गरीबी
अतिलघु उत्तरीय प्रश्न
1. निर्धनता का संकेतक सूचक क्या है?
उत्तर:-आय एवं उपभोग के स्तर को निर्धनता का एक प्रमुख संकेतक माना जाता है|
2. समाज के किस वर्ग के व्यक्तियों पर निर्धनता का आघात अधिक गहरा होता है?
उत्तर:-प्रायः, शारीरिक रूप से अयोग्य एवं अपंग व्यक्ति, अनाथ बच्चे, विधवाएँ तथा दलित एवं पिछड़े वर्ग के लोगों पर निर्धनता का आघात अधिक होता है|
3. निर्धन किसे कहते हैं?
उत्तर:-
निर्धन का अभिप्राय उस आर्थिक स्थिति से है जिसमें कोई व्यक्ति या परिवार अपनी न्यूनतम आवश्यकताओं को भी पूरा नहीं कर पाता है|
4. गरीबी क्या है?
उत्तर:-
निर्धनता रेखा एक काल्पनिक रेखा है जिसका प्रयोग वर्तमान सामाजिक मापदंडों के अनुसार एक न्यूनतम जीवन स्तर अथवा निर्धनता को मापने के लिए किया जाता है|
5. बिहार के शहरी एवं ग्रामीण क्षेत्रों में निर्धन व्यक्तियों का अनुपात क्या है?
उत्तर:-
योजना, आयोग के अनुसार, 1999-2000 में बिहार में शहरी जनसंख्या का लगभग 32 प्रतिशत तथा ग्रामीण जनसंख्या का 44 प्रतिशत निर्धनता रेखा के नीचे था|
6. हमारे राज्य के ग्रामीण क्षेत्रों में कौन सा वर्ग सर्वाधिक निर्धन है?
उत्तर:-
हमारे राज्य के ग्रामीण क्षेत्रों में कृषि श्रमिकों एवं सीमांत किसानों का वर्ग सर्वाधिक निर्धनों की श्रेणी में शामिल है|
7. सीमांत किसान किसे कहते हैं?
उत्तर:-
सीमांत किसान वे है| जिनके पास स्वयं की कुछ भूमि होती है, लेकिन परिवार के जीवन यापन के लिए वह अत्यंत अपर्याप्त होती है|
8. बिहार की गरीबी का प्रमुख कारण क्या है?
उत्तर:-
कृषि एवं उद्योग दोनों ही क्षेत्रों में राज्य का अल्प विकास बिहार में गरीबी का प्रमुख कारण है|
9. गरीबी के कारणों में जनसंख्या वृद्धि की भूमिका है?
उत्तर:-
राष्ट्रीय आय कु अपेक्षा जनसंख्या की वृद्धि दर अधिक होने से प्रतिव्यक्ति आय कम होती है| और निर्धनता बढता है|
10. गरीबी के उन्मूलन के लिए सरकार द्वारा चलाए जा रहे किन्हीं तीन कार्यक्रमों के नाम बताएं|
उत्तर:-
अभी गरीबी उन्मूलन के लिए सरकार द्वारा जो कार्यक्रम चलाए जा रहे हैं उनमें स्वर्ण जयंती ग्राम स्वरोजगार योजना, संपूर्ण ग्रामीण रोजगार योजना तथा अंत्योदय अन्न योजना तीन महत्वपूर्ण कार्यक्रम है|
11. इंदिरा आवास योजना के अंतर्गत निर्धनों को कितनी राशि की सहायता अनुदान के रूप में दी जाती है?
उत्तर:-
इस योजना के अंतर्गत ग्रामीण निर्धनों की आवासीय इकाइयों के निर्माण के लिए 25000 रूपये तथा अनुपयोगी कच्चे मकानों को अर्द्ध पक्के मकानों में बदलने के लिए 12500 रूपये सहायता अनुदान के रूप में दी जाती है|
12. निम्नलिखित शब्दों का पूर्ण रूप लिखें|
उत्तर:-
NSSO—-राष्ट्रीय प्रतिदर्श जांच संगठन
IRDP—–समन्वित ग्रामीण विकास कार्यक्रम
SGRY—–संपूर्ण ग्रामीण रोजगार योजना
AAY—–अंत्योदय अन्न योजना
13. गरीबी क्या है?
उत्तर:-
गरीबी या निर्धनता का अभिप्राय उस आर्थिक स्थिति से है जिसमें कोई व्यक्ति या परिवार अपनी न्यूनतम आवश्यकताओं को भी पूरा नहीं कर पाता है|
14. निर्धनता को सामाजिक निषेध क्यों माना जाता है?
उत्तर:-
निर्धनता एक प्रकार का सामाजिक निषेध है जिसके कारण कोई व्यक्ति या परिवार कयी प्रकार की सुविधाओं से वंचित रहता है|
15. निर्धनता के प्रति भेद्यता से आप क्या समझते हैं?
उत्तर:-
निर्धनता के प्रति भेद्यता इस बात की माप है कि किन व्यक्तियों पर इसका सर्वाधिक प्रभाव पड़ता है तथा समाज का सर्वाधिक असुरक्षित समूह कौन है|
16. हमारे देश का कौन सा व्यक्ति या वर्ग निर्धनता के अधिक भेद्य होता है?
उत्तर:-
शारीरिक रूप से अयोग्य एवं अपंग व्यक्ति, अनाथ बच्चे, विधवाएँ तथा दलित एवं पिछड़े वर्ग के लोग निर्धनता के प्रति अधिक भेद्य होते हैं जिनके पास साधनों का अभाव है|
17. योजना आयोग द्वारा निर्धनता रेखा का निर्धारण किस प्रकार पर किया जाता है?
उत्तर:-
योजना आयोग द्वारा निर्धनता रेखा का निर्धारण लोगों के भोजन में वर्तमान न्यूनतम आवश्यक कैलोरी के आधार पर किया जाता है|
18. शहरी तथा ग्रामीण क्षेत्र के व्यक्तियों को प्रतिदिन अपने भोजन में कितनी कैलोरी की आवश्यकता होती है?
उत्तर:-
भारत के शहरी क्षेत्रों में सामान्यतया किसी व्यक्ति को अपने भोजन में प्रतिदिन 2.100 कैलोरी तथा गाँव में 2.400 कैलोरी की आवश्यकता होती है| तथा जिन व्यक्तियों की इस आवश्यकता की पूर्ति नहीं होती उन्हें निर्धन की श्रेणी में रखा जाता है|
19. प्राकृतिक विपदाओं की स्थिति में निर्धन वर्ग को सबसे अधिक नुकसान क्यों होता है?
उत्तर:-
इस वर्ग में बाढ़, भूकंप महामारी आदि जैसी प्राकृतिक विपदाओं का सामना करने की क्षमता नहीं होती है|
20. विश्व बैंक द्वारा निर्धनता की माप के लिए किस धारणा का प्रयोग किया जाता है?
उत्तर:-
विश्व बैंक द्वारा निर्धनता की माप के लिए प्रतिव्यक्ति प्रतिदिन 1 अमेरिकी डॉलर के बराबर की राशि की धारणा का प्रयोग किया जाता है|
21. निर्धन व्यक्तियों की संख्या की दृष्टि से बिहार का देश में क्या स्थान है?
उत्तर:-
योजना आयोग द्वारा अभी हाल में जारी 2004-05 के लिए निर्धनता संबंधों एक अनुमान के अनुसार, उत्तर प्रदेश के बाद बिहार में निर्धन व्यक्तियों की संख्या सबसे अधिक है|
22. विगत वर्षों के अंतर्गत बिहार में गरीबी की संख्या में कोई विशेष कमी नहीं हुई है| इसका प्रमुख कारण क्या है?
उत्तर:-
आर्थिक संवृद्धि की तुलना में बिहार में जनसंख्या की वृद्धि दर अपेक्षाकृत अधिक है|
23. उत्तर बिहार के निवासियों की निर्धनता का एक प्रमुख कारण बताएं|
उत्तर:-
बाढ़ की विभीषिका उत्तर बिहार के निवासियों की निर्धनता का एक प्रमुख कारण है|
24. गरीबी की समस्या के समाधान के लिए बिहार में किस प्रकार के उद्योगों का विकास आवश्यक है?
उत्तर:-
गरीबी की समस्या के समाधान के लिए बिहार में कृषि आधारित तथा खाद्य प्रसंस्करण उद्योगों का विकास आवश्यक है|
25. शिक्षा और स्वास्थ्य सेवाएँ निर्धनता निवारण में किस प्रकार सहायक होती है?
उत्तर:-
शिक्षा और स्वास्थ्य सेवाओं में सुधार होने से लोगों की कुशलता एवं उत्पादन क्षमता बढती है|
लघु उत्तरीय प्रश्न
1. गरीबी के दुष्चक्र से आप क्या समझते हैं?
उत्तर:-
भारत तथा विश्व के अन्य अल्पविकसित देशों में कयी प्रकार की शक्तियाँ इस प्रकार क्रिया तथा प्रतिक्रिया करती है जिनके कारण एक निर्धन देश गरीबी की अवस्था से बाहर नहीं निकल पाता| एक ओर, आय कम होने के कारण बचत नहीं कर पाते और देश में पर्याप्त पूंजी का निर्माण नहीं हो पाता है| इससे हमारा आर्थिक विकास अवरुद्ध हो जाता है| दूसरी ओर, आर्थिक विकास नहीं होने के कारण हमारी प्रतिव्यक्ति आय कम है और देशवासी निर्धन है| इसे ही गरीबी या निर्धनता का दुष्चक्र कहते हैं|
2. सामाजिक निषेध के रूप में निर्धनता की व्याख्या करें|
उत्तर:-
गरीबी अथवा निर्धनता के अनेक रूप है| यही कारण है कि समाजशास्त्रियों ने इस पर कयी दृष्टियों से विचार किया है तथा इसकी व्याख्या कयी प्रकार से की है| एक आधुनिक विचारधारा के अनुसार, निर्धनता एक प्रकार का सामाजिक निषेध है| एक निर्धन व्यक्ति अनेक सामाजिक सुविधाओं से वंचित रहता है| वह निर्धन व्यक्तियों के साथ ही एक ऐसे परिवेश या वातावरण में रहता है जहाँ उसे वे सुविधाएँ नहीं प्राप्त होती है जो समाज के धनी और संपन्न व्यक्तियों को प्राप्त है| सामाजिक निषेध निर्धनता का कारण एवं परिणाम दोनों हो सकता है| एक निर्धन व्यक्ति, परिवार या वर्ग को उन सुविधाओं, लाभों अवसरों से वंचित रहना पड़ता है जो समाज के उच्च वर्ग को उपलब्ध है| इस प्रकार, सामाजिक निषेध एक ऐसी प्रक्रिया है जिससे एक निर्धन व्यक्ति या परिवार समाज में उच्च वर्ग को उपलब्ध सुविधाओं एवं अवसरों से वंचित रहता है| उदाहरण के लिए, हमारे देश में बहुत से लोगों को समान अवसर उपलब्ध नहीं है| निम्न आय की अपेक्षा इस प्रकार का सामाजिक निषेध इनके लिए अधिक घातक सिद्ध होता है;क्योंकि इससे इनके भविष्य में भी निर्धन बने रहने की संभावना अधिक रहती है|
3. निर्धनता के प्रति भेद्यता से आप क्या समझते हैं?
उत्तर:-
कयी आधुनिक लेखकों ने भेद्यता की दृष्टि से भी निर्धनता की समस्या पर विचार किया है| निर्धनता के प्रति भेद्यता इस बात की माप है कि किन व्यक्तियों पर इसका सर्वाधिक प्रभाव पड़ता है तथा समाज का आर्थिक असुरक्षित वर्ग कौन है? कुछ विशेष व्यक्ति या समुदायों में निर्धन होने या भविष्य में भी निर्धन बने रहने की संभावना अधिक रहती है| उदाहरण के लिए, शारीरिक रूप से अयोग्य एवं अपंग व्यक्ति, अनाथ बच्चे, विधवाएं अथवा दलित एवं पिछड़े वर्ग के लोग निर्धनता से अधिक भेद्य होते हैं तथा इनपर निर्धनता का आघात अधिक गहरा होता है| विश्व बैंक के एक अध्ययन के अनुसार, अनुसूचित जाति एवं जनजाति के लोगों में निर्धन होने की संभावना तीन गुनी अधिक होती है| ऐसे व्यक्ति, वर्ग या समुदाय गरीबी से अधिक पीड़ित होते हैं जिनके पास साधनों का अभाव है| इन्हें शिक्षा, स्वास्थ्य सुविधाएँ अथवा रोजगार के वैकल्पिक अवसर उपलब्ध नहीं होते हैं| बाढ़, भूकंप, महामारी आदि जैसी प्राकृतिक विपदाओं की स्थिति में भी इस वर्ग को सबसे अधिक नुकसान होता| इसका कारण है कि इनमें इन विपरीत परिस्थितियों का सामना करने की क्षमता नहीं होती है|
4. गरीबी अथवा निर्धनता रेखा को परिभाषित करें|
उत्तर:-
गरीबी के आकलन की एक सर्वमान्य विधि आम तथा उपभोग स्तरों पर आधारित है| काल और स्थान के अनुसार गरीबी रेखा भिन्न हो सकती है| अमेरिका में उस आदमी को गरीब माना जाता है जिसके पास कार नहीं है| भारत में गरीबी रेखा कैलोरी मापदंड पर आधारित है| भारत के ग्रामीण क्षेत्रों में 2400 कैलोरी प्रति व्यक्ति प्रतिदिन और शहरी क्षेत्रों में 2100 कैलोरी प्रतिदिन नहीं प्राप्त करने वाले व्यक्ति को गरीबी रेखा से नीचे माना गया है|
5. शिक्षा और जातिगत विशेषताएँ किस प्रकार बिहार की गरीबी के लिए उत्तरदायी है?
उत्तर:-
शिक्षा मानव विकास का एक महत्वपूर्ण संकेतक है| शिक्षा के स्तर में सुधार होने से गैर कृषि क्षेत्र का विकास होता है और आर्थिक क्रियाकलापों में विविधता आती है| परंतु, बिहार के ग्रामीण परिवारों में शिक्षा की बहुत कमी है| इसके फलस्वरूप वे मुख्यतया कृषि अथवा गैर कृषि श्रमिक के रूप में कार्य करते हैं और उन्हें बहुत कम पारिश्रमिक मिलता है| ग्रामीण परिवारों की निर्धनता और उनकी सामाजिक स्थिति में निकट संबंध है| सामाजिक अथवा जातिगत विशेषताएँ कार्य एवं विकास में बाधक सिद्ध होती है| अनुसूचित जाति एवं जनजाति तथा अल्पसंख्यक समुदाय के लोग प्रायः भूमिहीन एवं अशिक्षित है| उन्हें रोजगार और व्यवसाय के बहुत कम अवसर उपलब्ध होते हैं| उदाहरण के लिए, बिहार में अनुसूचित जाति एवं जनजाति के लगभग 60 प्रतिशत परिवार मजदूरी की बहुत निम्न दर पर कृषि श्रमिक के रूप में कार्यरत हैं जबकि अन्य ग्रामीण परिवारों का केवल 30 प्रतिशत इस कार्य में संलग्न है| इस प्रकार, राज्य के प्रतिकूल सामाजिक वातावरण के कारण बिहार में गरीबी की समस्या बहुत जटिल है| विश्व बैंक के बिहार प्रतिवेदन के अनुसार, उच्च वर्ग की अपेक्षा अनुसूचित जाति एवं जनजाति के लोगों में निर्धन होने की संभावना तीन गुनी अधिक होती है|
6. बिहार में निर्धनता की समस्या के निदान के क्या उपाय है?
उत्तर:-
राज्य के विभाजन के पश्चात् बिहार खनिज एवं वन संसाधनों से वंचित हो गया है| अब कृषि हमारी अर्थव्यवस्था का आधार है| राज्य की लगभग 80 प्रतिशत जनसंख्या कृषि कार्यों में संलग्न है और इसके कुल घरेलू उत्पाद का लगभग 40 प्रतिशत इसी से प्राप्त होता है| परंतु, यहाँ की कृषि अनेक समस्याओं से ग्रस्त हैं| गरीबी की समस्या के समाधान के लिए कृषि एवं इससे संबद्ध व्यवसायों का विकास आवश्यक है| बिहार का औद्योगिक क्षेत्र बहुत छोटा और सीमित है| विभाजन के पश्चात यहाँ के अधिकांश उद्योग झारखंड राज्य में चले गए हैं| परंतु, विभाजित बिहार में भी चीनी, जूट, तंबाकू तथा खाद्य प्रसंस्करण उद्योगों के विकास की अपार संभावनाएँ हैं| इन उद्योगों के विकास से रोजगार के अवसरों में वृद्धि होगी और गरीबी की समस्या के निदान में सहायता मिलेगी| कृषि एवं उद्योगों के विकास तथा राज्य में जल प्रबंधन, परिवहन, ऊर्जा आदि आवश्यक आधार संरचना के निर्माण के लिए पर्याप्त निवेश की आवश्यकता है| लेकिन, बिहार में निजी एवं सरकारी दोनों प्रकार के निवेश स्तर निम्न हैं| विकास एवं निर्धनता निवारण के उद्देश्यों को प्राप्त करने के लिए राज्य में निवेश के अनुकूल वातावरण का निर्माण अत्यंत आवश्यक है| बाढ और सूखा दोनों ही बिहार की स्थायी समस्याएँ है| किसानों की निर्धनता को दूर करने के लिए उचित जल प्रबंधन द्वारा इस समस्या का समाधान भी आवश्यक है|
7. गरीबी को परिभाषित करें|
उत्तर:-
आज विश्व का लगभग दो तिहाई भाग गरीबी या निर्धनता से ग्रसित है लेकिन, वास्तव में गरीबी किसे कहते हैं| गरीबी को परिभाषित करना सरल नहीं है| इसके लिए प्रायः जीवन की आधारभूत एवं न्यूनतम आवश्यकताओं की धारणा का प्रयोग किया जाता है| प्रत्येक समाज के लिए कुछ न्यूनतम आवश्यकताएँ होती है| जिनकी पूर्ति अनिवार्य है| इसके अंतर्गत भोजन, पेयजल, शिक्षा, स्वास्थ्य, आवास इत्यादि की सुविधाएँ आती है| जिस देश या समाज के निवासियों की इस न्यूनतम आवश्यकताओं की पूर्ति नहीं हो पाती, उसे निर्धन की संज्ञा दी जाती है| इस प्रकार, निर्धनता या गरीबी का संबंध एक न्यूनतम जीवन स्तर तथा आधारभूत आवश्यकताओं की पूर्ति से है|
8. योजना आयोग ने किस आधार पर निर्धनता की परिभाषा दी है?
उत्तर:-
गरीबी या निर्धनता को निर्धनता करने के लिए भारत में भोजन, वस्त्र, जलावन, रोशनी, शिक्षा सामग्री, दवा आदि जैसी वस्तुओं की एक न्यूनतम सीमा निश्चित कर दी जाती है| जो हमारे जीवन के लिए अति आवश्यक है| इन सभी वस्तुओं के योग से गरीबी का निर्धारण होता है| योजना आयोग ने निर्धनता को परिभाषित लोगों के पौष्टिक आहार के आधार पर दी है| इसे जानने के लिए किसी व्यक्ति की न्यूनतम आवश्यक कैलोरी का अनुमान लगाया जाता है| योजना आयोग के अनुसार, भारत में यदि गाँव में किसी व्यक्ति को 2,400 कैलोरी तथा शहर में 2,100 कैलोरी नहीं मिलता तो उसे निर्धन की श्रेणी में रखा जाएगा|
9. गरीबी रेखा से आप क्या समझते हैं?
उत्तर:-
गरीबी या निर्धन के अध्ययन की दृष्टि से गरीबी रेखा की धारणा अत्यधिक महत्वपूर्ण है| निर्धनता का संबंध एक न्यूनतम जीवन स्तर से है| किसी भी उन्नत देश के नागरिकों के लिए एक न्यूनतम जीवन स्तर की व्यवस्था आवश्यक है|इस प्रकार, गरीबी रेखा के अंतर्गत ऐसे व्यक्तियों को सम्मिलित किया जाता है जिनकी आय एक न्यूनतम जीवन स्तर से नीचे रहती है| गरीबी की प्रमुख विशेषता निम्न प्रतिव्यक्ति आय है जिसके कारण कोई व्यक्ति जीवन की न्यूनतम आवश्यकताओं की पूर्ति करने में भी असमर्थ होता है|
10. निर्धनता की धारणा एक सापेक्ष धारणा है| कैसे?
उत्तर:-
निर्धनता का संबंध एक न्यूनतम जीवन स्तर तथा आधारभूत आवश्यकताओं की पूर्ति से है| जिन व्यक्तियों की आय अथवा उपभोग का स्तर एक जीवन स्तर से नीचे है उन्हें निर्धन की संज्ञा दी जाती है| लेकिन, यहाँ यह ध्यान रखना आवश्यक है कि निर्धनता की धारणा एक सापेक्षिक धारणा है| उदाहरण के लिए, अमेरिका जैसे एक विकसित देश में निर्धनता का अर्थ भारत से सर्वथा भिन्न होगा| इसका कारण है कि अमेरिका का एक औसत नागरिक भारत की तुलना में अधिक उच्च जीवन स्तर का अभ्यस्त है|
11. क्या आप समझते हैं कि निर्धनता आकलन का वर्तमान तरीका सही है?
उत्तर:-
प्रायः निर्धनता का आकलन आय एवं उपभोग के स्तर के आधार पर किया जाता है| परंतु, अब निर्धनता को अन्य सामाजिक एवं जातिगत विशेषताओं से जोड़कर देखा जा रहा है| शिक्षा का स्तर, संतुलित एवं पौष्टिक आहार, स्वास्थ्य एवं स्वच्छता, आवास, शुद्ध पेयजल, रोजगार के उपलब्ध अवसर आदि निर्धनता के अन्य प्रमुख सूचक है| समाज के जिस व्यक्ति या वर्ग को ये सुविधाएँ उपलब्ध नहीं है उन्हें निर्धन की संज्ञा दी जाती है| इस प्रकार, अब निर्धनता पर अधिक व्यापक दृष्टि से विचार किया जाता है जो अधिक युक्तिसंगत है|
12. यह किन बातों से सिद्ध होता है कि भारतीय निर्धन है?
उत्तर:-
निम्न व्यवसाय आय—–
अन्य विकसित देशों की तुलना में भारतीयों की प्रतिव्यक्ति आय बहुत कम है|
व्यापक निर्धनता—–
भारत में निर्धनों की संख्या बहुत अधिक है तथा देश की लगभग 26 प्रतिशत जनसंख्या निर्धनता रेखा से भी नीचे जीवन यापन करती है|
संतुलित भोजन का अभाव——
हमारे देश के अधिकांश नागरिकों को पर्याप्त एवं संतुलित भोजन नहीं मिल पाता है|
व्यापक बेरोजगारी—–
भारत में बेरोजगारी की समस्या बहुत गंभीर है तथा बेरोजगारों की संख्या में निरंतर वृद्धि हो रही है|
13. भारत में गरीबी के चार प्रमुख कारण बताएं|
उत्तर:-
देश में प्राकृतिक एवं मानवीय संसाधनों की प्रचुरता है| लेकिन, पूंजी आदि के अभाव में इनका पूर्ण उपयोग नहीं हो सका है|
एक कृषि प्रधान देश होने पर भी भारतीय कृषि पिछड़ी हुई अवस्था में है| परिणामतः, अधिकांश देशवासियों की आय बहुत कम है|
हमारे देश का अभी पूर्ण उद्योगीकरण नहीं हो सका है|
राष्ट्रीय आय की अपेक्षा भारत की जनसंख्या अधिक तीव्र गति से बढ रही है|
14. भारत में गरीबी निवारण के लिए किए गए सरकारी प्रयासों का संक्षिप्त वर्णन करें|
उत्तर:-
देश की बढ़ती हुई जनसंख्या भारत में गरीबी का एक प्रधान कारण है| राष्ट्रीय आय की अपेक्षा जनसंख्या की वृद्धि दर अधिक है| जनसंख्या की अत्यधिक वृद्धि हमारे आर्थिक विकास की गति को मंद बना देती है| यह अतिरिक्त जनसंख्या राष्ट्रीय आय का अधिकांश उपभोग कर जाती है जिसके परिणामस्वरूप विकास के लिए पर्याप्त पूंजी उपलब्ध नहीं होती| कृषि पर जनसंख्या का भार अधिक होने के कारण कृषि के क्षेत्र में प्रतिव्यक्ति आय बहुत कम है| इससे हमारा जीवन स्तर गिर रहा है तथा देश की गरीबी बढती जा रही है|
15. भारत में गरीबी निवारण के लिए किए गए सरकारी प्रयासों का संक्षिप्त वर्णन करें|
उत्तर:-
गरीबी भारत की एक गंभीर समस्या है तथा इसके निवारण के लिए सरकार ने समय समय पर कयी कार्यक्रम आरंभ किए गए हैं| गरीबी का प्रमुख कारण देश में व्याप्त भीषण बेरोजगारी है| अत:, सरकार ने पांचवीं पंचवर्षीय योजना काल से ही रोजगार के अवसरों में वृद्धि लाने पर विशेष बल दिया है| अभी गरीबी उन्मूलन के लिए जो कार्यक्रम चल रहे हैं उनमें स्वर्ण जयंती ग्राम स्वरोजगार योजना तथा संपूर्ण ग्रामीण रोजगार योजना सर्वाधिक महत्वपूर्ण है| इन योजनाओं का उद्देश्य निर्धन परिवारों की आय में वृद्धि द्वारा उन्हें गरीबी रेखा से ऊपर उठाना है|
16. ग्रामीण निर्धनता से आप क्या समझते हैं? बिहार में ग्रामीण निर्धनता की समस्या क्यों आवश्यक अधिक गंभीर है?
उत्तर:-
ग्रामीण क्षेत्रों में व्याप्त निर्धनता को ग्रामीण निर्धनता कहते हैं| बिहार एक ग्राम प्रधान राज्य है| 2001 की जनगणना के अनुसार, यहाँ की कुल जनसंख्या का लगभग 87 प्रतिशत भाग गाँवों में निवास करता है| यद्यपि राज्य के शहरी क्षेत्रों में भी निर्धनता की समस्या विद्यमान है, किन्तु शहरों की अपेक्षा ग्रामीण क्षेत्रों में यह समस्या अधिक उग्र है| योजना आयोग के अनुसार, 1999-2000 में बिहार में शहरी जनसंख्या का लगभग 32 प्रतिशत तथा ग्रामीण जनसंख्या का 44% निर्धनता रेखा के नीचे था| इस ग्रामीण जनसंख्या पर निर्धनता का आघात अधिक गहरा होता है|
17. बिहार में ग्रामीण निर्धनता का क्या स्थिति है?
उत्तर:-
बिहार के देश सर्वाधिक पिछड़े राज्यों में है तथा यहाँ निर्धनता की समस्या बहुत गंभीर है| बिहार में निर्धनता की एक प्रमुख विशेषता इसकी ग्रामीण प्रकृति है| शहरीकरण की गति मंद होने के कारण यहाँ की कुल जनसंख्या का लगभग 87 प्रतिशत भाग आज भी गाँवों में निवास करता है| अत एव बिहार में शहरी निर्धनों की अपेक्षा ग्रामीण निर्धनों की संख्या बहुत अधिक है| राष्ट्रीय प्रतिदर्श सर्वेक्षण संगठन के अनुसार, 1993-94 में बिहार की शहरी जनसंख्या का 26.7 प्रतिशत तथा ग्रामीण जनसंख्या का 48.6 प्रतिशत भाग निर्धनता रेखा के नीचे था| पिछले कुछ वर्षों के अंतर्गत ग्रामीण निर्धनों की संख्या में कमी हुई है, फिर भी यह राष्ट्रीय औसत से बहुत अधिक है|
18. भारत में निर्धनता के प्रमुख सूचक क्या है?
उत्तर:-
निम्न प्रतिव्यक्ति आय——
भारतीयों की प्रतिव्यक्ति आय बहुत कम है| विश्व बैंक के एक आकलन के अनुसार, 2004 में विकसित देशों की प्रतिव्यक्ति वार्षिक आय 4,53,000 रुपये या उससे भी कुछ अधिक थी जबकि भारतवासियों की प्रतिव्यक्ति वार्षिक आय मात्र 28,000 रुपये थी| हमारी जनसंख्या का लगभग 26 प्रतिशत भाग निर्धनता रेखा से भी नीचे है|
संतुलित भोजन का अभाव—–
हमारे देश के अधिकांश नागरिकों को पर्याप्त एवं संतुलित भोजन नहीं मिल पाता है|
आवास की कमी—-
आवास मनुष्य की एक आधारभूत आवश्यकता है| परंतु, भारत में आवास की बहुत कमी है|
व्यापक बेरोजगारी—–
निर्धनता का बेरोजगारी से घनिष्ठ संबंध है| बेरोजगार व्यक्तियों को आय का कोई साधन नहीं होता| परिणामतः उनका जीवन स्तर बहुत निम्न कोटि का होता है, भारत में भी बेरोजगारी एवं अर्द्ध बेरोजगारी की समस्या अत्यंत गंभीर है| हमारी कार्यशील जनसंख्या का लगभग 8 प्रतिशत बेरोजगार एवं 21 प्रतिशत अर्द्ध बेरोजगार है|
19. भारत में ग्रामीण निर्धनता पर एक संक्षिप्त टिप्पणी लिखें|
उत्तर:-
ग्रामीण क्षेत्रों में छोटे किसानों, कारीगरों तथा भूमिहीनों के बीच व्याप्त निर्धनता को ग्रामीण निर्धनता कहते हैं| भारत एक कृषि प्रधान देश है| हमारे देश की जनसंख्या का लगभग 75 प्रतिशत भाग गाँवों में निवास करता है| लेकिन, भारतीय कृषि अत्यंत पिछड़ी हुई अवस्था में है| कृषि पर जनसंख्या का भार बहुत अधिक है| परिणामस्वरुप, अधिकांश ग्रामीण निर्धन है तथा बहुत ही दयनीय स्थिति में जीवन यापन करते हैं| भारत के शहरी क्षेत्रों में भी निर्धनता की समस्या वर्तमान है, किन्तु ग्रामीण निर्धनों की संख्या अपेक्षाकृत बहुत अधिक है| वे जीवन की आधारभूत एवं न्यूनतम आवश्यकताओं से भी वंचित रह जाते हैं, ग्रामीण निर्धनों में अनुसूचित जाति एवं जनजाति के व्यक्तियों की संख्या सबसे अधिक होती है और यह समाज का सबसे वंचित वर्ग है| परंतु, विगत वर्षों के अन्तर्गत ग्रामीण निर्धनों की संख्या में कमी हुई है| योजना आयोग के अनुसार 1977-78 में ग्रामीण क्षेत्रों के लगभग 48 प्रतिशत व्यक्ति निर्धनता रेखा के नीचे थे| वर्तमान समय में ग्रामीण निर्धनों का अनुपात लगभग 27 प्रतिशत है|
20. बिहार की ग्रामीण निर्धनता का बेरोजगारी की स्थिति से घनिष्ठ संबंध है| कैसे?
उत्तर:-
बिहार आर्थिक दृष्टि से एक पिछड़ा हुआ राज्य है| यहाँ की ग्रामीण व्यवस्था आज भी प्राचीन परंपरावादी है| ग्रामीण जनसंख्या का 80 प्रतिशत से भी अधिक कृषि क्षेत्र में संलग्न है तथा कृषि पर जनभार बहुत अधिक है| सरकार ने ग्रामीण बिहार के गैर कृषि क्षेत्र को भी विकसित करने का प्रयास किया है, लेकिन आवश्यक संरचना एवं पर्याप्त निवेश के अभाव में विशेष सफलता नहीं मिली है| अत:, ग्रामवासियों के लिए कृषि क्षेत्र के बाहर रोजगार के बहुत सीमित अवसर उपलब्ध है| इससे उनकी आय कम होती है और वे निर्धनता की स्थिति में जीवन यापन करते हैं| ग्रामीण जनसंख्या का एक बहुत बड़ा भाग सामयिक कृषि श्रमिकों का है जिन्हें पूरे वर्ष काम नहीं मिलता है| इन्हें अन्य किसी व्यवसाय में कार्यरत श्रमिकों की अपेक्षा पारिश्रमिक भी कम मिलता है| राज्य के ग्रामीणों का यह वर्ग सर्वाधिक निर्धनों की श्रेणी में शामिल है| ग्रामीण निर्धनों का एक दूसरा वर्ग बहुत छोटे या सीमांत किसानों का है, जिनकी भूमि परिवार के जीवन यापन के लिए अत्यंत अपर्याप्त होती है| रोजगार के वैकल्पिक अवसरों के अभाव में अधिकांश सीमांत किसान भी कृषि श्रमिक के रूप में कार्य करने के लिए बाध्य होते हैं| इस प्रकार, यह स्पष्ट है कि ग्रामीण निर्धनता का रोजगार एवं रोजगार की प्रकृति से घनिष्ठ संबंध है|
21. बिहार में समन्वित ग्रामीण विकास कार्यक्रम के कार्यान्वयन पर एक संक्षिप्त टिप्पणी लिखें|
उत्तर:-
बिहार में समन्वित ग्रामीण विकास कार्यक्रम (IRDP) 1979 में आरंभ हुआ था| हमारे देश के अधिकांश निर्धन व्यक्ति ग्रामीण क्षेत्रों में निवास करते हैं| बिहार में ग्रामीण निर्धनों की संख्या और भी अधिक है| अत एव, निर्धनता निवारण की दृष्टि से इस राज्य के लिए यह एक महत्वपूर्ण कार्यक्रम था| इसका उद्देश्य पहचान किए गये लक्षित वर्ग के परिवारों को निर्धनता रेखा के ऊपर उठाना तथा ग्रामीण क्षेत्रों में स्वरोजगार के पर्याप्त अतिरिक्त अवसरों का सृजन करना था| ग्रामीण इलाकों में सबसे निर्धन वर्ग भूमिहीन मजदूरों, छोटे किसानों, ग्रामीण शिल्पकारों तथा अनुसूचित जाति एवं जनजाति के लोगों का है| इस कार्यक्रम का उद्देश्य इसी वर्ग के व्यक्तियों को लाभ पहुँचाना था| समन्वित ग्रामीण विकास कार्यक्रम को बिहार में पर्याप्त सफलता मिली और इससे लगभग 10 प्रतिशत ग्रामीण जनसंख्या लाभान्वित हुई है| परंतु, लक्षित वर्ग को इस कार्यक्रम का बहुत कम लाभ मिला है| विश्व बैंक के प्रतिवेदन के अनुसार, इससे धनी वर्ग के 13 प्रतिशत परिवार लाभान्वित हुए हैं जबकि मात्र 8.3 प्रतिशत अति निर्धन परिवारों को इसका लाभ प्राप्त हुआ है|
दीर्घ उत्तरीय प्रश्न
1. निर्धनता रेखा क्या है? हमारे देश में निर्धनता रेखा का निर्धारण किस प्रकार होता है?
उत्तर:-
निर्धनता संबंधी अध्ययन की दृष्टि से निर्धनता रेखा की धारणा अत्यधिक महत्वपूर्ण है| निर्धनता का संबंध एक न्यूनतम जीवन स्तर से है| निर्धनता की माप के लिए मुख्यतया आय अथवा उपभोग के स्तर को आधार बनाया जाता है| किसी भी देश के नागरिकों के लिए एक न्यूनतम जीवन स्तर की व्यवस्था आवश्यक है| जिन व्यक्तियों की आय अथवा उपभोग का स्तर एक निर्धारित जीवन स्तर से नीचे है उन्हें निर्धन की संज्ञा दी जाती है| परंतु, मनुष्य की आधारभूत न्यूनतम आवश्यकताएँ भी विभिन्न समय अथवा विभिन्न देशों में एकसमान नहीं होती है| इसके फलस्वरूप समय और स्थान के साथ ही निर्धनता रेखा में भी परिवर्तन हो सकता है| निर्धनता की पहचान के लिए सामाजिक दशा और आर्थिक विकास के स्तर को ध्यान में रखते हुए प्रत्येक देश एक काल्पनिक रेखा का प्रयोग करता है| यह रेखा प्रायः विभिन्न देशों के लिए अलग अलग होती है| इसका कारण है कि निर्धनता की धारणा एक सापेक्षिक धारणा है| अमेरिका जैसे एक विकसित देश में निर्धनता या गरीबी का अर्थ भारत से सर्वथा भिन्न होगा| निर्धनता रेखा को निर्धनता करने के लिए भारत में भोजन, वस्त्र, जलावन, रोशनी, शिक्षा सामग्री, दवा आदि जैसी वस्तुओं की एक न्यूनतम मात्रा निश्चित कर दी जाती है जो हमारे जीवन के लिए अति आवश्यक है| इन सभी वस्तुओं के मूल्यों के योग से निर्धनता अथवा गरीबी रेखा का निर्धारण होता है| वर्तमान विधि के अनुसार, निर्धनता रेखा के निर्धारण तथा भोजन की आवश्यकताओं को जानने के लिए न्यूनतम आवश्यक कैलोरी का अनुमान लगाया जाता है| व्यक्ति की आयु, लिंग, कार्य की प्रकृति आदि के अनुसार उसकी कैलोरी की आवश्यकताओं में भी अंतर होता है| शहरों की अपेक्षा ग्रामीण क्षेत्रों में रहने वाले व्यक्तियों को शारीरिक श्रम अधिक करना पड़ता है| अतः, उनकी कैलोरी की आवश्यकताओं के अनुसार प्रतिव्यक्ति निर्धारित मौद्रिक व्यय में भी समय समय पर संशोधन करती रहती है| शहरी क्षेत्र में रहनेवाले व्यक्तियों को कम कैलोरी की आवश्यकता होती है| फिर भी, उनके लिए अधिक राशि निर्धारित करने का यह है कि अपेक्षा क्षेत्रों में आवश्यक उपभोक्ता पदार्थों का मूल्य अधिक होता है| एक नियत समय, प्रायः प्रत्येक पांच वर्षों पर प्रतिदर्श सर्वेक्षण द्वारा निर्धनता रेखा का अनुमान लगाया जाता है| इस प्रकार का सर्वेक्षण राष्ट्रीय प्रतिदर्श जांच संगठन द्वारा प्रतिपादित किए जाते हैं| योजना आयोग द्वारा वर्ष 2005 में ग्रामीण क्षेत्रों में एक व्यक्ति के लिए निर्धनता रेखा की राशि प्रतिमाह 356 रुपये तथा शहरी क्षेत्रों में 538 रुपये निर्धारित की गई है|
2. बिहार में गरीबी के माध्यम की विवेचना करें|
अथवा, बिहार में गरीबी के विस्तार का अनुमान बताएं|
उत्तर:-
बिहार उत्तर पूर्वी भारत एक महत्वपूर्ण राज्य है| जनसंख्या के आधार पर उत्तर प्रदेश और महाराष्ट्र के बाद इसका देश में तीसरा स्थान है| यहाँ भारत की कुल जनसंख्या के 8 प्रतिशत से भी अधिक लोग निवास करते हैं| परंतु, आर्थिक दृष्टि से यह देश के सर्वाधिक पिछड़े राज्यों में है और यहाँ गरीबी का आयाम अथवा क्षेत्र बहुत व्यापक है| बिहार में गरीबी या निर्धनता की समस्या बहुत गंभीर है| यहाँ की कुल जनसंख्या का लगभग 41 प्रतिशत भाग निर्धनता रेखा के नीचे जीवन व्यतीत करता है जबकि निर्धनों का राष्ट्रीय औसत अब घटकर लगभग 26 प्रतिशत हो गया है| योजना आयोग द्वारा अभी हाल में जारी 2004-05 के लिए निर्धनता संबंधी एक अनुमान के अनुसार उत्तर प्रदेश के बाद बिहार में निर्धन व्यक्तियों की संख्या सबसे अधिक है| इस अध्ययन के अनुसार, 1993-94 के बाद यहाँ निर्धनों के अनुपात में कोई कमी नहीं हुई है| बिहार के शहरी और ग्रामीण दोनों ही क्षेत्रों में निर्धनता की समस्या विद्यमान है| किंतु, शहरों की अपेक्षा ग्रामीण क्षेत्रों में यह समस्या अधिक उग्र है| योजना आयोग के अनुसार, 1999-2000 में बिहार में शहरी जनसंख्या का लगभग 32 प्रतिशत तथा ग्रामीण जनसंख्या का 44 प्रतिशत गरीबी रेखा के नीचे था| बिहार में ग्रामीण निर्धनता की मात्रा ही नहीं, वरना उसकी गहराई भी अधिक है| इसका प्रमुख कारण ग्रामवासियों की कृषि पर अत्यधिक निर्भरता, कृषि का पिछड़ापन और उसकी सामयिक प्रकृति है| विगत वर्षों के अंतर्गत बिहार की अर्थव्यवस्था में कोई संरचनात्मक परिवर्तन नहीं हुआ है तथा कृषि क्षेत्र के बाहर रोजगार के बाहर सीमित अवसर उपलब्ध है| परिमाणत:, ग्रामीण बिहार में अर्द्ध बेरोजगारों की संख्या देश में सबसे अधिक है| इनमें अधिकांश भूमिहीन और सीमांत किसान है जो कृषि श्रमिक के रूप में कार्य करने के लिए बाध्य है| इनकी मजदूरी प्रायः सरकार द्वारा निर्धारित मजदूरी की दरों से भी बहुत कम होती है और वे घोर निर्धनता में जीवन यापन करते हैं| इस प्रकार, बिहार में गरीबी का आयाम अथवा क्षेत्र बहुत व्यापक है तथा गरीबी रेखा से नीचे रहनेवाले व्यक्तियों की संख्या अपेक्षाकृत अधिक है|
3. बिहार में गरीबी के कारणों की विवेचना करें|
उत्तर:-
गरीबी या निर्धनता भारत की एक देशव्यापी समस्या है| परंतु अन्य राज्यों की अपेक्षा बिहार में यह समस्या अधिक व्यापक और गंभीर है| बिहार की निर्धनता के कयी कारण है जिनमें अग्रांकित प्रमुख है|
रोजगार के अवसरों का अभाव—–
देश के प्रमुख राज्यों में बिहार का औद्योगिक क्षेत्र सबसे छोटा और अल्पविकसित है| परिमाणत:, राज्य की लगभग 75 प्रतिशत जनसंख्या अपने जीविकोपार्जन के लिए कृषि क्षेत्र में संलग्न है| ग्रामीण बिहार में कृषि क्षेत्र के बाहर रोजगार के बहुत सीमित अवसर उपलब्ध है| ग्रामीण जनसंख्या का एक बहुत बड़ा भाग भूमिहीन और सीमांत किसानों का है| रोजगार के अवसरों के अभाव में अधिकांश भूमिहीन और सीमांत किसान कृषि एवं इससे संबद्ध कार्यों में ही दैनिक मजदूर के रूप कार्य करने के लिए बाध्य होते हैं| इनकी मजदूरी की दरें अपेक्षाकृत बहुत कम होती है तथा ग्रामीण समाज का यह वर्ग सर्वाधिक निर्धनों की श्रेणी में शामिल है|
अर्द्ध बेरोजगारी——
ग्रामीण बिहार में अर्द्ध बेरोजगारों की संख्या देश में सबसे अधिक है| इसका प्रमुख कारण कृषि पर अत्यधिक निर्भरता तथा कृषि कार्यों की सामयिक प्रकृति है| अर्द्ध बेरोजगार होने के कारण अधिकांश ग्रामवासियों की आय बहुत कम है और यह उनकी निर्धनता का एक प्रमुख कारण है|
भूमि का स्वामित्व——
ग्रामीण क्षेत्रों में भूमि को स्वामित्व का निर्धनता से घनिष्ठ संबंध है| भूमि किसानों के लिए आय का साधन मात्र ही नहीं है| इसके स्वामित्व से उनके सामाजिक एवं आर्थिक अवसरों में भी वृद्धि होती है| परंतु, बिहार में भूमि सुधार कार्यक्रमों का कार्यान्वयन अत्यंत दोषपूर्ण है|
पशुओं की घटिया किस्म——
हमारे देश के ग्रामीण परिवारों के लिए पशुधन एक महत्वपूर्ण उत्पादक परिसंपत्ति होता है, बिहार के अधिकतर ग्रामीण परिवार भी कोई न कोई पशु पालते हैं, जो उनकी आय का अतिरिक्त स्रोत होता है| परंतु, इस पशुधन का स्तर बहुत ही निम्न कोटि का है|
शिक्षा का अभाव——-
शिक्षा मानव विकास का एक महत्वपूर्ण घटक है| शिक्षा के स्तर में सुधार होने से गैर कृषि क्षेत्र का विकास होता है और आर्थिक क्रियाकलाप में विविधता आती है| परंतु, बिहार के ग्रामीण परिवारों में शिक्षा की बहुत कमी है| इसके फलस्वरूप वे मुख्यतया कृषि अथवा गैर कृषि श्रमिक के रूप में कार्य करते हैं और उन्हें बहुत कम मजदूरी मिलती है|
जातिगत विशेषताएँ——
ग्रामीण परिवारों की निर्धनता और उनकी सामाजिक स्थिति में निकट संबंध है| सामाजिक तथा जातिगत विशेषताएँ कार्य एवं विकास में बाधक सिद्ध होती है| अत:, अनुसूचित जाति एवं जनजाति तथा अल्पसंख्यक समुदाय के लोगों को रोजगार और व्यवसाय के बहुत कम अवसर उपलब्ध होते हैं और इनमें निर्धनों की संख्या सर्वाधिक है|
4. बिहार में गरीबी का प्रमुख कारण क्या है? इस समस्या के समाधान के लिए सुझाव दें|
उत्तर:-
निर्धनता निवारण के लिए बिहार में, विशेषतया राज्य के ग्रामीण क्षेत्रों में कयी कार्यक्रम चलाए जा रहे हैं| इन कार्यक्रमों का मुख्य उद्देश्य इन इलाकों में रहनेवाले निर्धन और कमजोर वर्ग के लोगों के जीवन स्तर में सुधार लाना है| समन्वित ग्रामीण विकास कार्यक्रम राज्य में निर्धनता निवारण का एक महत्वपूर्ण कार्यक्रम था| यह कार्यक्रम 1979 में प्रारंभ हुआ था| इसका उद्देश्य निर्धन ग्रामीण परिवारों की उत्पादक निवेश के लिए व्यावसायिक बैंक से कम ब्याज पर साख उपलब्ध कराना था| अब इस कार्यक्रम को स्वरोजगार के कयी अन्य कार्यक्रमों के साथ स्वर्ण जयंती ग्राम स्वरोजगार योजना में समाहित कर दिया गया है| अभी निर्धनता निवारण के लिए राज्य में जो कार्यक्रम चल रहे हैं उनमें स्वर्ण जयंती ग्राम स्वरोजगार योजना (SGSY), संपूर्ण ग्रामीण रोजगार योजना, अंत्योदय अन्न योजना, इंदिरा आवास योजना आदि प्रमुख है| स्वर्ण जयंती ग्राम स्वरोजगार योजना अप्रैल 1999 में आरंभ की गई| इसका उद्देश्य निर्धन ग्रामीण परिवारों को निर्धनता रेखा से ऊपर लाने के लिए उन्हें स्व सहायता समूहों के रूप में संगठित करना है| इसके लिए इस कार्यक्रम के अंतर्गत ग्रामीण क्षेत्रों में निर्धनों की क्षमता और स्थानीय संभावनाओं के आधार पर बहुत बड़ी संख्या में ऐसे अतिलघु उद्योगों की स्थापना पर बल दिया गया है, जो दीर्घकाल तक आय सृजन में सहायक हो| संपूर्ण ग्रामीण रोजगार योजना सितम्बर 2001 में प्रारंभ हुई| यह एक मजदूरी रोजगार योजना है तथा इसके अंतर्गत रोजगार देने देने में गरीबी से नीचे जीवन यापन कर रहे परिवारों को वरीयता दी जाती है| सरकार द्वारा निर्धनों में भी निर्धनतम व्यक्तियों के लिए दिसम्बर 2000 से अंत्योदय अन्न योजना आरंभ की गई है| वर्तमान में इस योजना के अंतर्गत प्रत्येक निर्धन परिवार को 2 रुपये प्रति किलोग्राम गेहूँ तथा 3 रुपये प्रति किलोग्राम चावल की अत्यधिक रियायती दर पर 35 किलोग्राम खाद्यान्न उपलब्ध कराया जाता है| इंदिरा आवास योजना के अंतर्गत ग्रामीण निर्धनों को आवासीय इकाइयों के निर्माण के लिए 25,000 रुपये तथा अनुपयोगी कच्चे मकानों को अर्द्ध पक्के मकानों में बदलने के लिए 12,500 रुपये सहायता अनुदान दिया जाता है|
5. बिहार में निर्धनता के कारणों की व्याख्या करें| इस समस्या के समाधान के लिए सरकार ने क्या उपाय किये है?
उत्तर:- पहले भाग के लिए प्रश्न संख्या 3 का उत्तर देखें|
भारत में गरीबी दूर करने के लिए निम्नलिखित प्रयास किए गए हैं—–
राष्ट्रीय काम के बदले अनाज कार्यक्रम—-
भारत सरकार ने इसे 2004 ई० से लागू किया है| यह कार्यक्रम उन सभी ग्रामीण गरीबों के लिए है, जिन्हें मजदूरी रोजगार की आवश्यकता है| यह कार्यक्रम केन्द्र सरकार द्वारा चलाया जाता है| श्रमिकों को काम के बदले अनाज दिया जाता है|
राज्य रोजगार गारंटी कोष—–
इसके अंतर्गत अगर आवेदक को 15 दिनों के अन्दर रोजगार उपलब्ध नहीं कराया गया तो वह बेरोजगारी भत्ता का हकदार होगा|
मध्याह्न भोजन योजना—-
इस योजना के अंतर्गत स्कूली बच्चों को मुफ्त दोपहर का भोजन दिया जाता है| इसका भार भी केन्द्र सरकार ही वहन करती है| इस योजना से प्राथमिक एवं मध्य विद्यालय के छात्र एवं छात्राएँ लाभान्वित होते हैं|
न्यूनतम आवश्यकता कार्यक्रम—–
यह कार्यक्रम सर्वप्रथम पांचवीं पंचवर्षीय योजना आयोग काल में गरीबी निवारण के लिए लागू किया गया| इस कार्यक्रम के अन्तर्गत देश की गरीब जनता को अमेरिका से कम न्यूनतम जरूरतों जैसे पेयजल, शिक्षा, स्वास्थ्य आदि की पूर्ति की जाती है|
समेकित ग्रामीण विकास कार्यक्रम——
यह कार्यक्रम 1980 से लागू किया गया है| यह एक स्वरोजगार कार्यक्रम है जिसमें गाँवों के गरीबों को उत्पादक परिसंपत्ति देकर उनकी आय में वृद्धि की कोशिश की जाती है|
स्वर्ण जयंती ग्राम स्वरोजगार योजना—–
अप्रैल 1999 में समेकित ग्रामीण विकास कार्यक्रम का नाम स्वर्ण जयंती ग्राम स्वरोजगार योजना कर दिया गया| केन्द्र सरकार द्वारा ग्रामीण क्षेत्रों में गरीबी रेखा के नीचे के परिवारों के लिए इस कार्यक्रम को एक महत्वपूर्ण स्वरोजगार कार्यक्रम के रूप में चालू रखा गया|
जवाहर रोजगार योजना——
यह एक मजदूरी आधारित रोजगार कार्यक्रम है| इस कार्यक्रम को अप्रैल 1989 में प्रारंभ किया गया था| इसके माध्यम से भूमिहीन परिवार के कम से कम एक सदस्य को वर्ष में 100 दिनों का रोजगार मुहैया कराया जाता है|
प्रधानमंत्री रोजगार योजना——-
1993-94 में यह योजना शहरी क्षेत्र में बेकार शिक्षित युवकों को स्वरोजगार मुहैया कराने के लिए प्रारंभ की गई है| 1994-95 में इस ग्रामीण क्षेत्र के लिए भी विस्तारित किया गया| 2001 के स्वतंत्रता दिवस के अवसर पर प्रधानमंत्री ने 10,000 करोड़ की संपूर्ण रोजगार योजना की घोषणा की|
प्रधानमंत्री ग्रामोदय योजना——
इस योजना को 2000-01 में ग्रामीण क्षेत्र के लोगों के जीवन में गुणवत्ता के सुधार के लिए स्वास्थ्य, प्राथमिक शिक्षा, पेयजल, आवास एवं ग्रामीण सड़कों का कार्यक्रम रखा गया है|
स्वर्ण जयंती शहरी रोजगार योजना—–
यह कार्यक्रम दिसम्बर 1997 से प्रारंभ किया गया है| इसके अंतर्गत शहरी क्षेत्र में गरीबी रेखा के नीचे जीवनयापन करनेवाले शिक्षित बेरोजगार और कम रोजगाररत लोगों को रोजगार प्रदान किया जाता है|
6. गरीबी उन्मूलन के लिए किए जानेवाले सरकारी एवं गैर सरकारी प्रयासों की विवेचना करें|
उत्तर:-गरीबी निवारण के लिए सरकार ने पिछड़े क्षेत्रों में काम के बदले अनाज का कार्यक्रम चलाया है| राज्य रोजगार गारंटी कोष से बेरोजगारों को भत्ता दी जाती है| सरकारी प्राथमिक एवं माध्यमिक विद्यालयों में मध्याह्न भोजन योजना का प्रारंभ किया गया है| देश के गरीब लोगों को सरकार के द्वारा पेयजल, प्राथमिक शिक्षा, स्वास्थ्य सुविधाओं की पूर्ति की जाती है| गरीबों को उत्पादक परिसंपत्ति देकर स्वरोजगार कार्यक्रम चलाया गया है| जवाहर रोजगार योजना के अन्तर्गत राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार कार्यक्रम एवं ग्रामीण भूमिहीन रोजगार गारंटी कार्यक्रम की व्यवस्था की गई है| शहरी क्षेत्र में बेकार शिक्षित युवकों को स्वरोजगार मुहैया किया गया है| प्रधानमंत्री ग्रामोदय योजना के अन्तर्गत ग्रामीण क्षेत्रों में स्वास्थ्य, प्राथमिक शिक्षा, पेयजल, आवास और ग्रामीण सड़कों में सुधार किया गया है|
गरीबी के निदान के लिए गैर सरकारी प्रयास निम्नलिखित हैं—–
स्वरोजगार—-
गरीब व्यक्ति प्रशिक्षण प्राप्त कर बैंक की सहायता से खुद रोजगार प्रारंभ कर देते हैं| बैंक के कर्ज चुकता होने पर व्यक्ति का वह रोजगार अपना हो जाता है और वह स्वावलम्बी हो जाता है| आय बढने से व्यक्ति के रहन सहन में बदलाव आ जाता है|
सामूहिक खेती—-
सामूहिक खेती के द्वारा गरीब कृषक तथा मजदूर की खेती में लगायी जानेवाली पूंजी की सुरक्षा की गारंटी हो जाती है| यहाँ पर व्यक्ति स्वतंत्र रूप से कार्य करता है और लोग एक दूसरे के दुख और हानि आपस में बांटते हैं| गरीब से गरीब व्यक्ति भी अपने इस प्रयास से जीवन शैली में बदलाव लाते हैं|
सामुदायिक विकास कार्यक्रम——
गाँवों में इसके अंतर्गत विकास के कार्य लोग एक दूसरे के साथ मिलकर करते हैं| मजदूरी एवं लाभ को बराबर आपस में बांटते हैं| इससे गरीब लोगों की आय बढती है और उनकी गरीबी दूर हो जाती है|
स्वयं सहायता समूह——
स्वयं सहायता समूह के अन्तर्गत ग्रामीण महिला एवं पुरुष गाँव के स्तर पर काम करते हैं| उन्हें बैंक के द्वारा कर्ज देकर प्रोत्साहित किया जाता है| एक समूह में 15 से 20 लोग रहते हैं| कर्ज वापसी की जवाबदेही समूह के सभी सदस्यों को बराबरी का होता है| समूह में जो भी आमदनी होती है उसे आपस में बराबर बराबर बांट दिया जाता है|
7. शहरी और ग्रामीण निर्धनता के दो विशिष्ट उदाहरण दें|
उत्तर:-
शहरी गरीबी——
पैंतीस वर्षीय रामपुर पटना के निकट गेहूँ के आटे की एक मील में दैनिक श्रमिक के रूप में काम करता है| रोजगार मिलने पर वह एक महीने में लगभग 1500 रुपये कमा लेता है| उसके परिवार में उसकी पत्नी और 6 माह से 12 वर्ष तक की आयु के चार बच्चे हैं| उसे अपने बूढ़े माता पिता को गाँवों में पैसा भेजना पड़ता है| रामपुर शहर के बाहरी क्षेत्र में किराए पर एक कमरे के मकान में रहता है| यह ईंटों एवं मिट्टी के खपड़ों से बनी एक कामचलाऊ झोपड़ी है| उसकी पत्नी नौकरानी का कार्य कर 800 रुपये और कमा लेती है| रामपुर का परिवार किसी प्रकार के दिन में दोबार दाल और चावल का अल्प भोजन जुटा लेता है| परन्तु यह भोजन उन सबके लिए पर्याप्त नहीं होता| उसका बड़ा बेटा चाय की दुकान में काम कर 300 रुपये और कमा लेता है| उसकी 10 साल की बेटी छोटे बच्चों की देखभाल करती है| कोई भी बच्चा स्कूल नहीं जाता| उसके परिवार में प्रत्येक के पास दो जोड़े फटे पुराने ही है| नये कपड़े तभी खरीदे जाते हैं जब पुराने बिलकुल पहनने योग्य नहीं रहते| उनके पांवों में जूते नहीं है| छोटे बच्चे अल्प पोषित रहते हैं| बीमार पड़ने पर उन्हें चिकित्सा की सुविधा नहीं मिलती है|
ग्रामीण गरीबी—–
राजेन्द्र सिंह बिहार में नालन्दा के पास एक गाँव इस्लामपुर में रहनेवाला है| वह भूमिहीन है| वह बड़े किसानों के लिए छोटे मोटे काम करता है| काम और आय दोनों अनियमित है| कयी बार उसे पूरे दिन की मेहनत के बदले 60 रुपये ही मिलती है| लेकिन प्रायः खेतों में पूरे दिन मेहनत करने के बाद कुछ किलोग्राम गेहूँ, दाल या थोड़ी सी शब्जी ही मिल पाती है| उसके परिवार में सदस्यों की संख्या आठ है जिन्हें दो वक्त का भोजन नहीं मिलता| राजेन्द्र सिंह गाँव के बाहर एक कच्ची झोपड़ी में रहता है| परिवार की महिलाएँ पूरा दिन खेतों में चारा काटने तथा खेतों से जलाने की लकड़ियाँ बीनने में ही गुजार देती है| उसके पिता यक्ष्मा से ग्रस्त हैं और वह भी मरणासन्न की ओर अग्रसर है| यद्यपि गाँव में प्राथमिक विद्यालय है| राजेन्द्र सिंह वहाँ भी नहीं गया| उसे 10 वर्ष की उम्र से ही कमाना शुरु करना पड़ा| नये कपड़े खरीदना कुछ वर्षों में ही संभव हो पाता है| यहाँ तक कि परिवार के लिए साबुन तथा तेल भी एक विलासिता है| ऊपर के दो विशिष्ट उदाहरण गरीबी के अनेक आयामों को दर्शाते हैं| वे दर्शाते हैं कि गरीबी का अर्थ भुखमरी तथा आश्रय का न होना है|
8. भारतवासियों की निर्धनता को दूर करने के लिए कौन से उपाय आवश्यक है?
उत्तर:-
भारत की निर्धनता को दूर करने तथा यहाँ के निवासियों के जीवन स्तर को ऊंचा उठाने के लिए निम्नलिखित उपाय आवश्यक है——-
प्राकृतिक संसाधनों का समुचित उपभोग—–
भारत में प्राकृतिक संसाधनों की कमी नहीं है| लेकिन, हम उनका पूर्ण उपयोग करने में असफल रहे हैं| अतः, निर्धनता की समस्या को समाधान के लिए देश के प्राकृतिक एवं मानवीय संसाधनों का पूर्ण एवं समुचित उपयोग आवश्यक है|
कृषि उत्पादन में वृद्धि—–
हमारा देश मुख्यतः एक कृषि प्रधान देश रहा है| कृषि के विकास और उपज में वृद्धि के बिना देश की गरीबी को दूर करना संभव नहीं है| इसके लिए कृषि का आधुनिकीकरण तथा कृषि उत्पादन में वृद्धि आवश्यक है|
देश का उद्योगीकरण—–
निर्धनता की समस्या के समाधान के लिए देश का उद्योगीकरण भी अनिवार्य है| कृषि पर जनसंख्या का बोझ बहुत अधिक होने के कारण ही ग्रामीण क्षेत्रों में निर्धनों की संख्या अधिक है| उद्योगीकरण से कृषि पर जनभार कम होगा, नागरिकों की प्रतिव्यक्ति आय में वृद्धि होगी और निर्धनता के निवारण में सहायता मिलेगी|
पूंजी की व्यवस्था—–
कृषि एवं उद्योगों के विकास के लिए पर्याप्त पूंजी आवश्यक है| भारत में बचत एवं पूंजी निर्माण की दर बहुत कम है| पूंजी की समुचित व्यवस्था करने के लिए देश में पूंजी निर्माण की गति करनी होगी साथ ही, हमें अनुकूल सुविधाएँ देकर विदेशी पूंजी को भी आकृष्ट करना चाहिए|
न्यायोचित वितरण—–
देश में आय एवं धन का वितरण असमान होने के कारण अधिकांश व्यक्तियों की उत्पादन क्षमता और कुशलता कम हो जाती है| अत:, निर्धनता दूर करने तथा जीवन स्तर को ऊंचा उठाने के लिए देश में उत्पादित संपत्ति का समान एवं न्यायोचित वितरण भी आवश्यक है|
जनसंख्या का नियंत्रण—–
जनसंख्या में अत्यधिक वृद्धि के कारण हमारा जीवन स्तर गिर रहा है तथा देश की निर्धनता बढती जा रही है| जनसंख्या में तीव्र वृद्धि हमारे आर्थिक विकास की गति को भी मंद बना देती है| अत एव, निर्धनता की समस्या के समाधान के लिए जनसंख्या संबंधी एक उपयुक्त नीति का निर्माण एवं अनुपालन आवश्यक है| यहाँ यह ध्यान रखना आवश्यक है कि केवल उत्पादन का समाधान संभव नहीं है| इसके लिए राष्ट्रीय आय एवं सम्पत्ति का समान वितरण भी आवश्यक है|
9. भारत में गरीबी उन्मूलन के लिए अपनाए गये कार्यक्रमों की व्याख्या कीजिए|
उत्तर:-
स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद से ही निर्धनता निवारण देश में आर्थिक नियोजन एवं विकास का मुख्य उद्देश्य रहा है| गरीबी उन्मूलन के लिए भारत सरकार ने जो नीति अपनायी है उसके दो मुख्य अंग है| एक और सरकार आर्थिक विकास की दर में वृद्धि के लिए प्रयत्नशील है दूसरी ओर, उसने विशिष्ट कार्यक्रमों द्वारा निर्धनता की समस्या पर प्रत्यक्ष प्रहार किया है| जिन्हें गरीबी उन्मूलन अथवा निर्धनता निवारण कार्यक्रमों की संज्ञा दी गई है| इनमें अधिकांश केन्द्र सरकार द्वारा प्रायोजित कार्यक्रम है जिनका समय समय पर मूल्यांकन एवं आवश्यकतानुसार पुनर्गठन होता रहा है| समन्वित ग्रामीण विकास कार्यक्रम निर्धनता निवारण अथवा गरीबी उन्मूलन का एक महत्वपूर्ण कार्यक्रम था| यह कार्यक्रम 1979 में प्रारंभ हुआ था| इसका उद्देश्य निर्धन ग्रामीण परिवारों को उत्पादक निवेश के लिए व्यावसायिक बैंकों से कम ब्याज पर साख उपलब्ध कराना था| लेकिन, लक्षित वर्ग के व्यक्तियों को इसका बहुत कम लाभ मिला है| अब इस कार्यक्रम को स्वरोजगार योजना में समाहित कर दिया गया है| 1997-98 में जवाहर रोजगार योजना तथा स्वरोजगार आश्वासन योजना निर्धनता निवारण तथा रोजगार प्रदान करने की बहुत व्यापक योजना थी| लेकिन इन कार्यक्रमों को सीमित सफलता मिली है| अभी गरीबी उन्मूलन के लिए हमारे देश तथा राज्य में जो कार्यक्रम चल रहे हैं| उनमें स्वर्ण जयंती ग्राम स्वरोजगार योजना, संपूर्ण ग्रामीण रोजगार योजना अंत्योदय अन्न योजना, इंदिरा आवास योजना आदि प्रमुख है| स्वर्ण जयंती ग्राम स्वरोजगार योजना अप्रैल 1999 में प्रारंभ की गई| इसका उद्देश्य निर्धन ग्रामीण परिवारों को निर्धनता रेखा से ऊपर लाने के लिए उन्हें स्व सहायता समूहों के रूप में संगठित करना है| संपूर्ण ग्रामीण रोजगार योजना सितम्बर 2001 में आरंभ हुई| यह एक मजदूरी रोजगार योजना है तथा इसके अंतर्गत रोजगार देने में गरीबी रेखा से नीचे जीवन यापन कर रहे परिवारों को वरीयता दी जाती है| सरकार द्वारा निर्धनों में भी निर्धनतम व्यक्तियों के लिए दिसम्बर 2000 में अंत्योदय अन्न योजना आरंभ की गई है| वर्तमान में इस योजना के अंतर्गत प्रत्येक निर्धन परिवार को 2 रुपये प्रति किलोग्राम गेहूँ और 3 रुपये प्रति किलोग्राम चावल की अत्यधिक रियायती दर पर 35 किलोग्राम खाद्यान्न उपलब्ध कराया जाता है| इंदिरा आवास योजना के अंतर्गत ग्रामीण निर्धनों को आवासीय इकाइयों के निर्माण के लिए 25,000 रुपये तथा अनुपयोगी कच्चे मकानों को अर्द्ध पक्के मकानों में बदलने के लिए 12,500 रुपये सहायता अनुदान दिया जाता है|
10. बिहार में निर्धनता की समस्या के समाधान के लिए क्या उपाय आवश्यक है?
उत्तर:-
बिहार में निर्धनता की समस्या बहुत जटिल है तथा दीर्घकाल से बनी हुई है| इस समस्या के समाधान के लिए निम्नलिखित उपाय आवश्यक है——-
कृषि का विकास—–
विभाजन के पश्चात बिहार राज्य खनिज एवं वन संसाधनों से वंचित हो गया है| अब कृषि हमारी अर्थव्यवस्था का आधार है| अत:, निर्धनता की समस्या के समाधान के लिए कृषि एवं इससे संबद्ध व्यवसायों का विकास आवश्यक है|
पर्याप्त निवेश—-
राज्य के प्राकृतिक एवं मानवीय संसाधनों के समुचित उपयोग के लिए जल प्रबंधन, परिवहन, ऊर्जा आदि विभिन्न क्षेत्रों में पर्याप्त निवेश की आवश्यकता है| लेकिन, बिहार में निजी एवं सरकारी दोनों प्रकार के निवेश का स्तर निम्न हैं| राज्य सरकार साधन सीमित है| अनेक कारणों से अन्य राज्यों की अपेक्षा बिहार में निजी निवेश भी बहुत कम हुआ है| विकास एवं निर्धनता निवारण के उद्देश्यों को प्राप्त करने के लिए राज्य में निवेश के अनुकूल वातावरण का निर्माण अत्यंत आवश्यक है|
भूमि का न्यायोचित वितरण—–
हमारे राज्य के ग्रामीण क्षेत्रों में भूमि का वितरण बहुत विषम है| ग्रामीण निर्धनता को दूर करने के लिए भूमि का न्यायोचित वितरण आवश्यक है|
उद्योगीकरण पर बल—–
विभाजन के पश्चात बिहार के अधिकांश उद्योग एवं खनिज झारखंड राज्य में चले गए हैं| परंतु, विभाजित बिहार में भी चीनी, जूट, तंबाकू तथा खाद्य प्रसंस्करण उद्योग के विकास की अपार संभावनाएँ है| इन उद्योगों के विकास से रोजगार के अवसरों में वृद्धि होगी और निर्धनता निवारण में सहायता मिलेगी|
सामाजिक सेवाओं की उपलब्धता——
शिक्षा, स्वास्थ्य, आवास आदि आधारभूत सुविधाएँ लोगों की कुशलता और उत्पादन क्षमता को बढाती है| इससे उनकी आर्थिक स्थिति में सुधार होता है| परंतु, बिहार में और मुख्यतया इसके ग्रामीण क्षेत्रों में इन सेवाओं की उपलब्धता अपर्याप्त है| निर्धनता की समस्या के समाधान के लिए इनकी उपलब्धता एवं गुणवत्ता में सुधार की आवश्यकता है|
बाढ़ नियंत्रण एवं जल प्रबंधन—–
बाढ़ और सूखा दोनों ही बिहार की स्थायी समस्याएँ है| वस्तुतः बाढ़ की विभीषिका उत्तर बिहार के निवासियों की निर्धनता का एक प्रमुख कारण है| अन्य राज्यों की अपेक्षा बिहार में भूमिगत जल का उपयोग भी बहुत कम होता है| इससे यहाँ प्रायः सूखा की स्थिति उत्पन्न हो जाती है| उचित जल प्रबंधन द्वारा ही बाढ़ और सूखा की समस्याओं का समाधान संभव है| इससे किसानों की निर्धनता को दूर करने में बहुत सहायता मिलेगी|
11. बिहार में गरीबी उन्मूलन के लिए किए जानेवाले सरकारी एवं गैर सरकारी प्रयासों की व्याख्या करें|
उत्तर:-
गरीबी उन्मूलन के सरकारी प्रयास–इसके लिए प्रश्न 8 का उत्तर देखें|
हमारे राज्य के गरीबी उन्मूलन कार्यक्रमों में गैर सरकारी संगठनों की भूमिका भी महत्वपूर्ण हो सकती है| लोगों की शिक्षा एवं स्वास्थ्य का गरीबी से प्रत्यक्ष संबंध है| शिक्षा और स्वास्थ्य सेवाओं में सुधार होने से नागरिकों की कुशलता एवं उत्पादन क्षमता बढ़ती है| इससे उनके रहन सहन के स्तर में भी सुधार होता है| बिहार में शिक्षा और स्वास्थ्य सेवाओं का स्तर बहुत निम्न हैं| बिहार में भी कुछ गैर सरकारी संगठन शिक्षा और स्वास्थ्य सेवाओं के क्षेत्र में सुधार के लिए प्रयत्नशील है| उदाहरण के लिए, स्थानीय प्रशासन और गैर सरकारी संगठनों के सामूहिक प्रयास से मुजफ्फरपुर जिले को राष्ट्रीयता साक्षरता अभियान के अन्तर्गत वयस्क शिक्षा के प्रसार में देश में सर्वाधिक सफलता मिली है| परंतु, शिक्षा, स्वास्थ्य और गरीबी उन्मूलन के अन्य कार्यक्रमों में गैर सरकारी संगठनों की सहभागिता बहुत सीमित है|
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