Bharti Bhawan Political Science Class-10:Chapter-1:Very Short Type Question Answer:Short Type Question Answer:Long Answer Type Question Answer:राजनीतिशास्त्र:कक्षा-10:अध्याय-1:अति लघु उत्तरीय प्रश्न उत्तर:लघु उत्तरीय प्रश्न:दीर्घ उत्तरीय प्रश्न




                लोकतंत्र में सत्ता की भागीदारी





अतिलघु उत्तरीय प्रश्न






1. सामाजिक विभेद की उत्पत्ति का एक कारण बताएं? 
उत्तर:-
सामाजिक विभेद की उत्पत्ति का एक कारण जन्म है|
2. विविधता राष्ट्र के लिए कब घातक बन जाती है? 
उत्तर:-
जब धर्म, क्षेत्र, भाषा, जाति, संप्रदाय के नाम पर लोग आपस में उलझ पड़ते हैं, तो यह लोकतांत्रिक व्यवस्था को कमजोर बना देता है| विविधताएँ जब सीमा का उल्लंघन करने लगती है तब सामाजिक विभाजन अवश्यंभावी हो जाता है तथा राष्ट्र के लिए घातक बन जाते हैं|
3. भारत में सर्वप्रथम समन्वय का एक उदाहरण प्रस्तुत करे|
उत्तर:-
भारत में मंदिरों के शहर वाराणसी में नाजनीन नामक एक मुस्लिम लड़की ने हनुमान भक्तों की पवित्र पुस्तक हनुमान चालीसा को उर्दू में लिपिबद्ध कर सर्वप्रथम समन्वय का एक उत्कृष्ट उदाहरण पेश किया|
4. उत्तरी आयरलैंड में एक ही धर्म के दो समूहों के प्रतिनिधित्व करने वाली दो राजनीतिक पार्टियों के नाम बताएं|
उत्तर:-
उत्तरी आयरलैंड में एक ही धर्म को दो समूहों प्रोटेस्टैंटों और कैथोलिकों को प्रतिनिधित्व करने वाली दो राजनीतिक पार्टियाँ थी– नेशनलिस्ट पार्टियाँ तथा यूनियनिस्ट पार्टियाँ|
5. सामाजिक विभेदों की राजनीति का एक अच्छा परिणाम बताएं|
उत्तर:-
सामाजिक विभेदों की राजनीति का एक अच्छा परिणाम यह है कि अधिकांश लोकतांत्रिक व्यवस्थाओं में सामाजिक विभेद और राजनीति में अटूट संबंध देखने को मिलता है|
लघु उत्तरीय प्रश्न






1. विविधता में एकता का अर्थ बताएं|
उत्तर:-
विविधता में एकता भारत की लोकतांत्रिक व्यवस्था की अपनी विशेषता रही है| भारत एक धर्मनिरपेक्ष राज्य है| भारत में विविधता धार्मिक तथा सांस्कृतिक आधार पर है| हिन्दू, मुस्लिम, सिक्ख तथा ईसाई विभिन्न धर्मों के माननेवाले लोग भारत में है तथा उनकी सांस्कृतिक पहचान भी अलग अलग है| लेकिन एक दूसरे के पर्व त्योहारों में वे शरीक होते हैं तथा वे अलग अलग होते हुए पहले वे भारतवासी है| इसिलिए कहा जाता है कि भारत में विविधता ये भी एकता विद्यमान है|
2. सामाजिक विभेद किस प्रकार सामाजिक विभाजन के लिए उत्तरदायी है? 
उत्तर:-
समाज में व्यक्ति के बीच कयी प्रकार के सामाजिक विभेद देखने को मिलते हैं जैसे जाति के आधार पर विभेद, आर्थिक स्तर पर विभेद धर्म के आधार पर तथा भाषाई आधार पर विभेद| ये सामाजिक विभेद तब सामाजिक विभाजन का रुप ले लेती है जब इनमें से कोई एक सामाजिक विभेद दूसरी अनेक विभिन्नताओं से ऊपर और अधिक शक्तिशाली हो जाते हैं| जब किसी एक समूह को यह महसूस होने लगता है कि वे समाज में बिल्कुल अलग है तो उसी समय सामाजिक विभाजन प्रारंभ हो जाता है|
3. सामाजिक विभेद एवं सामाजिक विभाजन का अंंतर स्पष्ट करें|
उत्तर:-
जब हम क्षेत्र में रहने वाले विभिन्न जाति, धर्म, भाषा, संप्रदाय के द्वारा लोगों के बीच विभिन्नताएँ पाई जाती है तो वे सामाजिक विभेद का रुप धारण कर लेते हैं| वहीं दूसरी तरफ धन, रंग, क्षेत्र के आधार पर विभेद सामाजिक विभाजन का रुप ले लेता है| श्वेतों का अश्वेतों के प्रति, अमीरों का गरीबों के प्रति व्यवहार सामाजिक विभाजन का कारण बन जाता है| भारत में सवर्णों और दलितों का अंतर सामाजिक विभाजन का रुप ले रखा है|
4. सामाजिक विभेदों में तालमेल किस प्रकार स्थापित किया जाता है? 
उत्तर:-
लोकतंत्र में विविधता स्वाभाविक होता है परंतु, विविधता में एकता भी लोकतंत्र का ही एक गुण है| अधिकांश लोकतांत्रिक राज्यों में धर्मनिरपेक्षता के सिद्धांत को गले लगाया जाता है| एक धर्मनिरपेक्ष ये विभिन्न धर्म, भाषा तथा संस्कृति के लोग एक साथ मिलजुलकर रहते हैं| उनमें यही धारणा विकसित हो जाती है कि उनके धर्म, भाषा रीति रिवाज अलग अलग तो अवश्य है परंतु उनका राष्ट्र एक है| बेल्जियम की लोकतांत्रिक व्यवस्था में विभिन्न भाषा भाषी एवं क्षेत्र के लोगों के बीच अच्छा तालमेल है|
5. सामाजिक विभेदों का लोकतांत्रिक राजनीतिक पर क्या प्रभाव पड़ता है? 
उत्तर:-
सामाजिक विभेद लोकतांत्रिक राजनीति को प्रभावित किए बिना नहीं रह सकता है| ब्रिटिश शासकों ने फूट डालो और शासन करो की राजनीति को अपनाकर हमारे देश पर वर्षों तक शासन किया| आज भी सामाजिक विभेद राजनीतिज्ञों के लिए एक अस्त्र बना हुआ है| लोकतांत्रिक व्यवस्था में राजनीतिज्ञ इसका लाभ उठाने में पीछे नहीं रहते हैं| राजनीतिक दलों द्वारा उम्मीदवारों के चयन और उनकी जीत सुनिश्चित करने में सामाजिक विभेद सहायक हो जाते हैं| विभिन्न राजनीतिक दल अपनी प्रतिद्वंद्विता का आधार भी सामाजिक विभेद को बना लेते हैं| उत्तरी आयरलैंड में एक धर्म माननेवाले भी प्रोटेस्टेंट एवं कैथोलिक समूहों में बंटे हुए हैं| सबसे बड़ी बात यह है कि वहाँ दो प्रमुख राजनीतिक दल भी इसी आधार पर गठित है|
6. सामाजिक विभेद की राजनीति के परिणाम किन तीन बातों पर निर्भर करते हैं? 
उत्तर:-
सामाजिक विभेद की राजनीति का परिणाम तीन बातों पर निर्भर करते हैं—– (1)सामाजिक विभेद की राजनीति का अच्छा या बुरा परिणाम इस बात पर निर्भर करता है कि लोगों में अपनी पहचान के लिए कितनी चेतना है|(2) लोकतांत्रिक समाज में अलग अलग समुदायों के लोगों की अपनी हित के लिए अलग अलग मांगे होती है| उन मांगों को देश के राजनीतिक दल किस प्रकार निर्णय के लिए सरकार के सामने उठाते हैं (3) सामाजिक विभेद की राजनीति के परिणाम सरकार की विभिन्न समुदायों की मांगों के प्रति सोच पर भी निर्भर करती है|
7. लोकतंत्र किस प्रकार विभिन्न सामाजिक समूहों के बीच तालमेल स्थापित करता है|
उत्तर:-
लोकतंत्र में विविधता स्वाभाविक है, परंतु विविधताओं के बीच एकता स्थापित करना लोकतंत्र का ही एक गुण है| अधिकांश लोकतांत्रिक राज्यों में धर्मनिरपेक्षता के सिद्धांत को गले लगाया जाता है एक लोकतांत्रिक राज्य में विभिन्न धर्म, भाषा एवं संस्कृति के लोग निवास करते हैं| लेकिन उनमें यह भावना विकसित हो जाती है कि वे एक राष्ट्र के नागरिक है| जैसे बेल्जियम की लोकतांत्रिक व्यवस्था में विभिन्न भाषा भाषी एवं क्षेत्र के लोगों में अच्छा तालमेल है| इस तरह हम कह सकते हैं कि विभिन्न समूहों के बीच आपसी तालमेल लोकतंत्र के द्वारा ही स्थापित किया जा सकता है|
8. सामाजिक विभाजन राजनीतिक विभाजन में कैसे बदल जाता है? 
उत्तर:-
लोकतंत्र में विभिन्न राजनीतिक पार्टियों के बीच प्रतिद्वंद्विता का माहौल होता है| इस प्रतिद्वंद्विता के कारण कोई भी समाज फूट का शिकार बन सकता है| अगर राजनीतिक दल समाज में मौजूद विभाजनों को हिसाब से राजनीतिक होड़ करने लगे तो इससे सामाजिक विभाजन राजनीतिक विभाजन में बदल सकता है और ऐसे में देश विखंडन की तरफ जा सकता है| ऐसा कयी देशों में हो चुका है|


दीर्घ उत्तरीय प्रश्न









1. सामाजिक विभेदों की उत्पत्ति के कारणों पर प्रकाश डालें|
उत्तर:-
किसी भी समाज में समाजिक विभेदों की उत्पत्ति के अनेक कारण होते हैं| प्रत्येक समाज में विभिन्न भाषा, धर्म, जाति संप्रदाय एवं क्षेत्र के लोग रहते हैं| इन सबों के आधार पर उनमें विभेद बना रहता है| सामाजिक विभेद का सबसे मुख्य कारण जन्म को माना जाता है| किसी व्यक्ति का जन्म किसी परिवार विशेष में होता है| उस परिवार का संबंध किसी न किसी जाति, समुदाय, धर्म, भाषा क्षेत्र से होता है| इस तरह उस व्यक्ति विशेष का संबंध भी उसी जाति, समुदाय, धर्म, भाषा तथा क्षेत्र से हो जाता है| इस प्रकार जाति, समुदाय, धर्म, भाषा, क्षेत्र के नाम पर सामाजिक विभेदों की उत्पत्ति होती है| कुछ अन्य प्रकार से भी सामाजिक विभेद उत्पन्न होते हैं जिनका जन्म से कोई संबंध नहीं होता है| जैसे लिंग, रंग, नस्ल, धन आदि भी विभेद लोगों में पाया जाता है जो कालांतर में सामाजिक विभेद का रूप ले लेते हैं| स्त्री पुरुष, काला गोरा, लंबा नाटा, गरीब अमीर, शक्तिशाली और कमजोर का विभेद भी सामाजिक विभेद की उत्पत्ति का कारण होते हैं| व्यक्तिगत पसंद से भी सामाजिक विभेद की उत्पत्ति होती है| कयी व्यक्ति धर्म परिवर्तन करके एक अलग समुदाय बना लेते हैं| कुछ लोग अंतरजातीय विवाह संबंध स्थापित कर अपनी अलग पहचान बना लेते हैं| कुछ लोग अपने परिवार की परंपराओं से हटकर अलग विषय का अध्ययन करने, पेशे, खेल, उद्योग धंधे तथा सांस्कृतिक गतिविधियों का चयन कर अलग सामाजिक समूह के सदस्य बन जाते हैं और इस तरीके से भी सामाजिक विभेद उत्पन्न होते हैं|
2. सामाजिक विभेदों में तालमेल और संघर्ष पर प्रकाश डालें|
उत्तर:-
लोकतंत्र में विविधता स्वाभाविक है| परंतु विविधता में बनता भी लोकतंत्र का ही 24 गुण है| अधिकांश लोकतांत्रिक राज्यों में धर्म निरपेक्षता के सिद्धांत को अपनाया जाता है| धर्मनिरपेक्ष राज्य में विभिन्न धर्मों के माननेवाले लोग मिल जुलकर साथ रहते हैं| उनमें यह धारणा विकसित हो जाती है कि उनके धर्म अलग अलग अवश्य है, परंतु उनका राष्ट्र एक है| एक से सामाजिक असमानताएँ कयी समूहों में मौजूद हो तो फिर एक समूह के लोगों के लिए दूसरे समूहों से अलग पहचान बनाना मुश्किल हो जाता है| इसका अर्थ यह है कि किसी एक मुद्दे पर कयी समूहों के हित एक जैसे हो जाते हैं| विभिन्नताओं के बावजूद लोगों में सामंजस्य का भाव पैदा होता है| उत्तरी आयरलैंड और नीदरलैंड दोनों ही ईसाई बहुल देश है| उत्तरी आयरलैंड में वर्ष और धर्म के बीच गहरी समानता है| सामाजिक विभाजन तब होता है जब कुछ सामाजिक अंतर दूसरी अनेक विभिन्नताओं से ऊपर और बड़े हो जाते हैं| अमेरिका में श्वेत और अश्वेत का अंतर एक सामाजिक विभाज्य भी बन जाता है क्योंकि अश्वेत लोग आमतौर पर गरीब लोग है, बेघर है तथा भेदभाव का शिकार है| हमारे देश में भी दलित आमतौर पर गरीब और भूमिहीन है| उन्हें भी अक्सर भेदभाव और अन्याय का शिकार होना पड़ता है| जब एक तरह का सामाजिक अंतर अन्य अंतरों से ज्यादा महत्वपूर्ण बन जाता है और लोगों को यह महसूस होने लगता है कि वे समुदाय के है तो इससे एक सामाजिक विभाजन की स्थिति पैदा होती है| विभिन्नताओं में टकराव की स्थिति किसी भी लोकतांत्रिक व्यवस्था के लिए लाभदायक नहीं हो सकती|
3. सामाजिक विभेदों की राजनीति के परिणामों का वर्णन करें|
उत्तर:-
सामाजिक विभेदों का लोकतांत्रिक राजनीति पर प्रभाव पड़े बिना नहीं रहता है| इसका सबसे दुखद पहलु यह है कि किसी किसी लोकतांत्रिक व्यवस्था में सामाजिक विभेद राजनीति को इतना प्रभावित कर देता है कि वहाँ सामाजिक विभेदों का ही राजनीति हावी हो जाती है| सबसे बड़ी बात यह है कि जब सामाजिक विभेद राजनीतिक विभेद में परावर्तित हो जाता है तब इसका घातक परिणाम राजनीतिक व्यवस्था को भुगतना पड़ता है| इसका सर्वोत्कृष्ट उदाहरण यूगोस्लाविया है| यूगोस्लाविया में धर्म और जाति के आधार पर सामाजिक विभेद इस हद तक बढ़ गया कि वहाँ विभेदों की राजनीति ने अपनी सर्वोच्चता स्थापित करके यूगोस्लाविया को कयी टुकड़ों में विखंडित किया| स्पष्ट है कि जब सामाजिक विभेद राजनीतिक विभेद में परावर्तित हो जाता है तब देश का विखंडन अवश्यंभावी हो जाता है| सामाजिक विभेद की राजनीति का परिणाम हमेशा दु:खमायी नहीं होता है| इसके सुखद परिणाम भी होते हैं| अधिकांश लोकतांत्रिक व्यवस्थाओं में सामाजिक विभेद और राजनीति में अटूट संबंध बना रहता है| सामाजिक विभेद की राजनीति के परिणाम तीन बातों पर निर्भर करते हैं—–
स्वयं की पहचान की चेतना—–
सामाजिक विभेद की राजनीति का अच्छा या बुरा परिणाम इस बात पर निर्भर करता है कि लोगों में अपनी पहचान के लिए कितनी चेतना है|
समाज के विभिन्न समुदायों की मांगों को राजनीतिक दलों द्वारा उपस्थित करने का तरीका–
किसी लोकतांत्रिक व्यवस्था में अलग अलग समुदायों के लोगों की अपने हित के लिए अलग अलग मांगें होती है| उन मांगों के लिए देश के राजनीतिक दल किस प्रकार निर्णय लिए सरकार के सामने रखते हैं, उसपर भी सामाजिक विभेद की राजनीति के परिणाम निर्भर करते हैं|
सरकार की मांगों के प्रति सोच—–
सामाजिक विभेद की राजनीति के परिणाम सरकार की विभिन्न समुदायों की मांगों के प्रति सोच पर भी निर्भर करते हैं| इस प्रकार सामाजिक विभेदों की राजनीति के अच्छे एवं बुरे दोनों परिणाम होते हैं|

4. हर सामाजिक विभिन्नता सामाजिक विभाजन का रुप नहीं लेती| कैसे? 
उत्तर:-
यह आवश्यक नहीं है कि हर सामाजिक विभिन्नता सामाजिक विभाजन का रुप ले ले| सामाजिक विभिन्नता के कारण लोगों में विभेद की विचारधारा अवश्य बनती है, परन्तु यही विभिन्नता कहीं कहीं पर समान उद्देश्य के कारण मूल का काम भी करती है| सामाजिक विभाजन एवं विभिन्नता में बहुत बड़ा अंतर है| सामाजिक विभाजन तब होता है जब कुछ सामाजिक अंतर दूसरी अनेक विभिन्नताओं से ऊपर और बड़े हो जाते हैं| सवर्णों एवं दलितों के बीच अंतर का एक सामाजिक विभाजन है, क्योंकि दलित संपूर्ण देश में आमतौर पर गरीब वंचित, सुविधाविहीन एवं भेदभाव के शिकार है, जबकि सवर्ण आमतौर पर संपन्न एवं सुविधायुक्त है| दलितों को यह महसूस होने लगता है कि वे दूसरे समुदाय के है| परंतु इन सबके बावजूद जब क्षेत्र अथवा राष्ट्र की बात होती है तो सभी एक हो जाते हैं| इस प्रकार हम कह सकते हैं कि हर सामाजिक विभिन्नता सामाजिक विभाजन का रुप नहीं होता|

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