उत्सर्जन
अतिलघु उत्तरीय प्रश्न
1. कार्बनिक अणुओं के विखण्डन से उत्पन्न सबसे प्रमुख उत्सर्जी पदार्थ क्या है?
उत्तर:- कार्बन डाइऑक्साइड
2. एमीनो अम्लों के विखंडन से उत्पन्न उत्सर्जी पदार्थों के नाम लिखें|
उत्तर:- यूरिया
3. यूरिया और अमोनिया में अपेक्षाकृत कम जटिल और ज्यादा विषैला कौन है?
उत्तर:- अमोनिया यूरिया से कम जटिल और ज्यादा विषैला है|
4. अमीबा में उत्सर्जी पदार्थ शरीर की सतह से किस विधि से बाहर निकलता है?
उत्तर:- अमीबा में उत्सर्जी पदार्थ शरीर की सतह प्लाज्मालेमा से विसरण द्वारा बाहर निकलता है|
5. मूत्र मार्ग क्या है?
उत्तर:- एक महत्वपूर्ण उत्सर्जी अंग
6. मनुष्य के वृक्क के दो महत्वपूर्ण कार्यों के नाम लिखें|
उत्तर:- रक्त का छानना, दूषित पदार्थों का उत्सर्जन
7. वृक्क से संबद्ध उत्सर्जन में भाग लेने वाली अन्य रचनाओं के नाम लिखें|
उत्तर:- वृक्क से संबद्ध उत्सर्जन में भाग लेने वाली रचनाएँ मूत्रवाहिनी, मूत्राशय तथा मूत्रमार्ग है|
8. वृक्क की रचनात्मक और क्रियात्मक इकाई क्या है?
उत्तर:- नेफ्रॉन
9. मनुष्य के प्रत्येक वृक्क में नेफ्रॉन की संख्या कितनी है?
उत्तर:- मनुष्य के प्रत्येक वृक्क में करीब 10,00,000 नेफ्रॉन होते हैं|
10. पौधों में गैसीय अपशिष्टों का उत्सर्जन कहाँ से होता है?
उत्तर:- पत्तियों के रन्ध्रों तथा अन्य भागों में अवस्थित वातारन्ध्रों द्वारा होता है|
11. जीवों के शरीर में उत्पन्न अनावश्यक एवं विषाक्त पदार्थों को शरीर में बाहर निकालने वाली क्रिया क्या कहलाती है?
उत्तर:- उत्सर्जन
12. जंतुओं के शरीर में जल की मात्रा का संतुलन जिस क्रिया के द्वारा होता है, वह क्रिया क्या कहलाती है?
उत्तर:- जल संतुलन
13. मानव मूत्र में जल की प्रतिशत मात्रा सामान्यतः कितनी होती है?
उत्तर:- 96℅
14. वृक्क के क्षतिग्रस्त हो जाने पर उसका कार्य जिस अतिविकसित मशीन से संपादित कराया जाता है, वह क्या कहलाता है?
उत्तर:- डायलिसिस मशीन
15. पौधों के उत्सर्जी पदार्थ रेजिन तथा गोंद पौधे के किस उत्तक में संचित होते हैं?
उत्तर:- जाइलम
16. पौधों में गैसीय अपशिष्टों का उत्सर्जन रंध्रों के अतिरिक्त अन्य किन छिद्रों के द्वारा होता है?
उत्तर:- वातरंध्रों के द्वारा
17. बबूल के पौधों से निकलनेवाला गोंद पौधों में होनेवाली किस प्रकार के क्रिया के फलस्वरूप उत्पन्न होता है?
उत्तर:- उत्सर्जी पदार्थों के विसरण द्वारा
लघु उत्तरीय प्रश्न
1. उत्सर्जी पदार्थ से आप क्या समझते हैं?
उत्तर:-
सजीवों में उपापचयी क्रियाओं के फलस्वरूप पचे हुए भोज्य पदार्थ अवशोषित कर लिए जाते हैं| इस क्रिया के फलस्वरूप कुछ ऐसे पदार्थों का निर्माण होता जो शरीर के लिए अनावश्यक एवं विषाक्त होते हैं जिन्हें बाहर निकालना आवश्यक है| ऐसे पदार्थ को उत्सर्जी पदार्थ कहते हैं| CO2, पसीना, मल मूत्र इत्यादि उत्सर्जी पदार्थ है|
2. उत्सर्जन की परिभाषा लिखें|
उत्तर:-
सजीवों के शरीर से उपापचयी क्रियाओं के फलस्वरूप उत्पन्न अपशिष्ट पदार्थों का शरीर के विभिन्न अंगों द्वारा बाहर निकालने की प्रक्रिया उत्सर्जन कहलाता है| मनुष्य का सबसे महत्वपूर्ण उत्सर्जी अंग वृक्क है|
3. मानव मूत्र के अवयवों की प्रतिशत मात्रा क्या है?
उत्तर:-
मानव मूत्र में साधारणतः जल, यूरिया तथा सोडियम क्लोराइड विद्यमान रहते हैं| मनुष्य के 24 घंटे के 80 से 100 ग्राम प्रोटीन आहार में जल 96℅ एवं ठोस 4℅( जिसमें यूरिया 2℅ तथा अन्य पदार्थ 2℅ ) होता है| यूरिया की सामान्य मात्रा 100 मि०ली० रक्त में 30 मि०ग्रा० माना जाता है| प्रतिदिन करीबन 1.5 से 2 ग्राम यूरिक अम्ल मूत्र के साथ उत्सर्जित होता है| मूत्र का पीला रंग इसमें उपस्थित यूरोक्रोम रंजक के कारण होता है|
4. ग्लोमेरुलर फिल्ट्रेशन क्या है?
उत्तर:-
ग्लोमेरुलर एक छन्ना की तरह कार्य करता है| अभिवाही धमनिका जिसका व्यास अपवाही धमनिका से अधिक होता है, रक्त के साथ यूरिया, यूरिक अम्ल, जल, ग्लूकोज, लवण, प्रोटीन इत्यादि ग्लोमेरुलस में लाती है| ये पदार्थ बोमैन-संपुट की पतली दीवार से छनकर वृक्क नलिका में चले जाते हैं| अपवाही धमनिका का व्यास कम होने के कारण ग्लोमेरुलस में रक्त पर दबाव बढ़ जाता है जिसके फलस्वरूप छनने की क्रिया उच्च दाब पर होती है| उच्च दाब में फिल्टरेशन को अल्ट्राफिल्ट्रेशन कहते हैं| प्लाज्मा के साथ सभी लवण, ग्लूकोज और अन्य पदार्थ भी छनते हैं| कोशिकाएँ एवं प्लाज्मा प्रोटीन बोमैन संपुट की भित्ति के लिए अपारगम्य होते हैं| इस फिल्ट्रेट को ग्लोमेरुलर फिल्ट्रेट कहते हैं|
5. वृक्क के महत्वपूर्ण कार्यों का उल्लेख करें|
उत्तर:-
ग्लोमेरुलर फिल्ट्रेशन, ट्यूबलर पुनरुशोषण, ट्यूबलर स्रवण
6. पौधे अपना उत्सर्जी पदार्थ किस रूप में निष्कासित करते हैं?
उत्तर:-
पौधों में उत्सर्जन के लिए विशिष्ट अंग नहीं होते हैं| इसमें उत्सर्जन के लिए कयी तरीके अपनाये जाते हैं| श्वसन क्रिया से CO2 गैस एवं प्रकाश संश्लेषण क्रिया से आक्सीजन गैस विसरण क्रिया द्वारा पत्तियों से निष्कासित होते हैं| बहुत से पौधे कार्बनिक उपशिष्टों या उत्सर्जी पदार्थों को उत्पन्न करते हैं जो उनकी मृत कोशिकाओं में संचयित रहते| पौधे छाल के रूप में भी उत्सर्जी पदार्थ बाहर निकालते हैं| पौधे में उपापचयी क्रियाओं के दौरान टैनिन, रेजिन, गोंद आदि उत्सर्जी पदार्थों का निर्माण होता है| कुछ पौधे में उत्सर्जी पदार्थ गाढ़े दूधिया तरल लैटेक्स के रूप में संचित रहता है|
दीर्घ उत्तरीय प्रश्न
1. कृत्रिम वृक्क क्या है? यह कैसे कार्य करता है?
उत्तर:-
विशेष परिस्थिति जैसे—
संक्रमण, मधुमेह, सामान्य से अधिक उच्च रक्तचाप या किसी प्रकार के चोट के कारण वृक्क क्षतिग्रस्त होकर अपना कार्य करना बंद कर देते हैं| क्षतिग्रस्त वृक्क के कार्य न करने की स्थिति में शरीर में आवश्यकता से अधिक मात्रा में जल, खनिज या यूरिया जैसे जहरीले विकार एकत्रित होने लगते हैं जिससे रोगी की मृत्यु हो सकती है| ऐसी स्थिति में वृक्क का कार्य अतिविकसित मशीन के इस्तेमाल से संपादित कराया जाता है| इसे डायलिसिस मशीन या कृत्रिम वृक्क कहते हैं| यह मशीन वृक्क की तरह ही कार्य करता है| इस मशीन में एक टंकी होता है जो डायलाइजर कहलाता है| इसमें डायलिसिस फ्लूयूइड नामक तरल पदार्थ भरा होता है| इस तरल पदार्थ में सेलोफोन से बनी एक बेलनाकार रचना लटकती रहती है| यह आंशिक रूप से पारगम्य होता है| यह केवल विलय का ही विसरण होने देता है| डायलिसिस फ्लूयूइड की सान्द्रता सामान्य ऊतक द्रव जैसी होती है| परंतु, इसमें नाइट्रोजनी विकार तथा लवण की अत्यधिक मात्रा नहीं होती है| डायलिसिस के समय रोगी के शरीर का रक्त एक धमनी के द्वारा निकालकर उसे 0°C तक ठंडा किया जाता है| इस रक्त को विशिष्ट प्रतिस्पंदक से उपचारित कर तरल अवस्था में ही रखा जाता है| इस रक्त को एक पंप की सहायता से डायलाइजर में भेजा जाता है| यहाँ किये गए रक्त के पुनः शरीर के तापक्रम पर लाया जाता है| पुनः इस रक्त को पम्प की मदद से एक शिरा के द्वारा रोगी के शरीर में वापस पहुँचा दिया जाता है| रक्त के शुद्धिकरण की यह क्रिया हिमोडायलिसिस कहलाता है| रक्त के शुद्धिकरण का यह एक विकसित तकनीक है|
2. मनुष्य में वृक्क तथा उससे संबद्ध उत्सर्जी अंगों का वर्णन करें|
उत्तर:-
मनुष्य में वृक्क प्रमुख उत्सर्जी अंग है| उससे संबद्ध उत्सर्जी अंग मूत्र वाहिनी, मूत्राशय तथा मूत्र मार्ग है| मनुष्य में एक जोड़ा वृक्क होता है| प्रत्येक वृक्क उदर गुहा की पृष्ठीय देहभित्ति से सटे हुए कशेरुकदंड के दोनों ओर स्थित होते हैं| बायाँ वृक्क दायें वृक्क की अपेक्षा कुछ ऊपर स्थित होता है| प्रत्येक वृक्क ठोस, गहरे भूरे रंग का होता है तथा इसका आकार सेस के बीज के समान होता है| यह लगभग एक 10 सेमी० लम्बा, 5-6 चौड़ा तथा 2.5 से 4 सेमी० मोटा होता है| वृक्क की बाहरी सतह उन्नतोदर तथा भीतरी नतोदर होती है| प्रत्येक वृक्क की भीतरी नतोदर सतह जाइलम कहलाती है| इसी जगह से वृक्क धमनी वृक्क में प्रवेश करती है तथा वृक्क शिरा बाह्य निकलती है| वृक्क के जाइलम से एक मूत्रवाहिनी निकलती है| मूत्रवाहिनी का शीर्ष भाग मोटा होता है| प्रत्येक मूत्रवाहिनी पीछे की ओर मूत्राशय में खुलती है| मूत्राशय नाशपाती की आकार की पतली दीवार वाली एक थैलीनुमा रचना है| जो उदर गुहा के पिछले भाग में रेक्टम के नीचे स्थित होता है| मूत्राशय के पिछले भाग से नली निकलती है जिसे मूत्र मार्ग कहते हैं| निकलती हुई मूत्र मार्ग मूत्र द्वार के द्वारा शरीर से बाहर खुलता है| इस तरह मानव के विभिन्न उत्सर्जी अंग की संरचना होती है|
3. वृक्क की आंतरिक संरचना का वर्णन करें|
उत्तर:-
वृक्क की संरचना—–
प्रत्येक वृक्क बाहर से संयोजी ऊतक तथा अरेखित पेशियों से बना एक पतले कैप्सूल से ढंका होता है| प्रत्येक वृक्क में एक बाहरी प्रान्तस्थ भाग तथा एक भीतरी अंतस्थ भाग होता है| यह 15-16 पिरामिड जैसी रचनाओं का बना होता है जिसे वृक्क शंकु कहते| प्रत्येक वृक्क में सूक्ष्म, लंबी, कुंडलित नलिकाएँ पाई जाती है, जो नेफ्रॉन या वृक्क नलिकाएँ कहलाती है| नेफ्रॉन वृक्क की रचनात्मक एवं क्रियात्मक इकाई है|
4. वृक्क के द्वारा उत्सर्जन क्रिया कैसे होती है? समझाएँ|
उत्तर:-
उत्सर्जन—–
उपापचय के समय शरीर में बने हुए अनावश्यक वर्ज्य पदार्थों को शरीर से बाहर निकालने अथवा उनसे छुटकारा पाने की क्रिया को उत्सर्जन कहते हैं|
गुर्दे द्वारा उत्सर्जन——
मानव शरीर में दो गुर्दे पाये जाते हैं जो शरीर के अतिरिक्त जल एवं उत्सर्जी पदार्थों जैसे यूरिया, अनावश्यक लवण, लैक्टिक अम्ल, प्रतिजैविक औषधियों के शेषांश आदि को छानकर मूत्राशय में भेजते हैं|
गुर्दे की सम्पूर्ण कार्य प्रणाली निम्नलिखित चरणों में पूरी होती है—–
1. ग्लोमेरुलस में छनन क्रिया
2. चयनात्मक पुनरवशोषण
3. नलिका स्रवण
ग्लोमेरुलस में छनन क्रिया—–
ग्लोमेरुलस को कोशिका गुच्छा भी कहते हैं| वास्तव में जो अभिवाही धमनी गुर्दे में रक्त लाती है वह बार बार विभाजित होकर बहुत सी पतली पतली कोशिकाओं का गुच्छा या ग्लोमेरुलस कहा जाता है| कोशिका गुच्छ की कोशिकाएँ पुनः आपस में जुड़ती है और एक मोटी अपवाही धमनी की रचना करती है| वह अपवाही धमनी रक्त को बोमैन कैप्सूल से बाहर ले जाती है| ग्लोमेरुलस में पहुँचते ही रक्त पर अचानक बहुत अधिक दबाव पड़ता है क्योंकि अभिवाही धमनी मोटी अभिवाही धमनी से आने के बाद उसे अचानक पतली पतली कोशिकाओं से होकर गुजरना पड़ता है| इस उच्च रक्तचाप के कारण उत्सर्जी पदार्थों के साथ साथ कयी महत्वपूर्ण पदार्थ भी जैसे ग्लूकोज, अमीनो अम्ल आदि कोशिकाओं की पतली दीवारों से होकर बाहर निकल जाते हैं| इस छनन अभिक्रिया को सूक्ष्म छनन या अल्ट्रा फिल्ट्रेशन कहते हैं| ग्लोमेरुलस द्वारा छने हुए पदार्थों को ग्लोमेरुलस निस्पंद कहते हैं|
चयनात्मक पुनरवशोषण——
ग्लोमेरुलस द्वारा छने हुए पदार्थ बोमैन्स कैप्सूल में आ जाते हैं और मूत्र संग्राहक नली में आगे बढ़ते हैं| मूत्र संग्राहक नलिका की दीवारों पर एपीथिलियम ऊतक के स्तर पाये जाते हैं| ग्लोमेरुलस निस्पंद में उत्सर्जन योग्य पदार्थों के साथ सम्मिलित उपयोगी पदार्थ विसरण क्रिया द्वारा एपीथिलियम ऊतकों में अवशोषित हो जाते हैं परन्तु उत्सर्जन योग्य पदार्थ हेनेल्स लूप से आगे बढ़ते हैं| मूत्र संग्राहक नलिका एवं एपीथिलियम स्तरों में रक्त कोशिकाओं का जाल पाया जाता है जो संपूर्ण हेनेल्स लूप तक फैला होता है| एपीथिलियम ऊतकों में विसरित पदार्थ इनके कोशिकाओं के रक्त में चले जाते हैं| इस संपूर्ण क्रिया को चयनात्मक पुनरवशोषण कहते हैं|
नलिका स्रवण—-
ग्लोमेरुलस की सूक्ष्म छनन क्रिया के बाद भी बहुत से अनावश्यक पदार्थ रक्त में पड़े रह जाते हैं| ये पदार्थ हैं— केरेटिनीन, अमोनिया, हाइड्रोजन और पोटैशियम के आयन तथा प्रतिजैविक औषधियों के शेषांश| ये पदार्थ पश्च कुंडलित नाल या डिस्टल कनवोल्यूटेड ट्यूब्यूल द्वारा छानकर मूत्राशय में भेज दिये जाते हैं| इस प्रकार विभिन्न उत्सर्जी पदार्थ जलीय विलयन के रूप में मूत्राशय में जमा होते हैं जिन्हें सम्मिलित रूप में मूत्र कहा जाता है| मूत्र त्याग के साथ ही तरल अपशिष्टों से छुटकारा मिल जाता है|
5. पौधों में उत्सर्जन कैसे होता है?
उत्तर:-
जंतुओं की तुलना में पौधों में उत्सर्जन के लिए विशिष्ट अंग नहीं पाए जाते हैं| इनमें उत्सर्जन के लिए विभिन्न तरीके अपनाए जाते हैं| श्वसन क्रिया से निष्कासित कार्बन डाइऑक्साइड गैस एवं प्रकाशसंश्लेषण से निष्कासित आक्सीजन गैस विसरण क्रिया द्वारा पत्तियों के रंध्रों एवं अन्य भागों में अवस्थित वातरंध्रों के द्वारा उत्सर्जित होती है| वाष्पोत्सर्जन से निकलनेवाला जल मुख्यतः रंध्रों द्वारा तथा पौधों के अन्य भागों से विकसित होता रहता है| बहुत से पौधे कार्बनिक अपशिष्टों या उत्सर्जी पदार्थों को उत्पन्न करते हैं जो उनकी मृत कोशिकाओं, जैसे अंत:काष्ठ में संचयित रहते हैं| पौधे उत्सर्जी पदार्थों को अपनी पत्तियों एवं छाल में भी संचित करते हैं| पत्तियों के गिरने एवं छाल के बिलगाव से इन उत्सर्जी पदार्थों का शरीर से निष्कासन होता है| कुछ उत्सर्जी पदार्थ कोशिकीय रिक्तिकाओं में जमा रहते हैं| विभिन्न चयापचयी क्रियाओं के दौरान टैनिन, रेजिन, गोंद आदि उत्सर्जी पदार्थों का निर्माण होता है| टैनिन वृक्षों के छाल में, रेजिन एवं गोंद पुराने जाइलम में संचित रहता है| कुछ पौधों में उत्सर्जी पदार्थ गाढ़े, दुधिया तरल के रूप में संचित रहता है जिसे लैटेक्स कहते हैं| अगर आप पीपल, बरगद या पीला कनेर की एक ताजी पत्ती को तोड़ों तो आपको उजला, दूधिया एवं गाढा लैक्टेस निकलता दिखाई पड़ेगा| बबूल के पौधों में गोंद उत्सर्जी पदार्थ के रूप में पाया जाता है| इसी प्रकार, चीड़ में रेजिन एक सामान्य उत्सर्जी पदार्थ हैं| जलीय पौधे उत्सर्जी को विसरण द्वारा सीधे जल में निष्कासित करते हैं जबकि स्थलीय पौधे कुछ उत्सर्जी पदार्थों को अपने आसपास की मृदा में निष्कासित करते हैं|
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