Bharti Bhawan Physics Class-10:Chapter-5:Very Short Type Question Answer:Short Type Question Answer:Long Answer Type Question Answer:भौतिकी:कक्षा-10:अध्याय-5:अति लघु उत्तरीय प्रश्न उत्तर:लघु उत्तरीय प्रश्न:दीर्घ उत्तरीय प्रश्न

       

           विद्युत धारा का चुम्बकीय प्रभाव





अति लघु उत्तरीय प्रश्न






1. चुम्बक के उत्तर तथा दक्षिण ध्रुव को मिलानेवाली रेखा को क्या कहते हैं? 
उत्तर:- चुम्बकीय अक्ष
2. चुम्बक के सिरे के निकट का वह बिंदु जहाँ चुम्बक का आकर्षण बल सबसे अधिक होता है उसे क्या कहते हैं? 
उत्तर:- ध्रुव कहते हैं| चुम्बक में दो ध्रुव उत्तरी और दक्षिणी ध्रुव होता है|
3. क्या दो चुम्बकीय रेखाएँ एक दूसरे को काट सकती है? 
उत्तर:- नहीं, 
4. चुंबक के निकट लाने पर दिकसूचक की सूई विक्षेपित क्यों हो जाती है? 
उत्तर:-
दिकसूचक की सूई एक छोटी छड़ चुम्बक होती है जिसके दोनों सिरे उत्तर और दक्षिण दिशाओं की ओर संकेत करते हैं| चुंबक के विपरीत सिरे एक दूसरे को आकर्षित करते हैं और इसी कारण समान सिरे विकर्षित करते हैं| किसी चुम्बक के निकट लाने पर उसका चुम्बकीय बल चुम्बकीय सूई के ध्रुवों पर बल लगाया है और इसिलिए दिकसूचक की सूई विक्षेपित हो जाती है| उसका उत्तरी सिरा चुम्बक के दक्षिणी सिरे की तरफ तथा दक्षिणी सिरा उत्तरी सिरे की ओर घूम जाता है|
5. ओर्स्टेड के प्रयोग में चुंबकीय सुई के विचलन की दिशा किन किन बातों पर निर्भर करती है? 
उत्तर:-
धारा की दिशा, चुम्बकीय सूई की स्थिति
6. परिनालिका किसे कहते हैं? 
उत्तर:-
यह कांच या गत्ता का एक ऐसा खोखला, बेलनाकार नली है जिसके ऊपर तार लपेटकर विद्युत धारा प्रवाहित करने पर छड़ चुम्बक जैसा कार्य करता है|
7. क्रोड किसे कहते हैं? 
उत्तर:-
परिनालिका जिस पदार्थ पर लिपटी होती है, उसे क्रोड कहते हैं|
8. चुम्बकीय क्षेत्र के तीन स्रोतों की सूची बनाइये|
उत्तर:-
एक प्राकृतिक चुम्बक के चारों तरफ चुंबकीय क्षेत्र कहते हैं|
एक धारावाही सीधा चालक के चारों तरफ चुम्बकीय क्षेत्र होता है|
एक धारावाही परिनालिका के चारों तरफ चुम्बकीय क्षेत्र होता है|
9. किसी चुंबकीय क्षेत्र में स्थित विद्युत धारावाही चालक पर आरोपित बल कब अधिकतम होता है? 
उत्तर:-
किसी चुम्बकीय क्षेत्र में स्थित विद्युत धारावाही चालक पर आरोपित बल तब अधिकतम होता है जब विद्युत धारा की दिशा चुम्बकीय क्षेत्र की दिशा के लंबवत् होती है|
10. विद्युत चुम्बकीय प्रेरण किसे कहते हैं? 
उत्तर:-
वह प्रक्रम जिसके द्वारा किसी चालक के परिवर्ती चुम्बकीय क्षेत्र के कारण किसी अन्य चालक में विद्युत धारा प्रेरित करती है| इसे विद्युत चुम्बकीय प्रेरण कहते हैं|
11. विद्युत मोटर में ऊर्जा का रूपांतरण कैसे होता है? 
उत्तर:-
विद्युत मोटर एक ऐसा यंत्र है जिसके द्वारा विद्युत ऊर्जा को यांत्रिक ऊर्जा में परिवर्तित किया जाता है|
12. ऐसी कुछ युक्तियों के नाम लिखिए जिनमें विद्युत मोटर उपयोग किए जाते हैं|
उत्तर:-
विद्युत पंखों, रेफ्रिजरेटरों, कूलरों, वाशिंग मशीनों, कम्प्यूटरों, एमपीथ्री प्लेयरों
13. विद्युत मोटर का सिद्धांत क्या है? 
उत्तर:-
जब अनेक कुंडलियों से युक्त धारा का संवहन करती एक आयताकार कुंडली को शक्तिशाली चुम्बकीय क्षेत्र में रखा जाता है तो यह यांत्रिक बल का कार्य करती हुई निरंतर घूमती है| यह सिद्धांत पूर्ण रूप से गैल्वेनोमीटर तथा अन्य विद्युत उपकरणों की तरह कार्य करता है| यह फ्लेमिंग के बायें हाथ सिद्धांत पर आधारित है|
14. विद्युत जनित्र क्या है? 
उत्तर:-
विद्युत जनित्र एक ऐसा यंत्र है जिसके द्वारा ऊर्जा को विद्युत ऊर्जा में परिवर्तित किया जाता है|
15. विद्युत जनित्र का सिद्धांत लिखिए|
उत्तर:-
विद्युत जनित्र का सिद्धांत विद्युत चुम्बकीय प्रेरण पर आधारित है| जब किसी कुण्डली को तीव्र चुम्बकीय क्षेत्र में घुमाया जाता है तो कुण्डली से संबंधित चुम्बकीय बल रेखाओं की संख्या में परिवर्तन होता है जिसके फलस्वरूप कुण्डली में प्रेरित धारा प्रवाहित होने लगती है| धारा को दिशा फैराडे के दाहिने हाथ के नियम से ज्ञात की जा सकती है|
16. विद्युत जनित्र का क्या उपयोग है? 
उत्तर:-
विद्युत जनित्र का उपयोग घरों एवं व्यावसायिक स्थानों में विद्युत उपस्करणों को चलाने में किया जाता है|
17. दिष्ट धारा के कुछ स्रोतों के नाम लिखें|
उत्तर:-
शुष्क सेल, बटन सेल, लेड बैटरियाँ, डी सी जनित्र
18. प्रत्यावर्ती विद्युत धारा उत्पन्न करने वाले स्रोतों के नाम लिखें|
उत्तर:-
नाभिकीय ऊर्जा संयंत्रों के जनित्र, थर्मल पावर, प्लांट, जलीय पावर, स्टेशन आदि
19. विद्युन्मय, उदासीन तथा भू तारों के विद्युत रोधी आवरण सामान्यतः किस किस रंग के होते हैं? 
उत्तर:-
विद्युन्मय लाल रंग के, उदासीन काले रंग के तथा भू तारें हरे रंग के होते हैं|
20. किसी विद्युत परिपथ में लघुपथन कब होता है? 
उत्तर:-
किसी विद्युत यंत्र में जब धारा कम प्रतिरोध से होकर प्रवाहित हो जाती है तो उसे लघुपथन कहते हैं| इस स्थिति में किसी परिपथ में विद्युत धारा अचानक बहुत अधिक हो जाता है जब विद्युत पथ में विद्युन्मय तार उदासीन तार के संपर्क में आ जाती है तो प्रतिरोध के शून्य हो जाने के कारण ऐसा होता है| लघुपथन के कारण आग लग सकती है और विद्युत परिपथ में लगे उपकरण क्षतिग्रस्त हो सकते हैं| इससे बचने के लिए विद्युत फ्यूज का प्रयोग किया जाना चाहिए
21. भू संपर्क तार का अर्थ क्या कार्य है? 
उत्तर:-
भू संपर्क तार हरे रंग के विद्युत रोधी आवरण से ढंकी रहने वाली वह सुरक्षा तार है जो घर के निकट भूमि के भीतर बहुत गहराई पर दबी धातु की प्लेट से संयोजित रहती है| यह तार विद्युत धारा के लिए अल्प प्रतिरोध का चालन पथ प्रस्तुत करती है| किसी विद्युत क्षरण होने की अवस्था पर साधित्र का विभव भूमि के विभव के बराबर हो जाता है जिसके परिणामस्वरूप साधित्र का उपयोग करने वाले व्यक्ति को तीव्र विद्युत आघात से सुरक्षा हो जाती है|
22. घरेलू कार्यों के लिए व्यवहार की जानेवाली बिजली क्या है? 
उत्तर:-  मेन लाइन पावर| 220 वोल्ट, 50 हर्ट्ज कहते हैं|
23. घरों के विद्युत परिपथ में विद्युत उपकरण किस क्रम में जोड़ा जाता है? 
उत्तर:- समांतर क्रम
24. मुख्य धारा में वोल्टता का अधिकतम मान जिसके लिए फ्यूज पिघल जाता है, वह फ्यूज के किस गुण को निर्धारित करता है? 
उत्तर:-
फ्यूज का उपयोग निम्न या उच्च वोल्टता को नियंत्रित करने के लिए किया जाता है अर्थात उच्च वोल्टता होने पर फ्यूज पिघल जाता है तथा वाइरिंग के तार की सुरक्षा हो जाती है अतः यह सुरक्षात्मक गुण को दर्शाता है| जिसे फ्यूज की क्षमता कहते हैं|
25. क्या मैक्सवेल के दक्षिण हस्त नियम में मुट्ठी की अंगुलियों की दिशा चुम्बकीय क्षेत्र की दिशा को प्रदर्शित करती है? 
उत्तर:-
हाँ, मैक्सवेल के दक्षिण हस्त नियम में मुट्ठी की अंगुलियों की दिशा चुम्बकीय क्षेत्र की दिशा को प्रदर्शित करती है|
लघु उत्तरीय प्रश्न






1. चुम्बकीय पदार्थ और अचुम्बकीय पदार्थ क्या है? 
उत्तर:-
चुम्बकीय पदार्थ—-
वैसे पदार्थ जिन्हें चुंबक आकर्षित करता है अथवा जिनसे कृत्रिम चुंबक बनाए जा सकते हैं, चुम्बकीय पदार्थ कहलाते हैं, जैसे—लोहा, कोबाल्ट, निकेल तथा उनके कुछ मिश्रधातु
अचुम्बकीय पदार्थ—-
वैसे पदार्थ जिन्हें चुम्बक आकर्षित नहीं करता, अचुम्बकीय पदार्थ कहलाते हैं| जैसे— कांच, कागज, प्लास्टिक, पीतल इत्यादि
3. (क) चुम्बकीय क्षेत्र रेखाएँ क्या होती है? 
(ख) इनके प्रमुख गुण क्या होते हैं? 
उत्तर:-
(क) चुम्बक के चारों ओर उसके चुम्बकीय क्षेत्र में क्षेत्र रेखाएँ व्यवस्थित होती है|
(ख) इनके प्रमुख गुण निम्नलिखित हैं—-
1. किसी चुम्बक के चुम्बकीय क्षेत्र में क्षेत्र रेखाएँ एक संतत बंद चक्र है और वे चुम्बक के उत्तरी ध्रुव से निकलकर दक्षिणी ध्रुव में प्रवेश करती है और पुनः चुम्बक के भीतर होती हुई उत्तरी ध्रुव पर वापस आ जाती है|
2. ध्रुवों के समीप क्षेत्र रेखाएँ धनी होती है, परन्तु ज्यों ज्यों उनकी ध्रुवों से बढ़ती जाती है, उनका घनत्व घटता जाता है|
3. क्षेत्र रेखा के किसी बिंदु पर खींची गयी स्पर्श रेखा उस बिंदु पर उस क्षेत्र की दिशा बताती है|
4. दो चुम्बकीय क्षेत्र रेखाएँ एक दूसरे को प्रतिच्छेद क्यों नहीं करती? 
उत्तर:-
यदि दो चुम्बकीय क्षेत्र रेखाएँ किसी बिंदु पर वे एक दूसरे को प्रतिच्छेद करें तो उस बिंदु पर सूई दो दिशाओं की ओर संकेत करेगी, जो संभव नहीं है| अतः ये क्षेत्र रेखाएँ परस्पर प्रतिच्छेदन नहीं करती है|
5. एकसमान चुम्बकीय क्षेत्र को निरूपित करनेवाली चुम्बकीय क्षेत्र रेखाएँ कैसी होती है? 
उत्तर:-
समांतर और एक दूसरे से बराबर दूरी पर होती है|
6. सीधी धारा के कारण उत्पन्न चुम्बकीय क्षेत्र रेखाएँ कैसी होती है? 
उत्तर:- संकेन्द्री वृत्तों के पैटर्न में होती है|
7. मेज के तल में पड़े तार के वृत्ताकार पाश में दक्षिणावर्त विद्युत धारा प्रवाहित हो रही है| दक्षिण हस्त अंगुष्ठ नियम को लागू करके पाश के भीतर तथा बाहर चुम्बकीय क्षेत्र की दिशा ज्ञात कीजिए|
उत्तर:-जब मेज के तल पर तार का वृत्ताकार पाश पड़ा हो तो पाश के अंतर चुम्बकीय क्षेत्र तल के लंबवत् ऊपर से नीचे की तरफ होगा|
8. मैक्सवेल का दक्षिण हस्त नियम लिखें|
अथवा, 
किसी धारावाही सीधे चालक द्वारा उत्पन्न चुम्बकीय क्षेत्र की दिशा ज्ञात करने के लिए जो नियम है उसका नाम और कथन लिखिये|
उत्तर:-
यदि धारावाही तार को दाएँ हाथ की मुट्ठी में इस प्रकार पकड़ा जाए कि अंगुठा धारा की दिशा की ओर संकेत करता हो तो हाथ की अन्य अंगुलियाँ चुम्बकीय क्षेत्र की दिशा व्यक्त करेंगी|
10. परिनालिका चुम्बक की भांति कैसे व्यवहार करती है? क्या आप किसी छड़ चुम्बक की सहायता से किसी विद्युत धारावाही परिनालिका के उत्तर ध्रुव तथा दक्षिणी ध्रुव का निर्धारण कर सकते हैं? 
उत्तर:-
परिनालिका चुम्बक की भांति व्यवहार करती है| इसका एक सिरा उत्तर ध्रुव तथा दूसरा सिरा दक्षिण ध्रुव की तरह व्यवहार करता है| परिनालिका के भीतर चुम्बकीय क्षेत्र देखा समांतर सरल रेखाओं की भांति होता है| किसी छड़ चुम्बक की सहायता से किसी विद्युत धारावाही परिनालिका के दोनों ध्रुवों को निर्धारित किया जा सकता है| छड़ चुम्बक के उत्तरी ध्रुव को परिनालिका के एक सिरे के निकट लाएं| यदि दोनों के बीच आकर्षण हो तो परिनालिका का वही सिरा दक्षिण ध्रुव होगा| यदि उन दोनों में प्रतिकर्षण हो तो वह सिरा उत्तरी ध्रुव होगा|
11. विद्युत चुम्बक और स्थायी चुम्बक में क्या अंतर है? 
उत्तर:-
विद्युत चुम्बक—– 
यह जितनी देर तक धारा बहती है उतने समय तक यह चुम्बक का गुण प्रदर्शित करता है| धारा के बंद होते ही इसमें चुम्बकीय गुण समाप्त हो जाता है|
इसमें अधिक शक्तिशाली चुम्बकीय बल रहता है|
धारा की प्रबलता या कुंडली में फेरों की संख्या में परिवर्तन करके इसकी शक्ति को इच्छानुसार बदला जा सकता है|
धारा की दिशा के बदलते ही इसके ध्रुवों की प्रकृति बदल जाती है|
किसी चालक की कुंडली में धारा बहाने पर वह कुंडली अस्थायी चुम्बक में बदल जाता है|
स्थायी चुम्बक—-
यह अधिक दिनों तक अपने चुम्बकीय गुण को बनाये रखता है|
इसमें अपेक्षाकृत कम शक्तिशाली चुम्बकीय बल रहता है|
इसकी शक्ति नियत है, इसे हम बढ़ा या घटा नहीं सकते हैं|
इसके ध्रुवों की प्रकृति नियत रहती है जिसे हम आसनी से नहीं बदल सकते हैं|
यह चुम्बकीय पदार्थ का बना होता है|
12. विद्युत चुम्बक में नर्म लौह क्रोड का इस्तेमाल क्यों होता है? 
उत्तर:-
नर्म लोहा को आसानी से चुम्बकीय और विचुम्बकीय किया जा सकता है| जब परिनालिका में विद्युत धारा प्रवाहित किया जाता है तब परिनालिका में चुम्बकीय क्षेत्र उत्पन्न होता है जिससे नर्म लोहा का छड़ शक्तिशाली चुम्बक बन जाता है जब विद्युत धारा का प्रवाह बंद कर दिया जाता है तो नर्म लोहा अपना चुम्बकत्व जल्द खो देता है| इसी गुण के कारण इसका इस्तेमाल विद्युत चुम्बक बनाने में किया जाता है|
13. फ्लेमिंग का वाम हस्त नियम लिखें और समझाएँ|
अथवा
यदि चुम्बकीय क्षेत्र धारावाही चालक के लंबवत हो तो चालक पर लगे हुए बल की दिशा कैसे प्राप्त होती है? 
उत्तर:-
यदि हम वाम हस्त की तीन अंगुलियों अंगूठा, तर्जनी एवं मध्यमा को एक दूसरे के लंबवत् इस प्रकार फैलाएं कि तर्जनी चुम्बकीय क्षेत्र की दिशा एवं मध्यमा चालक में प्रवाहित की दिशा को दर्शाएं तो चालक पर लगने वाले बल की दिशा अंगूठे की दिशा में होती है|
14. मान लीजिए आप किसी कमरे में अपनी पीठ को किसी एक दीवार से लगातार बैठे हैं| कोई इलेक्ट्रॉन पुंज आपके पीछे की दीवार से सामने वाली दीवार की ओर क्षैतिज गमन करते हुए किसी प्रबल चुम्बकीय क्षेत्र द्वारा आपके दाईं ओर विक्षेपित हो जाता है| चुम्बकीय क्षेत्र की दिशा क्या है? 
उत्तर:-
फ्लेमिंग के वाम हस्त नियम के अनुसार आरोपित बल की दिशा चुम्बकीय विद्युत धारा दोनों की दिशाओं के लंबवत् होती है| विद्युत धारा की दिशा इलेक्ट्रॉनों की गति की दिशा के विपरीत होती है| इसिलिए चुम्बकीय क्षेत्र की दिशा नीचे की ओर होगी|
15. कोई विद्युत रोधी तांबे के तार की कुंडली किसी गैल्वेनोमीटर से संयोजित है| क्या होगा यदि कोई छड़ चुम्बक
(क) कुंडली में धकेला जाए
(ख) कुंडली के भीतर से बाहर खींचा जाए
(ग) कुंडली के भीतर स्थिर रखा जाए
उत्तर:-
(क) जैसे ही छड़ चुम्बक कुंडली में धकेला जाता है वैसे ही गैल्वेनोमीटर की सूई में क्षणिक विक्षेप होता है| यह कुंडली में विद्युत धारा की उपस्थिति का संकेत देता है|
(ख) जब चुंबक को कुंडली के भीतर से बाहर खींचा जाता है तो सूई में क्षणिक विक्षेप होता है पर विपरीत दिशा में होता है|
(ग)यदि चुंबक को कुंडली के भीतर स्थिर रखा जाता है तो कुंडली में कोई विद्युत धारा उत्पन्न नहीं होती| विक्षेप शून्य हो जाता है|
16. दो वृत्ताकार कुंडली A तथा B एक दूसरे के निकट स्थित है| यदि कुंडली A में विद्युत धारा में कोई परिवर्तन न करें, तो क्या कुंडली B में कोई विद्युत धारा प्रेरित होगी? कारण लिखिए|
उत्तर:-
यदि कुंडली में A में विद्युत धारा में कोई परिवर्तन करते हैं तो कुंडली B में विद्युत धारा प्रेरित होगी| जैसे ही कुंडली A में प्रवाहित धारा में परिवर्तन होता है इससे जुड़े चुम्बकीय क्षेत्र में भी परिवर्तन हो जाता है| इस प्रकार कुंडली B के चारों ओर भी चुम्बकीय क्षेत्र रेखाएँ भी परिवर्तित होती है| अतः कुंडली B में संबद्ध चुम्बकीय क्षेत्र रेखाओं में भी परिवर्तन ही उसमें प्रेरित धारा उत्पन्न होने के कारण होता है|
17. फ्लेमिंग का दक्षिण हस्त नियम लिखें और समझाएँ|
उत्तर:-
फ्लेमिंग के दक्षिण हस्त नियम को इस प्रकार बताया जा सकता है—- दक्षिण हाथ के अंगूठा, तर्जनी और मध्यमा के परस्पर समकोणिक फैलाएं| यदि तर्जनी चुम्बकीय क्षेत्र की दिशा का संकेत करती हो और अंगूठा गति की दिशा में हो तो मध्यमा प्रेरित धारा की दिशा का संकेत करेगी| इस नियम को डायनेमो नियम भी कहते हैं|
18. विद्युत चुम्बकीय प्रेरण से आप क्या समझते हैं? प्रयोग द्वारा स्पष्ट करें|
उत्तर:-
लूप में यह विद्युत धारा उतने ही समय तक प्रवाहित होते हैं जब तक कि लूप तथा चुम्बक के बीच आपेक्षिक गति रहता है| इस प्रकार से उत्पन्न होने वाली धारा को प्रेरित धारा तथा इस घटना को विद्युत चुम्बकीय प्रेरण कहते हैं|
क्रियाकलाप—-
एक लंबी कांटी लेकर उस पर दो कुंडलियाँ अगल बगल लपेटते है| उनमें से एक कुंडली को स्विच से होकर एक बैटरी से जोड़ते हैं| इसे हम प्राथमिक कुंडली कहते हैं| दूसरी कुंडली को एक गैल्वेनोमीटर G से जोड़ते हैं| इस कुंडली को द्वितीयक कुंडली कहा जाता है| गैल्वेनोमीटर को देखते हुए स्विच दबाते हैं| हम पाते हैं कि गैल्वेनोमीटर की सूई हल्का सा विक्षेपित होकर पुनः अपने प्रारंभिक (बिना विक्षेप वाली) स्थिति में वापस आ जाती है, जबकि स्विच अभी भी बंद है|अब स्विच को खोल देते हैं| इस बार गैल्वेनोमीटर की सूई विपरीत दिशा में विक्षेपित होकर अपनी प्रारंभिक स्थिति में वापस आ जाती है| जब प्राथमिक कुंडली में धारा बढती या घटती है, तब उसके कारण उत्पन्न चुम्बकीय क्षेत्र भी बढता या घटता है, अर्थात परिवर्तित होता है| चुम्बकीय क्षेत्र में होने वाले इसी परिवर्तन के कारण द्वितीयक कुंडली में विद्युत प्रेरित होती है|
19. विद्युत मोटर में विभक्त वलय की क्या भूमिका है? 
उत्तर:-
विद्युत मोटर में विभक्त वलय दिक् परिवर्तक का कार्य करता है| अर्थात परिपथ में विद्युत धारा के प्रवाह की दिशा को परिवर्तित (या उत्क्रमित) करता है| इससे आर्मेचर की भुजा पर लगने बल की दिशा भी परिवर्तित होती है| इससे आर्मेचर एक ही दिशा में घूर्णन कर सकता है|
20. दिष्ट धारा और प्रत्यावर्ती धारा में अंतर स्पष्ट करें|
उत्तर:-
दिष्ट धारा—
केवल धारा का मान बदलता है अर्थात दिष्ट धारा एक ही दिशा में बहती है|
इसे उत्पन्न करने में कठिनाई होती है|
इसे ए०सी० में बदलने में काफी कठिनाई होती है|
यह ए०सी० की अपेक्षा कम घातक है|
यह चालक के अंदर से प्रवाहित होता है|
प्रत्यावर्ती धारा—-
धारा का मान तथा दिशा समय के साथ बदलता है|
इसे आसानी से उत्पन्न किया जा सकता है|
इसे आसानी से डी०सी० में बदला जा सकता है|
यह डी०सी० की अपेक्षा अधिक घातक है|
यह चालक के सतह पर प्रवाहित होता है|
21. निम्नलिखित की दिशा को निर्धारित करने वाला नियम लिखें—
(क) किसी विद्युत धारावाही सीधे चालक के चारों ओर उत्पन्न चुम्बकीय क्षेत्र
(ख) किसी चुम्बकीय क्षेत्र में, क्षेत्र के लंबवत् स्थित, विद्युत धारावाही सीधे चालक पर आरोपित बल, तथा
(ग) किसी चुम्बकीय क्षेत्र में किसी कुंडली के घूर्णन करने पर उस कुंडली में उत्पन्न प्रेरित विद्युत धारा|
उत्तर:-
(क) मैक्सवेल का दक्षिण हस्त नियम|
(ख) फ्लेमिंग का वाम हस्त नियम|
(ग) फ्लेमिंग का दक्षिण हस्त नियम|
22. मेन लाइन में अतिभारण तथा लघुपथन कैसे उत्पन्न होता है? 
उत्तर:-
बहुत सारे विद्युत उपकरणों को एक साथ चालू कर देने पर परिपथ में विद्युत उपकरणों की कुल शक्ति उसकी स्वीकृत सीमा से बढ़ जाती है तो उपकरण आवश्यकता से अधिक धारा खींचते है इसे ही अतिभारण कहते हैं| इस स्थिति में परिपथ की प्रबलता एकाएक बढ़ जाती है| इससे परिपथ में संयोजक तार में आग लग सकती या फ्यूज गल सकता है| इसी तरह तारों के खराब या क्षतिग्रस्त हो जाने से जीवीत तार एवं उदासीन तार एक दूसरे से सट जाने से परिपथ का प्रतिरोध लगभग शून्य हो जाता है इसे लघुपथन कहा जाता है| लघुपथन से धारा की प्रबलता बहुत अधिक हो जाती है और तार में आग लग सकती है|
23. धातु के आवरण वाले साधित्रों को भूसंपर्कित करना क्यों आवश्यक है? 
उत्तर:-
धातु के आवरण वाले विद्युत साधित्रों को भू संपर्कित करना आवश्यक होता है| इसमें साधित्रों तथा उनका प्रयोग करने वालों की सुरक्षा हो जाती है| धातु के आवरणों से संयोजित भू संपर्क तार विद्युत धारा के लिए अल्प प्रतिरोध का चालन पथ प्रस्तुत कर देता है, धात्विक साधित्रों का भूमि से संपर्क हो जाने के कारण धारा उन साधित्रों का प्रयोग करने वालों के शरीर से नहीं गुजरती जिससे वे गंभीर झटके से बच जाते हैं|
24. बहुत से विद्युत उपकरण तथा परिपथ भू संपर्क में होते हैं इसका क्या कारण है? 
उत्तर:-
किसी भी विद्युत उपकरण के लिए दो तारों की आवश्यकता होती है— एक जिसमें धारा गुजरती है और दूसरी उदासीन| अधिक ऊष्मा उत्पत्ति या टूट फूट के कारण कभी कभी धातु मुक्त उपकरण को सीधा स्पर्श कर लेती है जिससे उपकरण को छू जाने पर शाक लगता है| इससे बचने के लिए उपकरण के धात्विक भाग का संबंध धरती से कर दिया जाता है| तीन पिन वाले प्लग के साथ इसे जोड़ दिया जाता है| इसे धरती में बहुत गहराई से दबाई गयी तार से संबंधित किया जाता है| शाट सर्किट के समय विद्युत धारा उपकरण से धरती में चली जाती है| इससे फ्यूज पिघल जाता है| शाट सर्किट और विद्युत शाट से बचने के लिए यह बहुत ही उपयोगी है|
25. घरों की वायरिंग में दो ऐम्पियर के परिपथों का उपयोग क्यों किया जाता है? 
उत्तर:-
घरों में जो विद्युत आपूर्ति की जाती है वह 220 वोल्ट पर प्रत्यावर्ती वोल्टता होती है| जिसकी ध्रुवता प्रत्येक सेकेंड में 100 बार परिवर्तित होती है| इसकी आवृत्ति 50 हर्ट्ज होती है| इसे मेन लाइन पावर कहते हैं| मेन्स में प्रायः दो तार एक से 5 ऐम्पियर की धारा प्रवाहित तथा दूसरे से 15 ऐम्पियर की धारा प्रवाहित होती है| 5 ऐम्पियर को घरेलू लाइन तथा 15 ऐम्पियर को पावर लाइन कहते हैं| घरों में विभिन्न प्रकार के विद्युत उपकरण बल्ब, ट्यूब, पंखे, हीटर, आयरन, मोटर, टेलीविजन, रेफ्रिजरेटर, मिक्सी आदि का व्यवहार होता है| इनमें बल्ब, ट्यूब, पंखे, टेलीविजन आदि के लिए 5 ऐम्पियर तथा मोटर, हीटर, रेफ्रिजरेटर आदि के लिए 15 ऐम्पियर तक की धारा की आवश्यकता होती है| इसी कारण से घरों में मेन्स में दो प्रकार के तार होते हैं|
26. घरों के विद्युत परिपथों में विद्युत उपकरण समांतर क्रम में क्यों जोड़े जाते हैं? 
उत्तर:-
घरों में प्रत्येक परिपथ में विद्युत उपकरण विद्युन्मय तथा उदासीन तारों के बीच समांतर क्रम में जुड़े होते हैं| प्रत्येक उपकरण में धारा के प्रवाह को संचालित करने के लिए अलग अलग स्विच होते हैं| पार्श्वबद्ध या समांतर क्रम में जोड़ने से सभी उपकरणों की बोल्टता एक समान बनी रहती है| इस संयोजन या वायरिंग से एक मुख्य लाभ यह भी है कि एक परिपथ का स्विच बंद करने से दूसरे पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता है| इस कारण घरों में विद्युत उपकरण को समांतर क्रम में जोड़ा जाता है|
27. विद्युत परिपथों को अतिभारण और लघुपथन से कैसे सुरक्षित किया जा सकता है? 
उत्तर:-
विद्युत परिपथों को अतिभारण और लघुपथन के कारण नष्ट होने से बचने के लिए कयी सावधानियाँ और सुरक्षा के उपाय किए जाते हैं| विद्युत परिपथ में काम आनेवाले सभी तारों के ऊपर अच्छे विद्युत रोधी पदार्थ की परत लगायी जाती है| इसके अतिरिक्त उनपर कपड़े, रबड़ या प्लास्टिक की परत भी चढ़ाई जाती है| इसके फलस्वरूप तार एक दूसरे के संपर्क में नहीं आते है जिससे लघुपथन नहीं होता है| इसके अतिरिक्त परिपथों को विभिन्न भागों में बांटने से न केवल प्रत्येक भाग की मरम्मत आसानी से हो जाते हैं, बल्कि वह अतिभारण या लघुपथन से होनेवाली क्षति को सीमित रखता है|
28. विद्युत मिस्त्री विद्युत परिपथों पर कार्य करते समय रबर के जूते या दस्ताने क्यों पहनते है? 
उत्तर:-
विद्युत के परिपथ के किसी भाग को सुधारने के लिए दस्ताने या जूते का प्रयोग करने से तथा सूखी लकड़ी पर खड़ा होकर कार्य करने से झटका नहीं लगता क्योंकि रबड़ तथा लकड़ी विद्युत की कुचालक होती है|
29. विद्युत परिपथों तथा साधित्रों में सामान्यतः उपयोग होने वाले दो सुरक्षा उपायों के नाम लिखिए|
उत्तर:-
भू संपर्क तार, विद्युत फ्यूज
30. 2kW शक्ति अनुमतांक का एक विद्युत तंदूर किसी घरेलू विद्युत परिपथ 220 V में प्रचलित किया जाता है जिसका विद्युत धारा अनुमतांक 5A है, इससे आप किस परिणाम की अपेक्षा करते हैं?स्पष्ट कीजिये| 
उत्तर:-
विद्युत तंदूर की शक्ति, P=2kW, V=200V
I=P/V=2000W/220V=9.09A
विद्युत धारा का अनुमतांक 5A है| विद्युत तन्दूर इससे कहीं अधिक विद्युत धारा अतिभारण हो जाएगा| फ्यूज उड़ जाएंगे और विद्युत पथ अवरोधित हो जाएगा|
31. घरेलू विद्युत परिपथों में अतिभारण से बचने के लिए क्या सावधानी बरतनी चाहिए? 
उत्तर:-
विद्युत परिपथ में काम आने वाली सभी तारों के ऊपर अच्छे विद्युत रोधी पदार्थ की परत लगाई जानी चाहिए| उन पर कपड़े, रबड़ या प्लास्टिक की परत चढ़ा देना चाहिए| सबसे ज्यादा जरूरी है कि सीमा से ज्यादा सामर्थ्य नहीं देना चाहिए| यानी स्वीकृति सीमा से ज्यादा शक्ति प्रबलता नहीं बढाई जानी चाहिए| उत्तम गुणवत्ता वाले विद्युत तार का इस्तेमाल करना चाहिए| हमें एक साथ विभिन्न उपकरणों को चालू करने से बचना चाहिए| इन कारणों से हम अतिभारण से बच सकते हैं|
32. फ्यूज तार विद्युत परिपथ में क्यों लगाये जाते हैं? फ्यूज की क्षमता का क्या तात्पर्य है? 
उत्तर:- फ्यूज तार सुरक्षा की एक युक्ति है| विद्युत परिपथों में अचानक धारा का मान अतिभारण और लघुपथन के कारणों से अत्यधिक बढ़ जाने से परिपथ में लगी युक्तियाँ जलकर नष्ट हो जाती है| ऐसी घटनाओं से बचाव के लिए परिपथ में जहाँ तहाँ फ्यूज श्रेणी में संयोजित किये जाते हैं| फ्यूज ऐसे पदार्थ का टुकड़ा होता है जिसका गलनांक बहुत कम होता है| जब कभी धारा अत्यधिक बढ़ जाती है, तो सबसे पहले फ्यूज गर्म होकर गल जाता है और परिपथ टूट जाता है जिससे उसमें लगी युक्तियाँ यथा बल्ब, पंखे, हीटर आदि जलने से बच जाते हैं|
फ्यूज की क्षमता—-
फ्यूज ऐसे तार का एक टुकड़ा होता है जिसके पदार्थ की प्रतिरोधकता बहुत अधिक होती है और उसका गलनांक बहुत कम होता है|
दीर्घ उत्तरीय प्रश्न






1. धारावाही तार अपने चारों ओर चुम्बकीय क्षेत्र उत्पन्न करता है| इसे दिखाने के लिए ओर्स्टेड के प्रयोग का वर्णन करें|
उत्तर:-
एक मजबूत कार्डबोर्ड के टुकड़े को क्षैतिज आधार पर रखा जाता है| इसके बीचोबीच एक छिद्र कर दिया जाता है| एक तांबे के तार को छिद्र से होकर इस प्रकार लगाया जाता है कि तांबे का तार कार्डबोर्ड के तल के लंबवत् हो| तार के दोनों सिरों के बैटरी के दोनों ध्रुवों से जोड़ दिया जाता है| परिपथ में एक कुंजी लगा दी जाती है| कार्डबोर्ड पर लोहे के बुरादे छिड़क दिए जाते हैं| अब तार में विद्युतधारा कुंजी को दबाकर प्रवाहित की जाती है| कार्डबोर्ड को थपथपाया जाता है| देखते हैं कि लोहे की कतरनी समकेन्द्रिक वृत्तों में व्यवस्थित हो जाती है| इस प्रयोग से स्पष्ट है कि चालक के समीप चुम्बकीय क्षेत्र उपस्थित होता है और बलनरेखाओं की व्यवस्था समकेन्द्रित वृत्तों में होती है| यदि लौह कतरन की जगह चुम्बकीय सूई रखी जाय तो वह भी इन्हीं वृत्तों पर विक्षेपित होकर चली आती है| अतः विद्युत के कारण चुम्बकीय क्षेत्र उत्पन्न होता है|
2. धारावाही सीधे तार या चालक के कारण चुम्बकीय बल रेखाएँ या चुम्बकीय क्षेत्र पैटर्न दिखाने के लिए एक प्रयोग का वर्णन करें|
उत्तर:-
विद्युत धारा चुम्बकीय प्रभाव उत्पन्न करती है| इसे दिखाने के लिए निम्नलिखित प्रयोग किया जाता है|
प्रयोग—
लगभग बीस फेरों वाली विद्युत रोधित के तार की एक बड़ी आयाताकार कुंडली इस प्रकार ऊर्ध्वाधरत: व्यवस्थित करते हैं कि इसकी एक ऊर्ध्वाधर भुजा कार्डबोर्ड या गत्ते के एक टुकड़े के केंद्र में बने छिद्र से होकर गुजरे| कार्डबोर्ड को क्षैतिज आधार पर रखते हैं| कुंडली के सिरों को 6 वोल्ट की बैटरी, ऐमीटर, धारा नियंत्रक और स्विच से श्रेणीक्रम में जोड़ते हैं| कार्डबोर्ड पर लौह चूर्ण की एक पतली परत छिड़क देते हैं| अब धारा नियंत्रक और स्विच की सहायता से कुंडली में करीब 3 ऐम्पियर की धारा प्रवाहित करते हैं और कार्डबोर्ड को धीरे से थपथपाते है| हम देखते हैं कि लौह चूर्ण चुम्बकित होकर तार के चारों ओर ऐसे संकेंद्रिक वृत्तों में व्यवस्थित हो जाता है जिसका केन्द्र तार पर होता है| इस चुम्बकीय क्षेत्र के आलेखन के लिए चुम्बकीय सूई का व्यवहार किया जाता है| सूई चुम्बकीय क्षेत्र की दिशा बताती है| अब बैटरी से जुड़े तारों के सिरों को आपस में बदल देते हैं जिससे धारा विपरीत दिशा में प्रवाहित होने लगती है| चुम्बकीय सूई विपरीत दिशा में घूम जाती है, किंतु चुम्बकीय क्षेत्र का पैटर्न या प्रतिरूप पहले ही जैसा रहता है|
3. किसी धारावाही वृत्ताकार कुंडली के कारण चुम्बकीय क्षेत्र पैटर्न के लिए एक प्रयोग का वर्णन करें|
उत्तर:-
तांबे का एक मोटा तार लेकर उसे वृत्ताकार रूप में मोड़ देते हैं| एक गत्ते के टुकड़े को क्षैतिज रूप में व्यवस्थित करते हैं और गत्ते के टुकड़े में दो छेद कर उसमें वृत्ताकार तार को इस प्रकार पाते हैं कि तार का आधा वृत्त के ऊपर हो और आधा नीचे| तार के खुले सिरों को एक बैटरी तथा एक स्विच से जोड़ देते हैं| गत्ते के पूरे टुकड़े पर कुछ लौह चूर्ण छिड़क देते हैं| अब स्विच को स्विच बंद कर तार में विद्युत धारा प्रवाहित करते हैं और गत्ते के टुकड़े को धीरे धीरे थपथपाते है| लौह चूर्ण दोनों तारों के चारों ओर संकेन्द्रिक वृत्तों में व्यवस्थित हो जाता है| इनसे वृत्तीय लूप में धारा के कारण चुम्बकीय क्षेत्र पैटर्न का पता चलता है| जहाँ धारा गत्ते के भीतर जाती है तथा जहाँ धारा गत्ते से बाहर आती है उनके चारों ओर कुछ दूर तक चुम्बकीय क्षेत्र रेखाओं का प्रतिरूप वृत्तीय होता है| किंतु धारा से दूर रहने पर क्षेत्र रेखाओं का प्रतिरूप वृत्तीयता से विचलित होता है| धारा के केंद्र पर तथा केन्द्र के निकट और उसके दोनों ओर क्षेत्र रेखाओं का प्रतिरूप लगभग सरल रेखीय होता है|
4. धारावाही परिनालिका के चुम्बकीय क्षेत्र का वर्णन करें|
उत्तर:-
यदि किसी चालकीय तार को बेलनाकार कुंडली के रूप में इस प्रकार लपेटा जाये कि कुंडली का व्यास बेलन की लंबाई के सापेक्ष बहुत छोटा हो तो इस व्यवस्था को परिनालिका कहते हैं| प्रयोगशाला में इस कार्ड बोर्ड अथवा मोटे कागज की कम व्यास की लंबी खोखली नली के ऊपर तांबे के विद्युत रूद्ध (धागा लिपटा हुआ अथवा प्लास्टिक चढ़ा हुआ) तार के बहुत से फेरे पास पास लपेट कर बनाया जाता है| परिनालिका में किसी बाहरी स्रोत द्वारा विद्युत धारा प्रवाहित करने पर एक दंड चुम्बक की भांति व्यवहार करने लगती है| इसके सिरे (चुम्बक के समान) उत्तरी व दक्षिणी ध्रुव होते हैं| परिनालिका के सिरों की ध्रुवता उसमें प्रवाहित धारा की दिशा पर निर्भर करती है| परिनालिका में चुम्बकत्व का गुण उसी समय तक विद्यमान रहता है जब तक कि उसमें विद्युत धारा प्रवाहित होती है| धारा के बंद होते ही इसका चुम्बकत्व भी समाप्त हो जाता है| चित्र में धारावाही परिनालिका के कारण चुम्बकीय बल रेखाएँ दर्शायी गयी है| इसके सिरों की ध्रुवता ज्ञात करने के लिए यदि किसी सिरे को सामने से देखने पर परिनालिका पर लिपटे तार की कुंडली में प्रवाहित धारा की दिशा वामावर्त है अर्थात घड़ी की सूई के चलने की दिशा के विपरीत दिशा में है तो वह सिरा उत्तरी ध्रुव होगा| यदि धारा की दिशा दक्षिणावर्त है अर्थात घड़ी की सूई के चलने की दिशा में तो वह सिरा दक्षिणी ध्रुव होगा|
5. विद्युत चुम्बक की रचना सचित्र समझाएँ|
उत्तर:-
जब तक परिनालिका में धारा प्रवाहित होती रहती है तब तक वह चुम्बक जैसा व्यवहार करता है, परंतु जैसे ही धारा का प्रवाह बंद कर दिया जाता है उसका चुम्बकत्व नष्ट हो जाता है| इस प्रकार के चुम्बक को विद्युत चुम्बक कहते हैं| अतः विद्युत चुम्बक वैसा चुम्बक है जिसमें चुम्बकत्व उतने ही समय तक विद्यमान रहता है जितने समय तक परिनालिका में विद्युत धारा प्रवाहित होती रहती है| प्रायः एक नरम लोहे के छड़ को एक परिनालिका में रखकर विद्युत चुम्बक बनाया जाता है| नरम लोहे को आसानी से चुम्बकित और विचुम्बकित किया जा सकता है| जब परिनालिका में धारा प्रवाहित की जाती है तब परिनालिका में चुम्बकीय क्षेत्र उत्पन्न होता है जिससे नरम लोहे अपना चुम्बकत्व खो देता है| परिनालिका में इस प्रकार से रखे गए छड़ को क्रोड कहा जाता है| क्रोड, धारा के कारण चुम्बक बन जाता है|
6. धारावाही चालक पर चुम्बकीय क्षेत्र के प्रभाव को दर्शाने के लिए एक प्रयोग का वर्णन करें|
उत्तर:-
चुम्बकीय क्षेत्र में रखे धारावाही चालक (तार) पर लगे बल को प्रदर्शित करने के लिए एक प्रयोग की व्यवस्था है|
प्रयोग—
ऐल्यूमिनियम या तांबा (अचुम्बकीय पदार्थ) का एक मोटा सीधा तार U-आकार के चुम्बक के ध्रुवों के बीच इस प्रकार लटकाते है कि उसका निचला सिरा आधारी लकड़ी के गड्ढे में रखे पारा की सतह को स्पर्श करे| इस तार के ऊपरी सिरे पर नम्य संबंधन है| बैटरी, धारा नियंत्रक और कुंजी श्रेणीक्रम में संयोजित करते हैं और इस संयोजन के एक सिरे को लटकते तार से जुड़े शीर्ष पेंच से जोड़कर और उसके दूसरे सिरे को पारा में डुबाकर परिपथ पूरा करते हैं, जैसा कि चित्र में दिखाया गया है| कुंजी बंद करने पर लटकते तार में छोटी धारा प्रवाहित करते हैं| तार में धारा नीचे की ओर प्रवाहित होती है और यह तार आगे की ओर झूल जाता है| इसके कारण तार का पारा से संपर्क टूट जाता है और परिपथ भंग हो जाता है| फलस्वरूप तार वापस लौट आता है और पारा से उसका संपर्क फिर से स्थापित हो जाता है और तार फिर से झूल जाता है| अब बैटरी के सिरों को बदलकर धारा की दिशा उलट देते हैं| अब धारा लटकते तार में ऊपर की ओर प्रवाहित होती है और तार की ओर झूल जाता है, अर्थात तार पर बल पहले के विपरीत दिशा में लगता है| अब चुम्बक को पलट देते हैं ताकि चुम्बकीय क्षेत्र की दिशा उलट जाए | इस स्थिति में तार पर लगे बल की दिशा उलट जाती है|
7. विद्युत मोटर क्या है? इसके सिद्धांत और क्रिया का सचित्र वर्णन करें|
उत्तर:-
विद्युत मोटर—
विद्युत मोटर ऐसा क्षेत्र है जिसके द्वारा विद्युत ऊर्जा को यांत्रिक ऊर्जा में परिवर्तित किया जाता है| यह फ्लेमिंग के वाम हस्त नियम पालन करता है| विद्युत मोटर में एक शक्तिशाली चुम्बक होता है जिसके अंतर्गत अवतल, ध्रुव खंडों के बीच तांबे के तार की कुंडली होती है| जिसे मोटर का आर्मेचर कहा जाता है| आर्मेचर के दोनों छोर पीतल के खंडित वलयों R1 तथा R2 से जुड़े होते हैं| वलयों को कार्बन के ब्रशों B1 तथा  B2 हल्के से स्पर्श करते हैं| जब आर्मेचर से धारा प्रवाहित की जाती है| तब चुम्बक के चुम्बकीय क्षेत्र के कारण कुंडली के AB तथा CD भुजाओं पर समान मान के, किन्तु विपरीत दिशाओं में बल लगते हैं, क्योंकि इन भुजाओं में प्रवाहित होनेवाली धारा के प्राबल्य समान है, परंतु उनकी दिशाएँ विपरीत है| इनमें एक बलयुग्म बनता है जिसका कारण आर्मेचर घूर्णन करने लगता है| आधे घूर्णन के बाद जब CD भुजा ऊपर चली जाती है और AB भुजा नीचे आ जाती है, तब वलयों के स्थान भी बदल जाते हैं| अतः आर्मेचर पर लगा बलयुग्म आर्मेचर को लगातार एक ही तरह से (वामावर्ती या दक्षिणावर्ती) घुमाता रहता है|
8. विद्युत चुम्बकीय प्रेरण से आप क्या समझते हैं? प्रयोग द्वारा स्पष्ट करें|
उत्तर:-
वह प्रक्रम जिसके द्वारा किसी चालक में परिवर्ती चुम्बकीय क्षेत्र में धारा प्रेरित होती है, विद्युत चुम्बकीय प्रेरण कहलाता है| 
प्रयोग—
लकड़ी या प्लास्टिक की खोखली नली के ऊपर बहुत लपेटन वाली विसंवाहित चालक तार को लपेट देते हैं| तार के सिरों को एक गैल्वेनोमीटर से जोड़ते हैं| एक शक्तिशाली स्थायी छड़ चुम्बक उत्तर ध्रुव को तेजी से खोखली नली के भीतर ले जाते हैं| ऐसा करने से गैल्वेनोमीटर की सूई में विक्षेप उत्पन्न होता है| चुम्बक की गति की दिशा के बदलने पर गैल्वेनोमीटर की सूई के विक्षेप की दिशा भी बदल जाती है| चुम्बक को स्थिर रखने पर गैल्वेनोमीटर की सूई में कोई विक्षेप नहीं होता है| अब चुम्बक के उत्तर ध्रुव को कुंडली से दूर चले जाते हैं| इस बार गैल्वेनोमीटर की सूई बाईं ओर विक्षेपित होती है जो यह दर्शाता है कि अब परिपथ में उत्पन्न विद्युत धारा की दिशा पहले के विपरीत है| इससे स्पष्ट है कि कुंडली के सापेक्ष चुम्बक की गति एक प्रेरित विभवांतर उत्पन्न करती है जिसके कारण परिपथ में प्रेरित विद्युत धारा प्रवाहित होती है|
9. डायनेमो क्या है? इसके सिद्धांत और क्रिया विधि का सचित्र वर्णन करें? 
उत्तर:-
कुंडली के घूर्णन और विभक्त वलय द्वारा प्रेरित विद्युत धारा की दिशा में परिवर्तन के कारण बिंदु P एवं Q के बीच जुड़े प्रतिरोधक में लगातार एक ही दिशा में विद्युत धारा प्रवाहित होती है| इस धारा को दिष्ट धारा कहते हैं तथा इस जनित्र को डायनेमो या दिष्ट धारा जनित्र कहते हैं| सिद्धांत यह एक ऐसा यंत्र है जिसके द्वारा यांत्रिक ऊर्जा को विद्युत ऊर्जा में परिवर्तित किया जाता है| उपर्युक्त चित्र दिष्ट धारा जनित्र का मूल संरचना को प्रदर्शित करता है| इसमें विद्युतरोधी तांबे की कुंडली AB नरम लोहे के क्रोड पर लिपटी रहती है| इसे आर्मेचर कहा जाता है| इस कुंडली को एक शक्तिशाली चुंबक NS, जिसे क्षेत्र चुम्बक कहते हैं, के ध्रुवों के बीच स्थित चुम्बकीय क्षेत्र में तेजी से घुमाया जाता है| कुंडली के तार के दोनों छोड़ तांबा के विभक्त वलय के दोनों अर्धों C1 एवं C2 जुड़े होते हैं| दो कार्बन ब्रश  B1 एवं B2 विभक्त वलयों को हल्के से स्पर्श करते हैं| ब्रश इस तरह व्यवस्थित रहते हैं कि जब कुंडली ऊर्ध्वाधर स्थिति को ठीक ठीक पार करती है तो विभक्त वलय के प्रत्येक अर्ध एक ब्रश से दूसरे ब्रश के साथ संपर्क बदलने के बिंदु पर ही होते हैं| इस विभक्त वलय को दिक्परिवर्तक कहते हैं| 
10. नामांकित चित्र द्वारा विद्युत जनित्र की कार्यविधि के सिद्धांत की व्याख्या कीजिए|
उत्तर:-
विद्युत जनित्र (डायनेमो) एक विद्युतीय उपकरण है जो यांत्रिक ऊर्जा को विद्युत ऊर्जा में बदलता है| 
सिद्धांत—
यह विद्युत चुम्बकीय प्रेरण के सिद्धांत पर कार्य करता है| जब कोई कुंडली किसी चुम्बकीय क्षेत्र में घूमती है तब उसके सिरे के बीच प्रेरित विद्युत वाहक बल उत्पन्न होता है| यदि कुंडली बंद हो तब उससे धारा बहने लगती है| इस धारा को प्रेरित धारा कहते हैं| इस प्रेरित धारा की दिशा फ्लेमिंग के दाएँ हाथ के नियम के आधार पर निर्धारित की जाती है| 
बनावट—
इसमें एक घूर्णी आयताकार कुंडली ABCD होती है जिसे किसी स्थायी चुम्बक के दो ध्रुवों के बीच रखा जाता है| इस कुंडली के दो सिरे दो वलयों  R1 तथा R2 से जुड़े होते हैं| दो स्थिर चालक ब्रूशों B1 तथा B2 को पृथक पृथक रूप से क्रमशः वलयोंR1 तथा R2 पर दबाकर रखा जाता है| दोनों वलय R1 तथा R2भीतर से धुरी से जुड़े होते हैं| दोनों ब्रुशों के बाहरी सिरे, बाहरी परिपथ में विद्युत धारा के प्रवाह को दर्शाने के लिए गैल्वेनोमीटर से संयोजित होते हैं|
क्रियाविधि—-
कुंडली को चुम्बक के दोनों ध्रुव के बीच किसी युक्ति द्वारा तेजी से घुमाया जाता है| जब कुंडली का तल चुम्बकीय क्षेत्र के लंबवत् रहता है तब कुंडली से शून्य धारा बहती है| जब कुंडली का तल चुम्बकीय क्षेत्र की दिशा में होता है तब कुंडली के सिरों के बीच महतम विद्युत वाहक बल उत्पन्न होता है और कुंडली से महतम प्रेरित धारा बहती है| जब कुंडली का तल चुम्बकीय क्षेत्र की दिशा में होता है तब कुंडली के सिरों के बीच महतम विद्युत वाहक बल उत्पन्न होता है और कुंडली से महतम प्रेरित धारा बहती है| कुंडली के सिरे  AB या CD को ऊपर से नीचे आने से ऊपर जाने से धारा की दिशा तथा परिमाण बदलता रहता है| इस तरह जो धारा प्राप्त होती है उसे प्रत्यावर्ती धारा कहते हैं| 
11. समझाएँ कि किन किन कारणों से परिपथ के साथ अर्थ वायर और फ्यूज की व्यवस्था की जाती है? 
उत्तर:-
भू संपर्क तार घर के निकट जमीन के अंदर बहुत नीचे स्थित धातु की प्लेट के साथ जुड़ा रहता है| यह सुरक्षा का साधन है और विद्युत सप्लाई को किसी प्रकार प्रभावित नहीं करता है| धातु के साधित्रों को भू संपर्कित करने पर पृथ्वी धारा के प्रभाव के लिए लगभग शून्य प्रतिरोध का पथ प्रदान करती है और धारा हमारे शरीर से नहीं गुजरती है और हम गंभीर झटके से बच जाते हैं| धातु के आवरण वाले विद्युत साधित्रों को भू संपर्कित करना आवश्यक है| इससे साधित्रों तथा उनका प्रयोग करने वालों की सुरक्षा हो जाती है| धातु के आवरणों से संयोजित भू संपर्क तार विद्युत धारा के लिए अल्प प्रतिरोध का चालन पथ प्रस्तुत कर देता है, धात्विक साधित्रों का भूमि से संपर्क हो जाने के कारण धारा उन साधित्रों का प्रयोग करने वालों के शरीर से नहीं गुजरती जिससे वे गंभीर झटके से बच जाते हैं| फ्यूज तार सुरक्षा की दृष्टि से एक युक्ति है| विद्युत परिपथों में अचानक धारा का मान अतिभारण और लघुपथन के कारणों से अत्यधिक बढ़ जाने से परिपथ में लगी युक्तियाँ जलकर नष्ट हो सकती है| ऐसी घटनाओं से बचाव के लिए परिपथ में जहाँ तहाँ फ्यूज श्रेणी में संयोजित किये जाते हैं| फ्यूज ऐसे पदार्थ के तार का टुकड़ा होता है जिसका गलनांक बहुत कम होता है| जब कभी धारा अत्यधिक बढ़ जाती है तो सबसे पहले फ्यूज गर्म होकर गल जाता है और परिपथ टूट जाता है जिससे उसमें लगी युक्तियाँ यथा बल्ब, पंखे, हीटर बच जाते हैं|

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