अर्थव्यवस्था एवं इसके विकास का इतिहास
अतिलघु उत्तरीय प्रश्न
1. अर्थव्यवस्था क्या है?
उत्तर:-
जीवनयापन के लिए अपनायी गयी आर्थिक व्यवस्था|
2. आर्थिक विकास से आप क्या समझते हैं?
उत्तर:-
उत्पादन एवं आय में होनेवाले वृद्धि से|
3. राष्ट्रीय आय क्या है?
उत्तर:-
एक निश्चित अवधि में उत्पादित समस्त वस्तुओं और सेवाओं का मौद्रिक मूल्य जिसमें विदेशों से प्राप्त होनेवाले आय भी सम्मिलित होते हैं|
4. प्रतिव्यक्ति आय से आप क्या समझते हैं?
उत्तर:-
देश की कुल राष्ट्रीय आय में कुल जनसंख्या से भाग देने पर जो भागफल आता है उसे प्रतिव्यक्ति आय कहते हैं|
5. राष्ट्रीय आय का जनसंख्या से क्या संबंध है?
उत्तर:-
राष्ट्रीय आय का जनसंख्या से आर्थिक विकास में उल्टा संबंध है| राष्ट्रीय आय की अपेक्षा जनसंख्या में वृद्धि होने से प्रतिव्यक्ति आय घट जाएगी और आर्थिक विकास की दर कम हो जाएगी|
6. दो देशों के विकास के स्तर की तुलना करने के लिए सबसे महत्वपूर्ण मापदंड क्या है?
उत्तर:- प्रतिव्यक्ति आय
7. आय के अतिरिक्त कुछ अन्य कारकों के उदाहरण दें जो हमारे जीवन स्तर को प्रभावित करते हैं?
उत्तर:-
उत्पादन, रोजगार, स्वास्थ्य, शिक्षा इत्यादि
8. जीवन की भौतिक गुणवत्ता के तीन प्रमुख सूचक क्या है?
उत्तर:-
जीवन प्रत्याशा, शिशु मृत्यु दर, मौलिक साक्षरता
9. आय के अतिरिक्त विकास के अन्य मापदंड क्या हो सकते हैं?
उत्तर:-
शिशु मृत्यु दर मौलिक साक्षरता तथा विश्व में मानव विकास सूचकांक का क्रमांक
10. मानव विकास सूचकांक में आर्थिक विकास के क्या मापदंड निर्धारित किए गए हैं?
उत्तर:-
शैक्षिक स्तर, स्वास्थ्य स्थिति और प्रतिव्यक्ति आय आर्थिक विकास के मापदंड मानव विकास सूचकांक में है|
11. प्राकृतिक संसाधनों के अतिविदोहन से आप क्या समझते हैं?
उत्तर:-
प्राकृतिक संसाधनों के अतिविदोहन अर्थात वस्तुओं का उत्पादन एवं पर्यावरण प्रदूषण|
12. आर्थिक विकास का स्तर गैर आर्थिक कारकों से किस प्रकार प्रभावित होता है?
उत्तर:-
राजनैतिक, सामाजिक एवं धार्मिक संस्थाएँ गैर आर्थिक कारकों में महत्वपूर्ण है| ये कारक आर्थिक विकास को अप्रत्यक्ष रूप से प्रभावित करते हैं| इन संस्थाओं के प्रतिकूल या अनुकूल रहने की स्थिति में आर्थिक विकास की गति मंद या तेज हो जाती है|
13. किसी राज्य का विकास मुख्यतया किस बात पर निर्भर करता है?
उत्तर:-
शुद्ध राज्य घरेलू उत्पाद किसी राज्य का विकास मुख्यतया आर्थिक कारकों (प्राकृतिक संसाधन, पूंजी निर्माण, तकनीकी विकास, मानवीय संसाधन तथा गैर आर्थिक कारकों राजनैतिक, सामाजिक एवं धार्मिक) पर निर्भर करता है|
14. खनिज संसाधनों की दृष्टि से बिहार की वर्तमान स्थिति क्या है?
उत्तर:-
वर्तमान में सर्वथा अभाव है|
15. बिहार में शिक्षा और स्वास्थ्य सेवाओं का स्तर क्या है?
उत्तर:-
बिहार में शिक्षा और स्वास्थ्य सेवाओं का स्तर अन्य राज्यों से निम्न हैं| यहाँ 2001 में साक्षरता दर 47℅ थी तथा कुपोषण से ग्रस्त बच्चों का अनुपात देश में सबसे अधिक बिहार में है| राज्य की स्वास्थ्य सेवा भी जर्जर अवस्था में है|
16. बिहार में कृषि आधारित उद्योगों के विकास की संभावनाओं का उल्लेख करें—
उत्तर:-
बिहार में उर्वर भूमि एवं जल संसाधन के रूप में प्राकृतिक संसाधनों का विशाल भंडार है| बिहार मसालों, सब्जी तथा फलों के उत्पादन में दूसरे या तीसरे स्थान पर है| इसिलिए राज्य में कृषि आधारित उद्योगों के विकास की संभावनाएँ बहुत अधिक है|
17. अर्थव्यवस्था क्या है?
उत्तर:-
अर्थव्यवस्था जीवनयापन के लिए अपनायी गयी एक आर्थिक व्यवस्था है तथा इस व्यवस्था के अंतर्गत ही मनुष्य के आर्थिक क्रियाकलापों का संपादन होता है|
18. अर्थव्यवस्थाओं के मुख्य प्रकार क्या है?
उत्तर:-
उत्पादन के साधनों के स्वामित्व की दृष्टि से अर्थव्यवस्थाओं के तीन मुख्य प्रकार हैं—–
पूंजीवादी अर्थव्यवस्था, समाजवादी अर्थव्यवस्था तथा मिश्रित अर्थव्यवस्था|
19. विकास के स्तर की दृष्टि से अर्थव्यवस्थाओं के कौन कौन से प्रकार है?
उत्तर:-
विकास के स्तर के आधार पर अर्थव्यवस्थाओं को प्रायः दो वर्गों में विभाजित किया जाता है—- विकसित अर्थव्यवस्था तथा अर्द्ध विकसित या विकासशील अर्थव्यवस्था
20. आर्थिक विकास से आप क्या समझते हैं?
उत्तर:-
आर्थिक विकास वह प्रक्रिया है जिसमें किसी देश या राज्य की प्रतिव्यक्ति वास्तविक आय में एक लंबी अवधि तक वृद्धि होती है|
21. राष्ट्रीय आय क्या है?
उत्तर:-
राष्ट्रीय आय किसी देश के अंदर एक निश्चित अवधि में उत्पादित समस्त वस्तुओं और सेवाओं का मौद्रिक मूल्य है जिसमें विदेशों से प्राप्त होनेवाली आय भी सम्मिलित होती है|
22. प्रतिव्यक्ति आय से आय क्या समझते हैं?
उत्तर:-
किसी देश की कुल राष्ट्रीय आय में कुल जनसंख्या से भाग देने पर जो भागफल आता है| उसे प्रतिव्यक्ति आय कहते हैं|
23. राष्ट्रीय आय का जनसंख्या से क्या संबंध है?
उत्तर:-
यदि एक दिए हुए समय में राष्ट्रीय आय की अपेक्षा जनसंख्या में वृद्धि का अनुपात अधिक है तो प्रतिव्यक्ति आय घट जाएगी और आर्थिक विकास की दर भी कम होगी|
24. दो देशों के विकास के स्तर की तुलना करने के लिए सबसे महत्वपूर्ण मापदंड क्या है?
उत्तर:-
दो देशों के विकास के स्तर की तुलना अथवा माप करने के लिए प्रतिव्यक्ति आय में होनेवाली वृद्धि को सबसे महत्वपूर्ण मापदंड माना गया है|
25. आय के अतिरिक्त कुछ अन्य कारकों के उदाहरण दें जो हमारे जीवन स्तर को प्रभावित करते हैं|
उत्तर:-
आय के अतिरिक्त ऐसे कयी अन्य कारक है जो हमारे जीवन स्तर को प्रभावित करते हैं, जैसे चिकित्सा सुविधाएँ, प्राथमिक तथा माध्यमिक स्तर पर स्कूलों में नामांकन दर, प्रतिव्यक्ति विद्युत एवं इस्पात की खपत, पक्की सड़कों की लंबाई, विद्युतीकृत गाँवों की संख्या, डाकघरों की संख्या
26. जीवन की भौतिक गुणवत्ता के तीन प्रमुख सूचक है?
उत्तर:-
जीवन की भौतिक गुणवत्ता के सूचक को विकसित करने का श्रेय मोरिस डी ० मोरिस नामक अर्थशास्त्री को है तथा इनके अनुसार सूचक—– जीवन प्रत्याशा, शिशु मृत्यु दर, मौलिक साक्षरता
27. मानव विकास सूचकांक में आर्थिक विकास के क्या मापदंड निर्धारित किए गए हैं?
उत्तर:-
संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम द्वारा प्रकाशित प्रतिवेदन में विभिन्न देशों के आर्थिक विकास के स्तर की तुलना के लिए तीन मापदंड निर्धारित किए गए हैं—— नागरिकों का शैक्षिक स्तर, उनकी स्वास्थ्य स्थिति तथा प्रतिव्यक्ति आय
28. सतत विकास से आप क्या समझते हैं?
उत्तर:-
सतत अथवा टिकाऊ विकास वह है जिसमें हम भावी पीढ़ियों की आवश्यकता की क्षमता से कोई समझौता किए बिना अपनी वर्तमान आवश्यकताओं को पूरा करते हैं|
29. प्राकृतिक संसाधनों के अति विदोहन से आप क्या समझते हैं?
उत्तर:-
आर्थिक विकास और औद्योगीकरण की प्रक्रिया में हमारे प्राकृतिक संसाधनों का अत्यधिक दुरूपयोग हुआ है जिसे अति विदोहन की संज्ञा दी जाती है|
30. नवीकरणीय प्राकृतिक संसाधन क्या है?
उत्तर:-
नवीकरणीय प्राकृतिक संसाधन वे है जिनका पुनरुत्पादन संभव है तथा प्रकृति इन साधनों की पुनः पूर्ति करती है, जैसे भूमिगत जल
31. गैर नवीकरणीय संसाधनों से आप क्या समझते हैं?
उत्तर:-
गैर नवीकरणीय संसाधन वे हैं जिनका भंडार सीमित है और जो अनेक वर्षों तक प्रयोग के पश्चात समाप्त हो जा सकते हैं, जैसे कोयला, गैस, पेट्रोलियम
32. आर्थिक विकास के गैर आर्थिक कारकों का उल्लेख करें|
उत्तर:-
आर्थिक विकास का स्तर कयी गैर आर्थिक कारकों से भी प्रभावित होता है तथा इनमें राजनैतिक, सामाजिक एवं धार्मिक संस्थाएँ महत्वपूर्ण है|
33. आर्थिक नियोजन से आप क्या समझते हैं?
उत्तर:-
आर्थिक नियोजन का अभिप्राय राज्य अथवा एक निर्धारित सत्ता द्वारा संपूर्ण आर्थिक एवं सामाजिक व्यवस्था के एक विस्तृत सर्वेक्षण के आधार पर जान बूझकर आर्थिक निर्णय लेना है|
34. भारत में आर्थिक नियोजन का मुख्य उद्देश्य क्या है?
उत्तर:-
भारत में नियोजन का मूल उद्देश्य सामाजिक न्याय के साथ देश का आर्थिक विकास करना है|
35. किसी राज्य के आर्थिक विकास का स्तर मुख्यतया किस बात पर निर्भर करता है?
उत्तर:-
शुद्ध राज्य घरेलू उत्पाद पर निर्भर करता है|
36. खनिज संसाधनों की दृष्टि से बिहार की वर्तमान स्थिति क्या है?
उत्तर:-
विभाजन के पश्चात हमारे राज्य के अधिकांश खनिज संसाधन नवनिर्मित राज्य झारखंड में चले गए हैं और बिहार में इनका सर्वथा अभाव हो गया है|
37. बिहार में साक्षरता का स्तर क्या है?
उत्तर:-
वर्ष 2001 की जनगणना के अनुसार भारत में साक्षरता दर लगभग 65℅ थी जबकि बिहार में 47℅ थी|
38. बिहार की चार व्यावसायिक फसलों के नाम बताऐं|
उत्तर:- गन्ना, जूट, तंबाकू, चाय
39. बिहार में किस प्रकार के खाद्य प्रसंस्करण उद्योगों के विकास की संभावनाएँ है?
उत्तर:-
बिहार में सब्जी, फल तथा मसालों के खाद्य प्रसंस्करण उद्योगों के विकास की संभावनाएँ बहुत अधिक है जिनके उत्पादन में यह देश का एक अग्रणी राज्य है|
40. प्राकृतिक संसाधनों की दृष्टि से बिहार की क्या स्थिति है?
उत्तर:-
बिहार में उर्वर भूमि और जल संसाधन के रूप में प्राकृतिक संसाधनों का विशाल भंडार उपलब्ध है|
41. बिहार की वर्तमान विकास दर क्या है?
उत्तर:-
केंद्रीय सांख्यिकी संगठन की जनवरी 2010 में प्रकशित रिपोर्ट के अनुसार, 2004-05 से 2008-09 के बीच बिहार की विकास दर का औसत 11.03 प्रतिशत रहा है|
42. किसने कहा था कि अर्थव्यवस्था आजीविका अर्जन की एक प्रणाली है|
उत्तर:-
ब्राइन ने
43. समावेशी विकास क्या है?
उत्तर:-
समाज के सभी वर्गों का सामूहिक विकास
लघु उत्तरीय प्रश्न___________
1. एक अर्थव्यवस्था के कार्यों का संक्षेप में उल्लेख करें|
उत्तर:-
एक अर्थव्यवस्था का मुख्य कार्य मानवीय आवश्यकताओं की संतुष्टि के लिए विभिन्न प्रकार की वस्तुओं का उत्पादन करना है| कृषि एवं उद्योग इन सभी प्रकार की भौतिक वस्तु का उत्पादन करते हैं| इन कार्यों के लिए सहायक संरचनाएँ जैसे—- पूंजी, ढांचा, सामाजिक और आर्थिक सहायक या आधार संरचना होती है|
2. राष्ट्रीय आय क्या है? क्या यह दो देशों के विकास के स्तर की तुलना करने के लिए पर्याप्त है?
उत्तर:-
राष्ट्रीय आय किसी देश के अंदर एक निश्चित अवधि में उत्पादित समस्त वस्तुओं और सेवाओं का मौद्रिक मूल्य है जिसमें विदेशों से प्राप्त आय भी सम्मिलित होती है| राष्ट्रीय आयों से देशों के आर्थिक विकास के स्तर की तुलना करना पर्याप्त नहीं है क्योंकि जनसंख्या असामान्य हो सकती है| इसिलिए दो देशों के विकास के स्तर की तुलना करने के स्तर प्रतिव्यक्ति आय का प्रयोग लगातार बढ़ रहा है|
3. विश्व बैंक विभिन्न देशों का वर्गीकरण करने के लिए किस स्तर मापदंड का प्रयोग करता है? इस मापदंड की क्या सीमाएँ है?
उत्तर:-
विश्व बैंक विभिन्न देशों का वर्गीकरण करने के लिए प्रति व्यक्ति आय का प्रयोग प्रमुख मापदंड के रूप में 2006 के अपने विश्व विकास प्रतिवेदन (World Development Report 2006) में किया है| 2004 में जिन देशों की प्रति व्यक्ति आय 4,53,000 रूपये प्रति वर्ष या उससे अधिक थी उन्हें समृद्ध देश तथा जिन देशों की प्रति व्यक्ति वार्षिक आय 37,000 रुपए या उससे कम थी उन्हें निम्न आय वाले देशों की श्रेणी में रखा| परंतु प्रति व्यक्ति आय ,आय के वितरण की असमानताओं को छिपा देता है|
4. औसत अथवा प्रतिव्यक्ति आय क्या है? विश्व बैंक ने इस आधार पर विभिन्न देशों का किस प्रकार वर्गीकरण किया है?
उत्तर:-
देश की कुल जनसंख्या से राष्ट्रीय आय में भाग देने से जो भागफल आता है उसे प्रतिव्यक्ति आय अथवा औसत आय कहते हैं| विश्व बैंक इस आधार पर उच्च आय वाले देश (विकसित देश) और निम्न आय वाले देश (विकासशील देश) के रूप में देशों का वर्गीकरण करते हैं|
5. विकास को मापने का संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम (यू०एन०डी०पी०) का मापदंड किस प्रकार विश्व बैंक के मापदंड से अलग है?
उत्तर:-
विश्व बैंक ने 2006 के अपने विश्व विकास प्रतिवेदन (World Development Report 2006) में विभिन्न देशों का वर्गीकरण करने में प्रतिव्यक्ति आय को मापदंड के रूप में प्रयोग किया है| परन्तु संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम (यू०एन०डी०पी०) विभिन्न देशों की तुलना या वर्गीकरण करने में मानव विकास प्रतिवेदन (Human Development Report) जो 1990 से प्रति वर्ष प्रकाशित कर रहीं हैं मापदंड के रूप में प्रयोग करती है| इसमें देशों के शैक्षिक स्तर, स्वास्थ्य स्थिति और प्रतिव्यक्ति आय के आधार के रूप में लिया जाता है|
6. हम औसत का प्रयोग क्यों करते हैं? इसके प्रयोग की क्या सीमाएँ है? विकास से जुड़े उदाहरण द्वारा स्पष्ट करें|
उत्तर:-
औसत या प्रतिव्यक्ति आय किसी देश के विकास की जानकारी प्राप्त करने का एक महत्वपूर्ण मापदंड है| इसके द्वारा दो या दो से अधिक देशों के विकास के स्तर की तुलना करते हैं| पर यह धारणा आय के वितरण की असमानताओं को छिपा देता है| उदाहरण के लिए औसत आय से किसी देश के नागरिकों का आय का वितरण तथा जीवन स्तर, शिक्षा, स्वास्थ्य के बारे में पूर्ण जानकारी नहीं मिलती है| जो आर्थिक विकास के मापदंड है|
7. धारणीयता का विषय विकास के लिए क्यों महत्वपूर्ण है?
उत्तर:-
धारणीयता का विषय विकास के लिए महत्वपूर्ण है| क्योंकि कोई भी देश जो विकसित कर चुके हैं वे विकास के स्तर को और आगे बढ़ाने का प्रयास करेंगे या उसी स्तर को बनाये रखने का प्रयास करेंगे| परंतु पर्यावरण विशेषज्ञों के अनुसार विकास का वर्तमान प्रकार एवं स्तर धारणीय नहीं है| इसका कारण प्राकृतिक संसाधनों का अत्यधिक विदोहन तथा दुरूपयोग है| जिससे पर्यावरण जीवन धरण और भूमंडल के लिए कयी समस्याएँ उत्पन्न हुई है| जो विकास के गति में बाधक है|
8. आर्थिक विकास के प्रमुख आर्थिक कारकों का उल्लेख करें—–
प्राकृतिक संसाधन—–
भूमि, जंगल, नदियाँ आदि प्राकृतिक संसाधन हैं जो किसी देश को प्रकृति द्वारा प्रदान किए जाते हैं| इनपर श्रम एवं पूंजी का प्रयोग कर वस्तुओं और सेवाओं का उत्पादन होता है|
पूंजी निर्माण—–
अर्थव्यवस्था के विकास में पूंजी का योगदान महत्वपूर्ण होता है| इससे श्रम की उत्पादकता, अर्थव्यवस्था की उत्पादन क्षमता तथा राष्ट्रीय आय के स्तर में वृद्धि होती है|
तकनीकी विकास——
इसका अभिप्राय श्रेष्ठ तकनीक एवं आधुनिक विधियों के विकास तथा प्रयोग से है| तकनीकी विकास से उपलब्ध साधनों का कुशलतम प्रयोग तथा उत्पादित वस्तुओं की गुणवत्ता और मात्रा दोनों में वृद्धि होती है|
मानवीय संसाधन—-
आर्थिक विकास की दृष्टि से मानवीय संसाधनों का सर्वाधिक महत्वपूर्ण है| इनकी सहायता से ही उत्पादन के अन्य साधनों का प्रयोग तथा उत्पादन प्रक्रिया संभव हो पाता है|
9. देश के अन्य बड़े राज्यों की तुलना में बिहार के आर्थिक विकास की वर्त्तमान स्थिति क्या है?
उत्तर:-
वर्तमान में आर्थिक विकास के प्रायः सभी मापदंडों पर यह देश के अन्य सभी राज्यों से नीचे है| अन्य राज्यों की तुलना में बिहारवासियों की प्रतिव्यक्ति आय भी बहुत कम है| बिहार की जनसंख्या वृद्धि दर 2.5℅ है जो अन्य राज्यों की तुलना में अधिक हो यहाँ की साक्षरता दर अन्य राज्यों की तुलना में बहुत ही कम मात्रा 47.53℅ है| बिहार की 80℅ जनसंख्या कृषि पर निर्भर करती है| बिहार की 42℅ जनता गरीबी रेखा कवे नीचे जीवन यापन करती है|
10. अधिसंरचना विकास की दृष्टि से बिहार की क्या स्थिति है?
उत्तर:-
अधिसंरचना विकास की दृष्टि से बिहार अन्य विकसित राज्यों की तुलना में पीछे है| राज्य में प्रतिव्यक्ति बिजली का उपयोग कम है| कृषि, उद्योग व्यापार के लिए राज्य में सड़कों की स्थिति दयनीय है| प्रति लाख जनसंख्या पर सड़कों का घनत्व मात्र 111 किलोमीटर है| देश में सबसे अधिक निरक्षर बिहार राज्य में है| इसकी साक्षरता दर मात्र 47℅ 2001 में थी| राज्य की स्वास्थ्य सेवा भी जर्जर अवस्था में है|
11. बिहार में विकास की भावी संभावनाएँ क्या है?
उत्तर:-
बिहार आर्थिक दृष्टि से पिछड़ा हुआ राज्य है तथा इसके विकास का स्तर बहुत निम्न हैं| पिछले दशक के अंतर्गत जहाँ पंजाब, हरियाणा, महाराष्ट्र, गुजरात तथा दक्षिण भारत के राज्यों का बहुत तेजी से विकास हुआ है, वहाँ बिहार की विकास की दर बहुत धीमी रही है| उड़ीसा के बाद हमारे राज्य में निर्धनों का प्रतिशत सर्वाधिक है तथा अधिकांश बिहारवासी घोर निर्धनता में जीवनयापन करते हैं| लेकिन, इससे यह निष्कर्ष निकालना गलत होगा कि इस राज्य में विकास की संभावनाएँ नहीं है| विभाजन के पश्चात खनिज संपदा से वंचित हो जाने पर भी बिहार में गन्ना, जूट, चाय आदि कयी प्रकार की व्यावसायिक फसलों का उत्पादन होता है तथा राज्य में कृषि आधारित उद्योगों के विकास की संभावनाएँ बहुत अधिक है| इसके साथ ही बिहार में उर्वर भूमि एवं जल संसाधन के रूप में प्राकृतिक संसाधनों का विशाल भंडार है| इनके उचित विदोहन, प्रबंधन एवं उपयोग द्वारा राज्य को देश के विकसित राज्यों की अगली पंक्ति में लाया जा सकता है| यह संतोष का विषय है कि पिछले कुछ वर्षों से बिहार सरकार राज्य के विकास के अवरोधों को दूर करने के लिए प्रयत्नशील है| इस अवधि के अंतर्गत उसने प्रशासन की गुणवत्ता, निवेश के वातावरण तथा कानून व्यवस्था की स्थिति में सुधार लाने के प्रयास किए हैं| इससे राज्य में आर्थिक विकास की प्रक्रिया तेज हुई है|
12. हमारी मूलभूत आवश्यकताओं का विकास से आप क्या समझते हैं?
उत्तर:-
हमारी आवश्यकताओं का विकास से घनिष्ठ संबंध है| मनुष्य आवश्यकताओं से प्रेरित होकर ही विकास का प्रयास करता है| मानवीय आवश्यकताएँ अनंत एवं असीमित है तथा उनकी कोई सीमा नहीं है| परंतु, उसकी कुछ मूलभूत आवश्यकताएँ होती है, जिनकी पूर्ति आवश्यक है| आज विश्व के विभिन्न देशों को प्रायः दो वर्गों में विभाजित किया जाता है—– विकसित एवं विकासशील| अमेरिका, ब्रिटेन, फ्रांस, जर्मनी, जापान आदि देशों को विकसित देशों की श्रेणी में रखा जाता है, क्योंकि इन देशों में प्रायः अपने सभी नागरिकों की मूलभूत आवश्यक्ताओं को पूरा करने की क्षमता है| विकसित देशों की राष्ट्रीय एवं प्रतिव्यक्ति आय बहुत आसानी से हो जाती है| इसके विपरीत, भारत, पाकिस्तान, नेपाल, श्रीलंका, बांग्लादेश आदि अर्द्ध विकसित अथवा विकासशील देशों के उदाहरण है| विकास का स्तर निम्न होने के कारण ये देश निर्धन देशों की श्रेणी में आते हैं तथा इनके निवासी अपनी मूलभूत आवश्यकताओं से भी वंचित है| इस प्रकार, विकास का हमारी आवश्यकताओं की पूर्ति से प्रत्यक्ष संबंध है| देश के अल्प विकास के कारण ही हमारी जनसंख्या का एक बड़ा भाग निर्धन है और उसकी अनिवार्य आवश्यकताओं की भी पूर्ति नहीं हो पाती है|
13. अर्थव्यवस्था से आप क्या समझते हैं?
उत्तर:-
एक अर्थव्यवस्था वह संगठन या व्यवस्था है जिसमें किसी देश या समाज के सदस्य सभी प्रकार की आर्थिक क्रियाओं का संचालन करते हैं| इसके द्वारा ही किसी राष्ट्र एवं उसके नागरिकों की आवश्यकताओं की पूर्ति होती है| प्रो० ब्राउन के अनुसार- अर्थव्यवस्था जीविकोपार्जन की व्यवस्था है| इसमें उन सभी संस्थाओं
को सम्मिलित किया जाता है जिनके माध्यम से मानवीय आवश्यकताओं की संतुष्टि के लिए देश के संसाधनों का प्रयोग होता है| इस प्रकार, अर्थव्यवस्था का अभिप्राय एक ऐसी प्रणाली से है जिसमें देश के उपलब्ध साधनों का उपयोग कर विभिन्न प्रकार की वस्तुओं और सेवाओं का उत्पादन होता है|
14. पूंजीवादी अर्थव्यवस्था क्या है?
उत्तर:-
पूंजीवादी अर्थव्यवस्था आर्थिक व्यवस्था का एक प्राचीन रूप है| पूंजीवादी अर्थव्यवस्थाओं में उत्पादन के साधनों पर किसी व्यक्ति या निजी संस्था का अधिकार होता है| इसके अंतर्गत व्यक्तिगत लाभ उठाने के उद्देश्य से आर्थिक क्रियाओं का संचालन किया जाता है| इस प्रकार, पूंजीवाद आर्थिक संगठन की एक ऐसी प्रणाली है जो निजी संपत्ति, व्यक्तिगत लाभ एवं निजी प्रेरणा पर आधारित होती है| इसमें किसी भी व्यक्ति को आर्थिक निर्णय लेने की पूर्ण स्वतंत्रता रहती है तथा सरकार उनके आर्थिक क्रियाकलापों में न्यूनतम हस्तक्षेप करती है| यही कारण है कि एक पूंजीवादी अर्थव्यवस्था को एक स्वतंत्र या बाजार अर्थव्यवस्था भी कहते हैं|
15. समाजवादी अर्थव्यवस्था से आप क्या समझते हैं?
उत्तर:-
समाजवादी अर्थव्यवस्था एक नयी आर्थिक व्यवस्था है| इसके अंतर्गत उत्पादन के सभी साधन राज्य अथवा सरकार के स्वामित्व और नियंत्रण में रहते हैं| इस व्यवस्था में अधिकतम सामाजिक कल्याण के उद्देश्य से वस्तुओं और सेवाओं का उत्पादन तथा वितरण किया जाता है| प्रो० डिकिन्सन—– समाजवाद एक ऐसी आर्थिक संगठन है जिसमें उत्पत्ति के भौतिक साधनों पर समस्त समाज का स्वामित्व होता है तथा उनका संचालन एक सामान्य योजना के अंतर्गत ऐसी संस्थाओं द्वारा किया जाता है जो संपूर्ण समाज का प्रतिनिधित्व करती है| यह प्रणाली विश्व के अनेक देशों में प्रचलित है जिनमें रूस, चीन, पोलैंड, यूगोस्लाविया, हंगरी आदि प्रमुख है|
16. एक मिश्रित अर्थव्यवस्था किसे कहते हैं?
उत्तर:-
पूंजीवाद एवं समाजवाद, आर्थिक व्यवस्था के दो पृथक रूप है| जहाँ पूंजीवादी अर्थव्यवस्था में व्यक्ति को पूर्ण आर्थिक स्वतंत्रता रहती है, वहाँ एक समाजवाद अर्थव्यवस्था इसे समाप्त कर देती है| मिश्रित अर्थव्यवस्था इन दोनों अर्थव्यवस्थाओं के बीच का मार्ग है| इसमें पूंजीवाद एवं समाजवाद दोनों के गुण वर्तमान होते हैं| इसके अंतर्गत अर्थव्यवस्था के कुछ महत्वपूर्ण क्षेत्र सरकार के अधीन होते हैं तथा शेष निज उद्यम के हाथ में छोड़ दिए जाते हैं| एक मिश्रित अर्थव्यवस्था में निजी लाभ अर्जित करने की स्वतंत्रता रहने पर भी सरकार लोक कल्याण की उपेक्षा नहीं करती है|
17. एक अर्थव्यवस्था के कौन कौन से क्षेत्र होते हैं?
उत्तर:-
एक अर्थव्यवस्था का प्रायः दो दृष्टियों से वर्गीकरण किया जाता है—- स्वामित्व के आधार पर तथा व्यवसाय अथवा आर्थिक क्रियाओं के आधार पर| स्वामित्व के आधार पर किसी अर्थव्यवस्था के दो मुख्य क्षेत्र होते हैं—- निजी क्षेत्र एवं सार्वजनिक क्षेत्र| भारतीय अर्थव्यवस्था एक मिश्रित अर्थव्यवस्था है तथा इसमें एक संयुक्त क्षेत्र भी है| इस क्षेत्र के उद्योग या व्यवसाय में निजी उद्योगपति और सरकार दोनों की साझेदारी होती है| व्यवसाय या आर्थिक क्रियाओं के आधार पर किसी अर्थव्यवस्था के तीन मुख्य क्षेत्र होते हैं—– प्राथमिक क्षेत्र, द्वितीयक क्षेत्र तथ तृतीयक क्षेत्र|
18. स्वामित्व की दृष्टि से भारतीय अर्थव्यवस्था के कौन कौन से क्षेत्र है?
उत्तर:-
स्वामित्व की दृष्टि से भारतीय अर्थव्यवस्था के दो मुख्य क्षेत्र है—– निजी क्षेत्र और सार्वजनिक क्षेत्र| निजी क्षेत्र के अंतर्गत वे उद्योग या व्यवसाय आते हैं जो व्यक्तिगत स्वामित्व और नियंत्रण में रहते हैं| इस क्षेत्र में निजी उद्योगपति अपनी औद्योगिक एवं व्यवसाय संस्थानों की स्थापना करते हैं, उनमें पूंजी लगाते हैं, उनका प्रबंध और संचालन करते हैं तथा उनका लाभ और हानि उठाते हैं| इसके विपरीत, सार्वजनिक क्षेत्र पर राज्य अथवा सरकार का स्वामित्व और नियंत्रण रहता है तथा इस क्षेत्र के उद्योग या व्यवसाय सामाजिक हितों को प्राथमिकता प्रदान करते हैं|
19. निजी क्षेत्र से आप क्या समझते हैं?
उत्तर:-
जब किसी उद्योग या व्यवसाय का संगठन एवं संचालन किसी व्यक्ति या निजी संस्था के द्वारा किया जाता है तो उसे निजी उद्यम कहते हैं| इस प्रकार के निजी उद्यमों का समूह ही निजी क्षेत्र का निर्माण करते हैं| इस क्षेत्र की औद्योगिक इकाइयों पर निजी उद्योपतियों का स्वामित्व होता है| यह क्षेत्र लाभ लाभ के उद्देश्य से उत्पादन और वितरण का कार्य करता है| निजी क्षेत्र के उद्योगपति कठिन परिश्रम करते हैं तथा उनकी उत्पादन कुशलता अधिक होती है| परंतु, अधिकतम लाभ अर्जित करने के लिए वे प्रायः श्रमिकों और उपभोक्ताओं का शोषण करते हैं| यही कारण है कि सरकार इस क्षेत्र के आर्थिक क्रियाकलाप को प्रत्यक्ष एवं अप्रत्यक्ष रूप से नियंत्रित करती है|
20. सार्वजनिक क्षेत्र क्या है?
उत्तर:-
सार्वजनिक क्षेत्र के अंतर्गत वे उद्योग या व्यवसाय आते हैं जिन पर राज्य अथवा सरकार का नियंत्रण रहता है| इस क्षेत्र के उपक्रम सरकार द्वारा संचालित एवं नियंत्रित होते हैं तथा सरकार ही उनका एकमात्र स्वामी या प्रमुख अंशधारी होती है| इस प्रकार, राजकीय अथवा सरकारी उपक्रमों के समूह को सार्वजनिक क्षेत्र की संज्ञा दी जाती है| निजी उपक्रमों के समान ही सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रम भी वस्तुओं और सेवाओं का उत्पादन करते हैं| परंतु, यह क्षेत्र उत्पादन की प्रक्रिया में लोक कल्याण को अधिक महत्व देता है| सार्वजनिक क्षेत्र एक निश्चित योजना के अनुसार उत्पादन एवं वितरण का कार्य करता है|
21. व्यवसाय के आधार पर अर्थव्यवस्था के कौन कौन से क्षेत्र होते हैं?
उत्तर:-
व्यवसाय के आधार पर किसी अर्थव्यवस्था के तीन मुख्य क्षेत्र होते हैं—– प्राथमिक क्षेत्र, द्वितीयक क्षेत्र तथा तृतीयक क्षेत्र| प्राथमिक क्षेत्र को कृषि क्षेत्र भी कहते हैं| इसके अंतर्गत कृषि एवं इससे संबद्ध व्यवसायों को सम्मिलित किया जाता है, जैसे—- खनन, पशुपालन, मत्स्य पालन| द्वितीयक अथवा उद्योग क्षेत्र में सभी प्रकार के निर्माण उद्योग, विद्युत, गै तथा जलापूर्ति आदि शामिल हैं| तृतीयक क्षेत्र को सेवा क्षेत्र भी कहते हैं| इस क्षेत्र में उन सभी सेवाओं को सम्मिलित किया जाता है जो प्राथमिक और द्वितीयक क्षेत्र के क्रियाकलापों को पूरा करने में सहायक होती है| यह क्षेत्र वस्तुओं का नहीं वरन सेवाओं का उत्पादन करता है|
22. आर्थिक विकास से आप क्या समझते?
उत्तर:-
आर्थिक विकास का अर्थ देश के प्राकृतिक एवं मानवीय साधनों के कुशल प्रयोग द्वारा राष्ट्रीय एवं प्रतिव्यक्ति वास्तविक आय में वृद्धि करना है| राष्ट्रीय आय किसी देश के अंदर एक निश्चित अवधि में उत्पादित समस्त वस्तुओं और सेवाओं का मौद्रिक मूल्य है जिसमें विदेशों से प्राप्त होनेवाली आय भी सम्मिलित रहती है| प्रतिव्यक्ति आय देश के नागरिकों की औसत आय होती है| राष्ट्रीय और प्रतिव्यक्ति आय में वृद्धि होने से नागरिकों का जीवन स्तर ऊंचा होता है और उनकी अनिवार्य आवश्यकताओं की बहुत आसानी से पूर्ति हो जाती है| इस प्रकार, आर्थिक विकास वह प्रक्रिया है जिसकी राष्ट्रीय और प्रतिव्यक्ति आय में एक लंबी अवधि तक वृद्धि होती है|
23. विकास को मापने का संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम (यू०एन०डी०पी०) का मापदंड किस प्रकार विश्व बैंक के मापदंड से अलग है?
अथवा,
मानव विकास रिपोर्ट अथवा मानव विकास सूचकांक क्या है?
उत्तर:-
दो देशों के विकास के स्तर की तुलना करने के लिए प्रायः प्रतिव्यक्ति आय की धारणा का प्रयोग किया जाता है| विश्व बैंक ने विभिन्न देशों का वर्गीकरण करने के लिए इसी मापदंड का प्रयोग किया है| लेकिन, यह उनके विकास के स्तर को मापने का एक अपर्याप्त मापदंड है| यही कारण है कि कुछ अर्थशास्त्रियों ने विकास की माप के लिए आय के साथ ही कयी अन्य मापदंडों पर भी विचार किया है उदाहरण के लिए, संयुक्त राष्ट्र की एक संस्था संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम 1990 से प्रतिवर्ष एक मानव विकास रिपोर्ट प्रकाशित कर रही है| इसमें विभिन्न देशों के विकास के स्तर की तुलना नागरिकों के शैक्षिक स्तर, उनकी स्वास्थ्य स्थिति और प्रतिव्यक्ति आय के आधार पर की जाती है|
24. सतत् विकास से आप क्या समझते हैं?
उत्तर:-
सतत् अथवा टिकाऊ विकास वह है जिसमें हम भावी पीढ़ियों की आवश्यकता पूर्ति की क्षमता से कोई समझौता किए बिना अपनी वर्तमान आवश्यकताओं को पूरा करते हैं| वर्तमान और भविष्य की आवश्यकताओं के बीच समन्वय स्थापित करने के साथ ही सतत् विकास का संबंध सभी वर्गों, क्षेत्रों तथा देश के निवासियों की आवश्यकताओं की पूर्ति से है| इस प्रकार, सतत् विकास वह प्रक्रिया है जिसमें प्राकृतिक संसाधनों के विदोहन, पूंजी निवेश, तकनीकी विकास तथा संस्थागत परिवर्तनों में उचित समन्वय द्वारा वर्तमान और भावी आवश्यकता पूर्ति की क्षमता में वृद्धि हुई है|
25. आर्थिक नियोजन क्या है? भारत में नियोजन का प्रारंभ कब हुआ?
उत्तर:-
स्वतंत्रता प्राप्ति के पश्चात भारत सरकार ने देश के तीव्र आर्थिक विकास के लिए नियोजन का मार्ग अपनाया है| आर्थिक नियोजन का अर्थ राज्य या निर्धारित सत्ता द्वारा संपूर्ण आर्थिक एवं सामाजिक व्यवस्था के एक विस्तृत सर्वेक्षण के आधार पर जान बूझकर आर्थिक निर्णय लेना है| दूसरे शब्दों में, आर्थिक प्राथमिकताओं के आधार पर लक्ष्यों का निर्धारण कर उन्हें एक निश्चित अवधि में पूरा करने का प्रयास ही आर्थिक नियोजन है| भारत में नियोजन का प्रारंभ 1950 में भारतीय योजना आयोग की स्थापना के साथ हुआ| इस आयोग ने 1951 में प्रथम पंचवर्षीय योजना का प्रारूप प्रस्तुत किया जो अप्रैल 1951 से 1956 पांच वर्षों की अवधि के लिए था|
26. हमारे देश के लिए नियोजन क्यों आवश्यक है?
उत्तर:-
भारत एक अर्द्ध विकसित राष्ट्र है यहाँ की कृषि पिछड़ी हुई अवस्था में है, देश में पूंजी का अभाव है, उत्पादन व्यवस्था असंतुलित है तथा नागरिकों का जीवन स्तर निम्न हैं| प्राकृतिक एवं मानवीय संसाधनों की प्रचुरता रहने पर भी पूंजी, तकनीकी ज्ञान आदि के अभाव में हम इनका उचित विदोहन तथा प्रयोग नहीं कर पाए हैं| भारत आर्थिक दृष्टि से एक निर्धन देश है और इसकी निर्धनता सभी प्रकार के विकास कार्यों में बाधक सिद्ध होती है| निर्धनता के कारण लोगों की आय बहुत कम है और देश में पर्याप्त पूंजी का निर्माण नहीं हो पाता है| पूंजी के अभाव में विनियोग तथा विकास की दर भी बहुत कम हो जाती है| अतएव, अर्थव्यवस्था के तीव्र विकास तथा बेरोजगारी, निर्धनता और देश में व्याप्त आय एवं धन के वितरण की विषमताओं को समाप्त करने के लिए नियोजन आवश्यक है|
27. बिहार के विकास की वर्तमान स्थिति क्या है?
उत्तर:-
पूर्वी भारत का एक प्रमुख राज्य होने पर भी बिहार आर्थिक दृष्टि से एक पिछड़ा हुआ राज्य है| देश के अन्य राज्यों की तुलना में बिहार का शुद्ध राज्य घरेलू उत्पाद तथा बिहारवासियों की प्रतिव्यक्ति आय बहुत कम है| 2005-06 में वर्तमान मूल्यों पर जहाँ भारत की प्रतिव्यक्ति आय 25,716 रूपये थी वहाँ बिहार की प्रतिव्यक्ति आय मात्र 7,930 रूपये थी| लेकिन, विगत कुछ वर्षों से बिहार सरकार राज्य में विकास के अवरोधों को दूर करने के लिए प्रयत्नशील है| इसके फलस्वरूप विकास की गति तीव्र हुई है| केंद्रीय सांख्यिकी संगठन की नवीनतम रिपोर्ट के अनुसार अभी बिहार की वार्षिक दर 11.03℅ है जो राष्ट्रीय औसत 8.49℅ से अधिक है|
28. धारणीयता का विषय विकास के लिए क्यों महत्वपूर्ण है?
उत्तर:-
आर्थिक एवं मानव विकास को प्रोत्साहित करने के लिए अर्थशास्त्रियों तथा समाजशास्त्रियों ने समय समय पर अनेक कारकों पर विचार किया है| आज भी देशों के निवासी यह चाहते हैं कि उनके विकास का स्तर और ऊंचा हो तथा भावी पीढ़ी के लिए भी यह स्तर बना रहे| लेकिन, बीसवीं शताब्दी के उत्तरार्द्ध में अनेक पर्यावरण विशेषज्ञों ने यह चेतावनी दी है कि विकास का वर्तमान प्रकार एवं स्तर धारणीय नहीं है| इसका कारण यह है कि विगत वर्षों के अंतर्गत आर्थिक विकास और औद्योगीकरण के क्रम में प्राकृतिक संसाधनों का अत्यधिक विदोहन तथा दुरूपयोग हुआ है| इससे पर्यावरण संबंधी कई समस्याएँ उत्पन्न हुई है जो हमारे जीवन धारण और भूमंडल के लिए संकट का कारण हो सकती है| विकास की दृष्टि से प्राकृतिक साधनों पर अत्यधिक भार होने के कारण प्रत्येक वर्ष विश्व के एक करोड़ हेक्टेयर से भी अधिक जंगल नष्ट कर दिए जाते हैं तथा जल के अभाव में लगभग 60 हेक्टेयर उत्पादन योग्य सूखी भूमि रेगिस्तान में बदल जाती है| बीसवीं सदी में विकसित देशों ने पिछड़े और अर्द्ध विकसित देशों के प्राकृतिक संसाधनों का अधिकतम शोषण किया| परंतु, अब भारत तथा अन्य विकासशील अर्थव्यवस्थाएं भी अपने उपलब्ध प्राकृतिक संसाधनों का अत्यधिक विदोहन कर रही है| इससे पर्यावरण तथा जैवमंडल को भावी विकास के लिए सुरक्षित रखने की समस्या गंभीर हो गई है| उदाहरण के लिए, हमारे देश के कयी भागों में भी भूमिगत जल का अति उपयोग हो रहा है जिससे इसके स्तर में तेजी से गिरावट आई है| इससे पंजाब और पश्चिमी उत्तर प्रदेश के कयी क्षेत्रों में कृषि की उत्पादकता प्रभावित हुई है| अतएव, हमारी वर्तमान तथा भावी आवश्यकता पूर्ति की क्षमता में वृद्धि के लिए विकास की सततता या धारणीयता का विषय अत्यधिक महत्वपूर्ण है|
29. प्राकृतिक संसाधनों के मुख्य प्रकार क्या है? इनका संरक्षण क्यों आवश्यक है?
उत्तर:-
किसी भी देश के आर्थिक विकास के लिए प्राकृतिक संसाधन अत्यधिक महत्वपूर्ण है| हमारे प्राकृतिक संसाधन दो प्रकार के है—- नवीकरणीय तथा गैर नवीकरणीय साधन| नवीकरणीय प्राकृतिक संसाधन वे हैं जिनका पुनरुत्पादन संभव होने पर भी कठिन है| अत एव, इनका एक सीमा तक ही प्रयोग किया जा सकता है| भूमिगत जल नवीकरणीय साधन का उदाहरण है| फसल और पेड़ पौधों के समान ही प्रकृति इन साधनों की पुनः पूर्ति करती है| लेकिन, यदि हम इन साधनों का अति उपयोग करते हैं, तो हमारे लिए भविष्य में कठिनाई उत्पन्न हो सकती है| गैर नवीकरणीय साधन वे है जो अनेक वर्षों तक प्रयोग के पश्चात समाप्त हो जाते हैं| पृथ्वी पर इन साधनों का एक निश्चित भंडार है तथा इनकी पूर्ति नहीं हो सकती है| जीवाश्म ईंधन, कोयला, गैस, पेट्रोलियम इत्यादि गैर नवीकरणीय साधनों के उदाहरण है| कयी बार हमें इन संसाधनों के नये स्रोत या भंडार मिल जाते हैं| लेकिन, समय के साथ ही इनके भंडार भी समाप्त हो जाएंगे| उदाहरण के लिए, पेट्रोलियम या कच्चा तेल एक गैर नवीकरणीय संसाधन हैं जिसे हम जमीन से निकालते हैं| यह एक अत्यंत महत्वपूर्ण संसाधन है तथा इनके भंडार सीमित है| कच्चे तेल के भंडार की दृष्टि से विभिन्न देशों की अलग अलग स्थितियाँ है| यदि हम संपूर्ण विश्व की दृष्टि से विचार करते हैं तो इसके भंडार लगभग 40-45 वर्षों में समाप्त हो जाएंगे| इस प्रकार, भावी विकास के लिए प्राकृतिक संसाधनों के दुरुपयोग को रोकना और उनका संरक्षण आवश्यक है|
30. आर्थिक विकास के गैर आर्थिक कारकों का उल्लेख करें—–
उत्तर:-किसी देश के आर्थिक विकास का स्तर गैर आर्थिक कारकों से भी प्रभावित होता है| प्राकृतिक एवं मानवीय संसाधन, पूंजी की उपलब्धता, उत्पादन तकनीक आदि विकास के आर्थिक कारक है| इनका आर्थिक विकास पर प्रत्यक्ष प्रभाव पड़ता है| इसके विपरीत, गैर आर्थिक कारक आर्थिक विकास को अप्रत्यक्ष रूप से प्रभावित करते हैं| गैर आर्थिक कारकों में राजनैतिक, सामाजिक एवं धार्मिक संस्थाएँ महत्वपूर्ण है| इस संस्थाओं के प्रतिकूल रहने पर आर्थिक विकास की गति मंद हो जाती है| राजनैतिक स्थायित्व तथा राज्य अथवा सरकार के सहयोग के बिना एक अर्थव्यवस्था का कुशल संचालन संभव नहीं है| उदाहरण के लिए, भारतीय अर्थव्यवस्था के अर्द्ध विकसित होने का एक प्रधान कारण राजनैतिक रहा है| अंग्रेजों के आगमन के पूर्व भारत की अर्थव्यवस्था सुदृढ़ एवं स्वावलम्बी थी| विदेशी शासकों की विभेदात्मक नीति के कारण ही भारत में आधारभूत और पूंजीगत उद्योगों का विकास नहीं हो सका जो उद्योगीकरण के आधार होते हैं| शिक्षा प्रणाली उत्पादक क्रियाओं में प्रत्यक्ष रूप से भाग नहीं लेती, परंतु ऐसी सेवाएँ प्रदान करती है जो हमारी उत्पादन क्षमता को बढ़ाती है| इसी प्रकार, चिकित्सा, स्वास्थ्य एवं सामाजिक सेवाओं से भी लोगों की उत्पादन कुशलता में वृद्धि होती है| यदि देश की सामाजिक एवं धार्मिक संस्थाएँ सामाजिक चेतना तथा जीवन के नये मूल्यों को विकसित करती है तब इसका आर्थिक विकास पर अनुकूल प्रभाव पड़ता है|
31. अधिसंरचना विकास की दृष्टि से बिहार की क्या स्थिति है?
अथवा,
बिहार के आर्थिक पिछड़ेपन का एक प्रमुख कारण इसकी कमजोर आधार संरचना है| विवेचना करें|
उत्तर:-
अधिसंरचना अथवा आधार संरचना का अभिप्राय उन सेवाओं से है जो एक अर्थव्यवस्था को कार्यशील बनाती है| इस संरचना या ढांचे पर ही किसी अर्थव्यवस्था का विकास निर्भर है| अधिसंरचना विकास की दृष्टि से बिहार हमारे देश के अन्य विकसित राज्यों की तुलना में बहुत पीछे है| यहाँ की आर्थिक और सामाजिक दोनों ही संरचनाएँ बहुत कमजोर और निम्न स्तर की है| राज्य में प्रतिव्यक्ति बिजली का उपयोग अन्य राज्यों की अपेक्षा बहुत कम है| कृषि, उद्योग एवं व्यापार सभी क्षेत्रों के विकास के लिए सड़क परिवहन की उन्नत अवस्था आवश्यक है| परंतु, बिहार में सड़कों की स्थिति अत्यंत दयनीय है| सघन आबादी वाला राज्य होने पर भी यहाँ प्रति लाख जनसंख्या पर सड़कों का घनत्व मात्र 111 किलोमीटर है जबकि संपूर्ण देश में यह घनत्व तीन गुना अधिक (360 किलोमीटर) है| शिक्षा और स्वास्थ्य सेवाएँ विकास के महत्वपूर्ण मापदंड है| बिहार में इन सेवाओं का स्तर भी बहुत निम्न हैं| 2001 की जनगणना के अनुसार भारत में साक्षरता दर लगभग 65℅ थी जबकि बिहार में यह 47℅ थी| देश में सबसे अधिक निरक्षर बिहार राज्य में है| राज्य की स्वास्थ्य सेवा जर्जर अवस्था में है तथा लगभग दो तिहाई बच्चे जन्म के समय दिए जाने वाले जीवन प्रतिरक्षक टीकों से भी वंचित रहते हैं| बिहार में कुपोषण से ग्रस्त बच्चों का अनुपालन देश में सबसे अधिक है|विगत वर्षों के अंतर्गत बिहार में शिक्षा एवं स्वास्थ्य सेवाओं के क्षेत्र में सुधार हुआ है और लोग उससे लाभान्वित हुए हैं| लेकिन, राज्य की आधार संरचना में सुधार अभी भी हमारे लिए एक गंभीर और चुनौतीपूर्ण विषय है|
32. अर्थव्यवस्था किसे कहते हैं?
उत्तर:-
अर्थव्यवस्था एक देश या क्षेत्र विशेष की व्यवस्था है, जिसके अंतर्गत मनुष्य अपने आवश्यकताओं की संतुष्टि से संबंधित अपने सभी आर्थिक कार्यकलापों का संपादन करता है| जैसे—– कृषि, उत्पादन, व्यापार
दीर्घ उत्तरीय प्रश्न
1. आर्थिक विकास का क्या अभिप्राय है? आर्थिक संवृद्धि एवं आर्थिक विकास में अंतर कीजिये|
उत्तर:-
आर्थिक विकास का अर्थ देश के प्राकृतिक एवं मानवीय साधनों के कुशल प्रयोग द्वारा राष्ट्रीय एवं प्रतिव्यक्ति वास्तविक आय में वृद्धि करना है| प्रो० मेयर के अनुसार—– आर्थिक विकास वह प्रक्रिया है जिसमें किसी देश की प्रतिव्यक्ति आय में दीर्घकाल तक वृद्धि होती है| आर्थिक विकास का मुख्य उद्देश्य अर्थव्यवस्था के समस्त क्षेत्रों में उत्पादकता का ऊंचा स्तर प्राप्त करना होता है| इसके लिए विकास प्रक्रिया को गतिशील करना पड़ता है| सामान्य तौर पर आर्थिक विकास एवं संवृद्धि में कोई अंतर नहीं माना जाता है अर्थशास्त्र विशेषज्ञों ने इसमें अंतर पाया है| आर्थिक संवृद्धि एकल आगामी परिवर्तनों को दर्शाने के लिए किया जाता है| परंतु आर्थिक विकास शब्द का प्रयोग बहुत आगामी परिवर्तनों को दर्शाने के लिए प्रयोग किया जाता है| आर्थिक विकास राष्ट्रीय एवं प्रतिव्यक्ति आय में होने वाले वृद्धि के अतिरिक्त राष्ट्रीय आय का वितरण, नागरिकों के सामान्य जीवन स्तर एवं आर्थिक कल्याण से संबंधित है| श्रीमती उर्सला हिक्स के अनुसार, संवृद्धि शब्द का प्रयोग आर्थिक दृष्टि से विकसित देशों के संबंध किया जाता है जबकि विकास शब्द का प्रयोग विकासशील अर्थव्यवस्थाओं के संदर्भ में किया जाता है|
2. विकास की अवधारणा को स्पष्ट करें| किस आधार पर कुछ देशों को विकसित और कुछ को अविकसित कहा जाता है?
उत्तर:-
आर्थिक विकास की कयी अवधारणाएँ है तथा इनका क्रमिक विकास हुआ है| प्रारंभ में आर्थिक विकास का अर्थ उत्पादन एवं आय में होनेवाली वृद्धि से लगाया जाता है| अर्थशास्त्रियों के अनुसार——- आर्थिक विकास का अर्थ देश के प्राकृतिक एवं मानवीय साधनों के कुशल प्रयोग द्वारा राष्ट्रीय एवं प्रतिव्यक्ति वास्तविक आय में वृद्धि करना है| परंतु कुछ अर्थशास्त्रियों के अनुसार राष्ट्रीय एवं प्रतिव्यक्ति आय में होनेवाली वृद्धि आर्थिक विकास का सूचक नहीं है| किसी राष्ट्र का आर्थिक विकास राष्ट्रीय आय का वितरण, नागरिकों के सामान्य में सुधार एवं आर्थिक कल्याण पर निर्भर करता है| विश्व बैंक ने 2006 के अपने विश्व विकास प्रतिवेदन में राष्ट्रीय एवं प्रतिव्यक्ति आय में होनेवाले वृद्धि के आधार पर कुछ देशों का विकसित और कुछ को अविकसित कहा है| विश्व बैंक के अनुसार 2004 में जिन देशों की प्रतिव्यक्ति आय 4,53,000 रुपये प्रतिवर्ष वार्षिक आय या उससे अधिक थी उन्हें समृद्ध या विकसित देश तथा वे देश जिनकी प्रतिवर्ष वार्षिक आय 37,000 रुपये या उससे कम थी उन्हें निम्न आय वाले या विकासशील देश की संज्ञा दी| दो अर्थव्यवस्थाओं के विकास के स्तर की तुलना करने के लिए तथा विकसित तथा अर्द्ध विकसित देशों का वर्गीकरण करने के लिए भी राष्ट्रीय एवं प्रतिव्यक्ति आय को संकेतक के रूप में प्रयोग करते हैं|
3. विकास के लिए प्रयोग किए जाने वाले विभिन्न मापदंडों अथवा संकेतों का उल्लेख करें-
उत्तर:-
राष्ट्रीय एवं प्रतिव्यक्ति आय में होने वाली वृद्धि आर्थिक विकास को मापने का एक महत्वपूर्ण मापदंड है| परंतु, इनमें कुछ कमियाँ है| प्रतिव्यक्ति आय या औसत आय द्वारा दो या दो से अधिक देशों के विकास के स्तर की तुलना करते हैं| प्रतिव्यक्ति आप आय के वितरण की असमानता छिपा देता है| इस प्रकार प्रतिव्यक्ति आय की सीमितताओं के कारण आर्थिक एवं सामाजिक विकास के कुछ वैकल्पिक संकेतकों का विकास किया गया| जीवन की भौतिक गुणवत्ता के सूचक—— मोरिस डी ० मोरिस के अनुसार किसी देश के आर्थिक विकास को जीवन प्रत्याशा, शिशु मृत्युदर तथा मौलिक साक्षरता के सूची के अनुसार मापा जा सकता है| मानव विकास सूचकांक संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम(यू०एन०डी०पी०) के मानव विकास प्रतिवेदन के अनुसार विभिन्न देशों की विकास की तुलना लोगों के शैक्षिक स्तर, उनकी स्वास्थ्य स्थिति और प्रतिव्यक्ति आय के आधार पर की जाती है| इस मानव विकास प्रतिवेदन में कयी नये घटक जैसे नागरिकों का जीवन स्तर उनका स्वास्थ्य एवं कल्याण जैसे विषय जोड़े गए हैं|
4. जीवन की भौतिक गुणवत्ता के सूचक की व्याख्या कीजिये| मानव विकास सूचकांक इससे किस प्रकार भिन्न है?
उत्तर:-
जीवन की भौतिक गुणवत्ता के सूचक को विकसित करने का श्रेय मोरिस डेविड मोरिस नामक अर्थशास्त्री को है| इन्होंने पिछली शताब्दी के 70 के दशक के अंत में संयुक्त राष्ट्र की बहुत सी समितियों एवं संस्थानों तथा विकास अर्थशास्त्रियों द्वारा अपनाए गए संकेतकों का अध्ययन किया| इससे वे इस निष्कर्ष पर पहुँचे कि इनमें अधिकांश संकेतक औद्योगिक दृष्टि से विकसित देशों की मान्यताओं पर आधारित थे तथा इनमें अर्द्ध वकसित देशों के अंतर एवं उनके संगठनों के बीच की विभिन्नताओं पर कोई ध्यान नही दिया गया था| अत:, डेविड मोरिस ने ऐसे संकेतकों को विकसित करने का प्रयास किया जो किसी समाज की मान्यताएँ नहीं, वरन विकास की प्रक्रिया के निर्गत या परिणाम है| इसके साथ ही ये संयुक्त संकेतक ऐसे होने चाहिए जो सरल तथा अंतर्राष्ट्रीय तुलना में सहायक हो| इन्हें सैकड़ों संकेतकों का अध्ययन करने के पश्चात केवल तीन ऐसे संकेतक मिले जो सर्वव्यापक है तथा इन मापदंडों को पूरा करते हैं| ये संकेतक है—– जीवन प्रत्याशा, शिशु मृत्यु दर, मौलिक साक्षरता| उपर्युक्त तीनों संकेतों की कयी प्रकार से व्याख्या की जा सकती है| कोई देश उचित पोषण द्वारा उच्च जीवन प्रत्याशा प्राप्त करता है अथवा अच्छी चिकित्सा सुविधाओं द्वारा अथवा सफाई व्यवस्था में सुधार द्वारा, यह बात महत्वपूर्ण नहीं है| कोई देश उच्च साक्षरता औपचारिक तरीकों से प्राप्त करता है या अनौपचारिक तरीकों से, यह बात महत्वपूर्ण नहीं है| लेकिन, यह निश्चित रूप से महत्वपूर्ण है कि वह साक्षरता के उच्च स्तर को प्राप्त करने का प्रयास करता है| जो जन्म लेता है उसकी मृत्यु निश्चित है| लेकिन, उसकी मृत्यु शिशु अवस्था में ही नहीं होनी चाहिए| ये सर्वमान्य तथ्य है जिन्हें सामान्यतः स्वीकारा गया है| जीवन की भौतिक गुणवत्ता के सूचकांक के विकसित होने के लगभग 10 वर्षों के पश्चात एक अन्य सूचकांक का प्रयोग होने लगा है| संयुक्त राष्ट्र की एक संस्था संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम 1980 से प्रतिवर्ष एक मानव विकास प्रतिवेदन प्रकाशित कर रही है| इनमें विभिन्न देशों की तुलना लोगों के शैक्षिक स्तर, उनकी स्वास्थ्य स्थिति और प्रतिव्यक्ति आय के आधार पर की जाती है|
5. मानव विकास सूचकांक क्या है? इस सूचकांक के अनुसार 2004 में पडोसी देशों की तुलना में भारत की क्या स्थिति है?
उत्तर:-
मानव विकास सूचकांक संयुक्त राष्ट्र की एक संस्था संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम (यू०एन०डी०पी०) द्वारा 1990 से प्रतिवर्ष प्रकाशित की जाती है| मानव विकास सूचकांक के अंतर्गत लोगों को शैक्षिक स्तर, उनकी स्वास्थ्य स्थिति एवं प्रतिव्यक्ति आय के आधार पर देशों के आर्थिक विकास की स्थिति की तुलना की जाती है| 2006 के मानव विकास सूचकांक के अनुसार 2004 पड़ोसी देशों की तुलना में भारत की स्थिति को निम्न आंकड़ों से समझा जा सकता है——
(1)श्रीलंका—–
प्रतिव्यक्ति आय (अमेरिकी डॉलर में) —-4390
जन्म के समय संभावित आय—–74
साक्षरता दर 15+ वर्ष की जनसंख्या के लिए—-91
विश्व में मानव विकास सूचकांक का क्रमांक—-93
(2) भारत——
प्रतिव्यक्ति आय (अमेरिकी डॉलर में) —-3139
जन्म के समय संभावित आय—–64
साक्षरता दर 15+ वर्ष की जनसंख्या के लिए—-61
विश्व में मानव विकास सूचकांक का क्रमांक—-126
पाकिस्तान——
प्रतिव्यक्ति आय (अमेरिकी डॉलर में) —-2225
जन्म के समय संभावित आय—–63
साक्षरता दर 15+ वर्ष की जनसंख्या के लिए—-50
विश्व में मानव विकास सूचकांक का क्रमांक—-134
नेपाल——-
प्रतिव्यक्ति आय (अमेरिकी डॉलर में) —-1490
जन्म के समय संभावित आय—-62
साक्षरता दर 15+ वर्ष की जनसंख्या के लिए—-50
विश्व में मानव विकास सूचकांक का क्रमांक—-138
आर्थिक विकास की दृष्टि से हमारे पड़ोस का एक छोटा सा देश श्रीलंका प्रत्येक क्षेत्र में भारत से आगे है| दूसरी ओर, भारत जैसे एक बड़े देश का विश्व में मानव सूचकांक नीचे है| भारत की स्थिति प्रतिव्यक्ति आय के मामले में नेपाल से अच्छी है| परंतु नेपाल संभावित आय और साक्षरता स्तर में भारत से ज्यादा नीचे नहीं है|
6. विकास की धारणीयता क्यों आवश्यक है? विकास का वर्तमान स्तर किन कारणों से धारणीय नहीं है?
उत्तर:-
आर्थिक विकास को मापने के लिए किसी देश की आर्थिक विकास की धारणीयता को भी समझना आवश्यक है| विकसित देश विकास की प्रक्रिया में विकास का स्तर ऊंचा करने का या विकास के स्तर को भावी पीढ़ी के लिए बनाये रखने का प्रयास करेंगे| ठीक उसी प्रकार विकासशील देशों की स्थिति रहेगी| जो स्पष्ट रूप से वांछनीय है| लेकिन पर्यावरण विशेषज्ञों के अनुसार विकास का वर्तमान प्रकार एवं स्तर धारणीय नहीं है| इसके कारण निम्नलिखित हैं—-
(1) आर्थिक विकास और औद्योगीकरण के लिए प्राकृतिक संसाधनों का अत्यधिक विदोहन तथा दुरूपयोग|
(2) पर्यावरण संबंधी समस्याएँ
(3) जंगलों का नष्ट होना
(4) भूमिगत जल का अति उपयोग
विकास की प्रक्रिया को निरंतर बनाये रखने के लिए ही धारणीयता विकास की अवधारणा का जन्म हुआ| निष्कर्ष के रूप में हम कह सकते हैं कि विकास की प्रक्रिया एक दीर्घकालीन एवं निरंतर चलनेवाली प्रक्रिया है| अतएव हमें समय समय पर अपने लक्ष्यों में परिवर्तन एवं संशोधन करने की आवश्यकता है|
7. हमारे देश के आर्थिक विकास में बिहार का विकास किस प्रकार सहायक हो सकता है?
उत्तर:-
बिहार का इतिहास अत्यंत प्राचीन है तथा इससे सदियों से देश के सामाजिक, राजनैतिक एवं आर्थिक जीवन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है| ईसापूर्व चौथी शताब्दी में स्थापित मौर्य साम्राज्य भारतीय उपमहाद्वीप में विकसित पहली देशव्यापी शासन प्रणाली थी जिसकी राजधानी पटना के निकट पाटलिपुत्र में स्थित थी| ज्ञान ओर विज्ञान के प्रसार में भी बिहार का योगदान अत्यधिक महत्वपूर्ण है| विश्वविख्यात नालंदा विश्वविद्यालय की स्थापना पटना के निकट नालंदा में हुई थी| यह विश्व का प्रथम आवासीय विश्वविद्यालय था जिसमें केवल देश के ही नहीं वरन् विदेशों के छात्र एवं विद्वान भी शिक्षा ग्रहण करते थे| बिहार ने देश के विभिन्न भागों को जोड़ने का कार्य किया है| सासाराम (बिहार) के मध्यकालीन सम्राट शेरशाह सूरी ने सड़क आजम के नम से देश में एक वृहत् सड़क प्रणाली का निर्माण किया जो आज ग्रैंड ट्रंक रोड के नाम से विख्यात है| वर्तमान में बिहार की विकास दर बहुत धीमी है तथा विभाजन के पश्चात राज्य की आर्थिक स्थिति कमजोर हो गयी है| परंतु इसमें अभी भी विकास की अपार संभावनाएँ है तथा इसका विकास देश के आर्थिक विकास में कयी प्रकार से सहायक हो सकता है| राज्य के विभाजन के पूर्व बिहार में खनिज पदार्थों का विशाल भंडार था जिससे अब यह वंचित हो गया है| लेकिन, बिहार की भूमि अत्यंत उपजाऊ है| वस्तुतः उत्तरी बिहार विश्व के सबसे उपजाऊ भागों में से एक है| इस प्रकार, उर्वर भूमि एवं पर्याप्त जल संसाधन के रूप में बिहार में प्राकृतिक संसाधनों का बाहुल्य है| बिहार में केवल खाद्य फसलों का ही नहीं वरन गन्ना, जूट, तंबाकू, चाय आदि कयी प्रकार की व्यावसायिक फसलों का भी उत्पादन होता है | अत: राज्य में कृषि आधारित उद्योगों के विकास की संभावनाएँ भी बहुत अधिक है| बिहार मसालों के उत्पादन में देश का एक अग्रणी राज्य है, जिसकी देश और विदेशों में बहुत मांग है| सब्जी के उत्पादन में इसका देश में दूसरा तथा फल के उत्पादन में तीसरा स्थान है| चीन के बाद भारत विश्व में लीची का सबसे बड़ा उत्पादक है जिसका 70℅ उत्पादन बिहार में होता है| लीची और आम जैसे उत्पादित फलों के निर्यात द्वारा राज्य में पर्याप्त विदेशी मुद्रा अर्जित की जा सकती है| बिहार में युवा मानवीय संसाधनों की भी बहुलता है तथा इनके कौशल का विकास हमारे देश के आर्थिक विकास में बहुत सहायक हो सकता है| इस प्रकार, बिहार के विकास की देश के आर्थिक विकास में महत्वपूर्ण भूमिका हो सकती है| परंतु, इसके लिए राष्ट्रीय स्तर पर विकास की एक विस्तृत रणनीति बनाना आवश्यक है|
8. एक अर्थव्यवस्था के मुख्य कार्यों की विवेचना कीजिये—–
उत्तर:-
एक अर्थव्यवस्था का मुख्य कार्य मनुष्य की भौतिक आवश्यकताओं को संतुष्ट करना है| परंतु, इसके लिए कयी प्रकार की आर्थिक क्रियाओं का संपादन होता है| इनमें निम्नलिखित प्रमुख है——
उत्पादन—–
किसी भी देश के नागरिकों को अपनी आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए कयी प्रकार की वस्तुओं और सेवाओं की जरूरत पड़ती है| एक अर्थव्यवस्था में ही उत्पादन के विभिन्न साधनों के सहयोग से वस्तुओं और सेवाओं का उत्पादन होता है| आर्थिक व्यवस्था या अर्थव्यवस्था का एक मुख्य कार्य उत्पादन के विभिन्न साधनों को एकत्र कर उनमें सामंजस्य स्थापित करना है|
विनिमय—–
मनुष्य के प्रारंभिक जीवन में इसकी आवश्यकताएँ बहुत कम थी और वह स्वयं इनकी पूर्ति कर लेता था| परंतु, सभ्यता के विकास के साथ ही मनुष्य की आवश्यकताएँ बहुत बढ़ गई है| आज समाज का कोई भी सदस्य अपनी सभी आवश्यकताओं को स्वयं नहीं पूरा कर सकता| वर्तमान समय में, प्रत्येक व्यक्ति केवल एक ही वस्तु का उत्पादन करता है और दूसरों से विनिमय या लेनदेन कर अपनी आवश्यकता की अन्य वस्तुएँ प्राप्त करता है| कुछ समय पूर्व तक किसी एक वस्तु का दूसरी वस्तु से प्रत्यक्ष रूप में विनिमय होता था| परंतु, वस्तु विनिमय में कयी कठिनाइयाँ थी| अतः, इन्हें दूर करने के लिए समाज में मुद्रा का आविष्कार हुआ| आज विश्व की प्रायः सभी अर्थव्यवस्थाओं में विनिमय का कार्य मुद्रा के माध्यम से होता है| एक अर्थव्यवस्था ही देश में उत्पादित वस्तुओं और सेवाओं के विनिमय की व्यवस्था करती है|
वितरण——
आधुनिक समय में वस्तुओं और सेवाओं का उत्पादन कयी साधनों के सहयोग से होता है जो उत्पादन के साधन या कारक कहे जाते हैं| भूमि, श्रम, पूंजी संगठन एवं साहस उत्पादन के मुख्य साधन है जो उत्पादन कार्य में हिस्सा लेते हैं| अत:, राष्ट्रीय उत्पादन, अर्थात उत्पादित वस्तुओं और सेवाओं के मूल्य का भी इन्हीं के बीच वितरण कर दिया जाता है| देश के कुल उत्पादन में से भूमि को लगान, श्रमिकों को मजदूरी, पूंजीपति को ब्याज, संगठनकर्ता को वेतन तथा साहसी को लाभ मिलता है| एक अर्थव्यवस्था ही इस बात का भी निर्णय लेती है कि उत्पादन के कारकों के बीच उत्पादित संपत्ति का किस प्रकार वितरण हो|
आर्थिक विकास——
अर्थव्यवस्था का एक अन्य महत्वपूर्ण कार्य आर्थिक विकास की गति को बनाए रखना है| इसके लिए यह वर्तमान उत्पादन के एक भाग को बचाकर उसका विनियोग करती है| इससे देश या समाज की भावी उत्पादन क्षमता में वृद्धि होती है|
9. पर्यावरण संकट के कारणों की विवेचना करें–
उत्तर:-
हमारा भूमंडल विकास एवं परिवर्तन के संक्रमण काल से गुजर रहा है| पिछली शताब्दी में जहाँ विश्व उत्पादन 50 गुना से भी अधिक बढ़ गया है वहीं विश्व जनसंख्या भी बढ़कर 6 अरब से अधिक हो गई है| कुछ समय पूर्व तक हमारा ध्यान केवल आर्थिक विकास के वातावरण पर पड़ने वाले प्रभाव तक सीमित था| परंतु, अब हम पारिस्थितिकीय संकट को उसके मूल कारणों से जोड़कर देखने के लिए बाध्य हो गये हैं| इस पर्यावरण एवं पारिस्थितिकीय संकट के मुख्य कारण निम्नलिखित हैं—-
आर्थिक विकास——
आर्थिक विकास एवं औद्योगीकरण के क्रम में प्राकृतिक संसाधनों का अत्यधिक विदोहन तथा दुरूपयोग हुआ है| बीसवीं सदी में विकसित देशों ने पिछड़े और अर्द्ध विकसित देशों के प्राकृतिक साधनों का अत्यधिक शोषण किया| ये देश ही आज औद्योगिक या विकसित देश कहे जाते हैं| गत वर्षों के अन्तर्गत अब विकासशील अर्थव्यवस्थाएं भी अपने उपलब्ध प्राकृतिक संसाधनों का अत्यधिक विदोहन कर रही है| इसके फलस्वरूप, पर्यावरण तथा जैवमंडल को भावी विकास के लिए सुरक्षित रखने की समस्या गंभीर हो गयी है|
निर्धनता—–
वैश्विक पर्यावरणीय समस्याओं का एक प्रमुख कारण निर्धनता है| वास्तव में, निर्धनता इस समस्या का कारण और परिणाम दोनों ही है| कृषि, वन संसाधन, खनन आदि जैसे प्राथमिक उद्योग या व्यवसाय ही विकासशील देशों की आय और रोजगार के मुख्य स्रोत है| इन देशों की कुल राष्ट्रीय आय में इनका 50℅ से भी अधिक योगदान होता है| प्राकृतिक संसाधन ही इनके निर्यात का भी मुख्य आधार है| इनका क्षय होने से इन देशों की उत्पादन क्षमता पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ा है|
जनसंख्या में वृद्धि—-
विश्व की जनसंख्या में निरंतर बहुत तीव्र गति से वृद्धि हो रही है| इनमें लगभग 90℅ वृद्धि पिछड़े और निर्धन देशों में हो रही है जो जनसंख्या विस्फोट की स्थिति में है| इससे भूमि की उपलब्धता कम हुई है तथा उसका दुरूपयोग होने लगा है| भूमि क्षरण, खनिज संपदा का अत्यधिक विदोहन, जंगलों की कटाई आदि बढ़ती हुई जनसंख्या के ही परिणाम है| इससे पर्यावरण और जैवमंडल के लिए खतरा उत्पन्न हो गया है|
नवीन तकनीक—–
आर्थिक विकास ने उत्पादन की नयी तकनीक को जन्म दिया है जिनमें निरंतर सुधार हो रहा है| इससे सीमित साधनों के प्रयोग में सहायता मिली है| परंतु, इनसे पर्यावरण प्रदूषण में भी वृद्धि हुई है| इनका सर्वाधिक प्रतिकूल प्रभाव विकासशील देशों पर पड़ा है| इसका कारण यह है कि वे पूंजी के अभाव में इस प्रकार की अत्याधुनिक तकनीक का प्रयोग करने में असमर्थ है|
10. पर्यावरण की सुरक्षा के लिए किए जानेवाले उपायों का उल्लेख करें—–
आज इस बात से सभी सहमत हैं कि पर्यावरण को सुरक्षित बनाकर ही सतत् अथवा टिकाऊ विकास के उद्देश्य को प्राप्त किया जा सकता है| पर्यावरण की सुरक्षा और इसमें होनेवाली गिरावट को रोकने के लिए प्रायः सभी देशों ने आवश्यक कदम उठाए हैं| भारत सरकार ने पर्यावरण (संरक्षण) अधिनियम 1986 में पारित किया जिसमें केंद्र सरकार को पर्यावरण की सुरक्षा के लिए कयी अधिकार दिए गए हैं| पर्यावरण की गुणवत्ता को सुधारने में वनों की महत्वपूर्ण भूमिका होती है| परंतु, आर्थिक विकास की प्रक्रिया में वनों का बहुत अधिक ह्रास हुआ है| इससे जैव मंडल के लिए खतरा उत्पन्न हो गया है तथा बहुत से जीव जंतु और उनकी प्रजातियाँ नष्ट होती जा रही है| पारिस्थितिकीय प्रणालियों तथा संपूर्ण जैवमंडल के सामान्य संचालन के लिए पेड़ पौधों, जीव जंतुओं तथा सूक्ष्मजीवों की विविधता तथा संपूर्णता को बनाए रखना आवश्यक है| इसके लिए सभी देशों को वनों के विकास और संरक्षण पर बल देना चाहिए| भारत सरकार ने मयी 1952 में अपनी प्रथम वन नीति की घोषणा की थी| सरकार की संशोधित वन नीति 1988 में लागू हुई| इसका मुख्य उद्देश्य पर्यावरण की सुरक्षा की दृष्टि से वनों का विकास, प्राकृतिक संपदा का संरक्षण,नदियों, झीलों तथा जलधाराओं के क्षेत्र में भूक्षरण का नियंत्रण, मरुभूमि एवं तटीय प्रदेशों में रेतीले क्षेत्रों के विस्तार पर नियंत्रण, व्यापक वृक्षारोपण तथा सामाजिक वानिकी को प्रोत्साहन देना है| कयी अन्य देशों ने भी इस प्रकार की नीति अपनायी है| विश्व स्तर पर पर्यावरण संकट को देखते हुए संयुक्त राष्ट्र की सामान्य सभी ने 1983 में विश्व पर्यावरण एवं विकास आयोग की स्थापना की है| यह आयोग संयुक्त राष्ट्र का एक स्वतंत्र निकाय है| इस आयोग के तीन मुख्य उद्देश्य है—– पर्यावरण एवं विकास के शोचनीय परिणामों का पुनरीक्षण करना तथा इनके समाधान के लिए आवश्यक सुझाव देना, इसके लिए अंतर्राष्ट्रीय सहयोग को बढ़ाने तथा विभिन्न देशों की नीतियों में परिवर्तन और सामंजस्य लाने का प्रयास करना तथा व्यक्तियों, स्वैच्छिक संस्थाओं, व्यापारिक संगठनों और सरकारों में इस समस्या के प्रति जगरूकता एवं संकल्प को बढ़ावा देना|
11 आर्थिक विकास के प्रमुख कारकों की विवेचना कीजिये—-
उत्तर:-
आर्थिक विकास के कारकों या निर्धनता तत्वों को मुख्यतः दो वर्गों में विभाजित किया जा सकता है—– आर्थिक कारक तथा गैर आर्थिक कारक| विकास के आर्थिक तत्वों अथवा कारकों में निम्नलिखित महत्वपूर्ण है—–
प्राकृतिक संसाधन—–
प्राकृतिक संसाधनों से हमारा अभिप्राय जलवायु, भूमि, नदियाँ, जंगल, जीव जंतु आदि उन सभी साधनों से है जो किसी देश को प्रकृति द्वारा प्रदान किए जाते हैं| इन प्राकृतिक साधनों पर श्रम एवं पूंजी के प्रयोग द्वारा ही वस्तुओं और सेवाओं का उत्पादन होता है जो मानवीय आवश्यकताओं की संतुष्टि करती है|
पूंजी निर्माण—-
किसी देश की अर्थव्यवस्था के विकास में पूंजी का योगदान अत्यधिक महत्वपूर्ण होता है| प्रथम, पूंजी के प्रयोग से श्रम की उत्पादकता, अर्थव्यवस्था की उत्पादन क्षमता तथा राष्ट्रीय आय के स्तर में वृद्धि होती है| द्वितीय, पूंजी उत्पादित वस्तुओं और वस्तुओं के प्रकार एवं गुणवत्ता में सुधार लाने में सहायक होती है| तृतीय, पूंजी निर्माण की दर में वृद्धि होने से प्रयोग एवं अनुसंधान को प्रोत्साहन मिलता है| इससे आर्थिक विकास की गति अधिक तीव्र हो जाती है|
पूंजी उत्पाद अनुपात—-
पूंजी उत्पाद अनुपात पूंजी की उत्पादकता को व्यक्त करता है| पूंजी की उत्पादकता का अर्थ यह है कि पूंजी की इकाइयों के अनुपात में उत्पादन की मात्रा में कितनी वृद्धि होती है| इससे देश के आर्थिक विकास की गति का पता लगाया जा सकता है| पूंजी की उत्पादकता अथवा पूंजी—- उत्पाद अनुपात जितना अधिक होगा, आर्थिक विकास की गति भी उतनी ही अधिक होगी|
तकनीकी विकास—-
तकनीकी विकास का अभिप्राय उत्पादन की आधुनिक एवं श्रेष्ठ तकनीक और विधियों के विकास तथा प्रयोग से है| तकनीकी विकास से देश के उपलब्ध संसाधनों का कुशलतम प्रयोग होता है और उत्पादित वस्तुओं की गुणवत्ता और मात्रा दोनों में वृद्धि होती है|
मानवीय संसाधन—–
आर्थिक विकास की दृष्टि से मानवीय संसाधनों का सर्वाधिक महत्व है| इसका कारण यह है कि मनुष्य उत्पादन का साधन तथा साध्य दोनों ही है| साधन के रूप में वह श्रम और उद्यमियों की सेवाएँ प्रदान करता है| इनकी सहायता से ही उत्पादन के अन्य साधनों का प्रयोग संभव हो पाता है| मानवीय संसाधनों का महत्व इस कारण और बढ़ जाता है क्योंकि प्राकृतिक संसाधन और पूंजी निष्क्रिय होते हैं| मनुष्य ही प्रकृति प्रदत्त साधनों पर पूंजी का प्रयोग कर वस्तुओं और सेवाओं का उत्पादन करता है|
आर्थिक विकास के गैर आर्थिक कारक—-
किसी देश के आर्थिक विकास का स्तर गैर आर्थिक कारकों से भी प्रभावित होता है| प्राकृतिक एवं मानवीय संसाधन, पूंजी की उपलब्धता, उत्पादन तकनीक आदि विकास के आर्थिक कारक है| इनका आर्थिक विकास पर प्रत्यक्ष प्रभाव पड़ता है| इसके विपरीत, गैर आर्थिक कारक आर्थिक विकास को अप्रत्यक्ष रूप में प्रभावित करते हैं| गैर आर्थिक कारकों में राजनैतिक, सामाजिक एवं धार्मिक संस्थाएँ महत्वपूर्ण है| इस संस्थाओं के प्रतिकूल रहने पर आर्थिक विकास की गति मंद हो जाती है| राजनैतिक स्थायित्व तथा राज्य अथवा सरकार के सहयोग के बिना एक अर्थव्यवस्था का कुशल संचालन संभव नहीं है| उदाहरण के लिए, भारतीय अर्थव्यवस्था के अर्द्ध् विकसित होने का एक प्रधान कारण राजनैतिक रहा है| अंग्रेजों के आगमन के पूर्व भारत की अर्थव्यवस्था सुदृढ़ एवं स्वावलम्बी थी| विदेशी शासकों की विभेदात्मक नीति के कारण ही भारत में आधारभूत और पूंजीगत उद्योगों का विकास नहीं हो सका जो उद्योगीकरण के आधार होते हैं| शिक्षा प्रणाली उत्पादक क्रियाओं में प्रत्यक्ष रुप से भाग नहीं लेती, परंतु ऐसी सेवाएँ प्रदान करती है जो हमारी उत्पादन क्षमता को बढ़ाती है| इसी प्रकार, चिकित्सा, स्वास्थ्य एवं सामाजिक सेवाओं से भी लोगों की उत्पादन कुशलता में वृद्धि होती है| यदि देश की सामाजिक एवं धार्मिक संस्थाएँ सामाजिक चेतना तथा जीवन के नये मूल्यों को विकसित करती है तब इसका आर्थिक विकास पर अनुकूल प्रभाव पड़ता है|
12. देश के अन्य बड़े राज्यों की तुलना में बिहार के आर्थिक विकास की स्थिति क्या है?
उत्तर:-
पूर्वी भारत का एक प्रमुख राज्य होने पर भी बिहार आर्थिक दृष्टि से अत्यंत पिछड़ा हुआ है| वस्तुतः आर्थिक विकास के प्रायः सभी मापदंडों पर यह देश के अन्य सभी राज्यों से नीचे है| किसी देश या राज्य के विकास का स्तर अंततः उसके शुद्ध राज्य घरेलू उत्पाद पर निर्भर करता है| 2005-06 में वर्तमान मूल्यों पर बिहार का शुद्ध राज्य घरेलू उत्पाद 71,497 करोड़ रुपये था जबकि भारत का शुद्ध घरेलू उत्पाद 28,70,750 करोड़ रुपये था| प्रतिव्यक्ति आय विकास का एक अन्य महत्वपूर्ण संकेतक है जो लोगों के जीवन स्तर को प्रभावित करता है| जनसंख्या की सघनता अधिक होने के कारण देश के अन्य राज्यों की तुलना में बिहारवासियों की प्रतिव्यक्ति आय भी बहुत कम है| 2005-06 में वर्तमान मूल्यों पर जहाँ हरियाणा और महाराष्ट्र की प्रतिव्यक्ति आय क्रमशः 38,832 तथा 37,081 रुपये थी| वहाँ बिहारवासियों की प्रतिव्यक्ति आय मात्र 7,875 रुपये थी| खनिज संपदा औद्योगिक विकास का आधार है| विभाजन पूर्व खनिज पदार्थों की दृष्टि से बिहार देश का सबसे धनी राज्य था| परंतु, विभाजन के पश्चात् हमारे अधिकांश खनिज नवनिर्मित राज्य झारखंड में चले गए हैं और बिहार में इनका सर्वथा अभाव हो गया है| पंचवर्षीय योजनाओं के अंतर्गत भी भारी एवं आधारभूत उद्योग अधिकतर दक्षिण बिहार में स्थापित किए गए जो अब झारखंड राज्य का अंग हो गया है| इसका बिहार के औद्योगिक विकास पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ा है| उत्तर बिहार के चीनी, जूट, कागज आदि अधिकांश कृषि आधारित उद्योग रुग्ण अवस्था में है अथवा बंद हो गये| परिणामतः राज्य की अधिकांश जनसंख्या (लगभग 80 हजार) अपने जीविकोपार्जन के लिए कृषि पर निर्भर है| हमारे सकल राज्य घरेलू उत्पाद में भी कृषि लगभग 40℅ योगदान होता है| परंतु बिहार की कृषि अत्यंत पिछड़ी हुई अवस्था में है तथा इसकी उत्पादकता देश के प्रायः अन्य सभी राज्यों से कम है| बिहार की आर्थिक और सामाजिक दोनों ही संरचनाएँ बहुत कमजोर और निम्न स्तर की है| राज्य में बिजली की बहुत कमी है तथा यह कृषि एवं उद्योग दोनों ही क्षेत्रों के विकास में बाधक सिद्ध होती है| क्षेत्रफल तथा जनसंख्या दोनों ही दृष्टियों से बिहार में सड़कों की लंबाई देश के अन्य विकसित राज्यों की अपेक्षा बहुत कम है| शिक्षा और स्वास्थ्य सेवाएँ विकास के महत्वपूर्ण मापदंड है| बिहार में इन सेवाओं का स्तर भी बहुत निम्न हैं| परंतु, विगत लगभग 4-5 वर्षों में बिहार में आर्थिक विकास की प्रक्रिया तीव्र हुई है| केन्द्रीय सांख्यिकी संगठन की हाल में प्रकाशित रिपोर्ट के अनुसार 2004-05 से 2008-09 के बीच बिहार की अर्थव्यवस्था में औसतन 11.3 प्रतिशत की वार्षिक दर से वृद्धि हुई है| बिहार सरकार की 2009-10 के आर्थिक सर्वेक्षण रिपोर्ट के अनुसार 2004-05 में राज्य की प्रतिव्यक्ति आय 7,443 रुपये थी जो 2008 में बढ़कर 10,415 और 2009 में 13,959 रुपये हो गई है| बिहार की यह उच्च वृद्धि दर मुख्यतया निर्माण, संचार तथा व्यापार (होटल और रेस्टोरेंट) प्रक्षेत्र में होनेवाले विकास का परिणाम है|
0 टिप्पणियाँ