कृषि संसाधन
अतिलघु उत्तरीय प्रश्न
1. भारत में कितनी प्रतिशत आबादी को कृषि में रोजगार मिलता है?
उत्तर:-भारत में 58.5 प्रतिशत आबादी को कृषि जनित क्रियाकलापों में रोजगार उपलब्ध होता है|
2. भारत के किन राज्यों को मसालों का राज्य कहा जाता है?
उत्तर:- केरल, कर्नाटक
3. रबर का पौधा किस देश से लाकर भारत में उगाया गया था?
उत्तर:-1826 ई० में सर हेनरी विलियम ने ब्राजील के पेरू क्षेत्र से खरके बीजों को लाकर भारत में इसका उत्पादन प्रारंभ किया|
4. शुष्क कृषि को परिभाषित करें|
उत्तर:-
वर्षा की सहायता से विकसित कृषि प्रणाली को शुष्क कृषि कहा जाता है|
5. देहरादून की बासमती चावल किसलिए प्रसिद्ध है|
उत्तर:- उत्तर प्रदेश स्थित देहरादून का बासमती चावल अपनी स्वाद और सुगंध के लिए विख्यात है|
6. सूती वस्त्र उद्योग का कृषि उत्पाद क्या है?
उत्तर:-
सूती वस्त्र उद्योग का कृषि उत्पाद कपास है|
7. धान का कटोरा भारत के किस भाग को कहा जाता है?
उत्तर:-
धान का कटोरा भारत के गंगा ब्रह्म पुत्र के मैदान और डेल्टा भाग तथा तटीय भागों को कहा जाता है|
8. भूदान आंदोलन के प्रवर्तक कौन थे?
उत्तर:- आचार्य विनोबा भावे भूदान आंदोलन के प्रवर्तक थे|
लघु उत्तरीय प्रश्न
1. भारत में कृषि के लिए कौन सी भौगोलिक सुविधाएँ प्राप्य है?
उत्तर:-
भारत एक कृषि प्रधान देश है| भारत में कृषि के लिए निम्नलिखित भौगोलिक सुविधाएँ प्राप्य है—-
भारत में कृषि के लिए विशाल भूमि क्षेत्र है|
भारत में कृषि का प्रतिशत भी उच्च मिलता है|
भारत में कृषि बहुत उपजाऊ मिट्टी उपलब्ध है|
भारत में जलवायु की अनुकूलता पायी जाती है|
भारत में फसलों के लिए लंबा वर्द्धकाल पाया जाता है|
अत: उपर्युक्त विचार बिंदुओं के आधार पर यह कहा जा सकता है कि भारत में कृषि के लिए अनुकूल भौगोलिक सुविधाएँ प्राप्य है| इन भौगोलिक सुविधाओं के कारण ही भारत एक कृषि प्रधान देश है|
2. भारत किन कृषि जन्य पदार्थों का निर्यात करता है? किन्हीं पांच का उल्लेख करें|
उत्तर:-
भारत एक कृषि प्रधान देश है| यहाँ कृषि कार्य करने के लिए अनेक भौगोलिक सुविधाएँ पायी जाती है| भारत में अनेक व्यावसायिक फसलों का भी उत्पादन होता है| इन व्यावसायिक फसलों के उत्पादन से न केवल यहाँ की जनता का भरण पोषण होता है, बल्कि इनका निर्यात भी किया जाता है| इन व्यावसायिक फसलों के निर्यात से भारत को विदेशी मुफ्त की प्राप्ति होती है| भारत विभिन्न कृषि जन्य पदार्थों या फसलों का निर्यात करता है| इनमें से पांच इस प्रकार है—-
गन्ना, तेलहन, तम्बाकू, मसाले तथा रबर| इसके अतिरिक्त भारत आलू, रबर, कपास, फलों, जूट इत्यादि का भी निर्यात करता है|
3. भारत में कृषि की दो प्रमुख ऋतुएँ कौन कौन है? उनमें उगायी जानेवाली फसलों को किन अलग अलग दो नामों से पुकारा जाता है?
उत्तर:-
भारत में कृषि की दो प्रमुख ऋतुएँ खरीफ और रबी ऋतुएँ है| इन दोनों ऋतुओं का विवेचन इस प्रकार है—
खरीफ—
मानसून पूर्व की ऋतु जिसमें खेत जोतकर धान की रोपायी के लिए खेतों में बीज डाल दिए जाते हैं और वर्षा की प्रतीक्षा की जाती है| वर्षा शुरू होते ही कृषि कार्य जोर पकड़ने लगते हैं| जून जुलाई में फसलों की खेती आरंभ होती है और मानसूनी वर्षा की समाप्ति तक फसलें पककर तैयार हो जाती है| धान, ज्वार बाजरा, मकई, मूंगफली, जूट, कपास और अरहर (इस दलहन को पकाने में अधिक समय लगता है) की फसलों की खेती इसी ऋतु में की जाती है| ये खरीफ फसलें कहलाती है|
रबी—-
वर्षा ऋतु के बाद और जाड़ा आरंभ होने पर जिन फसलों की खेती की जाती है, वे रबी फसलें कहलाती है| जैसे– गेहूँ, चना, मटर, सरसों आदि| यह ऋतु रबी की ऋतु कहलाती है जिसमें नवंबर में बुआयी और अप्रैल मई में इन फसलों की कटाई की जाती है|
4. पश्चिमोत्तर भारत की प्रमुख खाद्यान्न फसल कौन है? उसके तीन सबसे अधिक उत्पादक राज्य कौन कौन है? किन दो व्यावसायिक फसलों की खेती से उसे होड़ लेनी पड़ती है?
उत्तर:-
पश्चिमोत्तर भारत की प्रमुख खाद्यान्न फसल गेहूँ है| इसे पीसकर आर्द्र बनाया जाता है| इसके तीन सबसे अधिक उत्पादक राज्य पंजाब, हरियाणा और उत्तर प्रदेश है| गेहूँ की फसल को गन्ना और कपास नामक व्यावसायिक फसलों की खेतों से तोड़ लेनी पड़ती है|
5. भारत की दो शुष्क खाद्यान्न फसलें कौन कौन है? उनके प्रमुख उत्पादक राज्यों के नाम लिखें|
उत्तर:-
भारत की दो शुष्क खाद्यान्न फसलें ज्वार तथा बाजरा है| ज्वार के सबसे प्रमुख उत्पादक राज्य महाराष्ट्र, कर्नाटक, आंध्र प्रदेश, मध्य प्रदेश, गुजरात, राजस्थान, तमिलनाडु और उत्तर प्रदेश है तथा उत्तर प्रदेश है तथा बाजरा के सबसे प्रमुख उत्पादक राज्य गुजरात, राजस्थान, महाराष्ट्र, उत्तर प्रदेश, हरियाणा, कर्नाटक और तमिलनाडु है|
6. मकई के पांच प्रमुख उत्पादक राज्य कौन कौन है? गरीब किसानों के लिए इसका बड़ा महत्व है|कैसे?
उत्तर:-
मकई के पांच प्रमुख उत्पादक राज्य बिहार, उत्तर प्रदेश, पंजाब, राजस्थान और मध्य प्रदेश है| ये पांच राज्य मिलकर भारत की तीन चौथाई मकई उत्पन्न करते हैं| मकई मुख्यतः भदई फसल है और तीन चार महीने में तैयार हो जाती है| रबी और धान की फसलों के काटने के समय में जो लंबी अवधि आती है उसी बीच यह तैयार होती है, अतः गरीब किसानों के लिए इसका बड़ा महत्व है| चूंकि यह फसल कम समय में ही तैयार हो जाता है जो किसानों के लिए बहुत लाभदायक होता है|
7. हमारे खाद्यान्नों के भावी बजट पर टिप्पणी लिखें|
उत्तर:-
प्रारंभ से ही भारत कृषि प्रधान देश रहा है| भारत में खाद्यान्नों की बढोत्तरी दिन प्रतिदिन हो रही है| पिछले लगभग 55 वर्षों में यह 65 करोड़ टन से बढ़कर 22 करोड़ टन पहुँच गया है| लेकिन इस अवधि में जनसंख्या का घनत्व भी बढ़ा हैं| जनसंख्या का घनत्व बढने से खाद्यान्नों के भंडारों में कमी होगी| 2011 की जनगणना के अनुसार अभी भारत में 121 करोड़ जनसंख्या हो गयी है| यानी 2001 की जनगणना के मुकाबले में यह लगभग 21 करोड़ बढ़ गयी है| अतः खाद्यान्नों की बढोत्तरी के साथ साथ जनसंख्या का घनत्व भी बढा है| अतः बढी हुई जनसंख्या को खाद्यान्न उपलब्ध कराने के लिए और अधिक बढोत्तरी जरुरत महसूस हो गयी है| साथ ही हमें जनसंख्या पर नियंत्रण रखना होगा| जनसंख्या के नियंत्रित होने से खाद्यान्नों का भविष्य में उचित उपयोग कर खाद्यान्न के कमी होने की समस्या से छुटकारा मिलेगा और भावी पीढ़ी को खाद्यान्न की कमी महसूस नहीं होगी|
8. भारत की दो प्रमुख पेय फसलें कौन कौन है? उनके उत्पादन की भौगोलिक दशाओं में क्या समानता और असमानता मिलती है?
उत्तर:-
भारत का दो प्रमुख पेय फसल—चाय, कहवा| इनके उत्पादन के लिए भौगोलिक दशाओं में लगभग समानता पायी जाती है| चाय और कहवा दोनों महत्वपूर्ण पेय फसल है| दोनों के लिए निम्नलिखित भौगोलिक दशाओं की आवश्यकता होती है—–
उच्च तापमान—–
चाय और काफी उत्पादन के लिए वर्ष भर 20°C–30°C तापमान की आवश्यकता होती है| दोनों ही छाया पसंद पौधा है|
अधिक वर्षा—-
200 सेंटीमीटर से अधिक वार्षिक वर्षा दोनों ही उपज के लिए उपयुक्त मानी जाती है|
ढालू भूमि—-
दोनों की पैदावार के लिए ढालू भूमि आवश्यक होती है| क्योंकि अधिक वर्षा होने पर भी इनके पौधों की जड़ों में जल का जमाव नहीं होना चाहिए| जल का जमाव हानिकारक होता है|
दोनों की खेती के लिए गहरी दोमट और लैैैैटेराइट
मिट्टी उत्तम मानी जाती है जिसमें लोहांश, फास्फोरस, पोटाश, आदि पाया जाता हो आवश्यक होता है|
9. भारत की दो रेशेदार फसलों के नाम लिखें| किसे सुनहरा रेशा और किसे उजला सोना कहा जाता है| दोनों की उत्पादन दशाओं में क्या भिन्नता पाई जाती है?
उत्तर:-
भारत में दो रेशेदार फसल है— जूट, कपास
जूट को सुनहरा रेशा और कपास को उजला सोना कहा जाता है| इनके उत्पादन के लिए निम्नलिखित भौगोलिक दशाओं में अंतर पाया जाता है——
जूट की खेती के लिए उच्च तापमान और जलवायु की आवश्यकता होती है| तापमान 25° सेल्सियस से 35° सेल्सियस तक आवश्यक है| जबकि कपास के लिए 21° सेल्सियस से 30° सेल्सियस की आवश्यकता है|
जूट के लिए 200 सेंटीमीटर वार्षिक वर्षा जबकि वर्षा कम यानि 75 सेंटीमीटर से 100 सेंटीमीटर ही वर्षा आवश्यक होती है|
जूट की खेती के लिए समतल भूमि और जलोढ़ मिट्टी उत्तम मानी जाती है जबकि कपास की खेती के लिए काली मिट्टी उत्तम होती है|
जूट के लिए जलाशय का होना आवश्यक है तो दूसरी ओर कपास के लिए अंतिम समय में तेज धूप होना आवश्यक है|
10. तेलहन फसलों के नाम लिखें और उनके उत्पादन क्षेत्रों का विवरण दें|
उत्तर:-
भारत में अनेक प्रकार के तेलहन फसल उगाए जाते हैं जिनके नाम निम्नलिखित हैं—–
मूंगफली—-
यह एक तेलहन फसल है| इसके प्रमुख उत्पादक क्षेत्रों में गुजरात, आंध्र प्रदेश, तमिलनाडु, कर्नाटक और महाराष्ट्र है| इसका सबसे बड़ा उत्पादक गुजरात राज्य है|
तिल—
यह भी एक प्रमुख तेलहन फसल है| इसके प्रमुख उत्पादन क्षेत्र उत्तर प्रदेश, राजस्थान, मध्य प्रदेश, तमिलनाडु, आंध्र प्रदेश, महाराष्ट्र और गुजरात है|
राई और सरसों—-
यह भी प्रमुख तेलहन फसल है| इसके प्रमुख उत्पादन क्षेत्रों में उत्तर प्रदेश, पंजाब, हरियाणा, राजस्थान और मध्य प्रदेश प्रमुख है|
नारियल—-
यह भी एक प्रमुख तेलहन फसल है| इसके प्रमुख उत्पादन क्षेत्रों में केरल प्रमुख है|
आलसी या तीसी—-
यह भी एक प्रमुख तेलहन फसल है| इसके प्रमुख उत्पादन क्षेत्रों में मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश, बिहार, राजस्थान, महाराष्ट्र, पश्चिम बंगाल, उड़ीसा, आंध्र प्रदेश और कर्नाटक प्रमुख है|
अंडी या रेड्डी–
यह भी एक प्रमुख तेलहन फसल है| इसके प्रमुख उत्पादन क्षेत्रों में गुजरात, महाराष्ट्र, पंजाब, कर्नाटक, मध्य प्रदेश, आंध्र प्रदेश और तमिलनाडु प्रमुख है|
बिनौला—-
यह भी एक प्रमुख तेलहन फसल है| इसके प्रमुख उत्पादन क्षेत्रों में गुजरात, महाराष्ट्र, पंजाब, कर्नाटक, मध्य प्रदेश, आंध्र प्रदेश और तमिलनाडु प्रमुख है|
11. किस तेलहन फसल के उत्पादन में भारत विश्व में अग्रणी है? इसके महत्वपूर्ण उत्पादन क्षेत्र बताएं|
उत्तर:-
राई और सरसों जैसे तेलहन फसलों के उत्पादन में भारत विश्व में अग्रणी है|
राई और सरसों के उत्पादन क्षेत्र—–
इसके प्रमुख उत्पादन क्षेत्रों में उत्तर प्रदेश, पंजाब, हरियाणा, राजस्थान, औ मध्य प्रदेश प्रमुख है|
12. किन राज्यों के तटीय क्षेत्र गरम मसालों की खेती के लिए प्रसिद्ध है? प्रमुख मसालों के नाम लिखें|
उत्तर:-
केरल और कर्नाटक के मालाबार तटीय क्षेत्र गरम मसालों की खेती के लिए प्रसिद्ध है| दक्षिण भारत मसाले के विश्व व्यापार के लिए प्राचीनकाल से ही प्रसिद्ध रहा है| प्रमुख मसालों में काली मिर्च, लौंग, इलायची, जावित्री, अदरक, लहसुन, हल्दी और तेजपत्ता प्रमुख है|
13. रोपण कृषि से आप क्या समझते हैं?
उत्तर:-
रोपण कृषि को व्यापारिक कृषि भी कहा जाता है| इसमें झाड़ीनुमा पौधे या पेड़ बगान के रूप में लगाया जाता है| एक बार पेड़ लगाने के बाद कयी वर्षों तक इसका उत्पाद लिया जाता है| यह खर्चीली खेती है जिसके रख रखाव में विशेष ध्यान देना पड़ता है| चाय, काफी, रबर गर्म मसाले खेती इसी प्रकार से की जाती है| इस प्रकार की कृषि का लक्ष्य अच्छी पैदावार प्राप्त करना है|
14. हरित क्रांति क्या है?
उत्तर:-
1967-68 में कृषि उत्पादन बढाने और देश को खाद्यान्न उत्पादन में आत्मनिर्भर बनाने के लिए कयी प्रयास किए गए जिसके अंतर्गत जोत और भूमि का विस्तार, नये संकर बीजों का प्रयोग, उर्वरकों के उपयोग को प्रोत्साहन, मृदा संरक्षण एवं भूमि सुधार का कार्यक्रम चलाया गया, सिंचाई का विस्तार और कृषि में नयी तकनीकों को अपनाया गया| इस प्रयास से पंजाब, हरियाणा, राजस्थान में गेहूँ एवं धान के उत्पादन में जो वृद्धि हुई, जो सफलता मिली इसे ही हरित क्रांति के नाम से जाना जाता है| इसी प्रकार के प्रयास और तकनीक का प्रयोग कर पश्चिम बंगाल, बिहार, उड़ीसा, मध्य प्रदेश और उत्तर प्रदेश में भी गेहूँ और चावल के उत्पादन में वृद्धि की गयी|
15. आपरेशन फ्लड क्या है?
उत्तर:-
पशुपालन पर आधारित उद्योगों में दुग्ध उद्योग सर्वप्रमुख है| वैज्ञानिक ढंग से दुधारू पशुओं को पालकर दुग्ध व्यवसाय को बढ़ावा दिया जा रहा है| वर्ष 2009-10 में 12 करोड़ टन से अधिक दूध उत्पादन कर भारत दुग्ध उत्पादन के क्षेत्र में विश्व में पहला स्थान प्राप्त कर चुका है| डेयरी विकास या दुग्ध उत्पादन के वृद्धि से श्वेत क्रांति लायी जा रही है| इस क्रांति को ही आपरेशन फ्लड नाम से भी जाना जाता है| इससे देश में बहुत बड़ी संख्या में लोगों को रोजगार भी प्राप्त हो रहे हैं|
16. भारतीय कृषि को मानसूनी जलवायु किस ढंग से प्रभावित करता है? कारण बताएं|
उत्तर:-
मानसूनी जलवायु भारतीय कृषि को अवश्य प्रभावित करती है| भारत एक मानसूनी जलवायु वाला देश है| इसिलिए हमारे देश में वर्षा मानसून से होती है, जो स्वयं अनिश्चित है| जिस वर्ष मानसून समय पर एवं पर्याप्त मात्रा में होती है उस वर्ष कृषि की पैदावार भी अच्छी होती है| इसके विपरीत मानसून के असामयिक और अपर्याप्त होने पर कृषि उपज कम हो जाती है| यही कारण है कि भारतीय कृषि को मानसून के साथ जुआ कहा गया है| मानसूनी जलवायु होने के कारण यदि वर्षा समय पर पर्याप्त मात्रा में हो जाती है तो कृषि कार्य करने में सुविधा होती है| खाद्यान्न फसलों के साथ साथ व्यावसायिक फसलों का उत्पादन अच्छी मात्रा में होता है| लेकिन यदि वर्षा समय पर पर्याप्त मात्रा में नहीं होता है और देशभर में वर्षा का वितरण सही रुप से नहीं हो पाता है तो ऐसी हालत में कृषि पर इसका बुरा प्रभाव पड़ता है|
17. भूमि उद्योग में परिवर्तन किन कारकों के चलते हुआ है?
उत्तर:-
जनसंख्या में वृद्धि—
देश की जनसंख्या में वृद्धि स्वाभाविक है और बढती आबादी के लिए निवास और बस्तियों के निर्माण में भूमि के कुछ भाग का उपयोग किया जाता है|
उद्योगों का विकास—-
उद्योगों के विकास से उनकी स्थापना तथा परिवहन के लिए सड़क रेलमार्ग बनाने तथा औद्योगिक बस्तियों के निर्माण में कुछ कृषि भूमि का उपयोग किया जाता है|
18. कृषि के अतिरिक्त भूमि उपयोग के अन्य कौन कौन संवर्ग है?
उत्तर:-
कृषि के अतिरिक्त भूमि उपयोग के अन्य संवर्ग निम्नलिखित हैं—-
वन क्षेत्र, बंजर और व्यर्थ भूमि, अकृष्य कार्यों में प्रयुक्त भूमि, स्थायी चारागाह और घास क्षेत्र, बाग बगीचे, कृषि योग्य व्यर्थ भूमि, पुरातन परती भूमि, वर्तमान परती भूमि, निबल बोई भूमि|
19. चार खाद्यान्न फसलों के नाम लिखें| उनमें कौन पश्चिमी भारत की प्रमुख फसल नहीं है? उसके उत्पादन की चार अनुकूल प्रमुख भौगोलिक दशाओं का उल्लेख करें|
उत्तर:-
चार खाद्यान्न फसलों के नाम ये है—
चावल, गेहूँ, मकई, दलहन
इनमें चावल पश्चिमी भारत की प्रमुख फसल नहीं है|
चावल या धान के उत्पादन की चार अनुकूल प्रमुख भौगोलिक दशाएँ इस प्रकार है—–
उच्च तापमान—-
20°C से 30°C के बीच तापमान आदर्श माना गया है, यद्यपि 16°C तापमान पर भी इसकी बुआई की जा सकती है|
ग्रीष्मकालीन पर्याप्त वर्षा—-
पानी धान का बड़ा रसायन होता है| इसके खेतों में कयी महीनों तक पानी भरा रहना आवश्यक होता है| जिस क्षेत्र में 200 सेंटीमीटर से अधिक वर्षा होती है| वहाँ यह फसल खूब विकसित होती है| वैसे 100-200 सेंटीमीटर ग्रीष्मकालीन वर्षा इसकी खेती के लिए आदर्श है|
समतल भूमि—
जल खेत में जमा रह सके इसके लिए समतल भूमि का होना आवश्यक है| जहाँ ऐसी भूमि नहीं होती वहाँ सीढीनुमा खेत बनाने पड़ते हैं, जैसे पहाड़ी ढालों पर या पठारी भूमि हो|
उपजाऊ जलोढ़ मिट्टी—-
जिस मिट्टी में जल को संचित करने की या आर्द्र बनाए रखने की क्षमता होगी वही धान की खेती के लिए उपयुक्त हो सकती है| यही कारण है कि चिकनी कछारी और डेल्टाई मिट्टी उत्तम मानी जाती है| गंगा का मैदान, तटीय मैदान और ब्रह्मपुत्र घाटी के अतिरिक्त दक्षिण भारत की नदी घाटियों में ऐसी मिट्टी मिला करती है| अत: भारत में धान उत्पादन के प्रमुख क्षेत्र ये है| मिट्टी कम उपजाऊ हो तो खाद देकर उसे उपजाऊ बनाना आवश्यक है| हरी खाद का प्रयोग स्थायी लाभ पहुंचाता है|
दीर्घ उत्तरीय प्रश्न
1. भारतीय अर्थतंत्र में कृषि का क्या महत्व है? कृषि की विशेषताओं पर प्रकाश डालें|
उत्तर:-
भारत की 70℅ आबादी रोजगार और अजीविका के लिए पर आश्रित है|
देश के सकल राष्ट्रीय उत्पाद में कृषि का योगदान 22℅ ही है| फिर भी, बहुत सारे उद्योगों को कच्चा माल कृषि उत्पाद से ही मिलता है|
कृषि उत्पाद से ही देश की इतनी बड़ी जनसंख्या को खाद्यान्न की आपूर्ति होती है| अगर ऐसा न हो तो खाद्यान्न आयात करना पड़ेगा| आज देश खाद्यान्न में आत्मनिर्भर है| इतना ही नहीं, विकट परिस्थिति के लिए खाद्यान्न का अच्छा भंडारण भी है|
कृषि के अनेक उत्पाद में भारत विश्व में पहले, दूसरे एवं तीसरे स्थान पर है|
अनेक कृषि उत्पाद का भारत निर्यातक है जिससे विदेशी मुद्रा की प्राप्ति होती है|
कृषि ने अनेक उद्योगों को विकसित होने का अवसर प्रदान किया है|
भारतीय कृषि की विशेषताएँ—-
भारत का एक बड़ा भू भाग कृषि योग्य है| यहाँ की जलवायु और उपजाऊ मिट्टी कृषि कार्य को बढ़ावा प्रदान करते हैं|
भारत में कहीं एक फसल, कहीं दो फसल और कहीं तीन तीन फसल तक उगाई जाती है|
भारत में फसलों की अदला बदली भी की जाती है, यहाँ अनाज की फसलों के बाद दलहन की खेती की जाती है| इससे मिट्टी में उर्वरक शक्ति बनी रहती है| यहाँ मिश्रित कृषि का भी प्रचलन है जिसमें गेहूँ, चना और सरसों की खेती एक साथ की जाती है|
2. राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था में कृषि के योगदान की समीक्षा करें|
उत्तर:-
भारत में कृषि को राष्ट्रीय अर्थतंत्र की रीढ़ माना जाता है| देश के 70℅ लोग रोजगार और आजीविका के लिए कृषि पर आश्रित है|
कयी कृषि उत्पाद विदेशों को निर्यात किये जाते हैं| जिससे अच्छी विदेशी मुद्रा की प्राप्ति होती है, जैसे गर्म मसाला, चाय, कपास, जूट, कहवा, फल आदि| कयी कृषि उत्पाद भारतीय उद्योगों को कच्चा माल प्रदान करते हैं| जैसे— गन्ना, कपास, जूट, जड़ी बूटियाँ आदि| इन उद्योगों के विकास से देश की अर्थव्यवस्था मजबूत होती है|
देश की स्वतंत्रता के दशक में भारत को खाद्यान्न का आयात करना पड़ता था| परन्तु अब ये निर्यातक देश बन गया है| देश में खाद्यान्नों का भंडार भी सुरक्षित है| चाय, दूध, फल के उत्पादन में भारत विश्व में सबसे आगे बढ़ गया है| गेहूँ, चीनी में दूसरे स्थान पर और चावल, तम्बाकू के उत्पादन में तीसरे स्थान पर है| उन्नत किस्म के बीज, उर्वरक तथा उत्पादन के दौरान फलों और सब्जियों को तोड़ने, परिवहन, भंडारण की नयी तकनीक से यह विकास संभव हो पाया है| फिर भी बढती हुई आबादी के लिए और अधिक उत्पादन हेतु अधिक प्रयास की आवश्यकता है|
3. गेहूँ की खेती के उपयुक्त भौगोलिक परिस्थितियों की विवेचना करें|
उत्तर:-
गेहूँ—
गेहूँ दूसरी महत्वपूर्ण खाद्य फसल है| गेहूँ शीतोष्ण फसल है| चावल की तरह के बाद भारत गेहूँ का दूसरा उत्पादक देश है| इसकी निम्नलिखित दशाएँ उपयुक्त है—-
फसल—-
रबी तथा अनाज की फसल
वर्षा—
75 सेंटीमीटर से कम| फसल कटते समय वर्षा हानिकारक है|
तापमान—-
बोते समय ठंडा तथा आर्द्र तापमान आवश्यक है| तापमान 10°C–15°C तक होना चाहिए| गेहूँ काटते समय 20°C—30°C के मध्य होना चाहिए|
मृदा—
दोमट मिट्टी| जल निकास की व्यवस्था होनी चाहिए|
उत्पादक राज्य—-
गेहूँ की कृषि भारत की उत्तरी पश्चिमी भागों तक सीमित है| पंजाब, हरियाणा, उत्तरी राजस्थान, उत्तरी गुजरात तथा पश्चिमी उत्तर प्रदेश| अब भारत गेहूँ के निर्यात की स्थिति में है|
4. भारतीय कृषि पर भूमंडलीकरण के प्रभाव पर एक निबंध लिखें|
उत्तर:-
भूमंडलीकरण का उद्देश्य है हमारे राष्ट्रीय अर्थतंत्र का विश्व अर्थतंत्र से जुड़ना| विश्व का बाजार सबके लिए मुक्त हो| इससे अच्छे किस्म का सामान उचित मूल्य पर कहीं भी पहुँचाया जा सकेगा| भारतीय कृषि के विकास के लिए उपयुक्त जलवायु, मिट्टी और श्रमिकों का सहारा लेकर किसान उन्नत किस्म के खाद्यान्नों तथा अन्य कृषि उत्पादों को विश्व बाजार में प्रवेश करा सकेंगे इसमें प्रतिस्पर्धा का सामना होगा| सामना करने के लिए उन्नत तकनीकी उपायों का सहारा लेना होगा| भारतीय कृषि में अधिकाधिक विकास करने की आवश्यकता है| भूमंडलीकरण भारत के लिए कोई नहीं है| प्राचीन समय से ही भारतीय सामान विदेशों में जाया करता था और विदेशों से आवश्यक सामग्री भारतीय बाजारों में बिकते थे| परंतु 1990 से वैधानिक रूप से भूमंडलीकरण और उदासीनीकरण की नीति अपनाने के बाद विश्व बाजार में प्रतिस्पर्धा के कारण कृषि के क्षेत्र में उन्नत तकनीक और मशीनों का प्रयोग बढ़ रहा है| साथ ही खाद्यान्नों की अपेक्षा व्यापारिक फसल के उत्पादन को बढ़ावा मिल रहा है|
5. शस्य गहनता क्या है? इसको प्रभावित करने वाले कारकों की चर्चा करें|
उत्तर:-
एक ही कृषि में एक ही भूमि पर एक से अधिक फसलों को उगाकर कुल उत्पादन में वृद्धि करना ही शस्य गहनता कहलाता है| उदाहरण द्वारा इसे समझा जा सकता है— आपके पास 3 हेक्टेयर भूमि है| एक वर्ष में तुम धान की फसल बोकर धान उपजाते हो, उसके बाद रबी के समय उसी 3 हेक्टेयर में तुम गेहूँ बोकर उसकी फसल काटते हो, फिर जायद फसल के समय कम अवधि में तैयार होने वाली मूंग की फसल बोकर उसकी कटाई कर लेते हैं तो सच मायने में तुम्हारे पास 3 हेक्टेयर जमीन है किंतु एक वर्ष में तुम इसी भूमि से 3 बार फसलों का उत्पादन करते हो तो तुमने 3×3=9 हेक्टेयर जमीन में उत्पन्न होने वाले फसल का लाभ उठा लिया|
शस्य गहनता= कुल बोया गया क्षेत्र ×100
शुद्ध बोया गया क्षेत्र
=9 हेक्टेयर =900/3=300
3 हेक्टेयर
6. आर्द्रता के उपलब्ध साधनों के आधार पर कृषि के प्रकारों की जानकारी दें| शुष्क भूमि या बारानी कृषि की विशेषताओं का वर्णन करें|
उत्तर:-
आर्द्रता के उपलब्ध साधनों के आधार पर कृषि के दो प्रकार होते हैं—- सिंचित कृषि, बारानी या वर्षा आधारित कृषि|
सिंचित कृषि—-
फसलों में सिंचाई करने के दो उद्देश्य है—-
फसल की रक्षा के निमित्त या रक्षित सिंचाई
अत्यधिक उत्पादन की दृष्टि से की गयी सिंचाई
रक्षित सिंचाई—–
इसमें सिंचाई उसी प्रकार की जाती है जब समय पर वर्षा नहीं हो पाती और भूमि की नमी समाप्त होने लगती है| जिन क्षेत्रों में सिंचाई के साधनों का अभाव है वहाँ कुएँ या तालाब से इस प्रकार की सिंचाई की जाती है|
उत्पादक सिंचाई—–
खरीफ फसलों को अत्यधिक सिंचाई या जल की आवश्यकता पड़ती है| वहीं उन्नत बीजों की फसलों तथा रासायनिक उर्वरकों के उपयोग के समय भी मिट्टी में पर्याप्त नमी आवश्यक होती है| अन्यथा फसल के खराब होने का भय रहता है| इसलिए भी सिचाई अधिक करनी पड़ती है| गन्ने की फसल को वर्षा होने तक बार बार सिंचाई की आवश्यकता पड़ती है| इसी प्रकार सब्जियों की फसलों को जो जायद के साथ तैयार की जाती है, प्रायः निरंतर सींचना पड़ता है|
बारानी का वर्षा आधारित कृषि—–
भारत में प्रायः 38.67℅ भू भाग पर बारानी खेती होती है| इस वर्षा पर निर्भर कृषि के दो वर्ग है— शुष्क भूमि कृषि एवं आर्द्र भूमि कृषि
शुष्क भूमि कृषि—–
75 सेमी से कम वर्षा के क्षेत्रों में कुछ चुनी हुई फसलें ही उगायी जाती है| ये फसलें शुष्कता को सहन करने में सक्षम होती है, जैसे— ज्वार, बाजरा, मूंग, कपास, चना इत्यादि| शुष्कता सहन करने वाली फसलों की प्रमुख पहचान यह है कि इनकी पत्तियों की निचली सतह पर रोएं होते हैं, इनसे जल का वाष्पन कम होता है|
आर्द्र भूमि कृषि—–
भारत के कुछ भागों में वर्षा काल में पर्याप्त वर्षा होती है तथा कहीं कहीं बाढ़ भी आ जाती है| बाढ़ जहाँ नयी उर्वरक मिट्टी की परत जमा करती है वहीं कयी भागों में इससे मृदा अपरदन की समस्या भी उत्पन्न होती है| इसिलिए खेतों की मेड़ और अधिक मजबूत बनायी जाती है, धान, गन्ना और जूट के उत्पादन के लिए यह आदर्श स्थिति है| साथ ही मक्का, खीरा, ककड़ी, खरबूज इत्यादि की उपज इन क्षेत्रों में अधिक होती है|
शुष्क भूमि या बारानी कृषि की कुछ विशेषताएँ निम्नलिखित हैं——-
वर्षा जल के संग्रहन की विभिन्न विधियों का प्रयोग विभिन्न स्थानों पर पारंपरिक रूप से किया जाता है| इस संग्रहित जल का उपयोग वर्ष के शेष समय में किया जाता है|
तालाबों और छोटे छोटे अवरोधों से वर्षा जल को व्यर्थ बहने से रोका जाता है| यह भूमिगत जल के पुनर्भरण के काम में आता है|
शुष्क भूमि के क्षेत्रों में आर्द्रता की कमी के कारण मृदा में ह्यूमस (जीवांश) की मात्रा कम रहती है|
तेज हवा, आंधी, लू के समय मिट्टी की ऊपरी परत का कटाव अधिक होता है|
कुछ अपवादों को छोड़कर इन क्षेत्रों में प्रायः गरीब किसान ही वैसे होते हैं, जो न तो उन्नत बीज खरीद सकते हैं और न ही उर्वरक पूंजी के अभाव में कृषि का उत्पादन भी कम हो पाता है|
कृषि उत्पादन की कमी को पूरा करने के लिए गाय, बकरी, मुरगी पालन, रेशम उत्पादन जैसे अनेक कुटीर उद्योगों की बहुलता इन क्षेत्रों में मिलती है| अब तो चारागाह और कुछ वन क्षेत्र भी खेतों में बदल गये हैं|
इनकी पत्तियों की निचली सतह पर रोएं होते हैं| इनसे जल का वाष्पन कम होता है| इनकी पत्तियों के मध्य धारी से अन्य धारियाँ लंबवत निकलती है| बीज प्रायः दो दाल के होते हैं तथा जड़ मोटी और लंबी होती है|
7. कृषि विकास के लिए किए गए प्रौद्योगिकीय और संस्थागत सुधारों का विवरण प्रस्तुत करें|
उत्तर:-
कृषि उत्पादन बढ़ाने के लिए सरकार ने प्रौद्योगिकीय तथा संस्थागत दोनों प्रकार के उपाय किये है| परिणामस्वरूप कृषि उत्पादन में एकाएक वृद्धि हुई है| इसे हरित क्रांति का नाम दिया गया| इसी प्रकार पशु नस्ल सुधार तथा पौष्टिक चारा फसलों के उत्पादन से दुग्ध उत्पादन भी कयी गुणा बढ़ गया है| इसे श्वेत क्रांति तथा आपरेशन फ्लड कहा जाता है| ये दोनों क्रांतियाँ लाने में सहायक तकनीकी तथा संस्थागत सुधारों का वर्णन इस प्रकार है——
प्रौद्योगिकीय सुधार—–
रहट का स्थान जल पंप ने तथा हल का स्थान मशीनी टिल्लर ने ले लिया| इसी प्रकार अब हैरो ट्रैक्टर चालित हो गयी है|
अब अधिकतर सामान बैलगाड़ियों की बजाय ट्रकों द्वारा ढोया जाने लगा है| पक्की सड़कें बनने तथा परिवहन के तीव्र साधनों के आरंभ से किसानों को बहुत अधिक लाभ पहुँचा है| अब वे अपना कृषि उत्पादन मंडियों में ले जाने लगे हैं|
सिंचाई की नयी विधियों का प्रचलन हुआ है| इनमें ड्रिप सिंचाई तथा छिड़काव सिंचाई प्रमुख है|
भूमि की उर्वरता को बढ़ाने के लिए उर्वरकों का प्रयोग बढ़ गया है| अब उर्वरकों के साथ साथ जैव खादों का प्रयोग भी किया जाने लगा है|
उत्तम किस्म के बीजों का विकास किया गया है| ये बीज अधिक उत्पादन देते हैं तथा इनसे प्राप्त फसल जल्दी तैयार होती है|
इन सब प्रौद्योगिकीय सुधारों ने 1960-1970 के बीच हरित क्रांति को जन्म दिया|
संस्थागत सुधार—–
इन सुधारों में केंद्र तथा राज्य सरकारों द्वारा उठाए गए विभिन्न प्रकार के पग सम्मिलित हैं| इन पगों का संक्षिप्त वर्णन इस प्रकार है—–
जमींदारी प्रथा समाप्त कर दी गई है| फलस्वरूप कृषक भूमि के स्वामी बन गये हैं|
चकबंदी द्वारा दूर दूर बिखरे खेतों को बड़ी जोतों में बदल दिया जाता है|
सहकारिता आंदोलनों को प्रोत्साहन दिया गया है ताकि किसान मिल जुल कर अपनी ऋण एवं उपज की बिक्री संबंधी समस्याओं को स्वयं ही हल कर सकें|
प्रत्येक जिले में मार्गदर्शक बैंक खोले गए हैं| राष्ट्रीयकृत बैंक भी किसानों को अपेक्षाकृत आसान शर्तों पर ऋण देते हैं|
राष्ट्रीय बीज निगम, केंद्रीय भंडार निगम, भारतीय खादम निगम, भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद, कृषि विश्वविद्यालयों, कृषि प्रदर्शन फार्मों, डेयरी विकास बोर्ड तथा ऐसी ही अन्य संस्थाओं की स्थापना से कृषि की विकास की दर एकाएक बढ़ गई है|
कृषि मूल्य आयोग उपजों के लाभकारी मूल्य निर्धारित करता है| फलस्वरूप किसानों को मजबूरी में अपनी उपज कम कीमत में नहीं बेचना पड़ता है|
टीवी तथा रेडियो पर प्रसारित होने वाले कृषि कार्यक्रमों से किसानों को कृषि संबंधी महत्वपूर्ण जानकारियाँ प्राप्त होती है|
रेडियो तथा टीवी पर किसानों को मौसम संबंधी विशेष जानकारी दी जाती है|
खड़ी फसलों का बीमा किया जाने लगा है| फलस्वरूप किसी प्राकृतिक आपदा अथवा फसल की बीमारी द्वारा फसल नष्ट होने की स्थिति में कृषकों को हानि उठानी पड़ती|
इन सब सुधारों ने कृषि के विकास को आगे बढ़ाया और इनके परिणामों को दृढ़ता प्रदान की|
8. निम्नलिखित फसल की खेती के लिए उपयुक्त दशाओं और प्रमुख उत्पादक क्षेत्रों का वर्णन करें—
गेहूँ, कपास, गन्ना, चाय, जूट|
उत्तर:-
गेहूँ—-
गेहूँ दूसरी महत्वपूर्ण खाद्य फसल है| गेहूँ शीतोष्ण फसल है| चावल की तरह ही चीन के बाद भारत गेहूँ का दूसरा उत्पादक देश है| इसकी निम्नलिखित दशाएँ उपयुक्त है-
फसल—-
रबी तथा अनाज की फसल
वर्षा—-
75 सेंटीमीटर से कम| फसल कटते समय वर्षा हानिकारक है|
मृदा—-
दोमट मिट्टी| जल विकास की व्यवस्था होनी चाहिए|
उत्पादक राज्य—-
गेहूँ की कृषि भारत की उत्तरी पश्चिमी भागों तक सीमित है| पंजाब, हरियाणा, उत्तरी राजस्थान, उत्तरी गुजरात तथा पश्चिमी उत्तर प्रदेश| अब भारत गेहूँ के निर्यात की स्थिति में है|
कपास—–
भारत कपास का तीसरा सबसे बड़ा उत्पादक राज्य है| चीन, संयुक्त राज्य अमेरिका के बाद इसका स्थान है| कपास ऊष्ण तथा उपोष्ण क्षेत्रों में पैदा की जाती है| इसकी निम्नलिखित दशाएँ है——
फसल—–
खरीफ, रेशेवाली नकदी फसल
वर्षा—-
इसे 100 सेंटीमीटर के लगभग वर्षा की आवश्यकता होती है| इसके लिए अधिक तथा समान वितरित वर्षा की आवश्यकता होती है|
तापमान—–
21° सेंटीमीटर, प्रचुर मात्रा में धूप के साथ एक समान उच्च तापमान| कपास के लिए 210 दिन पाला रहित होने चाहिए, क्योंकि पाला कपास की खेती के लिए हानिकारक है|
मृदा—-
अच्छे जल निकास वाली गहरी काली मिट्टी, जिसमें नमी बनाए रखने की क्षमता हो|
उत्पादक राज्य—-
महाराष्ट्र, आंध्र प्रदेश, गुजरात, पंजाब, हरियाणा अग्रणी राज्य है|
गन्ना—-
गन्ना, चीनी और गुड़ खान्डसारी प्रमुख स्रोत है| इसके लिए निम्नलिखित उपयुक्त है—-
फसल—
खरीफ तथा नकदी फसल
वर्षा—-
इसके लिए 75 से 100 सेंटीमीटर वर्षा उपयुक्त रहती है|
तापमान—-
21° सेल्सियस—27° सेल्सियस
मृदा—–
जलोढ़ तथा काली मिट्टी| गन्ने की कृषि के लिए श्रम की आवश्यकता होती है|
उत्पादक राज्य—-
उत्तर प्रदेश, बिहार, महाराष्ट्र, आंध्र प्रदेश, तमिलनाडु और कर्नाटक|
चाय—–
यह एक उष्ण तथा उपोष्ण जलवायु का पौधा है| इसके लिए निम्नलिखित दशाएँ उपयुक्त है——
फसल—-
खरीफ, पेय तथा नकदी फसल है|
वर्षा—-
वार्षिक वर्षा 150 सेमी से अधिक की आवश्यकता है|
तापमान—–
चाय की पैदावार के लिए 20° सेल्सियस से 30° सेल्सियस के मध्य तापमान की आवश्यकता होती है| उच्च आर्द्रता चाय की मुलायम पत्तियों के विकास के लिए अच्छी होती है|
मृदा—–
गहरी तथा जल निकास वाली जलोढ़ मृदा| चाय के रोपण कृषि प्रायः ढालू भूमि पर की जाती है| चाय के लिए अधिक वर्षा की आवश्यकता होती है| लेकिन उसकी जड़ों में पानी नहीं रूकना चाहिए| क्योंकि यह हानिकारक है|
उत्पादक राज्य—-
असम, पश्चिम बंगाल के उत्तरी जिले, रांची पठार (झारखंड), उत्तरांचल की दूनी घाटी, तमिलनाडु तथा केरल उत्पादक राज्य है|
जूट—-
जूट उष्ण और आर्द्र जलवायु की फसल है| इसके लिए निम्नलिखित दशाएँ उपयुक्त है——
फसल—-
खरीफ, रेशेवाली तथा नकदी फसल
वर्षा—-
इसके लिए अधिक वर्षा की आवश्यकता होती है| यह उन प्रदेशों में उगाया जाता है जहाँ 200 सेमी से अधिक वर्षा होती है|
तापमान—–
20° सेल्सियस से 30° सेल्सियस तापमान इसके उत्पादन के लिए उपयुक्त रहता है|
मृदा—-
जल निकास की अच्छी जलोढ़ दोमट मिट्टी की आवश्यकता होती है|
उत्पादक राज्य—–
बिहार, पश्चिम बंगाल, असम, उड़ीसा और मेघालय जूट उत्पादक राज्य है|
कारण बताएं——
1. भारत के पूर्वी भाग में रोटी खाने का प्रचलन है, जबकि पश्चिमी भाग में चावल कम खाने का प्रचलन है| क्यों?
उत्तर:-
परंपरागत रूप से भारत के पूर्वी राज्यों में चावल तथा पश्चिमी राज्यों में गेहूँ का उत्पादन अनुकूल भौगोलिक सुविधाओं के कारण ज्यादा होता है| यही कारण है कि देश के पूर्वी भाग में रोटी खाने का प्रचलन है तथा पश्चिमी भाग में चावल खाने का कम प्रचलन है|
2. जूट की अधिकांश मिलें हुगली नदी के तट पर ही केंद्रित है| क्यों?
उत्तर:-
जूट उत्पन्न करने वाले क्षेत्र मिलों के निकट ही स्थित है|
जूट को साफ करने के लिए पर्याप्त मात्रा में पानी उपलब्ध है|
यहाँ सस्ते जल परिवहन की सुविधा उपलब्ध है|
यहाँ बड़ी संख्या में सस्ते श्रमिक मिल जाते हैं|
यहाँ बैंक, बीमे आदि की सुविधाएँ प्राप्त है|
यहाँ के पत्तनों से जूट के सामान का सरलता से निर्यात किया जा सकता है|
3. भारत में तेलहन फसलों का उत्पादन सबसे अधिक होता है, फिर भी इनका आयात किया जाता है| क्यों?
उत्तर:-
भारत में तेलहन फसलों का उत्पादन सबसे अधिक होता है| तेलहन उत्पन्न करने वाले देशों में भारत का स्थान विश्व में प्रथम माना जाता है|लेकिन समय समय पर इसका आयात भी किया जाता है, क्योंकि उत्पादन की अपेक्षा इसकी खपत बहुत अधिक है| खाद्यान्न तेलहन का प्रयोग भोजन पकाने में किया जाता है| साथ ही अखाद्यान्न तेल विभिन्न उद्योगों में भी आता है| इससे तेलहन की खपत बहुत अधिक होती है जिसके कारण तेलहन का आयात किया जाता है|
4. भारत के पूर्वी भाग में मछली चाव से खायी जाती है| क्यों?
उत्तर:-
मछली का प्रतिव्यक्ति सबसे अधिक उपयोग केरल, तमिलनाडु और पश्चिम बंगाल में होती है| क्योंकि इन क्षेत्रों में मत्स्य पालन अधिक होती है| जिससे मछलियाँ कुछ सस्ते मूल्य पर भी उपलब्ध हो जाती है| लोग चावल के साथ मछलियों का उपयोग स्वाद के लिए करते हैं| लोगों को मछली खाने की भी अधिक आदत है| यही कारण है कि इन क्षेत्रों में मछलियाँ चावल से खायी जाती है|
5. चाय की खेती असम में ज्यादा होती है| क्यों?
उत्तर:-
असम की पर्वतीय ढलानों पर चाय की खेती के लिए उपयुक्त तापमान एवं वर्षा उपलब्ध है| ढालुवां भूमि के कारण वर्षा का पानी झाड़ियों की जड़ों में जम नहीं पाता है| साथ ही, पूर्वी राज्यों से यहाँ सस्ते एवं पर्याप्त मजदूर उपलब्ध हैं| यही कारण है कि असम में चाय की खेती ज्यादा होती है|
6. गन्ने की खेती दक्षिण भारत में बढ़ती जा रही है| क्यों?
उत्तर:-
गन्ना एक ऊष्ण एवं उपोष्णकटिबंधीय फसल है जिसके लिए 21° सेल्सियस से 27° सेल्सियस तापमान और 75 सेंटीमीटर से 100 सेंटीमीटर वार्षिक वर्षा की जरूरत पड़ती है| दक्षिण भारत में उत्तर भारत की तुलना में ये सारी अनुकूल परिस्थितियाँ अधिक उपलब्ध है| साथ ही दक्षिण भारत के गन्ना उत्पादक राज्य तटीय भाग में पड़ने के कारण यहाँ जलवायु में आर्द्रता अधिक होती है जो अधिक उपज में सहायक होती है| इसलिए गन्ने की उपज दक्षिण भारत में अधिक है|
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