Bharti Bhawan History Class-10:Chapter-7:Very Short Type Question Answer:Short Type Question Answer:Long Answer Type Question Answer:इतिहास:कक्षा-10:अध्याय-7:अति लघु उत्तरीय प्रश्न उत्तर:लघु उत्तरीय प्रश्न:दीर्घ उत्तरीय प्रश्न




                व्यापार और भूमंडलीकरण



अतिलघु उत्तरीय प्रश्न





1. अमेरिका के उपनिवेशीकरण में किसका महत्वपूर्ण योगदान था? 
उत्तर:-
इंगलैंड
2. गिरमिटिया मजदूर कौन थे? 
उत्तर:-
औपनिवेशिक देशों के ऐसे मजदूर जिन्हें एक निश्चित समझौता द्वारा निश्चित समय के लिए अपने शासित क्षेत्रों में ले जाया जाता था, गिरमिटिया मजदूर कहलाते थे|
3. ब्रिटेन वुड्स सम्मेलन में स्थापित दो वित्तीय संस्थाओं के नाम लिखें|
उत्तर:-
अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष, विश्व बैंक
4. भूमंडलीकरण से आप क्या समझते हैं? 
उत्तर:-
भूमंडलीकरण राजनीति, आर्थिक, सामाजिक, वैज्ञानिक तथा सांस्कृति जीवन के विश्वव्यापी समायोजन की प्रक्रिया है जो विश्व के विभिन्न भागों के लोगों को भौतिक मनोवैज्ञानिक स्तर पर एकीकृत करने का सफल प्रयास करता है|
5. वर्तमान युग में काल सेंटर की क्या उपयोगिता है? 
उत्तर:-
वर्तमान युग काल सेंटर की स्थापना के कारण बैठे बैठे किसी कंपनी के विषय में वांछित सुविधा प्राप्त की जा सकती है|
6. रेशम मार्ग कहाँ से आरंभ होता था? 
उत्तर:-
चीन
7. गुलामी प्रथा का प्रचलन किस देश में था? 
उत्तर:-
इंगलैंड, जर्मनी, फ्रांस
8. कार्न ला किस देश में पारित किया गया था? 
उत्तर:- 
ब्रिटेन
9. अमेरिका में वृहत उत्पादन व्यवस्था किसने आरंभ की? 
उत्तर:-
हेनरी फोर्ड
10. गिरमिटिया मजदूर किस देश से ले जाए जाते थे? 
उत्तर:-
भारत
11. अंतर्राष्ट्रीय आर्थिक विनिमय किन तीन प्रवाहों पर आधृत है? 
उत्तर:-
व्यापार, श्रम, पूंजी


लघु उत्तरीय प्रश्न






1. सत्रहवीं शताब्दी के पूर्व होनेवाले आदान प्रदान का एक उदाहरण एशिया से और एक अमेरिका से दें|
उत्तर:-
विभिन्न देशों के संपर्क का एक अन्य महत्वपूर्ण परिणाम यह हुआ कि खाने पीने की वस्तुएँ एक देश से दूसरे में जाने लगी| व्यापारी और यात्री अपने देश का सामान ले जाते थे और विदेशों की विशिष्ट वस्तुओं को अपने यहाँ लाते थे| नूइल्स के विषय के विषय में विद्वानों का मानना है कि यह चीनी मूल का था और वहाँ से ही यह पश्चिमी जगत में पहुँचा| क्रिस्टोफर कोलम्बस अमेरिका से आलू, सोया, मूंगफली, मक्का, टमाटर इत्यादि अपने साथ यूरोप ले गया जहाँ से वे एशिया आए|
2. औद्योगिक क्रांति का विश्व बाजार के विस्तार पर क्या प्रभाव पड़ा? 
उत्तर:-
औद्योगिक क्रांति ने विश्व बाजार के स्वरूप को विस्तृत रूप से प्रभावित किया| 18 वीं सदी के मध्य भाग से इंगलैंड में मशीनों के द्वारा कारखानों में वस्तुओं का उत्पादन आरंभ हुआ| इस प्रक्रिया से वस्तुओं के उत्पादन में काफी वृद्धि हुई| उत्पादन के बढ़ते आकार और कच्चे माल की आवश्यकता तथा तैयार सामानों की बिक्री हेतु उसे बाजार की आवश्यकता महसूस हुई| अत: कच्चे माल की प्राप्ति तथा बाजार की आवश्यकता ने इंगलैंड का ध्यान उत्तरी अमेरिका, एशिया (भारत) अफ्रीका की ओर आकर्षित किया| औद्योगिक क्रांति के फैलाव के साथ साथ इस बाजार का स्वरूप भी विश्वव्यापी होता चला गया|
3. ब्रिटेन में कान ला समाप्त करने के क्या कारण थे? इसके क्या परिणाम हुए? 
उत्तर:-
18 वीं शताब्दी से ब्रिटेन की जनसंख्या में तेजी से वृद्धि हुई जिसके कारण खाद्यान्न की माँग बढ़ने लगी| शहरों के विकास और औद्योगिकरण ने भी खाद्यान्नों की माँग बढ़ा दी| खाद्यान्नों की बढ़ती मांग ने कृषि उत्पादों की माँग में तेजी ला दी| इससे कृषि उत्पादों का मूल्य बढ़ गया| इसका लाभ बड़े कृषकों एवं भूस्वामियों ने उठाया| अपने उत्पादों को बेचने के लिए इन दोनों ने सरकार पर दबाव डालकर ब्रिटेन में कार्न ला द्वारा मक्का के आयात को प्रतिबंधित करवा दिया| फलतः इंगलैंड में भू स्वामी कृषि उत्पादों को ऊंची कीमत पर बेचकर लाभ कमाने लगे| दूसरी ओर अनाज की बढ़ी कीमतों से उद्योगपति और शहरों में रहने वाले लोग त्रस्त हो गये| दूसरी ओर अनाज की बढ़ी कीमतों से उद्योपति और शहरों में रहने वाले लोग त्रस्त हो गये| इन लोगों ने कार्न ला का जबरदस्त विरोध किया और इसे वापस लेने की माँग की| सरकार को बाध्य होकर कार्न ला को समाप्त करना पड़ा तथा खाद्यान्न के आयात की अनुमति देनी पड़ी|
4. न्यू डील से आप क्या समझते हैं? इसे क्यों लागू किया गया? 
उत्तर:-
आर्थिक महामंदी के प्रभावों को समाप्त करने एवं उसे नियंत्रित करने के उद्देश्य से 1932 में अमेरिकी राष्ट्रपति फ्रेकलिन डी ० रुजवेल्ट ने नयी आर्थिक नीति अपनाई| इसे न्यू डील का नाम दिया गया| इस नयी नीति के अनुसार जनकल्याण की व्यापक योजना के अंतर्गत आर्थिक, राजनीतिक एवं प्रशासनिक नीतियों को नियमित करने का प्रयास किया गया| नयी योजना का उद्देश्य कृषि और उद्योग में संतुलन स्थापित करना तथा मानव समान और स्वाधीनता को सुरक्षित रखना था| जनकल्याण की नीति के अन्तर्गत परिवहन के साधनों तथा स्थानीय विकास विकास कार्यों के लिए आर्थिक सहायता दी गई जिससे रोजगार के लिए नये अवसर उपलब्ध हो सके| औद्योगिक क्षेत्र में व्यापक और उत्पादन में नियमन का प्रयास किया गया| श्रमिकों की मजदूरी में वृद्धि की गई, उनके काम घंटे भी नियत किए गए| किसानों की क्रयशक्ति को बढ़ाने तथा उनकी सामान्य आर्थिक स्थिति को वृद्धि के पूर्व की स्थिति तक ले जाने का प्रयास किया गया| 
5. भारत पर भूमंडलीकरण के प्रभावों की समीक्षा कीजिये|
उत्तर:-
भूमंडलीकरण का प्रभाव तो विश्व अर्थव्यवस्था पर पडी ही साथ ही भारत भी इसके प्रभाव से अपने को अछूता नहीं रख सका| भूमंडलीकरण के कारण भारत में जीविकोपार्जन के क्षेत्र में काफी बदलाव आया| भारत में रहनेवाले लोगों के लिए भूमंडलीकरण के दौर में रोजगार के कयी नवीन अवसरों को उपलब्ध कराया जैसे—- टूर और ट्रेवल एसी| (यातायात की सुविधा) रेस्टोरेंट, रेस्ट हाउस आवासीय होटल इत्यादि| सूचना एवं संचार के क्षेत्र में भी क्रांति आयी जिससे इस क्षेत्र में भी भारतीय लोगों को रोजगार के अवसर पैदा हुए| आर्थिक भूमंडलीकरण ने हमारी आवश्यकताओं के दायरे जुड़कर लाखों लोग अपनी जीविका चला रहे हैं| भारतीयों का जीवन स्तर ऊंचा उठने का प्रमुख कारण भूमंडलीकरण का प्रभाव ही है|
6. प्रथम विश्वयुद्ध ने अर्थव्यवस्था को कैसे प्रभावित किया? 
उत्तर:-
युद्ध के सभी देशों ने अपनी पूरी शक्ति, समय, धन व ध्यान लगा दिया| जिसे कारण उद्योग, व्यापार, कृषि व वाणिज्य का विकास अवरुद्ध हो गया| इस प्रकार उत्पादन क्षमता का ह्रास हो गया जिससे वस्तुओं के मूल्यों में वृद्धि हो गई| फलतः लोगों को आर्थिक रूप से अनेक कठिनाइयों का सामना करना पड़ा| राष्ट्रों को ऋण भार बढ़ने के कारण जनता पर विभिन्न करों का भार बढ़ गया| युद्ध के दौरान तत्कालीन आवश्यकताओं को देखते हुए लोगों को भारी मात्रा में रोजगार दिया गया था| किंतु युद्ध समाप्ति के बाद बेरोजगारों की संख्या में तेजी से वृद्धि हुई| पूंजीवादी देशों ने मुक्त व्यापार की नीति को त्यागकर संरक्षणवाद को बढ़ावा दिया|
7. मित्रराष्ट्रों ने वर्साय की संधि किसके साथ की? 
उत्तर:-
मित्रराष्ट्रों ने वर्साय की संधि (28 जून 1919) जर्मनी के साथ की|
8. पूर्व आधुनिक काल में बीमारियों के वैश्विक प्रसार ने अमेरिका के उपनिवेशीकरण में किस प्रकार सहायता पहुँचाई? 
उत्तर:-
पूर्व आधुनिक काल में अमेरिका के उपनिवेशीकरण में पुर्तगाल और स्पेन सबसे आगे थे| इन देशों ने अमेरिका पर विजय प्राप्त करने के लिए अमेरिका में बीमारियों का वैश्विक प्रसार किया| स्पेन के लोगों जब अमेरिका में आए तब वे अपने साथ चेचक के कीटाणु भी ले गए जिससे अमेरिका के मूल निवासियों के अनेक कबीलों का सफाया हो गया|
9. रिंडरपेस्ट पर टिप्पणी लिखें|
उत्तर:-
रिडरपेस्ट पशुओं में फैलनेवाली एक खतरनाक बीमारी है| यह अफ्रीका से 1890 में प्लेग के तरह फैल गया| यह बीमारी अफ्रीका में उन पशुओं से फैली जो अफ्रीका में ब्रिटिश साम्राज्य के लिए लड़ रहे भारतीय सिपाहियों के भोजन के लिए अनेक पूर्वी देशों से मंगवाए गए|  जैसे ही ये पशु पूर्वी अफ्रीका पहुँचे वहाँ के पशुओं को भी रिडरपेस्ट की बीमारी ने लपेट लिया| 1892 से शुरू होकर अगले 5 वर्षों में पशुओं की यह घातक बीमारी दक्षिणी और पश्चिमी अफ़्रीका की सीमाओं तक फैल गई| इस प्रसार क्रम में अफ्रीका की 90℅ मवेशी नष्ट हो गये| इस बीमारी से अफ्रीका के सामाजिक आर्थिक जीवन पर घातक प्रभाव पड़ा| इस विनाश के कारण उपनिवेशकों ने उन्हें गुलाम बना लिया तथा अफ्रीका के आर्थिक संसाधनों को अपने नियंत्रण में लेकर संपूर्ण अफ्रीका पर अपना कब्जा कर लिया|
10. जी-77 से आप क्या समझते हैं? इन्हें व्रेटन वुड्स की जुड़वाँ संतानों की प्रतिक्रिया क्यों कहा गया? 
उत्तर:-
जी-77 विकासशील देशों का ऐसा समूह था जिन्हें 1944 में गठित होनेवाले संगठनों से कोई लाभ नहीं मिला| इसिलिए विकासशील देशों ने एक नयी आर्थिक प्रणाली की माँग की और अपना अलग गुट बना लिए जिसे-77 कहा गया| ब्रेटन वुड्स के सम्मेलन में अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष और विश्व बैंक का जन्म हुआ था जिन्हें ब्रेटन वुड्स की जुड़वाँ संतान कहा जाता है| इनपर विकसित देशों का ही दबदबा था इसलिए इनसे विकासशील देशों को कोई लाभ नहीं हुआ| अत: ब्रेटन वुड्स की जुड़वाँ संतानों की प्रतिक्रिया के रूप में विकासशील देशों के जी-77 नामक संगठन ने कयी आर्थिक प्रणाली की माँग कर डाली ताकि उनके आर्थिक उद्देश्य पूरे ह़ो सके|


दीर्घ उत्तरीय प्रश्न







1. अंतर्राष्ट्रीय आर्थिक विनिमय के तीन प्रवाहों का उल्लेख करें| भारत से संबद्ध तीनों प्रवाहों का उदाहरण दें|
उत्तर:-
19 वीं शताब्दी से नयी विश्व अर्थव्यवस्था का विकास हुआ| इसमें आर्थिक विनिमयों की प्रमुख भूमिका थी| अर्थशास्त्रियों के अनुसार आर्थिक विनिमय तीन प्रकार के प्रवाहों पर आधारित है वे हैं—- व्यापार, श्रम, पूंजी| 19 वीं सदी से अंतर्राष्ट्रीय व्यापार का तेजी से विकास हुआ| परंतु यह व्यापार मुख्यतः कपड़ा और गेहूँ जैसे खाद्यान्नों तक ही सीमित थे| दूसरा प्रवाह श्रम का था| इसके अंतर्गत रोजगार की तालाश में बड़ी संख्या में लोग एक स्थान या देश से दूसरे स्थान और देश को जाने लगे| इसी प्रकार कम अथवा अधिक अवधि के लिए दूर दूर के क्षेत्रों में पूंजी निवेश किया गया| विनिमय के ये तीनों प्रवाह एक दूसरे से जुड़े हुए थे, कभी कभी ये संबंध टूटते भी थे| इसके बावजूद अंतर्राष्ट्रीय आर्थिक विनिमय में इन तीनों प्रवाहों की महत्वपूर्ण भूमिका थी| 
भारत से संबंधित तीनों प्रवाह का उदाहरण इस प्रकार है——


भारत से श्रम का प्रवाह—–
अंतर्राष्ट्रीय बाजार की माँग के अनुरूप उत्पादन बढ़ाने के लिए 19 वीं शताब्दी से श्रम का प्रवाह भारत से दूसरे देशों की ओर हुआ| इन श्रमिकों को गिरमिटिया श्रमिक कहा जाता था क्योंकि इन्हें विदेशों में काम करने के लिए एक अनुबंध के तहत ले जाया गया|
वैश्विक बाजार में भारतीय पूंजीपति——
विश्व बाजार के लिए बड़े स्तर पर कृषि उत्पादों के लिए पूंजी की आवश्यकता थी| बागान मालिक बैंक और बाजार से अपने लिए पूंजी की व्यवस्था कर लेते थे परंतु असली कठिनाई छोटे किसानों की थी| अत: उन्हें साहूकारों और महाजनों की शरण में जाना पड़ा जो ऊंची सूद की दर पर किसानों को पूंजी उपलब्ध कराते थे| इससे महाजनी और साहूकारी का व्यवसाय चल निकला| 
भारतीय व्यापार——
इंग्लैंड में औद्योगिक क्रांति के पूर्व इंग्लैंड को भारत से सूती वस्त्र और महीन कपास का निर्यात बड़ी मात्रा में किया जाता था| इसी बीच कृषि के विकास होने से ब्रिटेन में कपास का उत्पादन बढ़ गया साथ ही सरकार ने भारतीय सूती वस्त्र पर इंग्लैंड में भारी आयात शुल्क लगा दिया| इसका असर भारतीय निर्यात पर पड़ा| सूती वस्त्र एवं कपास का निर्यात घट गया| दूसरी ओर मैंचेस्टर में बने वस्त्र का आयात भारत में बढ़ गया|


2. कैरीबियाई क्षेत्र में काम करने वाले गिरमिटिया मजदूरों की जिंदगी पर प्रकाश डालें| अपनी पहचान बनाए रखने के लिए उन लोगों ने किया? 
उत्तर:-
गिरमिटिया मजदूर ऐसे को कहा जाता था जिन्हें विदेशों में काम करने के लिए एक अनुबंध एग्रीमेंट के अंतर्गत ले जाया गया| इन मजदूरों को कृषि, खाद्यान्नों, सड़क और रेल निर्माण कार्यों में लगाया गया| भारत से अधिकांश अनुबंधित श्रमिक पूर्वी उत्तर प्रदेश, बिहार, मध्य भारत और तमिलनाडु से ले जाए गए| भारत से श्रमिक मुख्यतः कैरीबियाई द्वीप समूह में स्थित त्रिनिदाद गुयाना, और सूरीनाम ले जाए गए| बहुतेरे जमैका, मारीशस एवं फिजी भी ले जाए गए| हालांकि ब्रिटिश सरकार ने 1921 में गिरमिटिया श्रमिकों की व्यवस्था समाप्त कर दी| इस प्रथा के समाप्त होने के बाद भी दशकों तक अनुबंधित मजदूरों के वंशज कैरीबियाई द्वीप समूह में कष्टदायक और अपमान पूर्ण जीवन व्यतीत करने को विवश किए गए| गिरमिटिया मजदूर सुखी संपन्न जीवन की उम्मीदें में अपना घर द्वार छोड़कर काम करने जाते थे लेकिन कार्य स्थल पर पहुँचकर उनका स्वप्न भंग हो जाता था| बागानों अथवा अन्य कार्यस्थलों पर उनका जीवन कष्टदायक था| उन्हें एक प्रकार की दासता की जंजीरों में जकड़ दिया गया था| इस स्थिति से ऊबकर अनेक मजदूर काम छोड़कर भागने का प्रयास करते थे परंतु मालिक के चंगुल से बच निकलना आसान नहीं था| पकड़े जाने पर उन्हें कठोर दिया जाता था| इस स्थिति से रहते हुए आप्रवासी भारतीयों ने जीवन की राह ढ़ूढी जिससे वे सहजता से नये परिवेश में खप सकें| इसके लिए उन लोगों ने अपनी मूल संस्कृति के तत्वों तथा नये स्थान के सांस्कृतिक तत्वों का सम्मिश्रण कर एक नयी संस्कृति का विकास कर लिया| इसके द्वारा उन लोगों ने अपनी व्यक्तिगत और सामूहिक पहचान बनाए रखने का प्रयास किया| उदाहरण के लिए त्रिनिदाद में गिरमिटिया श्रमिकों ने वार्षिक मुहर्रम के जुलूस को एक भव्य उत्सव और मेले के रूप में परिवर्तित कर दिया| इस मेले का नाम उन लोगों ने होसे मेला रखा| यह मेला सांप्रदायिक एकता और सदभावना का प्रतीक बन गया| इसमें त्रिनिदाद में रहने वाले सभी धर्मों ओर नस्लों के श्रमिक भाग लेते थे| इसी प्रकार त्रिनिदाद और गुयाना में विख्यात चटनी म्यूजिक में भी स्थानीय और भारतीय संगीत के तत्वों का मिश्रण कर आप्रवासी भारतीयों ने इसे बनाया| इस प्रकार आप्रवासी भारतीयों ने कैरीबियाई द्वीप समूह के सांस्कृतिक तत्वों को अपनी विशिष्ट पहचान बनाए रखते हुए भी आत्मसात करने का प्रयास किया| 
3. प्रथम विश्वयुद्ध के परिणामों की विवेचना करें|
उत्तर:-
साम्राज्यों का विघटन——-
प्रथम विश्वयुद्ध ने जर्मनी आस्ट्रिया, तुर्की तथा रूस के साम्राज्य को ध्वस्त कर नये नये राष्ट्रों की स्थापना की|
राजतंत्रीय सरकारों का पतन——
प्रथम विश्वयुद्ध के परिणामस्वरूप यूरोप महाद्वीप के देशों तक अन्य देशों में एक तंत्रीय व राजतंत्रात्मक सरकारों का पतन होने लगा|
अमेरिका का उत्कर्ष—–
प्रथम विश्वयुद्ध के परिणामस्वरूप संयुक्त राज्य अमेरिका की शक्ति में अत्यधिक वृद्धि हुई|
उत्पादन क्षमता में ह्रास—–
युद्ध में सभी देशों ने अपनी पूरी शक्ति, समय, धन व ध्यान लगा दिया| जिसके कारण उद्योग, व्यापार, कृषि व वाणिज्य का विकास अवरुद्ध हो गया| इस प्रकार उत्पादन क्षमता का ह्रास हो जाने से उन्हें जनता की आवश्यकता की वस्तुओं का आयात करना पड़ा|
जन हानि—–
प्रथम विश्वयुद्ध में धन जन की भीषण हानि हुई| इस युद्ध में 80 लाख सैनिक मारे गए तथा 1 करोड़ 9 लाख व्यक्ति घायल हुए| इसके अतिरिक्त 70 लाख लापता हो गये| बड़ी संख्या में नागरिकों की भी मृत्यु हुई| युद्ध के बाद अनेक देशों में महामारी फैल गई| जिसमें लगभग कयी हजार लोगों की मृत्यु हुई|
4. वृहत उत्पादन व्यवस्था से आप क्या समझते हैं? इसका क्या परिणाम हुआ? 
उत्तर:-
बहुत बड़ी मात्रा में मानकीकृत उत्पादों का निर्माण विशालोत्पादन कहलाता है| इसे वृहत उत्पादन और पुंज उत्पादन भी कहते हैं| 1920 के दशक भी अमेरिका की बड़ी खासियत थी| वृहत उत्पादन का चलन|
वृहत उत्पादन व्यवस्था से निम्न लाभ हुए——
(1)इंजीनियरिंग उद्योग पर आधृत सामानों की लागत और कीमत में कमी आयी|
(2)मजदूरों का वेतन बढ़ने से उनकी आर्थिक स्थिति में सुधार हुआ|
(3)आर्थिक स्थिति में सुधार होने से उपभोक्ता वस्तुओं की माँग साधारण वर्ग में भी बढ़ गयी| 1919 में अमेरिका में 20 लाख कार(मोटरगाड़ी) प्रतिवर्ष बनाए जाते थे परंतु 1929 तक यह संख्या बढ़कर 50 लाख हो गई|
(4)उपभोक्ता वस्तुओं, जैसे रेडियो, ग्रामोफोन, प्लेयर्स, रेफ्रिजरेटर, कपड़ा धोने की मशीन इत्यादि सामानों का उत्पादन होने लगा| इनकी माँग बढती गई| 
(5) उत्पादकों ने अपना सामान बेचने के लिए किस्त की व्यवस्था की| इससे उपभोक्ताओं को अपनी आवश्यकता की वस्तुएँ आसानी से खरीदने की सुविधा मिली|
(6) 1920 के दशक में अमेरिका में भवन निर्माण के क्षेत्र में भी तेजी आयी| इससे पूंजी निवेश का मार्ग प्रशस्त हुआ|
5. आर्थिक महामंदी के कारणों की व्याख्या करें? भारतीय अर्थव्यवस्था पर इसका क्या प्रभाव पड़ा? 
उत्तर:-
बुनियादी कारण—-
1929 के आर्थिक संकट का बुनियादी कारण स्वयं इस अर्थव्यवस्था के स्वरूप में ही समाहित था| प्रथम विश्वयुद्ध के बाद बाजार आधारित अर्थव्यवस्था का विस्तार हुआ तो दूसरी तरफ अधिकांश जनता गरीबी और अभाव में पिसती रही| नवीन तकनीकी प्रगति के कारण उत्पादन में तो भारी वृद्धि हुई लेनिन उत्पादित वस्तुओं के खरीदकर बहुत कम थे|
कृषि उत्पादन एवं खाद्यान्नों के मूल में कमी—-
बढ़े हुए कृषि उत्पाद के खरीदकर नहीं मिलने के कारण कृषि उत्पादों की कीमत काफी गिर गई जिससे किसानों की आय घट गई| प्रमुख अर्थशास्त्री काडलिफ ने अपनी पुस्तक दी कामर्स आफ नेशन में लिखा कि विश्व के सभी भागों में कृषि उत्पादन एवं खाद्यान्नों के मूल की विकृति 1929-32 के आर्थिक संकटों के प्रमुख कारण थे|
यूरोपीय देशों के बीच संकट——
प्रथम विश्वयुद्ध के बाद यूरोप के बहुत सारे देशों में अपनी तबाह हो चुकी अर्थव्यवस्था को नये सिरे से विकसित करने के लिए अमेरिका से कर्ज लिया| अमेरिकी पूंजीपतियों ने कर्ज तो दिए लेकिन जब अमेरिका में घरेलू संकट के संकेत मिले तो वे कर्ज वापस मांगने लगे| इस परिस्थिति से यूरोपीय देशों के बीच गंभीर आर्थिक संकट खड़ा हो गया| परिणामस्वरूप यूरोप के कयी बैंक डूब गए तथा कयी देशों के मुद्रा मूल्य गिर गया|
सट्टेबाजी की प्रवृत्ति—–
इन उपरोक्त कारणों के अतिरिक्त अमेरिकी बाजारों में शुरू हुआ सट्टेबाजी की प्रवृत्ति भी आर्थिक मंदी में निर्णायक भूमिका निभाई| प्रथम महायुद्ध के पश्चात अमेरिका की आर्थिक समृद्धि में वृद्धि के परिणामस्वरूप वहाँ के पूंजीपति अतिरिक्त पूंजी को सट्टा लगाने की ओर आकर्षित हुए| शुरू में तो काफी लाभ हुआ बाद में संकट उभरकर सामने आ गया|
भारतीय अर्थव्यवस्था पर इसका प्रभाव—–
आर्थिक मंदी का प्रभाव विश्वव्यापी था| भारत भी इससे अछूता नहीं रहा| भारत पर आर्थिक मंदी के निम्नलिखित प्रभाव पड़े——
व्यापार में गिरावट——
महामंदी के पूर्व वैश्विक अर्थव्यवस्था में आयातक और निर्यातक के रूप में भारत की महत्वपूर्ण भागीदारी थी| महामंदी का प्रभाव इस आयात निर्यात व्यापार पर पड़ा| यह काफी घट गया| 1928-34 के मध्य आयात निर्यात घटकर आधा रह गया|
कृषि उत्पादों के मूल्य में कमी—–
विश्व बाजार में कृषि उत्पादों के मूल्य में कमी आने के पश्चात भारतीय कृषि उत्पादों के मूल्य में भी गिरावट आई| 1928-34 के मध्य गेहूँ की कीमत में 50 प्रतिशत की कमी आई|
किसानों की दयनीय स्थिति—–
महामंदी का सबसे बुरा प्रभाव किसानों पर पड़ा| मूल्य में कमी आने तथा बिक्री कम हो जाने से उनकी आर्थिक स्थिति दयनीय बन गयी| वे लगान चुकाने में असमर्थ हो गये लेकिन सरकार न तो लगान की राशि घटाई और न ही लगान माफ की| जिससे किसानों में असंतोष की भावना बढी| इसी आर्थिक संकट के कारण महात्मा गाँधी ने भारत में व्यापक सविनय अवज्ञा आंदोलन आरंभ किया|
6. ब्रेटन वुड्स समझौता की व्याख्या करे|
उत्तर:-
दो महायुद्धों के बीच आर्थिक अनुभवों से सीख लेकर अर्थशास्त्रियों और राजनेताओं ने आर्थिक व्यवस्था को सुव्यवस्थित करने के लिए दो उपाय सुझाव ये थे—– (1) आर्थिक स्थिरता बनाए रखने के लिए आवश्यक सरकारी हस्तक्षेप तथा (2) अंतराष्ट्रीय आर्थिक संबंधों को सुनिश्चित करने में सरकार की भूमिका| इसे कार्यान्वित करने की प्रक्रिया पर विचार विमर्श करने के लिए जुलाई 1944 में अमेरिका के न्यू हैम्पशायर में बब्रैन वुड्स नामक स्थान पर एक सम्मेलन आयोजित किया गया| विचार विमर्श करने के बाद दो संस्थाओं का गठन किया गया| इनमें पहला अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष था और दूसरा अंतर्राष्ट्रीय पुननिर्माण एवं विकास बैंक अथवा विश्व बैंक| इन दोनों संस्थानों को ब्रेटन वुड्स टि्वन या व्रेटन वुड्स की जुड़वाँ संतान कहा गया| आई०एम०एफ० ने अंतर्राष्ट्रीय मौद्रिक व्यवस्था और राष्ट्रीय मुद्राओं तथा मौद्रिक व्यवस्थाओं को जोड़ने की व्यवस्था की| इसमें राष्ट्रीय राष्ट्रीय मुद्राओं के विनिमय की दर अमेरिकी मुद्रा डालर के मूल्य पर निर्धारित की गई| डालर का मूल्य भी सोने के मूल्य से जुड़ा हुआ था विश्व बैंक चने विकसित देशों को पुननिर्माण के लिए कर्ज के रूप में पूंजी उपलब्ध कराने की व्यवस्था की| इसी आधार पर अंतर्राष्ट्रीय आर्थिक व्यवस्था को नियमित करने का प्रयास किया गया| ब्रेटन वुड्स संस्थानों ने औपचारिक रूप से 1947 से काम करना आरंभ कर दिया| इन संस्थाओं के निर्णयों पर पश्चिमी औद्योगिक देशों का नियंत्रण स्थापित किया गया| संयुक्त राष्ट्र अमेरिका को अई ० एम० एफ ० और विश्व बैंक के किसी भी निर्णय पर निषेधाधिकार (वीटो) प्रदान किया गया|
7. विश्व बाजार की क्या उपयोगिता है| इससे क्या हानियाँ हुई है? 
उत्तर:-
आर्थिक गतिविधियों के कार्यान्वयन में विश्व बाजार की महत्वपूर्ण उपयोगिता है| विश्व बाजार व्यापारियों, पूंजीपतियों, किसानों, श्रमिकों मध्यम वर्ग तथा सामान्य उपभोक्ता वर्ग के हितों की सुरक्षा करता है| विश्व बाजार का विकास होने से किसान अपने उत्पाद दूर दूर के स्थानों और देशों में व्यापारियों के माध्यम से बेचकर अधिक धन प्राप्त करते हैं कुशल श्रमिकों को विश्वस्तर पर पहचान और आर्थिक लाभ इसी बाजार से मिलता है| वैश्विक बाजार में नये रोजगार के अवसर उपलब्ध होते हैं| साथ ही, विश्व बाजार के माध्यम से आधुनिक विचारों और चेतना का भी प्रसार होता है|
विश्व बाजार से हानियाँ—–
विश्व बाजार से यहाँ अनेक लाभ हुए वहीं इसके अनेक नुकसानदेह परिणाम भी हुए| विश्व बाजार ने यूरोप में संपन्नता ला दी लेकिन इसके साथ साथ एशिया और अफ्रीका में साम्राज्यवाद और उपनिवेशवाद का नया युग आरंभ हुआ| औपनिवेशिक शक्तियों ने उपनिवेशों का आर्थिक शोषण बढ़ा दिया| भारत भी उपनिवेशवाद एवं साम्राज्यवाद का शिकार बना| सरकार ने ऐसी नीति बनाई जिससे यहाँ के कुटीर उद्योग नष्ट हो गये| भारत से कच्चा माल निर्यात कर इंगलैंड के उद्योगों को बढ़ावा दिया गया| 1800 से 1872 के बीच भारत से कपास का निर्यात 5 प्रतिशत से बढ़कर 35 प्रतिशत हो गया| इसके विपरीत भारत से निर्यातक सूती वस्त्र की मात्रा 30 प्रतिशत से घटकर 1815 में 15 प्रतिशत और 1870 में मात्र 3 प्रतिशत तक रह गया|  वैश्विक बाजार का एक दुष्परिणाम यह हुआ कि औपनिवेशिक देशों में रोजगार छिनने और खाद्यान्न के उत्पादन में कमी आने से गरीबी, अकाल और भुखमरी बढ़ गयी| विश्व बाजार के विकास से यूरोपीय राष्ट्रों में साम्राज्यवादी प्रतिस्पर्धा भी बढी| इससे उग्र राष्ट्रवादी भावना का विकास हुआ| उग्र राष्ट्रवाद ने प्रथम विश्वयुद्ध को आरंभ करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई|
8. 1950 के दशक के बाद अंतर्राष्ट्रीय आर्थिक संबंधों की विवेचना करें|
उत्तर:-
1950 के दशक के बाद अंतर्राष्ट्रीय आर्थिक संबंधों की व्याख्या विभिन्न दृष्टिकोण के आधार पर की जा सकती है——
साम्यवादी विकास—–
1945 के बाद के विश्व अर्थव्यवस्था और अंतर्राष्ट्रीय संबंधों का क्रमशः साम्यवादी राज्य नियंत्रित अर्थव्यवस्था और बाजार तथा मुनाफा आधारित पूंजीवादी अर्थव्यवस्था ने नियंत्रित किया| दोनों एक दूसरे के विरोधी और प्रतिस्पर्धा थे| साम्यवादी सोवियत रूस ने अपना प्रभाव पूर्वी यूरोपीय राष्ट्रों जैसे—– हंगरी, रोमानिया, बुल्गारिया, पोलैंड एवं पूर्वी जर्मनी जैसे राष्ट्रों में बढ़ाने का प्रयास किया| रूस ने भारत सहित नवस्वतंत्र एशियाई देशों को भी अपने प्रभाव में लेने का प्रयास किया|
पूंजीवादी विकास—–
पूंजीवादी अर्थव्यवस्था का हिमायती संयुक्त राज्य अमेरिका था| अमेरिका ने साम्यवादी विचारधारा और अर्थतंत्र के प्रसार को रोकने का प्रयास किया| उसने दक्षिण अफ्रीका तथा मध्य एवं पश्चिम एशिया के तेल संपन्न राष्ट्रों जैसे इराक, इरान, सऊदी अरब, जोर्डन, यमन, सीरिया, लेबनान में जबरदस्ती अपनी आर्थिक नीतियों को कार्यान्वित किया|
पश्चिमी यूरोप में आर्थिक विकास एवं अंतर्राष्ट्रीय संबंध—–
1945-60 के मध्य पश्चिमी यूरोपीय देशों ब्रिटेन, फ्रांस, पश्चिमी जर्मनी, स्पेन इत्यादि में अंतर्राष्ट्रीय आर्थिक संबंधों का विकास हुआ| तथापि विश्व राजनीति और आर्थिक क्षेत्र में इन देशों का महत्व कमजोर पड़ गया| इसका प्रमुख कारण था कि इस अवधि में इनके उपनिवेश स्वतंत्र होते चले गए| इससे इन देशों की आर्थिक विपन्नता बढ़ गई| इस संकट से उबरने एवं साम्यवाद के बढ़ते प्रभाव को रोकने के लिए इन राष्ट्रों ने समन्वय और सहयोग के एक नवीन युग की शुरुआत की गई जिसे यूरोप के एकीकरण के रूप में हम जानते हैं| 1957 में यूरोपीय आर्थिक समुदाय, यूरोपीय इकोनॉमिक कम्यूनिटी(ई०ई०सी०) की स्थापना की गई| इन राष्ट्रों के प्रयासों से एक साझा बाजार की स्थापना की गई|
एशिया और अफ्रीका के नवस्वतंत्र राष्ट्र—–
1947 में भारत अंग्रेजी औपनिवेशिक शासन से स्वतंत्र हुआ| इसका अनुकरण करते हुए अन्य देशों में भी स्वतंत्रता संघर्ष हुए जिसके परिणामस्वरूप अगले दशक में लगभग सभी एशियाई और अफ्रीकी राष्ट्र साम्राज्यवाद और उपनिवेशवाद के चंगुल से मुक्त हो गये| इन राष्ट्रों पर सोवियत रूस और अमेरिका अपना प्रभाव स्थापित करने में प्रयासशील हो गये|

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