Bharti Bhawan History Class-10:Chapter-4:Very Short Type Question Answer:Short Type Question Answer:Long Answer Type Question Answer:इतिहास:कक्षा-10:अध्याय-4:अति लघु उत्तरीय प्रश्न उत्तर:लघु उत्तरीय प्रश्न:दीर्घ उत्तरीय प्रश्न





                        भारत में राष्ट्रवाद





अतिलघु उत्तरीय प्रश्न





1. गाँधी जी ने चंपारण में किस व्यवस्था के विरुद्ध किसानों के संघर्ष को प्रेरित किया? 
उत्तर:-
गाँधी जी ने चंपारण में तीनकठिया व्यवस्था के विरुद्ध किसानों को संघर्ष के लिए प्रेरित किया| अंत में लाचार होकर सरकार ने 1918 में एक कानून पारित कर निलहों का अत्याचार रोक दिया| गाँधी जी ने चंपारण में सत्याग्रह का सफल प्रयोग किया| इससे उनकी ख्याति और प्रतिष्ठा बढ़ी|
2. गाँधी जी ने खिलाफत आंदोलन को समर्थन क्यों दिया? 
उत्तर:-
 हिन्दू मुस्लिम एकता के लिए क्योंकि गाँधी को भारत में एक बड़ा जन आंदोलन असहयोग आंदोलन चलाना था|
3. असहयोग आंदोलन में चौरी चौरा की घटना का क्या महत्व है? 
उत्तर:-
5 फरवरी, 1922 को चौरी चौरा में हुई घटना के कारण ही महात्मा गाँधी ने असहयोग आंदोलन वापस ले लिया था|
4. स्वराज पार्टी का गठन किस उद्देश्य से किया गया? 
उत्तर:-
स्वराज पार्टी का गठन का उद्देश्य प्रांतीय विधायिकाओं में प्रवेश कर सरकार पर दबाव डालकर स्वराज की स्थापना के लिए प्रयास करना था|
5. कांग्रेस के किस अधिवेशन में पूर्ण स्वाधीनता की माँग की गई? इस अधिवेशन के अध्यक्ष कौन थे? 
उत्तर:-
कांग्रेस के लाहौर अधिवेशन, 1929 में पूर्ण स्वाधीनता की मांग की गई| इस अधिवेशन के अध्यक्ष जवाहर लाल नेहरू थे|
6. गाँधी जी ने दांडी की यात्रा क्यों की? 
उत्तर:-
गाँधी जी के दांडी यात्रा का मुख्य उद्देश्य समुद्र के पानी से नमक बनाकर सरकार के नमक कानून उल्लंघन करना था|
7. 1932 के पूना समझौता का परिणाम हुआ? 
उत्तर:-
1932 में गाँधी और डा अंबेडकर के बीच पूना समझौता हुआ जिसके परिणामस्वरूप दलित वर्गों के लिए प्रांतीय और केन्द्रीय विधायिकाओं में कुछ स्थान आरक्षित हुए|
8. अल्लूरी सीताराम राजू कौन थे? 
उत्तर:-
आंध्र प्रदेश के गुडेम पहाड़ियों में वन कानूनों के विरोध में आदिवासियों के विद्रोह का नेतृत्व अल्लूरी सीताराम राजू ने किया|
9. गाँधी जी के स्वराज झंडा में कौन कौन से रंग और प्रतीक थे? 
उत्तर:-
गाँधी जी के स्वराज्य झंडा में सफेद, हरा और लाल रंग थे| झंडे के बीच में जो चरखा का चित्र बना हुआ था| वह स्वावलंबन का प्रतीक था| इस झंडे को हाथ में लेकर लोग गौरवपूर्ण ढंग से जुलूसों और प्रदर्शनों में भाग लेकर ब्रिटिश शासन के प्रति अवज्ञा का भाव प्रदर्शित करते थे|
10. बंकिमचन्द्र चट्टोपाध्याय ने बंदेमातरम गीत की रचना किसके लिए की थी? 
उत्तर:-
1870 के दशक में बंकिमचन्द्र चट्टोपाध्याय ने मातृभूमि की स्तुति के लिए बंदेमातरम गीत की रचना की थी| इस गीत को उन्होंने अपने उपन्यास आनंद मठ में भी स्थान दिया|
11. सीमांत गाँधी किन्हें कहा जाता है|
उत्तर:-
खान अब्दुल गफ्फार खां को|
12. मणिपुर एवं नागालैंड में नमक सत्याग्रह का प्रसार किसने किया? 
उत्तर:-
रानी गैडिनल्यू ने
13. किसने कहा था कि, वे बम और पिस्तौल की उपासना नहीं करते, बल्कि समाज में क्रांति लाना चाहते हैं? 
उत्तर:-
भगत सिंह ने कहा था कि वे बम और पिस्तौल की उपासना नहीं करते, बल्कि समाज में क्रांति चाहते हैं……. क्रांति की इस पूजा वेदी पर हम अपना यौवन नैवेद्य के रूप में लाए हैं, क्योंकि ऐसे महान आदर्श के लिए बड़े से बड़ा भी कम है| हम संतुष्ट है और क्रांति के आगमन की उत्सुकता पूर्वक प्रतीक्षा कर रहे हैं|
लघु उत्तरीय प्रश्न






1. भारत में राष्ट्रवाद उपनिवेशवाद विरोधी आंदोलन से कैसे विकसित हुआ? 
उत्तर:-
भारतीय राष्ट्रवाद का उदय और विकास हिंद चीन के समान औपनिवेशिक शासन की प्रतिक्रियास्वरूप हुआ| 19 वीं सदी के उत्तरार्द्ध से औपनिवेशिक राज की प्रशासनिक, आर्थिक और अन्य नीतियों के विरुद्ध असंतोष की भावना बलवती होने लगा| यद्यपि 1857 के विद्रोह के पूर्व भी अंग्रेजी आधिपत्य के विरुद्ध क्षेत्रीयता के आधार पर औपनिवेशिक शासन का विरोध किया गया था परन्तु राष्ट्र की अवधारणा और राष्ट्रीय चेतना का विकास 19 वीं सदी के उत्तरार्द्ध उपनिवेशवाद विरोधी आंदोलन से ही हुआ|
2. प्रथम विश्वयुद्ध ने भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन को किस प्रकार बढ़ावा दिया? 
उत्तर:-
प्रथम विश्वयुद्ध 20 वीं शताब्दी के यूरोपीय इतिहास की एक महत्वपूर्ण घटना थी| यह युद्ध औद्योगिक क्रांति के परिणामस्वरूप उत्पन्न औपनिवेशिक व्यवस्था बनाए रखने के कारण हुआ| युद्ध आरंभ होने पर अंगरेजी सरकार ने यह घोषणा की कि ब्रिटिश सरकार का उद्देश्य भारत में एक उत्तरदायी शासन की स्थापना करना है| सरकार ने यह भी कहा कि ब्रिटिश सरकार जिन आदर्शों के लिए लड़ रही थी उन्हें युद्ध की समाप्ति के बाद भारत में भी लागू किया जाएगा, परंतु ऐसा नहीं हुआ| प्रथम विश्वयुद्ध के प्रभावों के कारण भारत में राष्ट्रीयता की भावना बलवती हुई और स्वतंत्रता आंदोलन तीव्र हो उठा| प्रथम विश्वयुद्ध के आर्थिक और राजनीतिक परिणामों ने भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन को प्रभावित किया|
3. भारतीयों ने रालेट कानून का विरोध किया? 
उत्तर:-
भारतीय क्रांतिकारियों में उभरती हुई राष्ट्रीयता की भावना को दबाने के लिए ब्रिटिश सरकार ने न्यायधीश सर सिडनी रालेट की अध्यक्षता में रालेट आयोग का गठन किया| भारतीय नेताओं के विरोध के बावजूद भी यह विधेयक 8 मार्च, 1919 को लागू कर दिया गया| इस कानून का विरोध भारतीयों ने जबरदस्त रूप से किया| इस कानून के अंतर्गत एक विशेष न्यायालय का गठन किया गया| जिसके निर्णय के विरुद्ध कोई अपील नहीं किया जा सकता था| इस कानून के द्वारा सरकार किसी भी व्यक्ति को संदेह के आधार पर गिरफ्तार करने उसपर मुकदमा चला सकती थी| गाँधी जी ने इस कानून को अनुचित स्वतंत्रता का हनन करने वाला तथा व्यक्ति के मूल अधिकारों की हत्या करनेवाले बताया|
4. साइमन कमीशन भारत क्यों आया? भारतीयों में इसकी क्या प्रतिक्रिया हुई? 
उत्तर:-
1919 ई० के भारत सरकार अधिनियम द्वारा स्थापित उत्तरदायी शासन की स्थापना में किए गए प्रयासों की समीक्षा करने एवं आवश्यक सुझाव देने के उद्देश्य से ब्रिटिश सरकार ने 1927 में सरजान साइमन की अध्यक्षता में साइमन कमीशन का गठन किया| इसके सभी 7 सदस्य अंग्रेज थे| इस कमीशन का उद्देश्य सांविधानिक सुधार के प्रश्न पर विचार करना था| इस कमीशन में किसी भी भारतीय को शामिल नहीं किया गया जिसके कारण भारतीयों में इस कमीशन का तीव्र विरोध हुआ| भारतीयों में इसकी प्रतिक्रिया का एक और कारण यह था कि भारत के स्वशासन के संबंध में निर्णय विदेशियों द्वारा किया जाना था| 3 फरवरी, 1928 को कमीशन के बम्बई पहुँचने पर इसका स्वागत हड़ताल, प्रदर्शन और कालेझंडों से हुआ तथा साइमन वापस जाओ के नारों से हुआ|
5. नमक यात्रा पर एक टिप्पणी लिखें|
उत्तर:-
सविनय अवज्ञा आंदोलन का प्रारंभ नमक सत्याग्रह से माना जाता है| नमक कानून भंग करने के लिए गाँधी जी ने दांडी को चुना जो साबरमती आश्रम से 240 किलोमीटर दूर थी| गाँधी अपने 78 विश्वस्त सहयोगियों के साथ 12 मार्च 1930 को साबरमती से दांडी यात्रा आरंभ की| नमक यात्रा में गाँधी के साथ सैंकड़ों युवक, किसान, मजदूर, महिलाएँ शामिल हो गये| गाँधी जी को देखने और उनका भाषण सुनने के लिए हजारों लोग एकत्र होते थे| 24 दिनों के लम्बी यात्रा के बाद 6 अप्रैल 1930 को गाँधी दांडी पहुँचे| वहाँ पहुँचकर उन्होंने समुद्र के पानी से नमक बनाकर अहिंसक ढंग से सरकार के नमक कानून को भंग किया|
6. स्वराज दल का गठन क्यों हुआ? इसकी क्या उपलब्धियाँ थीं? 
उत्तर:-
महात्मा गाँधी के असहयोग आंदोलन की अचानक समाप्ति से उत्पन्न निराशा और क्षोभ का प्रदर्शन 1922 में कांग्रेस के गया अधिवेशन में हुआ जिसके अध्यक्ष चितरंजन दास थे| कांग्रेस से असहमत होकर 1922 ई० में चितरंजन दास और मोतीलाल नेहरू ने स्वराज पार्टी की स्थापना की| स्वराज पार्टी के नेताओं का मुख्य उद्देश्य या देश के विभिन्न निर्वाचनों में भाग लेकर व्यावसायिक सभाओं एवं सार्वजनिक संस्थाओं में प्रवेश कर सरकार के कामकाज में अवरोध पैदा करना| उनकी नीति थी नौकरशाही की शक्ति को कमजोर कर दमनकारी कानूनों का विरोध करना और राष्ट्रीय शक्ति का विकास करना एवं आवश्यकता पड़ने पर पदत्याग कर सत्याग्रह में भाग लेना|
7. दिल्ली पैक्ट के विषय में आप क्या समझते हैं? 
उत्तर:-
सविनय अवज्ञा आंदोलन को दबाने के लिए सरकार ने दमनचक्र के अतिरिक्त कूटनीतिक चाल भी चली| उसने सांवैधानिक सुधारों पर विचार विमर्श करने के लिए लंदन में गोलमेज सम्मेलन बुलाने की घोषणा की| लेकिन प्रथम सम्मेलन ने कांग्रेस ने भाग नहीं लिया| अतः यह विफल हो गया| सरकार जानती थी कि कांग्रेस के बिना सम्मेलन सफल नहीं हो सकता है| अतः सरकार ने गाँधी जी को जेल से रिहा करते हुए वायसराय इरविन तथा गाँधी के बीच 5 मार्च 1931 को समझौता हुआ जिसे दिल्ली पैक्ट के नाम से भी जाना जाता है| इसके अनुसार सरकार राजनीतिक बंदियों की रिहाई करने, दमनचक्र बंद करने, जब्त संपत्ति लौटाने मुकदमे वापस लेने और नौकरी से त्यागपत्र देने वालों को पुनः नौकरी में वापस लेने को तैयार हो गई| गाँधी ने सविनय अवज्ञा आंदोलन वापस लेने, बहिष्कार की नीति त्यागने एवं द्वितीय गोलमेल सम्मेलन में भाग लेने पर सहमति व्यक्त की|
8. समाजवादी दल का गठन क्यों हुआ? 
उत्तर:-
भारत में समाजवादी विचारधारा का उदय और विकास 20 वीं शताब्दी के तीसरे दशक से हुआ| समाजवादी किसान और मजदूरों की स्थिति में सुधार लाना चाहते थे| विश्वव्यापी आर्थिक मंदी (1929-30) का सबसे बुरा प्रभाव श्रमिकों और किसानों पर ही पड़ा था| अतः इन लोगों के ऊपर समाजवादियों ने अपना ध्यान केंद्रित किया| कांग्रेस के अंदर वामपंथी विचारधारा के साथ साथ समाजवादी विचारधारा भी पनपने लगी| नेहरू, सुभाषचंद्र बोस के अतिरिक्त जयप्रकाश नारायण, नरेंद्र देव, राम मनोहर लोहिया सरीखे नेता समाजवादी कार्यक्रम अपनाने की मांग करने लगे| इनके प्रयासों से 1934 में कांग्रेस समाजवादी दल की स्थापना की गयी|
9. राष्ट्रवादी आंदोलन को इतिहास की पुनर्व्यवस्था से क्या लाभ हुआ? 
उत्तर:-
राष्ट्रवादी आंदोलन में इतिहास की पुनर्व्यवस्था एक मुख्य कारक है| इस कारक को पढ़ने से सारे भारतीय राष्ट्र के प्रति गर्व महसूस करने लगे| इस भाव को जगाने के लिए भारतीय इतिहास को अलग ढंग से पढ़ाया जाना चाहिए| अंगरेजों की नजर में भारतीय पिछड़े हुए और आदिम लोग थे जो अपना शासन खुद नहीं संभाल सकते| इसके जवाब में भारत के लोग अपनी महान उपलब्धियों यानी इतिहास की पुनर्व्यवस्था की खोज करने लगे| उन्होंने प्राचीन काल की कला, विज्ञान, साहित्य, दर्शन, धर्म, संस्कृति, कानून, व्यापार इत्यादि को बड़ी गहनता से देखा और उसके विवरण से ज्ञात हुआ कि भारतीयों को अपनी संस्कृति पर गर्व करना चाहिए| अतः राष्ट्रवादी इतिहास में भारत की महानता और उसकी उपलब्धियों पर गर्व का आह्वान किया गया था| ब्रिटिश शासन के अंतर्गत देश की दुर्दशा से मुक्ति के लिए संघर्ष का मार्ग अपनाने के लिए लोगों को प्रेरित किया गया|
10. साम्राज्यवाद विरोधी लीग की स्थापना कब और किसने की? इस लीग की स्थापना का उद्देश्य क्या था? 
उत्तर:-
1927 में साम्राज्यवाद के विरुद्ध एक साम्राज्यवादी लीग की स्थापना की गई| इस लीग का गठन ब्रुसेल्स में किया गया था| इस संस्था की स्थापना में प्रसिद्ध वैज्ञानिक अल्बर्ट आइन्स्टीन और समाजवादी विचारधारा से प्रभावित लेखक रौने रोलाँ आदि ने भाग लिया था| इस संस्था का उद्देश्य उपनिवेशवाद और साम्राज्य करना था| इसमें जवाहरलाल नेहरू ने भाग लिया था| अतः साम्राज्यवाद विरोधी लीग का उद्देश्य साम्राज्यवाद को पूरी तरह से समाप्त करना था|
11. 1909 के अधिनियम में पृथक निर्वाचन का प्रावधान लाकर देश के विभाजन का मार्ग क्यों प्रशस्त कर दिया? 
उत्तर:-
पृथक निर्वाचन ने भारत के विभाजन की आधारभूमि निर्मित कर दी| उसने इस अवधारणा को बल प्रदान किया कि धार्मिक विभाजन की सामाजिक विभाजन का मौलिक आधार है तथा यह भी कि औपनिवेशिक सरकार, अल्पसंख्यक धार्मिक संप्रदाय को विशिष्ट अधिकार देने के लिए संकल्पित है| जाहिर है कि सरकार इस कदम ने मुस्लिम लीग की सांप्रदायिक राजनीति को हवा दी| मुस्लिम संप्रदायवाद को एक संस्थागत आधार मिल गया तथा इसे वैधता प्राप्त हो गई| आगे जब इसका समझौता भी हुआ तो एक समकक्ष राजनीति संस्था के रूप में नहीं वरन एक समकक्ष सांप्रदायिक संस्था के रूप में हुई| इस प्रकार धीरे धीरे दोनों दोनों समुदायों के बीच गहराई बढ़ती गई और एक दिन ऐसा हुआ कि हिंदू मुस्लिम दोनों पृथक पृथक राष्ट्र की मांग करने लगे और विभाजन की मांगे तय हुई|
12. गाधी जी ने सत्याग्रह का प्रथम कहाँ और किस प्रकार किया था? 
उत्तर:-
बिहार के चंपारण जिले में गांधी जी ने सत्याग्रह का प्रयोग सर्वप्रथम 1917 में किया था| चंपारण में अंगरेज नील की खेती करनेवाले किसानों पर बहुत अत्याचार करते थे| वे किसानों को नील की खेती करने और उसकी पैदावार को सस्ती दरों पर बेचने को मजबूर करते थे| गांधी जी के दक्षिण अफ्रीका में किए गए| संघर्ष से प्रभावित होकर यहाँ के किसानों ने उन्हें चंपारण आने का निमंत्रण दिया| गांधी जी चंपारण गए और वहाँ के किसानों की दयनीय स्थिति देखी| गांधी जी के चंपारण आगमन से जिला के अधिकारियों में खलबली मच गई| उन्होंने गांधी जी को चंपारण छोड़ने का आदेश दिया, परंतु गांधी जी ने आदेश मानने से इंकार कर दिया और इस अन्याय के विरुद्ध संघर्ष करने लगे| परिस्थिति की गंभीरता को देखते जिला अधिकारी ने अपना आदेश वापस ले लिया और एक जांच समिति का गठन किया जिसमें गांधी जी को सदस्य बनाया गया| जांच समिति ने किसानों की दशा को सुधारने के लिए कारवाई की | इस प्रकार गांधी जी के सत्याग्रह का पहला प्रयोग सफल रहा| 
दीर्घ उत्तरीय प्रश्न






1. भारतीय राष्ट्रवाद के उदय के कारणों पर प्रकाश डालें? 
उत्तर:-
भारत में राष्ट्रवाद का उदय और विकास 19 वीं सदी के उत्तरार्ध की प्रमुख घटना है| भारतीय राष्ट्रवाद के उदय के प्रमुख कारण है——
अंग्रेजी साम्राज्यवाद के विरुद्ध असंतोष—-
अंग्रेजी नीतियों के प्रति बढ़ता असंतोष भारतीय राष्ट्रवाद के विकास का प्रमुख कारण था| अंग्रेजी सरकार नीतियों के शोषण का शिकार देशी रजवाड़े ताल्लुकेदार, महाजन, कृषक मजदूर, मध्यवर्गीय सभी बने/पूंजी पति वर्ग भी सरकार की भेदभाव आर्थिक नीति से असंतुष्ट था| ये सभी अंग्रेजी शासन को अभिशाप मानकर इसका खात्मा करने का मन बनाने लगे|
आर्थिक कारण—–
भारतीय राष्ट्रवाद के उदय का एक महत्वपूर्ण कारण आर्थिक कारण था| सरकारी आर्थिक नीतियों के कारण कृषि और कुटीर उद्योग धंधे नष्ट हो गये| किसानों पर लगान एवं कर्ज का बोझ बढ़ गया| किसानों को नगरी फसल उपजाने को बाध्य कर उसका भी मुनाफा सरकार सरकार ने उठाया| देशी उद्योगों की स्थिति भी दयनीय हो गई| अंगरेजी आर्थिक नीतियों के कारण भारतीय धन का निष्कासन हुआ, जिससे भारत की गरीबी बढ़ी| इससे भारतीयों में प्रतिक्रिया हुई एवं राष्ट्रीय चेतना का विकास हुआ|
अंग्रेजी शिक्षा का प्रसार—–
भारत में अंग्रेजी शिक्षा के प्रचार के कारण भारतीय लोग भी अमेरिका, फ्रांस तथा यूरोप की अन्य महान क्रांतियों से परिचित हुए| रूसो, वाल्टेयर, मेजिनी, गैरीबॉल्डी जैसे दार्शनिकों एवं क्रांतिकारियों के विचारों का प्रभाव उनपर पड़ा| वे भी अब स्वतंत्रता, समानता एवं नागरिक अधिकारों के प्रति सचेत होने लगे|
साहित्य एवं समाचारपत्रों का योगदान—-
राष्ट्रीय चेतना जागृत करने में प्रेस और साहित्य का भी महत्वपूर्ण योगदान था| 19 वीं शताब्दी के उत्तरार्द्ध से अंग्रेजी और भारतीय भाषाओं में अनेक समाचार पत्र एवं पत्रिकाएँ प्रकाशित होनी आरंभ हुई जैसे हिंदू पैट्रियाट, हिन्दू, आजाद,संवाद कौमुदी इत्यादि| इनमें भारतीय राजनीतिक एवं सामाजिक मुद्दों को उठाकर सरकारी नीतियों की आलोचना की गई|
सामाजिक धार्मिक सुधार आंदोलन का प्रभाव—-
19 वीं शताब्दी के सामाजिक धार्मिक सुधार आंदोलन ने भी राष्ट्रीयता की भावना विकसित की| इस समय तक भारतीय समाज एवं धर्म कुरीतियों और रूढ़ियों से ग्रस्त हो चुका था| राजा राजमोहन राय, दयानंद सरस्वती, रामकृष्ण परमहंस, स्वामी विवेकानंद के प्रयासों से नयी चेतना जगी| ब्रह्म समाज, आर्य समाज, प्रार्थना समाज, रामकृष्ण मिशन ने एकता, समानता एवं स्वतंत्रता की भावना जागृत की तथा भारतीयों में आत्म सम्मान, गौरव एवं राष्ट्रीयता की भावना का विकास करने में योगदान दिया|
2. जालियाँवाला बाग हत्याकांड क्यों हुआ? इसने राष्ट्रीय आंदोलन को कैसे बढ़ावा दिया? 
उत्तर:-
भारत में क्रांतिकारी गतिविधियों पर अंकुश लगाने के उद्देश्य से सरकार ने 1919 में रालेट कानून (क्रांतिकारी एवं अराजकता) बनाया| इस कानून के अनुसार सरकार किसी को भी संदेह के आधार पर गिरफ्तार कर बिना मुकदमा चलाए उसको दंडित कर सकती थी तथा इसके खिलाफ कोई अपील भी नहीं की जा सकती थी| भारतीयों ने इस कानून का बड़ा विरोध किया| इसे काला कानून की संज्ञा दी गई| गांधी जी ने इस कानून को अनुचित, अन्यायपूर्ण, स्वतंत्रता का हनन करनेवाला तथा नागरिकों के मूल अधिकारों की हत्या करने वाला बताया| उन्होंने जनता से शांतिपूर्वक इस कानून का विरोध करने को कहा| अमृतसर में एक बहुत ही बड़ा प्रदर्शन हुआ जिसकी अध्यक्षता डा० सत्यपाल और डा० किचलू कर रहे थे| सरकार ने दोनों को अमृतसर से निष्कासित कर दिया| पंजाब के लोग अपने प्रिय नेता की गिरफ्तारी तथा सरकार तथा सरकार की दमनकारी नीति के खिलाफ 13 अप्रैल, 1919 को बैसाखी मेले के अवसर पर जालियाँवाला बाग में एक विराट सम्मेलन का आयोजन कर विरोध प्रकट कर रहे थे जिसके कारण ही डायर ने निहत्थी जनता पर गोलियाँ चलवा दी| यह घटना जालियाँवाला बाग हत्याकांड के नाम से जाना गया| जालियाँवाला बाग की घटना ने पूरे भारत को आक्रोशित कर दिया| जगह जगह विरोध प्रदर्शन और हड़ताल हुए| गुरूदेव रवीन्द्रनाथ ठाकुर ने घटना के विरोध में अपना सर का खिताब वापस लौटाने की घोषणा की| वायसराय की कार्यकारिणी के सदस्य शंकरन नायर ने इस्तीफा दे दिया| गांधी जी ने कैंसर ए हिंद की उपाधि त्याग दी| जालियाँवाला बाग हत्याकांड ने राष्ट्रीय आंदोलन में एक नई जान फूंक दी|
3. खिलाफत आंदोलन क्यों हुआ? गांधी जी ने इसका समर्थन किया? 
उत्तर:-
तुर्की का खलीफा जो आंदोलन साम्राज्य का सुल्तान भी था, संपूर्ण इस्लामी जगह का धर्मगुरु था| पैगम्बर के बाद सबसे अधिक प्रतिष्ठा उसी की थी| प्रथम विश्वयुद्ध में जर्मनी के साथ तुर्की भी पराजित हुआ| पराजित तुर्की पर विजयी मित्रराष्ट्रों ने कठोर संधि थोप दी (सेब्र की संधि) आटोमन साम्राज्य को विखंडित कर दिया गया| खलीफा और आटोमन साम्राज्य के साथ किए गए व्यवहार से भारतीय मुसलमानों में आक्रोश व्याप्त हो गया| वे तुर्की के सुल्तान और खलीफा की शक्ति और प्रतिष्ठा की पुनः स्थापना के लिए संघर्ष करने को तैयार हो गये| इसके लिए ही खिलाफत आंदोलन आरंभ किया गया| खिलाफत आंदोलन एक प्रति क्रिया वादी आंदोलन के रूप में आरंभ हुआ, लेकिन शीघ्र ही मध्य साम्राज्य विरोधी और राष्ट्रीय आंदोलन के रूप में परिणत हो गया| महात्मा गाँधी खिलाफत आंदोलन को सत्य और न्याय पर आधारित मानते थे| इसिलिए उन्होंने इसे अपना समर्थन दिया| 1919 में वह दिल्ली में आयोजित आल इंडिया खिलाफत सम्मेलन के अध्यक्ष निर्वाचित हुए| उन्होंने सरकार को धमकी दी कि यदि खलीफा के साथ न्याय नहीं किया जाएगा तो वह सरकार के साथ असहयोग करेंगे| गांधी जी ने इस आंदोलन को अपना समर्थन देकर हिंदू मुसलमान एकता स्थापित करने और एक बड़ा सशक्त राज वरोधी आंदोलन असहयोग आंदोलन आरंभ करने का निर्णय लिया|
4. असहयोग आंदोलन और सविनय अवज्ञा आंदोलन के स्वरूप में क्या अंतर था? महिलाओं की सविनय अवज्ञा आंदोलन में क्या भूमिका थी? 
उत्तर:-
असहयोग आंदोलन और सविनय अवज्ञा आंदोलन के स्वरूप में काफी विभिन्नता थी| असहयोग आंदोलन में जहाँ सरकार के साथ असहयोग करने की बात थी वहीं सविनय अवज्ञा आंदोलन में न केवल अंग्रेजों का सहयोग न करने के लिए बल्कि औपनिवेशिक कानूनों का भी उल्लंघन करने के लिए आह्वान किया जाने लगा| असहयोग आंदोलन की तुलना में सविनय अवज्ञा आंदोलन व्यापक जनाधार वाला आंदोलन साबित हुआ| सविनय अवज्ञा आंदोलन में पहली बार स्त्रियों ने बड़ी संख्या में भाग लिया| वे घंटों की चहारदीवारी से बाहर निकलकर गांधी जी की सभाओं में भाग लिया| अनेक स्थानों पर स्त्रियों ने नमक बनाकर नमक कानून भंग किया| स्त्रियों में विदेशी वस्त्र एवं शराब के दुकानों की पिकेटिंग की| स्त्रियों ने चरखा चलाकर सूत काते और स्वदेशी को प्रोत्साहन दिया| शहरी क्षेत्रों में ऊंची जाति की महिलाएँ आंदोलन में सक्रिय थी तो ग्रामीण इलाकों में संपन्न परिवार की किसान स्त्रियाँ|
5. भारतीय राजनीति में साम्यवादियों की भूमिका की विवेचना कीजिए? 
उत्तर:-
1917 की महान रूसी क्रांति के बाद पूरे विश्व में साम्यवादी विचारधारा का प्रसार हुआ| 20 वीं शताब्दी के आरंभ में भारत भी साम्यवादी विचारधारा के प्रभाव में आया| देश के अनेक भागों में बुद्धिजीवी साम्यवादी दर्शन से प्रभावित लोगों का समूह बनाकर इस विचारधारा को प्रोत्साहन दे रहे थे| विख्यात क्रांतिकारी एम ०एन० राय ने 1920 में ताशकंद में हिन्दुस्तान की कम्युनिस्ट पार्टी की स्थापना की| भारत में इसका प्रचार करने के लिए कलकत्ता, बंबई, मद्रास लाहौर में साम्यवादी सभाएँ बननी शुरू हो गई| साम्यवादियों ने श्रमिकों और किसानों की और अपना ध्यान दिया| क्रांतिकारी आंदोलनों पर भी इनका प्रभाव पड़ा| अक्टूबर 1920 में बंबई में लाला लाजपत राय की अध्यक्षता में आल इंडिया ट्रेड यूनियन कांग्रेस की स्थापना हुई| इसमें फूट पड़ने के बाद एन० एम० जोशी ने आल इंडिया ट्रेड यूनियन फेडरेशन का गठन किया| इस तरह वामपंथ का प्रसार मजदूर संघों पर बढ़ रहा था| वामपंथ को प्रभाव में इन श्रमिकों संगठनों ने मजदूरों की स्थिति में सुधार लाने का प्रयास किया| आगे चलकर 1934 में समाजवादियों के प्रयास से सभी श्रमिक संघों को मिलाकर आल इंडिया ट्रेड यूनियन कांग्रेस की स्थापना की गई| साम्यवादियों ने किसानों की समस्याओं की ओर भी ध्यान दिया| लेबर स्वराज पार्टी भारत में पहली किसान मजदूर पार्टी थी लेकिन अखिल भारतीय स्तर पर दिसम्बर 1928 में अखिल भारतीय मजदूर किसान पार्टी बनी| साम्यवादियों ने किसान मजदूरों की स्थिति में सुधार लाने के अतिरिक्त साम्राज्यवाद एवं पूंजीवाद का विरोध भी किया| क्रांतिकारी आंदोलनों को भी इनका समर्थन मिला| फलतः असहयोग आंदोलन के बाद सरकार ने साम्यवादियों पर कड़ी कार्रवाई की| पेशवर षड्यंत्र केस (1922-23) कानपुर षड्यंत्र केस (1924) तथा मेरठ षड्यंत्र केस (1929-33) में मुकदमा चलाकर कुछ साम्यवादियों को दंडित किया गया| साम्यवादी विचारधारा का प्रभाव कांग्रेस के युवा वर्ग पर भी पड़ा| इन लोगों ने कांग्रेस पर अधिक सशक्त नीति अपनाने की माँग की| साथ ही किसानों मजदूरों की समस्याओं को भी उठाने का प्रयास किया| सविनय अवज्ञा आंदोलन के दौरान साम्यवादियों ने कांग्रेस का विरोध करना शुरू किया जिसकी अंतिम परिणति सुभाष चंद्र बोस द्वारा फारवर्ड ब्लॉक की स्थापना के रूप में हुई| द्वितीय विश्वयुद्ध और भारत छोड़ो आंदोलन में भी साम्यवादियों ने अपनी भूमिका का निर्वहन किया|
6. 20 वीं शताब्दी के किसान आंदोलन का संक्षिप्त परिचय दें|
उत्तर:-
19 वीं, 20 वीं शताब्दी के किसान आंदोलनों ने किसानों में हम नयी जागृति ला दी| वे अपने सामाजिक आर्थिक हितों के सुरक्षा के लिए संगठित होने लगे| यद्यपि महात्मा गाँधी ने किसानों के हितों की बात की तथा चंपारण और खेड़ा में सत्याग्रह भी किया परंतु कांग्रेस किसानों की समस्याओं के प्रति उदासीन रही| इसी बीच वामपंथियां (साम्यवादियों और समाजवादियों) का प्रभाव किसानों श्रमिकों पर बढ़ता जा रहा था| अत: इनके प्रभाव में 20 वीं शताब्दी के दूसरे और तीसरे दशक में किसान सभाओं को गठन हुआ| किसान सभाओं का गठन बिहार, बंगाल और उत्तर प्रदेश में हुआ जहाँ जमींदारी अत्याचार और शोषण पराकाष्ठा पर था| 1920-21 में अवध किसान सभा का गठन किया गया| 1922-23 में मुंगेर में शाह मुहम्मद जुबेर ने किसान सभा का गठन किया| 1928 में पटना को बिहटा में स्वामी सहजानन्द ने किसान सभा का गठन किया| 1929 में उन्हीं के नेतृत्व में सोनपुर में प्रांतीय किसान सभा की स्थापना की गई| अप्रैल 1936 में स्वामी सहजानन्द की अध्यक्षता में लखनऊ में अखिल भारतीय किसान सभा का गठन हुआ| अखिल भारतीय किसान सभा ने किसानों को संगठित करने एवं उनमें चेतना जगाने के लिए किसान बुलेटिन एवं किसान घोषणा पत्र जारी किया| किसानों की मुख्य मांग जमींदारी समाप्त करने, किसानों को जमीन का मलिकाना हक देने, बेगार प्रथा समाप्त करने एवं लगान में कमी करने की थी| अपनी मांगों के समर्थन में किसानों ने प्रदर्शन तथा व्यापक आंदोलन किए| सितंबर 1936 को पूरे देश में किसान दिवस मनाया गया| उत्तर प्रदेश, बिहार और अन्य स्थानों में किसानों की जमीन को बकाशत जमीन में बदलने के विरुद्ध एक बड़ा आंदोलन हुआ| 1937 में किसानों ने बिहार विधान सभा के सामने विशाल प्रदर्शन किया| किसान आंदोलन की व्यापकता और इसके प्रभाव को देखते हुए कांग्रेस ने 1937 के अपने फैजपुर अधिवेशन में किसानों को हित में कार्यक्रमों को स्वीकृति प्रदान की|
7. श्रमिक वर्ग के आंदोलन पर निबंध लिखें|
उत्तर:-
20 वीं शताब्दी के शुरुआती चरण में किसानों के समान श्रमिकों के भी आंदोलन हुए तथा उनके संगठन बने| श्रमिक आंदोलन को भी वामपंथियों का सहयोग एवं संरक्षण प्राप्त हुआ| 19 वीं शताब्दी के उत्तरार्द्ध में भारत में उद्योगों की स्थापना के साथ ही श्रमिक वर्ग का उदय हुआ था| भारत में श्रमिक आसानी से और कम मजदूरी पर ही उपलब्ध थे क्योंकि रोजगार की तालाश में किसान और शिल्पी शहरों में आकर कारखानों में नौकरी ढ़ूढ़ने लगे| कारखानों के अतिरिक्त रेलवे और बागानों में भी वे काम करने लगे| औद्योगिक इकाइयों में मजदूरों का शोषण होता था| उन्हें कम मजदूरी पर अस्वास्थ्य कर परिस्थितियों में काम करना पड़ता था| काम के घंटे अधिक थे और बाल मजदूरी की प्रथा प्रचलित थी| धीरे धीरे श्रमिक वर्ग अपने अधिकारों के प्रति सजग हुआ| अपनी मांगों की पूर्ति के लिए इन्होंने हड़ताल को अपना शस्त्र बनाया| बंग भंग और स्वदेशी आन्दोलन के दौरान बंगाल में बड़े स्तर पर हड़ताल हुई| इनका प्रभाव बंगाल के बाहर भी पड़ा| 1907 में रेल कर्मियों एवं 1908 में बंबई के मजदूरों ने हड़ताल की| प्रथम विश्वयुद्ध के बाद महंगाई और अन्य कारणों से हड़तालों की संख्या में तेजी से वृद्धि हुई| 1918 में अहमदाबाद में मिल मजदूरों की बड़ी हड़ताल हुई| अहमदाबाद में गाँधी जी और रमिकों की सफलता ने श्रमिकों में जुझारू प्रवृत्ति जगा दी| अपनी मांगों के लिए हड़ताल का सहारा लेने के अतिरिक्त मजदूर संगठित होने एवं अपना संगठन बनाने का भी प्रयास करने लगे|
8. पृथक निर्वाचन के प्रश्न पर भारतीय नेता एकमत क्यों नहीं थे? 
उत्तर:-
पृथक निर्वाचन का प्रस्ताव 1909 में इंडियन कौंसिल एक्ट के अंतर्गत लाया गया था| सरकार ने एक ओर दमन की नीति अपनाई तो दूसरी ओर नरम दल वालों को संतुष्ट करने की कोशिश की| इस एक्ट के अनुसार केंद्रीय तथा प्रांतीय विधान परिषदों में सदस्यों की संख्या बढ़ा दी गई| परिषदों में कुछ सीटें मुसलमान मतदाताओं द्वारा चुने जानेवाले मुस्लिम प्रतिनिधियों के लिए सुरक्षित रखी गई| अंगरेज सोचते थे कि ऐसा करके वे राष्ट्रीय आंदोलन से मुसलमानों को अलग करने में सफल होंगे| उन्होंने मुसलमानों को बताया कि उनके हित अन्य भारतीयों के हितों से भिन्न है| राष्ट्रीय आंदोलन को कमजोर बनाने के लिए अंगरेजों ने भारत में पृथक निर्वाचन देने की नीति अपनाई| पृथक निर्वाचन के फलस्वरूप सांप्रदायिकता की वृद्धि हुई| भारतीय नेता इसके परिणाम को जानते थे इसलिए वे सभी इस प्रश्न पर एकमत नहीं थे| सांप्रदायिकता की बू आ रही थी| बंगाल विभाजन से ही मुस्लिम लीग (1906) के नेता सचेत हो रहे थे क्योंकि इसके परिणाम अखंड भारत के लिए घातक सिद्ध होते इसिलिए उनके प्रति नाराजगी जताना जाहिर सा हो गया| वायसराय मिटों का यह मानना था कि पृथक निर्वाचन के द्वारा मुस्लिम जनता को राष्ट्रीय आंदोलन से पृथक करके राष्ट्रीय आंदोलन को कमजोर किया जा सकता था| उसकी यह नीति भारतीय नेताओं को आगाह कर रही थी जिससे वे एकजुट नही हो पा रहे थे| 
9. असहयोग आंदोलन का विवरण दें|
उत्तर:-
गाँधी जी के नेतृत्व में असहयोग आंदोलन (1920-22) को अंजाम दिया गया| प्रथम विश्वयुद्ध की समाप्ति के पश्चात सरकार ने भारत की जनता को स्वराज्य देने के स्थान पर काला कानून के रूप में रालेट एक्ट दे दिया| प्लेग जैसी भयंकर बीमारी फैल गई थी, पर सरकार ने जनता की कठिनाई को दूर करने के लिए कोई कदम नहीं उठाई| 
1920 में जब खिलाफत कमिटी ने ब्रिटिश सरकार के विरुद्ध खिलाफत आंदोलन शुरू किया तब गाँधी जी ने इस आंदोलन को हिंदू मुस्लिम एकता बढ़ाने के लिए उपयुक्त अवसर समझा| वस्तुतः ये दोनों आंदोलन शीघ्र ही एक हो गया तथा इनके नेताओं ने मिला जुला कार्यक्रम चलाया|
उद्देश्य——
(1) जालियाँवाला बाग हत्याकांड के बाद ब्रिटिश सरकार द्वारा किए जा रहे अन्यायपूर्ण कार्यों का विरोध करना|
(2) तुर्की के प्रति ब्रिटिश सरकार के अन्याय को समाप्त करना तथा उसे न्याय दिलवाना|
(3) ब्रिटिश सरकार को स्वराज्य देने के लिए राजी करना|
(4) देश में हिंदू मुस्लिम एकता को सुदृढ़ करना|
कार्यक्रम—–
(1) सरकारी उपाधियों और वैतनिक पदों त्याग|
(2) सरकार दरबारों और सरकारी उत्सवों का बहिष्कार|
(3) सरकारी स्कूलों और कालेजों का बहिष्कार|
(4) सरकारी न्यायलयों का बहिष्कार और पंचायत की स्थापना|
(5) विदेशी माल का बहिष्कार और चरखा चलाना|
(6) राष्ट्रीय विद्यालयों की स्थापना|
(7) तिलक स्वराज्य कोष में दान देना इत्यादि|
इस प्रकार 1920 में प्रथम जन आंदोलन आरंभ हुआ| और हजारों की संख्या में वकील, विद्यार्थी और सरकारी कर्मचारी इस आंदोलन में कूद पड़े| सरकार ने दमनात्मक कारवाई शुरू किया|
असहयोग आंदोलन की सफलताएँ—-
1. विधानमंडल के चुनावों में लगभग दो- तिहाई मतदाताओं में भाग नहीं लिया|
2. स्वदेशी कार्यक्रम को प्रोत्साहन दिया गया|
3. आंदोलन चलाने के लिए तिलक स्वराज्य फंड की स्थापना कर इसमें 1 करोड़ रुपए जमा कराए गए|
4. चरखा एवं कताई बुनाई का प्रचार किया गया तथा 20 लाख चरखे बांटे गए|
5. हिंदू मुस्लिम एकता को बढ़ावा दिया गया|
6. सरकारी उपाधियों और अवैतनिक पदों को त्यागने, स्थानीय संस्थाओं को छोड़ने, सरकारी दरबारों, उत्सवों का बहिष्कार, सरकारी शिक्षण संस्थाओं, अदालतों तथा विदेशी वस्तुओं का बहिष्कार एवं मेसोपोटामिया युद्ध में भर्ती होने से इनकार के लिए कहा गया| ऐसा लग रहा था कि सारा देश एकता के सूत्र में बंध गया है| सरकार ने अपनी पूरी शक्ति से इस आंदोलन को दबाने का प्रयास किया| 
किंतु, असहयोग आंदोलन के उद्देश्य का भारतीय स्वतंत्रता संग्राम पर गहरा प्रभाव पड़ा| इसने कांग्रेस के आंदोलन को पहली बार जनांदोलन बना दिया| ए० आर ० देसाई के शब्दों में—- 1917 से पहले जो राष्ट्रीय आंदोलन उच्च तथा मध्यम वर्ग तक सीमित था, वह अब पहली बार किसानों तथा कारीगरों तक पहुँचा और इस प्रकार जनांदोलन बन गया|
10. सविनय अवज्ञा आंदोलन पर प्रकाश डालें|
उत्तर:-
सविनय अवज्ञा आंदोलन गाँधी जी के द्वारा शुरू हुआ था| यह भी एक जनांदोलन था क्योंकि इसमें भी सभी स्त्री पुरुष तथा सभी प्रकार के व्यवसायियों ने विदेशी वस्तुओं के बहिष्कार हेतु जनांदोलन चलाया| इसके प्रारंभ में बहुत से कारक सहायक है| असंतोष व्यापकता ने इस आंदोलन को शूरू करने के लिए बाध्य कर दिया|
सविनय अवज्ञा आंदोलन को मुख्यतः दो चरणों में विभक्त कर सकते हैं—–
प्रथम चरण—-
दांडी यात्रा करके महात्मा गाँधी और उनके सहयोगियों ने नमक कानून भंग किया और सरकार को चेतावनी देकर कहा कि अगर उनकी माँगे पूरी नहीं की जाएंगी तो वे सविनय अवज्ञा आंदोलन का मार्ग अपनाएँगें|
आंदोलन की तीव्रता—–
सारे देश में सरकारी कानूनों का उल्लंघन तथा विदेशी वस्तुओं का बहिष्कार होने लगा जिससे आंदोलन में काफी तेजी आई|
गोलमेज सम्मेलन——-
सरकार ने आंदोलन को दबाने के लिए तथा संवैधानिक सुधारों पर विचार विमर्श करने के लिए गोलमेज सम्मेलन बुलाने की घोषणा की किंतु, कांग्रेस ने इसमें भाग नहीं लिया| इसके परिणामस्वरूप 5 मार्च 1931 को गाँधी इरविन समझौता अथवा दिल्ली पैक्ट हुआ| सरकार ने राजनीतिक बंदियों की रिहाई करने, दमनचक्र बंद करने, जब्त संपत्ति लौटाने, मुकदमे वापिस लेने और नौकरी से त्यागपत्र देने वालों को पुनः नौकरी में वापस लेने को तैयार हो गई| गाँधी जी ने सवज्ञा आंदोलन वापस लेने, बहिष्कार की नीति त्यागने एवं द्वितीय गोलमेज सम्मेलन में भाग लेने पर सहमति व्यक्त की| इस प्रकार 1931 में सविनय अवज्ञा आंदोलन का प्रथम चरण समाप्त हो गया|
सविनय अवज्ञा आंदोलन का दूसरा चरण——
इरविन समझौता के बाद गाँधी जी द्वितीय गोलमेज सम्मेलन में भाग लेने लंदन गये जिसमें सांप्रदायिक मुद्दों के प्रश्न पर वे नाखुश हो गये| वे सोचते थे कि राष्ट्र शब्द का मतलब सार्वभौमिक सम्मिश्रण से है| अगर ऐसा होगा अखंड राष्ट्र एक राष्ट्र के रूप में नहीं रह जाएगा| फिर भी बिना इसकी परवाह किए मैक्डोनाल्ड द्वारा सांप्रदायिक निर्णय (14 अगस्त 1932) की घोषणा कर दी गई| इसमें सभी अल्पसंख्यकों के लिए पृथक निर्वाचन की व्यवस्था की गई| इससे गाँधी जी बड़े मोहित हुए और आमरण अनशन पर बैठ गए| काफी उथल पुथल के बाद पुनः तीसरा गोलमेज सम्मेलन हुआ जिसका कांग्रेस ने बहिष्कार किया| सम्मेलन विफल हो गया| गाँधी जी के पूर्ण स्वराज्य की प्राप्ति का प्रयास विफल हो गया परंतु इसी विफलताओं में गाँधी जी को पुनः नये अस्त्रों के साथ स्वाधीनता संग्राम में उतरने को उत्प्रेरित किया| इस प्रकार सविनय अवज्ञा आंदोलन की समाप्ति हो गई|
11. 20 वीं शताब्दी के किसान आंदोलन का परिचय दें|
उत्तर:-
अंग्रेजों ने भारतीय कृषि व्यवस्था को बुरी तरह प्रभावित किया| 19 वीं-20 वीं शताब्दी में अपनी दयनीय स्थिति से क्षुब्ध होकर किसानों ने अनेक बार विद्रोह एवं आंदोलन किए| इनमें बंगाल में नील विद्रोह, दक्कन के किसानो का आंदोलन अथवा मराठा विद्रोह, पबना और मोपला विद्रोह तथा चंपारण, खेड़ा और दरभंगा का किसान आंदोलन शामिल था| महात्मा गाँधी राजनीति में प्रवेश करते ही किसानों और श्रमिकों के लिए संघर्ष करने लगे| भारत में सत्याग्रह का पहला प्रयोग उन्होंने चंपारण के किसानों की समस्या को लेकर किया जिसमें वे सफल रहे|
नील विद्रोह——
नील की खेती एक अत्यंत लाभदायक व्यवसाय था| इसिलिए अंग्रेजों ने भारत में इसकी खेती आरंभ करवाई| इसके लिए किसानों को जबरदस्ती बाध्य कर उनका आर्थिक और शारीरिक शोषण किया| नील की खेती करनेवाले किसानों ने इनका विद्रोह किया| किसान नील उपजाना नहीं चाहते थे क्योंकि इससे जमीन की उर्वरता कम हो जाती थी| किसानों को उपज का उचित मूल्य भी नहीं मिलता था| निलहे साहबों ने अपनी कोठियाँ स्थापित कर रखी थी| वे किसानों को तीनकठिया प्रणाली के अंतर्गत नील की खेती करने को बाध्य करते थे| बिहार तथा बंगाल के किसानों की खेती से बागान मालिकों को बहुत अधिक लाभ हुआ| निलहे साहब एक पौंड नील करीब एक रूपया चार आना में खरीदते और उसे इंगलैंड के बाजार में 5-7 रुपये में बेचते थे| इस लाभप्रद व्यवसाय पर वे अपना शिकंजा जमाए रखना चाहते थे| इसके लिए वे किसानों को मूर्ख बनाते तथा उनपर अमानवीय अत्याचार भी करते थे| किसानों की सहायता करने वाला कोई नहीं था| किसानों की दुर्दशा का समाचार पाकर गाँधी जी अपने अनेक सहयोगियों के साथ 1917 में चंपारण गये| सरकारी अधिकारियों ने गाँधी जी के कार्यों का विरोध कर उन्हें चंपारण छोड़ने को कहा| गाँधी जी नहीं माने तो उन्हें गिरफ्तार कर उन पर मुकदमा चलाया गया| लाचार होकर सरकार ने चंपारण एग्रेरीयन कानून पारित कर निलहों के अत्याचार को रोक दिया एवं तीनकठिया प्रणाली समाप्त कर दिया| इससे गाँधी जी की ख्याति बढ़ी और गुरुदेव रवीन्द्रनाथ टैगोर ने उन्हें महात्मा कहा|
खेड़ा का किसान आंदोलन—–
चंपारण के बाद खेड़ा (गुजरात) में भी 1918 में किसान आंदोलन हुआ| गाँधी जी ने वहाँ भी किसानों की स्थिति सुधारने के लिए कार्य किए| खेड़ा में तंबाकू और रूई की उपज बहुत अधिक होती थी| 1918 में वहाँ वर्षा नहीं होने से फसल नष्ट हो गई थी और किसान लगान चुकाने में असमर्थ थे| किसानों में भुखमरी को स्थिति उत्पन्न हो गई थी| परंतु सरकारी कर्मचारी लगान की वसूली के लिए किसानों पर दबाव डाल रहे थे| खेड़ा के किसानों को चंपारण में गांधी जी के कार्यों के बारे में पता चला तो उनलोगों ने गांधी जी को बुलाया| उन्होंने किसानों को सत्याग्रह के लिए संगठित कर सरकारी सख्ती, धमकी और कुर्की के बावजूद किसानों को लगान देने से इंकार करने को कहा| बड़ी संख्या में किसानों ने सत्याग्रह आंदोलन चलाया | कयी किसान जेल भी गये अंत में बाध्य होकर 1918 में किसान आंदोलन के व्यापक रूप को देखकर सरकार को झुकाना पड़ा और किसानों को सरकार ने लगान से राहत दे दिया| इसी आंदोलन के दौरान सरदार वल्लभभाई पटेल गाँधी जी के संपर्क में आए और उनके पक्के अनुयायी बन गए|
बारदोली सत्याग्रह——–
खेड़ा के किसान आंदोलन के बाद गुजरात के बारदोली में भी व्यापक किसान आंदोलन हुआ| बारदोली गुजरात के सूरत जिला में था| यहाँ भी लगान में तीस प्रतिशत वृद्धि कर दी गई थी| किसानों ने लगान की बढ़ोतरी के खिलाफ लगान देने से इनकार कर दिया| किसान आंदोलन पर उतारू हो गये| सरदार बल्लभभाई पटेल ने इस आंदोलन का नेतृत्व किया| उनकी निष्ठा को देखकर उन्हें सरदार की उपाधि मिली| सरकार ने इस आंदोलन को देखकर बारदोली जांच आयोग गठित किया| सरदार बल्लभभाई पटेल ने किसानों को संगठित कर सत्याग्रह द्वारा सरकार पर दबाव बनाया कि वह बढ़ी हुई लगान की दर वापस ले| सरकार ने आंदोलन को विफल बनाने के लिए सरदार पटेल की गिरफ्तारी की योजना बनाई परंतु बाद में वह झुक गयी तथा लगान की राशि 30 प्रतिशत से घटा कर 6.3 प्रतिशत कर दी गई| 
एका आंदोलन——
1920 के लगभग बंगाल, पंजाब तथा उत्तर प्रदेश में किसानों के संगठन स्थापित किए गए| उत्तर प्रदेश में किसान आंदोलन का व्यापक प्रभाव पड़ा| ऐसा ही एक आंदोलन उत्तर प्रदेश के हरदोई, बहराइच एवं सीतापुर जिलों में हुआ| असहयोग आंदोलन के दौरान भारत के विभिन्न भागों में किसानों ने लगान चुकाने से इंकार कर दिया था| लगान की ऊँची दर तथा जमींदारों के शोषण के विरुद्ध किसान संगठित होकर आंदोलन चलाने लगे| यह आंदोलन एका आंदोलन कहलाया| इसे एकता आंदोलन भी कहते हैं| किसानों को संगठित करने के लिए धार्मिक रीति रिवाजों का सहारा लिया गया| उन्हें ईश्वर की शपथ दिला कर संगठित रूप से सरकारी एवं जमींदारी शोषण का विरोध करने को कहा गया| परंतु, 1922 तक सरकार ने इस आंदोलन को दबा दिया|
मोपला विद्रोह——-
दक्षिण मालाबार (मद्रास प्रेसीडेंसी) के किसान मजदूरों एवं चाय काफी बगानों के श्रमिकों को खेतिहरों को लोग प्रायः मोपला कहते थे| दक्कन में ये हिंदुओं की निम्न जाति के थे जो मुसलमान बन गए थे| ये लोग प्रायः खेती करते थे अथवा हिंदू जमींदारों के पट्टेदार या बंधुआ मजदूर थे| 
19 वीं शताब्दी में दक्कन के किसानों (मराठा विद्रोह) तथा बंगला के पबना के किसानों का विद्रोह भी हुआ| 19 वीं-20 वीं शताब्दी में मोपलाओं ने भी विद्रोह किये| मोपला वर्ग में कृषक मजदूर, चाय काफी बगानों में काम करनेवाली श्रमिक तथा छोटे किसान शामिल थे| मोपलाओं का आक्रोश सरकार के साथ साथ जमींदारों के विरुद्ध भी था| धर्म की इस आंदोलन में प्रमुख भूमिका थी| 1887 के पूर्व मोपलाओं ने करीब 22 बार विद्रोह किए| सरकार ने एक समिति गठित की| समिति के अनुसार विद्रोहों का मुख्य कारण जमींदारों द्वारा किसानों को जमीन से बेदखल करना एवं लगान में वृद्धि करना था| परंतु सरकार ने इस पर नियंत्रण नहीं लगाया| फलस्वरूप, मोपलाओं का आक्रोश सरकार और जमींदारों के प्रति बढ़ता गया|
1921 में मोपलाओं का सबसे बड़ा विद्रोह हुआ| ब्रिटिश सरकार द्वारा खलीफा के प्रति किए गए अन्याय से वे नाराज थे| वे खिलाफत आंदोलन से जुड़कर विद्रोह पर उतारू हो गये| 20 अगस्त 1921 को डिस्ट्रिक्ट मजिस्ट्रेट ने एक मस्जिद में प्रवेश कर मोपलाओं के नेता मुसालियार को गिरफ्तार कर लिया| इससे मोपलाओं ने क्रोधित होकर जमींदारों तथा महाजनों की संपत्ति लूट ली तथा सरकारी संपत्ति को भी नुकसान पहुंचाया| अंग्रेज अधिकारियों पर भी हमले किये| बलात धर्म परिवर्तन कराने का भी प्रयास किया गया| मोपला विद्रोह में सांप्रदायिकता के प्रवेश तथा हिंसात्मक घटनाओं को देखकर कांग्रेस इस विद्रोह से अलग हो गया| परिणामस्वरूप सरकार ने दमनात्मक कारवाई की| हजारों मोपला सेना के द्वारा मार दिए गए तथा हजारों को गिरफ्तार कर लिया गया| अनेक मोपलाओं ने आत्मसमर्पण किया| इस प्रकार सरकार ने इस विद्रोह को कुचल डाला|
किसान सभाओं का गठन—–
किसान आंदोलन से किसानों में एक नयी जागृति पैदा हुई| किसानों ने अपनी मांगों के समर्थन में प्रदर्शन किए| सितम्बर 1936 को पूरे देश में किसान दिवस मनाया गया| 20 वीं शताब्दी के दूसरे और तीसरे दशक में किसान सभाओं का गठन बिहार, बंगाल और उत्तर प्रदेश में हुआ जहाँ जमींदारों का अत्याचार और शोषण पराकाष्ठा पर था| 1928 में पटना के बिहटा में स्वामी सहजानन्द ने किसान सभा का गठन किया| 1937 में जब लोकप्रिय सरकारें बनी तो कृषकों को इनसे बहुत आशाएँ थीं परंतु उन्हें निराशा हुई| अपनी मांगों की ओर ध्यान आकर्षित करने के लिए बिहार विधानसभा के अधिवेशन के पहले दिन 23000 किसान विधान सभा के सामने एकत्रित होकर नारा लगाने लगे| उनके नारे थे, हमें पानी दो हम प्यासे हैं, हमें रोटी दो हम भूखे हैं| हमारे सभी कृषि ऋण छोड़ दो और हमें जमींदारों के शोषण से बचाओ| विकास आंदोलन की व्यापकता और इसके प्रभाव को देखते हुए कांग्रेस ने 1937 में अपने फैजपुर अधिवेशन में किसानों के हित में कार्यक्रमों को स्वीकृति प्रदान की| किसान सभाओं ने जमींदारी उन्मूलन, बेगारी प्रथा और लगान में कमी करने को लेकर व्यापक आंदोलन चलाए| स्वतंत्रता के पश्चात भी किसान अपने हितों की सुरक्षा के लिए संघर्ष करते रहे|

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