Bharti Bhawan History Class-10:Chapter-2:Very Short Type Question Answer:Short Type Question Answer:Long Answer Type Question Answer:इतिहास:कक्षा-10:अध्याय-2:अति लघु उत्तरीय प्रश्न उत्तर:लघु उत्तरीय प्रश्न:दीर्घ उत्तरीय प्रश्न




      समाजवाद, साम्यवाद और रूस की क्रांति




अतिलघु उत्तरीय प्रश्न






1. रूस के सम्राट को क्या कहा जाता है? 
उत्तर:- जार
2. रूस में किस राजवंश का शासन था? 
उत्तर:- रोमोनोव वंश
3. रूस की संसद का नाम क्या था? 
उत्तर:- ड्यूमा
4. रूस में कृषि दासता की प्रथा किस वर्ष समाप्त हुई? 
उत्तर:- 1861
5. रासपुटिन कौन था? 
उत्तर:- रासपुटिन एक बदनाम और रहस्य मय पादरी था|
6. माँ का उपन्यास के लेखक कौन थे? 
उत्तर:- गोर्की
7. खूनी रविवार के विषय में आप क्या जानते हैं? 
उत्तर:-
9 जनवरी 1905 को सेंट पीटर्सबर्ग में निहत्थे जनता के प्रदर्शन पर रूसी सेना द्वारा चलाई गई गोली से हजारों व्यक्ति मारे गए| इसी घटना को खुनी रविवार (लाल रविवार) के नाम से जाना जाता है| 
8. 1854-56 के क्रीमिया युद्ध में किसकी हार हुई थी? 
उत्तर:- रूस
9. रूसी क्रांति किसके नेतृत्व में हुई थी? 
उत्तर:- 1917 की रूसी क्रांति बोल्शेविक दल के नेता लेनिन के नेतृत्व में हुई थी|
10. जार एलेक्जेंडर द्वितीय की हत्या 1881 ई० में किसने की? 
उत्तर:-
निहिलस्टों
11. वार एंड पीस उपन्यास के लेखक कौन थे? 
उत्तर:- लियो टॉल्स्टॉय
12. रूस में कृषि दासता की प्रथा किसने समाप्त की? 
उत्तर:-
1861 तक रूस में किसानों के कोई स्वतंत्र अस्तित्व नहीं था| अधिकांश किसान बंधुआ मजदूर थे| वे सामंतों के अधीन थे और जमीन से बंधे हुए थे| 1861 में क्रमिया युद्ध की पराजय के पश्चात जार एलेक्जेंडर द्वितीय ने इस बंधुआ प्रथा का अंत करके किसानों को मुक्ति दी| इसिलिए उसे मुक्तिदाता जार कहा जाता है| इस प्रकार कृषि दासता का अंत हुआ|
13. साम्यवादी शासन का पहला प्रयोग कहाँ हुआ था? 
उत्तर:-
साम्यवादी शासन का पहला प्रयोग रूस में हुआ था| रूसी क्रांति ने पुरान राजनीतिक व्यवस्था को नष्ट कर समाजवाद तथा साम्यवाद के आधार पर नये रूस का निर्माण किया| फलतः इसका प्रभाव दुनिया के कोने कोने में पड़ा और हर जगह साम्यवाद का नारा पुरानी व्यवस्था को गंभीर चुनौती देने लगा|
14. किसने सुधार के लिए आतंकवाद का सहारा लिया? 
उत्तर:-
रूस में एक नागरिक वर्ग ऐसा था जो चाहता था कि रूस में सुधार आंदोलन चलाया जाए| इन्होंने निहिलस्ट आंदोलन आरंभ किया तथा ये निहिलस्ट क नाम से जाने जाते थे| ये निहिलस्ट स्थापित व्यवस्था को आतंक का सहारा लेकर समाप्त करना चाहता थे| 1881 में जार एलेक्जेंडर द्वितीय की हत्या निहिलस्टों ने कर दी|
15. बोल्शेविक तथा मेन्शेविक का अर्थ क्या होता है? 
उत्तर:-
1898 में एशियन डेमोक्रेटिक पार्टी की स्थापना हुई| शीघ्र ही यह दल दो भागों में बंट गया| बहुमत वाला दल बोल्शेविक कहलाया और अल्पमत वाला दल मेन्शेविक कहलाया| मेन्शेविक मध्यवर्गीय क्रांति के पक्षधर थे| वे अपने दल में सभी तरह के लोगों को शामिल करना चाहते थे| पर, बोल्शेविक दल के नेता लेनिन का विचार इसके विपरीत था| उसका मानना था कि बुर्जुआ वर्ग की सहायता से क्रांति संभव नहीं है|
16. वार एंड पीस उपन्यास के लेखक कौन थे|
उत्तर:- टाल्सटाय था| उन्होंने अपनी पुस्तक में सामंतवाद और किसानों के शोषण की कटु आलोचना की है|

लघु उत्तरीय प्रश्न






1. समाजवादी दर्शन क्या है? 
उत्तर:-
समाजवाद उत्पादन में मुख्यतः निजी स्वामित्व की जगह सामूहिक स्वामित्व या धन के समान वितरण पर जोर देता है| समाजवादी शोषण उन्मुक्त समाज की स्थापना चाहते हैं| समाजवादी व्यवस्था एक ऐसी अर्थव्यवस्था है जिसके अंतर्गत उत्पादन के सभी साधनों कारखानों तथा विपणन में सरकार का एकाधिकार हो| ऐसी व्यवस्था में उत्पादन निजी लाभ के लिए न होकर सारे समाज के लिए होता है|
2. राबर्ट ओवेन का संक्षिप्त परिचय दें|
उत्तर:-
इंग्लैंड में समाजवाद का प्रवर्तक राबर्ट ओवेन को माना जाता है| इंग्लैंड में औद्योगिक क्रांति के परिणामस्वरूप श्रमिकों के शोषण को रोकने हेतु ओवेन ने एक आदेश समाज की स्थापना का प्रयास किया| उसके स्काटलैंड को न्यू लूनार्क नामक स्थान पर एक आदर्श कारखाना और मजदूरों के आवास की व्यवस्था की| इसमें श्रमिकों को अच्छा भोजन, आवास और उचित मजदूरी देने की व्यवस्था की गई| श्रमिकों की शिक्षा, चिकित्सा की भी व्यवस्था की गई| साथ ही काम के घंटे घटाए गये और बाल मजदूरी समाप्त की गई| ओवेन के इस प्रयास से मुनाफा में वृद्धि हुई इससे वह असंतुष्ट हुआ|
3. कार्ल मार्क्स के विषय में आप क्या जानते हैं? 
उत्तर:-
समाजवादी विचारधारा को आगे बढ़ाने में कार्ल मार्क्स (1818-1883) की महत्वपूर्ण भूमिका है| मार्क्स का जन्म जर्मनी के राइन प्रांत के ट्रियर नगर में एक यहूदी परिवार में हुआ था| मार्क्स पर रूसो, मांटेस्क्यू एवं हीगेल के विचारधारा का गहरा प्रभाव था| मार्क्स और एंगेल्स ने मिलकर 1848 में कम्युनिस्ट मेनिफेस्टो अथवा साम्यवादी घोषणापत्र प्रकाशित किया| मार्क्स ने पूंजीवाद की घोर भर्त्सना की और श्रमिकों के हक की बात उठाई| मजदूरों को अपने हक के लिए लड़ने को उसने उत्प्रेरित किया| उसने नारा दिया दुनिया के मजदूरों एक हो| मार्क्स ने अपनी विख्यात पुस्तक दास कैपिटल का प्रकाशन 1867 में किया| इसे समाजवादियों का बाइबिल कहा जाता है| मार्क्सवादी दर्शन साम्यवाद के नाम से विख्यात हुआ|
4. 1917 ई० की क्रांति के समय रूस में किस राजवंश का शासन था? इस शासन का स्वरूप क्या था? 
उत्तर:-
1917 ई० की क्रांति के पूर्व रूस में रोमोनोव वंश का शासन था| इस वंश के शासन का स्वरूप स्वेच्छाचारी राजतंत्र था| इस वंश के शासकों ने स्वेच्छाचारी राजतंत्र की स्थापना की| रूस का सम्राट जार अपने आपको का ईश्वर का प्रतिनिधि समझता था| वह सर्वशक्तिशाली था| राज्य की सारी शक्तियाँ उसी के हाथों में केन्द्रित थी| उसकी सत्ता पर नियंत्रण नहीं था| राज्य के अतिरिक्त वह रूसी चर्च का भी प्रधान था| प्रजा जार और उसके अधिकारियों से भयभीत और त्रस्त रहती थी|
5. निहिलिस्ट से आप क्या समझते हैं? रूस पर इसका क्या प्रभाव पड़ा? 
उत्तर:-
रूसी नागरिकों का एक वर्ग ऐसा था जो चाहता था कि रूस में सुधार आंदोलन जार के द्वारा किए जाएं| जार एलेक्जेंडर द्वितीय ने कयी सुधार कार्यक्रम भी चलाए, परंतु इससे सुधारवादी संतुष्ट नहीं हुए| इनमें से कुछ ने निहिलिस्ट आंदोलन आरंभ किया| ये निहिलिस्ट के नाम से जाने जाते थे| ये स्थापित व्यवस्था को आतंक का सहारा लेकर समाप्त करना चाहते थे| 1881 में जार एलेक्जेंडर द्वितीय की हत्या निहिलिस्ट ने कर दी| इन निहिलिस्टो के विचारों से प्रभावित होकर क्रांतिकारी जारशाही के विरुद्ध एकजुट होने लगे|
6. बौद्धिक जागरण ने रूसी क्रांति को किस प्रभावित किया? 
उत्तर:-
19  वीं शताब्दी के उत्तरार्द्ध में रूस में बौद्धिक जागरण हुआ जिसने लोगों को निरंकुश राजतंत्र के विरुद्ध बगावत करने की प्रेरणा दी| अनेक विख्यात लेखकों और बुद्धिजीवियों लियो टॉल्स्टॉय, ईरान, तुर्गनेव, फ्योदोर दोस्तोवस्की, मैक्सिम गोर्की ने अपनी रचनाओं द्वारा सामाजिक अन्याय एवं भ्रष्ट राजनीतिक व्यवस्था का विरोध कर दिए एक नये प्रगतिशील समाज के निर्माण का आहवान किया| रूसी लोग विशेषत: किसान और मजदूर, कार्ल मार्क्स के दर्शन से गहरे रूप से प्रभावित हुए| वे शोषण और अत्याचार विरुद्ध संघर्ष करने को ततपर हो गये|
7. मेन्शिविको ं और बोल्शेविक के विषय में आप क्या समझते हैं? 
उत्तर:-
19 वीं शताब्दी के उत्तरार्द्ध से रूस में राजनीतिक दलों का उत्कर्ष हुआ| कार्ल मार्क्स के एक प्रशंसक और समर्थक लेखानीव ने 1883 में रूसी सोशल डेमोक्रेटिक पार्टी की स्थापना की| इस दल ने मजदूरों को संघर्ष के लिए संगठित करना आरंभ किया| 1903 में संगठनात्मक मुद्दों को लेकर सोशल डेमोक्रेटिक पार्टी दो दलों में विभक्त हो गया| मेन्शेविक (अल्पमत वाले) तथा बोल्शेविक (बहुमत वाले) मेन्शेविक संवैधानिक रूप से देश में राजनीतिक परिवर्तन चाहते थे तथा मध्यवर्गीय क्रांति के समर्थक थे| परंतु बोल्शेविक इसे असंभव मानते थे तथा क्रांति के द्वारा परिवर्तन लाना चाहते थे जिसमें मजदूरों की विशेष भूमिका हो|
8. सोवियत संघ में प्रति क्रांति क्यों हुई? बोल्शेविक सरकार ने इसका सामना कैसे किया? 
उत्तर:-
बोल्शेविक क्रांति की नीतियों से  वैसे लोग व्यग्र हो गये जिनकी संपत्ति और अधिकारों को नयी सरकार ने छीन लिया था| अत: सामंत, पादरी, पूंजीपति नौकरशाह सरकार के विरोधी बन गए| वे सरकार का तख्ता पलटने का प्रयास कर रहे थे| उन्हें विदेशी सहायता भी प्राप्त थी| लेनिन ने प्रति क्रांतिकारियों का कठोरतापूर्वक दमन करने का निश्चय किया| इसके लिए चेका नामक विशेष पुलिस दस्ता का गठन किया गया| इसने निर्मतापूर्वक हजारों षड्यंत्रकारियों को मौत के घाट उतार दिया| चेका के लाल आतंक ने षड्यंत्रकारियों की कमर तोड़ दी| 
9. कौमिण्टर्न की स्थापना क्यों की गई? इसका क्या महत्व था? 
उत्तर:-
मार्क्सवाद का प्रचार करने एवं विश्व के सभी मजदूरों को संगठित करने के उद्देश्य से विभिन्न देशों के साम्यवादी दलों के प्रतिनिधि मास्को में एकत्रित हुए| सभी देशों की साम्यवादी पार्टियों का एक संघ बनाया गया जो कोमिण्टर्न कहलाया| इसका मुख्य कार्य विश्व में क्रांति का प्रचार करना एवं साम्यवादियों की सहायता करना था| कौमिण्टर्न का नेतृत्व रूस के साम्यवादी दल के पास रहा| लेनिन के इस कार्य से पूंजीवादी देशों में बेचैनी फैल गयी| रूस से मधुर संबंध बनाने को वे बाह्य हो गये| इंग्लैंड ने 1921 में रूस से व्यापारिक संधि कर ली| 1924 तक इटली, जर्मनी, इंगलैंड ने रूस की बोल्शेविक सरकार को मान्यता प्रदान कर दी|
10. नयी आर्थिक नीति पर एक टिप्पणी लिखें? 
उत्तर:-
लेनिन ने 1921 में एक नयी आर्थिक नीति लागू की| इसके अनुसार सीमित रूप से किसानों और पूंजीपतियों को व्यक्तिगत संपत्ति रखने की अनुमति दी गई| यह नीति कारगर हुई| खेती की पैदावार बढ़ी तथा उद्योग धंधों में भी उत्पादन बढ़ा| इससे रूस समृद्धि के मार्ग पर आगे बढ़ा|नयी आर्थिक नीति की कुछ मुख्य विशेषताएँ निम्नलिखित थी—–
1. किसानों से अनाज की जबरन उगाही बंद कर दी गई| अनाज के बदले उन्हें निश्चित कर देने को कहा गया| शेष अनाज का उपयोग किसान अपनी इच्छानुसार कर सकता था|
2. सैद्धांतिक रूप से जमीन पर राज्य का अधिकार मानते हुए भी व्यावहारिक रूप से किसानों को जमीन का स्वामित्व दिया गया|
11. रूसीकरण की नीति क्रांति हेतु कहाँ तक उत्तरदायी थी? 
उत्तर:-
सोवियत रूस विभिन्न राष्ट्रीयताओं का देश था| यहाँ मुख्यतः स्लाव जाति के लोग रहते थे| इनके अतिरिक्त फिन, पोल, जर्मन, यहूदी आदि अन्य जातियों के लोग भी थे| ये भिन्न भिन्न भाषा तथा संस्कृति के लोग थे| परन्तु रूस के अल्पसंख्यक समूह जार निकोलस द्वितीय द्वारा जारी की गई रूसीकरण की नीति से परेशान था| इसके अनुसार जार ने देश के सभी लोगों पर रूसी भाषा, शिक्षा और संस्कृति लादने का प्रयास किया| 1863 ई० में इस नीति के विरुद्ध पोल्गे ने विद्रोह किया तो उनका निर्दयतापूर्वक दमन किया गया| इस प्रकार रूसी राजतंत्र के प्रति उनका आक्रोश बढता गया जो क्रांति के लिए उत्तरदायी साबित हुआ|
12. प्रथम विश्वयुद्ध में रूस की पराजय ने क्रांति हेतु मार्ग प्रशस्त किया| कैसे? 
उत्तर:-
प्रथम विश्वयुद्ध में रूस मित्र राष्ट्रों की ओर से शामिल हुआ था| जार का मानना था कि युद्ध के अवसर पर जनता सरकार का समर्थन करेगी तथा देश में आंतरिक विद्रोह कमजोर पड़ जाएगा| परंतु जार की यह इच्छा पूरी न हो सकी| प्रथम विश्वयुद्ध में रूसी की लगातार हार होती गयी| सैनिकों के पास न तो अच्छे अस्त्र शस्त्र थे और न ही पर्याप्त मात्रा में रूसी रसद| रूसी सेना की कमान स्वयं जार ने संभाल रखी थी| पराजय उसकी प्रतिष्ठा को गहरा आघात लगा| इस स्थिति से रूसी जनता और अधिक कुछ हो गयी तथा पूरी तरह से जारशाही को समाप्त करने के लिए कटिबद्ध हो गयी| अंततः प्रथम विश्वयुद्ध में रूस की पराजय क्रांति का तात्कालिक कारण बना|
13. कम्युनिस्ट इंटरनेशनल का तात्पर्य है? 
उत्तर:-
कम्युनिस्ट इंटरनेशनल एक संस्था थी जिसकी स्थापना प्रथम विश्वयुद्ध के बाद 1919 में हुई थी| इस संस्था का उद्देश्य साम्यवाद को अंतराष्ट्रीय स्तर पर विकसित करना था| इसके प्रभाव से अनेक देशों में साम्यवादी संगठनों की स्थापना हुई| साथ ही, अनेक प्रजातंत्रीय देशों में राजनीतिक समानता के साथ साथ सामाजिक एवं आर्थिक समानता लाने का भी प्रयास किया गया|
14. सोवियत से क्या समझते हैं? 
उत्तर:-
रूस में राजनीतिक संगठन के सबसे निचले स्तर पर स्थानीय समितियाँ थी जिन्हें सोवियत कहा जाता था| आरंभ में यह मजदूरों के प्रतिनिधियों की परिषद थी जिसकी स्थापना हड़तालों के संचालन के लिए की गई थी, पर शीघ्र ही यह राजनीतिक सत्ता का उपकरण बन गयी| मजदूरों की भांति किसानों की परिषदों या सोवियतों का निर्माण हुआ| भी सोवियतों के प्रतिनिधि एक राष्ट्रीय कांग्रेस का संगठन करते थे|
15. खूनी रविवार से आप क्या समझते हैं? इस घटना का क्या प्रभाव पड़ा? 
उत्तर:-
रूस में जार के शासन से लोग तंग आ गए थे| उसका अत्याचार अतयंत बढ़ गया था| इसिलिए 22 जनवरी (पुराने कैलेंडर में 9 जनवरी 1905) को मजदूर अपने परिवारों के साथ एक शांतिपूर्ण जुलूस में जार से मिलने और उसे एक प्राथनापत्र देने के लिए उसके सेंट पीटर्सबर्ग स्थित महल की ओर जा रहे थे| उसी समय सैनिकों ने उनपर गोलियाँ बरसा दी| फलतः एक हजार से अधिक मजदूर मारे गए तथा कयी हजार घायल हुए| चूंकि यह घटना रविवार के दिन हुई थी, इसिलिए इस दिन को खूनी रविवार कहा जाता है| खूनी रविवार को नरसंहार की खबर बिजली की तरह पूरे रूस में फैल गयी| इसके बाद सारे देश में उथल पुथल मच गया| सेना तथा नौसेना में विद्रोह हो गया| पोतेम्किन नामक जंगी जहाज के नाविक भी क्रांतिकारियों से जा मिले| इस समय संगठन एक नये रूप में उभरा जिसे सोवियत अर्थात मजदूरों के प्रतिनिधियों की परिषद कहा जाता है| 1917 की क्रांति में इस संगठन की महत्वपूर्ण भूमिका थी|
16. 1917 की क्रांति के समय रूस में किस राजवंश का शासन था? इस शासन का क्या स्वरूप था? 
उत्तर:-
1917 की क्रांति के समय रूस में रोमोनोव वंश का शासन था| रूस के सम्राट को जार कहा जाता था| रोमोनोव वंश के शासकों ने स्वेच्छाचारी राजतंत्र की स्थापना की| रूस निरंकुश राजतंत्र का गढ़ था| राज्य की सारी शक्तियाँ जार के हाथों में केन्द्रित थीं तथा जार अपने आपको ईश्वर का प्रतिनिधि समझता था| जार को प्रजा के सुख दुःख की चिंता एकदम नहीं थी| राज्य के कुछ सलाहकार अवश्य होते थे, पर वे उन्हीं थोड़े से लोगों के बीच से चुने जाते थे जिनके पास प्रचुर संपत्ति होती थी, तथा जो स्वयं जनता का शोषण करते थे| जार रूसी चर्च का भी प्रधान था| वह दिन रात चापलूसों और चाटुकारों से घिरा रहता था| प्रशासनिक अधिकारी भी मनमानी करते थे जिसके कारण प्रजा और उसके अधिकारियों से भयभीत और त्रस्त रहती थी| जार की स्वेच्छाचारिता के कारण प्रजा की स्थिति बिगड़ती गयी और उनमें असंतोष बढ़ता गया|
17. फरवरी की क्रांति एवं अक्टूबर की क्रांति से आप क्या समझते हैं? संक्षेप में प्रकाश डालें|
उत्तर:-
रूस के जार के विरुद्ध 1917 में दो क्रांतियाँ हुई पहली क्रांति मार्च में हुई जो फरवरी की क्रांति कहलाई तथा दूसरी क्रांति नवंबर महीने में हुई जिसे अक्टूबर की क्रांति कहा जाता है| जार की दयनीय स्थिति का लाभ उठाकर मार्च 1917 में जगह जगह प्रदर्शन हुए| मजदूरों की हड़ताल हुई जिसमें सैनिक और अन्य लोगों ने भाग लिया| क्रांतिकारियों ने सेंट पीटर्सबर्ग (पेत्रोग्राद या लेनिनग्राद) और मास्को पर अधिकार कर लिया| इस क्रांति के परिणामस्वरूप 15 मार्च 1917 को जार निकोलस द्वितीय को राजगद्दी छोड़नी पड़ी, तथा रूस का पुराना रोमोनोव वंश का शासन समाप्त हो गया| पुराने रुसी कैलेंडर के अनुसार जार ने 27 फरवरी 1917 को गद्दी त्याग दी थी| अत:, रूस की पहली क्रांति फरवरी की क्रांति कहलाती है| मार्च की क्रांति के बाद 1917 में ही दूसरी बार क्रांति हुई| यह क्रांति 7 नवंबर 1917 को हुई, पर पुराने रुसी कैलेंडर के अनुसार वह दिन 25 अक्टूबर 1917 था अत: यह क्रांति बोल्शेविक क्रांति या अक्टूबर क्रांति कहलाती है| यह क्रांति मेन्शेविकों और बोल्शेविकों के बीच सत्ता के संघर्ष के लिए हुई थी क्योंकि राजतंत्र की समाप्ति के बाद सत्ता मेन्शेविक दल के नेता केरेन्सकी के हाथों में आ गयी थी| केरेन्सकी की सरकार की अलोकप्रियता के सरकार के विरुद्ध असंतोष बढ़ता गया| उसी समय स्विट्जरलैंड से वापस लौटकर बोल्शेविक दल का नेता लेनिन ने ट्राटस्की की सहायता से केरेन्सकी की सरकार का तख्ता पलट दिया| केरेन्सकी देश छोड़कर भाग गया और शासन की बागडोर लेनिन के हाथों में आ गयी और रूस का नवनिर्माण आरंभ हुआ|
दीर्घ उत्तरीय प्रश्न






1. समाजवाद के उदय और विकास को रेखांकित करें|
उत्तर:-
समाजवाद एक ऐसी विचारधारा है जिसने आधुनिक काल में समाज को एक नया रूप प्रदान किया| औद्योगिक क्रांति के फलस्वरूप समाज में पूंजीपति वर्गों द्वारा मजदूरों का लगातार शोषण अपने चरमोत्कर्ष पर था| उन्हें इस शोषण के विरुद्ध आवाज उठाने तथा वर्ग विहीन समाज की स्थापना करने में समाजवादी विचारधारा ने अग्रणी भूमिका अदा की| समाजवाद उत्पादन में मुख्यतः निजी स्वामित्व की जगह सामूहिक स्वामित्व या धन के समान वितरण पर जोर देती है| यह एक शोषण उन्मुक्त समाज की स्थापना चाहता है| अतः समाजवादी व्यवस्था एक ऐसी अर्थव्यवस्था है जिसके अंतर्गत उत्पादन के सभी साधनों, कारखानों तथा विपणन में सरकार का एकाधिकार हो| ऐसी व्यवस्था में उत्पादन निजी लाभ के लिए न होकर सारे समाज के लिए होता है|समाजवादी विचारधारा की उत्पत्ति 18 वीं शताब्दी के प्रबोधन आंदोलन के दार्शनिकों के लेखों में ढूँढे जा सकते हैं| आरंभिक समाजवादी आदर्शवादी थे, जिनमें सेंट साइमन, चार्ल्स फूरिए लुई ब्लां तथा राबर्ट ओवेन के नाम विशेष रूप से उल्लेखनीय है| समाजवादी आंदोलन और विचारधारा मुख्यतः दो भागों में विभक्त की सकती है—- आरंभिक समाजवादी अथवा कार्ल मार्क्स के पहले के समाजवादी, कार्ल मार्क्स के बाद समाजवादी| आरंभिक समाजवादी आदर्शवादी या स्वप्न दर्शी समाजवादी कहे गए| वे उच्च और अव्यावहारिक आदर्श से प्रभावित होकर वर्ग संघर्ष की नहीं बल्कि वर्ग समन्वय की बात करते थे| दूसरे प्रकार के समाजवादियों में फ्रेडरिक एंगेल्स, कार्ल मार्क्स और उनके बाद के चिंतक जो साम्यवादी की एक नयी व्याख्या प्रस्तुत की जिसे वैज्ञानिक समाजवाद कहा जाता है| 19 वीं शताब्दी में समाजवादी विचारधारा का तेजी से प्रसार हुआ| फ्रांस में लुई ब्लां ने समाजिक कार्यशालाओं की स्थापना कर पूंजीवाद की बुराइयों को समाप्त करने की बात कही| जर्मनी भी समाजवादी विचारधारा से अपने को अलग नहीं रख सका| रूस में भी समाजवाद ने अपनी जड़े जमा ली| कार्ल मार्क्स ने आरंभिक समाजवादियों से प्रेरणा लेकर ही नयी समाजवादी व्याख्या प्रस्तुत की| 
2. साम्यवाद के जनक कौन थे? समाजवाद और साम्यवाद में अंतर स्पष्ट करें|
उत्तर:-
साम्यवाद के जनक फेडरिक एंगेल्स तथा कार्ल मार्क्स थे| समाजवाद एक ऐसी विचारधारा है जिसने आधुनिक काल में समान को एक नया रूप प्रदान किया| औद्योगिक क्रांति के फलस्वरूप समाज में पूंजीपति वर्गों द्वारा मजदूरों का लगातार शोषण अपने चरमोत्कर्ष पर था| उन्हें इस शोषण के विरुद्ध आवाज उठाने तथा वर्ग विहीन समाज की स्थापना करने में समाजवादी विचारधारा ने अग्रणी भूमिका अदा की| समाजवाद उत्पादन में मुख्यतः निजी स्वामित्व की जगह सामूहिक स्वामित्व या धन के समान वितरण पर जोर देता है| यह एक शोषण उन्मुक्त समाज की स्थापना चाहता है| अतः समाजवादी व्यवस्था एक ऐसी अर्थव्यवस्था है जिसके अंतर्गत उत्पादन के सभी साधनों कारखानों तथा विपणन में सरकार का एकाधिकार हो| ऐसी व्यवस्था में उत्पादन निजी लाभ के लिए न होकर सारे समाज के लिए होता है| आरंभिक समाजवादियों में सेंट साइमन चार्ल्स फूरिए, लुई ब्लां तथा राबर्ट ओवेन के नाम विशेष रूप से उल्लेखनीय है| आरंभिक समाजवादी आदर्शवादी या स्वप्न दर्शी थे| वे उच्च और व्यावहारिक आदर्श से प्रभावित होकर वर्ग संघर्ष की नहीं बल्कि वर्ग समन्वय की बात करते थे| दूसरे प्रकार के समाजवादियों में फ्रेडरिक एंगेल्स कार्ल मार्क्स और उनके बाद के चिंतक साम्यवादी कहलाए जो वर्ग समन्वय के स्थान पर वर्ग संघर्ष की बात की| इन लोगों ने समाजवाद की एक नई व्याख्या प्रस्तुत की जिसे वैज्ञानिक समाजवाद कहा जाता है| मार्क्स और एंगेल्स ने मिलकर 1848 में कम्युनिस्ट मेनिफेस्टो अथवा साम्यवादी घोषणा पत्र प्रकाशित किया| मार्क्स ने पूंजीवाद की घोर भर्त्सना की ओर श्रमिकों ने हक की बात उठाई| मजदूरों को अपने हक के लिए लड़ने को उसने उत्प्रेरित किया| मार्क्स ने अपनी विख्यात पुस्तक दास कैपिटल का प्रकाशन 1867 में किया जिले समाजवादियों का बाइबिल कहा जाता है| मार्क्स वादी दर्शन साम्यवाद के नाम से विख्यात हुआ| मार्क्स का मानना था कि मानव इतिहास वर्ग संघर्ष का इतिहास है| इतिहास उत्पादन के साधनों पर नियंत्रण के लिए दो वर्गों में चल रहे हैं निरंतर संघर्ष की कहानी है|
3. 1917 की रूसी क्रांति के प्रमुख कारणों का उल्लेख करें|
उत्तर:-
बीसवीं शताब्दी के इतिहास की एक महत्वपूर्ण घटना रूस की क्रांति थी| इस क्रांति ने रूस के सम्राट जार के एकतंत्रीय निरंकुश शासन का अंत कर मात्र लोकतंत्र की स्थापना का ही प्रयत्न नहीं किया अपितु सामाजिक आर्थिक और व्यवसायिक क्षेत्रों में कुलीनों पूंजीपतियों और जमींदारों की शक्ति का अंत किया तथा मजदूरों और किसानों की सत्ता को स्थापित किया| इस क्रांति के प्रमुख कारण निम्नलिखित थे—–
जार की निरंकुशता एवं अयोग्य शासन—–
1917 से पूर्व रूस में रोमोनोव राजवंश का शासन था| इस समय रूस के सम्राट की जार कहा जाता था| जार निकोलस-2 जिसके शासनकाल में क्रांति हुई राजा के दैवी अधिकारों में विश्वास रखता था| उसे प्रजा के सुख दुःख के प्रति कोई चिंता नहीं थी| जार ने जो अफसरशाही बनायी थी वह. अस्थिर जड़ और अकुशल थी|
कृषकों की दयनीय स्थिति——
रूसी में जनसंख्या का बहुसंख्यक भाग कृषक हीं थे, परन्तु उनकी स्थिति अत्यंत दयनीय थी, परन्तु इससे किसानों की स्थिति में कोई सुधार नही हुआ था| खेत छोटे थे जिनपर वे पुराने ढंग से खेती करते थे| पूंजी का अभाव तथा करों के बोझ के कारण किसानों के पास क्रांति के सिवाय कोई विकल्प नहीं था|
औद्योगिकरण की समस्या—–
रूसी औद्योगिकरण पश्चिमी पूंजीवादी औद्योगिकरण से भिन्न था| यहाँ कुछ ही क्षेत्रों में महत्वपूर्ण उद्योगों का संकेन्द्रण था| यहाँ राष्ट्रीय पूंजी का अभाव था| अतः उद्योगों के विकास के लिए विदेशी पूंजी पर निर्भरता बढ़ गई थी| विदेशी पूंजीपति आर्थिक शोषण को बढ़ावा दे रहे थे| अतः चारों ओर असंतोष व्याप्त था|
रुसीकरण की नीति—–
सोवियत रूस विभिन्न राष्ट्रीयताओं का देश था| यहाँ मुख्य रूप से स्लाव जाति के लोग रहते थे| इनके अतिरिक्त किन पोल, जर्मन, यहूदी आदि अन्य जातियों के भी लोग थे| रूस का अल्पसंख्यक समूह जार निकोलस-2 द्वारा जारी की गई समीकरण की नीति से परेशान था| इसके अनुसार जार ने देश के सभी लोगों पर रूसी भाषा, शिक्षा और संस्कृति लादने का प्रयास किया गया| 1863 में इस नीति के विरुद्ध पोले ने विद्रोह किया जिसे निर्दयतापूर्वक दबा दिया गया लेकिन रूसी राजतंत्र के विरुद्ध उनका आक्रोश बढ़ता गया
विदेशी घटनाओं का प्रभाव——
रूस की क्रांति में विदेशी घटनाओं की भूमिका भी अत्यंत महत्वपूर्ण थी| सर्वप्रथम क्रीमिया के युद्ध 1854-56 में रूस की पराजय ने उस देश में सुधारों का युग आरंभ किया| तत्पश्चात 1904-05 के रूस जापान युद्ध ने रूस में पहली क्रांति को जन्म दिया और अंततः प्रथम विश्वयुद्ध में रूस की पराजय ने बोल्शेविक क्रांति का मार्ग प्रशस्त किया|
बौद्धिक कारण—–
19वीं शताब्दी के उत्तरार्द्ध में रूस में बौद्धिक जागरण हुआ जिसने लोगों को निरंकुश राजतंत्र के विरुद्ध बगावत करने की प्रेरणा दी| अनेक विख्यात लेखकों एवं बुद्धिजीवियों लियो टॉल्स्टॉय, तुर्गनेव फ्योदोर दोस्तोवस्की, मैक्सिम गोर्की ने अपनी रचनाओं द्वारा सामाजिक अन्याय एवं भ्रष्ट राजनीतिक व्यवस्था का विरोध कर एक नये प्रगतिशील समान के निर्माण का आहवान किया| रूसी लोग विशेषत: किसान और मजदूर कार्ल मार्क्स के दर्शन सभी गहरे रूप से प्रभावित हुए| साम्यवादी घोषणा पत्र और दास कैपिटल द्वारा मार्क्स ने सामाजिक विचारधारा और वर्ग संघर्ष के सिद्धांत का प्रतिपादन किया| मार्क्स के विचारों से श्रमिक वर्ग सबसे अधिक प्रभावित हुआ और वे शोषण और अत्याचार के विरुद्ध संघर्ष करने को तत्पर हो गये|
4. बोल्शेविक क्रांति का रूस एवं विश्व पर क्या प्रभाव पड़ा? 
उत्तर:-
1917 की क्रांति के दूरगामी और व्यापक प्रभाव पड़े| इसका प्रभाव न सिर्फ रूस पर बल्कि विश्व के अन्य देशों पर भी पड़ा| इस क्रांति के रूस पर निम्नलिखित हैं——
स्वेच्छाचारी जारशाही का अंत—–
1917 की बोल्शेविक क्रांति के परिणामस्वरूप अत्याचारी एवं निरंकुश राजतंत्र की समाप्ति हो गयी| रोमोनोव वंश के शासन की समाप्ति हुई तथा रूस में राजतंत्र की स्थापना की गई|
सर्वहारा वर्ग के अधिनायकवाद की स्थापना—–
बोल्शेविक क्रांति ने पहली बार शोषित सर्वहारा वर्ग को सत्ता और अधिकार प्रदान किया| नयी व्यवस्था के अनुसार भूमिका स्वामित्व किसानों को दिया गया| उत्पादन के साधनों पर निजी स्वामित्व समाप्त कर दिया गया| मजदूरों को मतदान का अधिकार दिया गया| इस प्रकार रूस में सर्वहारा वर्ग को सबसे प्रमुख स्थान दिया गया| 
नयी प्रशासनिक व्यवस्था की स्थापना—–
क्रांति के बाद रूस में एक नई प्रशासनिक व्यवस्था की स्थापना की गई| यह व्यवस्था साम्यवादी विचारधारा के अनुकूल थी| प्रशासन का उद्देश्य कृषकों एवं मजदूरों के हितों की सुरक्षा करना एवं उनकी प्रगति के लिए कार्य करना था| रूस में पहली बार साम्यवादी सरकार की स्थापना हुई|
नयी सामाजिक आर्थिक व्यवस्था—–
क्रांति के बाद रूस में नयी सामाजिक आर्थिक व्यवस्था की स्थापना हुई| सामाजिक असमानता समाप्त कर दी गई| वर्ग विहीन समाज का निर्माण कर रुसी समाज का परंपरागत स्वरूप बदल दिया गया| 
क्रांति का विश्व पर प्रभाव—–
रूसी क्रांति का विश्व के दूसरे देशों पर भी प्रभाव पड़ा|
ये निम्नलिखित हैं—–




पूंजीवादी राष्ट्रों में आर्थिक सुधार के प्रयास—-
विश्व के जिन देशों में पूंजीवादी अर्थव्यवस्था थी वे भी यह महसूस करने लगे कि बिना सामाजिक आर्थिक समानता के राजनीतिक समानता अपर्याप्त है|
साम्यवादी सरकारों की स्थापना——
रूस के ही समान विश्व के अन्य देशों चीन वियतनाम इत्यादि में भी बाद में साम्यवादी सरकारों की स्थापना हुई| साम्यवादी विचारधारा के प्रसार और प्रभाव को देखते हुए राष्ट्रसंघ ने भी मजदूरों की दशा में सुधार लाने के प्रयास किया| इस उद्देश्य से अंतराष्ट्रीय श्रमिक संघ की स्थापना की गई|
साम्राज्यवाद के पतन की प्रक्रिया तीव्र—–
बोल्शेविक क्रांति ने साम्राज्यवाद को पतन का मार्ग प्रशस्त कर दिया| रूस ने सभी राष्ट्रों में विदेशी शासन के विरुद्ध चलाए जा रहे स्वतंत्रता आंदोलन को अपना समर्थन दिया| एशिया और अफ्रीका में उपनिवेशों से स्वतंत्रता के लिए प्रयास तेज कर दिए गए|
नया शक्ति संतुलन——-
रूस के नवनिर्माण के बाद रूस साम्यवादी सरकारों का अगुआ बन गया| दूसरी ओर अमेरिका पूंजीवादी राष्ट्रों का नेता बन गया| इससे विश्व दो शक्ति खंडों में विभक्त हो गया|यूरोप भी वैचारिक आधार पर दो भागों में विभक्त हो गया पूर्वी एवं पश्चिमी यूरोप| धर्म सुधार आंदोलन के पश्चात और साम्यवादी क्रांति से पहले यूरोप में वैचारिक आधार पर इस प्रकार का वैचारिक विभाजन नहीं देखा गया था| इसने आगे चलकर दोनों खेमों में सशस्त्रीकरण की होड़ एवं शीतयुद्ध को जन्म दिया|
5. लेनिन के जीवन एवं उपलब्धियों की समीक्षा करें|
उत्तर:-
बोल्शेविक क्रांति का प्रणेता लेनिन था| उसका पूरा नाम ब्लादिमीर इलिच अलयानोव था| उसका जन्म 10 अप्रैल 1890 को वोल्गा नदी के किनारे स्थित सिमब्रस्क नामक गाँव में हुआ था| विद्यार्थी जीवन से ही वह मार्क्सवादी से प्रभावित होकर इसका कट्टर समर्थक बन गया| उसने स्वयं भी मार्क्सवादी विचारधारा का प्रचार किया| वह रूस की तत्कालीन स्थिति से क्षुब्ध था और प्रचलित व्यवस्था की समाप्ति चाहता था| इसिलिए उसने सोशल डेमोक्रेटिक पार्टी की सदस्यता ग्रहण कर ली| बाद में वह बोल्शेविक दल का नेता बन गया| 1905 की रूस क्रांति में उसने सक्रियता से भाग लिया, परंतु क्रांति के विफल हो जाने के पश्चात वह स्विट्जरलैंड में निर्वासित जीवन व्यतीत करता रहा| 1917 की मार्च क्रांति के बाद वह रूस वापस पहुँचा| उसने बोल्शेविक दल का नेतृत्व ग्रहण किया| ट्राटस्की के सहयोग से उसने करेन्सकी की सरकार का तख्ता पलट दिया| लेनिन नयी बोल्शेविक सरकार का अध्यक्ष बन गया| शासन संभालते ही उसने उद्देश्य और कार्यक्रम निश्चित किए| उसका उद्देश्य रूस का नवनिर्माण करना था|
लेनिन की उपलब्धियाँ——
लेनिन के सत्ता संभालते ही उसके समक्ष अनेक समस्याएँ थीं जिनका निराकरण करना उसकी प्रथमिकता थी| प्रथम विश्वयुद्ध का प्रतिकूल प्रभाव रूस पर पड़ रहा था| क्रांति के दौरान प्रशासनिक आर्थिक एवं सामाजिक स्थिति बिगड़ चुकी थी| लेनिन ने सत्ता संभालते ही इन समस्याओं पर ध्यान दिया|
 1. सर्वप्रथम लेनिन ने जर्मनी के साथ युद्ध कर दिया| 1918 में रूस ने जर्मनी के साथ ब्रेस्टलिटोवस्क की संधि कर ली, यद्यपि इस संधि में रूस का एक बड़ा भू भाग खोना पड़ा|
2. रूस की आंतरिक व्यवस्था एवं षड्यंत्रकारी गतिविधियों को देखकर तथा समाजवाद के बढ़ते प्रभाव से चिंतित होकर ब्रिटेन, फ्रांस और अमेरिका ने प्रतिक्रांतिकारियों की सहायता के लिए रूस में अपने सैनिक भेज दिए| इससे गृहयुद्ध की स्थिति उत्पन्न हो गयी| लेनिन ने चेवा नामक गुप्त हैलिस दस्ता का गठन कर तथा ट्राटस्की ने लाल सेना का गठन कर विदेशी सेना को रूस से बाहर खदेड़ दिया तथा आंतरिक विद्रोहियों का दमन कर दिया|
3. बोल्शेविक सरकार ने नयी आर्थिक नीति की व्यवस्था की| राष्ट्र की सारा संपत्ति तथा उत्पादन और वितरण के साधनों पर सरकारी आधिपत्य स्थापित किया गया| जमीन पर से व्यक्तिगत स्वामित्व हटा दिया गया| जमीन किसानों में बांट दी गई| कल कारखानों, रेलवे, बैंक, खान, जंगल का राष्ट्रीय करण किया गया| चर्च की संपत्ति का भी सरकार ने अधिग्रहण कर लिया|
4. लेनिन ने 1921 में एक नई आर्थिक नीति (NEP) लागू की| इसके अनुसार सीमित रूप से किसानों और पूंजीपतियों को व्यक्तिगत संपत्ति रखने की अनुमति दी गई| यह नीति कारगर हुई खेती की पैदावार बड़ी तथा उद्योग धंधों में भी उत्पादन बढ़ा| इससे रूस समृद्धि के मार्ग पर आगे बढ़ा|
                
आंतरिक सुधारों के अतिरिक्त लेनिन ने बाह्य समस्याओं की ओर भी ध्यान दिया एवं महत्वपूर्ण निर्णय लिए| इस प्रकार लेनिन ने रूस की कायापलट कर दी| रूस अब प्रगति के मार्ग पर तेजी से बढ़ा|
6. यूरोपियन समाजवादियों के विचारों का वर्णन करें|
उत्तर:-यूरोपियन समाजवादी आदर्शवादी थे, उनके कार्यक्रम की प्रवृत्ति अव्यवहारिक थी| इन्हें स्वप्न दर्शी समाजवादी कहा गया क्योंकि उनके लिए समाजवाद एक सिद्धांत मात्र था| अधिकतर यूरोपियन विचारक फ्रांसीसी थे जो क्रांति के बदले शांतिपूर्ण परिवर्तन में विश्वास रखते थे अर्थात वे वर्ग संघर्ष के बदले वर्ग समन्वय के हिमायती थे| फ्रांसीसी विचारक सेंट साइमन जो प्रथम यूरोपियन समाजवादी था मानना था कि राज्य और समाज का पुनर्गठन इस प्रकार होना चाहिए जिससे शोषण की प्रक्रिया समाप्त हो तथा समाज के गरीब तबकों की स्थिति में सुधार लाया जा सके| उसने घोषित किया प्रत्येक को उसकी क्षमता के अनुसार तथा प्रत्येक को उसके कार्य के अनुसार| एक अन्य महत्वपूर्ण यूरोपियन विचारक चार्ल्स फूरिए था| वह आधुनिक औद्योगिकवाद का विरोधी था तथा उसका मानना था कि श्रमिकों को छोटे नगर अथवा कस्बों में काम करना चाहिए| इससे पूंजीपति उनका शोषण नहीं कर पाएंगे| फ्रांसीसी यूरोपियन चिंतकों में एक लुई ब्लां भी था जिसका मानना था कि आर्थिक सुधारों को प्रभावकारी बनाने के लिए पहले राजनीतिक सुधार आवश्यक है| फ्रांस से बाहर सबसे महत्वपूर्ण यूरोपियन चिंतक ब्रिटिश उद्योगपति राबर्ट ओवेन था| उसने स्काटलैंड के न्यू लूनार्क नामक स्थान पर एक फैक्ट्री की स्थापना की थी| इस फैक्ट्री में उसने श्रमिकों को अच्छी वैज्ञानिक सुविधाएँ प्रदान की और फिर उसने ऐसा महसूस किया कि मुनाफा कम होने के बजाए और भी बढ़ गया है| वह इस निष्कर्ष पर पहुँचा कि संतुष्ट श्रमिक ही वास्तविक श्रमिक है| यद्यपि आरंभिक समाजवादी अपने आदर्शों में सफल नहीं हो सके, लेकिन इन लोगों ने ही पहली बार पूंजी और श्रम के बीच संबंध निर्धारित करने का प्रयास किया|
7. 1917 की रूस की क्रांति का संक्षिप्त विवरण दें|
उत्तर:-
रूस की क्रांति के कारण——



निरंकुश शासन—-
क्रांति का एक महत्वपूर्ण कारण जारशाही की निरंकुशता था| रूस का जार निकोलस द्वितीय एक निरंकुश शासक था और हमेशा विरोधियों को कठोर से कठोर दंड दिया करता था| लोगों को भाषण, लेखन, विचार अभिव्यक्ति तथा धार्मिक स्वंतत्रता नहीं थी| समाचारपत्रों, विद्यालयों तथा विश्वविद्यालयों पर कठोर नियंत्रण थी| पुलिस को विशेषाधिकार प्राप्त था तथा संपूर्ण रूस में जासूसों का जाल बिछा हुआ था|ऐसी दमनकारी व्यवस्था के कारण जार का निरंकुशता शासन असहनीय हो गया था| जार की पत्नी घोर प्रतिक्रियावादी औरत थी और रासपुटिन नामक एक भ्रष्ट पादरी के चंगुल में फंस गयी थी| उस समय रासपुटिन की इच्छा ही कानून थी| वह नियुक्तियों, पदोन्नतियों तथा शासन के अन्य कार्यों में हस्तक्षेप करता था| इस अत्याचार से प्रजा का विरोध और असंतोष बढ़ता जा रहा था|
रूस की राजनीतिक मर्यादा को आघात—-
बीसवीं सदी के प्रारंभ में जार की अदूरदर्शिता के कारण रूस की राजनीतिक मर्यादा को बड़ा आघात पहुँचा| यद्यपि रूसी साम्राज्य बहुत बड़ा हो गया था, पर इसकी सामरिक शक्ति घट गयी थी| इसके परिणामस्वरूप 1904-05 में रूस जापान युद्ध में रूस की करारी हार हुई| इससे रूस के लोगों में भारी क्षोभ हुआ| इस हार ने रूस की जनता के असंतोष को आर बढ़ा दिया|
किसानों की दयनीय स्थिति—–
रूस की कृषि प्रणाली दोषपूर्ण थी| किसानों को अनेक प्रकार के कर देन होते थे| भूमि की समस्या के कारण रूस में खाद्यान्न संकट उत्पन्न हुआ| खेत छोटे छोटे टुकड़ों में विभाजित था जो कृषि के लिए उपयुक्त नहीं था| कृषि के औजार और तरीके पुराने एवं अवैज्ञानिक थे| सरकार की ओर से खेती को उन्नत बनाने का प्रयास नहीं हो रहा था| उत्पादन में कमी के कारण रूस में दरिद्रता, गरीबी, भूख और बीमारी का राज्य छाया हुआ था| विदेशी पूंजीपति भी रूस के निवासियों का शोषण कर रहे थे| सरकार लोगों की आर्थिक स्थिति को सुधारने का प्रयत्न नहीं कर रही थी| इस कारण चारों ओर असंतोष फैला हुआ था|
औद्योगिकीकरण एवं मजदूरों की दुरावस्था—–
रूस में औद्योगिकीकरण की प्रक्रिया 1861 में प्रारंभ हुई| यातायात के साधनों का विकास तथा हजारों मील लंबी रेल की लाइनों का निर्माण हो चुका था| लोहा, कोयला, इस्पात इत्यादि उद्योगों का भी विकास हो चुका था| फिर भी उद्योगों की दृष्टि से रूस इंगलैंड, फ्रांस एवं अन्य देशों की अपेक्षा पिछड़ा हुआ था| इसका कारण यह था कि रूस में राष्ट्रीय पूंजी का अभाव था| उद्योगों के विकास के लिए उसे विदेशी पूंजी पर निर्भर रहना पड़ता था और विदेशी पूंजीपति रूस के लोगों का बुरी तरह शोषण कर रहे थे| पूंजीवादी ढंग से औद्योगिक विकास की प्रक्रिया से नयी नयी समस्या उत्पन्न हो गयी| घरेलू उद्योग धंधों का विनाश होने लगा जिससे बेरोजगारी बढ़ने लगी| नये नये कल कारखानों के क्षेत्र में मजदूरों की हालत अत्यंत दयनीय थी| मजदूरों को गंदी बस्तियों में रहना पड़ता था| उनके कार्य के घंटे अधिक थे; मजदूरी कम थी; और उनके साथ व्यवहार भी ठीक नहीं किया जाता था| वे अपनी स्थिति से असंतुष्ट थे|
मार्क्सवादी विचारधारा का प्रभाव—–
बीसवीं सदी के पूर्व रूस में मार्क्सवादी विचारधारा का प्रादुर्भाव हो चुका था| रूस के श्रमिकों पर मार्क्सवादी विचारधारा का गहरा प्रभाव पड़ा| इसी विचारधारा ने रूस में बोल्शेविक दल को उत्पन्न किया जिसके नेतृत्व में 1917 में रूसी क्रांति हुई|
1905 की क्रांति का प्रभाव—–
रूस की जनता जारशाही के अत्याचार एवं पूंजीपतियों के शोषण से तबाही थी| 1904-05 के रूस जापान युद्ध में रूस की पराजय ने उनके असंतोष को और भी उभार दिया था| पराजय ने असंतोष को बिस्फोट का अवसर दिया| पराजय के लोगों ने राष्ट्रीय अपमान समझकर जारशाही के विरुद्ध विद्रोह कर दिया| जार ने बड़ी निरंकुशता से क्रांति को कुचल दिया| क्रांति असफल रही लेकिन लोगों को अपने राजनीतिक अधिकारों का ज्ञान हुआ| वे जनतांत्रिक शासन की स्थापना के लिए उतावले हो गये| इस प्रकार 1905 की क्रांति ने 1917 की क्रांति की पृष्ठभूमि तैयार कर दी|
प्रथम विश्वयुद्ध में पराजय——
इस विश्वयुद्ध में रूस भी शामिल हुआ था| इस युद्ध में सम्मिलित होने का जार का एकमात्र उद्देश्य था कि रूसी जनता घर का असंतोष भूलकर बाहरी मामलों में उलझ जाएगी, लेकिन युद्ध क्षेत्र से केवल हार की खबरें आती थी| इस राष्ट्रीय अपमान से लेगा और भी क्रुद्ध ह़ो उठे| इस युद्ध में सैनिकों को पर्याप्त हथियार नहीं मिलने से सेना में भी विद्रोह हो गया|
पेत्रोग्राद की क्रांति—–
इस स्थिति में 7 मार्च 1917 को रूस में क्रांति का प्रथम विस्फोट हुआ| उस दिन पेत्रोग्राद में विद्रोहियों ने रोटी रोटी का नारा लगाते हुए सड़कों पर प्रदर्शन करना शुरू किया तथा मजदूरों ने हड़ताल कर दिया| उन्होंने युद्ध बंद करो; निरंकुश शासन का नाश हो; रोटी दो;इत्यादि के नारे लगाने शुरू किए| जार की सेना ने विद्रोहियों की भीड़ पर गोली चलाने से इनकार कर दिया| विवश होकर 15 मार्च 1917 को जार ने गद्दी त्याग दी| इस तरह रूस से रोमानोव वंश की निरंकुश जारशाही कर अंत हो गया|
8. रूस की क्रांति का रूस एवं विश्व पर क्या प्रभाव पड़ा? 
उत्तर:-
रूस की क्रांति का रूस पर प्रभाव—-


जारशाही का अंत और लोकतंत्र की स्थापना—
रूस की क्रांति के पहले यह देश राजतंत्र का गढ़ था| रूस की क्रांति ने जार के निरंकुश शासन का अंत कर दिया| रूस समाजवादी सोवियत गणराज्यों देश बना| रूस ने अपना एक संविधान बनाया| विश्व में सर्वप्रथम रूस में ही साम्यवादी शासन की स्थापना हुई तथा रूस सोवियत समाजवादी गणराज्यों का समूह में रूपांतरित हो गया|
सर्वहारा वर्ग को अधिकार और सत्ता—–
इस क्रांति ने सदियों से शोषित सर्वहारा वर्ग को अधिकार और सत्ता दी| रूस के नये संविधान में मजदूरों को वोट देने का अधिकार मिला| देश की सारी संपत्ति को राष्ट्रीय संपत्ति घोषित कर दिया गया| उत्पादन के साधनों पर निजी स्वामित्व समाप्त कर दिया गया| इस प्रकार उद्योगों पर मजदूरों का नियंत्रण स्थापित हो गया|
नयी शासन प्रणाली—–
लेनिन की अध्यक्षता में नयी शासन प्रणाली की स्थापना हुई| रूसी क्रांति द्वारा साम्यवादी विचारधारा का प्रचार बड़ी तेजी से होने लगे|
नये प्रकार की सामाजिक आर्थिक व्यवस्था—-
रूसी क्रांति के फलस्वरूप एक नये प्रकार की सामाजिक आर्थिक व्यवस्था का विकास हुआ| नवीन साम्यवादी जीवन प्रणाली से रूस में एक वर्गहीन समाज की स्थापना हुई| न पूंजीपति रहे और न जमींदार, अब एक ही वर्ग रहा और वह था—- साम्यवादी नागरिक| आर्थिक समानता के लिए अर्थव्यवस्था के सभी साधन जुटाए गये|
रूस की शक्ति में वृद्धि—–
जिन गैर रूसी राष्ट्रों पर जारशाही ने सत्ता स्थापित की थी| वे सभी प्रकार के बाद गणराज्यों के रूप में सोवियत संघ के अंग बन गए| इस प्रकार रूस एक शक्तिशाली देश बन गया|
विश्व पर प्रभाव——
रूसी क्रांति का विश्वव्यापी प्रभाव पड़ा| वे प्रभाव निम्नलिखित थे——
किसान और मजदूरों के सम्मान में वृद्धि—–
रूस में किसानों तथा मजदूरी की सरकार स्थापित होने से विश्व के सभी देशों में किसानों और मजदूरों के सम्मान में वृद्धि हुई| रूसी क्रांति के पश्चात अन्य देशों की सरकारें भी अपने लोगों को रोटी, कपड़ा और मकान जैसी आवश्यकताओं को पूरा करना अपना मुख्य कर्तव्य समझने लगीं|
पूंजीवादी राष्ट्रों में आर्थिक सुधार—–
विश्व में पूंजीपति वर्ग और मजदूर वर्ग में एक निरंतर संघर्ष सा होने लगा| विश्व के जिन देशों में पूंजीवादी अर्थव्यवस्था थी वे भी महसूस करने लगे कि बिना सामाजिक आर्थिक समानता के राजनीतिक समानता नहीं हो सकती|
साम्यवादी सरकारों की स्थापना—–
रूस की देखादेखी विश्व के अन्य देशों—– चीन वियतनाम इत्यादि में भी साम्यवादी सरकार की स्थापना हुई| साम्यवादी विचारधारा के प्रभाव से राष्ट्रसंघ ने भी मजदूरों की दशा में सुधार लाने के प्रयास किए| इस उद्देश्य से अंतर्राष्ट्रीय श्रमिक संघ की स्थापना हुई जिससे मजदूरों को शोषण से मुक्ति मिली|
अंतरराष्ट्र्वाद को प्रोत्साहन—–
समाजवादी विचारों के प्रसार से अंधराष्ट्रवाद को प्रोत्साहन मिला| सभी राष्ट्रों ने ऐसा महसूस किया कि दूसरे राष्ट्रों के साथ उनके संबंध का आधार मात्र अपना अपना स्वार्थ ही नहीं होना चाहिए| फलतः अब अनेक राष्ट्रीय समस्याओं को अंतर्राष्ट्रीय समस्याओं का रूप दिया जाने लगा|
साम्राज्यवाद के पतन की प्रक्रिया तीव्र—-
रूस की बोल्शेविक क्रांति ने साम्राज्यवाद के विनाश की प्रक्रिया तेज कर दी| संपूर्ण विश्व में समाजवादियों ने साम्राज्यवाद के विनाश के लिए अभियान चलाया| रूस ने सभी राष्ट्रों में विदेशी शासन के विरुद्ध चलाए जा रहे स्वतंत्रता आंदोलन को समर्थन दिया|
नये शक्ति संतुलन का उदय—-
रूस के नवनिर्माण के बाद रूस साम्यवादी सरकार का अगुआ बन गया| दूसरी ओर, अमेरिका पूंजीवादी राष्ट्रों का नेता बन गया| इससे विश्व दो शक्ति खंड में विभक्त हो गया| दोनों अपनी अपनी विचारधारा का प्रसार करने लगे| इसने आगे चलकर शीतयुद्ध को जन्म दिया|
9. रूस के नवनिर्माण में लेनिन के महत्वपूर्ण योगदान का वर्णन करें|
उत्तर:-
बोल्शेविक क्रांति का सबसे बड़ा नेता ब्लादिमीर इवानोविच लेनिन था| उसका जन्म रूस के एक शिक्षित परिवार में 10 अप्रैल 1870 को बोल्गा नदी के किनारे स्थित सिमब्रस्क नामक गाँव में हुआ था| वह आरंभ से ही विद्रोही प्रवृत्ति का था| उसके बड़े भाई को जार एलेक्जेंडर की हत्या के आरोप में गोली मार दी गई थी, इसिलिए लेनिन जारशाही का कट्टर दुश्मन बन गया था| विद्यार्थी जीवन से ही वह मार्क्स के सिद्धांतों का कट्टर समर्थक था| वह रूसी की तत्कालीन स्थिति से क्षुब्ध था और प्रचलित व्यवस्था को समाप्त कर देना चाहता था| इसलिए उसने सोशल डेमोक्रेटिक पार्टी की सदस्यता ग्रहण कर ली तथा बाद में बोल्शेविक दल का नेता बना और 1905 की क्रांति में उसने भाग लिया| क्रांति असफल हो गई और उसे रूस छोड़कर जाना पड़ा| 1917 की क्रांति के समय जर्मनी की सहायता से वह रूस पहुँचा| उसने रूस पहुँच कर बोल्शेविक दल का कार्यक्रम स्पष्ट किया, जो अप्रैल थीसिस के नाम से प्रसिद्ध है| लेनिन ने तीन नारे दिए भूमि, शांति और रोटी| भूमि किसानों को, शांति सेना को रोटी मजदूरों को ट्राटस्की के सहयोग से उसने करेन्सकी की सरकार का तख्ता पलट दिया| लेनिन नयी बोल्शेविक सरकार का अध्यक्ष बन गया| शासन संभालते ही उसने अपने उद्देश्य और कार्यक्रम निश्चित किए|उसका उद्देश्य रूस का नवनिर्माण करना था| 1924 में अपनी मृत्यु तक वह इसी प्रयास में लगा रहा|
लेनिन के कार्य—–
लेनिन ने सत्ता संभालते ही निम्नलिखित कार्य किए—
युद्ध की समाप्ति—–
सत्तासीन होते ही सर्वप्रथम लेनिन ने जर्मनी के साथ युद्ध समाप्त कर दिया| 1918 में रूस ने जर्मनी के साथ ब्रेस्टलिटोवस्क की संधि कर ली| इस संधि की शर्तें कुछ हद तक अपमानजनक थीं| पर देश के नवनिर्माण के लिए उन्हें स्वीकार करना आवश्यक था|
अर्थव्यवस्था—–
बोल्शेविक सरकार ने नयी आर्थिक व्यवस्था लागू की जिसके तहत देश की भारी संपत्ति तथा उत्पादन और वितरण के समस्त साधनों पर सरकार का आधिपत्य हो गया| बैंक, खान, रेल, जंगल इत्यादि सभी को सरकारी संपत्ति घोषित कर दिया गया| जमीन पर से व्यक्तिगत अधिकार उठा दिया गया और किसानों के बीच भूमि बांट दी गई| जार द्वारा विदेशियों से लिए गए कर्ज चुकाने से सरकार ने इनकार कर दिया| चर्च की संपत्ति भी सरकार ने अधिग्रहण कर ली|
नयी आर्थिक नीति—–
लेनिन की आर्थिक व्यवस्था का देश की अर्थव्यवस्था पर अपेक्षित प्रभाव नहीं पड़ा| उद्योगों के राष्ट्रीयकरण से उद्योगों पर बुरा प्रभाव पड़ा और उत्पादन घट गया| अत: लेनिन ने अपनी नीति बदल दी| 1921 में एक नई आर्थिक नीति को अपनाया| इसके अनुसार सीमित अंश में किसानों तथा पूंजीपतियों को व्यक्तिगत संपत्ति रखने की अनुमति दी गई| इसके फलस्वरूप आर्थिक स्थिति में पर्याप्त सुधार हुआ| खेती की पैदावार बढ़ी तथा उद्योग धंधों में भी उत्पादन बढ़ा| इससे रूप समृद्धि के मार्ग पर आगे बढ़ा|
सामाजिक सुधार—–
रूस के नवनिर्माण में लेनिन ने कयी सामाजिक सुधार किए| पहले शिक्षा पर चर्चा का अधिकार था, अब चर्च का अधिकार समाप्त कर शिक्षा का राष्ट्रीयकरण किया गया| सरकार ने नि:शुल्क प्रारंभिक शिक्षा की व्यवस्था की जिससे गरीब परिवार के बच्चे भी शिक्षा पाने लगे| सभी गैर सरकारी स्कूल बंद कर दिए गए एवं साम्यवादी शिक्षा का प्रचार किया गया|
आंतरिक शत्रुओं का दमन—-
लेनिन की नीतियों से वैसे लोग व्यग्र हो गए जिनकी संपत्ति और अधिकार नयी सरकार ने छीन लिया था| अत: सामंत, पूंजीपति, पादरी तथा नौकरशाह सरकार विरोधी हो गये और नयी समाजवादी सरकार को उलटने का षडयंत्र करने लगे| उन्हें विदेशी सहायता भी प्राप्त थी| रूस में एक प्रकार का गृहयुद्ध आरंभ हो गया| फलतः लेनिन ने उन लोगों के प्रति कठोर नीति अपनायी| क्रांति विरोधी षडयंत्रकारीयों के दमन के लिए चेका नामक विशेष पुलिस दरते का गठन किया गया| चेका के लाल आतंक ने षडयंत्रकारीयों की कमर तोड़ दी| ट्राटस्की ने लाल सेना का गठन किया और 1921 तक विदेशियों को रूस से खदेड़ दिया|
नया संविधान—–
1918 में लेनिन के नेतृत्व में एक संविधान तैयार किया गया| इसके अनुसार रूस को रूसी सोशलिस्ट फेडरल सोवियत रिपब्लिक कहा गया तथा सर्वहारा वर्ग का अधिनायकत्व कायम हुआ| मास्को रूस की नयी राजधानी बनी| पुराने झंडे के बदले लाल रंग का झंडा राष्ट्रीय झंडा हुआ तथा उस पर हंसुए और हथौड़े को सुशोभित किया गया| तब से लाल रंग साम्यवादी का प्रतीक बना|
प्रशासनिक सुधार—–
लेनिन ने प्रशासनिक सुधार भी किए पुराने नौकरशाह हटा दिए गए| राज्य के बड़े पदों पर सिर्फ साम्यवादी दल के सदस्यों को रखा गया| इन लोगों ने निष्ठापूर्वक सरकारी नीतियों को कार्यान्वित किया| इसी प्रकार सेना में भी सुधार हुआ| सेना में बोल्शेविक समर्थकों की भरती की गई तथा सेना का आधुनिकीकरण भी किया गया|
वैधानिक व्यवस्थाएँ——
नये राज्य में प्रतिनिधि सरकार की व्यवस्था की गई| 18 वर्ष अधिक उम्र के सभी नागरिकों को मतदान का अधिकार मिला| सैनिकों और नाविकों को भी नागरिकता दी गई| ये नागरिक उन्हीं उम्मीदवारों के पक्ष में अपना मतदान कर सकते थे और जो बोल्शेविक पार्टी द्वारा मनोनीत होते थे| इस तरह विधान द्वारा बोल्शेविक सरकार को दृढ़ता प्रदान की गई|
बाहरी कार्य—-
लेनिन ने बाह्य समस्याओं पर भी ध्यान दिया—–
गुप्त संधियों की समाप्ति—–
लेनिन ने जार अथवा करेन्सकी सरकार द्वारा विदेशों के साथ की गई सभी संधियों को समाप्त कर दिया|
राष्ट्रीयता का सिद्धांत—–
लेनिन ने रूस में राष्ट्रीयता का सिद्धांत लागू किया| रूस में निवास करनेवाली पराधीन जातियों को स्वतंत्र कर दिया गया| इसी के फलस्वरूप फिनलैंड बेटेविया इत्यादि राज्यों ने अपनी स्वतंत्र सत्ता स्थापित की|
वैदेशिक नीति—-
लेकिन साम्राज्यवाद का कट्टर विरोधी था| इसिलिए उसने वैसे सभी राष्ट्रों को सहायता का आश्वासन दिया जो विदेशी शासन के विरुद्ध संघर्षरत थे| इसके बावजूद उसने अन्य राष्ट्रों के साथ शांति एवं सहयोग की नीति अपनायी| 1921 में उसने इंगलैंड के साथ एक व्यापारिक संधि की| पूर्वी देशों—- चीन, अफगानिस्तान के साथ लेनिन ने सौहार्दपूर्ण संबंध बनाए|
कौमिण्टर्न की स्थापना—-
मार्क्सवादी विचारधारा के अनुसार संसार के सभी मजदूरों को संगठित करने के उद्देश्य से लेनिन ने संरक्षण में 1919 में मास्को में थर्ड इंटरनेशनल लेबर एसोसिएशन की स्थापना की गई| मार्क्सवादी का प्रचार करना एवं विश्व के सभी मजदूरों को संगठित करने के उद्देश्य से विभिन्न देशों के साम्यवादी दलों के प्रतिनिधि मास्को में एकत्रित हुए| सभी देशों की साम्यवादी पार्टियों का एक संघ बनाया गया जो कौमिण्टर्न कहलाया| इसका मुख्य कार्य विश्व में क्रांति का प्रचार करना एवं साम्यवादियों की सहायता करना था| इस कौमिण्टर्न का नेतृत्व रूस का साम्यवादी दल करता था| इंगलैंड ने 1921 में रूस से व्यापारिक संधि कर ली| 1924 तक इटली, जर्मनी तथा इंगलैंड ने रूस की बोल्शेविक सरकार को मान्यता प्रदान कर ली| इस प्रकार, लेनिन ने रूस की कायापलट कर दी| रूस अब प्रगति के मार्ग पर तेजी से बढ़ा| द्वितीय विश्वयुद्ध की समाप्ति के बाद रूस साम्यवादी गुट का नेता और विश्व के महान शक्ति बन गया| 21 जनवरी 1924 को लेनिन की मृत्यु हो गई|
10. उपनिवेशवाद से आप क्या समझते हैं? औद्योगीकरण ने उपनिवेशवाद को कैसे जन्म दिया? वर्णन करें|
उत्तर:-
उपनिवेशवाद एक ऐसी प्रक्रिया है जिसके द्वारा विकसित और शक्तिशाली राष्ट्र अपने से कमजोर राष्ट्र के आर्थिक संसाधनों पर अधिकार कर उनका उपयोग अपने हित के लिए करता है| इसके साथ साथ विजित देश के राजनीतिक और प्रशासनिक व्यवस्था पर भी अधिकार स्थापित कर लिया जाता है| अतः उपनिवेशवाद साम्राज्यवाद के रूप में परिणत हो जाता है| उपनिवेशवाद के विकास के अनेक काल थे| परन्तु इसे सबसे अधिक बढ़ावा औद्योगिक क्रांति के कारण मिला| इंगलैंड को अपने उद्योगों को चलाने के लिए कच्चे माल तथा कारखानों में उत्पादित वस्तुओं को बिक्री के लिए बाजार की आवश्यकता थी| अतः उसने एशिया और अफ्रीका में अपने उपनिवेश स्थापित किए| एशिया में इंगलैंड का सबसे बड़ा उपनिवेश भारत था| यहाँ से इंगलैंड के सूती वस्त्र के कारखानों के चलाने के लिए बड़ी मात्रा में कपास का निर्यात किया गया तथा भारत में इंगलैंड में बने कपड़ों का आयात किया गया| इससे भारत का विकसित वस्त्र उद्योग समाप्त हो गया| इंगलैंड से आने वाली सामानों की बिक्री को प्रोत्साहन दिया गया शुल्क में रियारती की गई तथा उनके व्यापक वितरण के लिए सड़क और रेल का निर्माण किया गया| इस नीति से भारतीय कुटीर उद्योग नष्ट हो गये धन का निष्कासन हुआ एवं भारत की गरीबी बढ़ी|
11. जर्मनी के एकीकरण में बिस्मार्क की भूमिका का वर्णन करें|
उत्तर:-
1870 के पूर्व जर्मनी अनेक छोटे बड़े राज्यों में बंटा था| यह सही अर्थ में एक राष्ट्र न होकर जर्मन भाषी राज्यों का समूह था| 19 वीं शताब्दी के आरंभ में नेपोलियन के कार्यों से जर्मन राष्ट्रवाद का उदय हुआ और एकीकरण की भावना में बदलाव हुई|
बिस्मार्क के पूर्व एकीकरण के प्रयास—-
जर्मनी में राष्ट्रवाद को दार्शनिकों एवं चिंतकों ने भी बढ़ावा दिया| कांट, फिक्टे, हीगेल, ग्रीम बंधुओं ने जर्मनों में राष्ट्रवादी भावना प्रज्ज्वलित कर दी| तरुण आंदोलन ने नवयुवकों में राष्ट्रवादी चेतना जगाई, परंतु मेटरनिख ने इसे कुचल दिया| मेटरनिख के पतन के बाद जर्मन एकीकरण की प्रक्रिया में गति आई| 1849-60 के बीच भी एकीकरण के प्रयासों को सफलता नहीं मिली| 
बिस्मार्क और जर्मनी का एकीकरण—–
1862 में बिस्मार्क प्रशा का चांसलर बना| जर्मनी के एकीकरण के लिए उसने रक्त और लौह की नीति अपनायी| सबसे पहले उसने प्रशा को आर्थिक और सैनिक दृष्टि से मजबूत किया| तत्पश्चात उसके तीन युद्ध किए|
1864 में डेनमार्क को पराजित कर शेल्शाविग पर अधिकार कर लिया|
1866 में सेडोवा के युद्ध में आस्ट्रिया को पराजित कर होल्सटीन पर अधिकार कर लिया| 22 उत्तरी राज्यों का उत्तरी जर्मन महासंघ बनाकर विलियम प्रथम को इसका राजा बनाया गया|
1870 में सेडान के युद्ध में फ्रांस की पराजय के बाद 1871 की फ्रैंकफर्ट संधि द्वारा दक्षिणी राज्य उत्तरी महासंघ में मिल गये| इस प्रकार, जर्मनी का एकीकरण पूरा हुआ|

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