Bharti Bhawan Economics Class-9:Chapter-2:Very Short Type Question Answer:Short Type Question Answer:Long Answer Type Question Answer:अर्थशास्त्र:कक्षा-9:अध्याय-2:अति लघु उत्तरीय प्रश्न उत्तर:लघु उत्तरीय प्रश्न:दीर्घ उत्तरीय प्रश्न

                          मानव संसाधन





अतिलघु उत्तरीय प्रश्न
1. संसाधन के रूप में जनसंख्या से आप क्या समझते हैं? 
उत्तर:-
प्राकृतिक संसाधन और भौतिक पूंजी के समान ही जनसंख्या भी एक संसाधन है जिसे मानवीय पूंजी की संज्ञा दी जाती है| इसके सहयोग से ही वस्तुओं और सेवाओं का उत्पादन होता है| जनसंख्या के द्वारा ही किसी देश में श्रम की आपूर्ति की जाती है| जो उत्पादन के साधनों में सर्वाधिक महत्वपूर्ण है| प्राकृतिक संसाधन और भौतिक पूंजी उत्पादन के निष्क्रिय साधन है| जनसंख्या या मानवीय संसाधन ही इन्हें उत्पादन के योग्य बनाती है| 
2. जनसंख्या में तीव्र वृद्धि होने पर कौन सी समस्याएँ उत्पन्न होती है? 
उत्तर:-
अन्य साधनों के समान ही जनसंख्या भी एक संसाधन है| प्राकृतिक संसाधन और भौतिक पूंजी की अपेक्षा जनसंख्या में अधिक वृद्धि होने से कयी समस्याएँ उत्पन्न होती है| जनसंख्या बढने के कारण जन समुदाय को आर्थिक विकास के लाभों से वंचित रह जाना पड़ता है| जनसंख्या में तीव्र वृद्धि के फलस्वरूप प्रतिव्यक्ति की औसत आय से ह्रास होता है| अधिकतर व्यक्तियों को पर्याप्त एवं पौष्टिक भोजन नहीं मिल पाता तथा उनकी वस्त्र, आवास, शिक्षा, चिकित्सा आदि जैसी अनिवार्य आवश्यकताओं की भी पूर्ति नहीं होती है| परिणामतः लोगों का जीवन स्तर गिरने लगता है| और उनकी कार्य कुशलता कम हो जाती है|
3. बिहार की जनसंख्या का आकार क्या है? 
उत्तर:-
2001 की जनगणना के अनुसार, बिहार की कुल जनसंख्या लगभग 8.29 करोड़ है| इनमें 4.32 करोड़ पुरुष तथा 3.97 करोड़ महिलाएँ है| इस प्रकार, बिहार की जनसंख्या का आकार काफी बड़ा है| और यह भारत की कुल जनसंख्या का लगभग 8.7 प्रतिशत है बिहार जनसंख्या की दृष्टि से उत्तर प्रदेश और महाराष्ट्र के बाद भारत का तीसरा सबसे बड़ा राज्य है| वस्तुतः नवम्बर 2000 में राज्य के विभाजन के पूर्व देश की कुल जनसंख्या का 10 प्रतिशत से भी अधिक बिहार में निवास करता था और उत्तर प्रदेश के बाद यह भारत का दूसरा सबसे बड़ा राज्य था|
4. जनसंख्या के घनत्व से आप क्या समझते हैं? 
उत्तर:-
जनसंख्या के घनत्व का अभिप्राय मानव भूमि अनुपात से है| किसी क्षेत्र में प्रति वर्ग किलोमीटर में निवास करनेवाले व्यक्तियों की औसत संख्या को जनसंख्या का घनत्व कहते हैं| किसी देश या राज्य की कुल भूमि में कुल जनसंख्या से भाग देकर उसके घनत्व को निकाला जा सकता है| हमारे देश तथा राज्य की जनसंख्या में लगातार वृद्धि होने के कारण जनसंख्या का घनत्व भी क्रमशः बढता जा रहा है| 2001 की जनगणना के अनुसार, भारत में जनसंख्या का औसत घनत्व 324 व्यक्ति प्रति वर्गकिलोमीटर तथा बिहार में 881 व्यक्ति प्रति वर्ष किलोमीटर है|
5. स्त्री पुरुष अनुपात का क्या अभिप्राय है? 
उत्तर:-
स्त्री पुरुष अनुपात अथवा लिंग अनुपात का अर्थ यह है कि प्रत्येक 1,000 पुरुष पर स्त्रियों की संख्या क्या है|
6. स्त्री पुरुष अनुपात की गणना किस प्रकार की जाती है? 
उत्तर:-
स्त्री पुरुष अनुपात की गणना 1,000 व्यक्तियों के आधार पर की जाती है|
7. एक साक्षर व्यक्ति कौन है? 
उत्तर:-
जब एक निश्चित अथवा उससे अधिक आयु का व्यक्ति किसी भी भाषा में पढ या लिख सकता है तो उसे साक्षर कहते हैं|
8. जीवन प्रत्याशा का क्या अर्थ है? 
उत्तर:-
जीवन प्रत्याशा का अर्थ किसी व्यक्ति के जीवित रहने की संभावित आयु से है| दूसरे शब्दों में, जीवन प्रत्याशा का अभिप्राय यह है कि विभिन्न आयु वर्गों में मृत्यु दरों को ध्यान में रखते हुए किसी बच्चे के जन्म के बाद कितनी आयु तक जीवित रहने की संभावना है इसे हम जन्म के समय प्रत्याशा अथवा प्रत्याशित आयु या औसत आयु कहते हैं| स्वास्थ्य सेवाओं की उचित व्यवस्था होने पर लोगों की जीवन प्रत्याशा बढती है| स्वास्थ्य सेवाओं में सुधार होने से विगत वर्षों में हमारी जीवन प्रत्याशा में वृद्धि हुई है|
9. जन्म दर तथा मृत्यु दर के अध्ययन का क्या महत्व है? 
उत्तर:-
जन्म एवं मृत्यु दर का अभिप्राय किसी एक वर्ष में प्रति हजार जनसंख्या के पीछे जन्म लेनेवाले बच्चों अथवा मरनेवाले व्यक्तियों की संख्या से है| जन्म दर तथा मृत्यु दर द्वारा ही किसी प्रदेश में जनसंख्या के आकार का निर्धारण होता है| मुख्यतया इन दोनों का अंतर ही जनसंख्या की वृद्धि दर को निर्धारित करता है| यदि जन्म दर की अपेक्षा मृत्यु दर कम है तो जनसंख्या में वृद्धि होती है| इसके विपरीत, जन्म दर की अपेक्षा मृत्यु दर अधिक होने से जनसंख्या में कमी आती है|
10. कार्यशील जनसंख्या से आप क्या समझते हैं? 
उत्तर:-
कार्यशील जनसंख्या के अंतर्गत ऐसे व्यक्तियों को रखा जाता है जो वास्तव में काम में लगे हुए हैं| कार्यशील जनसंख्या के निर्धारण की दृष्टि से आयु संरचना अत्यधिक महत्वपूर्ण है| हमारे देश में 14 वर्ष से कम तथा 60 वर्ष से अधिक आयु वर्ग के व्यक्तियों को कार्यशील जनसंख्या में सम्मिलित नहीं किया जाता है| इस प्रकार, कुल जनसंख्या में बच्चों और वृद्ध व्यक्तियों की संख्या अधिक होने पर कार्यशील जनसंख्या का अनुपात घट जाता है| इसका आर्थिक एवं औद्योगिक विकास पर प्रतिकूल प्रतिक्रिया प्रभाव पड़ता है| 2001 की जनगणना के अनुसार हमारे देश में 14 वर्ष तक के आयु वर्ग के बच्चों की संख्या 36 प्रतिशत तथा बिहार में 42 प्रतिशत है जो निश्चय ही बहुत अधिक है| यह हमारी कार्यशील जनसंख्या के कम होने का मुख्य कारण है|
11. बिहार की ग्रामीण एवं नगरीय जनसंख्या क्या है? 
उत्तर:-
बिहार की ग्रामीण जनसंख्या 89℅ एवं नगरीय जनसंख्या 11℅ है|
12. मानव पूंजी निर्माण से आप क्या समझते हैं? 
उत्तर:-
जब हम मानवीय संसाधनों के विकास में पूंजी का विनियोग करते हैं तो इसे मानवीय पूंजी निर्माण कहते हैं|
13. मानव पूंजी निर्माण के दो प्रमुख घटकों का उल्लेख करें|
उत्तर:-
मानवीय संसाधनों में निवेश से श्रम की गुणवत्ता और उत्पादन क्षमता बढती है| शिक्षा और स्वास्थ्य सेवा मानव पूंजी निर्माण के दो मुख्य घटक है| इस दृष्टि से बच्चों की संख्या, स्वास्थ्य और पोषण पर किया जानेवाला निवेश सर्वाधिक महत्वपूर्ण है| जहाँ सामान्य शिक्षा से मनुष्य का बौद्धिक विकास होता है वहाँ तकनीकी शिक्षा से हमारी उत्पादन क्षमता बढती है| मानव पूंजी निर्माण की दृष्टि से स्वास्थ्य सेवाओं की समुचित व्यवस्था भी आवश्यक है| इन सेवाओं या सुविधाओं में सुधार होने से मनुष्य की शारीरिक क्षमता में प्रत्यक्ष रूप से वृद्धि होती है|
14. बिहार में साक्षरता की क्या स्थिति है? 
उत्तर:-
किसी भी समाज के विकास में शिक्षा का महत्वपूर्ण योगदान होता है| साक्षरता को शिक्षा का एक सामान्य मापदंड माना गया है| विगत वर्षों के अंतर्गत बिहार शिक्षा का विस्तार हुआ है, लेकिन यह अभी भी इस क्षेत्र में बहुत पिछड़ा हुआ है| 2001 की जनगणना के अनुसार, बिहार में साक्षरता दर मात्र 47℅ है, जबकि साक्षरता का राष्ट्रीय औसत 64.84 प्रतिशत है| बिहार में शिक्षा की स्थिति का अनुमान इसी बात से लगाया जा सकता है कि केरल में साक्षरता की दर 90 प्रतिशत से अधिक तथा उड़ीसा जैसे एक पिछड़े हुए राज्य में लगभग 63℅ है|
15. प्रारंभिक शिक्षा से आप क्या समझते हैं? 
उत्तर:-
प्रारंभिक अथवा प्राथमिक शिक्षा वह है जो युवावर्ग (6-14 आयुवर्ग के बच्चों) को न्यूनतम और आधारभूत कौशल सिखाती है|
16. स्वास्थ्य सेवाओं का क्या महत्व है? 
उत्तर:-
स्वास्थ्य सेवाओं की उचित व्यवस्था रहने पर लोगों की जीवन प्रत्याशा और कार्यक्षमता बढती है|
17. आवास से आप क्या समझते हैं? 
उत्तर:-
भोजन और वस्त्र के समान ही आवास भी मनुष्य की एक अनिवार्य आवश्यकता है| आवास जलवायु की विभिन्नताओं से सुरक्षा प्रदान करने के साथ ही समाज के भावी नागरिकों के जन्म और पालन पोषण की व्यवस्था करता है| आवास का संबंध केवल रहने के मकानों से ही नहीं, वरन स्वच्छ वायु, सुरक्षित पेयजल तथा एक अच्छे वातावरण से भी है| इस प्रकार के आवास की व्यवस्था मानवीय संसाधनों के विकास में सहायक होती है| मनुष्य की कार्यक्षमता एवं उत्पादकता में वृद्धि के लिए आवास का एक न्यूनतम स्तर अत्यंत आवश्यक है|
18. बिहार में सबसे अधिक जनसंख्या वाले 5 जिलों के नाम लिखिए|
उत्तर:-
पटना, पूर्वी चंपारण, मुजफ्फरपुर, मधुबनी, गया
19. निम्नलिखित संक्षिप्त शब्दों का पूर्ण रूप लिखें|
उत्तर:-
NCERT—-राष्ट्रीय शैक्षिक अनुसंधान और प्रशिक्षण परिषद(National council of education research and training) 
UGC——विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (University grants commission) 
ICAR—–भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद
(Indian council of agriculture research) 
ICMR——-भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद
(Indian council of medical research) 
SCERT——-राज्य शैक्षिक अनुसंधान और प्रशिक्षण परिषद
(State council of educational)
20. बिहार देश का सबसे कम साक्षर राज्य है| इसके दो मुख्य कारण बताएं|
उत्तर:-
बिहार शिक्षा के क्षेत्र में बहुत पिछड़ा हुआ है तथा यह देश का सबसे कम साक्षर राज्य है, इसके दो प्रमुख कारण अग्रलिखित है—-प्रथम, देश के अन्य राज्यों की तुलना में बिहार में प्राथमिक नामांकन की दर बहुत कम है| बच्चों के प्राथमिक नामांकन का राष्ट्रीय औसत 77 प्रतिशत है, जबकि बिहार में यह मात्र 52 प्रतिशत है| द्वितीय, बिहार के प्राथमिक एवं उच्च प्राथमिक विद्यालयों में छात्रों द्वारा समय से पूर्व ही विद्यालय छोड़ने की समस्या बहुत गंभीर है| राष्ट्रीय प्रतिदर सर्वेक्षण के आंकड़ों के अनुसार, ग्रामीण क्षेत्रों के 12 वर्ष आयुवर्ग के मात्र 37 प्रतिशत छात्र तथा शहरी क्षेत्रों के 57 प्रतिशत छात्र ही प्राथमिक शिक्षा पूरी करते हैं|


21. मानव संसाधन क्या है? 
उत्तर:-किसी देश या प्रदेश की जनसंख्या को ही मानव संसाधन कहा जाता है|
22. श्रम की आपूर्ति किस प्रकार होती है? 
उत्तर:-श्रम की आपूर्ति देश की कार्यशील जनसंख्या द्वारा होती है|
23. भौतिक पूंजी निवेश से आप क्या समझते हैं? 
उत्तर:- जब हम कल कारखानों, मशीन उपकरण आदि में पूंजी लगाते हैं तो इसे भौतिक पूंजी निवेश की संज्ञा दी जाती है|
24. हमें मानव संसाधन में निवेश की आवश्यकता क्यों पड़ती है? 
उत्तर:-मनुष्य की कुशलता और कार्यक्षमता को बढाने के लिए मानव संसाधन में निवेश की आवश्यकता होती है|
25. आदर्श जनसंख्या क्या है? 
उत्तर:-आदर्श जनसंख्या वह है जिसके रहने पर देश के साधनों का समुचित उपयोग होता है तथा प्रतिव्यक्ति आय अधिकतम होता है|
26. विश्व जनसंख्या की दृष्टि से भारत का क्या स्थान है? 
उत्तर:-जनसंख्या की दृष्टि से भारत का चीन के बाद विश्व में दूसरा स्थान है|
27. जनसंख्या घनत्व की दृष्टि से बिहार का देश में क्या स्थान है? 
उत्तर:- जनसंख्या घनत्व की दृष्टि से पश्चिम बंगाल के बाद अभी बिहार देश में सबसे सघन आबादी वाला राज्य है|
28. जन्म दर क्या है? 
उत्तर:- जन्म दर का अभिप्राय किसी एक वर्ष में प्रति हजार जनसंख्या के पीछे जन्म लेनेवाले बच्चों की संख्या से है|
29. मृत्यु दर क्या है? 
उत्तर:- मृत्यु दर का अभिप्राय किसी एक वर्ष में प्रति हजार जनसंख्या में मरनेवाले व्यक्तियों की संख्या से है|
30. बिहार की जनसंख्या का व्यावसायिक वितरण किस बात का परिचायक है? 
उत्तर:- बिहार की कार्यशील जनसंख्या का व्यावसायिक वितरण राज्य की अर्थव्यवस्था का अविकसित रूप प्रकट करता है|
31. किसी राज्य का नगरीकरण किस बात का परिचायक है? 
उत्तर:-किसी राज्य का नगरीकरण औद्योगिक एवं आर्थिक विकास का परिचायक है|
32. बिहार की नगरीय जनसंख्या क्या है? 
उत्तर:-बिहार की नगरीय जनसंख्या मात्र 10.47℅ है जो भारत की 28.20℅ की तुलना में बहुत कम है|
33. बिहार में प्राथमिक नामांकन की क्या स्थिति है? 
उत्तर:- बच्चों के प्राथमिक नामांकन का राष्ट्रीय औसत 77℅ है, लेकिन बिहार में यह मात्र 52℅ है|
34. व्यावसायिक शिक्षा क्या है? 
उत्तर:-व्यावसायिक शिक्षा वह है जो किसी व्यवसाय से जुड़ी होती है तथा उससे संबंधित आधारभूत कौशल का प्रशिक्षण देती है|
35. बिहार के सबसे कम जनसंख्या वाले 5 जिलों के नाम लिखिए|
उत्तर:- खगड़िया, मुंगेर, लखीसराय, शेखपुरा और शिवहर
लघु उत्तरीय प्रश्न








1. बिहार के जनसंख्या घनत्व की विवेचना करें|
उत्तर:-
जनसंख्या घनत्व का अभिप्राय किसी क्षेत्र में प्रति वर्ग किलोमीटर निवास करने वाले व्यक्तियों की औसत संख्या से है| बिहार में जनसंख्या का घनत्व बहुत अधिक है| तथा विगत वर्षों के अंतर्गत इसमें बहुत तेजी से वृद्धि हुई है| 1901 में बिहार में जनसंख्या का औसत घनत्व 157 व्यक्ति प्रति वर्ग किलोमीटर था जो 1951 में बढकर 222 हो गया था| अब 2001 की जनगणना के अनुसार, यह बढकर 881 व्यक्ति प्रति वर्ग किलोमीटर हो गया है| पश्चिम बंगाल के बाद अभी भी बिहार देश में सबसे सघन आबादी वाला राज्य है| लेकिन बिहार के सभी भागों में जनसंख्या का घनत्व एक जैसा नहीं है तथा इसका क्षेत्रीय वितरण बहुत असमान है| पटना, दरभंगा, वैशाली, सारण, सीवान आदि अत्यधिक घनत्व वाले क्षेत्र है तथा इन जिलों में जनसंख्या का घनत्व 1,200 व्यक्ति प्रति वर्ग किलोमीटर से भी अधिक है| इसके विपरीत, बांका, जमुई, कैमूर आदि निम्न घनत्व वाले क्षेत्र है जहाँ जनसंख्या का घनत्व 600 व्यक्ति प्रति वर्ग किलोमीटर या उससे भी बहुत कम है| राज्य के विभिन्न क्षेत्रों के बीच जनसंख्या घनत्व में इस अंतर का मुख्य कारण प्राकृतिक एवं आर्थिक है| बिहार की अर्थव्यवस्था मुख्यतया कृषि आधारित है| अतएव, राज्य के जिन भागों की भूमि समतल और उपजाऊ है, सिंचाई आदि का समुचित व्यवस्था होने के कारण खाद्य एवं व्यावसायिक फसलों की उत्पादकता अधिक है तथा परिवहन उद्योग एवं व्यापार के विकास की सुविधाएँ उपलब्ध है, उन भागों में जनसंख्या का घनत्व भी अपेक्षाकृत अधिक है|
2  बिहार की साक्षरता दर पर एक टिपण्णी लिखें|
उत्तर:-
साक्षरता शिक्षा का एक सामान्य मापदंड है और यह जनसंख्या के गुणात्मक पक्ष को प्रदर्शित करती है| वस्तुतः आर्थिक एवं सामाजिक न्याय पर आधारित समाज के निर्माण में जो विभिन्न उपकरण सहायक होते हैं| उनमें शिक्षा सर्वाधिक महत्वपूर्ण है| परन्तु शिक्षा के क्षेत्र में बिहार की स्थिति संतोषजनक नहीं है| तथा इस दृष्टि से इसकी गणना देश के सर्वाधिक पिछड़े राज्यों में की जाती है| 1951 में बिहार में साक्षरता दर लगभग 12 प्रतिशत थी जो 1991 में बढकर 38.48 प्रतिशत हो गई थी| विगत वर्षों के अंतर्गत बिहार की साक्षरता दर में वृद्धि हुई है, लेकिन यह राष्ट्रीय औसत से बहुत कम है| 2001 की जनगणना के अनुसार, यहाँ की साक्षरता दर लगभग 47 प्रतिशत है, जबकि साक्षरता का राष्ट्रीय औसत 64.8 प्रतिशत है| बिहार में पुरुष और स्त्री दोनों की साक्षरता दर के अन्य सभी राज्यों एवं केन्द्रशासित प्रदेशों से कम है| 2001 की जनगणना के आंकड़ों के अनुसार, यहाँ पुरुषों की साक्षरता दर 59.68 प्रतिशत तथा स्त्रियों की मात्र 33.12 प्रतिशत है| पुरुषों तथा स्त्रियों की साक्षरता का राष्ट्रीय औसत लगभग 75 और 54 प्रतिशत है| इस प्रकार, साक्षरता की दृष्टि से बिहार देश का सबसे पिछड़ा राज्य है|
3. जनसंख्या की आयु संरचना के अध्ययन का क्या महत्व है| बिहार की जनसंख्या की आयु संरचना क्या है? 
उत्तर:-
संरचना का अध्ययन कयी कारणों से महत्वपूर्ण है| इस आयु संरचना से हमें बहुत सी बातों की जानकारी मिलती है, जैसे—स्कूल जानेवाली जनसंख्या, मतदाताओं की जनसंख्या, श्रम करनेवाली अर्थात कार्यशील जनसंख्या इत्यादि| कार्यशील जनसंख्या के निर्धारण की दृष्टि से आयु संरचना के अध्ययन का विशेष महत्व है| यदि राज्य की कुल जनसंख्या में बच्चों और बूढों की संख्या अधिक है तो इससे कार्यशील जनसंख्या अथवा श्रम शक्ति का अनुपात घट जाता है| इसका अर्थ एवं औद्योगिक विकास पर प्रतिकूल पड़ता है| हमारे देश में 14 वर्ष से कम 60 वर्ष से अधिक आयुवर्ग के व्यक्तियों को कार्यशील जनसंख्या में सम्मिलित नहीं किया जाता है| 2001 की जनगणना के अनुसार, बिहार में 14 वर्ष तक आयुवर्ग के बच्चों की संख्या लगभग 42 प्रतिशत है जो निश्चय ही बहुत अधिक है| संपूर्ण देश में इस आयुवर्ग के बच्चों का प्रतिशत 36 है| इस आयुवर्ग की जनसंख्या अनुत्पादक उपभोक्ताओं की श्रेणी में आती है| कुल जनसंख्या में बच्चों का अनुपात अधिक होने से कार्यशील जनसंख्या पर इसका भार बढ जाता है| 2001 की जनगणना के अनुसार, बिहार में 60 वर्ष या इससे अधिक आयुवर्ग के लगभग 6.70 प्रतिशत व्यक्ति हैं और यह राष्ट्रीय प्रतिशत से बहुत अधिक नहीं है| भारत की कुल जनसंख्या में इस वर्ग के नागरिकों का अनुपात लगभग 6 प्रतिशत है|
4. बिहार में जन्म दर और मृत्यु दर की क्या स्थिति है?  जन्म दर एवं मृत्यु दर की गणना कैसे की जाती है? 
उत्तर:-
जन्म दर तथा मृत्यु दर द्वारा ही किसी देश या राज्य में जनसंख्या के आकार का निर्धारण होता| मुख्यतया, इन दोनों का अंतर ही जनसंख्या के वृद्धि दर को निर्धारित करता है| विश्व के अन्य विकसित देशों की तुलना में हमारे देश में जन्म दर और मृत्यु दर दोनों ही अधिक है| इसके अनेक कारण है जिनमें हमारा आर्थिक पिछड़ापन, अशिक्षा एवं अज्ञानता प्रमुख है| विगत वर्षों के अंतर्गत देश के आर्थिक विकास तथा शिक्षा और जीवन स्तर में सुधार होने से जन्म दर तथा मृत्यु दर में कमी हुई है| 1951 में यहाँ प्रति हजार जन्म दर 43.4 थी, जो 2001 में घटकर 30.9 हो गई है| लेकिन, यह अभी भी 26.4 प्रति हजार के राष्ट्रीय औसत से अधिक है| उसी प्रकार बिहार में मृत्यु दर भी 8.1 के राष्ट्रीय औसत से कुछ अधिक प्रति हजार 9.2 है| जन्म दर तथा मृत्यु दर की गणना किसी एक वर्ष में प्रति हजार जनसंख्या के पीछे जन्म लेनेवाले बच्चों अथवा मरनेवाले व्यक्तियों की संख्या के आधार पर की जाती है|
5. जनसंख्या के व्यावसायिक वितरण से आप क्या समझते हैं बिहार में जनसंख्या का व्यावसायिक वितरण क्या है? 
उत्तर:-
जनसंख्या के व्यावसायिक वितरण का अभिप्राय उस कार्यशील जनसंख्या से है जो विभिन्न प्रकार के व्यवसायों में लगी हुई है| ये उद्योग या व्यवसाय मुख्यतया तीन प्रकार के होते हैं—–प्राथमिक अथवा कृषि क्षेत्र, द्वितीय अथवा औद्योगिक क्षेत्र तथा तृतीयक अथवा सेवा क्षेत्र| प्राथमिक उद्योगों में कृषि एवं इससे संबंध व्यवसाय सम्मिलित किए जाते हैं| जिनमें पशुपालन, मत्स्यपालन तथा खनन सर्वाधिक महत्वपूर्ण है| द्वितीयक या औद्योगिक क्षेत्र में छोटी बड़ी सभी प्रकार की निर्माण इकाइयाँ शामिल हैं| तृतीयक उद्योग या व्यवसाय में व्यापार परिवहन, संचार तथा सभी प्रकार की सरकारी एवं गैर सरकारी सेवाएँ शामिल की जाती है| इस क्षेत्र को सेवा क्षेत्र भी कहते हैं| बिहार की कुल जनसंख्या में मात्र 33.38 प्रतिशत ही कार्यशील जनसंख्या है तथा इसका व्यावसायिक वितरण राज्य की अर्थव्यवस्था का विकसित रुप प्रकट करता है| 2001 की जनगणना के आंकड़ों के अनुसार, बिहार की कार्यशील जनसंख्या का लगभग 77 प्रतिशत कृषि अथवा उससे संबंध व्यवसाय में लगा हुआ है| इनमें लगभग 48 प्रतिशत कृषि मजदूर है| घरेलू और निर्माण उद्योगों में लगभग 4 प्रतिशत तथा अन्य उद्योग या व्यवसाय में 19 प्रतिशत व्यक्ति लगे हुए हैं|
6. आर्थिक विकास के लिए मानवीय संसाधनों का विकास आवश्यक है| इस कथन को स्पष्ट करें|
उत्तर:-
आर्थिक विकास के लिए मानवीय संसाधनों का विकास अथवा मानव पूंजी निर्माण अत्यंत आवश्यक है| किसी देश के विकास में मानव पूंजी निर्माण की भूमिका कयी दृष्टियों से महत्वपूर्ण होती है| मानवीय संसाधनों के विकास से मनुष्य की बौद्धिक योग्यता कौशल तथा शारीरिक क्षमता में सुधार होता है| एक शिक्षित, कुशल एवं स्वस्थ श्रमिक उपलब्ध संसाधनों का उचित विदोहन एवं उपयोग करता है| इससे उत्पादन अधिक होता है| तथा साधनों का अपव्यय नहीं होता| मानव पूंजी निर्माण से खोज और अनुसंधान को प्रोत्साहन मिलता है| इसके फलस्वरूप उत्पादन की तकनीक में सुधार होता है और हमारी उत्पादकता बढ जाती है| मानवीय संसाधनों के विकास एवं मानव पूंजी निर्माण से समाज को कोई अप्रत्यक्ष लाभ भी होते हैं| उत्पादन एवं राष्ट्रीय आय में वृद्धि होने से प्रतिव्यक्ति आय बढती है, सामान्य जनता के जीवन स्तर में सुधार होता है| और वे अधिक पूर्ण जीवन व्यतीत करने में सफल होते हैं| मानव पूंजी निर्माण द्वारा सृजित ज्ञान एवं कौशल से समाज की मनोवृत्ति में भी परिवर्तन होता है| इससे लोग परंपरावादी रीति रिवाजों एवं प्रथाओं को छोड़कर आधुनिक तरीकों को अपनाने के लिए प्रेरित होते हैं| यही कारण है कि आज हमारा अंतिम उद्देश्य जीवन प्रत्याशा, शैक्षणिक योग्यता तथा जीवन स्तर में सुधार द्वारा मानवीय संसाधनों का विकास करना है|
7. बिहार में मानवीय संसाधनों की वर्तमान स्थिति क्या है? 
उत्तर:-
किसी भी देश या राज्य के लिए एक दिए हुए समय एवं परिस्थितियों में मानव संसाधन, अर्थात जनसंख्या की एक अनुकूलतम मात्रा होती है| इस जनसंख्या के रहने पर प्राकृतिक एवं भौतिक संसाधनों का समुचित उपयोग संभव होता है तथा प्रतिव्यक्ति आय अधिकतम होती है| हमारे देश की जनसंख्या में बहुत तीव्र गति से वृद्धि हो रही है| यह बढती हुई जनसंख्या देश के आर्थिक विकास में कयी प्रकार से बाधक सिद्ध हुई है| परन्तु देश के प्रायः अन्य सभी राज्यों की अपेक्षा बिहार में जनसंख्या की वृद्धि दर अधिक है| इससे निर्धनता और बेरोजगारी बढी है तथा कयी अन्य समस्याएँ भी उत्पन्न हुई है| जनसंख्या में अत्यधिक वृद्धि के कारण राज्य में भूमि पर जनभार बहुत अधिक है, कृषि श्रमिकों की संख्या में निरंतर वृद्धि हो रही है तथा रोजगार के अभाव में उनका देश के अन्य भागों में पलायन हो रहा है| राज्य में शिक्षा, स्वास्थ्य एवं आवास सुविधाओं की बहुत कमी है| जनसंख्या वृद्धि के कारण सामाजिक सेवाओं पर भार बढता जा रहा है| इस प्रकार, बिहार में मानवीय संसाधनों की वर्तमान स्थिति संतोषजनक नहीं है| इसका प्रमुख कारण बिहारवासियों की शिक्षा, स्वास्थ्य, आवास आदि आधारभूत आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए साधनों का अभाव है|
8. मानव पूंजी निर्माण से आप क्या समझते हैं? 
उत्तर:-
आर्थिक विकास के लिए मानवीय संसाधनों का विकास अथवा मानव पूंजी निर्माण अत्यंत आवश्यक है| जब हम मानवीय संसाधनों के विकास में पूंजी का निवेश करते हैं| तो इसे हम मानवीय पूंजी निवेश कहते हैं| इस निवेश से ही मानव पूंजी का निर्माण होता है| भौतिक पूंजी के समान ही मानवीय पूंजी भी कुल राष्ट्रीय उत्पाद के सृजन में सहायक होती है| मानवीय पूंजी निवेश अथवा मानव पूंजी निर्माण के कयी रुप हो सकते हैं| इनमें शिक्षा, स्वास्थ्य एवं आवास सर्वाधिक महत्वपूर्ण है|
9. मानवीय संसाधनों के विकास में शिक्षा के महत्व का उल्लेख करें| शिक्षा के क्षेत्र में बिहार की क्या स्थिति है? 
उत्तर:-
मानवीय संसाधनों के विकास की दृष्टि से शिक्षा एवं प्रशिक्षण की भूमिका अत्यधिक महत्वपूर्ण होती है| शिक्षा और प्रशिक्षण से ही कुशल और योग्य श्रम शक्ति का निर्माण होता है और हमारी उत्पादन क्षमता बढती है| उचित शिक्षा नागरिकों की मनोवृत्ति, ज्ञान एवं क्षमताओं का विकास कर उन्हें अधिक योग्य, सक्षम तथा बदलती हुई परिस्थितियों के अनुरूप बनाती है| केवल व्यक्ति ही नहीं, वरन समाज के विकास में भी शिक्षा का महत्वपूर्ण योगदान होता है| उचित शिक्षा द्वारा आर्थिक विकास के लिए अनुकूल परिस्थितियाँ उत्पन्न होती है तथा सकल घरेलू आय एवं प्रतिव्यक्ति आय में वृद्धि होती है| विगत वर्षों के अन्तर्गत बिहार में शिक्षा का विस्तार हुआ है| लेकिन, यह आज भी शिक्षा के क्षेत्र में बहुत पिछड़ा हुआ है| 2001 की जनगणना के अनुसार, बिहार में साक्षरता दर मात्र 47 प्रतिशत है, जबकि साक्षरता का राष्ट्रीय औसत 65 प्रतिशत है| निर्धन होने के कारण ही पिछड़े वर्ग के अधिकांश बच्चे समय पूर्व विद्यालय छोड़ देते हैं|
10. बिहार में प्राथमिक शिक्षा पर एक टिप्पणी लिखें|
उत्तर:-
प्राथमिक शिक्षा युवावर्ग को न्यूनतम एवं आधारभूत कौशल सिखाती है| प्रारंभिक अथवा प्राथमिक शिक्षा का हमारी उत्पादक क्रियाओं पर सर्वाधिक प्रभाव पड़ता है| यही कारण है कि इस प्रकार की शिक्षा को हमारे देश में सर्वोच्च प्राथमिकता प्रदान की गई है| भारतीय संविधान के नीति निर्देशक सिद्धांतों के अनुसार 14 वर्ष तक आयुवर्ग के सभी बच्चों को नि:शुल्क एवं अनिवार्य शिक्षा प्रदान करना राज्य का दायित्व है| देश के अन्य सभी राज्यों के समान ही बिहार में भी प्राथमिक शिक्षा के सर्वव्यापीकरण के लिए 2001 से सर्वशिक्षा अभियान लागू किया गया है| इस योजना के अग्रलिखित उद्देश्य है——- 6 से 14 वर्ष के आयुवर्ग के सभी बच्चों का विद्यालय में नामांकन, वर्ष 2007 तक 6-14 वर्ष आयुवर्ग के सभी बच्चों के लिए 5 वर्ष की प्राथमिक शिक्षा सुनिश्चित कराना तथा वर्ष 2010 तक 6-14 वर्ष आयु वर्ग के सभी बच्चों को 8 वर्ष की स्कूली शिक्षा उपलब्ध कराना| परन्तु, बिहार में प्राथमिक शिक्षा की कयी समस्याएँ है| देश के अन्य राज्यों की तुलना में यहाँ प्राथमिक नामांकन की दर बहुत कम है| हमारे राज्य के प्राथमिक विद्यालय में छात्रों के पलायन अर्थात समय के पूर्व ही विद्यालय छोड़ने की समस्या भी बहुत गंभीर है| छात्रों द्वारा असमय विद्यालय छोड़ने का प्रमुख कारण उनके अभिभावकों को निर्धनता है| राज्य में शिक्षा के विकास के लिए प्राथमिक शिक्षा से जुड़ी समस्याओं का समाधान आवश्यक है|
11. स्वास्थ्य सेवाओं का हमारी उत्पादक क्रियाओं पर क्या प्रभाव पड़ता है? बिहार के ग्रामीण क्षेत्रों में स्वास्थ्य सेवाओं की आपूर्ति किस प्रकार की जाती है? 
उत्तर:-
नागरिक का स्वास्थ्य किसी भी राज्य के आर्थिक एवं सामाजिक विकास का एक अभिन्न अंग होता है| मनुष्य के विकास एवं सुखी जीवन के लिए उसका स्वस्थ रहना अत्यंत आवश्यक है| किसी व्यक्ति की सतत् कार्य करने की क्षमता बहुत अंशों में उसके स्वास्थ्य की दशा पर निर्भर है| एक स्वस्थ व्यक्ति ही उत्पादक क्रियाओं में सक्रिय रूप से भाग लेकर उत्पादन में वृद्धि कर सकता है| अत: मानवीय संसाधनों के विकास तथा सकल उत्पाद में वृद्धि के लिए एक उपयुक्त स्वास्थ्य सेवा की व्यवस्था अत्यंत आवश्यक है| बिहार के ग्रामीण में स्वास्थ्य एवं उपचार सेवाओं की आपूर्ति राज्य के 150 सामुदायिक स्वास्थ्य केन्द्रों, 2.200 प्राथमिक स्वास्थ्य केन्द्रों तथा 15,000 स्वास्थ्य उप केन्द्रों द्वारा की जाती है| विगत वर्षों के अंतर्गत बिहार की स्वास्थ्य संरचना का बहुत विस्तार हुआ है| लेकिन, ग्रामीण क्षेत्रों में स्वास्थ्य एवं चिकित्सा सुविधाओं की उपलब्धता हमारी आवश्यकताओं की तुलना में अभी भी बहुत कम है| केन्द्र सरकार के जनसंख्या पर आधारित मापदंडों के अनुसार, 2002 में राज्य में 623 सामुदायिक स्वास्थ्य केन्द्रों, 875 प्राथमिक स्वास्थ्य केन्द्रों तथा 3,705 स्वास्थ्य उप केन्द्रों की कमी थी| ग्रामीण क्षेत्रों में स्वास्थ्य सेवाओं की गुणवत्ता का स्तर भी बहुत निम्न हैं| अधिकांश प्राथमिक स्वास्थ्य केन्द्रों पर रोगियों के लिए विस्तार, जांच सुविधा तथा दवाएँ उपलब्ध नहीं होती है| परिणामतः ग्रामीण क्षेत्रों में स्वास्थ्य सेवाओं की आपूर्ति बहुत सीमित एवं अपर्याप्त है|
12. आवास समस्या के मुख्य स्वरूप क्या है? 
उत्तर:-
आवास मनुष्य की एक आधारभूत आवश्यकता है| आवास का संबंध केवल रहने के मकानों से ही नहीं, वरना स्वच्छ वायु, सुरक्षित पेयजल तथा एक अच्छे पड़ोस और वातावरण भी है| इस प्रकार के आवास की व्यवस्था मानवीय संसाधनों के विकास में सहायक होती है| परन्तु भारत में आवासीय इकाइयों की बहुत कमी है| बिहार जैसे देश के पिछड़े हुए राज्यों में आवास की समस्या और अधिक गंभीर है| जहाँ निर्धनों की संख्या अधिक है| आवास समस्या के दो मुख्य रूप है| परिमाणात्मक एवं गुणात्मक| परिमाणात्मक स्वरूप का अभिप्राय आवास, अर्थात मकानों की कमी से है| देश में करोड़ों परिवार ऐसे है जिन्हें आवास सुविधा उपलब्ध नहीं है| जनसंख्या में निरंतर वृद्धि होने के फलस्वरूप भविष्य में इस समस्या के और अधिक गंभीर होने की संभावना है| आवास समस्या के गुणात्मक स्वरूप का संबंध मकानों के निम्न स्तर से है| उदाहरण के लिए, हमारे राज्य के 12 प्रतिशत परिवारों को ही रहने के लिए पक्के मकान उपलब्ध है| अधिकांश ग्रामीण परिवार मिट्टी के बने कच्चे मकानों में रहते हैं जिनमें प्रायः हवा, पानी, रोशनी, शौचालय, मलवाहन आदि की व्यवस्था नहीं होती है| आवास समस्या के समाधान के लिए सरकार की 1998 की राष्ट्रीय आवास नीति का दीर्घकालीन लक्ष्य बेघरों को घर दिलाना, अपर्याप्त सुविधाओं के मकानों में रहनेवालों की आवासीय स्थिति में सुधार लाना तथा सभी लोगों को आवास सुविधाओं का न्यूनतम स्तर उपलब्ध कराना है|
13. इंदिरा आवास योजना क्या है? 
उत्तर:-
ग्रामीण निर्धनों की आवास संबंधी आवश्यकताओं का पूरा करने के लिए सरकार ने मई 1985 से इंदिरा आवास योजना आरंभ की है| इस योजना का उद्देश्य ग्रामीण क्षेत्र के अत्यंत निर्धन परिवारों के लिए आवास इकाइयों का निर्माण और उनके अनुपयोगी कच्चे मकानों में सुधार लाना है| इसके लिए सरकार द्वारा इन परिवारों को आर्थिक सहायता प्रदान की जाती है| अप्रैल 2004 से इंदिरा आवास योजना के अधीन नये आवासों के लिए दी जानेवाली अधिकतम सहायता राशि 20,000 रूपये से बढ़ाकर 25,000 रूपये तथा कच्चे मकानों को अर्द्ध पक्के मकानों में बदलने के लिए 10,000 रुपये से बढाकर 12,500 रुपये प्रति इकाई कर दी गई है|
14. मानव पूंजी तथा भौतिक पूंजी में क्या अंतर है? क्या मानव पूंजी भौतिक पूंजी से श्रेष्ठ है|
उत्तर:-
धन या पूंजी के निवेश से ही मानवीय एवं भौतिक पूंजी का निर्माण होता है| ये दोनों ही उत्पादन के साधन है जो राष्ट्रीय उत्पाद के सृजन में सहायक होता है| लेकिन इनमें कुछ अंतर है जो निम्न हैं——-
भौतिक पूंजी उत्पादन का एक निष्क्रिय साधन है| जबकि, मानवीय, पूंजी सक्रिय होती है जो भौतिक पूंजी को उत्पादन के योग्य बनाती है|
भौतिक पूंजी के क्रेता उसके स्वामी हो जाते हैं, लेकिन मानव पूंजी को उनके स्वामी से पृथक नहीं किया जा सकता|
भौतिक तथा मानव पूंजी दोनों ही उत्पादन के गतिशील साधन है| लेकिन, भौतिक पूंजी की अपनी कोई इच्छा शक्ति नहीं होती है| अत एव, इसमें मानव पूंजी की अपेक्षा गतिशीलता अधिक होती है|
भौतिक पूंजी उत्पादन का एक निर्जीव साधन है| एक उद्यमी अपनी इच्छानुसार उसे काम पर लगा सकता है| लेकिन, मानव पूंजी सजीव है| उसके कार्य में मानवीय भावनाओं का भी प्रभाव पड़ता है|
आर्थिक विकास की दृष्टि से मानव पूंजी को भौतिक पूंजी से अधिक श्रेष्ठ माना गया है| मानव संसाधनों के विकास से ही प्रकृति पर मनुष्य का नियंत्रण बढ़ा हैं और उत्पादन की मात्रा में इतनी वृद्धि हुई है|
दीर्घ उत्तरीय प्रश्न






1. बिहार की जनसंख्या के प्रमुख अवयवों की व्याख्या करें|
उत्तर:-जनसंख्या का आर्थिक विकास से घनिष्ठ संबंध है| किसी राज्य का आर्थिक विकास बहुत अंशों में वहाँ के मानव संसाधन अथवा जनसंख्या एवं उसकी प्रकृति से प्रभावित होता है| बिहार की जनसंख्या की प्रमुख विशेषताएँ अग्रलिखित है——–
आकार एवं वृद्धि—–
बिहार की जनसंख्या की सबसे प्रमुख विशेषता इसका वृहत आकार है| जनसंख्या की दृष्टि से उत्तर प्रदेश और महाराष्ट्र के बाद यह भारत का तीसरा सबसे बड़ा राज्य है| बिहार की जनसंख्या केवल विशाल ही नहीं है| बल्कि इसमें निरंतर तीव्र गति से वृद्धि भी हो रही है| 1951 में बिहार की कुल जनसंख्या 3.81 करोड़ थी| जो 2001 की जनगणना के अनुसार लगभग 8.29 करोड़ हो गई है|
उच्च घनत्व—–
बिहार की जनसंख्या का घनत्व भी बहुत अधिक है| इसके साथ ही राज्य की जनसंख्या में लगातार वृद्धि होने के कारण जनसंख्या का घनत्व 222 व्यक्ति प्रति वर्ग किलोमीटर था जो अब 2001 में बढ़कर 881 व्यक्ति प्रति वर्ग किलोमीटर हो गया है|
स्त्री पुरुष अनुपात—–
स्त्री पुरुष अनुपात की गणना 1,000 व्यक्तियों के आधार पर की जाती है| सामान्यतः 1,000 पुरूषों पर स्त्रियों की संख्या लगभग उतनी ही होनी चाहिए| 2001 की जनगणना के अनुसार बिहार में प्रति 1,000 पुरुषों के पीछे स्त्रियों की संख्या केवल 921 है|
साक्षरता दर——-
बिहार में साक्षर व्यक्तियों की संख्या अपेक्षाकृत कम है 2001 की जनगणना के अनुसार, यहाँ की साक्षरता दर 47 प्रतिशत है, जबकि साक्षरता का राष्ट्रीय औसत लगभग 65 प्रतिशत है|
जीवन प्रत्याशा——
जीवन प्रत्याशा का अभिप्राय किसी व्यक्ति के जीवित रहने की संभावित आयु से है| विगत वर्षों के अंतर्गत राज्य के नागरिकों की जीवन प्रत्याशा में वृद्धि हुई है| 1981 में बिहारवासियों की जीवन प्रत्याशा 53 वर्ष थी, जो 2001 में बढकर 60 वर्ष हो गई है| लेकिन, यह अभी भी 65 वर्ष के राष्ट्रीय औसत से कम है|
कार्यशील जनसंख्या का अनुपात——
कुल जनसंख्या में बच्चों और बूढ़ों की संख्या अधिक होने से कार्यशील जनसंख्या का अनुपात घट जाता है| 2001 की जनगणना के अनुसार बिहार की कुल जनसंख्या में मात्र 33.88 प्रतिशत ही कार्यशील जनसंख्या है|
जन्म दर एवं मृत्यु दर——-
जन्म दर तथा मृत्यु दर द्वारा किसी राज्य में जनसंख्या के आकार का निर्धारण होता है| बिहार में जन्म एवं मृत्यु दर दोनों ही राष्ट्रीय औसत से अधिक है|
जनसंख्या का व्यावसायिक वितरण——
वितरण की कार्यशील जनसंख्या का व्यावसायिक वितरण राज्य की अर्थव्यवस्था का अविकसित रुप प्रकट करता है, 2001 की जनगणना के अनुसार, बिहार की कार्यशील जनसंख्या का लगभग 77℅ कृषि अथवा उससे संबंद्ध व्यवसाय में लगा हुआ है|
2. मानव संसाधन से आप क्या समझते हैं? हमें मानवीय संसाधनों को किस प्रकार विकसित कर सकते हैं? 
उत्तर:-
उत्पादन के अन्य साधनों के समान ही जनसंख्या भी एक संसाधन हैं| जनसंख्या से ही सभी प्रकार के श्रम की आपूर्ति होती है जिसकी सहायता से उत्पादक क्रियाएँ संभव हो पाती है| किसी देश या राज्य की जनसंख्या को ही मानव संसाधन की संज्ञा दी जाती है| यह जनसंख्या मानवीय पूंजी का रूप तब लेती है जब हम उसके विकास में धन का निवेश करते हैं| इस निवेश से ही मानव पूंजी का निर्माण होता है| इस प्रकार, जनसंख्या ही मानव संसाधन हैं जिसमें निवेश से हमारी भावी उत्पादन क्षमता बढ जाती है| माननीय संसाधनों के विकास के कयी घटक हो सकते हैं| इनमें शिक्षा, स्वास्थ्य एवं आवास सर्वाधिक महत्वपूर्ण है| शिक्षा के अंतर्गत सामान्य तथा तकनीकी दोनों प्रकार की शिक्षा सम्मिलित हैं| सामान्य शिक्षा से मनुष्य का बौद्धिक विकास होता है ओर उसकी कार्यकुशलता बढ जाती है| एक शिक्षित और कुशल श्रमिक उपलब्ध संसाधनों का उचित विदोहन एवं उपयोग करता है| इससे उत्पादन अधिकतम होता है तथा संसाधनों का अपव्यय नहीं होता है| तकनीकी शिक्षा से हमारी उत्पादन क्षमता बढती है| शिक्षा और प्रशिक्षण से खोज एवं अनुसंधान को भी प्रोत्साहन मिलता है| इसके फलस्वरूप उत्पादन की तकनीक में सुधार होता है और हमारी उत्पादकता बढ जाती है| मानव पूंजी निर्माण की दृष्टि से स्वास्थ्य सेवाओं की भूमिका भी अत्यधिक महत्वपूर्ण है| देश में उपलब्ध स्वास्थ्य सेवाएँ ही सक्रिय श्रम शक्ति का निर्माण करती है| किसी व्यक्ति की सतत् कार्य करने की क्षमता एवं कुशलता बहुत अंशों में उसके स्वास्थ्य की दशा पर निर्भर है| स्वास्थ्य सेवाओं में निवेश से मनुष्य की उत्पादन क्षमता में प्रत्यक्ष  रूप से वृद्धि होती है| यही कारण है कि हमारे राष्ट्रीय महत्व के कार्यक्रमों में स्वास्थ्य सेवाओं को उच्च प्राथमिकता प्रदान की गई है| शिक्षा एवं स्वास्थ्य सेवाओं के समान ही आवास की समुचित व्यवस्था भी मानवीय संसाधनों के विकास में सहायक होती है| आवास जलवायु की विभिन्नताओं से सुरक्षा प्रदान करने के साथ ही समाज के भावी नागरिकों के जन्म और पालन पोषण की व्यवस्था करता है| मनुष्य की कार्यक्षमता एवं उत्पादकता में वृद्धि के लिए भी आवास का एक न्यूनतम स्तर अत्यंत आवश्यक है|
3. किसी देश या राज्य के आर्थिक विकास में मानव संसाधन की भूमिका किस प्रकार महत्वपूर्ण है इसके लिए मानवीय संसाधनों को किस प्रकार अधिक प्रभावपूर्ण बनाया जा सकता है? 
उत्तर:-
उत्पादन के अन्य साधनों की तरह जनसंख्या भी एक संसाधन हैं| इस जनसंख्या के द्वारा ही श्रम की आपूर्ति होती है| भूमि एवं पूंजी उत्पादन के निर्जीव साधन है| इनकी कोई अपनी आवश्यकता नहीं होती है| परंतु जनसंख्या या मानव संसाधन एक सजीव साधन है जिसकी अपनी स्वयं की इच्छा शक्ति और आवश्यकताएँ होती है| प्राकृतिक संसाधन एवं भौतिक पूंजी की अपेक्षा जनसंख्या की मात्रा में अत्यधिक वृद्धि होने से भोजन, वस्त्र, आवास, शिक्षा, चिकित्सा आदि सभी प्रकार की आवश्यकताएँ बहुत बढ जाती है| यह आर्थिक विकास में बाधक सिद्ध होती है| और यह जनसंख्या का निषेधात्मक पक्ष है| परंतु इसका एक गुणात्मक पक्ष भी है| जब हम शिक्षा, प्रशिक्षण, स्वास्थ्य सेवाओं आदि में सुधार लाकर मानवीय संसाधनों की विकसित करते हैं तो उससे मानवीय पूंजी का निर्माण होता है| यह मानवीय पूंजी हमारी उत्पादकता को बढाने तथा आर्थिक विकास में सहायक होती है| मानवीय संसाधनों को विकसित करने और उन्हें अधिक महत्वपूर्ण बनाने के कयी तरीके हो सकते हैं| लेकिन, इनमें शिक्षा और स्वास्थ्य सेवाओं को सर्वाधिक महत्वपूर्ण माना गया है| उचित शिक्षा और प्रशिक्षण से श्रम की कुशलता और उत्पादन क्षमता बढती है| शिक्षा और प्रशिक्षण के कयी स्तर है| प्राथमिक या प्रारंभिक शिक्षा युवावर्ग को न्यूनतम एवं आधारभूत कौशल सिखाती है| इसका हमारी क्रियाओं पर सर्वाधिक प्रभाव पड़ता है| परंतु, आर्थिक विकास एवं संरचनात्मक सुविधाओं को बनाने रखने के लिए हमें यथेष्ट मात्रा में प्रशिक्षित श्रम की आवश्यकता होती है| माध्यमिक शिक्षा के द्वारा ही इस प्रकार की श्रम शक्ति का निर्माण होता है| उच्च शिक्षा से डाक्टर, इंजीनियर, प्राध्यापक, वैज्ञानिक आदि जैसे विशिष्ट एवं उच्च स्तर के श्रम की आपूर्ति होती है| इससे खोज एवं अनुसंधान को भी प्रोत्साहन मिलता है| मानवीय संसाधनों के विकास के लिए स्वास्थ्य सेवाओं की समुचित व्यवस्था भी अत्यधिक महत्वपूर्ण है| इन सेवाओं या सुविधाओं में सुधार होने से मानवीय संसाधनों की शारीरिक क्षमता एवं उत्पादकता में प्रत्यक्ष रूप से वृद्धि होती है| शिक्षित और स्वास्थ्य व्यक्तियों की उत्पादकता अधिक होने के कारण ही उनकी आय भी अपेक्षाकृत बहुत अधिक होती है|
4. मानवीय पूंजी निवेश से आप क्या समझते हैं? इस निवेश के मुख्य तत्व क्या है? 
उत्तर:-
किसी देश की जनसंख्या ही मानव संसाधन हैं तथा इसके विकास पर व्यय किए जानेवाले धन को मानवीय पूंजी निवेश की संज्ञा दी जाती है| जब हम कल कारखाने, मशीन, उपकरण आदि में धन या पूंजी का निवेश करते हैं तो यह भौतिक पूंजी निवेश है तथा इससे भौतिक पूंजी का निर्माण होता है| उसी प्रकार जब हम मानव संसाधन के विकास में पूंजी का विनियोग करते हैं तो इसे मानवीय पूंजी निवेश कहते हैं| इस प्रकार का निवेश मानव पूंजी के निर्माण में सहायक होता है| मानवीय पूंजी निवेश वह प्रक्रिया है जिससे विशेष योग्यता, क्षमता और अनुभव प्राप्त व्यक्तियों की संख्या में वृद्धि होती है| यह मानवीय पूंजी है| भौतिक पूंजी के समान ही मानवीय पूंजी भी कुल राष्ट्रीय उत्पाद के सृजन में सहायक होता है| अन्य साधनों की तरह जनसंख्या भी एक संसाधन हैं| यह जनसंख्या ही श्रम की आपूर्ति करती है जिसके सहयोग से वस्तुओं और सेवाओं का उत्पादन होता है| मानवीय संसाधनों का महत्व इस कारण और बढ़ जाता है कि प्राकृतिक संसाधन और भौतिक पूंजी दोनों ही उत्पादन के निष्क्रिय साधन है| मानव संसाधन ही उन्हें उत्पादन के योग्य बनाता है| मानवीय संसाधनों का विकास कयी तत्वों पर निर्भर करता है जिनमें निवेश से उसकी गुणवत्ता और उत्पादन क्षमता बढती है| इनमें शिक्षा, स्वास्थ्य एवं आवास सर्वाधिक महत्वपूर्ण है| शिक्षा और प्रशिक्षण से ही कुशल और योग्य श्रम शक्ति का निर्माण होता है और हमारी उत्पादन क्षमता बढती है| उचित शिक्षा नागरिकों की मनोवृत्ति, ज्ञान एवं क्षमताओं का विकास कर उन्हें अधिक योग्य, सक्षम तथा बदलती हुई परिस्थितियों के अनुरूप बनाती है| शिक्षा से किसी भौतिक पदार्थ का निर्माण नहीं होता, परंतु इससे मानवीय संसाधन की भावी उत्पादन क्षमता, योग्यता और कुशलता बढ जाती है| मानवीय पूंजी निवेश की दृष्टि से स्वास्थ्य सेवाओं पर किया जानेवाला निवेश भी अत्यधिक महत्वपूर्ण है| इन सेवाओं में निवेश के द्वारा ही एक स्वस्थ श्रम शक्ति का निर्माण होता है| स्वास्थ्य सेवाओं में सुधार होने से लोगों का जीवन प्रत्याशा बढती है, जन्म एवं मृत्यु दर में कमी जाती है तथा नागरिकों के जीवन स्तर में सुधार होता है| शिक्षा और स्वास्थ्य सेवाओं के समान ही आवास भी मानव पूंजी निवेश का एक प्रमुख घटक है| आवास का संबंध केवल रहने के मकानों से ही नहीं, वरना एक अच्छे पड़ोस, जलापूर्ति, सड़क आदि अन्य सार्वजनिक सुविधाओं से भी है| इनमें निवेश मानवीय संसाधनों के विकास में सहायक होता है|
5. मानव पूंजी निर्माण में शिक्षा, स्वास्थ्य एवं आवास की क्या भूमिका होती है? 
उत्तर:-
मानवीय साधनों के विकास में शिक्षा की महत्वपूर्ण भूमिका होती है| शिक्षा वह माध्यम है जिससे व्यक्ति मानव पूंजी के रूप में विकसित होता है| शिक्षा पर व्यय करने से व्यक्ति एवं देश समृद्ध होता है| जिस प्रकार कम्पनियाँ एक निश्चित लाभ को प्राप्त करने के लिए पूंजीगत वस्तुओं पर व्यय करती है उसी प्रकार शिक्षा मानवीय पूंजी की क्षमता बढाकर अधिक उत्पादक बना देता है| प्रति अमर्त्य सेन ने शिक्षा को मानव पूंजी के रूप में समृद्ध करने के लिए प्राथमिक शिक्षा को नागरिक का मूल अधिकार बनाने पर जोर दिया है|
स्वास्थ्य—-
मानवीय पूंजी के विकास में स्वास्थ्य का भी महत्वपूर्ण योगदान है| जब मनुष्य का शरीर रुग्ण रहता है तो उसके सारे क्रियाकलापों पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है| विद्यार्थियों को विद्या अध्ययन में मन नहीं लगता है, कामगार अपने कार्य करने में असमर्थ हो जाते हैं तथा नेता जनता की सेवा करने में असफल हो जाते हैं| इस प्रकार हम कह सकते हैं कि मनुष्य का अच्छा स्वास्थ्य ही उसकी सबसे महत्वपूर्ण पूंजी है और इसमें खर्च कर बढोत्तरी करना मानक को एक महत्वपूर्ण संसाधन के रूप में परिवर्तित कर देना है एक स्वस्थ अन्य सामान्य व्यक्ति की अपेक्षा निश्चित रूप से अच्छा काम करता है और देश के विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है| अत:, स्वास्थ्य पर व्यय मानव पूंजी के निर्माण का एक महत्वपूर्ण स्रोत है|
आवास—–
मनुष्य अपने काम में सुबह से ही व्यस्त हो जाता है| वह अपने उद्देश्य की पूर्ति के लिए कठिन श्रम करता है जिससे वह थक कर चूर हो जाता है| इसके बाद आराम की आवश्यकता पड़ती है| इसके लिए सर छिपाने के लिए एक आवास आवश्यक है| आवास में विश्राम करके मानव पुनः अपने को आगामी दिन कार्य करने योग्य बना लेता है | मनुष्य बदलते मौसम में आवास में ही सुरक्षित रहता है| काम करने की क्षमता स्थिर रहती है| अत:, आवास मानवीय पूंजी के विकास में महत्वपूर्ण योगदान करता है|
6. बिहार में शिक्षा के क्षेत्र में वर्तमान समस्याओं की विवेचना करें|
उत्तर:-मानवीय संसाधनों के विकास की दृष्टि से शिक्षा का स्थान सर्वोपरि है| परन्तु बिहार में शिक्षा का स्तर बहुत निम्न हैं| और शिक्षा के क्षेत्र में यह बहुत पिछड़ा हुआ है| बिहार में शिक्षा संबंधी मुख्य समस्याएँ निम्नलिखित हैं——
निम्न साक्षरता दर—–
साक्षरता का विकास घनिष्ठ संबंध है| परन्तु इस दृष्टि से बिहार देश का सबसे पिछड़ा राज्य है| 2001 की जनगणना के अनुसार, बिहार साक्षरता दर मात्र 47 प्रतिशत है, जबकि साक्षरता का राष्ट्रीय औसत 65 प्रतिशत है|
प्राथमिक नामांकन——
देश के अन्य राज्यों की तुलना में बिहार में प्राथमिक शिक्षा नामांकन की दर बहुत कम है| बच्चों के प्राथमिक नामांकन का राष्ट्रीय औसत 77 प्रतिशत है, जबकि बिहार में यह मात्र 52 प्रतिशत है| राज्य में बालिकाओं के प्राथमिक नामांकन की दर 44 प्रतिशत है| जो 73 प्रतिशत के राष्ट्रीय औसत से बहुत कम है|
विद्यालय छोड़ने की समस्या—–
बिहार के प्राथमिक विद्यालयों में छात्रों द्वारा समय के पूर्व ही विद्यालय छोड़ने की समस्या भी बहुत गंभीर है राष्ट्रीय प्रतिदर्श सर्वेक्षण के आंकड़ों के अनुसार, ग्रामीण क्षेत्रों के 12 वर्ष आयुवर्ग के मात्र 37 प्रतिशत छात्र तथा शहरों क्षेत्रों के 57 प्रतिशत छात्र ही प्राथमिक शिक्षा पूरी करते हैं|
शिक्षकों की अनुपस्थिति——-
राज्य के प्राथमिक विद्यालयों में शिक्षकों की अनुपस्थिति एक स्थायी समस्या है| 2003 में संयुक्त राष्ट्र बाल कोष द्वारा किए गए एक अध्ययन के अनुसार, यदि अवकाश तथा अन्य सरकारी कार्यों को निकाल दिया जाए तो एक शिक्षक वर्ष में मात्र दो महीने कक्षा में व्यतीत करता है|
शिक्षा की गुणवत्ता में गिरावट——
विगत 25-30 वर्षों के अंतर्गत बिहार में शिक्षा के स्तर में भारी गिरावट आई है| शिक्षकों की कमी तथा विद्यालय से उनकी अनुपस्थिति, शिक्षकों के उचित प्रशिक्षण का अभाव परीक्षाओं में बड़े पैमाने पर कदाचार तथा कयी अन्य कारणों से प्राथमिक एवं माध्यमिक विद्यालयों में शिक्षा का स्तर बहुत निम्न हैं| इससे उच्च स्तरीय शिक्षा का स्तर भी निरंतर गिर रहा है| इस प्रकार, बिहार में शिक्षा के क्षेत्र में कयी समस्याएँ है और इसकी वर्तमान स्थिति संतोषजनक नहीं है|
7. बिहार में स्वास्थ्य सेवाओं की वर्तमान स्थिति क्या है? क्या राज्य में स्वास्थ्य और चिकित्सा सुविधाओं की उपलब्धता पर्याप्त है? 
उत्तर:-
स्वास्थ्य का अधिकार एक महत्वपूर्ण अधिकार है तथा ऐसे व्यक्तियों को स्वास्थ्य सेवाएँ उपलब्ध कराना राज्य का दायित्व है| जिन्हें इनकी आवश्यकता है| विगत वर्षों के अंतर्गत बिहार की स्वास्थ्य संरचना का बहुत विस्तार हुआ है| हमारे राज्य के शहरी इलाकों में स्वास्थ्य और चिकित्सीय सुविधाएँ चिकित्सा महाविद्यालयों, सरकारी अस्पतालों तथा निजी चिकित्सालयों द्वारा उपलब्ध करायी जाती है| राज्य के सभी जिलों और अनुमंडलों में प्रायः एक सदर अस्पताल है| ग्रामीण क्षेत्रों में स्वास्थ्य और उपचार सेवाओं की आपूर्ति राज्य के सामुदायिक स्वास्थ्य केन्द्रों प्राथमिक स्वास्थ्य केन्द्रों तथा स्वास्थ्य उप केन्द्रों द्वारा की जाती है| नागरिकों की जीवन प्रत्याशा, जन्म दर, मृत्यु दर आदि उनके स्वास्थ्य की स्थिति को व्यक्त करते हैं| स्वास्थ्य सेवाओं की समुचित व्यवस्था होने पर लोगों की जीवन प्रत्याशा बढती है और जन्म दर, मृत्यु दर तथा शिशु, बाल एवं मातृ मृत्यु दर में कमी होती है| पिछले कुछ वर्षों में बिहार की स्वास्थ्य सेवाओं में सुधार हुआ है और लोग उससे लाभान्वित हुए हैं| 1981 में राज्य के नागरिकों की जीवन प्रत्याशा 53 वर्ष थी, जो 2001 में बढकर लगभग 60 वर्ष हो गई है| 1951 में प्रति हजार जन्म दर 43.4 थी, जो 2001 में घटकर 30.9 हो गई है| उसी प्रकार शिशु एवं बाल मृत्यु दर में कमी हुई है तथा इसमें 1990 के दशक में पर्याप्त सुधार हुआ है| परंतु स्वास्थ्य एवं चिकित्सा सुविधाओं में वृद्धि होने पर भी इनकी उपलब्धता हमारी आवश्यकताओं की तुलना में बहुत कम है| बिहार में चिकित्सा एवं स्वास्थ्य कर्मचारियों की बहुत कमी है| 2001 में बिहार में प्रत्येक 3,347 व्यक्तियों पर एक डाक्टर था, जबकि राष्ट्रीय अनुपात 1,885 नागरिकों पर एक डाक्टर का था | केन्द्र सरकार के जनसंख्या पर आधारित मापदंड के अनुसार, 2002 में राज्य में 623 सामुदायिक स्वास्थ्य केन्द्रों, 875 प्राथमिक स्वास्थ्य केन्द्रों तथा 3,705 स्वास्थ्य उप केन्द्रों की कमी है| इस प्रकार, बिहार की स्वास्थ्य संरचना बहुत कमजोर तथा स्वास्थ्य सेवाओं का स्तर बहुत निम्न हैं| जैसा कि राष्ट्रीय मानवधिकार आयोग ने अक्टूबर 2004 की पूर्वी क्षेत्र संबंधी कार्यवाही में कहा है, वर्तमान में स्वास्थ्य सेवाओं महिलाओं, बच्चों, निर्धन, दलित तथा अन्य कमजोर वर्गों की पहुँच और सामर्थ्य से बाहर है, असमान रुप से वितरित तथा अनुचित है| इस प्रकार, अधिकांश व्यक्ति स्वास्थ्य के मौलिक अधिकारों का लाभ उठाने से वंचित है|
8. भारत की राष्ट्रीय जनसंख्या नीति पर एक टिप्पणी लिखें|
उत्तर:-
भारत जनसंख्या विस्फोट की स्थिति में है| हमारे देश की वर्तमान जनसंख्या एक अरब से भी अधिक हो गई है| यह एक अत्यंत कठिन और गंभीर समस्या है| हमारे देश में 1951 में ही परिवार नियोजन कार्यक्रम अपनाया गया था| परंतु, अभी तक परिवार नियोजन एवं इससे संबंधित कार्यक्रमों को कोई विशेष सफलता नहीं मिली है| अतः जनसंख्या नियंत्रण के उपायों को प्राथमिकता प्रदान करने के लिए भारत सरकार ने 15 फरवरी 2000 को अपनी राष्ट्रीय जनसंख्या नीति की घोषणा की है| यह भारत की दूसरी जनसंख्या नीति है| इस नीति के अन्तर्गत छोटे परिवार के सिद्धांतों का पालन करने वालों के लिए 16 प्रोत्साहक एवं प्रेरक उपायों की घोषणा की गई है| वर्तमान जनसंख्या नीति का एक महत्वपूर्ण कदम 1971 की जनगणना के आधार पर निर्धारित लोकसभा की सीटों की संख्या को 2006 तक नहीं बढाने का निर्णय है| सरकार की नवीन जनसंख्या नीति की एक प्रमुख विशेषता यह है कि इसके अंतर्गत जनसंख्या नियंत्रण के साथ ही स्वास्थ्य सुविधाओं के विस्तार पर बल दिया गया है| इस नीति में निर्धनता रेखा के नीचे रहनेवालों तथा कम शिक्षित लोगों को छोटे परिवार के सिद्धांत को अपनाने के लिए प्रेरित करने के उद्देश्य से स्वास्थ्य बीमा योजना प्रारम्भ करने का प्रस्ताव है| सरकार की वर्तमान जनसंख्या नीति को तीन भागों में बांटा गया है—त्वरित, मध्यवर्ती एवं दीर्घावधि| इस तीन सूत्री नीति में 2045 तक भारत की जनसंख्या को स्थिर बनाने का लक्ष्य रखा गया है| इस नीति में उत्तर प्रदेश, बिहार, राजस्थान एवं मध्य प्रदेश सहित भारत के लगभग 50 प्रतिशत जनसंख्या वाले 12 राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों में जनसंख्या नियंत्रण के प्रभावी क्रियान्वयन के लिए कार्य योजना की घोषणा की गई है| जनसंख्या नीति के क्रियान्वयन पर निगरानी रखने के लिए इसमें प्रधानमंत्री की अध्यक्षता में एक राष्ट्रीय आयोग के गठन का भी प्रस्ताव है| सभी राज्यों के मुख्यमंत्री, केन्द्रीय स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्री आदि के साथ ही अन्य जन स्वास्थ्य विशेषज्ञ इस आयोग के सदस्य होंगे|

एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ