Bharti Bhawan Economics Class-9:Chapter-6:Very Short Type Question Answer:Short Type Question Answer:Long Answer Type Question Answer:अर्थशास्त्र:कक्षा-9:अध्याय-6:अति लघु उत्तरीय प्रश्न उत्तर:लघु उत्तरीय प्रश्न:दीर्घ उत्तरीय प्रश्न

                 कृषि मजदूरों की समस्याएँ





अतिलघु उत्तरीय प्रश्न




1. कृषि श्रमिक या कृषि मजदूर से आप क्या समझते हैं? 
उत्तर:-
कृषि श्रमिक या कृषि मजदूर ऐसे व्यक्तियों को कहते हैं जो कृषि या कृषि से संबंधित अन्य धंधों में किराये के मजदूर के रूप में कार्य करते हैं|
2. भूमिहीन कृषि श्रमिक कौन है? 
उत्तर:- भूमिहीन कृषि श्रमिक वे है जो अपनी आजीविका के लिए कृषि एवं इससे संबंद्ध क्रियाकलापों पर निर्भर है, लेकिन जिनके पास खेती करने के लिए कोई निजी भूमि नहीं होती है|
3. सीमांत किसानों से आप क्या समझते हैं? 
उत्तर:- सीमांत किसान वे हैं जिनके पास कुछ निजी भूमि होती है, लेकिन वह उनके जीवन निर्वाह के लिए पर्याप्त नहीं होती है|
4. बिहार में कृषि श्रमिकों की क्या स्थिति है? 
उत्तर:- बिहार में कृषि श्रमिकों की संख्या बहुत अधिक है तथा इसमें निरंतर वृद्धि हो रही है| योजना आयोग की एक समिति द्वारा अविभाजित बिहार में कराए गए एक सर्वेक्षण के अनुसार, बिहार के ग्रामीण क्षेत्रों में 33 प्रतिशत से अधिक कृषि मजदूरों के परिवार थे| 2001 की जनगणना के आंकड़ों के अनुसार, बिहार में कृषि मजदूरों की संख्या 90.20 लाख से भी कुछ अधिक है|  बिहार सरकार के 2008-09 के आर्थिक सर्वेक्षण के अनुसार, राज्य में कृषि श्रमिक लगभग 48 प्रतिशत है| 
5. न्यूनतम मजदूरी अधिनियम क्या है? बिहार में सरकार द्वारा निर्धारित कृषि श्रमिकों की न्यूनतम मजदूरी क्या है? 
उत्तर:- न्यूनतम मजदूरी अधिनियम सरकार द्वारा पारित वह अधिनियम है जिसके अनुसार श्रमिकों को सरकार द्वारा निर्धारित दर से कम मजदूरी देना गैर कानूनी है| भारत सरकार ने 1948 में ही न्यूनतम मजदूरी अधिनियम पारित किया था जिसे कृषि श्रमिकों पर भी लागू कर दिया गया है| इस अधिनियम द्वारा देश के सभी राज्यों में वहाँ की वर्तमान परिस्थितियों के अनुसार मजदूरी की न्यूनतम दरें निश्चित कर दी गई है| अभी बिहार में कृषि श्रमिकों के लिए मजदूरी की न्यूनतम निर्धारित दर प्रतिदिन 66 रुपये है|
6. बिहार में कृषि मजदूरों की मुख्य समस्या क्या है? 
उत्तर:-कृषि मजदूरों की मुख्य समस्या रोजगार के साधनों का अभाव है और यह ग्रामीण क्षेत्रों में व्याप्त बेरोजगारी एवं अर्द्ध बेरोजगारी की समस्या से जुड़ी है|
7. बिहार में कृषि श्रमिकों को संगठित करने में मुख्य कठिनाई है? 
उत्तर:- कृषि श्रमिक देश अथवा राज्य के दूरस्थ गाँवों में फैले हुए हैं, इनमें शिक्षा का सर्वथा अभाव है तथा औद्योगिक श्रमिकों के समान इनका कोई संगठन नहीं है|
8. बिहार से कृषि श्रमिकों के पलायन का मुख्य कारण क्या है? 
उत्तर:-
बिहार से कृषि श्रमिकों के पलायन का मुख्य कारण यहाँ की कृषि का पिछड़ापन इसकी मौसमी प्रकृति तथा राज्य में वृहत उद्योगों का सर्वथा अभाव है|
9. बिहार के किस क्षेत्र से श्रमिकों का अधिक पलायन हो रहा है? 
उत्तर:-बिहार के प्राथमिक अथवा कृषि क्षेत्र से श्रमिकों का अधिक पलायन हो रहा है तथा राज्य से पलायन करनेवाले श्रमिकों में कृषि श्रमिकों की संख्या अधिक है|
10. कृषि श्रमिकों के पलायन से उनके परिवार के सदस्य किस प्रकार प्रभावित हुए हैं? 
उत्तर:- नयी दिल्ली के मानव विकास संस्थान के सर्वेक्षण के अनुसार, कृषि मजदूरों के राज्य से पलायन के कुछ सकारात्मक परिणाम भी देखने को मिले हैं| अपने मूल गाँव में काम और उचित मजदूरी नहीं मिलने के कारण ही कृषि श्रमिकों का देश के दूसरे राज्यों में पलायन हुआ है| प्रवासी श्रमिकों के लिए इनके नये स्थानों में रोजगार के अधिक अवसर उपलब्ध है और इन्हें वेतन या मजदूरी भी अधिक मिलती है| वे अपनी बढ़ी हुई मजदूरी या पारिश्रमिक का एक भाग बचाकर गाँव में अपने परिवारों को भेजते हैं| इससे इनके परिवार के सदस्यों के रहन सहन के स्तर में सुधार हुआ है|
11. बंधुआ मजदूर किसे कहते हैं? 
उत्तर:- बंधुआ मजदूर वे हैं जो ऋणों आदि की अदायगी नहीं करने के कारण भू स्वामी के यहाँ बहुत कम मजदूरी या केवल भोजन पर कार्य करने के लिए बाध्य होते हैं|
12. कृषि श्रमिकों में समाज के किस वर्ग के व्यक्तियों की संख्या अधिक होती है? 
उत्तर:- कृषि श्रमिकों में समाज के पिछड़े वर्ग, विशेषतया अनुसूचित जाति एवं जनजाति के व्यक्तियों की संख्या अधिक होती है|
13. कृषि श्रमिकों के पलायन का क्या अभिप्राय है? 
उत्तर:- कृषि श्रमिकों के पलायन का अर्थ इनका काम की खोज में अपने मूल स्थान से राज्य, देश अथवा विदेशों में स्थानांतरण है|
14. बिहार के किन भागों से कृषि श्रमिकों का अत्यधिक पलायन होता है| तथा इसका प्रमुख कारण क्या है? 
उत्तर:-
बिहार के अन्य भागों की अपेक्षा उत्तर बिहार से कृषि श्रमिकों का अत्यधिक पलायन होता है| तथा प्रमुख कारण इस क्षेत्र के एक बड़े भू भाग में प्रतिवर्ष बाढ़ से होनेवाली विभीषिका है|
15. बंधुआ मजदूर उन्मूलन अधिनियम कब पारित हुआ था? 
उत्तर:- बंधुआ मजदूर उन्मूलन अधिनियम 1976 में पारित हुआ था| तथा इसके अंतर्गत देश में सभी प्रकार को बंधुआ मजदूरी को गैर कानूनी घोषित कर दिया गया है|

लघु उत्तरीय प्रश्न







1. कृषि श्रमिकों के मुख्य प्रकार क्या है? 
उत्तर:-
कृषक मजदूर को मुख्यतः तीन भागों में बांटा जा सकता है—–
खेत में काम करने वाले मजदूर—–
इसके अंतर्गत हलवाहे, फसल काटने वाले आदि आते हैं जिन्हें पूर्ण रूप से कृषक मजदूर कहा जाता है| ये अपने काम के क्रम में कुशलता प्राप्त कर लेते हैं|
कृषि से संबंद्ध अन्य कार्य करने वाले मजदूर—–
इसके अंतर्गत कुआँ खोदने वाले, गाड़ी वान आते हैं| इन्हें अर्द्धकुशल मजदूर कहा जाता है|
वैसे मजदूर जो कृषि के अलााा अन्य सहायक उद्योगों में भी
लगे हुए हैं| इसके अंतर्गत बढ़ई, लोहार, कुम्भकार आदि आते हैं| इन्हें ग्रामीण कलाकार भी कहा जा सकता है|
राष्ट्रीय श्रम आयोग ने कृषक मजदूरों को दो भागों में बांटा है——
भूमिहीन श्रमिक—-
ये ऐसे श्रमिक है जिनके पास खेती करने के लिए अपनी कोई भूमि नहीं है|
बहुत से छोटा किसान—–
ये ऐसे श्रमिक है जिनके पास बहुत थोड़ी मात्रा में अपनी भूमि होती है|

2. बिहार में कृषि श्रमिकों की संख्या में वृद्धि के क्या कारण है? 
उत्तर:-
बिहार में कृषि श्रमिकों की संख्या बहुत अधिक है तथा इसमें निरंतर वृद्धि हो रही है| इसके अनेक कारण है, देश के अन्य राज्यों की अपेक्षा बिहार की जनसंख्या में अधिक तेजी से वृद्धि हो रही है| जनसंख्या में होनेवाली इस वृद्धि का अतिरिक्त बोझ मुख्यतया कृषि को वहन करना पड़ता है इससे कृषि श्रमिकों की संख्या में वृद्धि हो रही है| बिहार में वृहत उद्योगों का सर्वथा अभाव है| अनेक कारणों से राज्य के चीनी, जूट, कागज आदि कृषि आधारित उद्योग भी रुग्ण अवस्था में है तथा इनमें अधिकांश बंद हो गये हैं| इससे कृषि श्रमिकों की संख्या में वृद्धि हुई है| बिहार में कृषि मजदूरों की संख्या में वृद्धि का एक अन्य कारण यहाँ की वर्तमान भूमि व्यवस्था है| जमींदारी उन्मूलन के बाद राज्य में भूमि सुधार का कोई भी कार्यक्रम प्रभावी रूप से कार्यान्वित नहीं हुआ है| अधिकांश किसानों के जोत बहुत छोटे है, उनकी आय बहुत कम है| और वे प्रायः ऋणग्रस्त होते हैं| अत:, वे अपनी भूमि बड़े किसानों अथवा महाजनों के हाथों बेचने के लिए बाह्य हो जाते हैं| इसके फलस्वरूप अनेक छोटे और सीमांत किसान अब भूमिहीन श्रमिक हो गये हैं|
3. बिहार के बहुत छोटे और सीमांत किसान धीरे धीरे भूमिहीन मजदूर होते जा रहे हैं| क्यों? 
उत्तर:-
बिहार के ग्रामीण क्षेत्रों में भूमि का वितरण बहुत विषम है तथा राज्य में छोटे अथवा सीमांत किसानों का बहुमूल्य है| इनकी कृषि जोतों का आकार बहुत छोटा है तथा इसकी उपज उनके जीवन निर्वाह के लिए पर्याप्त नहीं होती है| इन्हें सहकारी समितियों तथा बैंकिंग संस्थाओं से साख प्राप्त करने में भी बहुत कठिनाई होती है| योजना आयोग के अनुसार, बिहार के लगभग 70 प्रतिशत छोटे किसान ऋणग्रस्त हैं| इसके फलस्वरूप वे धीरे धीरे अपनी भूमि बड़े किसानों या महाजनों के हाथों बेचने के लिए बाध्य हो जाते हैं| यही कारण है कि राज्य के अधिकांश सीमांत किसान अब भूमिहीन मजदूर होते जा रहे हैं|
4. उत्तरी बिहार में कृषि मजदूरों की आर्थिक स्थिति अधिक दयनीय होने के क्या कारण है? 
उत्तर:-
उत्तरी बिहार की भूमि बहुत उर्वर है| लेकिन, इस क्षेत्र के कृषि मजदूरों की आर्थिक स्थिति अत्यधिक दयनीय है| इसका प्रमुख कारण इस क्षेत्र में प्रतिवर्ष नियमित रूप से आनेवाली बाढ़ है| राज्य सरकार के 2008-9 के आर्थिक सर्वेक्षण के अनुसार, इस क्षेत्र की लगभग 76 प्रतिशत जनसंख्या बाढ़ उन्मुख है| इससे उत्तरी बिहार की लाखों हेक्टेयर भूमि की फसल नष्ट हो जाती है| परिणामतः, इस क्षेत्र में मौसमी बेरोजगारी बहुत अधिक है तथा कृषि मजदूरों की आर्थिक स्थिति दयनीय है|
5. कृषि मजदूरों की समस्याओं के समाधान में कृषि आधारित उद्योगों का क्या योगदान हो सकता है? 
उत्तर:- बिहार के कृषि मजदूरों की समस्याओं के समाधान में कृषि आधारित उद्योगों का महत्वपूर्ण योगदान हो सकता है| बिहार की भूमि बहुत उर्वर है और यहाँ कयी प्रकार की व्यावसायिक फसलों का उत्पादन होता है| गन्ना यहाँ की एक प्रमुख व्यावसायिक फसल है जिसका चीनी उद्योग में प्रयोग किया जाता है| यह उद्योग राज्य के लाखों किसानों के लिए आय एवं आजीविका का प्रमुख साधन रहा है| अनुमानतः, लगभग 5 लाख किसान गन्ने की खेती में लगे हैं तथा 50 हजार कुशल अकुशल श्रमिक उद्योग है| लेकिन, यह उद्योग भी अनेक गंभीर समस्याओं से ग्रस्त हैं| सब्जी और फल के उत्पादन में बिहार का स्थान अग्रणी है| वर्ष 2006-07 में राज्य में फल और सब्जी का उत्पादन क्रमशः 34 लाख टन और 136 लाख टन था| इस प्रकार राज्य में खाद्य प्रसंस्करण उद्योग की संभावनाएँ बहुत अधिक है तथा इनके विकास द्वारा कृषि श्रमिकों के लिए पर्याप्त मात्रा में रोजगार के अतिरिक्त अवसरों का सृजन किया जा सकता है|
6. कृषि मजदूरों की समस्याओं के समाधान के लिए सरकार द्वारा चलाए जा रहे दो रोजगार कार्यक्रमों का उल्लेख करें|
उत्तर:- 
बिहार में कृषि श्रमिकों की संख्या बहुत अधिक है| इनमें अधिकांश भूमिहीन श्रमिक है जो मौसमी बेरोजगारी और रोजगार की अनिश्चितता के शिकार हैं| रोजगार, आय वृद्धि एवं खाद्यान्न सुरक्षा इनकी आधारभूत समस्या है| सरकार ने इसकी समस्याओं के समाधान के लिए समय समय पर कयी विशिष्ट कार्यक्रमों का कार्यान्वयन किया है| वर्तमान में इनकी आर्थिक स्थिति में सुधार लाने के लिए जो कार्यक्रम चलाए जा रहे हैं उनमें स्वर्ण जयंती ग्राम स्वरोजगार योजना और राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम के अधीन चलाए जा रही योजनाएँ सर्वाधिक महत्वपूर्ण है| स्वर्ण जयंती ग्राम स्वरोजगार योजना अप्रैल 1999 में आरंभ की गई| यह ग्रामीणों के स्वरोजगार के लिए एक एकीकृत योजना है तथा इसमें पूर्व के सभी स्वरोजगार कार्यक्रमों को समाहित कर दिया गया है| स्वर्ण जयंती ग्राम स्वरोजगार योजना ग्रामीण समुदायों में स्वयं सहायता समूहों तथा व्यक्तिगत स्वरोजगार कार्यक्रमों द्वारा स्वरोजगार को बढ़ावा देने की योजना है| इसके अंतर्गत बिहार में 2007-08 में 14.036 स्वयं सहायता समूह बनाए गए तथा इनमें महिला स्वयं सहायता समूहों की संख्या अधिक है| राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी कार्यक्रम (नरेगा) माँग आधारित गारंटीशुदा रोजगार कार्यक्रम है| यह विश्व की सबसे वृहत सामाजिक सुरक्षा योजना है| इस योजना के अंतर्गत देश में 3.39 करोड़ ग्रामीण परिवारों को रोजगार प्रदान किया गया है| इस कार्यक्रम द्वारा बिहार में 2007-08 में 38 लाख से भी अधिक परिवारों के लिए कुल 841 लाख श्रम दिवस का सृजन हुआ था|
7. बिहार से कृषि श्रमिकों के पलायन पर एक संक्षिप्त टिप्पणी लिखें|
उत्तर:- अपने मूल गाँव में काम और मजदूरी नहीं मिलने के कारण ही बिहार से कृषि श्रमिकों का देश के दूसरे राज्यों में पलायन हुआ है| प्रवासी मजदूरों के लिए इनके स्थानों में रोजगार के अधिक अवसर उपलब्ध है और इन्हें वेतन या मजदूरी भी अधिक मिलती है| इससे उनमें बचत करने की क्षमता बढ़ी है| वे अपने बढ़ी हुई मजदूरी या पारिश्रमिक का एक भाग बचाकर गाँव में अपने परिवारों को भेजते हैं| इससे इनके परिवार के सदस्यों के रहन सहन के स्तर में सुधार हुआ है| इनके बचत के एक भाग का बिहार के गाँवों में भी निवेश हो रहा है| इससे राज्य में कयी गाँवों में गैर कृषि क्रियाकलापों का विस्तार हुआ है| कृषि श्रमिकों के यहाँ से पलायन के फलस्वरूप किसान और कृषि मजदूरों के आर्थिक संबंधों में परिवर्तन हुआ है| अब कृषि के व्यस्त मौसम में बिहार के गाँवों में कृषि श्रमिकों की कमी हो जाती है| अत एव, अब बड़े किसान कृषि मजदूरों को पूर्व की अपेक्षा अधिक पारिश्रमिक देने लगे हैं| फिर भी बिहार से कृषि श्रमिक बिहार से पलायन नही रुका है|
8. स्वामी सहजानन्द सरस्वती कौन थे तथा इन्होंने बिहार में कृषि श्रमिकों को संगठित करने के क्या सुझाव दिया था? 
उत्तर:-
स्वामी सहजानन्द सरस्वती बिहार में किसान आंदोलन के प्रवर्तक तथा किसान सभा के संस्थापक थे| इनके अनुसार, यहाँ के कृषि मजदूर विभिन्न जाति और धर्म के हैं तथा बंटे हुए हैं| इन्हें औद्योगिक श्रमिकों के समान संगठित करना संभव नहीं है| यही कारण है कि इन्होंने कृषि श्रमिकों तथा निर्धन किसानों के एक संयुक्त संगठन की स्थापना का सुझाव दिया था| इस प्रकार के संगठन से ग्रामीण क्षेत्रों में बड़े किसानों और महाजनों द्वारा शोषण कम होगा और कृषि मजदूरों की समस्याओं के समाधान में सहायता मिलेगी|
9. कृषि मजदूरों को कितने वर्गों में विभाजित किया जा सकता है? 
अथवा, कृषि श्रमिकों के मुख्य प्रकार क्या है? 
उत्तर:- हमारे देश में कृषि श्रमिकों का कयी प्रकार से वर्गीकरण किया गया है| राष्ट्रीय आयोग के अनुसार, कृषि श्रमिक दो प्रकार के होते हैं—–भूमिहीन श्रमिक और बहुत छोटे किसान| भूमिहीन श्रमिक वे है जिनके पास कोई निजी भूमि नहीं होती और वे दूसरों की भूमि पर खेती कर अपना जीविकोपार्जन करते हैं| कृषि श्रमिकों का एक दूसरा वर्ग बहुत छोटे किसानों का है| इन छोटे या सीमांत किसानों के पास कुछ निजी भूमि भी होती है, लेकिन वह उनके जीवन निर्वाह के लिए पर्याप्त नहीं होती| अत:, वे दूसरों की भूमि पर कृषि मजदूर के रूप में कार्य करने के लिए बाध्य होते हैं| कृषि श्रमिक गहन सर्वेक्षण के प्रतिवेदन में इन्हें दो वर्गों में बांटा गया है, स्थायी एवं आकस्मिक| स्थायी श्रमिक वे है जो किसी बड़े कास्तकार के यहाँ स्थायी रूप से पूरे वर्ष कार्य करते हैं| इन्हें स्थायी रीतियों के अनुसार एक निश्चित मजदूरी दी जाती है| इसके विपरीत, आकस्मिक श्रमिक वे है जो समय समय पर विभिन्न काश्तकारों के यहाँ कार्य करते हैं|
दीर्घ उत्तरीय प्रश्न







1. कृषि मजदूर से आप क्या समझते हैं? बिहार में कृषि मजदूरों की संख्या में अत्यधिक वृद्धि होने के क्या कारण है? 
उत्तर:-
कृषि श्रमिक या कृषि मजदूर से हमारा अभिप्राय ऐसे व्यक्तियों से होता है जो कृषि या कृषि से संबंधित अन्य धंधों में किराए के मजदूर के रूप में कार्य करते हैं| इस प्रकार के मजदूर वर्ष में आधे से अधिक दिनों तक कृषि कार्यों में संलग्न रहते हैं| इन्हें मजदूरी नकद या कृषि पदार्थ के रूप में दी जाती है जो फसल के एक भाग के रूप में हो सकती है| बिहार में कृषि श्रमिकों की संख्या बहुत अधिक है तथा इसमें निरंतर वृद्धि हो रही है| योजना आयोग द्वारा अविभाजित बिहार में कराए गए एक सर्वेक्षण के अनुसार, बिहार के ग्रामीण क्षेत्रों में 33 प्रतिशत से भी अधिक कृषि मजदूरों के परिवार थे| बिहार में कृषि मजदूरों की संख्या में वृद्धि के अनेक कारण है| देश के अन्य राज्यों की अपेक्षा बिहार की जनसंख्या में अधिक तेजी से वृद्धि हो रही है| अन्य उद्योग या व्यवसाय के अभाव में कृषि को ही जनसंख्या का यह अतिरिक्त बोझ वहन करना पड़ता है| इससे कृषि श्रमिकों की संख्या में वृद्धि हो रही है| बिहार में औद्योगिक विकास की गति बहुत मंद रही है और यह औद्योगिक दृष्टि से एक पिछड़ा हुआ राज्य है| हमारे राज्य के अधिकांश वृहत उद्योग छोटानागपुर क्षेत्र में अवस्थित थे जो झारखंड राज्य का अंग हो गया है| उत्तर बिहार में चीनी, जूट आदि कृषि आधारित उद्योगों की प्रधानता थी| लेकिन, इनमें अधिकांश रुग्ण अवस्था में है अथवा बंद हो गये हैं| राज्य के कुटीर एवं लघु उद्योगों की स्थिति भी अत्यंत असंतोषजनक है| इसके फलस्वरूप रोजगार सृजन की दर बहुत धीमी है तथा कृषि श्रमिकों की संख्या में वृद्धि हुई है| बिहार में कृषि श्रमिकों की संख्या में वृद्धि का एक अन्य कारण यहाँ की वर्तमान भूमि व्यवस्था है| कृषि भूमि का एक बहुत बड़ा भाग कुछ थोड़े से व्यक्तियों के पास केन्द्रित है तथा राज्य में छोटे किसानों की संख्या बहुत अधिक है| कृषि जोतों का आकार छोटा होने के कारण इनकी आय बहुत कम है और ये प्रायः ऋणग्रस्तता के शिकार होते हैं| इसके फलस्वरूप अनेक छोटे और सीमांत किसान भी अब भूमिहीन श्रमिक हो गये हैं|
2. बिहार में कृषि मजदूरों की मुख्य समस्याएँ क्या है? 
उत्तर:-
बिहार में कृषि मजदूरों की संख्या बहुत अधिक है तथा इनकी मुख्य समस्या इनकी आय और रोजगार से संबंधित है| कृषि कार्य में संलग्न श्रमिकों को पूरे वर्ष काम न मिलकर कुछ विशेष मौसम में ही काम मिलता है| भारतीय कृषि की प्रकृति मौसमी होने के कारण देश के अन्य भागों के समान ही बिहार में भी सामयिक या मौसमी बेरोजगारी की समस्या है| परंतु, कृषि के पिछड़े होने के कारण हमारे राज्य में यह समस्या अधिक उग्र है| बिहार सरकार के 2008-09 के आर्थिक सर्वेक्षण के अनुसार, इसका लगभग 73 प्रतिशत क्षेत्र बाढ़ से असुरक्षित है| बाढ़ का प्रकोप उत्तरी बिहार में अधिक होता है| बिहार के कृषि श्रमिकों पर कार्यभार भी अधिक होता है| गाँवों में इनके काम करने के घंटे निश्चित नहीं होते हैं| लेकिन, इतना परिश्रम करने पर भी इन्हें अपेक्षाकृत बहुत कम मजदूरी मिलती है| वर्तमान में बिहार में कृषि श्रमिकों के लिए मजदूरी की न्यूनतम निर्धारित दर प्रतिदिन 66 रुपये है| कृषि श्रमिक प्रायः समाज के पिछड़े और दलित वर्ग के होते हैं| जहाँ बिहार में कृषि श्रमिकों का राज्य औसत 48 प्रतिशत है वहाँ अनुसूचित जाति में यह 77 प्रतिशत और अनुसूचित जनजाति में 62 प्रतिशत से भी अधिक है| इस प्रकार के कृषि श्रमिकों में शिक्षा और संगठन का सर्वथा अभाव है| अत:, ये उचित मजदूरी के लिए मोल भाव करने में असमर्थ होते हैं| बिहार के ग्रामीण क्षेत्रों में सहायक उद्योग धंधों की बहुत कमी है| यह राज्य में कृषि श्रमिकों की विपन्नता का एक अन्य प्रमुख कारण है|
3. बिहार में कृषि श्रमिकों की क्या समस्याएँ हैं? इनके निदान के क्या उपाय हैं? 
उत्तर:-
प्रथम भाग के उत्तर के लिए प्रश्न 2 का उत्तर देखें|
हमारे देश के विभिन्न भागों में कृषि मजदूर बहुत विपरीत परिस्तिथियों में रहते और कार्य करते हैं| कृषि के पिछड़ेपन के कारण बिहार में कृषि श्रमिकों की स्थिति और भी दयनीय है| राज्य के अधिकांश कृषि श्रमिक भूमिहीन हैं, इनकी आय बहुत कम है और इनके लिए गाँवों में रोजगार के बहुत सीमित अवसर उपलब्ध हैं| बिहार से बहुत बड़ी संख्या में कृषि श्रमिकों का पलायन हो रहा है| ग्रामीण श्रम पर गठित आयोग ने कृषि श्रमिकों की आर्थिक स्थिति में सुधार के लिए कयी महत्वपूर्ण सुझाव दिए हैं| इसके लिए आयोग ने सिंचाई, जल निकासी, बाढ़ नियंत्रण तथा सुखाड़ से कृषि की मुक्ति पर बल दिया है| कृषि श्रमिकों की समस्याओं के समाधान के लिए ग्रामीण क्षेत्रों में इनके लिए आवासीय भूमि उपलब्ध कराने तथा रोजगार जनक कार्यक्रम चलाने को आवश्यक बताया गया है|
4. बिहार में कृषि श्रमिकों की मुख्य समस्याएँ क्या है? इनके समाधान के लिए सरकार ने क्या उपाय किये है? 
उत्तर:-
प्रथम भाग के लिए प्रश्न 2 का उत्तर देखें|
योजना आयोग के अनुसार, कृषि श्रमिकों की समस्याएँ ग्रामीण क्षेत्रों में व्याप्त बेरोजगारी एवं अर्द्ध बेरोजगारी से जुड़ी हुई है| अत एव, इनकी समस्याओं के समाधान के लिए सरकार ने समय समय पर ग्रामीण क्षेत्रों में रोजगार सृजन के कयी विशिष्ट कार्यक्रमों का कार्यान्वयन किया है| इनमें समन्वित ग्रामीण विकास कार्यक्रम, ग्रामीण युवा स्वरोजगार प्रशिक्षण योजना, ग्रामीण कारीगरों के लिए उन्नत औजार आपूर्ति आदि कार्यक्रम स्वरोजगार की योजनाएँ थी| अप्रैल 1999 से सरकार ने स्वर्ण जयंती ग्राम स्वरोजगार योजना आरंभ की है| यह ग्रामीणों के स्वरोजगार के लिए एक एकीकृत योजना है तथा इसमें पूर्व के सभी स्वरोजगार कार्यक्रमों को समाहित कर दिया गया है| इस योजना के अन्तर्गत बिहार में 2007-08 में 14.036 स्वयं सहायता समूह बनाए गए थे| 25 सितम्बर 2001 से सरकार ने पूर्व में चल रहे दो रोजगार कार्यक्रमों को मिलाकर संपूर्ण ग्रामीण रोजगार योजना लागू की है| यह देश के ग्रामीण क्षेत्रों के लिए एक मजदूरी रोजगार योजना है| 2006 से भारत सरकार ने राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम के अंतर्गत देश के ग्रामीण क्षेत्रों में एक गारंटीशुदा रोजगार योजना आरंभ की है| यह विश्व की सबसे वृहत सामाजिक सुरक्षा योजना है| इस योजना के अंतर्गत बिहार में 2007-08 में 39,25,748 परिवारों को रोजगार उपलब्ध कराया गया था|
5. बिहार से कृषि मजदूरों के पलायन की समस्या की व्याख्या करें|
उत्तर:- बिहार में कृषि मजदूरों की दशा अत्यंत दयनीय है| इसका संपूर्ण जीवन गरीबी, बेकारी, शोषण, उत्पीड़न और अनिश्चितता से भरा हुआ है| कयी स्थानों पर कृषक मजदूरों की दशा गुलामी जैसी पायी जाती है——–
बिहार में कृषक मजदूरों की प्रमुख समस्याएँ—-


कम मजदूरी—-
बिहार में कृषक मजदूरों की सबसे बड़ी समस्या कम मजदूरी दर है| मजदूरों से अधिक काम लिया जाता है| उनके पास वैकल्पिक साधन का अभाव है| अत:, वे कम मजदूरी पर काम करने के लिए विवश हो|
मौसमी रोजगार—-
बिहार कृषक मजदूरों को वर्ष के सभी मशीनों में काम नहीं मिलता है| उन्हें साल में कम से कम चार महीने बेकार बैठे रहना पड़ता है|
काम से अधिक घंटे—-
उनके कार्य निश्चित नहीं है| उन्हें 10 से 14 घंटे तक कार्य करना पड़ता है|
ऋणग्रस्तता—–
बिहार में कृषक मजदूरों की मजदूरी कम होने के कारण वे सदा ही ऋणग्रस्तता रहते हैं| अत:, उन्हें महाजन या बड़े किसान की बेगारी करनी पड़ती है|
निम्न जीवन स्तर—-
कृषक मजदूरों का जीवन स्तर काफी निम्न हैं| वे कम मजदूरी के कारण रोटी, कपड़ा और मकान की न्यूनतम आवश्यकताओं को भी पूरा नहीं कर पाते हैं|
आवास की समस्या—-
कृषक मजदूर मालिक या ग्राम समाज की जमीन पर उनकी अनुमति से एक झोपड़ी बनाकर रहते हैं| झोपड़ी में वे केवल पैर फैलाकर सो सकते हैं| उन्हें शुद्ध वायु एवं प्रकाश नहीं मिलता है|
सहायक धंधों का अभाव—-
गाँव में सहायक धंधों का अभाव है| प्राकृतिक आपदाओं संगठन के अभाव में उनमें मेल जोल नहीं रहता है| इसके चलते वे अपनी मजदूरी बढ़वाने, कार्यके घंटे नियमित कराने, बेगारी बंद कराने की आवाज तक उठा नहीं पाते|
कृषि में मशीनीकरण से बेकारी—–
बिहार में भी अब कृषि कार्यों में मशीनों का प्रयोग होने लगा है| इससे कृषि मजदूरों में बेकारी बढ़ती जा रही है|
निम्न सामाजिक स्तर—
बिहार में अधिकांश कृषक मजदूर अनुसूचित जाति एवं पिछड़ी जातियों के है जिनका प्राचीन काल से ही शोषण होता आ रहा है| इससे इनका सामाजिक स्तर निम्न श्रेणी का बना रहता है|
6. बिहार में कृषि मजदूरों के पलायन के क्या कारण है? इसके परिणामों की विवेचना करें|
उत्तर:-
विगत कयी वर्षों से बिहार के कृषि मजदूरों का बड़े पैमाने पर देश के अन्य भागों में पलायन हो रहा है| एक अनुमान के अनुसार, 1991-2000 के दशक में लगभग 12 लाख बिहारवासियों का पलायन हुआ है जिनमें अधिकांश कृषि मजदूर थे| कृषि मजदूरों के इस पलायन का मुख्य कारण राज्य में रोजगार के अवसरों की अत्यधिक कमी है| कृषि बिहार की अर्थव्यवस्था का आधार है| राज्य की लगभग 80 प्रतिशत श्रम शक्ति कृषि कार्यों में संलग्न है| परंतु, यहाँ की कृषि आज भी पूर्व की अविकसित अवस्था में है| 1995 से इस क्षेत्र का वार्षिक विकास मात्र एक प्रतिशत रहा है| बिहार के औद्योगिक क्षेत्र में भी रोजगार के अवसरों का सर्वथा अभाव है| कुछ समय पूर्व बिहार उद्योग संघ द्वारा किए गए एक सर्वेक्षण के अनुसार, राज्य में स्थित 54 प्रतिशत औद्योगिक इकाइयाँ बंद थी, 26 प्रतिशत रुग्ण तथा मात्र 20 प्रतिशत कार्यशील थी| इस प्रकार, रोजगार के अवसरों का अभाव होने के कारण प्रायः बिहार के सभी गाँवों से कृषि श्रमिकों का पलायन हो रहा है| लेकिन, राज्य के अन्य भागों की अपेक्षा उत्तर बिहार से श्रमिकों का पलायन अधिक है| इसका प्रमुख कारण उत्तरी बिहार के एक बहुत बड़े भू भाग में प्रतिवर्ष बाढ़ से होनेवाले विभीषिका और जलजमाव की समस्या है| दिल्ली की एक संस्था मानव विकास संस्थान ने अभी हाल में उत्तर बिहार के 18 गाँवों का सर्वेक्षण किया है| इसके अनुसार, विगत दो दशकों के अन्तर्गत यहाँ से दूसरे राज्यों में पलायन करनेवाले ग्रामीण श्रमिकों की संख्या में बहुत तेजी से वृद्धि हुई है| 1983 में 28 प्रतिशत ग्रामीण परिवार ऐसे थे जिनका एक सदस्य प्रवासी श्रमिक था| वर्ष 2000 में इस प्रकार के परिवारों की संख्या बढ़कर 49 प्रतिशत हो गई थी| एक सरकारी अनुमान के अनुसार, देश की राजधानी नयी दिल्ली की कुल जनसंख्या में लगभग 11 प्रतिशत बिहार के है| मानव विकास संस्थान के सर्वेक्षण के अनुसार, कृषि मजदूरों के राज्य से पलायन के कुछ सकारात्मक परिणाम भी देखने को मिले हैं| प्रवासी श्रमिकों को नये स्थानों में रोजगार के अधिक अवसर उपलब्ध है और उन्हें वेतन या मजदूरी भी अधिक मिलती है| इससे उनमें बचत करने की क्षमता बढ़ी है| वे अपनी बढ़ी हुई मजदूरी या पारिश्रमिक का एक भाग बचाकर गाँव में अपने परिवारों को भेजते हैं| इससे इनके परिवार के सदस्यों के रहन सहन के स्तर में सुधार हुआ है| इनकी बचत के एक भाग का बिहार के गाँवों में भी निवेश हो रहा है| इससे राज्य के कयी गाँवों में गैर कृषि क्रियाकलापों का विस्तार हुआ है|
7. बिहार में कृषक मजदूरों की वर्तमान दशा एवं समस्याओं का उल्लेख करें|
उत्तर:-
बिहार में कृषक मजदूरों की दशा अत्यंत दयनीय है| इनका संपूर्ण जीवन गरीबी, बेकारी, शोषण, उत्पीड़न और अनिश्चितता से भरा हुआ है| कयी स्थानों पर कृषक मजदूरों की दशा गुलामों जैसी पायी जाती है|
बिहार में कृषक मजदूरों की प्रमुख समस्याएँ——
कम मजदूरी—-
बिहार में कृषक मजदूरों की सबसे बड़ी समस्या कम मजदूरी दर है| मजदूरों से अधिक काम लिया जाता है| उनके पास वैकल्पिक साधन का अभाव है| अत:, वे कम मजदूरी पर काम करने के लिए विवश हैं|
मौसमी रोजगार—-
बिहार कृषक मजदूरों को वर्ष के सभी मशीनों में काम नहीं मिलता है| उन्हें साल में कम से कम चार महीने बेकार बैठे रहना पड़ता है|
काम के अधिक घंटे—–
उनके कार्य के घंटे निश्चित नहीं है| उन्हें 10 से 14 घंटे तक कार्य करना पड़ता है|
ऋणग्रस्तता—-
बिहार में कृषक मजदूरों की मजदूरी कम होने के कारण वे सदा ही ऋणग्रस्त रहते हैं| अतः, उन्हें महाजन या बड़े किसान की बेगारी करनी पड़ती है|
निम्न जीवन स्तर—
कृषक मजदूरों का जीवन स्तर काफी निम्न हैं| वे कम मजदूरी के कारण रोटी, कपड़ा और मकान की न्यूनतम आवश्यकताओं को भी पूरा नहीं कर पाते हैं|
आवास की समस्या—–
कृषक मजदूर मालिक यआ ग्राम समाज की जमीन पर उनकी अनुमति से एक झोपड़ी रहते हैं| झोपड़ी में वे केवल पैर फैलाकर सो सकते हैं उन्हें शुद्ध वायु एवं प्रकाश नहीं मिलता है|
सहायक धंधों का अभाव—
गाँव में सहायक धंधों का अभाव है| प्राकृतिक आपदाओं संगठन के अभाव में उनमें मेल जोल नहीं रहता है| इसके चलते वे अपनी मजदूरी बढ़वाने, कार्य के घंटे नियमित कराने, बेगारी बंद कराने की आवाज तक उठा नहीं पाते|
कृषि में मशीनीकरण से बेकारी——
बिहार में भी अब कृषि कार्यों में मशीनों का प्रयोग होने लगा है| इससे कृषि मजदूरों में बेकारी बढ़ती जा रही है|
निम्न सामाजिक स्तर—-
बिहार में अधिकांश कृषक मजदूर अनुसूचित जाति एवं पिछड़ी जातियों के है जिनका प्राचीन काल से ही शोषण होता आ रहा है| इससे इनका सामाजिक स्तर निम्न श्रेणी का बना रहता है|
8. बिहार में कृषक मजदूरों की संख्या क्यों तेजी से बढ़ती जा रही है? इनकी दशा में सुधार लाने के लिए उपाय बताएं|
उत्तर:- 1991 ई० की जनगणना के अनुसार बिहार में ग्रामीण जनसंख्या का 37.1 प्रतिशत कृषक मजदूर थे| जब 2001 ई० में जनगणना हुई तो इनकी संख्या 48.0 प्रतिशत हो गई| इसका अर्थ यह हुआ की बिहार में कृषक मजदूरों की संख्या तीव्र गति से बढ़ रही है| इस संख्या की वृद्धि का मुख्यतः कारण गरीब लोगों में जन्म दर अत्यधिक है| अशिक्षा के कारण वे परिवार नियोजन कार्यक्रमों से लाभ नहीं उठा पाते हैं| उन लोगों में व्याप्त अंधविश्वास भी उनकी जनसंख्या को तेजी से बढ़ रहा है| बिहार के गाँव में गरीब कृषक महाजनों से ऊंची ब्याज की दर पर कर्ज लेते हैं| उसके कर्ज की राशि इतनी अधिक बढ़ जाती है कि वे उसे चुकाने में असमर्थ हो जाते हैं| कर्ज चुकाने के लिए उन्हें अपनी खेती का थोड़ा सा भूखंड भी बेचना पड़ता है| अत:, छोटे एवं गरीब कृषक भी अपनी भूमि को खोकर भूमिहीन की श्रेणी में आ जाते हैं जिससे भूमिहीन मजदूरों की संख्या बढ़ रही है|

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