कृषि एवं खाद्यान्न सुरक्षा
अतिलघु उत्तरीय प्रश्न
1. बिहार में कृषि के पिछड़े होने के दो कारण बताएं|
उत्तर:-
जोतों का आकार—-
अन्य राज्यों की अपेक्षा बिहार में जोतों का आकार बहुत छोटा है| मध्य बिहार की अपेक्षा उत्तर बिहार में जोतों का आकार और भी छोटा है| किसानों के ये छोटे छोटे जोत भी प्रायः कयी स्थानों में फैले या बिखरे होते हैं| अत: इनपर लाभप्रद खेती संभव नहीं है|
बाढ़ एवं भूमि क्षरण—–
बिहार में बाढ़ की समस्या अत्यधिक गंभीर है| बाढ़ का प्रकोप उत्तर बिहार में अधिक होता है| बाढ़ के कारण इस क्षेत्र में कृषि भूमि का एक बड़ा भाग प्रतिवर्ष परती रह जाता है| बाढ़ से भू क्षरण भी होता है और इससे राज्य की लगभग 19 लाख हेक्टेयर भूमि प्रभावित होती है|
2. बिहार सरकार की 2006 की कृषि नीति का मुख्य लक्ष्य क्या है?
उत्तर:- बिहार सरकार की 2006 की कृषि नीति का मुख्य लक्ष्य राज्य की कृषि भूमि का समुचित उपयोग, कृषि का यंत्रीकरण तथा 2013 तक खाद्यान्न के उत्पादन को बढ़ाकर दोगुना कर देना है|
3. बिहार की प्रमुख खाद्यान्न फसलों के नाम बताएं|
उत्तर:-चावल, गेहूँ, मक्का, चना
4. खाद्य सुरक्षा से आप क्या समझते हैं?
उत्तर:-
खाद्य सुरक्षा का अभिप्राय देश में खाद्य पदार्थों की उपलब्धता, सभी लोगों की खाद्यान्न तक पहुँच तथा उसे खरीदने के सामर्थ्य से है|
5. वे कौन से व्यक्ति हैं जो खाद्य असुरक्षा से सर्वाधिक प्रभावित होते हैं?
उत्तर:-
ग्रामीण क्षेत्रों के बहुत छोटे किसान, भूमिहीन श्रमिक, गढई, लोहार, जुलाह, अनाथ बच्चे, अपंग भिखारी आदि खाद्य असुरक्षा से सर्वाधिक प्रभावित होते हैं|
6. भारत के किन राज्यों में खाद्य असुरक्षा सबसे अधिक है?
उत्तर:-
उत्तर प्रदेश के पूर्वी तथा दक्षिण पूर्वी भाग, बिहार, झारखंड, उड़ीसा, पश्चिम बंगाल, छत्तीसगढ़, मध्यप्रदेश और महाराष्ट्र के कुछ भागों में खाद्य असुरक्षित व्यक्तियों की संख्या सबसे अधिक है|
7. अकाल से आप क्या समझते हैं?
उत्तर:-
अकाल एक ऐसी स्थिति है जिसमें खाद्यान्न का अभाव होने के कारण लोगों की भुखमरी से बहुत बड़े पैमाने पर मृत्यु होती है|
8. न्यूनतम समर्थित मूल्य क्या है?
उत्तर:-
किसानों को उनकी उपज का लाभकारी मूल्य प्रदान करने के लिए सरकार प्रतिवर्ष प्रमुख खाद्यान्नों का न्यूनतम समर्थित मूल्य निर्धारित करती है तथा इस मूल्य पर उनकी अतिरिक्त उपज को खरीदकर उनका भंडारण करती है|
9. निर्गम मूल्य किसे कहते हैं?
उत्तर:-
देश के अभावग्रस्त क्षेत्रों तथा निर्धन परिवारों के बीच सरकार अपने संग्रहित अनाज का रियायती मूल्यों पर वितरण करती है जिसे निर्गम मूल्य कहते हैं|
10. लक्षित सार्वजनिक वितरण प्रणाली क्या है?
उत्तर:-
लक्षित सार्वजनिक वितरण प्रणाली के अंतर्गत निर्धनता रेखा से नीचे रहनेवाले परिवारों को सरकार विशेष रियायती दर पर खाद्यान्न की एक निश्चित मात्रा की आपूर्ति करती है|
11. अन्नपूर्णा योजना क्या है?
उत्तर:-
अन्नपूर्णा योजना के अंतर्गत 65 वर्ष या उससे अधिक आयुवर्ग के असहाय एवं वृद्ध व्यक्तियों को प्रतिव्यक्ति प्रतिमाह 10 किलोग्राम खाद्यान्न नि:शुल्क दिया जाता है|
12. समाज के निर्धनतम व्यक्तियों के लिए सरकार ने खाद्य की कौन सी योजना आरंभ की है?
उत्तर:-
सरकार द्वारा निर्धनों में भी निर्धनतम व्यक्तियों के लिए 25 दिसम्बर 2000 से अंत्योदय अन्न योजना आरंभ की गई है जिसके अन्तर्गत प्रत्येक निर्धन परिवार को दो रुपये प्रति किलोग्राम गेहूं तथा तीन रुपये प्रति किलोग्राम चावल की अत्यधिक रियायती दर पर 35 किलोग्राम खाद्यान्न उपलब्ध कराया जाता है|
13. भारत को एक कृषि प्रधान देश क्यों कहा जाता है?
उत्तर:-
भारत को एक कृषि प्रधान देश कहा जाता है| क्योंकि कृषि भारतीय अर्थव्यवस्था का सबसे महत्वपूर्ण क्षेत्र है और यहाँ की लगभग 65 प्रतिशत जनसंख्या जीवन निर्वाह के लिए कृषि पर निर्भर है|
14. प्राथमिक क्षेत्र किसे कहते हैं?
उत्तर:-
कृषि क्षेत्र को प्राथमिक क्षेत्र कहते हैं तथा इसके अंतर्गत कृषि एवं इससे संबद्ध व्यवसायों को शामिल किया जाता है जैसे खनन, पशुपालन, मत्स्यपालन इत्यादि|
15. खाद्य फसलों से आप क्या समझते हैं?
उत्तर:-
खाद्य फसल वह है जिनका उत्पादन मुख्यतः भोजन के उद्देश्य से किया जाता है|
16. व्यावसायिक फसलें क्या है?
उत्तर:-
व्यावसायिक अथवा नकदी फसलें वे है जिन्हें उपजाने का मुख्य उद्देश्य व्यवसाय होता है|
17. बिहारवासियों की आजीविका का मुख्य साधन क्या है?
उत्तर:- कृषि
18. बिहार की चार प्रमुख व्यावसायिक फसलें कौन सी है?
उत्तर:- गन्ना, जूट, तेलहन, तंबाकू
19. बिहार की खाद्य फसलों में मक्का का क्या महत्व है?
उत्तर:- मक्का राज्य के गरीब लोगों का एक मुख्य खाद्य पदार्थ है तथा इसके डंठल का मवेशियों के लिए चारे के रूप में प्रयोग किया जाता है|
20. हमारे भोजन में दालों का क्या महत्व है?
उत्तर:-
दाल एक पौष्टिक खाद्यान्न है तथा शाकाहारी में दालें प्रोटीन का मुख्य स्रोत है|
21. कृषि पर जनसंख्या का अत्यधिक बोझ बिहार में कृषि के पिछड़ेपन का एक प्रधान कारण है| कैसे?
उत्तर:- कृषि पर जनसंख्या का बोझ अधिक होने के कारण जोतों का आकार निरंतर छोटा होता जा रहा है जिसपर आधुनिक ढंग से कृषि करना संभव नहीं है|
22. आर्थिक जोत क्या है?
उत्तर:-आर्थिक जोत से अभिप्राय भूमि खंड के उस आकार से है जिसपर कृषि करना लाभदायक होता है, अर्थात कृषि से प्राप्त होने वाली उपज लागत से अधिक होती है|
23. बिहार की कृषि मानसून के साथ जुड़ी है| इस कथन को स्पष्ट करें|
उत्तर:-
जिस वर्ष मानसून समय पर एवं पर्याप्त मात्रा में होता है, उस वर्ष कृषि की पैदावार भी अच्छी होती है तथा मानसून के असामयिक या अपर्याप्त होने पर कृषि की उपज कम हो जाती है|
24. सिंचाई व्यवस्था के विस्तार से बिहार में कृषि को क्या लाभ होगा?
उत्तर:-
सिंचाई के साधनों का विस्तार होने से मानसून पर हमारी निर्भरता कम होगी, भूमि की उत्पादकता बढेगी तथा गहन कृषि, अर्थात एक से अधिक फसल उपजाने में सहायता मिलेगी|
25. मिट्टी के कटाव का बिहार की कृषि पर क्या कुप्रभाव पड़ता है?
उत्तर:-
भूमि की ऊपरी सतह में उर्वरा शक्ति अधिक होती है जो अत्यधिक वर्षा, आंधी, बाढ़ आदि के कारण कटकर बह जाती है|
26. भूमि सुधार कार्यक्रमों से आप क्या समझते हैं?
उत्तर:-
भूमि सुधार कार्यक्रमों का अभिप्राय उन संस्थागत सुधारों से है जिनसे भूमि की उत्पादकता में वृद्धि होती है|
लघु उत्तरीय प्रश्न
1. बिहार में कृषि की क्या स्थिति है?
उत्तर:-
बिहार एक कृषि प्रधान राज्य है| यहाँ की लगभग 80 प्रतिशत जनसंख्या अपनी आजीविका के लिए प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से कृषि पर निर्भर करती है| परंतु, कृषि की प्रधानता होने पर भी बिहार की कृषि अत्यंत पिछड़ी हुई अवस्था में है| इसके पिछड़ेपन के प्रायः वही कारण है जो भारतीय कृषि के पिछड़े होने के है जैसे मानसून पर निर्भरता, जोतों का छोटा आकार, सिंचाई सुविधाओं का अभाव, वित्त या साख की कमी इत्यादि| परंतु, अन्य राज्यों की अपेक्षा बिहार में कृषि की स्थिति कयी दृष्टियों से भिन्न है| पंचवर्षीय योजनाओं के अंतर्गत बिहार में राष्ट्रीय कृषि नीति लागू करने का कोई प्रयास नहीं हुआ है| इससे खेती केवल जीवन यापन का एक स्रोत बनकर रह गई है तथा इसने एक व्यवसाय का रूप नहीं लिया है|
2. बिहार में कृषि पर आधारित उद्योगों के विकास की क्या संभावनाएँ है?
उत्तर:-
बिहार की कृषि क्षेत्र केवल इस कारण महत्वपूर्ण नहीं है कि यहाँ की अधिकांश जनसंख्या कृषि द्वारा जीविकोपार्जन करती है, वरन इस कारण से भी है कि इस क्षेत्र में राज्य के विकास की अपार संभावनाएँ वर्तमान है| यहाँ की भूमि बहुत उर्वर है| विशिष्ट भौगोलिक अवस्थित के कारण राज्य में काफी जैव विविधता है जिससे यहाँ के किसान अनाज, तेलहन तथा फल और सब्जी जैसी विविध फसलों का उत्पादन करते हैं| लेकिन, जल प्रबंधन, साख आदि आधारभूत सुविधाओं के उपलब्ध नहीं होने के कारण कृषि की उपज बहुत कम है| राज्य के किसान अत्यंत निर्धन है| परिणामतः वे आधुनिक कृषि के लिए उन्नत बीज, खाद, सिंचाई आदि की व्यवस्था नहीं कर पाते हैं| बिहार में सहकारी समितियों तथा ग्रामीण बैंकों की स्थिति अत्यंत असंतोष है| कृषि साख की समुचित व्यवस्था करने के लिए इनकी वित्तीय स्थिति में सुधार आवश्यक है| जल प्रबंधन कृषि विकास का आधार है| पर्याप्त पूंजी उपलब्ध होने पर किसान नलकूप द्वारा भूगर्भ जल का अधिकतम प्रयोग कर सकते हैं| लेकिन, बिजली का अभाव इनके प्रयोग में एक बड़ी बाधा है| भूमि स्वामित्व और इसके वितरण में घोर विषमता भी बिहार में कृषि के विकास में बाधक है| भूमि सुधार के लिए चकबंदी तथा भूमि हदबंदी कार्यक्रमों को प्रभावपूर्ण ढंग से लागू करना आवश्यक है|
3. खाद्यान्न फसलों एवं व्यावसायिक फसलों में क्या अंतर है?
उत्तर:-
खाद्यान्न फसलों वे है जिनका उत्पादन मुख्यतः भोजन के उद्देश्य से किया जाता है| खाद्य फसलों में चावल, गेहूँ, मक्का, चना आदि प्रमुख है| इस खाद्यान्न का खाद्य पदार्थों के रूप में प्रत्यक्ष रूप से प्रयोग किया जाता है| व्यावसायिक फसलें वे है जिन्हें उपजाने का मुख्य उद्देश्य व्यवसाय होता है| यही कारण है कि इन्हें नकदी फसल भी कहते हैं| जैसे—-कपास, जूट, गन्ना, चाय
4. खाद्यान्न की गुणवत्ता से आप क्या समझते हैं?
उत्तर:-
खाद्य पदार्थों में विद्यमान कैलोरी की मात्रा को उसकी गुणवत्ता कहा जाता है| गुणात्मक दृष्टिकोण से खाद्य की उपलब्धि से ज्यादा उसके गुण पर जोर देना चाहिए| भोजन की पौष्टिक शक्ति की इकाईयाँ भिन्न भिन्न कार्य करनेवाले व्यक्तियों के लिए भिन्न भिन्न मात्रा में आवश्यक होती है| उदाहरण के लिए यह अनुमान लगाया गया है कि घर पर रहकर काम करनेवाले स्त्रियों के लिए प्रतिदिन 3100 कैलोरी युक्त भोजन की जरूरत है| आफिस में काम करने वाले अथवा अध्यापक की दैनिक आवश्यकता कम से कम 2600 कैलोरी है| डाक्टर, इंजीनियर एवं दर्जी की आवश्यकता 3000 कैलोरी है| इसी प्रकार एक औद्योगिक श्रमिक की दैनिक आवश्यकता 3600 कैलोरी है|
5. हमारे देश में खाद्य सुरक्षा किस प्रकार सुनिश्चित की जाती है?
उत्तर:-
1970 के दशक में खाद्य सुरक्षा का अर्थ सभी अवसरों पर पर्याप्त मात्रा में आवश्यक खाद्य पदार्थों की उपलब्धता से लगाया जाता था| लेकिन, कुछ समय पूर्व अमर्त्य सेन ने लोगों की योग्यता के अनुसार खाद्य पदार्थों तक उनकी पहुँच पर बल देकर खाद्य सुरक्षा की धारणा को एक नया स्वरूप प्रदान किया है| इसके फलस्वरूप अब खाद्य सुरक्षा संबंधी हमारे दृष्टिकोण में भी महत्वपूर्ण परिवर्तन आया है| देश के सभी नागरिकों को खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित कराने के लिए खाद्य पदार्थों की उपलब्धता के साथ ही इस आवश्यकता पर भी बल दिया जाने लगा है कि सभी लोगों की इस खाद्यान्न तक पहुँच तथा उसे खरीदने का सामर्थ्य हो|
6. बिहार में खाद्य असुरक्षा अधिक होने के क्या कारण है?
उत्तर:-
बिहार की गणना देश के कुछ ऐसे राज्यों में की जाती है जहाँ के निवासियों में खाद्य असुरक्षा बहुत अधिक है| इसका प्रमुख कारण राज्य का आर्थिक पिछड़ापन है| बिहार एक कृषि प्रधान राज्य है| यहाँ की अधिकांश जनसंख्या अपने जीविकोपार्जन के लिए कृषि पर निर्भर है| लेकिन, बिहार की कृषि अत्यंत पिछड़ी हुई अवस्था में है| बिहार औद्योगिक दृष्टि से भी बहुत पिछड़ा है तथा विभाजन के पश्चात अब राज्य में प्रायः कोई भी वृहत एवं भारी उद्योग नहीं है| परिणामतः, बिहारवासियों की प्रतिव्यक्ति आय बहुत कम है तथा राज्य में निर्धनों की संख्या और उनमें खाद्य असुरक्षा भी अधिक है|
7. संकट अथवा प्राकृतिक विपदाओं से खाद्यान्न की आपूर्ति किस प्रकार प्रभावित होती है?
उत्तर:-
समाज में निर्धन वर्गों में प्रायः सभी समय खाद्य असुरक्षा बनी रहती है| इस वर्ग के लिए खाद्य सुरक्षा महत्वपूर्ण है लेकिन भूकंप, बाढ़, सुखाड़, अकाल जैसी प्राकृतिक विपदाओं के समय निर्धनता रेखा के ऊपर रहने वाले व्यक्तियों में भी असुरक्षा उत्पन्न हो सकती है| प्राकृतिक आपदाएँ अथवा मौसम की प्रतिकूलता हमारे देश में खाद्य असुरक्षा का एक प्रमुख कारण है| उदाहरण के लिए, उत्तर बिहार में नियमित रूप से प्रायः प्रत्येक वर्ष बाढ़ग्रस्त आती है| इससे इस क्षेत्र की कृषि फसलों की अपार क्षति होती है| इस प्रकार की आपदाओं से केवल निर्धन वर्ग नहीं, वरन सामान्य वर्ग के व्यक्ति भी प्रभावित होते हैं|
सुखाड़—–
बाढ़ आदि आपदा के समय खाद्यान्न का कुल उत्पादन बहुत कम हो जाता है| खाद्य पदार्थों का अभाव होने पर उनके मूल्य भी बहुत अधिक बढ़ जाते हैं| समाज के निर्धन व्यक्तियों के लिए ऊँचे मूल्यों पर अनाज खरीदना संभव नहीं होता| यदि इस प्रकार की आपदा देश या राज्य के एक बड़े भाग में होती है, या लंबी अवधि तक बनी रहती है तो इससे भुखमरी की स्थिति उत्पन्न हो सकती है| अधिक व्यापक होने पर यह भुखमरी अकाल का रुप धारण कर लेती है| विगत वर्षों के अंतर्गत हमारे देश में खाद्य असुरक्षा बहुत कम हुई है| लेकिन, अभी भी कुछ विशेष वर्गों में यह असुरक्षा अधिक है|
8. भारत में समाज का एक वर्ग आज भी भूख की समस्या से ग्रस्त हैं| इस कथन को स्पष्ट करें|
उत्तर:-भारत में समाज का एक बहुत बड़ा वर्ग खाद्य असुरक्षा से प्रभावित है, लेकिन कुछ विशेष वर्गों में खाद्य असुरक्षा और भूख की समस्या अधिक गंभीर है| ग्रामीण क्षेत्रों में बहुत छोटे किसान, भूमिहीन श्रमिक, अनाथ बच्चे, अपंग व्यक्ति आदि खाद्य असुरक्षा से सर्वाधिक प्रभावित वर्ग है| कृषि से संबंद्ध व्यक्तियों को भी नियमित काम नहीं मिलता और इनकी आय बहुत कम होती है| अतः, इनमें भी खाद्य असुरक्षा बहुत अधिक है और ये प्रायः भुखमरी के शिकार हो जाते हैं| शहरी क्षेत्रों में बहुत कम आय वाले व्यवसाय या धंधे में लगे व्यक्ति तथा दैनिक मजदूरों का परिवार खाद्य असुरक्षा और भूख की समस्या से सर्वाधिक प्रभावित होता है|
9. सामयिक भूख तथा दीर्घस्थायी भूख में अंतर स्पष्ट करें|
उत्तर:-
खाद्य असुरक्षा तथा भूख की समस्या के दो मुख्य पक्ष है—-दीर्घ स्थायी एवं सामयिक| दीर्घ स्थायी भूख का कारण पर्याप्त, संतुलित एवं पौष्टिक भोजन का अभाव है| न्यून आय तथा क्रयशक्ति में कमी होने के कारण निर्धन परिवार भूख की समस्या से ग्रस्त होते हैं| भारतीय कृषि की प्रकृति मौसमी होने के कारण हमारे देश के ग्रामीण क्षेत्रों से सामयिक भूख की समस्या भी वर्तमान है| कार्य की अनिश्चितता के कारण शहरी क्षेत्र के दैनिक मजदूरों में भी सामयिक भूख की समस्या उत्पन्न हो सकती है|
10. खाद्यान्न का सुरक्षित भंडार अथवा बफर स्टाक क्या है?
उत्तर:-
खाद्यान्न के सुरक्षित भंडार का अभिप्राय सरकार के चावल और गेहूँ जैसे मुख्य अनाज के कुल अतिरिक्त भंडार से है| बाजार में खाद्यान्न की उपलब्धता और उनकी कीमत मुख्यतया अनाजों की कुल आपूर्ति पर निर्भर है| देश में खाद्यान्न का अभाव होने पर प्रायः बड़े किसान या व्यापारी अधिक लाभ कमाने के लिए अनाज को छिपा देते हैं| इससे उनकी कीमतें और अधिक बढ़ जाती है| अत एव, निर्धन परिवारों को खाद्य सुरक्षा प्रदान करने के उद्देश्य से सरकार भारतीय खाद्य निगम के माध्यम से प्रतिवर्ष किसानों की अतिरिक्त उपज को खरीदकर उनका भंडारण करती है जिसे खाद्यान्न का सुरक्षित भंडार कहते हैं|
11. सरकार खाद्यान्न के सुरक्षित भंडार का निर्माण क्यों करती है?
उत्तर:-
भारतीय खाद्य निगम के माध्यम से सरकार द्वारा अधिशेष उत्पादन वाले राज्यों में किसानों से गेहूँ एवं चावल खरीदा जाता है और उस खरीदे हुए खाद्यान्न के भंडारण को बफर स्टाक कहते हैं| सरकार कमी वाले क्षेत्रों में और समाज के गरीब वर्गों में बाजार कीमत से कम कीमत पर अनाज के वितरण के लिए बफर स्टाक बनाती है| इससे खराब मौसम में अथवा आपदा काल में अनाज की कमी की समस्या हल करने में मदद मिलती है|
12. उचित मूल्य की दुकानों से आप क्या समझते हैं?
उत्तर:-
हमारे देश में खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए सार्वजनिक वितरण प्रणाली भारत सरकार का सबसे प्रभावपूर्ण कदम है| इस प्रणाली के अन्तर्गत सरकार ने देश के प्रायः सभी भागों में उचित मूल्य की दुकानें खोली है जिन्हें राशन की दुकान भी कहते हैं| वर्तमान में इन दुकानों द्वारा लोगों को गेहूँ, चावल, चीनी और किरोसिन जैसी अत्यावश्यक वस्तुओं की आपूर्ति की जाती है| उचित मूल्य की दुकानों में इन वस्तुओं का मूल्य इनके बाजार मूल्य से कम होता है| कोई भी परिवार राशन कार्ड में निर्धारित मात्रा के अनुसार उचित मूल्य की दुकान से इन वस्तुओं को खरीद सकता है| अभी हमारे देश में लगभग 4.6 लाख उचित मूल्य अथवा राशन की दुकानें हैं|
13. राशन दुकानों की कार्यप्रणाली में मुख्य दोष क्या है?
उत्तर:-
हमारे देश में सार्वजनिक वितरण प्रणाली एक लंबे समय से प्रचलित है| इस प्रणाली के अंतर्गत सरकार ने निर्धन परिवारों को खाद्य सुरक्षा प्रदान करने के लिए देश के प्रायः सभी भागों में राशन की दुकानें खोली है| इनके द्वारा गरीबी रेखा से नीचे रहनेवाले परिवारों को खाद्यान्न की न्यूनतम मात्रा की उपलब्धता सुनिश्चित की जाती है| लेकिन, राशन दुकानों की कार्यप्रणाली में कई दोष है| यह इस तथ्य से स्पष्ट है कि हमारे देश में राष्ट्रीय स्तर पर इन दुकानों द्वारा वितरित की जानेवाली खाद्यान्न की प्रतिव्यक्ति प्रतिमाह औसत खपत मात्र एक किलोग्राम है| बिहार, उड़ीसा और उत्तर प्रदेश में यह और भी कम प्रतिव्यक्ति प्रतिमाह केवल 300 ग्राम है मध्य प्रदेश में राशन दुकानों द्वारा निर्धारित व्यक्तियों को गेहूँ और चावल के उपभोग की मात्र 5 प्रतिशत आवश्यकता की पूर्ति की जाती है| बिहार और उत्तर प्रदेश जैसे राज्यों में यह प्रतिशत और भी कम है| राशन दुकानों में कयी अन्य दोष भी है| इनके विक्रेता प्रायः कालाबाजारी करते हैं और अपनी वस्तुएँ खुले बाजारों में ऊंचे मूल्य पर बेच देते हैं| राशन अथवा उचित मूल्य की दुकानें नियमित रूप से और समय पर नहीं खोली जाती है| इन दुकानों से बिकने वाला अनाज भी खुले बाजार की तुलना में निम्न स्तर का होता है|
14. खाद्य सुरक्षा में सहकारी संगठनों का क्या योगदान होता है?
उत्तर:-
सामान्य नागरिकों को खाद्य सुरक्षा प्रदान करने की दृष्टि से सहकारिता की भूमिका महत्वपूर्ण है| देश के शहरी और उप नगरीय क्षेत्रों में 37 हजार से भी अधिक खुदरा बिक्री केन्द्रों का संचालन उपभोक्ता सहकारी समितियों द्वारा किया जाता है| उपभोक्ता सहकारी समितियों को हमारे देश के दक्षिणी और पश्चिमी भागों में विशेष सफलता मिली है| उदाहरण के लिए, तमिलनाडु की लगभग 94 प्रतिशत राशन दुकानों का संचालन सहकारी समितियों द्वारा किया जाता है| खाद्य सुरक्षा एवं खाद्य वस्तुओं की आपूर्ति में सहकारिता की सफलता के कयी अन्य उदाहरण भी है| दिल्ली में पिछले कयी वर्षों से उपभोक्ताओं को सरकार द्वारा निर्धारित दरों पर दूध और सब्जी की आपूर्ति मदर डेयरी द्वारा की जाती है| गुजरात में सहकारिता के क्षेत्र में दूध और दुग्ध उत्पादों के उत्पादन की दृष्टि से अमूल की सफलता अभूतपूर्व कही जा सकती है| हमारे देश में श्वेत क्रांति का आगमन इस सहकारी संस्था के प्रयासों का ही परिणाम है| विगत वर्षों के अंतर्गत बिहार राज्य सहकारी दुग्ध उत्पाद संघ ने भी दूध एवं दुग्ध उत्पादों के उत्पादन, संग्रहण और वितरण में उल्लेखनीय कार्य किया है जिसके उत्पाद सुधा के नाम से जाने जाते हैं| इस प्रकार, देश के विभिन्न भागों में उपभोक्ताओं को खाद्य प्रदान करने के लिए कयी सहकारी संस्थाएँ कार्यरत हैं|
15. निम्नलिखित पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखें|
उत्तर:-
मध्याह्न भोजन योजना—–
मध्याह्न भोजन योजना मानव संसाधन विकास मंत्रालय द्वारा 15 अगस्त 1995 से आरम्भ की गई थी| इस योजना का उद्देश्य बच्चों के पोषण की स्थिति पर बल देते हुए प्राथमिक शिक्षा का सर्वव्यापीकरण है| देश के सरकारी, सरकारी सहायता प्राप्त तथा स्थानीय निकायों के प्राथमिक विद्यालयों की कक्षा 1 से 5 तक के सभी छात्र इस योजना में शामिल हैं| इसके अंतर्गत भारतीय खाद्य निगम छात्रों के मध्याह्न भोजन के लिए राजस्थान सरकार को नि:शुल्क खाद्यान्न की आपूर्ति करता है| योजना के अधीन प्रति स्कूल दिवस कम से कम 200 दिन न्यूनतम 300 कैलोरी और 8-12 ग्राम प्रोटीनवाला तैयार गर्म भोजन देने की व्यवस्था की जाती है|
अंत्योदय अन्न योजना—-
सार्वजनिक वितरण प्रणाली के अधिक प्रभावी बनाने के उद्देश्य से सरकार द्वारा निर्धनों में भी निर्धनतम व्यक्तियों के लिए दिसम्बर 2000 से अंत्योदय अन्न योजना आरंभ की गई| इस योजना के अंतर्गत प्रत्येक निर्धन परिवार को 2 रुपये प्रति किलोग्राम गेहूँ तथा 3 रुपये प्रति किलोग्राम चावल की अत्यधिक रियायती दर 25 किलोग्राम खाद्यान्न उपलब्ध कराया गया, जिसे 1 अप्रैल 2002 से बढ़ाकर 35 किलोग्राम कर दिया गया है| अंत्योदय योजना के परिवारों की पहचान राज्य सरकार द्वारा गरीबी रेखा से नीचे रहनेवाले परिवारों में से की जाती है|
अन्नपूर्णा योजना—–
अन्नपूर्णा योजना ग्रामीण विकास मंत्रालय द्वारा वर्ष 2000-01 में आरंभ की गई थी| इसके अंतर्गत 65 वर्ष या उससे अधिक आयु वर्ग वाले ऐसे असहाय वृद्ध आते हैं जिन्हें राष्ट्रीय वृद्धावस्था पेंशन योजना के योग्य होने पर भी इस योजना का लाभ नहीं मिल पा रहा है| इस योजना में प्रतिव्यक्ति प्रतिमाह 10 किलोग्राम खाद्यान्न नि:शुल्क दिया जाता है|
16. बिहार में जल संसाधनों का प्रबंधन अत्यंत आवश्यक है| क्यों?
उत्तर:-
जल प्रबंधन का संबंध जल संसाधनों के अधिकतम विकास एवं समुचित उपयोग से है| हमारे राज्य में उचित जल प्रबंधन निम्नलिखित दृष्टियों से महत्वपूर्ण है—-
पेयजल की व्यवस्था—–
बिहार के अधिकांश गाँवों में शुद्ध पेयजल का स्रोत उपलब्ध नहीं है| राज्य के विभिन्न शहरों में भी जल आपूर्ति और स्वच्छता का स्तर अत्यंत असंतोषजनक है| एक सर्वेक्षण के अनुसार, पटना सहित प्रायः सभी शहरों का 90 प्रतिशत जल प्रदूषित है|
सिंचाई व्यवस्था——
बिहार में सिंचाई की सुविधाओं का बहुत अभाव है| यहाँ सिंचाई की सुविधा संपूर्ण भारत का लगभग 6 प्रतिशत है| सिंचाई की पर्याप्त सुविधा उपलब्ध होने पर इसे पंजाब और हरियाणा जैसे राज्यों के समकक्ष लाया जा सकता है जहाँ की कृषि अत्यंत उन्नत अवस्था में है|
बाढ़ की समस्या का समाधान—–
बिहार में बाढ़ की समस्या अत्यधिक गंभीर है| उचित जल प्रबंधन द्वारा ही इस समस्या का समाधान संभव है|
17. भारत में समाज का एक वर्ग आप भी भूख की समस्या से ग्रस्त हैं–स्पष्ट करें|
उत्तर:- भारत में समाज का एक बड़ा वर्ग खाद्य असुरक्षा से प्रभावित है, लेकिन कुछ विशेष वर्गों में खाद्य असुरक्षा और भूख की समस्या अधिक गंभीर है| ग्रामीण क्षेत्रों में बहुत छोटे किसान, भूमिहीन श्रमिक, स्वनियोजित व्यक्ति, अनाथ बच्चे, अपंग व्यक्ति आदि खाद्य असुरक्षा से सर्वाधिक प्रभावित वर्ग है, कृषि से संबद्ध व्यक्तियों को भी नियमित काम नहीं मिलता और इनकी आय बहुत कम होती है| अत:, इनमें भी खाद्य असुरक्षा बहुत अधिक है और ये प्रायः भूखमरी के शिकार हो जाते हैं| शहरी क्षेत्रों में बहुत कम आय वाले व्यवसाय या धंधे में लगे व्यक्ति तथा दैनिक मजदूरों का परिवार खाद्य असुरक्षा और भूख की समस्या से सर्वाधिक प्रभावित होता है|
18. बिहार की दो प्रमुख व्यावसायिक फसलों की व्याख्या करें|
उत्तर:-
गन्ना–
गन्ना बिहार की एक मुख्य व्यावसायिक फसल है| इसके उत्पादन के लिए यहाँ की भौगोलिक परिस्थितियाँ बहुत अनुकूल है| इसकी खेती मुख्यतः पश्चिमी चंपारण, पूर्वी चंपारण, गोपालगंज, सीतामढ़ी तथा सीवान में होती है| स्वतंत्रता प्राप्ति के समय क्षेत्रफल की दृष्टि से गन्ना के उत्पादन में बिहार का देश में दूसरा स्थान था| लेकिन, राज्य की अधिकांश चीनी मिलों के बंद हो जाने के कारण विगत वर्षों के अंतर्गत इसके उत्पादन में कमी हुई है|
तंबाकू—
बिहार भारत में तंबाकू का एक प्रमुख उत्पादक राज्य है| इसका प्रयोग मुख्यतया सिगरेट और बीड़ी उद्योग में होता है| दरभंगा, मुज़फ्फरपुर, पटना, वैशाली आदि इसके मुख्य उत्पादक क्षेत्र है|
19. हरित क्रांति ने भारत को खाद्यान्न के क्षेत्र में आत्मनिर्भर बना दिया है| कैसे?
उत्तर:-
स्वतंत्रता प्राप्ति के समय हमारे देश में खाद्यान्नों का उत्पादन हमारी आवश्यकताओं से बहुत कम था| इसके फलस्वरूप भारत को कयी वर्षों तक विदेशों से बड़े पैमाने पर अनाज का आयात करना पड़ा| खाद्य समस्या के समाधान के लिए वर्ष 1966-67 की अवधि में भारत में कृषि विकास की एक नई रणनीति अपनायी गयी जिसे हरित क्रांति की संज्ञा दी गई| उन्नत बीज, रासयनिक खाद, सिंचाई सुविधाएँ, पौधा संरक्षण आदि इस नवीन कृषि नीति के मुख्य अंग है| इस नीति को अपनाने के फलस्वरूप विगत वर्षों के अंतर्गत देश में खाद्यान्न, विशेषतया गेहूँ और चावल के उत्पादन में अभूतपूर्व वृद्धि हुई है| परिणामतः, अब हमारा देश खाद्यान्न के क्षेत्र में प्रायः आत्मनिर्भर हो गया है|
20. क्या भारत की तुलना में बिहार राज्य में कृषि पर जनसंख्या का बोझ अधिक है| यदि है तो इसके दो कारण बताएं|
उत्तर:-
बिहार की जनसंख्या में बहुत तेजी से वृद्धि हो रही है और यह राष्ट्रीय औसत से अधिक है|1991-2001 की अवधि के अन्तर्गत बिहार की जनसंख्या में 28.43 प्रतिशत की वृद्धि हुई, जबकि संपूर्ण भारत के लिए यह वृद्धि दर 21.34 प्रतिशत थी|
राज्य के उद्योग धंधों तथा जीविकोपार्जन के अन्य साधनों होने से जनसंख्या का अधिकांश भाग कृषि पर ही निर्भर है|
21. भूमि सुधार से आप क्या समझते हैं? बिहार में भूमि सुधार संबंधी प्रमुख कार्यों का वर्णन करें|
उत्तर:-
भूमि सुधार से हमारा अभिप्राय उन संस्थागत परिवर्तनों से है जिनसे भूमि के अधिकतम उपयोग में सहायता मिलती है| भूमि की उपज को बढाने के लिए भूमि की व्यवस्था में सुधार आवश्यक है| इस प्रकार के सुधार भूस्वामित्व की प्रथा के दोषों को दूर करने के लिए अपनाए जाते हैं| 1950 के भूमि सुधार कानून के द्वारा बिहार में जमींदारी प्रथा खत्म कर दी गई| इसके फलस्वरूप राज्य के करीब 20 लाख जमींदारों का अन्त हो गया और उनके अधीन की लगभग 400 लाख एकड़ जमीन पर सरकार का अधिकार हो गया है| बिहार में भूमि सुधार संबंधी दूसरा महत्वपूर्ण कार्य जोतों की अधिकतम सीमा का निर्धारण है| इस दिशा में तीसरा कार्य बटाईदारी कानून में संसोधन लाकर किया गया है| इसका उद्देश्य रैयतों की हालत में सुधार लाना है|
22. दीर्घ स्थायी भूख तथा सामयिक भूख में अंतर कीजिए|
उत्तर:-
खाद्य असुरक्षा तथा भूख की समस्या के दो मुख्य पक्ष है—-दीर्घ स्थायी और सामयिक| दीर्घ स्थायी भूख का कारण पर्याप्त, संतुलित एवं पौष्टिक भोजन का अभाव है| न्यून आय तथा क्रयशक्ति में कमी होने के कारण निर्धन परिवार भूख की समस्या से ग्रस्त होते हैं| भारतीय कृषि की प्रकृति मौसमी होने के कारण हमारे देश के ग्रामीण क्षेत्रों में सामयिक भूख की समस्या भी वर्तमान है| कार्य की अनिश्चितता के कारण शहरी क्षेत्र के दैनिक मजदूरों में भी सामयिक भूख की समस्या उत्पन्न हो सकती है|
23. लक्षित सार्वजनिक वितरण प्रणाली कब और क्यों अपनायी गयी?
उत्तर:-
सार्वजनिक वितरण प्रणाली को अधिक उपयोगी और कुशल बनाने के लिए विगत वर्षों के अंतर्गत सरकार ने अपनी नीति में कयी महत्वपूर्ण परिवर्तन एवं संसोधन किए गए हैं| निर्धनता रेखा से नीचे रहनेवाले परिवारों को खाद्यान्न की न्यूनतम मात्रा की उपलब्धता सुनिश्चित करने के उद्देश्य से सरकार ने 1997 से लक्षित सार्वजनिक वितरण प्रणाली लागू की थी| इसके अंतर्गत देश के 6 करोड़ से भी अधिक निर्धन परिवारों को विशेष रियायती दर पर खाद्यान्न की एक निश्चित मात्रा की आपूर्ति की जाती है| वर्तमान में लक्षित सार्वजनिक वितरण प्रणाली द्वारा गरीबी रेखा के नीचे रहनेवाले परिवारों को प्रतिमाह अत्यधिक रियायती दर पर 35 किलोग्राम चावल और गेहूँ उपलब्ध कराया जाता है|
24. राशनकार्ड कितने प्रकार के होते हैं?
उत्तर:-
सार्वजनिक वितरण प्रणाली के अंतर्गत सरकार गेहूँ, चावल, चीनी, किरोसिन जैसी अति आवश्यक वस्तुओं का समाज के निर्धन परिवारों के बीच वितरण व्यवस्था करती है| इसके लिए सरकार ने देश के प्रायः सभी भागों में विनियमित राशन दुकानों की स्थापना की है| कोई भी परिवार सरकार द्वारा जारी राशन की दुकान से इन वस्तुओं को खरीद सकता है| ये राशन कार्ड तीन प्रकार के होते हैं——अति निर्धन व्यक्तियों के लिए अंत्योदय कार्ड, निर्धनता रेखा से नीचे के व्यक्तियों के लिए बी०पी०एल० कार्ड तथा अन्य के लिए ए०पी०एल कार्ड|
25. मध्याह्न भोजन योजना क्या है?
उत्तर:-
मध्याह्न भोजन योजना मानव संसाधन विकास मंत्रालय द्वारा 15 अगस्त 1995 से आरम्भ की गई थी| इस योजना का उद्देश्य बच्चों के पोषण की स्थिति पर बल देते हुए प्राथमिक शिक्षा का सर्वव्यापी करण है| देश के सरकारी, सरकारी सहायता प्राप्त तथा स्थानीय निकायों के प्राथमिक विद्यालयों की कक्षा 1 से 5 तक के सभी छात्र इस योजना में शामिल हैं| इसके अंतर्गत भारतीय खाद्य नियम छात्रों के मध्याह्न भोजन के लिए राज्य सरकार को नि:शुल्क खाद्यान्न (चावल तथा गेहूँ) की आपूर्ति करता है| योजना के अधीन प्रति स्कूल दिवस कम से कम 200 दिन न्यूनतम 300 कैलोरी और 8-12 ग्राम प्रोटीनवाला तैयार गर्म भोजन देने की व्यवस्था की जाती है|
26. अंत्योदय अन्न योजना क्या है?
उत्तर:-
लक्षित सार्वजनिक वितरण प्रणाली को अधिक प्रभावी बनाने के उद्देश्य से सरकार द्वारा निर्धनों में भी निर्धनतम व्यक्तियों के लिए दिसम्बर 2001 से अंत्योदय अन्न योजना आरंभ की गई| इस योजना के अंतर्गत प्रत्येक निर्धन परिवार को 2 रुपये प्रति किलोग्राम गेहूँ तथा 3 रुपये प्रति किलोग्राम चावल की अत्यधिक रियायती दर पर 25 किलोग्राम खाद्यान्न उपलब्ध कराया गया, जिसे 1 अप्रैल 2002 से बढ़ाकर 35 किलोग्राम कर दिया गया है| अंत्योदय योजना के परिवारों की पहचान राज्य सरकार द्वारा गरीबी रेखा के नीचे रहनेवाले परिवारों में से की जाती है| वर्तमान में इस योजना से लाभान्वित होनेवाले परिवारों की संख्या लगभग 2.5 करोड़ है|
27. अन्नपूर्णा योजना क्या है?
उत्तर:- अन्नपूर्णा योजना ग्रामीण विकास मंत्रालय द्वारा वर्ष 2000-01 में आरंभ की गई थी| इसके अंतर्गत 65 वर्ष या उससे अधिक आयुवर्ग वाले ऐसे असहाय वृद्ध आते हैं जिन्हें राष्ट्रीय वृद्धावस्था पेंशन योजना के योग्य होने पर भी इस योजना का लाभ नहीं मिल पा रहा है| इस योजना में प्रतिव्यक्ति प्रतिमाह 10 किलोग्राम खाद्यान्न नि:शुल्क दिया जाता है| वर्ष 2002-03 से यह योजना राष्ट्रीय वृद्धावस्था पेंशन योजना एवं राष्ट्रीय परिवार लाभ योजना को मिलाकर बनाए गए राष्ट्रीय सामाजिक सहायता कार्यक्रम के साथ राज्य सरकारों को स्थानान्तरित कर दिया गया है|
28. बिहार की अर्थव्यवस्था में कृषि की भूमिका की विवेचना करें|
उत्तर:-
देश के अन्य राज्यों के समान ही बिहार भी एक कृषि प्रधान राज्य है| परंतु, अन्य राज्यों की अपेक्षा यहाँ कृषि पर निर्भरता अधिक है| राज्य की लगभग 77 प्रतिशत जनसंख्या कृषि पर आजीविका का मुख्य आधार है| बिहार में कृषि की भूमिका कयी अन्य दृष्टियों से भी महत्वपूर्ण है| जो निम्नलिखित हैं—–
घरेलू उत्पाद—-
बिहार राज्य के कुल घरेलू उत्पाद में कृषि का योगदान सबसे अधिक होता है| राज्य के कुल घरेलू उत्पाद का लगभग 39 प्रतिशत कृषि क्षेत्र प्रदान करता है|
खाद्यान्न की आपूर्ति—
बिहार में कृषि खाद्यान्न की आपूर्ति करती है तथा राज्य में धान, गेहूँ, मक्का, जौ, दलहन तथा गन्ना जैसी विविध फसलों का उत्पादन होता है|
कच्चे माल की आपूर्ति—-
बिहार के उद्योगों में चीनी, जूट, तंबाकू, आदि कृषि आधारित उद्योग प्रमुख है| कृषि ही इन उद्योगों के लिए कच्चे माल की व्यवस्था करती है|
सरकार की आय—-
राज्य सरकार को भू राजस्व से कुछ आय भी होती है, हालांकि कयी कारणों से यह पर्याप्त नहीं है|
29. बिहार को बाढ़ से होनेवाली क्षति की विवेचना करें|
उत्तर:- बाढ़ बिहार की एक स्थायी समस्या है| यद्यपि मध्य बिहार के मैदानी भागों में भी गंगा तथा सोन के पानी से कयी बार बाढ़ आती है, लेकिन उत्तर बिहार में यह समस्या अत्यधिक गंभीर है| उत्तर बिहार के मैदानी भागों में कयी प्रमुख नदियाँ नेपाल क्षेत्र के हिमालय की तराई से आती है जिनमें कोसी, गंडक, बागमती, कमला बलान, महानंदा और अधवारा समूह की नदियाँ प्रमुख है| इनका लगभग 60-62 प्रतिशत जलग्रहण क्षेत्र नेपाल में पड़ता है| इन नदियों में प्रतिवर्ष भयानक बाढ़ें आती है जिनसे जान माल की बहुत अधिक बर्बादी होती है| बाढ़ के कारण उत्तरी बिहार की लाखों हेक्टेयर भूमि की फसल नष्ट हो जाती है| रेल, सड़क तथा यातायात के अन्य साधन भी बर्बाद हो जाती है| एक अनुमान के अनुसार, देश के कुल बाढ़ प्रभावित क्षेत्र का लगभग 52 प्रतिशत बिहार में पड़ता है| इस प्रकार, बिहार देश का सर्वाधिक बाढ़ उन्मुख राज्य है| राज्य सरकार के अनुसार, इसका लगभग 73 प्रतिशत क्षेत्रफल (68000 वर्ग किलोमीटर) बाढ़ उन्मुख है| अभी 2002,2004,2007,2008 में बिहार को उच्च क्षमता की बाढ़ का सामना करना पड़ा है| वस्तुतः बाढ की विभीषिका हमारे राज्य के पिछड़ेपन एवं निर्धनता का एक प्रमुख कारण है|
दीर्घ उत्तरीय प्रश्न
1. बिहार की अर्थव्यवस्था में कृषि की भूमिका की विवेचना करें|
उत्तर:-
बिहार एक कृषिप्रधान राज्य है| बिहार की कुल आय का बड़ा भाग कृषि से ही उत्पादित होता है| यहाँ के लोगों की जीविका, आय एवं रोजगार का कृषि ही प्रमुख आधार है| बिहार में लगभग 80 प्रतिशत लोग गाँवों में रहते हैं और उनकी अर्थव्यवस्था कृषि पर आधारित है| बिहार के विकास में कृषि का महत्वपूर्ण योगदान है| यह बात अनेक तथ्यों से स्पष्ट होता है——-
कृषि अर्थव्यवस्था के दूसरे क्षेत्रों को खाद्यान्न एवं कच्चे माल की आपूर्ति करता है|
बचतों एवं करों के रूप में साधन प्रदान करता है|
कृषि के द्वारा ही ग्रामीण जनसंख्या अन्य क्षेत्रों के विकास को गति प्रदान किया जाता है क्योंकि उनके द्वारा की गई वस्तुओं की माँग पर उद्योग, व्यापार आदि का विकास एवं विस्तार निर्भर करता है| राज्य के नकदी फसलें, आम, लीची, गन्ने आदि का निर्यात कर विदेशी मुद्रा अर्जित की जाती है| ऐसा कहना सर्वथा यथार्थ है कि बिहार की कृषि में बढ़ती हुई उत्पादकता से बिहार के अन्य औद्योगिक विकास में विभिन्न प्रकार की सहायता प्राप्त होती है| बिहार की कृषि उत्पादकता अधिक होने पर कृषि क्षेत्र से अन्य क्षेत्रों को श्रम शक्ति का स्थानान्तरण संभव होगा| इसके साथ साथ गैर कृषि क्षेत्र की बढ़ती हुई खाद्य सामग्री की माँग कृषि व्यवसाय में कम व्यक्ति रह जाने पर ही पूरा किया जा सकता है| इसके फलस्वरूप कृषि से जुड़े लोगों की आय भी बढ़ जाएगी| जब कृषि उत्पादन बढता है तो राज्य की आय बढती है और प्रति व्यक्ति आय में वृद्धि होती है| बिहार में कृषि का योगदान राज्य की आय में काफी अधिक है| कृषि बिहार में वस्तुओं की खरीद बिक्री द्वारा अन्य क्षेत्रों के विकास एवं विस्तार का अवसर प्रदान करती है| यह खाद्यान्न एवं कच्चे माल की आपूर्ति अन्य क्षेत्रों में करता है और उद्योग के द्वारा निर्मित वस्तुओं के लिए बाजार उपलब्ध कराता है| इस प्रकार बिहार में कृषि से गैर कृषि क्षेत्रों को भी प्रोत्साहन मिलता है|
2. बिहार में कृषि के पिछड़ेपन के क्या कारण है| इसके विकास के उपाय बताएं|
उत्तर:-
बिहार एक कृषि प्रधान राज्य है| लेकिन, कृषि की प्रधानता होने पर भी देश के अन्य विकसित राज्यों की अपेक्षा यहाँ की कृषि पिछड़ी हुई अवस्था में है| इसके कयी कारण है जिनमें निम्नलिखित प्रमुख है——-
मिट्टी का दोष—
बिहार में कृषि के पिछड़ेपन अथवा इसकी उत्पादकता कम होने का एक प्रमुख कारण मिट्टी के गुण में एकरूपता का अभाव है| उत्तरी बिहार की मिट्टी के गुण मध्य एवं दक्षिण बिहार की मिट्टियों से सर्वथा भिन्न है| कहीं भूमि के कटाव अथवा जलजमाव की समस्या है तो कहीं की मिट्टी में नाइट्रोजन की कमी है|
दोषपूर्ण भूमि व्यवस्था—
बिहार की कृषि के पिछड़े होने का दूसरा महत्वपूर्ण कारण यहाँ की वर्तमान भूमि व्यवस्था है| जमींदारी उन्मूलन के पश्चात राज्य में भूमि सुधार का कोई भी कार्यक्रम प्रभावी रूप से कार्यान्वित नहीं हुआ है| भूमि सीमा निर्धारण से प्राप्त भूमि कानूनी विवादों में है तथा अधिग्रहित भूमि का उचित वितरण नहीं हो सका है|
जोतों का आकार—
अन्य राज्यों की अपेक्षा बिहार में जोतों का आकार बहुत छोटा है| मध्य बिहार की अपेक्षा उत्तर बिहार में जोतों का आकार और भी छोटा है| इन छोटी और अनार्थिक जोतों पर कृषि के आधुनिक तरीकों का प्रयोग करना संभव नहीं है|
बाढ़ और भूमि क्षरण—
बिहार में बाढ़ की समस्या अत्यधिक गंभीर है| बाढ़ का प्रकोप उत्तर बिहार में अधिक होता है| बाढ़ के कारण इस क्षेत्र में भूमि का एक बड़ा भाग प्रतिवर्ष परती रह जाता है| बाढ़ से भू क्षरण भी होता है तथा इससे राज्य की लगभग 20 लाख हेक्टेयर भूमि प्रभावित होती है|
सिंचाई की सुविधाओं का अभाव—-
बिहार में सिंचाई की सुविधाओं का बहुत अभाव है| सुनिश्चित सिंचाई में कृषि विकास की अनिवार्य शर्त है| लेकिन, राज्य में पर्याप्त सिंचाई क्षमता होने पर भी उचित जल प्रबंधन के अभाव में उनका पूर्ण उपयोग नहीं हो सका है| कृषि विकास और उनकी उत्पादकता मुख्यतया दो बातों पर निर्भर है—– कृषि निवेश और संस्थागत सुधार| कृषि निवेश के अंतर्गत जल प्रबंधन, उन्नत बीज एवं खाद, आधुनिक यंत्र और उपकरण आदि महत्वपूर्ण है| इसके लिए राज्य के निर्धन किसानों को पर्याप्त साख या वित्त की व्यवस्था अत्यंत आवश्यक है| बिहार में कृषि के पिछड़ेपन को दूर करने तथा उसकी उत्पादकता को बढाने के लिए राज्य की भूमि व्यवस्था में भी सुधार आवश्यक है|
3. बिहार में किन खाद्य फसलों का उत्पादन होता है| हरित क्रांति का राज्य में खाद्यान्न के उत्पादन पर क्या प्रभाव हुआ है?
उत्तर:-
बिहार की भूमि बहुत उर्वर है तथा जैव विविधता के कारण यहाँ के किसान अनाज, दलहन, तेलहन, तथा फल एवं सब्जी जैसी अनेक फसलों का उत्पादन करते हैं| लेकिन बिहार की कृषि व्यवस्था मूलतः जीवन निर्वाह पर आधारित है| इसके फलस्वरूप यहाँ की प्रमुख फसलों में खाद्य फसलों का अनुपात सबसे अधिक है| बिहार की प्रमुख खाद्य फसलें निम्नलिखित हैं——
चावल—
चावल बिहार की सबसे प्रमुख खाद्य फसल है यह फसल खरीफ फसल के अंतर्गत आती है| साधारणतः यह वर्षा ऋतु के आरंभ होने पर बोया जाता है और जाड़े में काट लिया जाता है| राज्य के प्रायः सभी क्षेत्रों में इसकी खेती की जाती है| लेकिन, इसके लिए बिहार का मैदानी भाग अधिक उपयुक्त है| चावल के उत्पादन में रोहतास, औरंगाबाद, कैमूर, भोजपुर और नालंदा राज्य के पांच शीर्ष जिले है|
गेहूँ—-
बिहार की खाद्य फसलों में चावल के बाद गेहूँ का दूसरा स्थान है| यह जाड़े की फसल है तथा इसका उत्पादन रबी फसलों के अंतर्गत होता है| रोहतास, पूर्वी चंपारण, सीवान, पश्चिमी चंपारण, गोपालगंज, नालंदा, मुजफ्फरपुर, पटना, भोजपुर आदि जिलों में इसकी खेती की जाती है| पिछले कुछ वर्षों में गेहूँ की उपज घटने से इसके कुल उत्पादन में कमी हुई है| 2000-01 में गेहूँ का कुल उत्पादन लगभग 44 लाख मेट्रिक टन था जो 2006-07 में घटकर लगभग 36 लाख मेट्रिक टन हो गया|
मक्का—-
चावल और गेहूँ के बाद मक्का या मकई बिहार की मुख्य खाद्य फसल है| राज्य के गरीब किसानों के लिए इस फसल का विशेष महत्व है| बिहार में सबसे अधिक मक्के का उत्पादन खगड़िया जिले में होता है| विगत वर्षों के अंतर्गत राज्य में मक्का के उत्पादन क्षेत्र तथा कुल उत्पादन में कमी हुई है|
मोटे अनाज—
जौ, ज्वार, बाजरा आदि खाद्यान्नों की गणना मोटे अनाज में की जाती है तथा बिहार के कुछ भागों में इनका भी उत्पादन होता है| हमारे देश में हरित क्रांति के आने के बाद अब बिहार के किसान भी उन्नत बीज, उर्वरक आदि जैसे आधुनिक कृषि के साधनों का प्रयोग करने लगे हैं| इससे राज्य की प्रमुख फसलों की प्रति हेक्टेयर उत्पादकता बढ़ी है| फिर भी, देश के अन्य विकसित राज्यों की अपेक्षा बिहार में इनकी उत्पादकता कम है| इसके साथ ही खाद्य फसलों की उत्पादकता की दृष्टि से राज्य के विभिन्न जिलों में भारी अंतराल है| इसका प्रमुख कारण किसानों की निर्धनता तथा राज्य में सुनिश्चित सिंचाई का अभाव है|
4. खाद्यान्न की गुणवत्ता से आप क्या समझते हैं? क्या हमारे देश तथा राज्य के निवासियों को पर्याप्त एवं पौष्टिक आहार मिलता है?
उत्तर:-
खाद्य सुरक्षा के दो मुख्य पक्ष है—- परिमाणात्मक एवं गुणात्मक| इसका परिमाणात्मक पक्ष खाद्यान्न की मात्रा से जुड़ा है| खाद्यान्न की आपूर्ति का दूसरा पक्ष उसकी गुणवत्ता से संबंधित है| हमारे देश के अधिकांश नागरिकों को संतुलित एवं पौष्टिक आहार नहीं मिलता है| खाद्यान्न की गुणवत्ता का अभिप्राय स्वास्थ्य तथा कार्यक्षमता को बनाए रखने के लिए संतुलित एवं पौष्टिक आहार की व्यवस्था से है| पर्याप्त मात्रा में एवं पौष्टिक आहार नहीं मिलने से मानव संसाधनों का विकास अवरुद्ध हो जाता| भारत में खाद्यान्न का गुणात्मक अभाव बहुत अधिक है तथा अधिकांश देशवासियों को संतुलित भोजन नहीं मिलता है| विकसित देशों की तुलना में भारतीयों के आहार में पोषक तत्वों की बहुत कमी होती है| बिहार में निर्धन व्यक्तियों की संख्या बहुत अधिक है| इनके भोजन में पोषक तत्वों की और भी कमी होती है| हमारे राज्य के अधिकांश व्यक्ति ग्रामीण क्षेत्रों में निवास करते हैं| ये प्रायः शाकाहारी होते हैं| शाकाहारी भोजन में पोषक तत्व तथा प्रोटीन मुख्यतया दाल से मिलता है| बिहार के प्रायः सभी भागों में दलहन का उत्पादन होता है| लेकिन निम्न आय एवं क्रयशक्ति के अभाव में अधिकांश ग्रामीण परिवार अपने भोजन में दाल का बहुत कम प्रयोग करते हैं| संतुलित तथा पौष्टिक आहार नहीं मिलने के कारण ही बिहार में कुपोषण और एनीमिया (खून की कमी) के शिकार बच्चों एवं महिलाओं की संख्या देश में सबसे अधिक है| हाल के एक सर्वेक्षण के अनुसार, राज्य में निर्धनता रेखा के नीचे के परिवारों के दस में आठ बच्चे कुपोषण के शिकार है| इस सर्वेक्षण के अनुसार, बिहार में पिछले कुछ वर्षों के अंतर्गत कुपोषण बढ़ा हैं| सार्वजनिक वितरण प्रणाली द्वारा निर्धनों को कम कीमत पर जो अनाज उपलब्ध कराया जाता है, उसमें केवल गेहूँ और चावल होता है| समुचित भंडारण और रख रखाव के अभाव में सार्वजनिक वितरण प्रणाली द्वारा वितरित अनाज भी प्रायः घटिया किस्म का होता है| अति निर्धन परिवारों को पर्याप्त एवं संतुलित आहार नहीं मिलने के कारण ही हमारे समाज राज्य में खाद्य असुरक्षा की स्थिति वर्तमान है|
5. समाज के किस वर्ग में खाद्य असुरक्षा सबसे अधिक है? हमारे देश की सामाजिक रचना की खाद्य असुरक्षा में क्या भूमिका होती है?
उत्तर:- भारत में समाज का एक बहुत बड़ा वर्ग खाद्य एवं पोषण से असुरक्षित है, लेकिन कुछ विशेष वर्गों में यह असुरक्षा अधिक है| ग्रामीण क्षेत्रों में बहुत छोटे किसान, भूमिहीन श्रमिक, बढई, लोहार, जुलाहे, परंपरागत कारीगर, स्वनियोजित व्यक्ति, अनाथ बच्चे, विधवाएँ, अपंग, भिखारी आदि खाद्य असुरक्षा से सर्वाधिक प्रभावित वर्ग है| भारतीय कृषि की प्रकृति मौसमी होने के कारण इससे संबद्ध क्रियाकलाप में लगे व्यक्ति प्रायः 4-5 महीने बेकार रहते हैं, इन्हें नियमित काम नहीं मिलता और इनकी आय बहुत कम होती है| फलस्वरूप, इस अवधि में इनमें खाद्य असुरक्षा बहुत अधिक होती है| शहरी क्षेत्रों में बहुत कम आय वाले व्यवसाय या धंधे में लगे व्यक्ति तथा दैनिक मजदूरों का परिवार खाद्य असुरक्षा से सर्वाधिक प्रभावित होता है| इनकी आय अथवा मजदूरी अनियमित, बहुत कम तथा इनके जीवन धारणा के लिए अपर्याप्त होती है| हमारे देश की सामाजिक रचना की भी खाद्य असुरक्षा में महत्वपूर्ण भूमिका होती है| अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति तथा अत्यंत पिछड़े वर्ग के परिवारों का भूमिगत आधार बहुत कमजोर होता है और वे खाद्य असुरक्षा से अधिक प्रभावित होते हैं| प्राकृतिक आपदाओ के साथ उजागर की खोज में दूसरे स्थानों के लिए पलायन करने वाले व्यक्तियों में भी खाद्य असुरक्षा अधिक होती है| हमारे देश की महिलाओं में कुपोषण की दर बहुत अधिक है| इससे प्रायः इनके होनेवाले बच्चे भी कुपोषण के शिकार हो जाते हैं| देश की खाद्य असुरक्षा से प्रभावित जनसंख्या में गर्भवती महिलाओं, माताओं तथा 5 वर्ष से कम आयु के बच्चों की संख्या बहुत अधिक है| वर्ष 1998-99 के राष्ट्रीय स्वास्थ्य एवं पारिवारिक सर्वेक्षण के अनुसार, देश में इस प्रकार की महिलाओं और बच्चों की संख्या लगभग 11 करोड़ थी| हमारे देश के कुल विशेष क्षेत्रों में भी खाद्य असुरक्षित व्यक्तियों की संख्या अपेक्षाकृत बहुत अधिक है| इनमें आर्थिक दृष्टि से पिछड़े हुए राज्य, आदिवासी, दुर्गम एवं पहाड़ी इलाके तथा प्राकृतिक विपदाओं से शीघ्र प्रभावित होनेवाले क्षेत्र शामिल हैं| वास्तव में, उत्तर प्रदेश के पूर्वी तथा दक्षिण पूर्वी भाग, बिहार, झारखंड, उड़ीसा, पश्चिम बंगाल और महाराष्ट्र के कुछ भागों में खाद्य असुरक्षित व्यक्तियों की संख्या सबसे अधिक है|
6. खाद्यान्न का सुरक्षित भंडार क्या है? सरकार इस भंडार का निर्माण क्यों करती है?
उत्तर:-
स्वतंत्रता प्राप्ति के समय भारत में खाद्यान्न का कुल उत्पादन हमारी आवश्यकताओं से बहुत कम था और देश में खाद्य असुरक्षा की समस्या अत्यधिक गंभीर थी| परंतु, विगत वर्षों के अंतर्गत इस समस्या की गंभीरता बहुत कम हो गई है| इसका प्रमुख कारण देश के प्रायः सभी भागों में एक से अधिक फसलों का उत्पादन तथा कृषि की उपज में होनेवाली वृद्धि है| इसका दूसरा कारण सरकार की एक सुनियोजित खाद्य सुरक्षा प्रणाली है| इस प्रणाली के दो मुख्य अंग है—-खाद्यान्न का सुरक्षित भंडार तथा सार्वजनिक वितरण प्रणाली द्वारा इनका समुचित वितरण खाद्यान्न के सुरक्षित भंडार से हमारा अभिप्राय सरकार के चावल और गेहूँ जैसे मुख्य अनाज के कुल अतिरिक्त भंडार से है| बाजार में खाद्यान्न की उपलब्धता और उनका मूल्य मुख्यतया अनाजों की कुल आपूर्ति पर निर्भर है| खाद्य पदार्थों के उत्पादन में वृद्धि होने पर भी अनेक अवसरों पर देश के कुछ भागों में उनका अभाव हो जाता है| इस स्थिति में प्रायः बड़े किसान या व्यापारी अधिक लाभ कमाने के लिए अनाज को छिपा देते हैं| इससे उनके मूल्यों में और अधिक वृद्धि होती है| अत एव, सरकार भारतीय खाद्य निगम के माध्यम से प्रतिवर्ष किसानों की अतिरिक्त उपज की खरीद और उनका भंडारण करती है, सार्वजनिक क्षेत्र की तीन संस्थाएँ करती है| इनमें भारतीय खाद्य निगम एक प्रमुख संस्था है| सरकार इन संस्थाओं के माध्यम से किसानों के जिस अनाज की खरीद और उनका भंडारण करती है उनका पूर्व निर्धारित मूल्यों पर भुगतान किया जाता है| इस मूल्य को न्यूनतम समर्थित मूल्य कहा जाता है| सरकार प्रतिवर्ष फसलों की बोआई के पूर्व इस समर्थित मूल्य घोषणा करती है| इससे किसानों को उनकी उपज का लाभकारी मूल्य प्राप्त होता है जिससे उन्हें कृषि के तरीकों में सुधार तथा कृषि की उपज को बढाने के लिए प्रोत्साहन मिलता है| साथ ही, इस नीति से सरकार के खाद्यान्न के एक सुरक्षित भंडार को निर्माण का उद्देश्य भी पूरा होता है| सरकार द्वारा इस सुरक्षित खाद्यान्न भंडार के निर्माण का मुख्य उद्देश्य देश के सामान्य नागरिकों, विशेषतया निर्धनता रेखा से नीचे रहनेवाले व्यक्तियों को खाद्य सुरक्षा प्रदान करता है| इसके लिए वह इनके बीच सार्वजनिक वितरण प्रणाली द्वारा अपने संग्रहित अनाज का बाजार मूल्यों से बहुत कम मूल्य पर वितरण की व्यवस्था करती है|
7. निर्धनों को खाद्य सुरक्षा प्रदान करने के लिए सरकार ने क्या उपाय किये है? इसके लिए सरकार द्वारा आरंभ की गई प्रमुख योजनाओं का उल्लेख करें|
उत्तर:-
हमारे देश के निर्धन परिवारों में खाद्य असुरक्षा बहुत अधिक है| इन्हें खाद्य सुरक्षा प्रदान करने के लिए सरकार ने कयी उपाय किये है| इनमें सबसे प्रमुख देश में एक व्यापक सार्वजनिक वितरण प्रणाली की स्थापना है| इस प्रणाली के अंतर्गत हमारे देश के प्रायः सभी लोगों में सरकार द्वारा नियंत्रित खाद्यान्नों को उचित मूल्य पर बेचनेवाली राशन की दुकानें हैं| इनके माध्यम से वह निर्धन परिवारों के बीच बहुत कम मूल्य पर अति आवश्यक खाद्य पदार्थों के वितरण की व्यवस्था करती है| सार्वजनिक वितरण प्रणाली से निर्धनों को खाद्य सुरक्षा प्रदान करने में बहुत सहायता मिली है| निर्धनता रेखा से नीचे के परिवारों को खाद्य सुरक्षा प्रदान करने के लिए सरकार ने कयी विशिष्ट योजनाएँ भी आरंभ की है| इनमें मध्याह्न भोजन योजना, अंत्योदय अन्न योजना तथा अन्नपूर्णा योजना सर्वाधिक महत्वपूर्ण है| ये योजनाएँ पूर्णरूप से खाद्य सुरक्षा की योजनाएँ है तथा इनसे खाद्य सुरक्षा प्रदान करने में सहायता मिली है| हमारे देश के ग्रामीण क्षेत्रों में अधिकांश बच्चों को पौष्टिक आहार नहीं मिलता और वे कुपोषण के शिकार है| मध्याह्न भोजन योजना इस दृष्टि से महत्वपूर्ण है कि यह बाल विकास के साथ ही शैक्षिक सुधार के उद्देश्य पर आधारित है| देश के सरकारी, सरकारी सहायता प्राप्त तथा स्थानीय निकाय के प्राथमिक विद्यालयों की कक्षा 1 से 5 तक के सभी छात्र इस योजना में शामिल हैं| सरकार ने निर्धनों में भी निर्धनतम व्यक्तियों को खाद्य सुरक्षा प्रदान करने के लिए दिसम्बर 2000 से अंत्योदय अन्न योजना आरंभ की है| वर्तमान में इस योजना के अंतर्गत प्रत्येक निर्धन परिवार को 2 रुपये प्रति किलोग्राम गेहूँ तथा 3 रुपये प्रति किलोग्राम चावल की अत्यधिक रियायती दर पर 35 किलोग्राम खाद्यान्न की आपूर्ति की जाती है| अन्नपूर्णा योजना सरकार की एक अन्य महत्वपूर्ण योजना है| इसके अंतर्गत 65 वर्ष या उससे अधिक आयु वर्ग वाले ऐसे असहाय वृद्ध आते हैं, जिन्हें राष्ट्रीय वृद्धावस्था पेंशन योजना के योग्य होने पर भी इस योजना का लाभ नहीं मिल पा रहा है| इस योजना में प्रतिव्यक्ति 10 किलोग्राम खाद्यान्न नि:शुल्क दिया जाता है|
8. सार्वजनिक वितरण प्रणाली क्या है? यह प्रणाली किस प्रकार खाद्य सुरक्षा करती है?
उत्तर:-
सार्वजनिक वितरण प्रणाली का अभिप्राय उस प्रणाली से है जिसमें आवश्यक उपभोक्ता पदार्थों को सार्वजनिक रूप से इस प्रकार वितरित किया जाता है कि वे सभी उपभोक्ताओं को उचित एवं निर्धारित मूल्य पर एक निश्चित मात्रा में प्राप्त हो सके| इसका उद्देश्य खाद्यान्नों के वितरण प्रणाली को संतुलित रखना और उनके मूल्य में स्थायित्व लाना है| सार्वजनिक वितरण प्रणाली के अंतर्गत सरकार ने हमारे देश के प्रायः सभी भागों में खाद्यान्न एवं अतिआवश्यक पदार्थों को उचित मूल्य पर बेचनेवाली राशन दुकानों को खोला है| सरकारी राशन दुकानों को उचित मूल्य की दुकानें भी कहते हैं| इनके माध्यम से सरकार भारतीय खाद्य निगम तथा अन्य सार्वजनिक एजेंसियों द्वारा संग्रहित खाद्यान्न का समाज के निर्धन परिवारों के बीच वितरण की व्यवस्था करती है| हमारे देश तथा राज्य के प्रायः सभी गाँवों, शहरों तथा महानगरों में सार्वजनिक अथवा जन वितरण प्रणाली द्वारा स्थापित उचित मूल्य की दुकानें हैं| वर्तमान में इन दुकानों द्वारा लोगों को गेहूँ, चावल, चीनी और किरोसिन जैसे अति आवश्यक उपभोक्ता पदार्थों की आपूर्ति की जाती है| उचित मूल्य की दुकानों में इन वस्तुओं का मूल्य इनके बाजार मूल्य से अपेक्षाकृत बहुत कम होता है| देश में खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए सार्वजनिक वितरण प्रणाली भारत सरकार का सबसे प्रभावपूर्ण कदम है| खाद्यान्नों के वितरण के लिए सरकार ने उचित मूल्य की दुकानों के माध्यम से देश में सार्वजनिक वितरण प्रणाली की एक व्यापक संरचना का निर्माण किया है| इस प्रणाली का मुख्य उद्देश्य सामान्य नागरिकों, विशेषतया समाज के कमजोर वर्गों को खाद्य सुरक्षा प्रदान करने के लिए उन्हें उचित मूल्य पर आवश्यक खाद्य पदार्थों की आपूर्ति सुनिश्चित करना है| सार्वजनिक वितरण प्रणाली को अधिक उपयोगी और कुशल बनाने के लिए विगत वर्षों के अन्तर्गत सरकार ने अपनी नीति में कयी महत्वपूर्ण परिवर्तन एवं संसोधन किए हैं| निर्धनता रेखा से नीचे रहनेवाले परिवारों को खाद्यान्न की न्यूनतम मात्रा की उपलब्धता सुनिश्चित करने के उद्देश्य से सरकार ने 1997 से लक्षित सार्वजनिक वितरण प्रणाली लागू की है| इसके अंतर्गत देश के 6 करोड़ से भी अधिक निर्धन परिवारों को विशेष रियायती दर पर खाद्यान्न की एक निश्चित मात्रा की आपूर्ति की जाती है| अभी सरकार द्वारा समाज के निर्धनतम व्यक्तियों तथा असहाय वृद्ध नागरिकों के लिए चलायी जा रही दो विशिष्ट योजनाओं अंत्योदय अन्न योजना तथा अन्नपूर्णा योजना का क्रियान्वयन भी सार्वजनिक वितरण प्रणाली से जुड़ा है|
9. सार्वजनिक वितरण प्रणाली क्या है? इस प्रणाली के मुख्य दोष क्या है?
उत्तर:-
सार्वजनिक वितरण प्रणाली का अभिप्राय उस प्रणाली से है जिससे आवश्यक उपभोक्ता पदार्थों को सार्वजनिक रूप से इस प्रकार वितरित किया जाता है कि वे सभी उपभोक्ताओं को उचित एवं निर्धारित मूल्य पर एक निश्चित मात्रा में पर्याप्त में प्राप्त हो सकें| इसका उद्देश्य खाद्यान्नों के वितरण को संतुलित रखना और उनके मूल्य में स्थापित लाना है| राशन दुकानों की कार्यप्रणाली में कयी दोष है| यह इस तथ्य से स्पष्ट है कि हमारे देश में राष्ट्रीय स्तर पर इन दुकानों द्वारा वितरित की जानेवाली खाद्यान्न की प्रतिव्यक्ति प्रतिमाह औसत खपत मात्र एक किलोग्राम है| बिहार, उड़ीसा और उत्तर प्रदेश में यह और भी कम प्रतिव्यक्ति प्रतिमाह केवल 300 ग्राम है| मध्य प्रदेश में राशन दुकानों द्वारा निर्धन व्यक्तियों को गेहूँ और चावल के उपयोग की मात्र 5 प्रतिशत आवश्यकता की पूर्ति की जाती है| बिहार और उत्तर प्रदेश जैसे राज्यों में यह प्रतिशत और भी कम है| राशन दुकानों में कयी अन्य दोष भी है| इनके विक्रेता प्रायः कालाबाजारी करते हैं और अपनी वस्तुएँ खुले बाजारों में ऊंचे मूल्य पर बेच देते हैं| राशन अथवा उचित मूल्य की दुकानें नियमित रूप से और समय पर नहीं खोली जाती है| इन दुकानों से बिकनेवाला अनाज भी खुले बाजार की तुलना में निम्न स्तर का होता है|
10. खाद्य सुरक्षा प्रदान करने में सरकारी एवं गैर सरकारी योगदान की विवेचना करें|
उत्तर:-
खाद्य सुरक्षा की समस्या देश के सभी नागरिकों को उनके कार्यशील एवं स्वस्थ जीवन के लिए पर्याप्त, सुरक्षित तथा पौष्टिक भोजन की उपलब्धता से संबंधित है| हमारे देश के निर्धन परिवारों में खाद्य असुरक्षा बहुत अधिक है| इसके लिए सरकार द्वारा कयी योजनाएँ चलायी जा रही है जिनमें सार्वजनिक वितरण प्रणाली सर्वाधिक महत्वपूर्ण है| समाज के कुछ विशेष वर्ग या समुदाय में वर्तमान खाद्य समस्या के निदान के लिए सरकार ने कयी विशिष्ट कार्यक्रम भी आरंभ किए हैं| इनमें मध्याह्न भोजन योजना, अंत्योदय अन्न योजना और अन्नपूर्णा योजना सर्वाधिक महत्वपूर्ण है| सरकार के इन कार्यक्रमों से समाज के निर्धन वर्ग को खाद्य सुरक्षा प्रदान करने में बहुत सहायता मिली है| सामान्य नागरिकों को खाद्य सुरक्षा प्रदान करने में गैर सरकारी संगठन भी बहुत सहायक हो सकते हैं| इस दृष्टि से देश में सहकारी संस्थाओं की भूमिका महत्वपूर्ण है| खाद्य सुरक्षा एवं खाद्य वस्तुओं की आपूर्ति में सहकारिता की सफलता के कयी अन्य उदाहरण भी है| विगत वर्षों के अंतर्गत बिहार राज्य सहकारी दुग्ध उत्पाद संघ ने भी दूध एवं दुग्ध उत्पादों के उत्पादन, संग्रहण और वितरण प्रणाली में उल्लेखनीय कार्य किया है| उसी प्रकार, महाराष्ट्र में विकास विज्ञान संस्थान की सहायता से कयी गैर सरकारी संगठनों ने राज्य के कयी क्षेत्रों में अनाज बैंकों की स्थापना की है| यह संस्थान गैर सरकारी संगठनों को खाद्य सुरक्षा प्रदान करने तथा इसके लिए क्षमता निर्माण का प्रशिक्षण देता है|
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