Bharti Bhawan Economics Class-9:Chapter-1:Very Short Type Question Answer:Short Type Question Answer:Long Answer Type Question Answer:अर्थशास्त्र:कक्षा-9:अध्याय-1:अति लघु उत्तरीय प्रश्न उत्तर:लघु उत्तरीय प्रश्न:दीर्घ उत्तरीय प्रश्न



बिहार के एक गाँव की आर्थिक कहानी




अतिलघु उत्तरीय प्रश्न





1. उत्पादन से आप क्या समझते हैं? 

उत्तर:-उत्पादन का अर्थ आर्थिक उपयोगिताओं का सृजन करना
2. उत्पादन क्रिया को संचालित करने के लिए किन किन साधनों की आवश्यकता होती है? 
उत्तर:-उत्पादन क्रिया को संचालित करने के लिए प्राकृतिक साधन, मानवीय श्रम तथा धन या पूंजी की आवश्यकता होती है|
3. ग्रामीण परिवारों की अधिकांश उत्पादन क्रियाएँ किस व्यवसाय से संबंधित होती है|
उत्तर:- कृषि
4. उत्पादन का क्या उद्देश्य होता है? 
उत्तर:-उत्पादन का उद्देश्य मानवीय आवश्यकताओं को संतुष्ट करना होता है|
5. उत्पादन के विभिन्न साधन कौन कौन से है? 
उत्तर:- भूमि, श्रम, पूंजी और संगठन एवं साहस उत्पादन के विभिन्न साधन है जिनके सहयोग से वस्तुओं या सेवाओं का उत्पादन होता है|
6. अचल पूंजी और कर्मशील पूंजी में अंतर स्पष्ट करें|
उत्तर:-अचल पूंजी स्थायी और टिकाऊ होती है तथा इसका उत्पादन में कयी बार प्रयोग किया जाता है| कार्यशील पूंजी वह है जिसका उत्पादन कार्य में केवल एक ही बार प्रयोग किया जा सकता है|
7. मानवीय पूंजी से आप क्या समझते हैं? 
उत्तर:-मानवीय पूंजी से हमारा अभिप्राय किसी व्यक्ति के उन निजी गुणों से है जो उत्पादन की मात्रा और गुणवत्ता को प्रभावित करते हैं|
8. कृषि उत्पादन में वृद्धि के क्या अभिप्राय है? 
उत्तर:-कृषि उत्पादन में वृद्धि के उपाय है बहुसफल कृषि तथा नवीन एवं आधुनिक पद्धति का प्रयोग
9. बहुसफल कृषि क्या है? 
उत्तर:-जब कृषि भूमि पर एक से अधिक फसलों का उत्पादन किया जाता है| तो इसे बहुसफल कृषि कहते हैं|
10. बिहार में सिंचाई के मुख्य साधन क्या है? 
उत्तर:-वर्षा एकमात्र साधन है
11. क्या बिहार के सभी गांवों में सिंचाई की सुविधाएं उपलब्ध है? 
उत्तर:-बिहार के सभी गांवों में सिंचाई की सुविधाएं उपलब्ध नहीं है तथा राज्य की लगभग 51℅ कृषि योग्य भूमि वर्षा पर निर्भर है|
12. भारत में कृषि की नवीन पद्धति कब अपनायी गयी? 
उत्तर:- भारत में कृषि की नवीन पद्धति 1966-67 में अपनायी गयी|
13. भूमि की उत्पादकता में किस प्रकार वृद्धि लायी जा सकती है? 
उत्तर:-कृषि की नवीन एवं आधुनिक पद्धति को अपनाकर
14. बिहार में रासायनिक खादों के प्रयोग से संबंधित मुख्य कठिनाई क्या है? 
उत्तर:-गरीबी
15. कृषि श्रम की आपूर्ति कौन करता है? 
उत्तर:-कृषि श्रम की आपूर्ति भूमिहीन ग्रामीण परिवारों अथवा सीमांत किसानों द्वारा की जाती है|
16. कृषि श्रमिकों को किस रूप में मजदूरी दी जाती है? 
उत्तर:-कृषि श्रमिकों को नकद या अनाज अथवा दोनों के रूप में मजदूरी दी जाती है|
17. किसान अपनी अतिरिक्त उपज का क्या करते हैं? 
उत्तर:-किसान अपनी अतिरिक्त उपज का विक्रय करते हैं|
18. फल तथा शब्जी के उत्पादन में बिहार का देश में क्या स्थान है? 
उत्तर:-बिहार का फल उत्पादन में दूसरा तथा सब्जी उत्पादन में पहला स्थान है|
19. बिहार के ग्रामीण क्षेत्रों में लोगों का मुख्य व्यवसाय क्या है? 
उत्तर:- बिहार के ग्रामीण क्षेत्रों में कृषि एवं इससे संबंद्ध क्रियाकलाप लोगों का मुख्य व्यवसाय है|
20. उत्पादन तथा उपभोग में क्या अंतर है? 
उत्तर:- उत्पादन के द्वारा उपयोगिताओं का सृजन होता है, और उपभोग से यह उपयोगिता नष्ट हो जाती है|
21. आर्थिक क्रियाकलापों का क्या उद्देश्य होता है? 
उत्तर:-आर्थिक क्रियाकलापों का उद्देश्य विभिन्न प्रकार की वस्तुओं और सेवाओं का उत्पादन करना होता है जो हमारी आवश्यकताओं को पुरा करती है|
22. पूंजी का क्या अर्थ है? 
उत्तर:-पूंजी वह संपत्ति अथवा धन है जो वस्तुओं एवं सेवाओं या आय के उत्पादन में सहायक होती है|
23. उत्पादन के दो सबसे महत्वपूर्ण साधन कौन से है? 
उत्तर:-भूमि और श्रम उत्पादन के दो महत्वपूर्ण साधन है| जिनके अभाव में किसी भी प्रकार का उत्पादन संभव नहीं है|
24. उपभोग की वस्तुओं से आप क्या समझते हैं? 
उत्तर:-उपभोग की वस्तुएँ वे है जिनके प्रत्यक्ष रूप से मानवीय आवश्यकताओं की संतुष्टि के लिए उपयोग होता है|
25. उत्पादक वस्तुएँ क्या है? 
उत्तर:-उत्पादक वस्तुएँ उन वस्तुओं को कहते हैं जिनका प्रयोग अधिक उत्पादन अथवा आय प्राप्त करने के लिए किया जाता है|
26. गैर टिकाऊ वस्तुओं से आप क्या समझते हैं? 
उत्तर:-गैर टिकाऊ या एकल प्रयोग की वस्तुएँ वे है जिनका हमारी आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए केवल एक ही बार प्रयोग किया जा सकता है, जैसे–खाद्य एवं पेय पदार्थ
27. टिकाऊ वस्तुएँ क्या है?
उत्तर:-टिकाऊ वस्तुएँ वे है जिनका एक लंबे समय तक उपभोग किया जाता है, जैसे—–साइकिल, घड़ी, टेलीविजन इत्यादि
28. भूमि की उत्पादकता में किस प्रकार वृद्धि लायी जा सकती है? 
उत्तर:-कृषि की नवीन एवं आधुनिक पद्धति को अपनाकर भूमि की उत्पादकता में वृद्धि लायी जा सकती है|
लघु उत्तरीय प्रश्न








1. रामपुर गाँव की आर्थिक संपन्नता का कारण क्या है? 
उत्तर:- रामपुर उत्तर बिहार का एक संपन्न गाँव है| इस गाँव की संपन्नता के कयी कारण है| बाढ़ उत्तर बिहार की एक स्थायी समस्या है, लेकिन यह गाँव बाढ़ की विभीषिका से मुक्त है| विभिन्न प्रकार की कृषि फसलों का उत्पादन करने के साथ ही यहाँ के कयी किसान बागवानी भी करते हैं| इस प्रकार, बागवानी यहाँ के किसानों की आय का एक स्रोत है| रामपुर गाँव की स्थिति भी अधिक सुविधाजनक हैै| यहाँ के अधिकांश कृषि कार्यों में संलग्न है तथा यह उनकी आजीविका का मुख्य स्रोत है| गाँव के अन्य निवासी छोटे मोटे विनिर्माण उद्योग, दुग्ध उत्पादन, मुर्गीपालन, मत्स्यपालन तथा परिवहन इत्यादि जैसे कार्यों में लगे होते हैं|
2. उत्पादन के तीन प्रमुख साधन कौन से है? 
उत्तर:-
भूमि—–
भूमि उत्पादन की पहली आवश्यकता है| भूमि को उत्पादन का मौलिक साधन कहा गया है| साधारणतया भूमि का अर्थ है जमीन की ऊपरी सतह से लगाया जाता है|
श्रम—–
उत्पादन के साधनों में श्रम सर्वाधिक महत्वपूर्ण है| श्रम के बिना किसी भी प्रकार का उत्पादन संभव नहीं है|
भौतिक पूंजी—-
आधुनिक उत्पादन व्यवस्था में पूंजी का स्थान अत्यधिक महत्वपूर्ण है तथा इसके अभाव में किसी भी प्रकार का उत्पादन संभव नहीं है| भौतिक पूंजी दो प्रकार की होती है—–अचल पूंजी और चल पूंजी
3. विस्तृत कृषि एवं गहन कृषि से आप क्या समझते हैं? 
उत्तर:-विस्तृत कृषि के अंतर्गत कृषि उपज बढाने के लिए नयी भूमि पर खेती की जाती है| इसके विपरीत, जब भूमि के एक निश्चित टुकड़े पर ही अधिक श्रम, पूंजी और आधुनिक उपकरणों एवं तरीकों आदि के प्रयोग द्वारा कृषि के उत्पादन को बढाया जाता है तब इसे गहन कृषि की संज्ञा दी जाती है| कृषि उत्पादन में वृद्धि के लिए इन दोनों ही तरीकों का प्रयोग किया जा सकता है|
4. कृषि की नवीन तकनीक से आप क्या समझते हैं? 
उत्तर:-
हमारे देश में कृषि की नवीन तकनीक वर्ष 1966-67 में अपनायी गयी जिसे अधिक उपज देनेवाले कार्यक्रम की संज्ञा दी गई है| इसके अंतर्गत भारतीय किसान चावल, गेंहूँ, मक्का आदि खाद्य फसलों के लिए अधिक उपज देनेवाली किस्म के बीजों का प्रयोग करने लगे हैं| इन बीजों के प्रयोग से कृषि की उपज में बहुत तेजी से वृद्धि हुई है| परंतु अधिक उपज देनेवाले बीजों से वांछित परिणाम प्राप्त करने के लिए सिंचाई की समुचित व्यवस्था, रासयनिक खादों तथा फसलों को रोगों से बचाने के लिए कीटनाशक औषधियों का प्रयोग अनिवार्य है| कृषि की नवीन तकनीक से हमारा अभिप्राय उन सभी तत्वों से है जो कृषि उत्पादन में वृद्धि के लिए आवश्यक है|
5. आधुनिक कृषि के लिए अधिक उपज देनेवाले बीजों का क्या महत्व है? 
उत्तर:-
आधुनिक कृषि के लिए अधिक उपज देनेवाले उन्नत किस्म के बीजों का विशेष महत्व है| पारंपरिक बीजों की अपेक्षा उन्नत किस्म के बीजों से प्रति हेक्टेयर उत्पादन में दुगुनी या उससे अधिक वृद्धि संभव है| डा० एम ० एस ० स्वामीनाथन के अनुसार, पारंपरिक बीजों द्वारा प्रति हेक्टेयर केवल 4 से 5 मेट्रिक टन उत्पादन संभव है, किन्तु नयी उन्नत किस्म के बीजों के प्रयोग से प्रति हेक्टेयर 8 से 10 मेट्रिक टन तक उत्पादन किया जा रहा है| उन्नत किस्म के बीजों के अविष्कार से ही 1967-68 के बाद हमारे देश के खाद्यान्न उत्पादन में निरंतर वृद्धि हो रही है जिसे हरित क्रांति की संज्ञा दी गई है|
6. भूमि के एक निश्चित टुकड़े से ही किन तरीकों द्वारा उत्पादन में वृद्धि संभव है? 
उत्तर:-
भूमि के एक निश्चित टुकड़े पर बहुसफल कार्यक्रम को अपनाकर तथा कृषि उत्पादन में वृद्धि का एक अन्य तरीका नवीन एवं आधुनिक पद्धति का प्रयोग है तथा इसके प्रयोग से ही कृषि उत्पादन में यथोचित वृद्धि संभव है|
7. बिहार में सिंचाई के मुख्य साधन क्या है? क्या राज्य के जल संसाधनों का सिंचाई के लिए पूर्ण उपयोग हुआ है? 
उत्तर:-
कुएँ—
कुएँ सिंचाई के पुराने साधन है बिहार में कुएँ द्वारा सिंचाई का कार्य उत्तर तथा मध्य बिहार के मैदानी भागों में होता है| इस भू भाग की मिट्टी अत्यंत मुलायम है| इससे कुओं का निर्माण कम खर्च में आसानी से किया जा सकता है| किसान प्रायः अपनी निजी पूंजी लगाकर कुएँ खुदवाते है| परन्तु कुओं से बहुत अधिक भूमि की सिंचाई संभव नहीं है|
नलकूप—–
यह भूमिगत जल के प्रयोग का एक वैज्ञानिक तरीका है जिसका प्रयोग लगातार बढ़ रहा है| कुएँ की अपेक्षा नलकूप द्वारा भूमि के एक बहुत बड़े भाग में सिंचाई की जा सकती है| किसानों को नलकूप लगाने के लिए सरकार कर्ज एवं आर्थिक सहायता प्रदान करते हैं|
नहरें—–
सिंचाई के साधनों में नहरों का विशेष महत्व है| राज्य की कुल सिंचित भूमि के लगभग 30 प्रतिशत भाग में नहरों से सिंचाई होती है| बिहार की अधिकांश नहरें स्थायी है| बिहार में सिंचाई के लिए जल संसाधनों की कमी नहीं है| हमारी सिंचाई की कुल अनुमानित क्षमता लगभग 102 लाख हेक्टेयर है जो राज्य की कुल कृषि योग्य भूमि से बहुत अधिक है| लेकिन, हमारे सिंचाई साधनों का पूर्ण एवं समुचित उपयोग नहीं हुआ है| वर्तमान में बिहार में नलकूपों द्वारा सबसे अधिक सिंचाई की जाती है कि जो कुल सिंचित भूमि का लगभग 63℅ है|
8. क्या बिहार में उर्वरकों का पर्याप्त मात्रा में प्रयोग होता है? 
उत्तर:-
कृषि के उपजाऊपन को बनाये रखने तथा उसकी उत्पादकता में वृद्धि के लिए भूमि में खाद देना आवश्यक है| परंपरागत रूप से हमारे राज्य के किसान खाद्य के लिए गोबर, हड्डी, पेड़ पौधों के पत्तों आदि जैविक पदार्थों का प्रयोग करते रहे हैं| परंतु, कृषि की नवीन पद्धति के आगमन के बाद सबसे रासायनिक खाद का भी प्रयोग करने लगे हैं| विगत वर्षों के अन्तर्गत बिहार में उर्वरकों के उपयोग में निरंतर वृद्धि हुई है| बिहार में उर्वरकों के प्रयोग से संबंधित एक प्रमुख कठिनाई यह है कि यहाँ के किसान प्रायः बिना मिट्टी जांच के ही प्रयोग करते हैं| प्रत्येक फसल के लिए अलग अलग उर्वरक की आवश्यकता होती है| प्रायः, ऐसा देखा गया है कि कयी बार किसान ऐसे खाद का प्रयोग करते हैं, जिनकी फसल के लिए कोई जरूरत नहीं है|
9. बिहार के किसानों में भूमि का वितरण किस प्रकार हुआ है| क्या यह न्यायोचित है? 
उत्तर:-
हमारे राज्य में कृषि के पिछड़ेपन का एक मुख्य कारण यहाँ की वर्तमान भूमि व्यवस्था है| बिहार में भूमि का वितरण बहुत ही असमान है जो राज्य के ग्रामीण क्षेत्रों में व्याप्त आर्थिक विषमता का परिचायक है| बिहार सरकार के 2006-7 के आर्थिक सर्वेक्षण के अनुसार, लगभग 20 प्रतिशत कृषि योग्य भूमि पर 25 प्रतिशत मध्यम एवं बड़े किसानों का अधिकार है| इसके विपरीत, मात्र 36 प्रतिशत कृषि भूमि 80 प्रतिशत सीमांत किसानों के स्वामित्व में है जिनकी जोतो का आकार एक हेक्टेयर से भी कम है| यह किसी भी दृष्टि से न्यायोचित नहीं है| तथा राज्य के कृषि उत्पादन पर इसका प्रतिकूल प्रभाव हुआ है|
10. कृषि श्रमिकों की मजदूरी न्यूनतम से कम क्यों होती है? 
उत्तर:-
श्रम की आपूर्ति भूमिहीन ग्रामीण परिवारों अथवा सीमांत किसानों द्वारा की जाती है| जिनकी भूमि जीविकोपार्जन के लिए पर्याप्त नहीं है| कृषि श्रमिकों को काम पर लगनेवाले किसान उन्हें मजदूरी का भुगतान करते हैं| तथा इनकी दरें प्रायः न्यूनतम से कम होती है| इसके कयी कारण है| भारतीय कृषि की प्रकृति मौसमी होने के कारण कृषि श्रमिकों को पूरे वर्ष काम न मिलकर कुछ विशेष मौसम में ही काम मिल पाता है| जब तक कृषि कार्य होते हैं तब तक इन लोगों को काम मिलता है| लेकिन कृषि का मौसम समाप्त होते ही वे बेरोजगार हो जाते हैं| अतः कृषि श्रमिक हमेशा काम की खोज में रहते हैं| और कम मजदूरी पर भी काम करने के लिए तैयार हो जाते हैं| कृषि का यंत्रीकरण होने के कारण वे उचित मजदूरी के लिए मोल भाव करने में असमर्थ होते हैं| सरकार ने न्यूनतम मजदूरी अधिनियम के अन्तर्गत कृषि श्रमिकों के लिए भी मजदूरी की न्यूनतम दरें निश्चित कर दी है| परंतु व्यवहार में इनका पालन नहीं होता है और उन्हें न्यूनतम मजदूरी से भी बहुत कम मजदूरी मिलती है| कृषि श्रमिकों में संगठन का अभाव भी उनकी मजदूरी न्यूनतम से कम होने का एक प्रमुख कारण है|
11. छोटे किसानों को कृषि कार्यों हेतु पूंजी किस प्रकार प्राप्त होती है| यह बड़े किसानों से किस प्रकार भिन्न होती है|
उत्तर:-
हमारे देश के अन्य भागों के समान ही बिहार में भी छोटे किसानों की प्रमुखता है| उनकी आय बहुत कम होती है| तथा उनके पास निजी पूंजी का सर्वथा अभाव होता है| इस प्रकार के छोटे किसान भी कृषि उत्पादन को बढाने के लिए प्रयत्नशील है| परंतु इसके लिए उन्नत बीज खाद तथा कीटनाशक औषधियों का प्रयोग करना पड़ता है| और सिंचाई की समुचित व्यवस्था करनी होती है| इन सभी कार्यों के लिए राज्य के किसानों को पर्याप्त ऋण अथवा साख की आवश्यकता होती है| सरकारी अनुमानों के अनुसार अभी बिहार के किसानों को केवल फसलों के उत्पादन के लिए 10,000 करोड़ रुपए से अधिक साख की जरूरत होती है| परंतु बैंकिंग संस्थाएँ इनकी साख संबंधी आवश्यकताओं का एक तिहाई भी पूरा नहीं कर पाते हैं| छोटे किसानों को बैंक आदि से ऋण मिलने में बहुत विलंब भी होता है| अतः वे बड़े किसानों महाजनों या साहूकारों से बहुत ऊंचे सूद पर पूंजी उधार लेने के लिए बाध्य होते हैं| कयी बार महाजनों या साहूकारों के सूद अथवा ब्याज की दर 20 से 25 प्रतिशत तक होती है| जो निश्चय ही बहुत अधिक है| इस प्रकार के ऋणों को लौटाना किसानों के लिए कठिन होता है| छोटे किसानों की तुलना में मध्यम एवं बड़े किसानों की स्थिति संतोषजनक है, उन्हें ऋण देने में पूंजी वापस नहीं लौटने का खतरा कम रहता है| अतः बड़े किसानों को बैंक, सहकारी संस्थाओं आदि से सुगमतापूर्वक पूंजी उधार मिल जाती है|
12. बिहार के ग्रामीण क्षेत्रों में किस प्रकार की गैर कृषि क्रियाएँ होती है? 
उत्तर:-
बिहार के ग्रामीण परिवारों का मुख्य व्यवसाय कृषि है| राज्य की संपूर्ण जनसंख्या का लगभग 75 प्रतिशत अपने जीविकोपार्जन के लिए कृषि पर निर्भर है| परंतु कुछ ग्रामीण परिवार गैर कृषि कार्यों में भी संलग्न है| इनमें दुग्ध उत्पादन अथवा डेयरी उद्योग सर्वाधिक महत्वपूर्ण है| यह उद्योग बहुत पूर्व से ही छोटे किसानों की आय का एक अतिरिक्त स्रोत रहा है| विगत वर्षों के अंतर्गत डेयरी उद्योग का विकास होने से अब कयी ग्रामीण परिवारों ने इसे पूर्णकालिक व्यवसाय के रूप में अपना लिया है| विनिर्माण उद्योग विभिन्न प्रकार की वस्तुओं का उत्पादन करते हैं| शहरों तथा औद्योगिक केन्द्रों में इस प्रकार का उत्पादन वृहत पैमाने पर आधुनिक कारखानों में होता है| परंतु बिहार के ग्रामीण क्षेत्रों में भी कयी उद्योग छोटे पैमाने पर चलाए जाते हैं| इन हथकरघा उद्योग, खादी उद्योग तथा चर्म उद्योग महत्वपूर्ण है| हमारे आर्थिक और सामाजिक जीवन में परिवहन अथवा यातायात के साधनों का अत्यधिक महत्व है| विगत वर्षों में हमारे राज्य में परिवहन सेवा में लगे व्यक्तियों की संख्या में बहुत वृद्धि हुई है| इस प्रकार की परिवहन सेवाओं का आस पास के गाँवों तथा निकटवर्ती कस्बों और शहरों में यात्रियों के आवागमन तथा माल ढोने के लिए प्रयोग होता है
13. गाँवों में गैर कृषि क्रियाओं को प्रारंभ करने के लिए हम क्या कर सकते हैं? 
उत्तर:-
बिहार के ग्रामीण क्षेत्रों में गैर कृषि क्रियाकलापों को प्रोत्साहित करने के लिए यहाँ के परंपरागत उद्योगों का पुनर्वास तथा कृषिजन्य उद्योगों का विकास आवश्यक है| हमारे राज्य के ग्रामीण उद्योगों में हथकरघा उद्योग सर्वाधिक महत्वपूर्ण है| हथकरघा वस्त्र देश में ही नहीं, वरन विदेशों में भी लोकप्रिय हो रहे हैं| तथा इनकी माँग निरंतर बढ रही है| परंतु इस उद्योग की अनेक समस्याएँ हैं| पूंजी का अभाव होने के कारण हथकरघा क्षेत्र के बुनकरों को उन्नत किस्म के करघे उपलब्ध नहीं है| इस उद्योग की दूसरी समस्या विद्युत आपूर्ति की है जो अत्यंत अपर्याप्त हैं| हथकरघा उद्योग को अपनी वस्तुओं के विपणन तथा यातायात की कठिनाइयों का भी सामना करना पड़ता है| इस उद्योग के विकास के लिए इन समस्याओं का निराकरण आवश्यक है| उसी प्रकार खादी एवं ग्रामोद्योग क्षेत्र खादी वस्त्र के अतिरिक्त कयी प्रकार के हस्तशिल्प उत्पादों का उत्पादन करता है| इनकी देश और विदेश में काफी माँग है| इन उद्योगों को उचित प्रोत्साहित देकर इनके बाजार का बहुत विस्तार किया जा सकता है| बिहार के ग्रामीण इलाकों में कयी प्रकार के कृषिजन्य उद्योगों को विकसित करने की भी अपार संभावनाएं है| फल और सब्जी के उत्पादन में बिहार देश का एक अग्रणी राज्य है| यहाँ प्रतिवर्ष लगभग 86 लाख टन सब्जी और 40 लाख टन फल का उत्पादन होता| लेकिन, उचित रख रखाव के अभाव में राज्य में उत्पादित फल एवं सब्जी का लगभग 30 प्रतिशत नष्ट हो जाता है| इस प्रकार, खाद्य प्रसंस्करण उद्योग को विकसित करने से गैर कृषि क्रियाकलापों के विस्तार में बहुत सहायता मिलेगी|
14. दुग्ध उत्पादन के विकास से बिहार के ग्रामीण किस प्रकार प्रभावित हुए हैं? 
उत्तर:-
प्राचीनकाल से ही हमारे देश के ग्रामीण जीवन में पशु धन का महत्वपूर्ण स्थान है| ये कृषि कार्यों में सहायक होते हैं तथा इनसे किसानों को कुछ अतिरिक्त आय भी हो जाती है| बिहार के आर्थिक जीवन में पशु धन का महत्व और भी अधिक है| देश के कयी अन्य राज्यों की अपेक्षा बिहार में गाय और भैंस की संख्या बहुत अधिक है| कुछ समय पूर्व बिहार राज्य सहकारी दुग्ध उत्पादन संघ की स्थापना से इस उद्योग को बहुत प्रोत्साहित मिल है| अब ग्रामीण क्षेत्र के कयी निवासियों ने इसे पूर्णकालिक व्यवसाय के रूप में भी अपना लिया है| इससे उनके परिवार की आर्थिक स्थिति में सुधार हुआ है|
15. बिहार में बागवानी के विकास की क्या संभावनाएँ है? इसके विकास के लिए सरकार की वर्तमान नीति क्या है? 
उत्तर:-
बागवानी फसलों में फल, सब्जी, सजावटी फूल, औषधीय पौधे मसाले आदि प्रमुख है| बिहार देश में फल एवं सब्जी का एक प्रमुख उत्पादन राज्य है| फल और सब्जी के कुल राष्ट्रीय उत्पादन में इसका लगभग 10 और 7 प्रतिशत योगदान होता है| लीची के उत्पादन में भारत का चीन के बाद विश्व में दूसरा स्थान है| देश के कुल लीची का लगभग 70 प्रतिशत बिहार में होता है| तथा इसके उत्पादन में मुजफ्फरपुर क्षेत्र अग्रणी है| मुजफ्फरपुर जिले के लगभग 2,000 किसान लीची का उत्पादन करते हैं| आम, अमरूद, केला और मखाना बिहार के अन्य प्रमुख फल है| जिनका राज्य में बड़े पैमाने पर उत्पादन होता है| इस प्रकार, बिहार में बागवानी के विकास की अपार संभावनाएँ वर्तमान है| राज्य सरकार यहाँ के फलों में मखाना, लीची और आम के उत्पादन तथा उन्नत किस्मों के विकास के लिए प्रयत्नशील है राष्ट्रीय सम विकास योजना के अंतर्गत उत्तर बिहार के मुजफ्फरपुर दरभंगा समस्तीपुर तथा मधुबनी जिलों में इन बागानी फसलों के उत्पादन को बढाने के लिए राष्ट्रीय कृषि एवं ग्रामीण विकास बैंक द्वारा आर्थिक सहायता दी जा रही है| सरकार का लक्ष्य अगले कुछ वर्षों में राज्य में 30 प्रतिशत भूमि को अन्य फसलों के उत्पादन से हटाकर बागवानी का विस्तार करना है|
16. बिहार में ग्रामीण साख की आवश्यकता की विवेचना कीजिए इसके मुख्य स्रोत क्या है? 
उत्तर:-
प्रायः सभी उत्पादन कार्यों के लिए साख या ऋण की आवश्यकता होती है| ग्रामीण क्षेत्रों में मुख्यतया कृषि कार्यों के संपादन तथा कृषि से संबंद्ध ग्रामीण उद्योगों के लिए साख की माँग की जाती है| एक कृषि प्रधान राज्य होने पर भी बिहार की कृषि अत्यंत पिछड़ी हुई अवस्था में है| हमारे राज्य में कृषि विकास की संभावनाएँ बहुत अधिक है| बिहार की भूमि बहुत उर्वर है| वस्तुतः उत्तरी बिहार विश्व के सर्वाधिक उपजाऊ भागों में से एक है| परंतु पर्याप्त साख या वित्त के अभाव में राज्य में कृषि की नयी तकनीक का प्रयोग करना तथा कृषि का विकास संभव नहीं है| बिहार में ग्रामीण साख के संस्थागत स्रोतों में व्यावसायिक बैंक, क्षेत्रीय ग्रामीण बैंक तथा सहकारी समितियां महत्वपूर्ण है| राष्ट्रीयकरण के पश्चात लगभग 60 प्रतिशत व्यावसायिक बैंकों की स्थापना ग्रामीण क्षेत्रों में हुई है| परंतु अन्य विकसित राज्यों की अपेक्षा बिहार में व्यावसायिक बैंकों का साख जमा अनुपात बहुत कम है| अत: इनके द्वारा कृषि को दिए जानेवाले ऋण की मात्रा में वृद्धि नहीं हुई है| बिहार में क्षेत्रीय ग्रामीण बैंक 1975 कार्यरत हैं तथा इन बैंकों की लगभग 2000 शाखाएँ हैं परंतु बिहार के लगभग सभी ग्रामीण बैंक रूग्ण अवस्था में है| जिन्हें रिजर्व बैंक ने पुनर्स्थापित करने का सुझाव दिया है| बिहार राज्य में सहकारी समितियों के पास भी साधनों का अभाव है तथा इनकी स्थिति संतोषजनक नहीं है| हमारे राज्य में ग्रामीण साख का मात्रा 14 प्रतिशत सहकारी समितियों से प्राप्त होता है| इस प्रकार, बिहार में ग्रामीण साख के संस्थागत साधनों का अभाव होने के कारण किसानों को प्रायः निजी माध्यमों से ऋण लेना पड़ता है| इनमें महाजन और साहूकार प्रमुख है|
17. उत्पादन की परिभाषा दीजिए? 
उत्तर:-
उत्पादन का अर्थ किसी नये पदार्थ का निर्माण नहीं है, बल्कि इसका अर्थ प्रकृति द्वारा उपलब्ध किए गए वस्तुओं में मानवीय आवश्यकताओं की पूर्ति करने की क्षमता या गुण में वृद्धि करना है| प्रो० एली के अनुसार, ” आर्थिक उपयोगिताओं का निर्माण अथवा सृजन करना ही उत्पादन है|” 
18. उत्पादन के महत्व पर प्रकाश डालें? 
उत्तर:-
उत्पादन व्यक्ति तथा समाज दोनों के लिए महत्वपूर्ण है| उत्पादन के द्वारा हमारी आवश्यकताओं की पूर्ति संभव है| व्यक्ति तथा समाज दोनों की आवश्यकताओं को उत्पादन के द्वारा ही पूरा किया जा सकता है|हमारे रहन सहन का स्तर भी उत्पादन पर निर्भर है| उत्पादन अधिक होने पर व्यक्ति तथा समाज दोनों की आय अधिक होती है| व्यक्ति तथा समाज दोनों की आर्थिक समृद्धि उत्पादन पर निर्भर है|
19. भूमि से आप क्या समझते हैं? 
उत्तर:-
“भूमि का अर्थ केवल जमीन की ऊपरी सतह से नहीं है, बल्कि उन सभी पदार्थों तथा शक्तियों से है जिन्हें प्रकृति ने भूमि, जल, वायु, प्रकाश तथा गर्मी के रूप में मनुष्य की सहायता के लिए नि:शुल्क प्रदान किया है|” इस प्रकार भूमि के अंतर्गत जमीन, जमीन पर पाए जानेवाले जंगल, पहाड़, समुद्र, नदियाँ, झील, खनिज पदार्थ, वर्षा, जलवायु आदि सभी वस्तुएँ आती हैं जो प्रकृति ने हमें नि:शुल्क प्रदान किया है|
20. श्रम क्या है? उत्पादन के साधनों में श्रम किस प्रकार सर्वाधिक महत्वपूर्ण है? 
उत्तर:-
कोई भी कार्य, चाहे वह शारीरिक हो या मानसिक, यदि आर्थिक लाभ या आय प्राप्त करने के लिए किया जाता है, तो वह श्रम की श्रेणी में आएगा| उत्पादन के साधनों में श्रम सर्वाधिक महत्वपूर्ण है, क्योंकि श्रम के बिना किसी भी प्रकार का उत्पादन संभव नहीं है| श्रम के साथ भूमि भी उत्पादन के लिए अनिवार्य है| लेकिन, श्रम का महत्व भूमि से अधिक है, क्योंकि भूमि निष्क्रिय है| श्रम ही भूमि को कार्यशील बनाता है तथा उत्पादन करता है|
21. उत्पादक तथा अनुत्पादक श्रम में अन्तर बताएं|
उत्तर:-
जिस मानवीय श्रम के द्वारा धन के उत्पादन में सहायता मिलती है या किसी आर्थिक उद्देश्य की पूर्ति होती है उसे उत्पादक श्रम कहते हैं| जिस श्रम से धन का उत्पादन नहीं होता है या जिसके बदले कोई पुरूस्कार नहीं मिलता है उसे हम अनुत्पादक श्रम कहते हैं|
22. पूंजी क्या है? चल पूंजी तथा अचल पूंजी में अंतर बताएं? 
उत्तर:-
पूंजी वह धन है जो आय अथवा अधिक संपत्ति के उत्पादन में सहायता करती है| इस प्रकार, पूंजी के अंतर्गत केवल द्रव्य या बहुमूल्य पदार्थ ही नहीं, बल्कि मशीन, औजार, खाद बीज आदि भी आते हैं, क्योंकि ये आय प्राप्त करने में सहायक होते हैं| चल पूंजी वह है जिसका उत्पादन कार्य में केवल एक ही बार प्रयोग किया जा सकता है; जैसे—कोयला, खाद, बीज इत्यादि| अचल पूंजी स्थायी और टिकाऊ होती है| इस पूंजी का उत्पादन कार्य में कयी बार प्रयोग किया जाता है; जैसे—-कारखाने का भवन इत्यादि|
23. भूमि तथा पूंजी में अंतर बताएं|
उत्तर:-
भूमि तथा पूंजी दोनों ही उत्पादन के निष्क्रिय साधन है, लेकिन इनमें कयी मौलिक असमानताएँ है| भूमि की प्रकृति की नि:शुल्क देना है, लेकिन पूंजी मानवकृत है| पूंजी का मनुष्य स्वयं अपने परिश्रम से निर्माण करता है| प्रकृति प्रदत्त होने के कारण भूमि की मात्रा हमेशा के लिए सीमित है| जलवायु, वर्षा, सूर्य की रोशनी, भूमि के क्षेत्रफल तथा भूमि की स्थिति में मनुष्य कोई परिवर्तन नहीं कर सकता है| लेकिन, पूंजी की पूर्ति में परिवर्तन संभव है| भूमि स्थायी, अचल तथा स्थिर है| इसे एक स्थान से दूसरे स्थान तक नहीं ले लाया जा सकता है| लेकिन, पूंजी गतिशील है| इसे बहुत आसानी से एवं सुगमतापूर्वक एक स्थान से दूसरे स्थान पर ले जाया जा सकता है|
24. कृषि उत्पादन में वृद्धि के क्या उपाय है? 
उत्तर:-
हमारे देश तथा राज्य में विस्तृत कृषि की कोई संभावना नही है| अतः यहाँ के किसान अपनी उपलब्ध भूमि से ही कृषि उत्पादन को बढ़ाने का प्रयास कर सकते हैं| जिसे गहन कृषि की संज्ञा दी जाती है| इसके अंतर्गत बहुसफल कार्यक्रम को अपनाना आवश्यक है जिसके अंतर्गत भूमि के एक निश्चित टुकड़े पर ही एक से अधिक फसल उपजाई जाती है| कृषि उत्पादन में वृद्धि का एक अन्य तरीका नवीन एवं आधुनिक पद्धति का प्रयोग है| तथा इसके प्रयोग से ही कृषि उत्पादन में यथोचित वृद्धि संभव है|
25. बिहार में सिंचित क्षेत्र को बढ़ावा क्यों महत्वपूर्ण है? 
उत्तर:-
बिहार की अर्थव्यवस्था कृषि आधारित है तथा कृषि एवं इससे संबंध क्रियाकलाप यहाँ के निवासियों के जीविकोपार्जन का मुख्य साधन है| परंतु हमारे राज्य की कृषि अत्यंत पिछड़ी हुई अवस्था में है और इसकी उत्पादकता बहुत कम है| इसका एक प्रमुख कारण बिहार में सिंचाई सुविधाओं का अभाव है| यहाँ की कुल कृषि योग्य भूमि के 49 प्रतिशत भाग में ही सिंचाई सुविधाएँ उपलब्ध है| शेष कृषि योग्य भूमि वर्षा द्वारा प्राप्त जल पर निर्भर है जो अपर्याप्त, अनिश्चित और असामायिक होता है| इससे कृषि की उपज भी अनिश्चित हो जाती है| अत: कृषि की उत्पादकता को बढाने और वर्षा पर उसकी निर्भरता कम करने के लिए सिंचित क्षेत्र का विस्तार आवश्यक है|
26. बिहार के छोटे और सीमांत किसान महाजनों या साहूकारों से पूंजी उधार लेने के लिए क्यों बाध्य होते हैं? 
उत्तर:-
बिहार में व्यावसायिक बैंक, ग्रामीण बैंक तथा सहकारी बैंक कृषि के लिए संस्थागत साख के मुख्य स्रोत है| लेकिन, इनसे छोटे और सीमांत किसानों की ऋण संबंधी आवश्यकताओं की बहुत कम पूर्ति हो पाती है| इसका प्रमुख कारण इन किसानों के पास जमानत आदि का अभाव होता है| अतः वे अपनी साख की आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए महाजनों या साहूकारों से उधार लेने के लिए बाध्य होते हैं| इनसे ऋण लेने के लिए जमानत आदि की कोई आवश्यकता नहीं होती तथा किसान इनके पास आसानी से किसी भी समय पहुँच सकता है| महाजनों के कर्ज देने का तरीका भी सीधा और लोचदार होता है| यही कारण है कि ग्रामीण साख में महाजनों और साहूकारों की आज भी प्रमुखता है|
27. उपभोग की वस्तुओं तथा उत्पादक वस्तुओं में अंतर कीजिये|
उत्तर:-
उपभोग की वस्तुएँ वे है जिनका प्रत्यक्ष रूप से मानवीय आवश्यकताओं की संतुष्टि के लिए उपभोग होता है| खाद्य एवं पेय पदार्थ इत्यादि उपभोग की गैर टिकाऊ वस्तुएँ हैं जिनका हमारी आवश्यकता पूर्ति के लिए केवल एक ही बार प्रयोग किया जा सकता है| इसके विपरीत रहने का मकान, रेडियो आदि टिकाऊ वस्तुएँ हैं| इस प्रकार की वस्तुओं का एक लम्बे समय तक उपभोग किया जाता है| उत्पादक वस्तुएँ वे है जो अन्य वस्तुओं या सेवाओं के उत्पादन में प्रयुक्त होती है| उत्पादक वस्तुएँ भी गैर टिकाऊ तथा टिकाऊ होती है| खाद, बीज इत्यादि गैर टिकाऊ उत्पादक वस्तुएँ हैं| कारखाने का भवन, मशीन, यंत्र आदि टिकाऊ उत्पादक वस्तुएँ हैं जो एक लम्बे समय तक उत्पादन कार्य में सहायक होते हैं|
दीर्घ उत्तरीय प्रश्न






1. उत्पादन क्यों आवश्यक है? वे कौन कौन से साधन है जिनके सहयोग से उत्पादन होता है? 
उत्तर:-
मानवीय आवश्यकताओं की संतुष्टि के उत्पादन आवश्यक है| उत्पादन के द्वारा ही हम अपनी आवश्यकताओं की पूर्ति कर सकते हैं| व्यक्ति और समाज की आवश्यकताओं को वस्तुओं तथा सेवाओं के उत्पादन द्वारा ही पूरा किया जा सकता है| हमारे रहन सहन का स्तर भी उत्पादित वस्तुओं की मात्रा एवं प्रकार पर निर्भर करता है| रोजगार का स्तर तथा आर्थिक समृद्धि भी उत्पादन की मात्रा पर निर्भर है| जब उत्पादन में वृद्धि होती है तथा तरह तरह के उत्पादक कार्य किए जाते हैं तब देश में अधिक व्यक्तियों को रोजगार मिलता है और आर्थिक दृष्टि से अधिक समृद्ध होते हैं——
परंतु किसी भी वस्तु का उत्पादन विभिन्न साधनों के सहयोग से होता है जिन्हें उत्पादन के साधन कारक कहते हैं| उत्पादन के चार प्रमुख साधन है जिनका विवरण निम्नलिखित हैं——-
भूमि—
साधारणतया भूमि का अर्थ जमीन की ऊपरी सतह से लगाया जाता है| लेकिन, अर्थशास्त्र में भूमि शब्द का प्रयोग बहुत ही व्यापक अर्थ में होता है| भूमि के अन्तर्गत वे सभी वस्तुएँ सम्मिलित हैं जो प्रकृति की नि:शुल्क देना है और जिनके सहयोग से उत्पादन होता है| इस प्रकार नदी, पहाड़, जंगल, सूर्य की रोशनी, खनिज संपदा आदि सभी प्रकृति प्रदत्त वस्तुएँ भूमि के अंतर्गत शामिल हैं|
क्षम—-
श्रम के अंतर्गत वे सभी मानवीय श्रम सम्मिलित किए जाते हैं| चाहे वे शारीरिक हो या मानसिक, जो सम्पत्ति तो धन के उत्पादन में सहायक होते हैं| दूसरे शब्दों में श्रम का अर्थ मनुष्य के उस शारीरिक या मानसिक प्रयत्न से है जो किसी लाभ या प्रतिफल की आशा से किया जाता है|
पूंजी—-
अर्थशास्त्र में पूंजी का अर्थ केवल या बहुमूल्य वस्तुओं से नहीं होता| पूंजी मनुष्य द्वारा उत्पादित संपत्ति का वह भाग है जो अधिक संपत्ति के उत्पादन में  लगाया जाता है| उदाहरण के लिए मशीन, औजार, यंत्र हल बैल, खाद, बीज इत्यादि सभी के अंतर्गत आते हैं|
संगठन और उद्यम—–
वर्तमान समय में उत्पादन बहुत वृहत पैमाने तथा भविष्य की माँग के अनुमान पर होता है| अतः विभिन्न साधनों को एकत्र करने तथा उनके बीच सामंजस्य स्थापित करने की आवश्यकता होती है| इसके साथ ही प्रत्येक व्यवसाय में कुछ न कुछ जोखिम या अनिश्चितता अवश्य रहती है| इस कार्य को अर्थशास्त्र में संगठन एवं उद्यम कहते हैं| एक उद्यमी ही उत्पादन के साधनों को एकत्र करने, उनमें समन्वय स्थापित करने तथा व्यवसाय के जोखिम को वहन करने का कार्य करता है|
2. उत्पादन के साधनों में संगठन एवं साहस की भूमिका का वर्णन करें|
उत्तर:-
आधुनिक समय में वस्तुओं का उत्पादन बहुत बड़े पैमाने पर होता है| आधुनिक कारखानों में जटिल मशीनों के द्वारा उत्पादन होता है और वहाँ हजारों की संख्या में श्रमिक कार्य करते हैं| अतः विभिन्न साधनों को एकत्र करने तथा उनके बीच सामंजस्य स्थापित करने की आवश्यकता होती है| वस्तुतः जैसे ही उत्पादन के विभिन्न साधनों के सहयोग से उत्पादन कार्य प्रारंभ होता| वैसे ही संगठन करनेवाले व्यक्ति की आवश्यकता प्रतीत होने लगती है| इसके साथ ही आधुनिक समय में वस्तुओं का उत्पादन भविष्य की माँग के अनुमान पर होता है| लेकिन, भविष्य के अस्पष्ट और अनिश्चित होने के कारण भविष्य संबंधी हमारे अनुमान गलत सिद्ध हो सकते हैं| इसलिए किसी भी उद्योग या व्यवसाय में जोखिम और अनिश्चितता की मात्रा बहुत अधिक रहती है| जब तक इस जोखिम की उठानेवाला कोई व्यक्ति नहीं हो तब तक उत्पादन का कार्य प्रारंभ नहीं हो सकता किसी व्यवसाय के इस जोखिम और अनिश्चितता को ही उद्यम या साहस कहते हैं| जो व्यक्ति इस जोखिम और अनिश्चितता को वहन करता है| उसे उद्यमी या साहसी कहा जाता है| आधुनिक उद्योगों में उद्यमी की भूमिका अत्यंत महत्वपूर्ण होती है| एक उद्यमी ही उत्पादन के साधनों की एकत्र करने, उनमें समन्वय स्थापित करने तथा व्यवसाय के जोखिम को उठाने का कार्य करता है| लेकिन, कुछ अर्थशास्त्री संगठन और उद्यम को उत्पादन का उत्पादन का पृथक साधन मानते हैं वास्तव में इन दोनों के बीच विभाजन रेखा बहुत सूक्ष्म है| आधुनिक अर्थशास्त्रियों के अनुसार, संगठन और एक विशिष्ट प्रकार के श्रम है जिसे आजकल मानवीय पूंजी की संज्ञा दी जाती है| यह मानवीय पूंजी ही भूमि श्रम तथा भौतिक पूंजी में उचित समन्वय द्वारा उत्पादन प्रणाली को संगठित एवं क्रियाशील करता है|
3. कृषि फसलों के उत्पादन में वृद्धि के क्या उपाय है? 
उत्तर:-
हमारे देश तथा राज्य में विस्तृत कृषि की कोई संभावना नही है, अतः यहाँ के किसान अपनी उपलब्धता भूमि से ही कृषि उत्पादन को बढाने का प्रयास कर सकते हैं, जिसे गहन कृषि की संज्ञा दी जाती है| इसके अंतर्गत बहुसफल कार्यक्रम को अपनाना आवश्यक है जिसके अंतर्गत भूमि के एक निश्चित टुकड़े पर ही एक से अधिक फसल उपजाई जाती है| कृषि उत्पादन में वृद्धि का एक अन्य तरीका नवीन एवं आधुनिक पद्धति का प्रयोग है तथा इसके प्रयोग से ही कृषि उत्पादन में यथोचित वृद्धि संभव है|
4. हरित क्रांति से आप क्या समझते हैं? इसके क्या परिणाम हुए हैं? 
उत्तर:-
भारत में कृषि विकास की नयी 1966-67 में अपनायी गयी जिसे अधिक उपज देनेवाले कार्यक्रम की संज्ञा दी गई| इस कार्यक्रम को अपनाने के परिणामस्वरूप हमारी कृषि उपज में, विशेषकर खाद्यान्नों के उत्पादन में, बहुत तेजी से वृद्धि हुई है| हरित क्रांति का तात्पर्य कृषि उत्पादन में होनेवाली इस अभूतपूर्व वृद्धि से है| विशेषज्ञों के अनुसार, नयी तकनीक तथा अधिक उपज देनेवाले उन्नत किस्म के बीजों का अविष्कार हरित क्रांति को लाने में सर्वाधिक महत्वपूर्ण रहे हैं| भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए हरित क्रांति के परिणाम उत्साहवर्धक कहे जा सकते हैं| कृषि की इस नवीन पद्धति को अपनाने के फलस्वरूप 1967-68 के बाद खाद्यान्न के उत्पादन में बहुत तेजी से वृद्धि हुई है| इसके साथ ही कृषि की उत्पादकता भी बढी है| हरित क्रांति के आगमन से किसानों की आर्थिक स्थिति एवं रहन सहन के स्तर में सुधार हुआ है| इसका औद्योगिक उत्पादन पर भी अनुकूल प्रभाव पड़ा है| हरित क्रांति के कारण अब देश खाद्य पदार्थों की दृष्टि से आत्म निर्भर हो गया है| इसके पूर्व भारत बहुत बड़े पैमाने पर खाद्यान्न एवं खाद्य वस्तुओं का आयात करता था| लेकिन, अब इनके आयात बहुत कम हो गये हैं| भारत एक कृषि प्रधान देश है| हमारी राष्ट्रीय आय में कृषि का सर्वाधिक योगदान होता है| हरित क्रांति एवं कृषि के विकास से अर्थव्यवस्था के अन्य क्षेत्र भी प्रभावित हुए हैं| तथा आर्थिक विकास को प्रोत्साहन मिला है| हमारे देश के अधिकांश किसान अशिक्षित एवं रुढ़िवादी है| लेकिन, अब वे कृषि की नयी विधियों को अपनाने लगे हैं|उनके दृष्टिकोण में यह परिवर्तन कृषि विकास की दृष्टि से अत्यधिक महत्वपूर्ण है| लेकिन, कृषि विकास का यह कार्यक्रम देश के कुछ पूर्व विकसित क्षेत्रों में ही अधिक सफल हुआ है| जहाँ सिंचाई आदि की आधारभूत सुविधाएँ उपलब्ध है| हरित क्रांति के परिणाम एक अन्य दृष्टि से भी असफल सिद्ध हुए हैं| इसके लाभ मुख्यतः बड़े और धनी किसानों को प्राप्त हुए हैं| जिनके पास इस तकनीक को अपनाने के लिए साधन उपलब्ध है|
5. भूमि की उत्पादकता से आप क्या समझते हैं बिहार में भूमि की उत्पादकता कम होने के क्या कारण है? 
उत्तर:-
भूमि की उत्पादकता का अभिप्राय उसके प्रति हेक्टेयर उत्पादन से है| भूमि की उत्पादकता अधिक होने पर एक दिए हुए भू खंड से ही अधिक फसल उपजाई जा सकती है| बिहार एक कृषि प्रधान राज्य है और यहाँ की अधिकांश जनसंख्या अपनी आजीविका के लिए कृषि पर निर्भर है| लेकिन, देश के विकसित राज्यों की तुलना में यहाँ भूमि की उत्पादकता अपेक्षाकृत बहुत कम है| बिहार में कृषि की उत्पादकता कम होने के कयी कारण है| भूमि एक प्राकृतिक संसाधन है| इसकी यात्रा ही नहीं, वरन उत्पादन शक्ति भी सीमित है| लगातार खेती करने से भूमि की उर्वरा शक्ति कम हो जाती है| अतएव, कृषि के उपजाऊपन को बनाये रखने तथा प्रति हेक्टेयर उपज में वृद्धि के लिए खाद देना आवश्यक है| परंपरागत रूप में हमारे राज्य के किसान गोबर आदि का खाद के रूप में प्रयोग करते हैं| विगत कुछ वर्षों से अब यहाँ के मध्यम और बड़े किसान परिवार रासायनिक खाद अथवा उर्वरकों का प्रयोग करने लगे हैं| लेकिन, बिहार में अभी भी उर्वरकों का प्रति हेक्टेयर उपयोग राष्ट्रीय औसत से कम है| बिहार में उर्वरकों के प्रयोग से संबंधित एक दूसरी कठिनाई भी है| यहाँ के किसान प्रायः बिना मिट्टी जांच के ही इनका प्रयोग करते हैं| मिट्टी की जांच से यह पता चलता है कि किन खेतों में किस तत्व की कितनी कमी है| इससे किसान अनावश्यक एवं अत्यधिक मात्रा में उर्वरकों का प्रयोग नहीं करते हैं| बिहार में कृषि उत्पादकता कम होने का दूसरा महत्वपूर्ण कारण भूमि का स्वामित्व एवं इसके वितरण में विषमता है| हमारे राज्य में भूमि का वितरण बहुत असमान है| इनकी जोतों का आकार एक हेक्टेयर से भी कम होता है| इन छोटे किसानों की भूमि की उपज उनके जीवनयापन के लिए ही पर्याप्त नहीं होती है| अतः साख तथा अन्य आधारभूत सुविधाओं के अभाव में उनकी भूमि की उत्पादकता बहुत कम है|
6. कृषि क्षेत्र में श्रम की आपूर्ति किस प्रकार होती है| हमारे देश तथा राज्य में कृषि श्रमिकों की क्या स्थिति है|
उत्तर:-
कृषि तथा इससे संबंध क्रियाकलाप में लगे हुए व्यक्तियों के श्रम को कृषि श्रम कहते हैं| कृषि श्रमिकों में श्रम की आवश्यकता बहुत अधिक होती है| छोटे किसान अपने परिवार के सदस्यों की सहायता से खेती करते हैं| इस प्रकार, वे कृषि कार्यों के लिए स्वयं श्रम की आपूर्ति करते हैं| तथा इस श्रम के लिए उन्हें अलग से कोई भुगतान नही किया जाता है| इनकी आय परिवार की सम्मिलित आय का एक भाग होता है| लेकिन, मध्यम और बड़े किसान अपनी भूमि पर कृषि कार्यों के संपादन के लिए भाड़े के श्रमिकों का प्रयोग करते हैं| इन्हें कृषि श्रमिक की संज्ञा दी जाती है| इस प्रकार के श्रम की आपूर्ति के लिए भूमिहीन ग्रामीण परिवार तथा सीमांत किसान| भूमिहीन श्रमिक वे है जिनके पास कोई अपनी भूमि नहीं होती और वे दूसरों की भूमि पर खेती कर अपना जीवनयापन करते हैं| सीमांत किसानों के पास कुछ नीजी भूमि होती है, लेकिन यह उनके जीविकोपार्जन के लिए पर्याप्त नहीं होती है| अतएव, इस प्रकार वे बहुत छोटे और सीमांत किसान भी कृषि श्रमिक के रूप में कार्य करने के लिए बाह्य होते हैं| कृषि श्रमिकों को काम पर लगनेवाले किसान उन्हें मजदूरी का भुगतान करते हैं| यह मजदूरी नकद या अनाज अथवा दोनों के रूप में हो सकती है| हमारे देश में कृषि श्रमिकों की स्थिति संतोषजनक नहीं है| कठिन परिश्रम करने पर भी उन्हें अपेक्षाकृत कम मजदूरी दी जाती है सरकार ने न्यूनतम मजदूरी अधिनियम के अंतर्गत कृषि श्रमिकों के लिए भी मजदूरी की न्यूनतम दर निश्चित कर दी है| लेकिन, प्रायः व्यवहार में उनका पालन नहीं होता है| और उन्हें न्यूनतम से भी कम मजदूरी मिलती है| कृषि श्रमिकों की मजदूरी कम रहने के कारण वे हमेशा ऋणग्रस्त रहते हैं| बिहार में कृषि श्रमिकों की आर्थिक स्थिति और भी दयनीय है| यहाँ की कृषि आज भी प्राचीन एवं परंपरागत है| तथा कृषि क्षेत्र में रोजगार के अवसरों का अभाव है| बाढ उत्तर बिहार को एक स्थायी समस्या है| जिससे इस क्षेत्र के एक बडे़ भू भाग की खरीफ फसल प्रतिवर्ष नष्ट हो जाती है| अतएव, कृषि में संलग्न ग्रामीण जनसंख्या का एक बड़ा भाग वर्ष में लगभग चार पांच महीने पूर्णतः बेकार रहता है| तथा बिहार से कृषि श्रमिकों का देश के अन्य विकसित राज्यों में पलायन हो रहा है|
7. उत्पादन के विभिन्न साधनों का सापेक्षिक महत्व बताएं|
उत्तर:-
भूमि, श्रम, पूंजी, संगठन एवं उद्यम उत्पादन के प्रमुख साधन है| इनके सम्मिलित प्रयास से ही विभिन्न प्रकार की वस्तुओं और सेवाओं का उत्पादन होता है| अतः, यह कहना अत्यंत कठिन है कि उत्पादन के इस साधनों में कौन सा साधन सर्वाधिक महत्वपूर्ण है| कुछ अर्थशास्त्रियों के अनुसार, भूमि उत्पादन का सबसे महत्वपूर्ण साधन है, क्योंकि भूमि के बिना किसी भी वस्तु का उत्पादन संभव नहीं है| इसके विपरीत, कुछ अर्थशास्त्री श्रम को भूमि से भी अधिक महत्वपूर्ण मानते हैं, क्योंकि भूमि निष्क्रिय है तथा वह स्वयं उत्पादन नहीं करती| श्रम ही उत्पादन का सक्रिय साधन है| प्राचीन अर्थशास्त्रियों ने भूमि और श्रम को उत्पादन का प्राथमिक और सर्वमान्य साधन कहा है| ये दोनों ही उत्पादन के सर्वथा अत्याचार साधन है| इन अर्थशास्त्रियों के अनुसार, पूंजी, संगठन एवं उद्यम का अपना पृथक एवं स्वतंत्र अस्तित्व नहीं है| भूमि तथा श्रम के पारस्परिक सहयोग द्वारा पूंजी उत्पन्न होती है| भूमि पर अपने श्रम का प्रयोग कर ही मनुष्य पूंजी का सृजन करता है| इसी प्रकार, संगठन और उद्यम भी एक विशिष्ट प्रकार का श्रम है| इस प्रकार, इन अर्थशास्त्रियों के अनुसार केवल भूमि और श्रम ही उत्पादन के मौलिक साधन है| लेकिन, अधिकांश अर्थशास्त्रियों के अनुसार, भूमि, श्रम, पूंजी, संगठन एवं उद्यम उत्पादन के प्रमुख साधन है| भूमि और श्रम को उत्पादन का मौलिक साधन कहा गया है| पूंजी उत्पादन का एक सहायक साधन है| इसके प्रयोग से उत्पादन की मात्रा में बहुत वृद्धि लायी जा सकती है| परंतु वर्तमान में संगठन एवं उद्यम भी उत्पादन की एक अनिवार्य आवश्यकता है जिसके अभाव में वृहत पैमाने पर उत्पादन संभव नहीं है| हमारी उत्पादन व्यवस्था दिन प्रतिदिन जटिल होती जा रही है| तथा इसके संचालन के लिए विशेष ज्ञान, प्रबंधन योग्यता, कौशल एवं दूरदर्शिता की आवश्यकता होती है| आधुनिक उत्पादन व्यवस्था में इस आवश्यकता की पूर्ति संगठन एवं उद्यम द्वारा की जाती है| इस प्रकार, यह स्पष्ट है कि उत्पादन के विभिन्न साधनों का सापेक्षिक महत्व बताना अत्यंत कठिन है| वास्तव में, उत्पादन का प्रत्येक साधन अपने स्थान पर महत्वपूर्ण है| उत्पादन कार्य सभी साधनों के पारस्परिक सहयोग से होता है तथा इनमें किसी भी साधन की उपेक्षा नहीं की जाती है|

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