आनुवांशिकता तथा जैव विकास
अतिलघु उत्तरीय प्रश्न
1. कोशिका में जीन कहाँ स्थित होते हैं?
उत्तर:- गुणसूत्रों में
2. विभिन्नता के दो मुख्य प्रकार कौन कौन से हैं?
उत्तर:- जननिक, कायिक
3. पीढ़ी दर पीढ़ी वंशागत होकर संचारित होनेवाली विभिन्नता क्या कहलाती है?
उत्तर:- आनुवंशिक
4. ऐसे आनुवंशिक गुण या लक्षण जो स्पष्ट रूप से दिखाई देते हैं, क्या कहलाते हैं?
उत्तर:- लक्षणप्ररूप या फेनोटाइप
5. आनुवंशिकी का पिता कौन कहलाता है?
उत्तर:- ग्रेगर जान मेंडेल
6. मेंडेल ने अपने प्रयोग के लिए किस पौधे का चयन किया? उसका वैज्ञानिक नाम क्या है?
उत्तर:- साधारण मटर के पौधे
7. मेंडेल के प्रयोग एकसंकर संकरण से प्राप्त जीनरूपी का अनुपात कितना है?
उत्तर:- 1:2:1
8. मेंडेल का प्रथम नियम क्या कहलाता है?
उत्तर:- पृथक्करण
9. आनुवंशिक विभिन्नता के दो प्रमुख स्रोत कौन कौन से है?
उत्तर:- आनुवंशिक उत्परिवर्तन, आनुवंशिक पुनर्योग
10. किसी जाति विशेष के एक समष्टि या आबादी में स्थित समस्त जीन क्या कहलाता है?
उत्तर:- उस आबादी का जीन कोश
11. जीव की उत्पत्ति के ठीक पहले पृथ्वी का वातावरण अपचायक था या उपचायक?
उत्तर:- अपचायक
12. उपार्जित लक्षणों के वंशागति द्वारा जैव विकास की व्याख्या किसने की थी?
उत्तर:- लामार्क
13. प्राकृतिक चुनाव द्वारा वंशागति द्वारा जैव विकास की का सिद्धांत किसने दिया था?
उत्तर:- डार्विन
14. जीवाश्म की आयु निर्धारण की एक वैज्ञानिक विधि का नाम बताएं|
उत्तर:- रेडियोधर्मी काल निर्धारण विधि
15. जीवों का वह गुण जो उसे अपने जनकों अथवा अपनी ही जाति के अन्य सदस्यों के उसी गुण के मूल स्वरूप से विभिन्नता दर्शाता है, क्या कहलाता है|
उत्तर:- विभिन्नता
16. जीवों के शरीर में होनेवाली वैसी विभिन्नताएँ जो एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी में वंशागत नहीं होती है, क्या कहलाती है?
उत्तर:- कायिक विभिन्नता
17. मेंडेल के आनुवांशिकी के प्रयोग में F1 पीढ़ी के उन पौधों को जिनमें जनक पौधों के दोनों विपरीत गुण मौजूद थे क्या कहा गया?
उत्तर:- प्रथम संतति
18. मेंडेल के एकसंकर संकरण के प्रयोग के फलस्वरूप F2 पीढ़ी में उतपन्न पौधों में लक्षण प्ररूपी अनुपात क्या था?
उत्तर:- 3:1
19. मेंडेल के द्वारा मटर के पौधों पर किए गए आनुवंशिकी के प्रयोग में बौनापन किस प्रकार का गुण था–प्रभावी या अप्रभावी
उत्तर:- अप्रभावी
20. मनुष्य में पाए जानेवाले 23 जोड़े क्रोमोसोम में 22 जोड़े एक ही प्रकार के क्रोमोसोम क्या कहलाते हैं?
उत्तर:- आटोसोम
21. जीवविज्ञान की वह शाखा जिसमें जीवों की उत्पत्ति तथा उसके पूर्वजों का इतिहास तथा समय समय पर उनमें हुए क्रमिक परिवर्तनों का अध्ययन किया जाता है, क्या कहलाता है?
उत्तर:- जैव विकास
22. प्राकृतिक चुनाव द्वारा जीवों का विकास– जैव विकास द्वारा यह व्याख्या क्या कहलाता है?
उत्तर:- आनुवंशिक पुनर्योग
23. जीवों के वैसे अंग जो संरचना एवं उत्पत्ति की दृष्टिकोण से एक समान होते हैं, परंतु वे अलग अलग कार्यों का संपादन करते हैं, क्या कहलाते हैं?
उत्तर:- समजात अंग
24. लुप्त हो चुके जीवों का पत्थरों पर पाए जानेवाले चिह्न क्या कहलाता है?
उत्तर:- जीवाश्म
25. एक ही प्रजातियों के सदस्यों के बीच आपस में होनेवाले प्रजनन को क्या कहते हैं?
उत्तर:- लैंगिक जनन
26. फूलगोभी किस प्रकार का पुष्प है?
उत्तर:- बंध्यपुष्प
27. मानव का उदभव स्थान मूल रूप से अफ्रीका है या एशिया?
उत्तर:- अफ्रीका
28. उदभव की दृष्टि से मानव का सबसे करीबी संबंधी कौन है?
उत्तर:- जीवाश्म
29. आधुनिक मानव का प्राचीनतम जीवाश्म अफ्रीका के किस स्थान से प्राप्त हुआ है?
उत्तर:- इथियोपिया नामक स्थान से
30. DNA अनुक्रम के तुलनात्मक अध्ययन द्वारा किसी जीव के पूर्वजों की खोज क्या कहलाता है?
उत्तर:- आणविक जातीवृत
लघु उत्तरीय प्रश्न
1. विभिन्नता की परिभाषा दें|
उत्तर:-
जीव के ऐसे गुण जो उसे अपने अथवा अपनी ही जाति के अन्य सदस्यों के उसी गुण के मूल स्वरूप की भिन्नता को दर्शाते हैं, विभिन्नता कहलाते हैं| एक ही प्रकार के जनकों से उत्पन्न विभिन्न संतानों के रूप रंग, शारीरिक बनावट, आवाज, मानसिक क्षमता आदि को लेकर भिन्नता पाई जाती है|
2. आनुवंशिकी का अर्थ बताएं|
उत्तर:-
एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी में जीवों के मूल गुणों का संचरण आनुवांशिकता कहलाता है| इन गुणों का संचरण एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी में जनकों के युग्मकों के द्वारा होता है| अत: जनकों से उनके संतानों में पीढ़ी दर पीढ़ी युग्मकों के माध्यम से पैतृक गुणों का संचरण आनुवांशिकता कहलाता है|
3. जीनप्ररूप या जीनोटाइप किसे कहते हैं?
उत्तर:-
किसी जीव या प्राणी की जीनी संरचना उस जीव का जीनप्ररूप या जीनोटाइप कहलाता है| इसके द्वारा जीवों के गुणों का संचरण होता है| जीनोटाइप के कारण प्रकट होने वाले गुणों की जीव का निर्धारण जनकों के युग्मकों के संयोजन के समय ही हो जाता है| संतति में पीढ़ी दर पीढ़ी गुणों का संचरण अपने जनकों से होता है|
4. मेंडेल का प्रथम नियम या पृथक्करण नियम क्या है?
उत्तर:-
जब अप्रभावी लक्षण के कारण प्रभावी लक्षण के कारक में पृथक होता है तो यह अपने लक्षण की अभिव्यक्ति कर देता है| इस कारण दूसरी पीढ़ी के पौधों के 25 प्रतिशत संतानों में सिर्फ अप्रभावी लक्षणों के जोड़े बनते हैं| फलस्वरूप प्रभावी और अप्रभावी लक्षण 3:1 के अनुपात में प्रकट होते हैं| इसे ही मेंडेल का प्रथम नियम या पृथक्करण का नियम कहते हैं|
5. जीन कोश क्या है?
उत्तर:-
किसी भी प्रजाति विशेष के एक समष्टि या आबादी में स्थित समस्त जीन उस आबादी का जीन कोश कहलाता है| जीन कोश के कुछ जीन में वातावरणीय कारणों से कुछ बदलाव आ सकता है| जीन में होने वाले ऐसे बदलाव पीढ़ी दर पीढ़ी वंशागत संचारित होते रहते हैं|
6. आनुवंशिक गुण से क्या समझते हैं?
उत्तर:-
प्रत्येक जीव में बहुत से ऐसे गुण होते हैं जो पीढ़ी दर पीढ़ी माता पिता, अर्थात जनकों से उनके संतानों में संचरित होते रहते हैं| ऐसे गुणों को आनुवंशिक गुण या पैतृक गुण कहते हैं|
7. जाति उदभवन क्या है?
उत्तर:-
डार्विन ने बताया कि किसी भी स्थान पर जीवों के लक्षणों में थोड़ा थोड़ा परिवर्तन होता रहता है| इसके साथ ही प्रकृति की भौतिक परिस्थितियों में भी परिवर्तन होता रहता जिससे लगातार प्राकृतिक चयन भी उनके विरूद्ध काम करते हैं| इन कारणों से सैकड़ों वर्षों में इनके लक्षणों में काफी परिवर्तन हो जाते हैं जिससे नयी प्रजाति की उत्पत्ति होती है| इसे ही जाति उदभवन कहा जाता है|
8. जंतु वर्गीकरण के विभिन्न स्तरों के नाम लिखें|
उत्तर:-
जीवों का वर्गीकरण विभिन्न स्तरों में किया जाता है| ये स्तर निम्न हैं— जगत, उपजगत, फाइलम, डिवीजन, वर्ग, गुण, कुल, वंश तथा जाति में किया गया है| इन पदानुक्रमण में जीवों के वर्गीकरण का आधार उनके गुणों में समानता एवं असमानता है| जंतुओं में विभिन्नता के बावजूद भी कुछ गुण समान होते हैं|
9. समजात अंग एवं असमजात अंग से आप क्या समझते हैं?
उत्तर:-
समजात अंग—
ऐसे अंग जो रचना और उत्पत्ति की दृष्टि से समान है, किंतु कार्यों में विभिन्नता होती है, समजात अंग कहलाते हैं| जैसे–घोड़े का अग्रपाद तथा मनुष्य के अग्रपादों में पाये जाने वाली अस्थियों के अवयव प्रायः समान होते हैं| किन्तु इनके कार्य भिन्न है| घोड़े के अग्रपाद शरीर के बोझ उठाने या दौड़ने या चलने के काम आते हैं| वहाँ मनुष्यों के हाथ वस्तुओं को पकड़ने के काम आते हैं| इन अंगों से पता चलता है कि दोनों के पूर्वज एक ही थे|
असमजात अंग—–
समजात अंगों के विपरीत जंतुओं में कुछ ऐसे भी अंग या कुछ ऐसी रचनाएँ होती है जिनके कार्य समान होते हैं, पर उनकी उत्पत्ति और रचना भिन्न होती है| ऐसे अंगों को असमजात या समवृत्त अंग कहते हैं| कीटों के पंख और चमगादड़ के डैने दोनों ही कीटों तथा चमगादड़ों को हवा में उड़ने में सहायता प्रदान करते हैं, किन्तु इनकी रचना एवं उत्पति बिलकुल भिन्न है| चमगादड़ के डैनों में अंत:कंकाल के रूप में अस्थियाँ मौजूद रहती है| जबकि कीटों के पंख में ऐसी कोई रचना नहीं होती है| इससे पता चलता है कि दोनों जंतुओं का भिन्न भिन्न पूर्वजों से विकास हुआ है|
10. लिंग क्रोमोसोम किसे कहते हैं?
उत्तर:-
मनुष्य में लिंग निर्धारण की क्रिया को समझने के लिए हमें क्रोमोसोम का अध्ययन करना जरूरी है| मनुष्य में 23 जोड़े क्रोमोसोम होते हैं| इनमें 22 जोड़े क्रोमोसोम एक ही प्रकार के होते हैं, इसे आटोमोस कहते हैं| तेईसवां जोड़ा भिन्न आकार का होता है, जिसे लिंग क्रोमोसोम कहते हैं| लिंग क्रोमोसोम दो प्रकार के होते हैं—X और Y होता है| X क्रोमोसोम लम्बा और छड़ के आकार का होता है| Y क्रोमोसोम अपेक्षाकृत बहुत छोटे आकार का होता है| नर में X और Y दोनों क्रोमोसोम मौजूद रहते हैं| किंतु मादा में केवल X क्रोमोसोम ही होते हैं अर्थात मादा में X, X क्रोमोसोम होते हैं ये X और Y क्रोमोसोम ही मनुष्य में लिंग निर्धारण के लिए उत्तरदायी है|
दीर्घ उत्तरीय प्रश्न
1. विभिन्नता क्या है? जननिक विभिन्नता एवं कायिक विभिन्नता का वर्णन करें|
उत्तर:-
एक ही प्रकार में जनकों से उतपन्न विभिन्न संतानों का अवलोकन करने पर हम पाते हैं कि उनमें कुछ न कुछ अंतर होता है| उनके रंग रूप, शारीरिक गठन, आवाज, मानसिक क्षमता आदि में काफी विभिन्नता होती है| एक ही प्रजाति के जीवों में दिखने वाले ऐसी अंतर आनुवंशिक अंतर या वातावरणीय दशाओं में अंतर के कारण होता है| एक ही जाति के विभिन्न सदस्यों में पाये जाने वाले इन्हीं अंतरों को विभिन्नता कहते हैं| अर्थात विभिन्नता सजीवों के ऐसे गुण है जो उसे अपने जनकों अपने ही जाति के अन्य सदस्यों के उसी गुण के मूल स्वरूप से भिन्नता को दर्शाते हैं|
जननिक विभिन्नता——
इस प्रकार की विभिन्नताएँ जनन कोशिकाएँ में होने वाले परिवर्तन के कारण होता है| ऐसी विभिन्नताएँ एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी में वंशागत होती है| इसे आनुवंशिक विभिन्नता भी कहते हैं| ऐसी विभिन्नताओं में कुछ जन्म के समय से प्रकट हो जाती है| जैसे— आंखों एवं बालों का रंग/शारीरिक गठन, लम्बाई में परिवर्तन आदि जन्म के बाद की विभिन्नताएँ है|
कायिक विभिन्नताएँ—-
ऐसी विभिन्नताएँ कयी कारणों से होती है| जैसे जलवायु एवं वातावरण का प्रभाव, पोषण के प्रकार, परिवेशीय जीवों के साथ परस्पर व्यवहार इत्यादि से ऐसी विभिन्नताएँ आ सकती है| ऐसी विभिन्नताएँ क्रोमोसोम या जीव परिवर्तन के कारण नहीं होती है| अतः ये पीढ़ी दर पीढ़ी वंशागत नहीं होती है| ऐसी विभिन्नताएँ उपार्जित होती है| इस विभिन्नता का जैव विकास में कोई महत्व नहीं है|
2. मेंडेल द्वारा मटर किये गए एकसंकर संकरण के प्रयोग तथा निष्कर्ष का वर्णन करें|
उत्तर:-
ग्रेगर जान मेंडेल को आनुवंशिकी का पिता कहा जाता है| मटर के पौधे पर किए गए अपने प्रयोगों के निष्कर्षों को उन्होंने 1866 में Annual Proceedings of the Natural Society of Brunn में प्रकाशित किया| इसने मटर जैसे साधारण पौधे का चयन किया| मटर के पौधे के गुण स्पष्ट तथा विपरीत लक्षणों वाले होते हैं| मेंडेल ने प्रयोग में विपरीत गुण वाले लम्बे तथा बौने पौधे पर विचार किया| उसने बौने पौधे के सारे फूलों को खोलकर उनके पुंकेसर हटा दिए| फिर उसने एक लंबे पौधे के फूलों को खोलकर उनके परागकणों को निकालकर बौने पौधे के फलों के वर्तिकाग्रों पर गिरा दिया| मेंडेल ने इन दोनों जनक पौधे को जनक पीढ़ी कहा| इसने जो बीज बने उनसे उत्पन्न सारे पौधे लंबे नस्ल के हुए| इस पीढ़ी के पौधे को मेंडेल ने प्रथम संतति कहा| इसे F1 से इंगित किया| इस F1 पीढ़ी के पौधे में दोनों जनक (लंबे एवं बौने) के गुण मौजूद थे| चूंकि लम्बेपन वाला गुण बौनेपन पर अधिक प्रभावी था| अतः बौनेपन का गुण मौजूद होने के बावजूद पौधे लंबे हुए| मेंडेल ने लंबे पौधे के लिए T तथा बौने के लिए t का प्रयोग किया| इस तरह प्रथम पीढ़ी के सभी पौधे Tt गुणवाले हुए| इनमें T (लंबापन), t (बौनेपन) पर प्रभावी था| इस कारण F1 पीढ़ी यानि प्रथम पीढ़ी के सभी पौधे लम्बे हुए| चूंकि दोनों जनक पौधे शुद्ध रूप से लंबे तथा बौने थे, इसलिए शुद्ध लंबे पौधे को TT तथा शुद्ध बौने को tt द्वारा सूचित किया गया| F1 पीढ़ी के पौधे में दोनों गुण मौजूद थे, इस कारण इन्हें संकर नस्ल कहा गया| F1 पीढ़ी के पौधों को जब आपस में प्रजनन कराया गया अगली पीढ़ी F2 के पौधों में लंबे और बौने का अनुपात 3:1 पाया गया अर्थात कुल पौधों में से 75 प्रतिशत पौधे लंबे TT तथा शेष संकर नस्ल के लंबे Tt पौधे पैदा हुए अर्थात संकर नस्ल के लंबे पौधे के प्रभावी गुण T तथा अप्रभावी गुण t के मिश्रण थे| इस आधार पर पीढ़ी के पौधों के अनुपात 1:2:1 यानि TT, 2Tt, tt (एक भाग शुद्ध लंबे दो भाग संकर नस्ल के लंबे तथा एक भाग शुद्ध बौने) से दर्शाया गया| 3:1 के अनुपात को लक्षण प्ररूपी अनुपात 1:2:1 को जीन प्ररूपी अनुपात कहा जाता है| मेंडेल के इस प्रयोग को एकसंकर कहा जाता है|
जीन प्ररूपी:TT:TT:TT=1:2:1
लक्षण प्ररूपी अ:लंबा:बौना=3:1
3. मनुष्य में लिंग निर्धारण के विधि का वर्णन करें|
उत्तर:-
हम जानते हैं कि लैंगिक प्रजनन में नर युग्मक तथा मादा युग्मक के संयोजन से युग्मनज का निर्माण होता है| जो विकसित होकर अपने जनकों जैसा नर या मादा जीव बन जाता है| मनुष्य एक जटिल प्राणी है| इसमें लिंग निर्धारण क्रिया को समझने के लिए क्रोमोसोम का अध्ययन करना पड़ता है| मनुष्य में 23 जोड़े क्रोमोसोम होते हैं| इनमें 22 जोड़े क्रोमोसोम एक ही प्रकार के होते हैं, जिसे आटोसोम कहते हैं| तेईसवां जोड़ा भिन्न आकार का होता है, जिसे लिंग क्रोमोसोम कहते हैं| ये दो प्रकार के होते हैं—- X और Y, X क्रोमोसोम अपेक्षाकृत बहुत छोटे आकार का होता है| नर में X और Y दोनों लिंग क्रोमोसोम मौजूद होते हैं, पर मादा में Y क्रोमोसोम लिंग क्रोमोसोम के रूप में होते हैं| ये X और Y क्रोमोसोम ही मनुष्य में लिंग निर्धारण के लिए उत्तरदायी होते हैं| युग्मकों के निर्माण के समय X और Y अलग अलग युग्मकों में चले जाते हैं| अतः नर में X और Y दो प्रकार के युग्मक बनते हैं, पर मादा में केवल X क्रोमोसोम वाले ही युग्मक बनते हैं| इन युग्मकों के निषेचन के फलस्वरूप नर एवं मादा बनते हैं| जिस युग्मनज में X, Y दोनों क्रोमोसोम पहुँच जाते हैं, वह नर बन जाता है और जिसमें दोनों लिंग क्रोमोसोम X, X पहुँच जाते हैं मादा बन जाता है| लिंग निर्धारण के लिए इस मत हेटरोगैमेसिस का सिद्धांत कहते हैं|
4. जैव विकास क्या है? लामार्कवाद का वर्णन करें|
उत्तर:-
पृथ्वी पर वर्तमान जटिल प्राणियों का विकास प्रारंभ में पाए जानेवाले सरल प्राणियों की परिस्थिति और वातावरण के अनुसार होनेवाले परिवर्तनों के कारण हुआ| सजीव जगत में होनेवाले इस परिवर्तन को जैव विकास कहते हैं| लामार्क फ्रांस का प्रसिद्ध प्रकृति वैज्ञानिक था| इसने सर्वप्रथम 1809 में जैव विकास के अपने विचारों की अपनी पुस्तक फिलासफिक, जूलाजिक में प्रकाशित किया| लामार्क के सिद्धांत को उपार्जित लक्षणों का वंशागति सिद्धांत कहते हैं| लामार्क के अनुसार जीवों की संरचना, कायिकी उनके व्यवहार पर वातावरण के परिवर्तन का सीधा प्रभाव पड़ता है| लामार्क के अनुसार वे अंग जो जीवधारियों की अनुकूलता के लिए महत्वपूर्ण है बार बार उपयोग में लाये जाते हैं, जिससे कि उनका विकास होता है, लेकिन वैसे लक्षण जो अनुकूलता की दृष्टि से महत्वपूर्ण नहीं है या हानिकारक हो सकते हैं उनका उपयोग नहीं किया जाता है, जिससे वे धीरे धीरे नष्ट हो जाते हैं| लामार्क की यह अवधारणा थी कि परिवर्तित वातावरण के कारण जीवों के अंगों का उपयोग अधिक या कम होता है| जिन अंगों का उपयोग अधिक होता है वे अधिक विकसित हो जाते हैं| जिनका उपयोग नहीं होता है उनका धीरे धीरे ह्रास हो जाता है| यह परिवर्तन वातावरण अथवा जंतुओं के उपयोग पर निर्भर करता है| इस कारण जंतु के शरीर में जो परिवर्तन होता है उसे उपार्जित लक्षण कहा जाता है| ये लक्षण वंशागत होते हैं अर्थात एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी में प्रजनन के द्वारा चले जाते हैं| ऐसा लगातार होने से कुछ पीढ़ियों के पश्चात् उनकी शारीरिक रचना बदल जाती है तथा एक नये प्रजाति का विकास होता है| हालांकि लामार्कवाद के सिद्धांत का कयी वैज्ञानिकों ने खंडन किया है|
5. डार्विन के प्राकृतिक चयन के सिद्धांत का वर्णन करें|
उत्तर:-
डार्विनवाद—–
चार्ल्स डार्विन और वैलेस ने बाद में प्राकृतिक चयनवाद का सिद्धांत(theory of natural selection) दिया, जिसे डार्विन ने अपनी प्रसिद्ध पुस्तक “Origin of species by natural selection” में प्रस्तुत किया| इसे स्थापित करने में स्पेन्सन नामक वैज्ञानिक ने भी योगदान दिया| डार्विन के सिद्धांत के अनुसार प्रत्येक जीवधारी में संतानोत्पत्ति की अदभुत क्षमता(over productivity) पायी जाती है, इसिलिए एक अकेली प्रजाति पूरी पृथ्वी पर फैल जा सकती है| परिणामतः आवास और भोजन की उपलब्धता के लिए इनमें अंत:प्रजातीय और अंतर्जातीय और बीच बीच में प्राकृतिक विपदाओं से भी संघर्ष करना पड़ता है, जिसे अस्तित्व के लिए संघर्ष कहा जाता है| स्पेंसर के अनुसार इस त्रिआयामी संघर्ष में सिर्फ वही विजेता हो सकता है जिसके लक्षण अनुकूलतम हों| इस आधार पर डार्विन ने निष्कर्ष निकाला कि प्रकृति बार बार परिवर्तनों के द्वारा किसी भी क्षेत्र में पाये जाने वाले जीवधारियों के विरुद्ध एक बल उत्पन्न करती है, जिसे प्राकृतिक चयन कहा जाता है| इसके कारण प्रतिकूल लक्षणों वाले जीवधारी नष्ट हो जाते हैं और अनुकूल लक्षणों वाले जीवधारियों का परोक्ष चयन हो जाता है| यह सिद्धांत वास्तव में चावल चुनने के बदले कंकड़ चुनने की क्रिया है| लेकिन, प्रतिकूल लक्षण वाले जीवधारी तुरंत मर जाते हैं, ऐसी बात नहीं है;वास्तव में धीरे धीरे उनका प्रजनन दर घटता है और मृत्यु दर बढता है जिससे कि सैकड़ों वर्षों में ये लुप्त होते हैं| डार्विन को आनुवंशिकता के कारणों का पता नहीं था, इसलिए वास्तव में यह नहीं बता सकते थे कि लक्षण धीरे धीरे क्यों बदलते हैं| लेकिन उन्होंने विभिन्नताओं की पहचान की और नयी प्रजातियों की उत्पत्ति पर ठीक ठीक प्रकाश डाला|
6. आनुवंशिक विभिन्नता के स्रोतों का वर्णन करें|
उत्तर:-
जीवों में आनुवंशिक विभिन्नता उत्परिवर्तन के कारण होता है तथा नयी जाति के विकास में इसका योगदान हो सकता है| क्रोमोसोम पर स्थित जीन की संरचना तथा स्थिति में परिवर्तन ही उत्परिवर्तन का कारण है| आनुवंशिक विभिन्नता का दूसरा कारण आनुवंशिक पुनर्योग भी है| आनुवंशिक पुनर्योग के कारण संतानों के क्रोमोसोम में जीन के गुण (संरचना तथा क्रोमोसोम पर उनकी स्थिति) अपने जनकों के जीव से भिन्न हो सकते हैं| कभी कभी ऐसे नये जीवों को वातावरण में अनुकूलित होने में सहायक नहीं भी होते हैं| ऐसी स्थिति में आपसी स्पर्द्धा, रोग इत्यादि कारणों से वैसे जीव विकास की दौड़ में विलुप्त हो जाते हैं| बचे हुए जीव ऐसे लाभदायक गुणों को अपने संतानों में संचरित करते हैं| इस तरह प्रकृति नये गुणों वाले कुछ जीव का चयन कर लेती है तथा कुछ को निष्कासित कर देती है| प्राकृतिक चयन द्वारा नये गुणों वाले जीवों का विकास इसी प्रकार से होता है|
7. पृथ्वी पर जीवों की उत्पत्ति पर प्रकाश डालें|
उत्तर:-
एक ब्रिटिश वैज्ञानिक जे ० बी ० एस ० हाल्डेन ने सबसे पहली बार सुझाव दिया था कि जीवों की उत्पत्ति उन अजैविक पदार्थों से हुई होगी जो पृथ्वी की उत्पत्ति के समय बने थे| सन् 1953 में स्टेनल एवं मिलर और हेराल्ड सी ० डरे ने ऐसे कृत्रिम वातावरण का निर्माण किया था जो प्राचीन वातावरण के समान था| इस वातावरण में आक्सीजन नहीं थी| इसमें अमोनिया, मीथेन और हाइड्रोजन सल्फाइड थे| उसमें एक पात्र में जल भी था जिसका तापमान 100° सेल्सियस से कम रखा गया था| जब गैसों के मिश्रण से चिंगारियाँ उत्पन्न की गई जो आकाशीय बिजलियों के समान थीं| मीथेन से 15% कार्बन सरल कार्बन यौगिकों में बदल गए| इनमें एमीनो अम्ल भी संश्लेषण हुए जो प्रोटीन के अणुओं का निर्माण करते हैं| इसी आधार पर हम कह सकते हैं कि जीवनों की उत्पत्ति अजैविक पदार्थों से हुई है|
8. जीवों में जाति उदभवन की प्रक्रिया कैसे उत्पन्न होता है?
उत्तर:-
नयी स्पीशीज़ के उदभव में वर्तमान स्पीशीज़ के सदस्यों का परिवर्तनशील पर्यावरण में जीवीत बने रहना है| इन सदस्यों को नये पर्यावरण में जीवित रहने के लिए कुछ बाह्य लक्षणों में परिवर्तन करना पड़ता है| अतः भावी पीढ़ी के सदस्यों में शारीरिक लक्षणों में परिवर्तन दिखाई देने लगते हैं| जो संभोग क्रिया के द्वारा अगली पीढ़ी में हस्तांतरित हो जाते हैं परंतु यदि दूसरी कालोनी के नर एवं मादा जीव वर्तमान पर्यावरण में संभोग करेंगे तब उतपन्न होने वाली पीढ़ी के सदस्य जीवीत नहीं रह सकेंगे| इसके अतिरिक्त अंत:प्रजनन अर्थात एक ही प्रजातियों के बीच आपस में प्रजनन, आनुवंशिक विचलन तथा प्राकृतिक चुनाव के द्वारा होनेवाले जाति उदभवन उन जीवों में हो सकते हैं जिनमें केवल लैंगिक जनन होता है| अलैंगिक जनन द्वारा उत्पन्न जीवों में तथा स्व परागण द्वारा उत्पन्न पौधों में जाति उदभवन की संभावना नही होती है|
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