Bharti Bhawan Geography Class-10:Chapter-1:Very Short Type Question Answer:Short Type Question Answer:Long Answer Type Question Answer:भूगोल:कक्षा-10:अध्याय-1:अति लघु उत्तरीय प्रश्न उत्तर:लघु उत्तरीय प्रश्न:दीर्घ उत्तरीय प्रश्न



                 संसाधन, विकास और उपयोग






अतिलघु उत्तरीय प्रश्न





1. संसाधनों के दो वर्ग कौन कौन है? 
उत्तर:- दो वर्ग है— प्राकृतिक संसाधन, मानवकृत संसाधन
2. पृथ्वी सम्मेलन कब हुआ था? 
उत्तर:- प्रथम पृथ्वी सम्मेलन 1992 ई० में हुआ था जबकि द्वितीय पृथ्वी सम्मेलन 1997 ई० में हुआ था| तृतीय सम्मेलन 2002 ई० में हुआ था|
3. सतत पोषणीय विकास का विचार सबसे पहले किसने प्रस्तुत किया? 
उत्तर:- 1987 ई० में बर्टलैण्ड कमीशन ने
4. 1992 के संयुक्त राष्ट्र के पर्यावरण और विकास सम्मेलन के किस एजेण्डा में सतत पोषणीय विकास का उल्लेख है? 
उत्तर:- ऐजेंडा 21 में 
लघु उत्तरीय प्रश्न





1. खनिज भंडार अब संसाधन बनते हैं? इन्हें किस वर्ग के अंतर्गत रखा जाता है? 
उत्तर:-
जब खनिज का महत्व बढने लगा और लोगों ने अपनी कुशलता का प्रदर्शन करके उनका निष्कासन करना प्रारंभ किया तथा उपयोग में लाया गया तो वे खनिज भंडार संसाधन बन गये| इन्हें प्राकृतिक संसाधन वर्ग में रखा जाता है जो अनवीकरणीय संसाधन हैं|
2. नवीकरणीय संसाधनों के कोई दो उदाहरण दें|
उत्तर:-
वैसे संसाधन जिन्हें भौतिक, रासायनिक या यांत्रिक प्रक्रिया द्वारा उन्हें पुनः प्राप्त किए जा सकते हैं, वे नवीकरणीय संसाधन कहलाते हैं, जैसे— सौर ऊर्जा, पवन ऊर्जा, मछलियाँ तथा जल विद्युत इत्यादि|
3. मानवकृत किन्हीं चार संसाधनों के नाम लिखें|
उत्तर:-
वे संसाधन जिसे मनुष्य द्वारा निर्मित किया जाता है, उसे मानवकृत संसाधन कहते हैं| मानव जनित संसाधनों के चार उदाहरण ये है—- सड़क, भवन, रेल लाइन, शिक्षण संस्थान
4. जैव और अजैव संसाधनों से आप क्या समझते हैं? 
उत्तर:-
जीवमंडल में विद्यमान और उससे प्राप्त होनेवाले विभिन्न प्रकार के जीव जैसे पक्षी, मछलियाँ, पेड़ पौधे और स्वयं मनुष्य भी जैव या अजैविक संसाधन कहलाते हैं| सभी जैविक संसाधन नवीकरणीय संसाधन होते हैं| इसी प्रकार वातावरण में उपस्थित सभी प्रकार के निर्जीव पदार्थ जैसे— खनिज, चट्टानें, मिट्टी, नदियाँ, पर्वत इत्यादि अजैव या अजैविक संसाधन कहलाते हैं|
5. मानव के लिए संसाधन क्यों आवश्यक है? 
उत्तर:-
संसाधन वे है जिनके द्वारा कोई भी राष्ट्र आगे प्रगति कर सकता है औकात विश्व के अन्य देशों के साथ कदम से कदम बढाकर आगे बढ़ सकता है| संसाधन चाहे प्राकृतिक हो या मानव निर्मित हो, किसी भी राष्ट्र की प्रगति के लिए परमावश्यक होते हैं और इन्हीं पर लोगों की संपन्नता निर्भर करती है| प्राकृतिक संसाधन, जैसे— मृदा, जल, वनस्पति और खनिज आदि का मानव प्राणियों के लिए अपना विशेष महत्व है| (1) सर्वप्रथम, इन प्राकृतिक संसाधनों का बड़ा अधिक महत्व है| इन्हीं द्वारा विभिन्न कृषि संबंधी अनेकों कार्य संभव है| हमारी खाने पीने की सभी वस्तुएँ इन्हीं प्राकृतिक संसाधनों से मिलती है| (2)दूसरे, इन्हीं संसाधनों द्वारा हमें अपने उद्योगों के लिए अनेक प्रकार का कच्चा माल मिलता है| हमारे कृषि पर आधारित एवं खनिजों पर आधारित उद्योग इसी कच्चे माल पर निर्भर करते हैं| (3) तीसरे, हमारी सभी व्यापारिक गतिविधियों प्रत्यक्ष अथवा अप्रत्यक्ष रूप में इन्हीं प्राकृतिक संसाधनों पर निर्भर करती है|(4) चौथे, इन्हीं प्राकृतिक संसाधनों पर हमारी बहुत सी सेवाएँ, जैसे— बैंकिंग, इंजीनियरिंग स्वास्थ्य सेवाएँ निर्भर करती है| (5) पांचवे, बहुत से प्राकृतिक संसाधन, जैसे वन आदि पारिस्थितिक संतुलन बनाए रखने में काफी उपयोगी सिद्ध होते हैं| प्राकृतिक संसाधनों की भांति मनुष्य, निर्मित संसाधनों का भी अपना विशेष महत्व है| प्रकृति से प्राप्त सभी उपहार तभी संसाधन बनते हैं जब व्यक्ति उनका प्रयोग करके अपने लिए उपयोगी वस्तुएँ तैयार करता है| यदि खनिज धरातल के नीचे ही दबें रहें तो वह कोई संसाधन नहीं बनते| इसी प्रकार वन भी तभी संसाधन बनते हैं जब मानव उनका प्रयोग अपने लाभ के लिए करता है| यदि मनुष्य न हो या वे इन प्राकृतिक संसाधनों का लाभ न उठा सकें तो सभी प्राकृतिक संसाधन धरे के धरे रह जाएंगे| जब आदि मानव इन प्राकृतिक वस्तुओं का प्रयोग करना या उनका लाभ उठाना नही जानता था तो संसाधन बेकार थे| इसी प्रकार जब तक अफ्रीका के लोगों ने इन प्राकृतिक संसाधनों का उपयोग करना नहीं सीखा था तब तक उनके लिए उनका कोई मूल्य नहीं था| जब, चाहे काफी बाद में, इन प्राकृतिक वस्तुओं का लाभ उठाना सीखा तभी वे वस्तुएँ संसाधनों का रूप ले सकीं| इस प्रकार, मानव प्राणियों के लिए दोनों प्राकृतिक और मानव निर्मित संसाधन बड़े आवश्यक है| 
6. मानव किन गुणों के कारण सारे प्राकृतिक संसाधनों के मूल्य में परिवर्तन लाता है? 
उत्तर:-
मनुष्य स्वयं एक संसाधन के रूप में माना जाता है, मनुष्य स्वयं ही अपनी आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए अपने शरीर और अपनी विभिन्न तकनीकों का उपयोग करता है तथा प्रकृति की अन्य वस्तुओं को भी उपयोग में लाने के लिए कार्य करने की योग्यता मानव ने ही प्राप्त की है| मनुष्य में योग्यता और विभिन्न प्रकार के गुण पाये जाते हैं, जिसके कारण वह सारे प्राकृतिक संसाधनों के मूल्य में परिवर्तन लाता है| मनुष्य ने ही अपने प्रयत्न से ही भूमि पर कृषि कार्य करके खाद्यान फसलों और व्यावसायिक फसलों का उत्पादन करता है| खदानों से धातु अधातु पदार्थ निकलता है| मनुष्य ने अपनी बुद्धि का उपयोग करके विभिन्न तकनीकों के आधार पर खनिज पदार्थों को खोदकर निकालता है| इसी प्रकार जितने भी प्राकृतिक संसाधन हैं उनके उपयोग को मनुष्य संभव बनाता है| अत: स्पष्ट है कि मनुष्य ने अपनी निजी गुण तथा विभिन्न तकनीक के कारण संपूर्ण प्राकृतिक संसाधनों के मूल्य में परिवर्तन लाता है|
7. मानव के आर्थिक विकास में वन तथा पशु किस प्रकार महत्वपूर्ण है? 
उत्तर:-
मनुष्य के आर्थिक विकास में वन और पशु बहुत महत्वपूर्ण माने जाते हैं| वनों से लकडियाँ, फल, फूल, कंद मूल तथा जडी बूटियाँ प्राप्त होती है| जिनका मनुष्य के जीवन में बहुत उपयोग है| लकड़ियों से फर्नीचर बनाए जाते हैं जड़ी बूटियों से दवाइयाँ बनायी जाती है| इसी प्रकार फल फूलों से विभिन्न पदार्थ प्राप्त होते हैं| आर्थिक विकास के दृष्टिकोण से जंगलों से प्राप्त इन पदार्थों का बहुत उपयोग है| इससे मनुष्य की आय में वृद्धि होती है| परिणामस्वरूप मनुष्य का आर्थिक विकास होता है| पशु जैसे संसाधन भी मानव के आर्थिक विकास के लिए बहुत महत्वपूर्ण है| क्योंकि पशु पालन से दूध की प्राप्ति होती है| मनुष्य इसके कारण दूध का व्यापार करते हैं| इसी प्रकार पशुओं के चमड़े से विभिन्न प्रकार के सामान बनाए जाते हैं और उनका व्यापार होता है| पशुओं को पालने से मनुष्य की आय में वृद्धि होती है जिसके कारण उनका आर्थिक विकास होता है


दीर्घ उत्तरीय प्रश्न






1. संसाधन से आप क्या समझते हैं? उदाहरण देते हुए स्पष्ट करें|
उत्तर:-
मानव के उपयोग में आने वाली सभी वस्तुएँ संसाधन हैं| संसाधन का अर्थ जिम्मरमैन के अनुसार संसाधन होते नहीं बनते हैं| संसाधन भौतिक एवं जैविक दोनों हो सकते हैं| भूमि, मृदा, जल, खनिज जैसे भौतिक संसाधन मानवीय आकांक्षाओं की पूर्ति संसाधन बन जाते हैं| जैविक संसाधन वनस्पति, वन्य जीव तथा जलीय जीव जो मानवीय जीवन को सुखमय बनाते हैं|
2. संसाधन हुआ नहीं करते, बना करते हैं| इस कथन की व्याख्या करें|
उत्तर:-
संसाधन हुआ नहीं करते, बना करते हैं| यह कथन प्रसिद्ध भूगोलवेत्ता जिम्मरमैन की है| इस कथन की व्याख्या करते हुए यह कहा जा सकता है कि संसाधन के रूप में किसी पदार्थ का अस्तित्व उसकी उपयोगिता पर निर्भर करता है| कोई पदार्थ जबतक जीवन के लिए उपयोगी सिद्ध नहीं होता है तबतक वह संसाधन नहीं कहलाता है| आर्थिक विकास के लिए उपयोग में लाने पर ही प्रकृति की सभी वस्तुएँ मानव सहित संसाधन बन पाते हैं| संसाधन हुआ नहीं करते, बना करते हैं| उसके सिलसिले में कुछ उदाहरण दिया जा सकता है, जैसे–छोटानागपुर के पठार के खनिज भंडार का बहुत समय तक कोई महत्व नहीं था जिसके कारण वे खनिज पदार्थ संसाधन नहीं बन पाए लेकिन जब खनिजों का महत्व समझा जाने लगा और इसके महत्व में वृद्धि होने लगी तो लोगों ने अपनी कुशलता का परिचय देते हुए उनका निष्कासन करना शुरू किया और उसे उपयोग में लाया तो वे खनिज संसाधन बन गये| इन खनिजों ने छोटानागपुर क्षेत्र को आर्थिक विकास का अवसर प्रदान किया| इसी प्रकार पश्चिमी घाट के पश्चिमी भाग में जोग जल प्रपात बहुत समय तक जल की धारा बहाता रहा| लेकिन जब शक्ति के विकास में इसका उपयोग पनबिजली के उत्पादन के लिए किया जाने लगा तो वह संसाधन बन गया| इसी तरह नदियाँ तभी संसाधन बन पाती है जब मानव उसका उपयोग सिंचाई में जलविद्युत उत्पादन में, मत्स्योद्योग में, जल यातायात में और ऐसी ही अनेक आर्थिक क्रियाओं में करने लगता है| भूगोलवेत्ता जिम्मरमैन ने ठीक ही कहा था कि संसाधन हुआ नहीं करते, बना करते हैं| इस प्रकार उपरोक्त विवेचन से इस कथन की पुष्टि संसाधन हुआ नहीं करते, बना करते हैं|
3. आर्थिक विकास के संसाधन के रूप में मानव के महत्व पर प्रकाश डालें|
उत्तर:-
मानव स्वयं एक संसाधन है| आर्थिक विकास के संसाधन के रूप में मानव का बहुत अधिक महत्व है| हम जानते हैं कि सम्पूर्ण विश्व में अनेक अवयव बिखरे पड़े है| मानव पहले उनका लगता है| फिर वह अपनी बुद्धि, प्रतिभा, क्षमता, तकनीकी ज्ञान और कुशलता से अपनी आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए अपने आर्थिक विकास के लिए उनके उपयोग की योजना बनाता है और उनका उपयोग करता है| उपयोग में लाकर ही मानव उन्हें संसाधन बनाता है| मनुष्य के आर्थिक विकास के लिए संसाधन की उपलब्धि बहुत आवश्यक है| संसाधनों का महत्व इसी बात से स्पष्ट होता है कि इनकी खोज और प्राप्त के लिए ही मनुष्य कठिन परिश्रम करता है| दुर्गम मार्ग पर चलकर साहसिक यात्राएँ करता है| विश्व के प्रायः सभी युद्ध इन्हीं संसाधनों को पाने के लिए हुए हैं| अत: संसाधनों का आर्थिक विकास में बहुत अधिक महत्व है| मनुष्य ने ही संसाधनों की खोज करके उनका उपयोग करना संभव बनाया है| इन संसाधनों के समुचित उपयोग से देश का आर्थिक विकास होता है|
4. संसाधन के नियोजन से आप क्या समझते हैं? इसकी आवश्यकता पर प्रकाश डालें|
उत्तर:-
संसाधनों का विवेकपूर्ण उपयोग ही संसाधन नियोजन है| वर्तमान परिवेश में संसाधनों का विवेकपूर्ण उपयोग हमारे सामने चुनौती बनकर खड़ा है| संसाधनों के विवेकपूर्ण दोहन हेतु सर्वमान्य रणनीति तैयार करना संसाधन नियोजन की प्रथम प्राथमिकता है| संसाधन नियोजन किसी भी राष्ट्र के विकास के लिए आवश्यक होता है| भारत जैसे देश के लिए तो यह अपरिहार्य है, जहाँ संसाधन की उपलब्धता में अत्यधिक विविधता के साथ साथ सघन जनसंख्या व्याप्त है| यहाँ कयी ऐसे प्रदेश है, जो संसाधन संपन्न हैं| पर कोई ऐसे भी प्रदेश है, जो संसाधन की दृष्टि से काफी विपन्न है| कुछ ऐसे भी प्रदेश है, जहाँ एक ही प्रकार के संसाधनों का प्रचुर भंडार है और अन्य दूसरे संसाधनों में वह गरीब है| अत: राष्ट्रीय, प्रांतीय तथा अन्य स्थानीय स्तरों पर संसाधनों का समायोजन एक संतुलन के लिए संसाधन नियोजन की अनिवार्य आवश्यकता है| वास्तव में प्रादेशिक एवं राष्ट्रीय विकास तथा मूल रूप से संतुलित आर्थिक विकास के लिए संसाधन के नियोजन की आवश्यकता बहुत अधिक है|
5. संसाधनों के संरक्षण से क्या तात्पर्य है? यह संरक्षण किस प्रकार किया जा सकता है? 
उत्तर:-
संसाधनों की सीमितता, असमान वितरण और उनके उपयोग से उत्पन्न होती जा रही समस्याओं को देखते हुए यह जरुरी है कि संसाधनों का योजनाबद्ध एवं विवेकपूर्ण उपयोग किया जाए| संसाधनों का योजनाबद्ध, समुचित एवं विवेकपूर्ण उपयोग ही इसका संरक्षण है| संसाधनों का संरक्षण करने के लिए सबसे पहले प्रारंभिक तैयारी करना चाहिए| इसके अंतर्गत प्राकृतिक संसाधन तथा मानवकृत संसाधन के संरक्षण के लिए समुचित उपाय करने की तैयारी करनी चाहिए| इसके बाद इन संसाधनों का मूल्यांकन करना चाहिए| इसके अंतर्गत इस बात का मूल्यांकन होना चाहिए कि संसाधन का नियोजन करना चाहिए| ये संसाधन यदि बर्बाद हो रही है तो किस तरह इसका संरक्षण किया जाए, इसका भी उपाय करना चाहिए| संसाधनों के संरक्षण के लिए उसको अधिक से अधिक उपयोग में लाने की योजना बनानी चाहिए| तथा प्रकृति प्रदत्त और मानवकृत संसाधनों का संरक्षण किया जा सकता है| संसाधनों का संरक्षण करने के लिए सभी संसाधनों की बर्बादी को रोकना चाहिए| संसाधनों के संरक्षण के लिए खोज और अनुसंधान कार्य करते रहना चाहिए तथा संरक्षण को अनुकुलतम बनाने के लिए आवश्यक सुधार करना चाहिए| वास्तव में संसाधनों का संरक्षण योजनाबद्ध, समुचित और विवेकपूर्ण उपयोग करने से हो सकता है|
6. तकनीकी और आर्थिक विकास से संसाधनों की खपत किस तरह बढ़ चली है? 
उत्तर:-
तकनीकी और आर्थिक विकास से संसाधनों की खपत बहुत बढ गयी है| क्योंकि तकनीकी और आर्थिक विकास के चलते सभी संसाधनों का उपयोग अधिक बढने लगा है, सभी संसाधनों को उपयोगी बनाने के लिए तकनीकी और आर्थिक विकास का प्रमुख योगदान होता है| संसाधनों के निर्माण में तकनीकी और आर्थिक विकास की भूमिका बहुत ही महत्वपूर्ण होती है, क्योंकि अनेक प्रकृति प्रदत्त वस्तुएँ तब तक संसाधन का रुप नहीं लेती है जबतक कि किसी विशेष तकनीकी द्वारा उन्हें उपयोगी नहीं बनाया जाता है| उदाहरण के लिए नदियों के बहते जल से पन बिजली तैयार की जाती है| इस पन बिजली का उपयोग कल कारखानों को चलाने में किया जाता है तथा इस बिजली का उपयोग वाणिज्य व्यवसाय और उद्योग धंधों के विकास में किया जाता है जिससे पनबिजली की खपत बढ़ गयी है| इसी प्रकार बहती हुई वायु से पवन ऊर्जा तैयार की जाती है जिसका औद्योगिक उपयोग होता है| इसी प्रकार भूमि में संचित खनिज पदार्थों का शोधन करके उन्हें उपयोगी बनाया जाता है| भूमि से आधुनिक तकनीकी के आधार पर खनिज पदार्थों को खोदकर निकाला जाता है, जैसे—कोयला, लोहा, तांबा, अबरख, जस्ता, टिन तथा पेट्रोलियम इत्यादि का दैनिक जीवन में बहुत उपयोग होता है| विशेष रूप से उद्योग धंधों में खनिज पदार्थों का उपयोग बढता जा रहा है| परिणामस्वरूप खनिज पदार्थों की खपत बढती जा रही है| मोटरगाड़ियों को चलाने में पेट्रोलियम का बहुत उपयोग होता है| लोहा एवं इस्पात उद्योग में लोहा की खपत होती है| इसी प्रकार उद्योग में जिप्सम की बहुत खपत होती है| सभी प्राकृतिक और मानवकृत संसाधन का आजकल उपयोग बढता जा रहा है| इसलिए आवश्यकता इस बात का है कि संसाधनों की सही उपयोग करते हुए उसका संरक्षण करना भी आवश्यक है|
कारण बताए—–






1. कोयला और लोहा दोनों खदान से प्राप्त होते हैं, परन्तु लोहे को अजैव तथा कोयले को जैव संसाधन कहा जाता है| क्यों? 
उत्तर:-
कोयला और लोहा दोनों खदान से प्राप्त होते हैं| इनमें कोयले का निर्माण पेड़ पौधों जैसे तत्वों से होता है जबकि लोहा का निर्माण अजैव पदार्थों से होता है, इसिलिए कोयला को जैव एवं लोहा को अजैव संसाधन कहा जाता है|
2. राजस्थान एवं हिमाचल प्रदेश में भेड़ बकरी पालने की प्रथा है| क्यों? 
उत्तर:-
राजस्थान एवं हिमाचल प्रदेश में भेड़ बकरी पालने की प्रथा है, क्योंकि इन क्षेत्रों में इन पशुओं से दुग्ध, ऊन, चमरा एवं मांस इत्यादि मिलते हैं| ये पालतू पशु माने जाते हैं| इन पशुओं से जैविक खाद की भी प्राप्ति होती है जिसका उपयोग कृषि उत्पादन बढाने में किया जाता है| साथ ही राजस्थान और हिमाचल प्रदेश में भेड़ बकरियों के लिए चारागाह भी है| भेड़ बकरियों के पालने से इन क्षेत्रों का आर्थिक विकास भी होता है|
3. वर्तमान काल में सतत पोषणीय विकास पर अधिक बल दिया जा रहा है| क्यों? 
उत्तर:-
संसाधनों की होती जा रही कमी, बढते पर्यावरण प्रदूषण तथा भविष्य में इनकी प्राप्यता को बनाए रखने के लिए ही वर्तमान समय में सतत पोषणीय विकास पर बल दिया जा रहा है|
4. खनिजों को अपूर्ण संसाधन कहा जाता है, पर वनों को नहीं|क्यों? 
उत्तर:-
खनिज अनवीकरणीय संसाधन होते हैं| जिनका उपयोग में पुनः नहीं किया जा सकता है जबकि वन नवीकरणीय संसाधन होते हैं जिनका उपयोग भविष्य में पुनः किया जा सकता है| इसिलिए खनिजों को अपूर्य संसाधन कहा जाता है, पर वनों को नहीं|

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