Bharti Bhawan Political Science Class-10:Chapter-2:Very Short Type Question Answer:Short Type Question Answer:Long Answer Type Question Answer:राजनीतिशास्त्र:कक्षा-10:अध्याय-2:अति लघु उत्तरीय प्रश्न उत्तर:लघु उत्तरीय प्रश्न:दीर्घ उत्तरीय प्रश्न





जातीय, लैंगिक एवं साम्प्रदायिक विभेद का लोकतांत्रिक राजनीति पर प्रभाव





अतिलघु उत्तरीय प्रश्न





1. श्रम का लैंगिक विभाजन क्या है? 
उत्तर:-
श्रम के लैंगिक विभाजन के अंतर्गत महिलाओं को घर के अंदर के सारे कामों को पूरा करना होता था तथा पुरूषों को घर के बाहर के कार्यों को सौंपा गया|
2. भ्रूण हत्या से आप क्या समझते हैं? 
उत्तर:-
वर्तमान में अत्याधुनिक उपकरणों से गर्भ में ही शिशु (भ्रूण) के लिंग की जानकारी प्राप्त कर ली जाती है और पुत्री के जन्म होने की उम्मीद पर गर्भ में ही उसकी हत्या कर दी जाती है| इसे ही भ्रूण हत्या कहा जाता है| 
3. महिलाओं के सशक्तिकरण से आप क्या समझते हैं? 
उत्तर:-
महिलाएँ आज राजनीतिक दृष्टिकोण से काफी पिछड़ी हुई है| नारियों के विकास के बिना समाज के विकास की बात करना गलत है| अत: महिलाओं में अपने अधिकारों के प्रति जागृत होना ही महिला सशक्तिकरण है|
4. जाति व्यवस्था पर जगजीवन राम का क्या विचार था? 
उत्तर:-
जाति व्यवस्था पर स्वर्गीय बाबू जगजीवन राम का कहना था कि एक आदमी अपना सब कुछ छोड़ सकता है, परंतु वह जाति व्यवस्था में अपने विश्वास को तिलांजलि नहीं दे सकता|
5. धर्म निरपेक्षता का क्या अर्थ है? 
उत्तर:-
धर्म निरपेक्षता का अर्थ है धर्म के आधार पर किसी भी प्रकार का भेदभाव नहीं करना तथा किसी भी व्यक्ति को अपने धर्म में विश्वास रखने पर आज्प्रदी देना|
लघु उत्तरीय प्रश्न





1. लैंगिक विभेद से आप क्या समझते हैं? 
उत्तर:-
लिंग के आधार पर होने वाले विभेद को लैंगिक विभेद कहते हैं| लिंग के आधार पर समाज दो वर्गों में बांटा रहता है| महिला एवं पुरूष इनमें असमानता सर्वत्र व्याप्त है| जैविक दृष्टिकोण से तो दोनों में असमानता स्वाभाविक है, परंतु दोनों के बीच सामाजिक विभेद भी बने रहते हैं| आधुनिक युग में महिला एवं पुरुष के बीच लिंग के आधार पर विभेद एक सामाजिक समस्या बन गयी है|
2. समाज में नारी की दयनीय स्थिति के लिए उत्तरदायी का वर्णन करें|
उत्तर:-
प्राचीन काल में समाज में नारियों का गौरव पूर्ण स्थान था| उन्हें पुरूषों के समान अधिकार प्राप्त थे तथा वे अपने घर की सामग्री मानी जाती थी| उन्हें गृहलक्ष्मी के नाम से सुशोभित किया जाता था| यह विश्वास व्याप्त था कि जहाँ नारी का सम्मान होता है वहाँ देवता का निवास होता है| परंतु धीरे धीरे नारियों की स्थिति समाज में दयनीय होती गयी जिसके निम्नलिखित प्रमुख कारण रहे हैं——
1. महिलाओं के साथ भेदभाव पूर्ण व्यवहार
2. श्रम का लैंगिक विभाजन
3. स्त्री भ्रूण हत्या
4. शिक्षा का अभाव
5. राजनीति अधिकारों का अभाव
3. महिलाओं की स्थिति में सुधार लाने की जरूरत के लिए कोई दो कारण बताएं|
उत्तर:-
स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद नारियों के जीवन में एक नया मोड़ आया| लिंग समानता के सिद्धांत को स्वीकार किया गया| भारतीय संविधान में भी उन्हें पुरूषों के समान अधिकार दिए गए हैं| संविधान में लिंग के आधार पर किसी प्रकार का भेदभाव करने की इज्जत नहीं दी गई है| महिलाओं की स्थिति में सुधार लाने की जरूरत के लिए दो कारण निम्नलिखित हैं——
महिलाओं में शिक्षा का स्तर ऊंचा उठाना—–
महिलाओं के बीच शिक्षा का प्रसार कर उनकी स्थिति में सुधार लाया जा सकता है|
महिला सशक्तिकरण—–
महिलाओं को राजनीतिक अधिकार पुरूषों की तुलना में काफी बाद में प्राप्त हुए| अब महिलाओं में भी राजनीतिक चेतना जागृत हो चुकी है तथा अब वे भी पुरूषों के समान राजनीतिक अधिकार प्राप्त करने में संघर्षरत है|
4. भारत की संसद तथा राज्य विधानमंडलों में महिलाओं के प्रतिनिधत्व की स्थिति पर प्रकाश डालें|
उत्तर:-
महिलाओं के सशक्तिकरण की दिशा में विभिन्न प्रयासों का ही फल है कि उनकी आर्थिक एवं सामाजिक स्थिति निरंतर सुधर रही है, परंतु राजनीतिक स्थिति अभी भी दयनीय बनी हुई है| संसद एवं राज्य विधानमंडलों में उनकी भूमिका नगण्य है| केन्द्रीय तथा राज्य मंत्रिपरिषद में भी महिलाओं का प्रतिनिधित्व काफी कम है| भारत की संसद में महिलाओं का प्रतिनिधित्व भी विश्व के अन्य देशों की संसदों की तुलना में बहुत कम है| भारत में 8.3 प्रतिशत ही महिलाओं का प्रतिनिधित्व प्राप्त है| भारत की लोकसभा में महिलाओं का प्रतिनिधित्व लगभग 11 प्रतिशत है वहीं भारत के राज्य विधानमंडलों में तो यह 4 प्रतिशत ही है| भारत के लगभग सभी राजनीतिक दलों ने अपने चुनावी घोषणापत्र में संसद और राज्य विधानमंडलों में महिलाओं के लिए 33 प्रतिशत आरक्षण का वायदा किया है जो वर्षों से इन आशय का विधेयक संसद में लंबित है|
5. विभिन्न तरह की सांप्रदायिक राजनीति का सोदाहरण उल्लेख करें|
उत्तर:-
सामाजिक विभेद के एक प्रकारों में धार्मिक विभेद एवं सांप्रदायिक विभेद भी है| धार्मिक विभेद के कारण ही विश्व में सांप्रदायिक विभेद भी देखने को मिलता है| इस विभेद का राजनीति से गहरा संबंध होता है| विभिन्न तरह ही सांप्रदायिक राजनीति निम्नलिखित हैं—–
सांप्रदायिक की सोच प्रायः अपने धार्मिक समुदाय का प्रमुख बहुसंख्यकवाद का रुप चाहता है| जो लोग बहुसंख्यक समुदाय के होते हैं उनकी यह कोशिश बहुसंख्यकवाद का रुप ले लेती है| उदाहरणार्थ श्रीलंका में सिंहली समुदाय की प्रभुता कायम करने के लिए अपने बहुसंख्यक परस्ती के तहत कयी कदम उठाए|
सांप्रदायिक के आधार पर राजनीति गोलबंदी सांप्रदायिकता का दूसरा रुप हे| इस हेतु पवित्र प्रतीकों, धर्म गुरुओं और भावनात्मक अपीलों का सहारा लिया जाता है| निर्वाचन के वक्त हम अक्सर ऐसा देखते हैं कि किसी खास धर्म के अनुयायियों से किसी पार्टी विशेष के पक्ष में मतदान करने की अपील कराई जाती है|
अंत में सांप्रदायिकता का भयावह रुप तब हम देखते हैं जब संप्रदाय के आधार पर हिंसा दंगा और नरसंहार होता है| विभाजन से पहले और बाद में भी कयी जगहों पर बड़े पैमाने पर सांप्रदायिक हिंसा हुई है|
6. सांप्रदायिकता से आप क्या समझते हैं? इसके मुख्य तत्व बताएं|
उत्तर:-
जब हम यह कहते हैं कि धर्म की समुदाय का निर्माण करती है तो सांप्रदायिक राजनीति जन्म लेने लगती है और इस अवधारणा पर आधारित सोच ही सांप्रदायिकता है| सांप्रदायिकता का सही अर्थ है अपने धर्म को अन्य धर्मों से ऊंचा मानना| अपने धार्मिक हितों के लिए राष्ट्रहित का बलिदान कर देना सांप्रदायिकता है| 
सांप्रदायिकता के तीन बताएं गये हैं—– (1) एक धर्म के अनुयायियों की धार्मिक कार्यों के साथ साथ राजनीतिक आर्थिक, सामाजिक और सांस्कृतिक हितों में भागीदारी (2) एक धर्म के अनुयायियों के लौकिक हित दूसरे धर्म के अनुयायियों से भिन्न होते हैं|(3) उनके हित एक दूसरे से भिन्न ही नहीं, बल्कि परस्पर विरोधी होते हैं|
7. सांप्रदायिकता की भावना को अंग्रेजों ने क्या और कैसे उभारा? 
उत्तर:-
सांप्रदायिकता भारतीय राजनीति के लिए अभिशाप सिद्ध हुई| इसके विकास की कहानी ब्रिटिश राज की स्थापना से शुरू होतीं हैं| अंग्रेजों ने देखा कि भारतीयों में अभूतपूर्व एकता है तथा सभी संप्रदाय के लोगों के बीच प्रेम और सदभाव व्याप्त है| भारत के स्वाधीनता संग्राम में सभी संप्रदाय के लोग एकजुट है| अंग्रेज किसी भी कीमत पर देश का शासन अपने हाथों से जाने देना नहीं चाहते थे| फलतः उन्होंने फूट डालो और शासन करो की नीति को गले लगाया| वे यह समझ गए थे कि ब्रिटिश शासन का हित मुसलमानों को प्रोत्साहित कर उन्हें कांग्रेस के आंदोलन से अलग में ही है| अत: अंग्रेजों ने मुसलमानों का समर्थन करते हुए 1906 में स्थापित मुस्लिम लीग तथा 1909 के मौले मिण्टो सुधार में मुस्लिमों के लिए अलग से निर्वाचन में स्थान की बात कर सांप्रदायिकता की भावना को उभारा जिससे कांग्रेस के आंदोलन में बाधा उपस्थित होने लगी|
8. धार्मिक संप्रदायवाद भारतीय लोकतंत्र के लिए किस प्रकार खतरनाक है? 
उत्तर:-
भारत एक धर्मनिरपेक्ष देश है| राज्य का कोई अपना धर्म नहीं है| इस बात ये तनिक भी संदेह नहीं कि संप्रदायवाद की भावना धर्मनिरपेक्षता के मार्ग में तथा भारतीय लोकतंत्र के लिए खतरनाक है| भारत जैसे लोकतांत्रिक देश में सभी को अपना अपना धर्म को मानने की आज़ादी दी गई है| लेकिन यहाँ कभी हिंदुओं तथा कभी मुसलमानों की धार्मिक भावनाओं को उकसाकर सांप्रदायिक दंगे कराए जाने की कोशिश होती है, जिससे लोकतंत्र का अस्तित्व खतरे में पड़े जाने की संभावना बन जाती है|
9. भारत में धार्मिक सांप्रदायिकता के कोई तीन प्रभावों का उल्लेख कीजिये|
उत्तर:-
भारत में सांप्रदायिकता के तीन प्रभाव—–
(1) 1947 में भारत का विभाजन कर मुसलमान बहुल क्षेत्र को पाकिस्तान बना
(2) अहिंसा के पुजारी महात्मा गाँधी को भी इसी उन्माद का शिकार होना पड़ा
(3) आए दिन कश्मीर में हो रहे आतंकवादी हमले भी संप्रदायवाद का ही देन है|
10. सांप्रदायिकता से क्या तात्पर्य है? इसे लोकतंत्र के लिए खतरा क्यों माना जाता है? 
उत्तर:-
सांप्रदायिकता का सही अर्थ है अपने धर्म को अन्य धर्मों से ऊंचा मानना| अपने धार्मिक हितों के लिए राष्ट्रहित का भी बलिदान कर देना सांप्रदायिकता है| सांप्रदायिकता धर्म के नाम पर घृणा फैलाती है| यह एक विष के समान है जो मानव को घृणा करना सिखाता है| इस संकुचित मनोवृत्ति के कारण एक धर्म के अनुयायी दूसरे धर्म के अनुयायियों अथवा एक समुदाय को लोग दूसरे समुदाय के लोगों के खुन के प्यासे हो जाते हैं| सांप्रदायिकता के कारण एक समुदाय के लोग दूसरे समुदाय के लोगों से दुश्मन जैसा व्यवहार करने लगते हैं जिससे सांप्रदायिक दंगा होने लगते हैं| इसके कारण राष्ट्रीय एकता खतरे में पड़ जाती है जो लोकतंत्र के लिए खतरा उत्पन्न कर देती है|
11. जातिवाद किस प्रकार भारतीय लोकतंत्र के लिए एक चुनौती है? वर्णन कीजिये|
उत्तर:-
लोकतांत्रिक व्यवस्था में जाति की भूमिका सदैव ही महत्वपूर्ण रही है| लोकतांत्रिक व्यवस्था की स्थापना एवं निर्वाचन की राजनीति में जाति की एक महत्वपूर्ण भूमिका रही है| भारत की सामाजिक समस्याओं में जातिवाद की समस्या मुख्य मानी जाती है| आज संपूर्ण देश जातिवाद का शिकार बन गया है| इसके कारण ऊंच नीच, अमीर गरीब, अस्पृश्यता आदि कुत्सित भावनाओं का जन्म हो गया है| आज भारत में चार जातियों के बीच तीन हजार उपजातियाँ हो गई है जो राष्ट्रीय एकता और प्रजातंत्र के लिए खतरनाक है| तथा लोकतंत्र के लिए एक गंभीर चुनौती बनी हुई है|
12. दो सामाजिक बुराईयों के नाम बताएं जो अभी तक भारतीय समाज में विद्यमान है|
उत्तर:-
जातिवाद, छुआछुत
13. भारतीय समाज पर जातिवाद के दो कुप्रभावों का उल्लेख कीजिये|
उत्तर:-
भारतीय समाज पर जातिवाद के कुप्रभाव स्पष्ट रूप से दिखाई पड़ते हैं| भारतीय समाज पर जातिवाद के दो प्रभाव निम्नलिखित हैं——-
(1) विभिन्न जातियों के लोग एक दूसरे को अश्रद्धा और घृणा की दृष्टि से देखते हैं| इसके परिणामस्वरूप लोगों में असमानता एवं फूट की भावना बढ़ती है|
(2) जातिवाद के कारण राष्ट्र अनेक प्रतियोगी समूहों एवं टुकड़ों में बंट जाता है जिससे राष्ट्रीय एकता पर कुठाराघात होता है|
14. सिर्फ जाति के आधार पर ही चुनाव नहीं लड़े जा सकते| इस कोई दो कारण बताएं|
उत्तर:-
राजनीति में जाति के बढ़ते प्रभाव से यह निष्कर्ष निकाल लेना सही नहीं होगा कि चुनाव में जाति की ही भूमिका सर्वोपरि है| कभी कभी तो ऐसा भी होता है कि किसी विशेष जाति बहुलवाले निर्वाचन क्षेत्र में अधिकांश राजनीतिक दल उसी जाति के उम्मीदवार को खड़ा कर देते हैं| परिणामस्वरूप दो मुख्य विकल्प सामने आते हैं| बहुल जाति के मतदाता किसी विशेष राजनीतिक दल के उम्मीदवारों को सफल बनाने के लिए एकजुट हो जाते हैं| यदि ऐसा नहीं हो सका तो बहुल जाति के अधिकांश मतदाता दूसरी जाति के मतदाताओं से एक नया समीकरण बनाकर बाजी मार लेते हैं| ऐसी अवस्था में कयी उम्मीदवारों को अपनी जाति विशेष के वोट बैंक पर नजर रखने पर भी मुंह की खानी पड़ती है| स्पष्ट है कि सिर्फ जाति के आधार पर चुनाव नहीं लड़े जा सकते|
15. भारत में किस तरह जातिगत असमानताएँ अभी भी विद्यमान है? स्पष्ट करें|
उत्तर:-
भारत में आज भी जातिगत असमानताएँ तथा विभेद समाज में विद्यमान है| एक जाति विशेष में भी कयी तरह की असमानताएँ विद्यमान है जैसे— गरीब और अमीर शाषक और शोषित का विभेद आदि| सवर्णों और दलितों के बीच जातिगत असमानताएँ तथा अगड़ी और पिछड़ी जातियों के बीच जातिगत असमानता आज भी विद्यमान है|
16. भारत एक धर्मनिरपेक्ष राज्य है? इसके पक्ष में दो तर्क दें|
उत्तर:-
भारतीय संविधान के अनुसार भारत में एक धर्मनिरपेक्ष राज्य की स्थापना की गई है| इसके पक्ष में दो तर्क निम्नलिखित हैं——
(1) हमारे देश में किसी भी धर्म को राजकीय धर्म के रूप में स्वीकार नहीं किया गया है| श्रीलंका में बौद्ध धर्म, पाकिस्तान में इस्लाम और इंग्लैंड में ईसाई धर्म का जो दर्जा दिया गया है, उसके विपरीत भारत का संविधान किसी धर्म को विशेष दर्जा नहीं देता|
(2) संविधान में हर नागरिक को यह स्वतंत्रता दी गई है कि अपने विश्वास से वह किसी धर्म को अंगीकार कर सकता है| इस आधार पर उसे किसी अवसर से वंचित नहीं किया जा सकता है| प्रत्येक धर्मावलंबियों को अपने धर्म का पालन करने अथवा शांतिपूर्ण ढंग से प्रचार करने का अधिकार है|
दीर्घ उत्तरीय प्रश्न






1. स्वतंत्र भारत के नारियों की स्थिति में सुधार के लिए भारत सरकार उठाए गए कदमों का वर्णन करें|
उत्तर:-
स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद नारियों के जीवन में एक नया जोड़ आया| लिंग समानता के सिद्धांत को स्वीकार करते हुए भारतीय संविधान द्वारा उन्हें पुरूषों के बराबर अधिकार दिया गया है| लिंग के आधार पर भेदभाव कानून के समक्ष समानता, रोजगार के क्षेत्र में अवसर की समानता, वयस्क मताधिकार, समान कार्य हेतु समान वेतन आदि अधिकार महिलाओं को संविधान द्वारा निर्दिष्ट किए गए हैं| विभिन्न सरकारों द्वारा भी समय समय पर कानून बनाकर महिलाओं के जीवन स्तर में सुधार लाने का प्रयास किया गया है| एक कानून बनाकर लड़कियों के विवाह की आयु कम से कम 18 वर्ष निश्चित कर दी गई है| इसी प्रकार, सरकार ने एक कानून बनाकर यह व्यवस्था कर दी है कि पति से अलग होने पर पत्नी और उसके आश्रित बच्चों को भरण पोषण के लिए पति से एक निश्चित राशि पाने का अधिकार है| नारियों को भी विरासत में परिसंपत्ति पाने का अधिकार है| सरकार की ओर से लड़कियों की शिक्षा के लिए भरपूर प्रयत्न किए जा रहे हैं| महिलाओं के जागरण के लिए बालिका विद्यालय, महिला शिल्प सदन, मातृसेवा सदन इत्यादि का संचालन बहुत सी गैर सरकारी संस्थाएँ भी कर रही है| शिक्षण संस्थानों में लड़कियों की संख्या और महिला शिक्षकों की संख्या में कयी गुनी बढ़ोतरी हो गई है| ऊंचे ऊंचे पदों पर आज महिलाएँ भी आसीन है| वर्तमान में देश के राष्ट्रपति तथा लोकसभा अध्यक्ष के पद पर महिला ही आसीन है| 1953 में केंद्रीय समाज कल्याण बोर्ड का गठन किया गया, जिसने स्वयंसेवी संगठनों द्वारा महिलाओं के कल्याण के लिए कयी कदम उठाए| विभिन्न पंचवर्षीय योजनाओं में महिलाओं के कल्याण पर विशेष स्थान दिया गया| स्वरोजगारी महिलाओं की समस्याओं के अध्ययन के लिए श्रीमती इलाभट्ट की अध्यक्षता में एक राष्ट्रीय आयोग का गठन फरवरी 1987 में किया गया| ग्रामीण महिला और शिशु विकास योजना (डवाकरा) 1982 में शुरू की गई जिसका उद्देश्य गरीबी रेखा के नीचे गुजर बसर करने वाली ग्रामीण महिलाओं के लिए स्वरोजगार का अवसर जुटाना है| अंतराष्ट्रीय महिला वर्ष 1975 ने भारत की महिलाओं को प्राप्ति के पथ पर बढ़ने के लिए संबल दिया है| महिलाओं ने सशक्तिकरण की दिशा में विभिन्न प्रयासों का ही फल है कि उनकी आर्थिक एवं सामाजिक स्थिति निरंतर सुधर रही है, परंतु राजनीतिक स्थिति अभी भी दयनीय बनी हुई है| संविधान के 43 वें एवं 74 वें संशोधन द्वारा देशभर में ग्रामीण एवं नगरीय पंचायतों के सभी स्तरों पर महिलाओं हेतु एक तिहाई स्थान आरक्षित किए गए|
2. लैंगिक विभेद का राजनीति पर पड़ने वाले प्रभावों का वर्णन करें|
उत्तर:-
लोकतंत्र में सत्ता में भागीदारी में किसी तरह का भेदभाव नही किया जाना चाहिए| इस संदर्भ में महिलाओं और पुरूषों में भी भेदभाव किया जाना अनुचित है| सत्ता में सुनिश्चित भागीदारी ही महिलाओं को राजनीतिक रुप से सशक्त कर सकती है| परंतु दु:ख की बात है कि राजनीति में आज भी महिलाओं की भूमिका बहुत सार्थक नहीं मानी जा सकती| लैंगिक विभेद का अर्थ है, समाज का लिंग (महिला और पुरूष) के आधार पर बंटवारा| आज संपूर्ण समाज का लगभग 48℅ स्त्रियाँ है| प्रारंभ में उन्हें पुरूषों के बराबर अधिकार प्राप्त थे, परन्तु धीरे धीरे उनकी दशा खराब होती चली गई| लैंगिक विभेद के कारण आज विश्व भर में राजनीति में स्त्रियों का प्रतिनिधित्व कम है| अमेरिका में 20.2℅ यूरोप में 19.6℅ तथा दक्षिण एशिया में 11.7 प्रतिशत महिलाओं को प्रतिनिधित्व प्राप्त है| भारत की लोकसभा में महिलाओं का प्रतिनिधित्व लगभग 11 प्रतिशत है तथा राज्यसभा में 9.3 प्रतिशत तथा राज्य विधानमंडलों में तो यह 4℅ ही है वर्ष 2007 में पहली बार देश में कोई महिला राष्ट्रपति बनी और 2009 में पहली बार एक महिला लोकसभा की अध्यक्ष (स्पीकर) बनी| लैंगिक विभेद के कारण जो प्रतिनिधित्व की कमी होती है उससे उनके समस्याओं को बेहतर ढंग से रखा नहीं जा रहा है| आज भी 33% आरक्षण की माँग जारी है| जबतक लैंगिक आधार पर राजनैतिक भेदभाव जारी है| जबतक लैंगिक आधार पर राजनैतिक भेदभाव जारी रहेगी महिलाएँ अपने आत्मसम्मान, स्वावलंबन एवं समस्याओं का हल प्राप्त नहीं कर पाएगी|
3. धार्मिक एवं सांप्रदायिक राजनीति के विकास में सहायक तत्वों का वर्णन करें|
उत्तर:-
लैंगिक विभाजन के अतिरिक्त सामाजिक विभेद का एक और प्रकार है वह है धार्मिक एवं सांप्रदायिक विभेद| धार्मिक विभेद के कारण ही विश्व में सांप्रदायिक विभेद भी देखने को मिलता है| इस विभेद का भी राजनीति से गहरा संबंध रहा है| आधुनिक युग में धर्म और राजनीति का संबंध संकीर्णता से परिपूर्ण है| धर्म की आड़ में राजनीति में घिनौना खेल खेला जाता है| कुछ राजनीतिक दलों का गठन भी किसी भी धर्म विशेष को बढ़ावा देने के लिए किया जाता है| धार्मिक आडंबर ने संप्रदायवाद का रुप ले लिया है| संप्रदायवाद की भावना के कारण विश्व के कयी देशों में गंदी राजनीति पनपने लगी है| सांप्रदायिकता धर्मनिरपेक्षता के मार्ग सबसे बड़ी बाधा है|राजनीति में धर्म एक समस्या के रूप में तब खड़ी हो जाती है जब———–
(1) धर्म को राष्ट्र का आधार मान लिया जाता है|
(2) राजनीति में धर्म की अभिव्यक्ति एक समुदाय विशेष के विशिष्टता के लिए की जाती है|
(3) राजनीति किसी धर्म विशेष के दावे का पक्ष पषण
 करने लगती है|
(4) किसी धर्म विशेष के अनुयायी दूसरे धर्मावलंबियों के खिलाफ मोर्चा खोलने लगता है| ऐसा तब होता है जब एक धर्म के विचारों को दूसरे धर्म से श्रेष्ठ माना जाता है और एक धार्मिक समूह अपनी मांगों को दूसरे समूह के विरोध में खड़ा करने लगता है| इस प्रक्रिया में राज्य अपनी सत्ता का उपयोग किसी एक धर्म विशेष के पक्ष में करने लगता है तो समस्या और गहरी हो जाती है तथा दो धार्मिक समुदाय में हिंसात्मक तनाव शुरू हो जाता है| राजनीति में धर्म को इस तरह इस्तेमाल करना ही सांप्रदायिकता है|
4. भारत की राजनीति जातिवाद पर आधृत है| वर्णन करें|
उत्तर:-
जातीय विभेद का भी राजनीति से गहरा संबंध स्थापित हो चुका है| स्वर्गीय बाबु जगजीवन राम का कहना सही है कि एक आदमी अपना सबकुछ छोड़ सकता है, परंतु वह जाति व्यवस्था में अपने विश्वास को, तिलांजलि नहीं दे सकता| राजनीति में जातीय विभेद की इतनी गहरी पैठ हो चुकी है कि बेटी और वोट अपनी ही जाति को दो का प्रचलन हो गया है| भारत की राजनीति जातिवाद पर आधृत है इसके पक्ष में निम्नलिखित तथ्य दिए जा सकते हैं——–
विभिन्न राजनीतिक दलों द्वारा जाति के आधार पर उम्मीदवारों का चयन——-
चुनावों में विभिन्न निर्वाचन क्षेत्रों के लिए जब विभिन्न राजनीतिक दल अपने उम्मीदवारों का चयन करने लगते हैं तब सबसे अधिक इस बात का ध्यान रखते हैं कि उस विशेष निर्वाचन क्षेत्र में किस जाति का बहुमत है| अधिकांश राजनीतिक इस अपने उम्मीदवार का चयन करते समय उसी जाति के व्यक्ति को उम्मीदवार बनाते हैं जिसकी जीत सुनिश्चित हो सके|
सरकार में विभिन्न जातियों का प्रतिनिधित्व—-
भारत में चाहे केन्द्र सरकार हो या राज्य सरकार उनकी मंत्रिपरिषद में सभी जातियों की प्रतिनिधित्व देने की परंपरा भी स्थापित हो गई है|
जातीय भावनाओं को उकसाने में राजनीतिक दलों की सक्रियता—-
भारत में ऐसे राजनीतिक दलों की कमी नहीं है जो जातीय भावनाओं को उकसाकर चुनाव अपने उम्मीदवारों की जीत सुनिश्चित कर लेते हैं| कयी राजनीतिक दल कुछ जातियों के समर्थन पर ही निर्भर रहते हैं| इसके अतिरिक्त कमजोर जाति के लोगों को भी राजनीति में अभिरुचि काफी बढ़ी है| उन्हें यह बात अब अच्छी तरह समझ में आयी है कि वे अबतक कमजोर इस कारण रहे कि उन्होंने राजनीति से अपने को दूर रखा| अत: हम कह सकते हैं कि भारत की राजनीति में जातिवाद का काफी बोलवाला है|
5. भारत की राजनीति पर लैंगिक, धार्मिक सांप्रदायिक तथा जातीय विभेद के प्रभावों का वर्णन करें|
उत्तर:-

लैंगिक प्रभाव—–
लैंगिक विभेद का अर्थ है, समाज का लिंग (महिला तथा पुरूष) के आधार पर बंटवारा| आज समाज में लगभग 48℅ स्त्रियाँ है| प्रारंभ में उन्हें पुरूषों के बराबर अधिकार प्राप्त थे, परंतु धीरे धीरे उनकी दशा खराब होती चली गई| लैंगिक विभेद के कारण आज विश्वभर में राजनीति में स्त्रियों का प्रतिनिधित्व कम है| अमेरिका में 20.2℅ यूरोप में 19.6℅ तथा एशिया के देशों का औसत मात्र 11.7℅ है| भारत में लोकसभा में सिर्फ 11℅ , राज्य सभा में 9.3℅ महिलाएँ है| भारत के राज्य विधानमंडलों में तो यह 4℅ ही है| भारत के लगभग सभी राजनीतिक दलों ने अपने चुनावी घोषणापत्र में संसद और राज्य विधानमंडलों में महिलाओं के सिर 33 प्रतिशत आरक्षण का वायदा किया है, परंतु यह विधेयक अभी संसद में लंबित है| इस तरह हम कह सकते हैं कि जबतक लैंगिक आधार पर राजनैतिक भेदभाव जारी रहेगा, स्त्रियाँ अपने आत्मसम्मान, स्वावलंबन एवं समस्याओं का हल प्राप्त नहीं कर पाएगी|
धार्मिक एवं साम्प्रदायिक प्रभाव—–
भारत की राजनीति पर धार्मिक एवं साम्प्रदायिक प्रभाव भी देखने को मिलते हैं| आधुनिक युग में धर्म और राजनीति का गहरा संबंध है| धर्म की आड़ में राजनीति का घिनौना खेल खेला जा रहा है| कुछ राजनीतिक दलों का गठन भी किसी धर्म विशेष को बढ़ावा देने के लिए ही किया जाता रहा है| आर्थिक आडंवर ने ही संप्रदायवाद का रूप ले लिया है| संप्रदायवाद की भावना के कारण विश्व के कयी देशों में गंदी राजनीति पनपने लगी है| राष्ट्रीय एकता तरह धर्मनिरपेक्षता के मार्ग में सांप्रदायिकता सबसे बड़ी बाधा है| संप्रदायिकता के कारण ही भारत का विभाजन हुआ था|
जातीय विभेद का प्रभाव—–
लोकतांत्रिक व्यवस्था में जाति की भूमिका सदैव ही महत्वपूर्ण रही है| निर्वाचन की राजनीति में जाति की एक महत्वपूर्ण भूमिका रही है| राजनीति में जाति का प्रभाव निम्नलिखित रूप से देखने को मिलता है—–
(1) राजनीतिक दल अपने अपने जाति आधारित वोट बैंकों का स्थल रखते हुए उम्मीदवारों का चयन करते हैं|
(2) सरकार बनाते समय भी सत्तारूढ़ दल अपने प्रांत या राष्ट्र के जाति आधारित प्रतिनिधित्व का पूरा स्थान रखते हैं|
(3) राजनीति में जाति के प्रभाव के कारण ही पिछड़ी जाति के लोगों का राजनीति में काफी रूचि बढ़ती जा रही है| उनका मानना है कि बिना सत्ता हासिल किए हुए उनका कल्याण संभव नहीं है|
(4) राजनीतिक दल भी चुनावों के समय जाति आधारित भावनाओं को उकसाने का प्रयास करते हैं जिनसे उनकी पार्टी की ओर से ज्यादा लोगों का ध्यान आकर्षित हो और उनके दल को अधिक से अधिक वोटों की प्राप्ति हो|

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