीय आय का अध्ययन आवश्यक है| विभिन्न देशों की आर्थिक व्यवस्थाओं, उनके कार्य संपादन तथा लोगों के रहन सहन के स्तर का तुलनात्मक अध्ययन राष्ट्रीय आय के द्वारा ही संभव है|
आर्थिक नियोजन—–
राष्ट्रीय आय संबंधी आंकड़े के अभाव में आर्थिक नियोजन की कल्पना भी नहीं की जा सकती है| विकास योजनाओं का निर्माण तथा योजना के लक्ष्यों को निर्धारित करने के लिए आय, उपभोग, बचत एवं निवेश संबंधी विश्वसनीय आंकड़े अत्यावश्यक है|
9. किसी देश के आर्थिक विकास में राजकीय, राष्ट्रीय एवं प्रतिव्यक्ति आय का क्या योगदान होता है? 
उत्तर:-
किसी भी देश के आर्थिक विकास में राजकीय, राष्ट्रीय एवं प्रतिव्यक्ति आय का महत्वपूर्ण योगदान होता है| ये तीनों ही हमारे आर्थिक जीवन, रहन सहन के स्तर तथा विकास को प्रभावित करते हैं| राजकीय आय का अभिप्राय राज्य अथवा सरकार को प्राप्त होनेवाले आय से होता है| प्राचीनकाल में सरकार का कार्य देश को विदेशी आक्रमण से बचाना तथा देश के अंदर विधि व्यवस्था कायम रखने तक सीमित था| लेकिन, आधुनिक समय में लोककल्याण की भावना के विकास के साथ ही सरकार का कार्यक्षेत्र बहुत विस्तृत हो गया है| इसके फलस्वरूप आज सभी देशों की सरकारें करों आदि के द्वारा बहुत अधिक आय अथवा धन एकत्र करने का प्रयास करती है तथा इस धन को सुरक्षा, प्रशासन आदि के साथ ही शिक्षा, स्वास्थ्य एवं विकासात्मक कार्यों पर व्यय करती है| स्पष्ट है कि राजकीय आय अधिक होने पर ही सरकार विकास कार्यों में अधिक योगदान कर सकती है| भारतीय अर्थव्यवस्था एक अर्द्ध विकसित अर्थव्यवस्था है| सरकार के सक्रिय सहयोग के बिना इस प्रकार की अर्थव्यवस्था का विकास संभव नहीं है| अर्द्ध विकसित एवं विकासशील अर्थव्यवस्थाओं में संरचनात्मक सुविधाओं का सर्वथा अभाव होता है| पंचवर्षीय योजनाओं के आरंभ होने के समय भारत में भी विद्युत, परिवहन, संचार, सिंचाई आदि सुविधाओं की बहुत कमी थी| निजी उत्पादकों द्वारा इस प्रकार के संरचनात्मक आधार का निर्माण संभव नहीं है| सरकार के सहयोग से ही भारत में सार्वजनिक क्षेत्र ने एक सुदृढ़ आर्थिक संरचना का निर्माण किया है| आर्थिक विकास का राष्ट्रीय आय से घनिष्ठ संबंध है| किसी भी देश के आर्थिक विकास के लिए राष्ट्रीय आय में वृद्धि आवश्यक है| राष्ट्रीय आय में वृद्धि उपभोग एवं विनिमय की वस्तुओं में होनेवाली वृद्धि का परिचायक है| उपभोग की वस्तुओं की आपूर्ति बढ़ने से लोगों का जीवन स्तर ऊंचा होता है| विनियोग की वस्तुएँ आर्थिक विकास की प्रक्रिया को तीव्र बनाने में सहायक होती है तथा इससे हमारी भावी उत्पादन क्षमता बढ़ती है| विकास का मूल उद्देश्य राष्ट्रीय एवं प्रतिव्यक्ति आय में वृद्धि द्वारा देश के नागरिकों के जीवन स्तर को ऊंचा उठाना है| सामान्यतया राष्ट्रीय आय में वृद्धि होने पर देशवासियों की प्रतिव्यक्ति आय भी बढ़ती है| लेकिन इसके लिए राष्ट्रीय आय का समुचित वितरण आवश्यक है| भारत में राष्ट्रीय आय का वितरण बहुत विषय है तथा इसका एक बड़ा भाग कुछ थोड़े से व्यक्तियों के हाथ में केन्द्रीत है| इसके फलस्वरूप देश में व्यापक निर्धनता विद्यमान है तथा अधिकांश भारतवासियों का जीवन स्तर बहुत निम्न हैं| अतः देश के सामान्य नागरिकों की औसत अथवा प्रतिव्यक्ति आय में वृद्धि के लिए राष्ट्रीय आय का समुचित वितरण आवश्यक है|

एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ