अर्थव्यवस्था और आजीविका औद्योगिकरण के युग
अतिलघु उत्तरीय प्रश्न
1. आदि औद्योगीकरण किसे कहते हैं?
उत्तर:-
यूरोप और इंगलैंड में कारखानों में उत्पादन होने के पूर्व की स्थिति को आदि औद्योगीकरण कहते हैं|
2. वाष्पचालित रेल इंजन का आविष्कार किसने किया?
उत्तर:-
जार्ज स्टीफेंसन ने|
3. चार्टर एक्ट का भारतीय व्यापार पर क्या प्रभाव पड़ा?
उत्तर:-
चार्टर एक्ट (1813) के द्वारा भारतीय व्यापार पर से ईस्ट इंडिया कंपनी का एकाधिकार को समाप्त कर दिया गया|
4. ईस्ट इंडिया कंपनी ने गुमाश्तों को क्यों बहाल किया?
उत्तर:-
बुनकरों पर नियंत्रण रखने के लिए
5. कलकत्ता में पहली जूट मिल किसने स्थापित की|
उत्तर:-
हुकुम चंद ने
6. वर्तमान समय में भारत में कितने स्टील प्लांट है?
उत्तर:-
वर्तमान समय में भारत में 7 स्टील प्लांट कार्यरत हैं|
7. टाटा हाइड्रोक्लोरिक पावर स्टेशन की स्थापना किसने और कब की?
उत्तर:-
टाटा हाइड्रोक्लोरिक पावर स्टेशन की स्थापना जे ० एन ० जमशेदपुर द्वारा 1907 में की गई|
8. उत्पादन अपने उत्पादों का प्रचार करने के लिए कौन साधन अपनाते थे?
उत्तर:-
उत्पादक अपने उत्पादों का प्रचार करने के लिए अपने सामानों पर लेबल लगाई लगाते थे| लेबलों से उत्पाद की गुणवत्ता स्पष्ट होती थी| 19 वीं सदी के अंतिम चरण से उत्पादों अपने अपने उत्पाद के प्रचार के लिए आकर्षक कैलेंडर छपवाने आरंभ किया|
9. जमशेदपुर में पहला लौह इस्पात संयंत्र किसने स्थापित किया?
उत्तर:-
जे ० एन० टाटा ने (1912)
10. फ्लाईंग शटल का अविष्कार किसने किया?
उत्तर:-
जान के
11. पहली देशी जूट मिल कहाँ स्थापित हुई?
उत्तर:-
पहली जूट मिल बंगाल के रिशरा नामक स्थान में 1855 में खोली गई|
12. जमशेदजी जीजीभोये कौन थे?
उत्तर:-
जमशेदजी जीजीभोये एक पारसी बुनकर के पुत्र थे| वे एक प्रसिद्ध उद्योगपति थे|
लघु उत्तरीय प्रश्न
1. ब्रिटेन में महिला कामगारों ने स्पिनिंग जेनी पर क्यों हमले किये?
उत्तर:-
बेरोजगारी की आशंका से मजदूर कारखानेदारी एवं मशीनों के व्यवहार का विरोध कर रहे थे| इसी क्रम में ऊन उद्योग में स्पिनिंग जेनी मशीन का जब व्यवहार होने लगा तब इस उद्योग में लगी महिलाओं ने इसका विरोध आरंभ किया| उनलोगों को अपना रोजगार छिनने की आशंका दिखाई पड़ने लगी| अत: ब्रिटेन की महिला कामगारों ने स्पिनिंग जेनी मशीनों पर आक्रमण कर उन्हें तोड़ना आरंभ किया|
2. लंदन को फिनिशिंग सेंटर क्यों कहा जाता था?
उत्तर:-
इंगलैंड के कपड़ा व्यापारी वैसे लोगों से जो रेशों के हिसाब से ऊन छांटते थे| (स्टेप्लसे) ऊन खरीदते थे| इस ऊन को वे सूत कातने वालों तक पहुँचाते थे| तैयार धागा वस्त्र बुनने वालों, चुन्नटो के सहारे कपड़ा समेटने वालों (पुलजे) और कपड़ा रंगने वालों( रंग साजों) के पास ले जाया जाता था| रंगा हुआ वस्त्र लंदन पहुँचता था| जहाँ उसकी फिनिशिंग होती थी| इसलिए लंदन को फिनिशिंग सेंटर कहा जाता था|
3. इंगलैंड ने अपने वस्त्र उद्योग बढ़ावा देने के लिए क्या किया?
उत्तर:-
इंगलैंड में यांत्रिक युग का आरंभ सूती वस्त्र उद्योग से हुआ| 1773 में लंकाशायर के वैज्ञानिक जान के वे फ्लाइंग शट्ल नामक मशीन बनायी| इससे बुनाई की गिरफ्तारी बढ़ी तथा सूत की माँग बढ़ गई| 1765 में ब्लैकबर्न के जेम्स हारग्रीव्ज ने स्पिनिंग जेनी बनाई जिससे सूत की कताई आठ गुना बढ़ गई| रिचर्ड आर्कराइट ने सूत कातने के लिए स्पिनिंग फ्रेम का आविष्कार किया जिससे अब हाथ से सूत कातने का काम बंद हो गया| क्राम्पटन ने स्पिनिंग म्युल नामक बनाई| इन मशीनों के आधार पर इंगलैंड में कम खर्च में ही बारीक सूत अधिक मात्रा में बनाए जाने लगे| इससे वस्त्र उद्योग में क्रांति आ गयी| इन संयंत्रों की सहायता से इंगलैंड में वस्त्र उद्योगों को बढ़ावा मिला तथा 1820 तक इंगलैंड सूती वस्त्र उद्योगों का प्रमुख केन्द्र बन गया|
4. फ्लाईंग शट्ल के व्यवहार का हाथ करघा उद्योग पर क्या प्रभाव पड़ा?
उत्तर:-
औद्योगिक क्रांति के पहले सूत कातने और कपड़ा बनाने का काम हाथों से होता था| लोग यह काम अपने घरों में करते थे| परिवार के लोग इस काम में लगे रहते थे| घर पर ही कारखाने और दुकानें थीं| अधिकांश स्त्रियाँ चरखों पर सूत काता करती थी| पुरूष उन धागों से वस्त्र बुना करते थे| व्यापारी लोग जुलाहों को ऊन या रूई तथा कुछ अग्रिम धन राशि दे दिया करते थे| निर्मित वस्त्रों के मालिक वे व्यापारी थे जो उन्हें बाजारों में ले जा कर ऊंचे मुनाफे पर बेचा करते थे| चरखों के अतिरिक्त करघे, तकली आदि मोटे मोटे हस्तचालित यंत्रों का प्रयोग किया जाता था| स्पष्ट है कि उत्पादन धीरे धीरे और कम मात्रा में होता था| साथ ही कपड़ा मोटा और घटिया होता था तथा बड़े पैमाने पर माल तैयार नहीं होता था| आवश्यकता पड़ने पर बड़े पैमाने पर माल तैयार करना भी संभव नहीं था| बाहर के देशों में इंगलैंड के वस्त्र की माँग तो थी परंतु घरेलू पद्धति की त्रुटियों के कारण इंगलैंड इस बढ़ती हुई माँग को पूरा करने में असमर्थ सिद्ध हो रहा था| तब कताई और बुनाई तेजी से करने के लिए अनेक आविष्कार किए गए| परिणामस्वरूप कारखाना का जन्म हुआ और मशीनों के प्रयोग से वस्त्र उद्योग के क्षेत्र में क्रांतिकारी परिवर्तन होने लगे| 1773 में लंकाशायर के जान के ने तेज चलनेवाली ठरकी फ्लाईंग शट्ल का आविष्कार किया| यह मशीन ऐसी थी जिस पर अधिक लंबाई और चौड़ाई का कपड़ा बुना जाता था| इस आविष्कार के फलस्वरूप हस्त करघा उद्योग में अधिक बढ़ोतरी हुई और मनुष्य कम समय में अधिक वस्त्र तैयार करने लगा|
5. भारत में निरूद्योगीकरण क्यों हुआ?
उत्तर:-
भारत इंग्लैंड का सबसे महत्वपूर्ण उपनिवेशों में से श्रम था| सरकार ने भारत से कच्चे माल का आयात और इंग्लैंड के कारखानों से तैयार माल का भारत में निर्यात करने की नीति अपनाई| इसके लिए सुनियोजित रूप से भारतीय उद्योगों विशेषत: वस्त्र उद्योग को नष्ट कर दिया गया| 1850 के बाद अंगरेजी सरकार की औद्योगिक नीतियाँ मुक्त व्यापार की नीति, भारतीय वस्तुओं के निर्यात पर सीमा और परिवहन शुल्क लगाने, रेलवे, कारखानों में अंग्रेजी पूंजी निवेश, भारत में अंग्रेजी आयात का बढ़ावा देने इत्यादि के फलस्वरूप भारतीय उद्योगों का विनाश हुआ| कारखानों की स्थापना की प्रक्रिया बढ़ी जिससे देशी उद्योग अपना महत्व खोने लगे| इससे भारतीय उद्योगों का निरुद्योगीकरण|
6. जाबर कौन थे?
उत्तर:-
कारखानों तथा मिलों में मजदूरों और कामगारों की नियुक्ति का माध्यम जाबर होते थे| प्रत्येक मिल मालिक जाबर को नियुक्त करते थे| यह मालिक का पुराना तथा विश्वस्त कर्मचारी होता था| वह आवश्यकतानुसार अपने गाँव से लोगों को लाता था और उन्हें कारखानों में नौकरी दिलवाता था| मजदूरों को शहर में रहने और उनकी आवश्यकताओं को पूरा करने का काम जाबर ही करते थे|
7. ट्रेड यूनियन से आप क्या समझते हैं? ट्रेड यूनियन के किन्हीं चार उद्देश्यों का वर्णन करें|
उत्तर:-
औद्योगिक क्रांति के पश्चात कारखानों में काम करने के लिए श्रमिकों की आवश्यकता पड़ी| कारखानों में काम करनेवाले मजदूरों पर काम का अत्यधिक बोझ हो गया जिससे उनकी स्थिति बिगड़ती चली गई| सरकार भी उनकी स्थिति नहीं सुधार सकी, परिणामस्वरूप मजदूरों ने ख़ुद ही अपना एक ट्रेड यूनियन गठित किया| ट्रेड यूनियन एक प्रकार का मजदूर संघ है जो मजदूरों की अपनी समस्याओं को दूर करने के लिए बनाया| ये संघ इनकी समस्याओं को दूर करने के लिए सदैव तत्पर रहता है| ट्रेड यूनियन के चार मुख्य उद्देश्य थे——–
1. मजदूरों को उचित वेतन दिलवाना
2. कारखानों की स्थिति में सुधार की माँग
3. श्रमिकों की कार्य अवधि को निश्चित करना
4. मिल मालिकों के मनमाने शोषण से मजदूरों की रक्षा करना
5. कारखाने में काम करने के लिए मजदूरों की उचित सुविधाओं की माँग करना
8. औद्योगिक क्रांति से आप क्या समझते हैं?
उत्तर:-
औद्योगिक क्रांति शब्द का प्रयोग सबसे पहले फ्रांस के विख्यात समाजवादी चिंतक लुई ब्लॉक ने किया| औद्योगिक क्रांति का अर्थ महत्वपूर्ण आविष्कारों तथा परिवर्तनों से है, जिनके द्वारा 18 वीं शताब्दी के उत्तरार्ध में तकनीक और संगठन में अनेक क्रांतिकारी परिवर्तन लाए गए| ये परिवर्तन इतनी तेजी से आए और इतने प्रभावशाली सिद्ध हुए कि उन्हें क्रांति का नाम दिया गया| औद्योगिक क्रांति की एक विशेषता है कि यह एक, वर्ग विहीन क्रांति थी| इसे न तो बूर्जुआ, सर्वहारा अथवा अभिजात और मध्य वर्गीय क्रांति कहा जा सकता है| यह क्रांति वैज्ञानिकों और आविष्कारों को श्रृंखला बनी जिससे मानव चालित औजारों का स्थान जलशक्ति अथवा वाष्प शक्ति चालित संयंत्रों ने ले लिया| इसी प्रकार घरेलू उद्योगों का स्थान कारखानों ने ले लिया| इसके फलस्वरूप औद्योगिक क्रांति प्रारंभ हुई| यह क्रांति रक्तहीन क्रांति थी| औद्योगिक क्रांति सर्वप्रथम इंगलैंड में हुई और बाद में फ्रांस बेल्जियम, जर्मनी आदि देश में विकसित हुई|
9. 19 वीं सदी के निर्माता अपने उत्पादों को बेचने के लिए कैलेंडर क्यों छपवाने लगे थे?
उत्तर:-
19 वीं सदी के अंतिम चरण से उत्पादकों ने अपने अपने उत्पाद के प्रचार के लिए आकर्षक कैलेंडर छपवाने आरंभ कर दिए| चूंकि अखबारों और पत्रिकाओं को पढ़कर उत्पादन के विषय में समझा जाता था, परंतु इसे कैलेंडर को देखकर भी समझा जा सकता था| उसके लिए शिक्षित होना जरूरी नहीं था| इन कैलेंडरों में नये उत्पादों को बेचने के लिए देवी देवताओं की तस्वीर भी लगाई गई जिससे लोग भावनात्मक रूप से विभिन्न उत्पादों को और आकृष्ट होने लगे| देवताओं की तस्वीरों के अलावा महत्वपूर्ण व्यक्तियों, सम्राटों, नवाबों की तस्वीरों का भी विज्ञापन कैलेंडरों में खूब इस्तेमाल होने लगा| ग्राहकों को आकृष्ट करने के लिए निर्माताओं ने विज्ञापन के माध्यम से स्वदेशी और राष्ट्रपति संदेश भी दिए| वे संदेश इस प्रकार होते थे कि यदि आप में राष्ट्र प्रेम की भावना है तो आप भारतीय उत्पाद ही खरीदेंगें| अत: इस प्रकार के विज्ञापन स्वदेशी, राष्ट्रवादी एवं संदेशवाहक बन गए| चाय की दुकानों, दफ्तर तथा मध्यवर्गीय घरों में ये कैलेंडर लटके रहते थे| जो इन कैलेंडरों को लगाते थे वे विज्ञापन को भी हर रोज पूरे साल देखते थे| कयी कैलेंडरों पर राष्ट्रीय नेताओं की तस्वीरों को भी चित्रित किया गया| राष्ट्रप्रेमी अपने नेताओं की तस्वीर देखकर कैलेंडरों से प्रभावित होकर उन उत्पादों को खरीदते थे| इस प्रकार इन विज्ञापनों के द्वारा उद्योगपतियों ने बाजार में उनका प्रचार प्रसार किया|
दीर्घ उत्तरीय प्रश्न
1. 19 वीं शताब्दी में यूरोप में कुछ उद्योगपति मशीनों के बजाए हाथ से काम करने वाले श्रमिकों को प्राथमिकता देते थे| इसका क्या कारण था?
उत्तर:-
19 वीं शताब्दी में औद्योगीकरण के बावजूद हाथ से काम करनेवाले श्रमिकों की माँग बनी रही| अनेक उद्योगपति मशीनों के स्थान पर हाथ से काम करने वाले श्रमिकों को ही प्राथमिकता देते थे| इसके प्रमुख निम्नलिखित कारण थे——
(1) इंगलैंड में कम मजदूरी पर काम करनेवाले श्रमिक बड़ी संख्या में उपलब्ध थे| उद्योगपतियों को इससे लाभ था| मशीन लगाने पर आनेवाले खर्च से कम खर्च पर ही इन श्रमिकों से काम करवाया जा सकता था| इसिलिए उद्योगपतियों ने मशीन लगाने में अधिक उत्साह नहीं दिखाया|
(2) मशीनों को लगाने में अधिक पूंजी की आवश्यकता थी| साथ ही मशीन के खराब होने पर उसकी मरम्मत कराने में अधिक धन खर्च होता था| मशीनें उतनी अच्छी नहीं थी, जिसका दावा आविष्कारक करते थे|
(3) एक बार मशीन लगाए जाने पर उसे सदैव व्यवहार में लाना पड़ता था, परंतु श्रमिकों की संख्या आवश्यकतानुसार पड़ती थी| उदाहरण के लिए इंगलैंड में जाड़े के मौसम में गैस घटों और शराब खानों में अधिक काम रहता था| बंदरगाहों पर जाड़ा में ही जहाजों की मरम्मत तथा सजावट का काम किया जाता था| क्रिसमस के अवसर पर बुक बाइंडरों और प्रिटरों को अतिरिक्त श्रमिकों की जरूरत पड़ती थी| उद्योगपति मौसम के अनुसार उत्पादन में कमी बेशी को ध्यान में रखकर आसानी से मजदूरों की संख्या घटा बढ़ा सकते थे| इसिलिए उद्योगपति मशीनों के व्यवहार से अधिक हाथ से काम करनेवाले मजदूरों को रखना ज्यादा पसंद करते थे|
(4) विशेष प्रकार के सामान सिर्फ कुशल कारीगर ही हाथ से बना सकते थे| मशीन विभिन्न डिजाइन और साकार के सामान नहीं बना सकते थे|
(5) विक्टोरिया कालीन ब्रिटेन में हाथ से बनी चीजों की बहुत अधिक माँग थी| हाथ से बने सामान परिवष्कृत, सुरुचिपूर्ण, अच्छी फिनिश वली, बारीक डिजाइन और विभिन्न इसिलिए आधुनिकीकरण के युग में मशीनों के व्यवहार के बावजूद हाथ से काम करनेवाली श्रमिकों की माँग बनी रही|
2. 18 वीं शताब्दी तक अंतर्राष्ट्रीय बाजार में भारतीय वस्त्रों की माँग बने रहने का क्या कारण था?
उत्तर:-
प्राचीन काल से ही भारत का वस्त्र उद्योग अत्यंत विकसित स्थिति में था| यहाँ विभिन्न प्रकार के वस्त्र बनाए जाते थे| उनमें महीन सूती (मलमल) और रेशमी वस्त्र मुख्य थे| उनकी माँग अंतर्राष्ट्रीय बाजार में काफी थी| कंपनी सत्ता की स्थापना एवं सुदृढ़ीकरण के आरंभिक चरण तक भारत के वस्त्र निर्यात में गिरावट नहीं आयी| भारतीय वस्त्रों की माँग अंतर्राष्ट्रीय बाजार में बनी हुई थी जिसका मुख्य कारण था कि ब्रिटेन में वस्त्र उद्योग उस समय तक विकसित स्थिति में नहीं पहुंचा था| एक अन्य कारण यह था कि जहाँ अन्य देशों में मोटा सूत बनाया जाता था, वहीं भारत में महीने किस्म का सूत बनाया जाता था जिससे महीन सूती वस्त्र बनाया जाता| इसलिए आर्मीनियम और फारसी व्यापारी पंजाब, अफगानिस्तान, पूर्वी फारस और मध्य एशिया के मार्ग से भारतीय सामान ले जाकर इसे बेचते थे| महीन कपड़ों के धान ऊंट कि पीठों पर लादकर पश्चिमोत्तर सीमा प्रांत से पहाड़ी दरों और रेगिस्तानों के पार ले जाए जाते थे| मध्य एशिया में इन्हें यूरोपीय मंडियों में भेजा जाता था|
3. ईस्ट इंडिया कंपनी ने भारतीय बुनकरों से सूती और रेशमी वस्त्र की नियमित आपूर्ति के लिए क्या व्यवस्था की?
उत्तर:-
बंगाल में राजनीतिक सत्ता की स्थापना के पहले ईस्ट इंडिया कंपनी को भारतीय बुनकरों से कपड़ा प्राप्त कर उनका निर्यात करने में अनेक कठिनाइयों का सामना करना पड़ता था| बुनकरों से वस्त्र प्राप्त करने के लिए यूरोपिय व्यापारिक कंपनियों में प्रतिद्वंद्विता होती थी| इसका लाभ स्थानीय व्यापारी भी उठाते थे| बुनकरों से वस्त्र खरीदकर वे ऊंची कीमत देने वाली कंपनी को बेचते थे| कंपनी राज्य की स्थापना से परिदृश्य बदल गया| सूती वस्त्र उद्योग में व्याप्त प्रतिद्वंद्विता को समाप्त कर उसपर अपना एकाधिकार स्थापित करने के लिए ईस्ट इंडिया कंपनी ने नियंत्रण एवं प्रबंधन की नयी नीति अपनाई जिससे उसे वस्त्र की आपूर्ति लगातार होती रही| इसके लिए कंपनी ने निम्नलिखित कदम उठाए———
(1) गुमाश्तो की नियुक्ति——
कपड़ा व्यापार पर एकाधिकार स्थापित करने के लिए बिचौलियों को समाप्त करना एवं बुनकरों पर सीधा नियंत्रण रखना आवश्यक था| इसके लिए कंपनी ने अपने नियमित कर्मचारी नियुक्त किये जो गुमाश्ता कहे जाते थे| इनका मुख्य काम बुनकरों पर नियंत्रण रखना, उनसे कपड़ा इकट्ठा करना तथा बुने गए वस्त्रों की गुणवत्ता का जांच करना था|
(2) बुनकरों की पेशगी की व्यवस्था——–
बुनकरों से स्वयं तैयार सामान प्राप्त करने के लिए कंपनी ने उन्हें अग्रिम राशि या पेशगी देने की नीति अपनाई| अग्रिम राशि प्राप्त कर बुनकर अब सिर्फ कंपनी के लिए ही वस्त्र तैयार कर सकते थे| वे अपना माल कंपनी के अतिरिक्त अन्य किसी कंपनी या व्यापारी को नहीं बेच सकते थे| बुनकरों को कच्चामाल खरीदने के लिए ऋण उपलब्ध कराया गया| अग्रिम राशि और कर्ज से कपड़ा तैयार कर बुनकरों को माल गुमाश्तों को सौंपना पड़ा|
4. प्रथम विश्वयुद्ध के समय भारत का औद्योगिक उत्पादन क्यों बढ़ा? व्याख्या कीजिये|
उत्तर:-
प्रथम विश्वयुद्ध तक भारत का औद्योगिक उत्पादन की धीमा रहा| परंतु युद्ध के दौरान और उसके बाद भारत का औद्योगिक उत्पादन में काफी तेजी आयी जिसके निम्नलिखित प्रमुख कारण थे——–
(1) प्रथम विश्वयुद्ध के दौरान ब्रिटेन में सैनिक आवश्यकता के अनुरूप अधिक सामान बनाए जाने लगे जिससे मैनचेस्टर में बनने वाले वस्त्र उत्पादन में गिरावट आई| इससे भारतीय उद्यमियों को अपना गए वस्त्र की खपत के लिए देश में ही बहुत बड़ा बाजार मिल गया| फलतः सूती वस्त्रों का उत्पादन तेजी से बढ़ा|
(2) विश्वयुद्ध के लम्बा खींचने पर भारतीय उद्योगपतियों ने भी सैनिकों की आवश्यकता के लिए सामान बनाकर मुनाफा कमाना आरंभ कर दिया| सैनिकों की आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए देशी कारखानों में भी सैनिकों के लिए वर्दी, जूते, जूट की बोरियां, टेंट, जीन इत्यादि बनाए जाने लगे| इससे देशी कारखानों में उत्पादन बढ़ा|
(3) युद्धकाल में कारखानों में उत्पादन बढ़ाने के अतिरिक्त अनेक नये कारखाने खोले गए| मजदूरों की संख्या में भी वृद्धि हो गई| इनके कार्य करने की अवधि में भी बढ़ोतरी हुई| फलस्वरूप प्रथम विश्वयुद्ध के समय भारत का औद्योगिक उत्पादन ये तेजी से वृद्धि हुई|
5. इंगलैंड में औद्योगिक क्रांति के किन्हीं पांच कारणों का उल्लेख कीजिये|
उत्तर:-
इंगलैंड की भौगोलिक स्थिति——
इंगलैंड की भौगोलिक स्थिति उद्योग धंधों के विकास के लिए अनुकूल थी| कटे हुए समुद्री किनारों के कारण उसके पास अच्छे बंदरगाह थे| अत: समुद्री मार्ग से कच्चा माल आयात करने एवं निर्मित वस्तुओं के निर्यात, जो औद्योगीकरण के आवश्यक तत्व है की सुविधा इंगलैंड में थी| इंगलैंड बाहरी आक्रमणों से भी सुरक्षित था|
खनिज पदार्थों की उपलब्धता——
इंगलैंड में प्राकृतिक साधन (खनिज पदार्थ) प्रचुर मात्रा में उपलब्ध थे| इंगलैंड के उत्तरी और पश्चिमी भाग में लोहा और कोयला की खानें उपलब्ध थी| इनसे औद्योगिक विकास के लिए खनिज आसानी से उपलब्ध हो गये|
मजदूरों की उपलब्धता——
बाड़ाबंदी कानून से जहाँ कृषि उत्पादन में वृद्धि हुई एवं भूमि पतियों को लाभ हुआ वहीं छोटे किसान अपनी भूमि से बेदखल हो गये| उनके सामने आजीविका का प्रश्न उठ खड़ा हुआ| ये किसान औद्योगिक केन्द्रों की ओर जानें और कारखानों में काम करने को विवश हो गये| इसिलिए इंगलैंड में कल कारखानों के लिए सस्ते मजदूर सुलभ हो गये|
नये नये मशीनों का आविष्कार——
औद्योगिक क्रांति लाने में इंगलैंड के वैज्ञानिकों का भी महत्वपूर्ण योगदान था| इन लोगों ने नये नये मशीनों का आविष्कार किया जिनसे वस्त्र उद्योग, परिवहन, संचार व्यवस्था और खनन उद्योगों में प्रगति हुई| उद्योग धंधों में नयी मशीनों का व्यवहार आरंभ हुआ| इससे कल कारखाने स्थापित हुए तथा कारखानेदारी की प्रथा का विकास हुआ|
परिवहन की सुविधा——
कारखानों में उत्पादित वस्तुओं तथा कारखानों तक कच्चा माल पहुंचाने के लिए आवागमन के साधनों का विकास किया गया| सड़कों एवं जहाजरानी का विकास हुआ| आगे चलकर रेलवे का भी विकास हुआ जिससे औद्योगीकरण में सुविधा हुई| इस प्रकार इंगलैंड में अन्य यूरोपीय देशों की तुलना में वैसी परिस्थितियाँ विद्यमान थी जिनसे औद्योगिक क्रांति हुई|
6. औद्योगीकरण का इंगलैंड पर क्या प्रभाव पड़ा? विवेचना कीजिये|
उत्तर:-
औद्योगीकरण ने व्यापक रूप से इंगलैंड के आर्थिक, सामाजिक एवं राजनीतिक जीवन को प्रभावित किया| कालांतर में विश्व के अन्य देशों पर भी इसका प्रभाव पड़ा| इंगलैंड में औद्योगिक क्रांति के अग्रलिखित निम्नलिखित परिणाम हुए——
औद्योगीकरण के परिणाम (प्रभाव)——
(1) कारखाने दारी (फैक्टरी व्यवस्था) का विकास
(2) नगरों के स्वरूप में परिवर्तन विकास
(3) पूंजीपति वर्ग का विकास
(4) श्रमिक वर्ग का उदय
(5) बाल श्रम की प्रथा का विकास
(6) स्त्री श्रम का विकास
(7) श्रमिक आंदोलन का उदय
(8) उपनिवेशवाद का विकास
कारखानेदारी प्रथा (फैक्ट्री व्यवस्था) का विकास–
औद्योगिक क्रांति के कारण इंगलैंड में बड़ी संख्या में विशाल कारखाने खुले जिनमें बड़े स्तर पर उत्पादन होने लगा| इससे इंगलैंड का भूदृश्य परिवर्तित हो गया|
नगरों के स्वरूप में परिवर्तन——
कारखानों की स्थापना से तत्कालीन नगरों का स्वरूप बदल गया| अब आधुनिक नगरों का उदय हुआ| नगरों में जनसंख्या का घनत्व बढ़ गया| अनेक नगर औद्योगिक केन्द्र बन गए|
पूंजीपति वर्ग का विकास——
औद्योगीकरण के परिणाम स्वरूप पूंजीपति वर्ग का विकास हुआ| कुलीन, संपन्न एवं व्यापारी अपनी अतिरिक्त पूंजी उद्योगों में निवेश करने लगे| इससे उद्योगों पर पूंजीपति वर्ग का नियंत्रण स्थापित हुआ| सामाजिक राजनीतिक जीवन पर भी उनका प्रभाव बढ़ गया|
श्रमिक वर्ग का उदय——–
औद्योगीकरण के कारण कारखानों में काम करने वाले श्रमिक वर्ग का उदय हुआ| ये अपना घर गाँव छोड़कर शहरों में आकर कारखानों में काम करने लगे|परंतु, इनकी स्थिति शोचनीय थी| वे शोषण, गरीबी और भुखमरी के शिकार बने रहे|
बाल श्रम की प्रथा का विकास——
कारखाने दारी प्रथा के विकास ने बाल श्रम की प्रथा को भी बढ़ावा दिया| उद्योगपति इन्हें कम मजदूरी पर ही बहाल कर इनसे कारखानों में काम लेते थे जिससे उन्हें मुनाफा होता था| बच्चों के अभिभावक भी इन्हें अतिरिक्त आमदनी के लोभ में कारखानों में भेजने लगे| इनकी स्थिति भी दयनीय था|
स्त्री श्रम का विकास—–
बच्चों के समान स्त्रियों को भी कारखानेदारी ने कम मजदूरी पर काम में लगाया| इनकी बड़ी संख्या थी| इनका जीवन कष्ट दायक था|
श्रमिक आंदोलन का उदय—–
अपनी स्थिति में सुधार के लिए श्रमिक संगठित होकर आंदोलन करने लगे| इन लोगों ने अपनी मांगों की पूर्ति के लिए हड़ताल एवं प्रदर्शन का सहारा लिया|
उपनिवेशवाद का विकास——
औद्योगिक क्रांति ने उपनिवेशवाद को बढ़ावा दिया| कारखानों को चलाने के लिए कच्चे माल की आपूर्ति एवं उत्पादित सामान की खपत के लिए बाजार की खोज के लिए एशिया और अफ्रीका में उपनिवेश स्थापित किए गए| स्वयं भारत इंगलैंड का उपनिवेश बन गया|
7. औद्योगीकरण का भारत पर क्या प्रभाव पड़ा?
उत्तर:-
औद्योगिक का भारत पर व्यापक प्रभाव पड़ा| औद्योगीकरण के भारत पर प्रभाव निम्नलिखित हैं—–
उद्योगों का विकास—–
औद्योगीकरण के विकास के पूर्व भारत में उत्पादन का कार्य छोटे गृह उद्योगों में होता था| अब उत्पादन कारखानों में होने लगा| कपड़ा बुनने, सूत कातने के मिल स्थापित हुए| मशीनों का व्यवहार कर कपड़ा, लोहा एवं इस्पात, कोयला, सीमेंट, चीनी, कागज, शीशा और अन्य उद्योग स्थापित हुए जिनमें बडे़ स्तर पर उत्पादन हुआ| इस प्रकार औद्योगीकरण से भारतीय उद्योगों का विकास हुआ|
नगरीकरण को बढ़ावा—–
औद्योगीकरण ने नगरीकरण को बढ़ावा दिया| औद्योगिक केन्द्र नगर के रूप में परिवर्तित हुए| वहाँ बाहर के लोगों के आकार बसने से जनसंख्या में वृद्धि हुई| औद्योगीकरण के कारण पुराने नगरों जैसे— बंबई, कलकत्ता की समृद्धि में वृद्धि हुई तो नये नगर भी विकसित हुए जैसे, जमशेदपुर, बोकारो, सिंदरी, धनबाद, डालमिया नगर इत्यादि|
कुटीर उद्योगों की अवनति—–
कारखानों की स्थापना ने परंपरागत कुटीर एवं लघु उद्योगों का पतन कर दिया| इसका एक मुख्य कारण था कारखानों में उत्पादित सामान सस्ते थे जबकि कुटीर उद्योगों में उत्पादित सामान महंगे होते थे| इसिलिए बाजार में इनकी माँग घट गयी| सरकारी नीतियों के कारण कुटीर उद्योगों को कच्चामाल मिलना भी दुर्लभ हो गया| फलतः वे बंद हो गये|
सामाजिक विभाजन—–
भारत में औद्योगीकरण के विकास के साथ ही नये नये सामाजिक वर्गों का उदय और विकास हुआ| कल कारखानों के विकास के कारण समाज में पूंजीपति वर्ग तथा श्रमिक वर्ग का उदय हुआ| दोनों के अतिरिक्त मध्यमवर्ग या बुर्जुआ वर्ग का भी उदय हुआ| इस वर्ग ने पूंजीपतियों के शोषण का विरोध किया तथा श्रमिकों के हल में आवाज उठाई| राष्ट्रीय आंदोलन में इस वर्ग की प्रभावशाली भूमिका रही|
8. भारतीय अर्थव्यवस्था में कुटीर उद्योगों के महत्व पर प्रकाश डालें?
उत्तर:-
औद्योगीकरण और कारखाने दारी व्यवस्था ने कुटीर उद्योगों एवं इससे कार्यरत श्रमिकों की आजीविका को बुरी तरह प्रभावित किया, उन्हें विनाश के कगार पर पहुँचा दिया, तथापि वे पूर्णतः नष्ट नहीं हुए| स्थानीय स्तर पर वे कार्यरत रहे| बुनकरों का व्यवसाय तो फलता फूलता रहा| 1905 में बंगाल विभाजन बंगाल भंग और स्वदेशी आंदोलन ने कुटीर उद्योगों को पुनर्जीवित कर दिया| महात्मा गांधी ने जब राष्ट्रीय स्वतंत्रता आंदोलन का नेतृत्व संभाला तो उन्होंने कुटीर उद्योगों के विकास पर बल दिया| उनका मानना था कि कुटीर उद्योग भारतीय सामाजिक दशा के अनुकूल है| राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था में इनकी महत्वपूर्ण भूमिका है| ये न सिर्फ लाखों लोगों को रोजगार के अवसर उपलब्ध कराते हैं बल्कि उपभोक्ता वस्तुओं का उत्पादन करते हैं| साथ ही राष्ट्रीय आय का समान वितरण भी ये सुनिश्चित करते हैं| कुटीर उद्योगों का एक लाभ यह है कि इनकी स्थापना में पूंजी भी कम लगती है| सामाजिक तथा आर्थिक समस्याओं का समाधान कुटीर उद्योगों द्वारा ही होता है| यह सामाजिक, आर्थिक प्रगति व क्षेत्रवार संतुलित विकास के लिए एक शक्तिशाली हथियार है| कुटीर उद्योगों से शिल्पियों एवं कारीगरों के शहरों की ओर पलायन करने की प्रवृत्ति पर भी अंकुश लगता है| कुटीर उद्योगों में निर्मित कपड़ों और कलात्मक वस्तुओं का निर्यात भी होता है| स्वदेशी आंदोलन और राष्ट्रीय आंदोलनों ने कुटीर उद्योगों को नया जीवन दिया| गांधी जी के प्रयास से घर घर में चरखा और खादी के वस्त्रों का व्यवहार बढ़ गया| गाँधी द्वारा अपनायी गयी| विदेशी वस्तुओं के बहिष्कार की नीति से भी कुटीर उद्योगों को बढ़ावा मिला| दो विश्वयुद्धों के मध्य कुटीर उद्योग में उत्पादित वस्तुओं के उत्पादन और मांग में वृद्धि हुई| क्षेत्रीय स्तर पर कुटीर उद्योग आर्थिक जीवन में महत्वपूर्ण भूमिका का निर्वहन किया| कुटीर उद्योगों की उपयोगिता और उनके महत्व को देखते हुए से स्वतंत्रता के बाद भारत सरकार और राज्य सरकारों ने कुटीर उद्योग को प्रोत्साहन देने के लिए अनेक प्रयास किए हैं| 1948 की औद्योगिक नीति के द्वारा लघु एवं कुटीर उद्योगों को प्रोत्साहन दिया गया है|
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