भूमि और मृदा संसाधन
अतिलघु उत्तरीय प्रश्न
1. भारत के राष्ट्रीय उत्पादन में कृषि क्षेत्र का योगदान कितना प्रतिशत है?
उत्तर:- 22℅
2. भारत की प्रमुख भू आकृतियों के नाम लिखें|
उत्तर:-
पर्वतीय क्षेत्र–30℅
मैदानी क्षेत्र—43℅
पठारी क्षेत्र—27℅
3. एक वर्ष से भी कम समय तक जिस खेत से फसल उत्पादन न हो रहा उसका क्या नाम है?
उत्तर:-
वर्तमान परती कहते हैं|
4. किन दो राज्यों में सबसे अधिक व्यर्थ भूमि पायी जाती है?
उत्तर:-
जम्मू कश्मीर (60℅) और राजस्थान (30℅) में सबसे अधिक व्यर्थ भूमि पायी जाती है|
5. क्षारीय मिट्टी का pH मान 7 से अधिक होता है या कम?
उत्तर:- अधिक
लघु उत्तरीय प्रश्न
1. भूमि किस प्रकार महत्वपूर्ण संसाधन है?
उत्तर:-
भूमि एक महत्वपूर्ण संसाधन है| भूमि पर ही मिट्टी मिलती है जिसमें कृषि कार्य की जाती है| भूमि पर कृषि कार्य करने से मनुष्यों को अन्न की प्राप्ति होती है| भूमि पर ही मानव आवास मिलता है, गाँव नगर बसते है| भूमि पर ही मनुष्य अपना मकान बनाकर उसमें रहते हैं| जो जंगली और खतरनाक पशुओं से उनकी रक्षा करता है| भूमि पर ही पशुपालन होता है| भूमि पर ही मनुष्य पालतू पशुओं को दूध, ऊन, चमरे, माँस इत्यादि की प्राप्ति के लिए पालते है| पशु मनुष्य के लिए बहुत उपयोगी होते हैं, जो मनुष्य के कृषि कार्य करने में सहायक होते हैं, भूमि पर ही मनुष्य द्वारा वाणिज्य व्यवसाय किया जाता है, व्यवसाय करने से मनुष्य को अन्न की प्राप्ति होती है| भूमि पर ही मनुष्यों द्वारा तरह तरह के उद्योग धंधे चलाए जाते हैं| उद्योग धंधे करने से मनुष्य को आर्थिक लाभ होता है, आर्थिक लाभ होने से मनुष्य का आर्थिक विकास होता है और मनुष्य के आय में वृद्धि होती है| मनुष्य के आय में वृद्धि होने से देश के राष्ट्रीय आय में वृद्धि होती है, अतः इस प्रकार यह स्पष्ट है कि भूमि एक महत्वपूर्ण संसाधन है|
2. किन सुविधाओं के कारण भारत में गहन कृषि की जाती है?
उत्तर:-
भारत में तेजी से बढती जनसंख्या का दबाव और सीमित कृषि योग्य भूमि के कारण गहन कृषि की जाती है| भारत मानसूनी वर्षा वाला देश है| वर्षा एक विशेष मौसम में होती है और अनियमित रूप से होती है वहीं बाढ़ जैसी समस्या उत्पन्न हो जाती है और वर्षा का अभाव देखने को मिलता है| ऐसे क्षेत्रों में सिंचाई का सहारा लिया जाता है| हिमालय से निकलने वाली नदियाँ सदा जलपूरित रहती है| उन नदियों पर बांध बनाकर नहरें निकाली जाती है और उससे जलाभाव क्षेत्रों में सिंचाई की सुविधा प्रदान की जाती है| भारत के मैदानी भागों में जलोढ़ मिट्टी पायी जाती है जो अत्यंत उपजाऊ है| इन्हीं कारणों से भारत में भी गहन कृषि की जाती है|
3. भौतिक गुणों के आधार पर मिट्टी के तीन वर्ग कौन कौन है? गंगा के मैदान में सामान्यतः इनमें में से कौन मिट्टी पायी जाती है?
उत्तर:-
बलुई मिट्टी—-
इसमें पंक (मृत्तिका, चिकनी मिट्टी) की अपेक्षा बालू का प्रतिशत अधिक रहता है, यह मिट्टी जल की बड़ी भूखी होती है, अर्थात बहुत जल सोचती है|
चीता या चिकनी मिट्टी—-
इसमें पंक या गाद का प्रतिशत अधिक रहता है| यह मिट्टी सूखने पर बहुत कड़ी और दरार युक्त होती है तथा गीली होने पर चिपचिपी और अभेद्य हो जाती है| इस मिट्टी की जुबानी कठिन होती है|
दुमटी मिट्टी—-
इसमें बालू और पंक दोनों का मिश्रण लगभग बराबर रहता है| कृषि के लिए यह मिट्टी उपयुक्त मानी जाती है| क्योंकि इसमें गहरी जुताई हो सकती है| गंगा के मैदान में सामान्यतः दुमटी मिट्टी पायी जाती है|
4. स्थान बद्ध और वाहित मिट्टी में क्या अंतर है?
उत्तर:-
स्थान बद्ध मिट्टी वह है जो ऋतुक्षरण के ही क्षेत्र में पायी जाती है| यह पर्शिवका मिट्टी होती है| इसमें आधारभूत चट्टान और मिट्टी के खनिज कणों को समरूपता होती है| काली मिट्टी, लाल मिट्टी तथा लेटेराइट मिट्टी इसके उदाहरण है| वाहित मिट्टी वह है जिसका ऋतुक्षरण तथा विकास किसी दूसरे प्रदेश में हुआ है किन्तु अपरदन दूतों द्वारा उसे किसी दूसरे प्रदेश में निक्षेपित किया गया है| चूंकि इसका परिवहन होता है, इसिलिए इसे वाहित मिट्टी कहते हैं| ये मिट्टियाँ मौलिक चट्टानों से विसंगति रखती है| जलोढ़ मिट्टी इसका सर्वोत्तम उदाहरण है| भारत का वृहद जलोढ़ मैदान उस मिट्टी का बना है जिसका निक्षेप गंगा और उसकी सहायक नदियों तथा पठारी भारत के उत्तर बहने वाली नदियों से हुआ है| भारत के तटीय मैदान में भी वाहित जलोढ़ मिट्टी ही पायी जाती है|
5. भारत में लाल मिट्टी और काली मिट्टी के प्रमुख क्षेत्र बताएं|
उत्तर:-
लाल मिट्टी के प्रमुख क्षेत्र—–
यह मिट्टी दक्कन पठार, पूर्वी और दक्षिणी भागों के 100 सेमी से कम वर्षा के क्षेत्रों में पायी जाती है|
काली मिट्टी के प्रमुख क्षेत्र—-
यह मिट्टी महाराष्ट्र का बड़ा भाग, गुजरात का सौराष्ट्र, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, कर्नाटक, आन्ध्रप्रदेश में कृष्णा और गोदावरी घाटी, तमिलनाडु, उत्तर प्रदेश , राजस्थान, के मालवा खंड में पायी जाती है|
6. रेतीली मिट्टी कहाँ और क्यों मिलती है?
उत्तर:-
रेतीली मिट्टी को शुष्क और मरूस्थलीय मिट्टी भी कहा जाता है| यह मिट्टी भारत के पश्चिमी भागों के शुष्क और अर्द्धशुष्क भागों में पायी जाती है| अरावली के पश्चिमी राजस्थान का पूरा क्षेत्र, पंजाब, हरियाणा के कुछ भाग और दक्षिण में कच्छ तक की मिट्टी रेतीली या मरुस्थली है| रेतीली मिट्टी या मरुस्थली मिट्टी भारत के पश्चिमी भागों के शुष्क और अर्द्धशुष्क क्षेत्रों में पायी जाती है, क्योंकि इन क्षेत्रों की मिट्टी के नीचे की ओर बड़े टुकड़े मिलते हैं, इन्हें कंकड़ कहते हैं, इन कंकड़ों में कैल्सियम की प्रधानता होती है जो पानी सोखने में रुकावट पैदा करता है, इसिलिए इन क्षेत्रों की मिट्टी रेतीली या मरुस्थली होती है|
7. परती भूमि किस प्रकार कर्षित भूमि में बदली जा सकती है?
उत्तर:- भारत के कयी भागों में मिट्टी में उपस्थित सोडियम, कैल्सियम और मैग्नीशियम के यौगिकों के प्रस्फुटन से भूमि लवणीय या क्षारीय हो जाती है, इसे कहीं कहीं रेह, बंजर परती, ऊसर इत्यादि नामों से पुकारा जाता है, ऐसी मिट्टी उपजाऊ नहीं होती है, इसमें लवण के रूप में साधारण नमक और कुछ अन्य लवण तथा कार्बोनेट पाए जाते हैं जबकि क्षारीय मिट्टी में चूना तथा सोडा मुख्य रूप से रहता है| परती भूमि को कर्षित यानी कृषि योग्य बनाने के लिए पानी की महत्वपूर्ण भूमिका होती है| क्योंकि पानी के तेज बहाव द्वारा इसे उपजाऊ बनाया जा सकता है|
8. मिट्टी कटाव के दो रूप और मिट्टी संरक्षण के कोई तीन उपाय बताएं|
उत्तर:-
बहते हुए या हवा जैसे किसी प्राकृतिक वाहक द्वारा धरती की मिट्टी का हटना या स्थानांतरित होना मिट्टी का कटाव कहलाता है| मिट्टी कटाव के दो रूप इस प्रकार है—-
अवनलिका(नालीनुमा) कटाव—-
यह मिट्टी कटाव का एक प्रमुख रूप है| इसमें मिट्टी एक पतले नालों से तेजी से बहता जाता है और मिट्टी का कटाव होता है| वर्षा होने पर मिट्टी नाली में तेजी से बहता चला जाता है|
स्तरीय (सतही) कटाव——
यह मिट्टी का कटाव का दूसरा प्रमुख रूप है| इसमें मिट्टी का कटाव धीरे धीरे होता चला जाता है, पहले मिट्टी के ऊपरी सतह का कटाव होता है| फिर दूसरी सतह का कटाव होता है और फिर अगली सतह का कटाव होता जाता है, अतः मिट्टी का धीरे धीरे तथा स्तरीय रूप से कटाव होता जाता है|
मिट्टी के संरक्षण के तीन उपाय ये है—-
वानिकी कार्यक्रम के तहत बेकार पड़ी भूमि पर सामाजिक वानिकी, क्षतिपूर्ति वानिकी एवं विशिष्ट वानिकी पर जोर देना
पर्वतीय क्षेत्रों में वनों की कटाई एवं झूम कृषि पर प्रतिबंध लगाना, खेतों में मेड़ तथा सम्मोच्च खेती का विकास करना
मैदानी भागों में फसल चक्र पर जोड़ देना, सिंचाई द्वारा अधिक समय तक भूमि को हरा भरा रखना
9. भारत में भूमि क्षेत्र के ह्रास के दो प्रमुख कारण क्या है?
उत्तर:-
वनों की कटाव—-
भूमि क्षेत्र के ह्रास होने का प्रमुख कारण वनों का अत्यधिक कटाव है| मनुष्य अपने स्वार्थ के लिए वनों को काट रहा है| वनों को काटने से भूमि परती भूमि में बदल जाती है जिससे भूमि में मिट्टी की पकड़ कमजोर पड़ जाती है| वर्षा होने पर ऐसी भूमि के मिट्टी का ह्रास अत्यधिक होता है|
अत्यधिक पशुचारण—–
भूमि क्षेत्र के ह्रास होने का प्रमुख कारण अत्यधिक पशुचारण भी है| पशुओं के भूमि पर अधिक चरने से भूमि से पेड़ पौधों का ह्रास होता है| पेड़ पौधों के ह्रास होने से भूमि पर मिट्टी की पकड़ कमजोर होती है जिससे भूमि क्षेत्र का ह्रास होता है|
10. भूमि क्षेत्र के ह्रास को रोकने के कुछ उपाय बताएं|
उत्तर:-
भूमि के उपयोग और भूमि की उत्पादन शक्ति का सामंजस्य करना अर्थात नियोजन करना चाहिए|
पर्वतीय क्षेत्रों में सीढीनुमा खेत बनाकर खेती करनी चाहिए|
फसल चक्रण विधि का उपयोग करना चाहिए जिससे मिट्टी के एक ही तत्व का बार बार शोषण न हो|
मरुस्थल के सीमावर्ती क्षेत्र में झाडियों को लगाना चाहिए|
मिट्टी के तत्वों की कमी को उर्वरक और खाद्य देकर पूरा करना चाहिए|
पशुचारण एवं वन कटाव पर प्रतिबंध लगाना चाहिए|
मिट्टी को अपने स्थान पर बनाए रखने का उपाय अर्थात मिट्टी का कटाव रोकना चाहिए|
काटे गए वन के स्थान पर जंगल लगाना चाहिए|
मैदानी क्षेत्रों में बेकार पड़ी भूमि पर वृक्षारोपण करना चाहिए|
कीटनाशी के रूप में एल्ड्रिन नामक रसायन का प्रयोग प्रतिबंधित कर देना चाहिए|
11. टिप्पणियाँ लिखें—(1) मिट्टी का कटाव (मृदा अपरदन) (2) मिट्टी का निर्माण
उत्तर:-
(1) मिट्टी का कटाव (मृदा अपरदन)—-
मृदा की ऊपरी परत को पानी तथा हवा द्वारा एक स्थान से दूसरे स्थान पर ले जाने को मृदा अपरदन कहते हैं| मृदा अपरदन के मुख्य कारक बहता हुआ जल और हवा है|
(क) पानी द्वारा कटाव—-
भू पृष्ठ पर जल दो रूपों में बहता है—–पृष्ठ प्रवाह, रैखिक प्रवाह
(ख) हवा द्वारा कटाव—-
हवा द्वारा कटाव शुष्क प्रदेशों में होता है, जहाँ अदृढ़ धरातलीय पदार्थों वाली भूमि पर वनस्पति आवरण बहुत ही कम होता है| हवा इस अदृढ़ भूमि के कणों को अपने साथ उड़ाकर ले जाती है और दूसरे स्थान पर जमा कर देती है| इस प्रकार हवा भूमि को उपजाऊ बना देती है|
(2) मिट्टी का निर्माण—-
वैज्ञानिक परीक्षणों से पता चलता है कि मिट्टी की एक सेमी मोटी परत के निर्माण में चार सौ से पांच सौ वर्ष लग जाते हैं| मिट्टी के निर्माण में रसायनिक प्रक्रियाओं का भी महत्वपूर्ण योगदान होता है| पानी, हवा में उपस्थित आक्सीजन और कार्बन डाइऑक्साइड चट्टानों से मिल जाते हैं और इससे क्रिया करते हैं| वर्षा काल में बिजली चमकने पर नाइट्रोजन के अम्ल चट्टानों से क्रिया कर अनेक लवणों का निर्माण करते हैं| ये लवण चट्टानों को मुलायम बना देते हैं जो आसानी से टूटकर कणों में बदल जाती हैं जिससे मिट्टी का निर्माण होता है| मिट्टी के निर्माण में मुख्य पांच घटक होते हैं—- स्थानीय जलवायु, पूर्ववर्ती चट्टानें, और खनिज कण, वनस्पतियाँ और जीव, भू आकृति और ऊंचाई, मिट्टी बनने का समय| इस प्रकार मिट्टी का निर्माण प्रकृति अपने देखरेख में करती है|
12. भारत में जलोढ़ मिट्टी कहाँ मिलती है?
उत्तर:-
भारत में जलोढ़ मिट्टी विस्तृत रूप से फैली हुई है और उपजाऊ होने के कारण कृषि कार्य के लिए सबसे अधिक महत्वपूर्ण है| भारत में लगभग 6.4 करोड़ हेक्टेयर क्षेत्र पर जलोढ़ मिट्टी फैली हुई है| इस मिट्टी के पाये जाने के निम्नलिखित क्षेत्र है—–
पंजाब से असम तक फैला भारत का वृहत मैदान|
मध्य प्रदेश में नर्मदा और ताप्ती की घाटियाँ|
मध्य प्रदेश और उड़ीसा में महानदी की घाटियाँ|
आन्ध्रप्रदेश में गोदावरी की घाटियाँ
तमिलनाडु में कावेरी घाटी
केरल में सागर तट
महानदी, गोदावरी, कृष्णा, कावेरी, गंगा ब्रह्म पुत्र के डेल्टा का क्षेत्र|
13. पहाड़ी क्षेत्रों में मिट्टी के कटाव को रोकने के लिए कौन कौन से कदम उठाये जा सकते हैं?
उत्तर:-
पहाड़ी क्षेत्रों में मिट्टी के कटाव को रोकने के लिए विभिन्न कदम उठाए जा सकते हैं जैसे—-सीढ़ी नुमा खेती या सोपानी खेती करने से पहाड़ी क्षेत्रों में मिट्टी के कटाव को रोका जा सकता है| इसी प्रकार पहाड़ी क्षेत्रों में मिट्टी के कटाव को रोकने के लिए वर्षा के जल के बहाव को रोकने के लिए मिट्टी के बहाव को एक स्थान पर सीमित नहीं करके जल के बहाव को विभिन्न पहाड़ी क्षेत्रों में बांटने की व्यवस्था करनी चाहिए| स्थान स्थान पर बांध बनाना चाहिए|ढालों पर झारियां और पेड़ लगाना चाहिए| इन उपायों से मिट्टी के कटाव को रोका जा सकता है|
दीर्घ उत्तरीय प्रश्न
1. काली मिट्टी और लाल मिट्टी की अलग अलग विशेषताओं पर प्रकाश डालें|
उत्तर:-
भारत में काली मिट्टी और लाल मिट्टी प्रचुर मात्रा में पायी जाती है| इन मिट्टियाँ की विशेषताओं और पाए जाने वाले क्षेत्रों का अलग अलग वर्णन निम्नलिखित हैं——-
काली मिट्टी की विशेषताएँ निम्नलिखित हैं—
इनमें नमी बनाए रखने की क्षमता होती है|
काली मिट्टी सूखने पर बहुत कड़ी हो जाती है|
इसका रंग काला होता है, क्योंकि इसमें लोहा, ऐल्यूमिनियम युक्त पदार्थ टाइटैनोमैग्नेटाइट के साथ जीवांश तथा ऐल्यूमिनियम के सिलिकेट मिलते हैं|
काली मिट्टी कपास और गन्ने की खेती के लिए बहुत सर्वोत्तम है|
भींगने पर यह मिट्टी चिपचिपी हो जाती है| परन्तु सूखने पर इसमें गहरी दरारें पड़ती है| इससे हवा का नाइट्रोजन इसे प्राप्त होता है|
काली मिट्टी महाराष्ट्र, गुजरात का सौराष्ट्र, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, कर्नाटक, आन्ध्रप्रदेश, तमिलनाडु, उत्तर प्रदेश, राजस्थान इत्यादि क्षेत्रों में पायी जाती है|
लाल मिट्टी की विशेषताएँ निम्नलिखित हैं—
इस मिट्टी का रंग लोहे की उपस्थिति के कारण लाल होता है| साथ ही अधिक नमी होने पर इसका रंग पीला भी हो जाता है|
इस मिट्टी की बनावट हल्की रंध्रमय और मुलायम सिंह होती है|
इसमें खनिजों की मात्रा कम है, कार्बोनेट का अभाव है, साथ ही नाइट्रोजन और फास्फोरस भी नहीं होता है| जीवांश तथा चूना भी कम मात्रा में उपलब्ध होता है|
इस मिट्टी में हवा मिली होती है, अत: बुआई के बाद सिंचाई करना आवश्यक है जिससे बीज अंकुरित हो सके|
इस मिट्टी में सिंचाई की अधिक आवश्यकता पड़ती है क्योंकि यह मिट्टी कम उपजाऊ होती है| लाल मिट्टी दक्कन पठार, पूर्वी और दक्षिणी भागों के 100 सेमी से कम वर्षा के क्षेत्रों में पायी जाती है| तमिलनाडु के दो तिहाई भाग में यह मिट्टी पायी जाती है| इसका विस्तार पूरब में राजमहल का पहाड़ी क्षेत्र, उत्तर में झांसी, पश्चिम में कच्छ तथा पश्चिमी घाट के पर्वतीय ढालों तक है|
2. भारत में जलोढ़ मिट्टी कहाँ कहाँ पायी जाती है? इनमें सबसे बड़ा क्षेत्र कौन है? इस मिट्टी की विशेषताएँ बताएं|
उत्तर:-
जलोढ़—
भारत में यह मिट्टी नदियों द्वारा बहाकर लायी गयी और नदियों के बेसीन में जमा की गयी मिट्टी है| समुद्री लहरों के द्वारा भी ऐसी मिट्टी तटों पर जमा की जाती है|
भारत में जलोढ़ मिट्टी के निम्नलिखित मुख्य क्षेत्र है-
सतलज, गंगा और ब्रह्मपुत्र की घाटियाँ का क्षेत्र,
नर्मदा और ताप्ती घाटियों का क्षेत्र
महानदी, गोदावरी, कावेरी, कावेरी का डेल्टाई क्षेत्र
भारत में जलोढ़ मिट्टी का सबसे बड़ा क्षेत्र सतलज, गंगा और ब्रह्मपुत्र की घाटियों का क्षेत्र है| इस मिट्टी की विशेषता यह है कि इसमें सभी प्रकार के खाद्यान्न, दलहन, तेलहन, कपास, गन्ना, जूट और सब्जियाँ उगाई जाती है| इसमें नाइट्रोजन और फास्फोरस की कमी पाई जाती है जिसके लिए उर्वरक का सहारा लेना पड़ता है| आयु के आधार पर इसे बांगर और खादर के रूप में बांटा जाता है|
3. मिट्टी का संरक्षण क्यों आवश्यक है? इसके संरक्षण के महत्वपूर्ण उपायों का उल्लेख करें|
उत्तर:-
मिट्टी एक बहुमूल्य प्राकृतिक संसाधन हैं| ये प्राकृतिक रूप से बनते हैं| इसके बनने में सैकड़ों वर्ष लगते हैं| इसकी उर्वरता पर ही उत्पादन टिका है| परंतु कुछ प्राकृतिक और मानवीय क्रिया कलापों से इसकी ऊपरी परत अपरदित होकर नष्ट हो जाती है| वर्षा काल में मिट्टी का कटाव आम बात है| शुष्क क्षेत्रों में पवन द्वारा और पर्वतीय भागों में हिमनद द्वारा भी अपरदन की क्रिया चलती रहती है और उपजाऊ मिट्टी नष्ट होती रहती है| कयी क्षेत्रों में स्थानांतरित कृषि से भी मिट्टी के कटाव को बढ़ावा मिला है| इसीलिए मिट्टी का बचाव आवश्यक है| मिट्टी के कटाव और उर्वरता में कमी को रोकने के लिए कृषि विशेषज्ञों की सलाह और किसानों के अनुभव के आधार पर मृदा संरक्षण के लिए निम्नलिखित उपाय उपयोगी हो सकते हैं——-
भूमि उपयोग का नियोजन किया जाना चाहिए|
मिट्टी के तत्वों की कमी को जैव उर्वरक देकर पूरा किया जाए|
फसल चक्र पद्धति को अपनाया जाना चाहिए| जिससे मिट्टी के एक ही तत्व का बार बार शोषण न हो, फसल चक्र से मिट्टी में जैव पदार्थ और नाइट्रोजन की आपूर्ति होती रहती है|
मिट्टी को अपने स्थान पर बनाये रखने के लिए मिट्टी के कटाव को रोकना आवश्यक है| इसके लिए वनों की कटाई पर रोक लगाना, पशुओं की चराई पर नियंत्रण करना आवश्यक है|
कीटनाशक रासायनिक दवा पर प्रतिबंध लगाना और उसके स्थान पर जैविक कीटनाशी विधि को अपनाना चाहिए|
4. भारत में जनसंख्या वृद्धि के किस प्रकार भूमि ह्रास हुआ और हो रहा है? भूमि ह्रास के अन्य कारणों पर भी प्रकाश डालें| इन्हें रोकने के लिए सुझाव दें|
उत्तर:-
भारत की जनसंख्या में लगातार वृद्धि से प्रतिव्यक्ति भूमि कम पड़ती जा रही है| कल कारखानों के बढने तथा नगरों के विकास से भी भूमि का ह्रास हुआ है| वन क्षेत्र घटता जा रहा है| चारागाह भी समाप्त होते जा रहे हैं| मरुस्थल का फैलाव बढता जा रहा है|इसलिए भूमि के ह्रास को रोकना जरूरी हो गया है| अधिक सिंचाई से भी समस्या उत्पन्न हो रही है| जल जमाव के कारण निचली भूमि बेकार हो जाती है| गुजरात में नमक के प्रभाव से ऊंची भूमि खेती के लायक नहीं रह गयी है| हिमाचल प्रदेश बर्फ के जमाव के कारण राज्य का चौथाई भाग खेती के योग नहीं है| भूमि के कटाव से भी भूमि क्षेत्र घटता जा रहा है| पहाड़ी ढालों पर वर्षा जल से, शुष्क क्षेत्रों में वायु अपरदन से भी भूमि का ह्रास होता जा रहा है|
भूमि ह्रास को रोकने के लिए निम्नलिखित सुझाव दिए जाते हैं—–
उपजाऊ भूमि को गैर कृषि कार्य में न उपयोग किया जाए|
जनसंख्या वृद्धि दर में कमी लायी जाए|
पहाड़ी भागों में सीढीनुमा खेत बनाकर और वृक्षारोपण करके भूमि क्षरण को रोका जाय|
मरुस्थल की सीमावर्ती क्षेत्र में धारियाँ लगाकर मरुभूमि के प्रसार को रोका जाए|
कारखानों के आसपास औद्योगिक कचरों को फैलाने से रोका जाए|
देश में उद्योग का विकास किया जाए इससे कृषि भूमि पर पड़ रहे बोझ को कम किया जा सकता है|
प्राकृतिक आपदा से देश की रक्षा की जाए|
वायु अपरदन को रोकने के लिए पशुचारण पर रोक लगाना चाहिए|
5. भारत में भूमि उपयोग के कौन कौन से प्रारूप मिलते हैं? प्रकाश डालें|
उत्तर:-
भारत में भूमि उपयोग का जो प्रारूप मिलता है वह भू आकृति, जलवायु, मिट्टी और मानवीय क्रिया कलापों का फल है, कृषि में लगी भूमि बढकर 1℅ हो गयी है| इसमें एक तिहाई सिंचित है| चारागाहों के अंतर्गत भूमि बहुत कम है, मात्र 4℅| इससे स्पष्ट होता है कि बढती जनसंख्या के कारण चारागाहों को खेतों में बदल दिया गया है| वनों के अंतर्गत एक चौथाई भूमि से कम ही भूमि पायी जाती है जिससे जलवायु पर प्रभाव पड रहा है| इसिलिए वन क्षेत्र को और अधिक बढाने की आवश्यकता है| ऐसा करके ही पारिस्थिति तंत्र को संतुलित बनाया जा सकता है| इससे मिट्टी के कटाव को रोकने, अधिक वर्षा कराने और वन उत्पाद अधिक प्राप्त करने में मदद मिलेगी| हमारे देश में एक चौथाई भूमि कृषि के उपयोग में न आने के कारण बंजर पड़ी है जिसमें राजस्थान का मरुस्थल और उत्तर पूर्वी भारत के पर्वतीय क्षेत्र है| वनों के विनाश से भी बंजर भूमि का क्षेत्र बढता जा रहा है| इसिलिए वन क्षेत्र को बढाना आवश्यक हो गया है| इससे जल संरक्षण और मिट्टी संरक्षण में मदद मिलेगी| गैर कृषि कार्य में उपयोग की गयी भूमि बंजर भूमि के अंतर्गत ही रखा गया है| भारत के विभिन्न राज्यों में भूमि उपयोग के प्रारुप में अंतर्गत मिलता है| एक ओर पंजाब, हरियाणा में 80℅ भूमि कृषि उपयोग में आती है तो दूसरी ओर अरुणाचल प्रदेश, मिजोरम, मणिपुर पहाड़ी भाग होने के कारण 10℅ भूमि ही कृषि उपयोग में है| अत: भूमि पर बढते दबाव के कारण भूमि उपयोग की योजना बनाना आवश्यक हो गया है|
6. भारतीय मिट्टियों के तीन प्रमुख प्रकार कौन कौन है? उनका निर्माण किस प्रकार हुआ है?
उत्तर:-
भारतीय मिट्टियों के तीन प्रमुख ये है—-
जलोढ़ मिट्टी, काली मिट्टी, लाल मिट्टी
इन तीनों प्रकार की मिट्टियों से संबंधित निर्माण की प्रक्रिया को निम्नलिखित बिन्दुओं द्वारा स्पष्ट किया जा सकता है—-
जलोढ़ मिट्टी—-
भारत में यह मिट्टी विस्तृत रूप से फैली हुई है और उपजाऊ होने के कारण कृषि कार्य के लिए यह अधिक महत्वपूर्ण है| नदियों द्वारा बहाकर लायी गयी मिट्टी बाढ़ में उसके बेसिन में जमा हो जाती है| साथ ही समुद्री लहरें अपने तटों पर ऐसी ही मिट्टी की परत जमा कर देती हैं जिससे जलोढ़ मिट्टी का निर्माण होता है| मिट्टी की आयु के आधार पर जलोढ़ मिट्टी को बांगर और खादर कहा जाता है| बिहार में बालू मिश्रित जलोढ़ मिट्टी को दियारा की मिट्टी कहा जाता है|
काली मिट्टी—–
स्थानीय स्तर पर काली मिट्टी को रेगुढ़ भी कहा जाता है| काली मिट्टी का निर्माण दक्षिणी क्षेत्र के लावा (बेसाल्ट क्षेत्र) वाले भागों में हुआ है और जहाँ अर्द्ध शद्ध
भागों में इसका रंग काला पाया जाता है| इसमें लोहा, ऐल्यूमिनियम पदार्थ टाइटैनोमैग्नेटाइट के साथ जीवांश तथा ऐल्यूमिनियम के सिलिकेट मिलने के कारण इसका इसका रंग काला होता है| इसमें पोटाश, चूना, ऐल्यूमिनियम, कैल्सियम और मैगनीशियम के कार्बोनेट प्रचुर मात्रा में होता है|
लाल मिट्टी—-
भारत के विस्तृत क्षेत्र में भी यह मिट्टी पायी जाती है| इसका निर्माण लोहे और मैगनीशियम के खनिजों से युक्त रवेदार और रुपांतरित आग्नेय चट्टानों के द्वारा होता है| इसका रंग लोहे की उपस्थिति के कारण लाल होता है, अधिक नम होने पर इसका रंग पीला भी हो जाता है| यह मिट्टी ग्रेनाइट चट्टान के टूटने से बनी मिट्टी है| इसकी बनावट हल्की रंध्रमय और मुलायम है|
7. पशु पालन में अग्रणी होने के बावजूद भारत की अर्थव्यवस्था में पशुधन का योगदान नगण्य है| व्याख्या करें|
उत्तर:-
पशुपालन के मामले में भारत को विश्व में अग्रणी माना जाता है| परंतु अधिक पशुधन के बावजूद अर्थव्यवस्था में इसका योगदान लगभग नगण्य है| इसके निम्न कारण है——
भारत में स्थायी चारागाह की बहुत कमी है| मात्र 4℅ भूमि पर चारागाह बचा है| वह भी धीरे धीरे खेती में बदलता जा रहा है| जो भी चारागाह बचा है वह पशुओं के लिए पर्याप्त नहीं है| इसिलिए पशुपालन पर इसका प्रतिकूल प्रभाव पड़ रहा है| पशुओं के लिए चारा की समस्या हमेशा बनी रहती है| भारत के जिन भागों में पशुओं की संख्या अधिक मिलती है वह क्षेत्र कभी बाढ़ तो कभी सुखाड़, कभी अधिक वर्षा तो कभी बहुत कम वर्षा से प्रभावित रहता है| इससे पशुओं का चारा उपलब्ध होने में कठिनाई होती है| चारे की कमी का सीधा प्रभाव दुग्ध उत्पादन पर पड़ता है, जिससे भारतीय अर्थव्यवस्था में पशुधन का योगदान बहुत कम हो पाता है| भारत में पशुओं के उत्तम नस्ल और उन्हें पालने के वैज्ञानिक तरीके का भी अभाव देखने को मिलता है| हालांकि इस दिशा में सरकारी स्तर पर कयी प्रयास किए गए हैं, कुछ सफलता मिली है| परंतु जितना इस दिशा में कार्य करना चाहिए उतना नहीं हो पाया है| अत एव उत्तम नस्ल के पशुओं का अभाव, चारा का अभाव, बीमार पड़ने पर इलाज का अभाव, रख रखाव आदि में कमी, पशुपालन की वैज्ञानिक तकनीक की कमी के कारण दुग्ध उत्पादन कम हो पाता है और पशुधन अधिक होने पर भी इसका भारतीय अर्थव्यवस्था में योगदान नगण्य है|
कारण बताएं——
1. क्षेत्रफल की दृष्टि से उत्तराखण्ड केरल से बड़ा है, परन्तु इसकी आबादी कम है| क्यों?
उत्तर:- उत्तराखण्ड का अधिकांश भाग पहाड़ी है| इसिलिए क्षेत्रफल की दृष्टि से उत्तराखण्ड केरल से बड़ा है लेकिन इसकी आबादी कम है|
2. बिहार का पूर्वोत्तर भाग प्रतिवर्ष बाढ़ से ग्रस्त हैं, फिर भी वहाँ जनसंख्या का घनत्व बहुत अधिक है| क्यों?
उत्तर:-
बिहार का पूर्वोत्तर भाग प्रतिवर्ष बाढ़ से ग्रस्त हैं, फिर भी वहाँ पर जनसंख्या का घनत्व बहुत अधिक है, क्योंकि इस क्षेत्र में उपजाऊ भूमि अधिक पायी जाती है| इसिलिए कृषि कार्य करना सुविधाजनक है| साथ ही विभिन्न फसलों के उत्पादन के लिए अनुकूल मिट्टियाँ भी पायी जाती है|
3. पंजाब और हरियाणा यद्यपि कम वर्षा क्षेत्र है, पर फसलों के उत्पादन में अग्रणी है| क्यों?
उत्तर:-
पंजाब और हरियाणा हालांकि कम वर्षा के क्षेत्र है, लेकिन फसलों के उत्पादन में अग्रणी है, क्योंकि वहाँ पर सिंचाई की सुविधा अधिक है| साथ ही उत्तम तकनीक और आधुनिक कृषि तकनीक एवं संसाधनों का समुचित उपयोग होने के कारण फसलों का उत्पादन अधिक होता है|
4. कपास के उत्पादन में महाराष्ट्र और गुजरात अग्रणी राज्य है| क्यों?
उत्तर:-
कपास के उत्पादन में महाराष्ट्र और गुजरात अग्रणी राज्य है, क्योंकि वहाँ पर काली मिट्टी अधिक पायी जाती है| साथ ही कपास के उत्पादन के लिए अनुकूल भौगोलिक दशाएँ भी पायी जाती है|
5. झारखंड और उड़ीसा की मिट्टी प्रायः लाल रंग की होती है जबकि महाराष्ट्र की मिट्टी में यह रंग नहीं मिलता है| क्यों?
उत्तर:-
झारखंड और उड़ीसा की मिट्टी लाल रंग की होती है, क्योंकि इसका रंग लोहे की उपस्थिति के कारण लाल होता है| जबकि महाराष्ट्र की मिट्टी में यह रंग नहीं मिलता है क्योंकि वहाँ पर मिट्टी में लोहे की उपस्थिति नहीं रहती है| महाराष्ट्र की मिट्टी का रंग काला होता है|
6. हिमाचल क्षेत्र में सीढीनुमा खेत मिलते हैं| क्यों?
उत्तर:-
हिमाचल प्रदेश में सीढीनुमा खेत पाए जाते हैं, क्योंकि वहाँ की भूमि ढालुनूमा होती है| साथ ही हिमाचल प्रदेश का क्षेत्र एक पहाड़ी क्षेत्र है| इसिलिए वहाँ पर सीढीनुमा खेत या सोपानी खेत अधिक मिलते हैं| इस क्षेत्र में वर्षा अधिक होने के कारण खेतों को सीढीनुमा बनाया जाता है|
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