Bharti Bhawan Economics Class-9:Chapter-4:Very Short Type Question Answer:Short Type Question Answer:Long Answer Type Question Answer:अर्थशास्त्र:कक्षा-9:अध्याय-4:अति लघु उत्तरीय प्रश्न उत्तर:लघु उत्तरीय प्रश्न:दीर्घ उत्तरीय प्रश्न



                        बेरोजगारी




अतिलघु उत्तरीय प्रश्न





1. बेरोजगारी से आप क्या समझते हैं? 
उत्तर:-
जब काम करने वाले व्यक्तियों को इच्छा एवं योग्यता रहने पर भी प्रचलित मजदूरी पर काम नहीं मिलता तब इसे बेरोजगारी कहते हैं|
2. ग्रामीण बेरोजगारी क्या है? 
उत्तर:-
कृषि एवं प्राथमिक व्यवसायों में विद्यमान बेरोजगारी को ग्रामीण बेरोजगारी की संज्ञा दी जाती है|
3. मौसमी बेरोजगारी किसे कहते हैं? 
उत्तर:-
जब लोगों का वर्ष के कुछ विशेष महीनों में काम नहीं मिलता है तो इसे सामयिक या मौसमी बेरोजगारी कहते हैं|
4. अदृश्य बेरोजगारी क्या है? 
उत्तर:-
कृषि के क्षेत्र में आवश्यकता से अधिक व्यक्ति लगे होने के कारण छिपी हुई या अदृश्य बेरोजगारी पायी जाती है| इसके अंतर्गत कृषक अपने आप को कृषि कार्य में लगा हुआ समझता है, लेकिन उसकी उत्पादकता लगभग शून्य के बराबर होती है|
5. शिक्षित बेरोजगारी क्या है? 
उत्तर:-
जब समाज के शिक्षित वर्ग के लोगों को उनकी शिक्षा एवं योग्यता के अनुसार काम नहीं मिलता तो इसे शिक्षित बेरोजगारी की संज्ञा दी जाती है|
6. हमारी अर्थव्यवस्था के किस क्षेत्र में अदृश्य बेरोजगारी पाई जाती है? 
उत्तर:-
हमारी अर्थव्यवस्था के प्राथमिक क्षेत्र में अदृश्य बेरोजगारी अधिक है| जिसमें कृषि एवं इससे संबद्ध क्रियाकलाप में आवश्यकता से बहुत अधिक व्यक्ति लगे हुए हैं|
7. बिहार में बेरोजगारी की समस्या के समाधान के लिए दो उपाय बताएं|
उत्तर:-
बिहार में बेरोजगारी की समस्या के समाधान के लिए कृषि एवं कृषि आधारित उद्योगों का विकास आवश्यक है|
8. बेरोजगारी की समस्या के समाधान के लिए सरकार द्वारा चलाए जा रहे दो कार्यक्रमों के नाम बताएं|
उत्तर:-स्वर्ण जयंती ग्राम स्वरोजगार योजना और संपूर्ण ग्रामीण रोजगार योजना
9. रोजगार अभिमुख शिक्षा से आप क्या समझते हैं? 
उत्तर:-
रोजगार अभिमुख शिक्षा वह है जिसमें किसी व्यवसाय से संबंधित शिक्षा एवं प्रशिक्षण प्रदान किया जाता है|
10. अदृश्य बेरोजगारी की समस्या के समाधान के उपाय बताएं|
उत्तर:-
कृषि क्षेत्र में आवश्यकता से अधिक व्यक्ति लगे होने के कारण अदृश्य या छिपी हुई बेरोजगारी पाई जाती है| इसके अंतर्गत कृषक अपने आपको कृषि कार्य में लगा हुआ समझता है, लेकिन उसकी उत्पादकता शून्य अथवा ऋणात्मक होती है| भारत में इस प्रकार की बेरोजगारी बहुत अधिक है| अदृश्य बेरोजगारी की समस्या के समाधान के लिए कृषि पर से जनसंख्या के भार को कम करना आवश्यक है| इसके लिए ग्रामीण क्षेत्रों में रोजगार के अन्य साधनों का विस्तार करना होगा|
11. ग्रामीण बेरोजगारी के दो मुख्य रूप कौन कौन से है? 
उत्तर:-
भारत के ग्रामीण क्षेत्रों में व्याप्त बेरोजगारी के दो मुख्य रूप है—- मौसमी बेरोजगारी और अदृश्य बेरोजगारी
12. मौसमी बेरोजगारी उत्पन्न होने का प्रमुख कारण क्या है? 
उत्तर:-
भारत के ग्रामीण क्षेत्रों में मौसमी बेरोजगारी उत्पन्न होने का प्रमुख कारण भारतीय कृषि की मौसमी या सामयिक प्रकृति है|
13. अदृश्य या छिपी हुई बेरोजगारी से आप क्या समझते हैं? 
उत्तर:-
अदृश्य या छिपी हुई बेरोजगारी वह है जिसके अंतर्गत कृषक अपने को कृषि कार्य में लगा हुआ समझता है, लेकिन उसकी उत्पादकता लगभग शून्य के बराबर होती है|
14. भारत में शिक्षित बेरोजगारी का प्रधान कारण क्या है? 
उत्तर:-
हमारे देश में शिक्षित बेरोजगारी का प्रधान कारण हमारी दोषपूर्ण शिक्षा प्रणाली है|
15. छिपी हुई या अदृश्य बेरोजगारी का प्रमुख कारण क्या है? 
उत्तर:-
हमारे देश में छिपी हुई या अदृश्य बेरोजगारी का प्रमुख कारण ग्रामीण जनसंख्या की कृषि पर अत्यधिक निर्भरता है|
16. बिहार में बेरोजगारी का प्रमुख कारण क्या है? 
उत्तर:-
बिहार में बेरोजगारी का प्रमुख कारण आर्थिक विकास की मंद गति, कृषि की प्रधानता और इसकी अत्यंत पिछड़ी हुई अवस्था है|
17. जनसंख्या वृद्धि किस प्रकार बेरोजगारी के लिए उत्तरदायी है? 
उत्तर:-
जनसंख्या में तीव्र वृद्धि के कारण हम इस बढती हुई जनसंख्या के लिए रोजगार की व्यवस्था करने में असमर्थ है तथा बेरोजगार की संख्या निरंतर बढ रही है|
18. सामाजिक सेवाओं का विस्तार बेरोजगारी की समस्या के समाधान में किस प्रकार सहायक होता है? 
उत्तर:-
सामाजिक सेवाओं के विस्तार से रोजगार के अतिरिक्त अवसरों का सृजन होता है जिससे आर्थिक विकास को भी प्रोत्साहन मिलता है|
19. जवाहर रोजगार योजना क्या है? 
उत्तर:-
जवाहर रोजगार योजना ग्रामीण क्षेत्रों में रोजगार प्रदान करने की एक बहुत ही व्यापक योजना थी तथा इसका उद्देश्य प्रत्येक निर्धन परिवार के एक सदस्य को वर्ष में 50 दिन से 100 दिन तक रोजगार प्रदान करना था|
20. राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम कब लागू हुआ तथा इसका क्रियान्वयन किसके द्वारा किया जाता है? 
उत्तर:-
राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम 2 फरवरी 2006 को लागू किया गया तथा इसका क्रियान्वयन भारत सरकार के ग्रामीण विकास मंत्रालय द्वारा किया जाता है|
21. बेरोजगारी की समस्या के समाधान के लिए निम्नलिखित कार्यक्रम किस वर्ष आरंभ किए गए?
उत्तर:-
जवाहर रोजगार योजना——-अप्रैल 1989
शीघ्र या क्रैश कार्यक्रम——-1971
राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार कार्यक्रम——1980
ग्रामीण भूमिहीन रोजगार गारंटी कार्यक्रम——1983


लघु उत्तरीय प्रश्न







1. कृषि अथवा ग्रामीण बेरोजगारी क्या है? 
उत्तर:-
कृषि एवं प्राथमिक व्यवसायों में विद्यमान बेरोजगारी को ग्रामीण बेरोजगारी की संज्ञा दी जाती है| भारत में इस प्रकार की बेरोजगारी की समस्या अत्यंत गंभीर है| कृषि के पिछड़े होने तथा कुटीर उद्योगों के पतन के कारण गाँवों में रोजगार के पर्याप्त अवसर उपलब्ध नहीं है| भारत के ग्रामीण क्षेत्रों में व्याप्त बेरोजगारी के दो मुख्य प्रकार है—- मौसमी बेरोजगारी तथा अदृश्य बेरोजगारी| मौसमी बेरोजगारी का प्रमुख कारण भारतीय कृषि का पिछड़ापन और इसकी सामयिक प्रकृति है| वर्ष में लगभग चार पांच महीने तक कृषि में संलग्न ग्रामीण जनसंख्या का एक बड़ा भाग बेकार रहता है| जब तक कृषि कार्य होते हैं तब तक इन लोगों को काम रहता है, लेकिन कृषि का मौसम समाप्त होते ही ये लोग बेरोजगार हो जाते हैं| इस प्रकार की बेरोजगारी को सामयिक या मौसमी बेरोजगारी कहते हैं| कृषि के क्षेत्र में आवश्यकता से अधिक व्यक्ति लगे होने के कारण छिपी हुई या अदृश्य बेरोजगारी भी पायी जाती है| इस प्रकार की बेरोजगारी दृष्टिगत नहीं होती| इसके अंतर्गत कृषक अपने आपको कृषि कार्य में लगा हुआ समझता है, लेकिन उसकी उत्पादकता लगभग शून्य के बराबर होती है| अत:, यदि उसे कृषि से हटा दिया जाए तो कृषि उत्पादन में कोई कमी नहीं होगी| इस प्रकार की बेरोजगारी छिपी हुई, प्रच्छन्न या अदृश्य बेरोजगारी कहते हैं| हमारे देश में इस प्रकार की बेरोजगारी बहुत अधिक है|
2. अदृश्य बेरोजगारी क्या है? सोदाहरण स्पष्ट करें|
उत्तर:-अदृश्य बेरोजगारी मुख्यतया अल्पविकसित देशों में पायी जाती है जिनमें कृषि की प्रधानता है| इसके अंतर्गत कृषक अपने आपको कृषि कार्य में लगा हुआ समझता है, लेकिन उनकी उत्पादकता लगभग शून्य के बराबर होती है| अत:, यदि उसे कृषि कार्य से हटा भी दिया जाए तो कृषि उत्पादन में कोई कमी नहीं होगी| इस प्रकार, प्रकट रूप में कृषक रोजगार प्राप्त मालूम होता है, लेकिन उत्पादन में उसका कोई योगदान नहीं रहता| उदाहरण के लिए, भूमि के एक निश्चित टुकड़े पर खेती करने के लिए पांच व्यक्ति पर्याप्त है, लेकिन उसपर सात व्यक्ति लगे हुए हैं| इस स्थिति में दो व्यक्ति अदृश्य रुप से बेरोजगार है और इनका फसल के उत्पादन में कोई योगदान नहीं होता है|
3. शहरी बेरोजगारी पर एक संक्षिप्त टिपण्णी लिखें|
उत्तर:-
शहरी क्षेत्रों में भी बेरोजगारी की समस्या वर्तमान है तथा इसमें निरंतर वृद्धि हो रही है| इसका प्रमुख कारण राज्य के आर्थिक विकास की मंद गति है जिससे उद्योग एवं व्यापार के क्षेत्र में रोजगार के पर्याप्त अवसरों का सृजन नहीं हुआ है|
4. भारत में बेरोजगारी का अनुमान बताएं|
उत्तर:-
विश्वसनीय आंकड़ों के अभाव में भारत में बेरोजगारी की स्थिति का सही अनुमान लगाना कठिन है| राष्ट्रीय प्रतिदर्श जांच के अनुसार, 1999-2000 में हमारी कुल श्रमशक्ति का लगभग 6 प्रतिशत भाग बेरोजगार था| परन्तु, वास्तविक स्थिति इससे बहुत गंभीर है| इसका कारण यह है कि बहुत से ऐसे व्यक्तियों को भी रोजगाररत मान लिया जाता है जिनकी आय एवं उत्पादकता बहुत कम है| वे पूरे वर्ष काम में लगे रहते हैं, लेकिन क्षमता की दृष्टि से उनकी आय पर्याप्त नहीं होती है| रोजगार के अवसरों के अभाव में बहुत से व्यक्ति ऐसे काम करने के लिए बाध्य है जो उनकी योग्यता एवं रुचि के अनुकूल नहीं है| निर्धन व्यक्ति बेकार नहीं बैठ सकते हैं और वे न्यून आय प्रदान करने वाले काम भी स्वीकार कर लेते हैं| इस प्रकार के व्यक्तियों का जीवन स्तर अत्यंत निम्न होता है|
5. जनसंख्या का बेरोजगारी से घनिष्ठ संबंध है, कैसे? 
उत्तर:-
हमारे देश में बेरोजगारी का जनसंख्या वृद्धि से घनिष्ठ संबंध है| 1921 के बाद भारत की जनसंख्या में निरंतर वृद्धि हो रही है| 1951 में हमारी जनसंख्या केवल 36 करोड़ थी| वर्तमान में यह बढ़कर 100 करोड़ से अधिक हो गई है| इस प्रकार, जहाँ एक ओर देश के आर्थिक विकास की दर अपेक्षाकृत धीमी है वहाँ दूसरी ओर जनसंख्या एवं श्रम शक्ति में तीव्रता से वृद्धि हो रही है| परिणामस्वरूप, इस बढती हुई जनसंख्या के लिए हम रोजगार की व्यवस्था करने में असमर्थ है और बेरोजगारों की संख्या क्रमशः बढ़ रही है| जनसंख्या में अत्यधिक वृद्धि के कारण कृषि पर उसका बोझ बढ़ता जा रहा है| यह कृषि क्षेत्र में छिपी हुई अथवा अदृश्य बेरोजगारी का प्रमुख कारण है|
6. बेरोजगारी की समस्या के समाधान में गैर सरकारी संगठन किस प्रकार सहायक हो सकते हैं? 
उत्तर:-
बेरोजगारी की समस्या एक अत्यंत जटिल एवं बहुआयामी समस्या है| इसके समाधान के लिए सरकार की सामान्य नीति आर्थिक विकास द्वारा रोजगार के अवसरों का विस्तार करना है| इसके साथ ही सरकार ने समय समय पर कयी ऐसे विशिष्ट कार्यक्रम लागू किए है जिनसे बेरोजगारी की मात्रा में तत्काल कमी लायी जा सके| लेकिन, इन कार्यक्रमों को सीमित सफलता मिली है| इसका एक प्रमुख कारण इन योजनाओं के कार्यान्वयन में जन सहयोग का अभाव है| गैर सरकारी, निजी क्षेत्र तथा स्थानीय संस्थाओं के सहयोग से रोजगार सृजन एवं निर्धनता निवारण कार्यक्रमों को अधिक रोजगारपरक और उत्पादक बनाया जा सकता है| स्थानीय सहयोग एवं भागीदारी का एक उदाहरण बिहार में पटना जिले का पालीगंज प्रखंड है| इस प्रखंड में सिंचाई प्रबंधन का कार्य सरकार के जल संसाधन विभाग से सिंचाई सुविधाओं का प्रयोग करने वाले किसानों के हाथ में दे दिया गया है| अब इस क्षेत्र के नहरों के जल प्रबंधन, जल के वितरण और नहरों के रख रखाव का कार्य इस जल का प्रयोग करने वाले किसानों के द्वारा किया जा रहा है| इससे इस क्षेत्र में सिंचित कृषि क्षेत्र का विस्तार हुआ है और नहरों की मरम्मत एवं रख रखाव में रोजगार के अतिरिक्त अवसर उपलब्ध हुए हैं|
7. अदृश्य बेरोजगारी की समस्या के समाधान के उपाय बताएं|
उत्तर:-
कृषि क्षेत्र में आवश्यकता से अधिक व्यक्ति लगे होने के कारण अदृश्य या छिपी हुई बेरोजगारी पायी जाती है| इसके अंतर्गत कृषक अपने आपको कृषि कार्य में लगा हुआ समझता है, लेकिन उसकी उत्पादकता शून्य अथवा ऋणात्मक होती है| भारत में इस प्रकार की बेरोजगारी बहुत अधिक है| अदृश्य बेरोजगारी की समस्या के समाधान के लिए कृषि पर से जनसंख्या के भार को कम करना आवश्यक है| इसके लिए ग्रामीण क्षेत्रों में रोजगार के अन्य साधनों का विस्तार करना होगा| आज विश्व के अनेक अर्द्ध विकसित देशों में कृषि आधारित छोटे एवं घरेलू उद्योगों का शीघ्रता से विकसित हो रहा है| ये उद्योग श्रम प्रधान होते हैं तथा इनमें ग्रामीण जनशक्ति का लाभपूर्वक प्रयोग किया जा सकता है|
8. जनसंख्या का बेरोजगारी से घनिष्ठ संबंध है| कैसे? 
उत्तर:-
हमारे देश में बेरोजगारी का जनसंख्या वृद्धि से घनिष्ठ संबंध है| 1921 के बाद भारत की जनसंख्या में निरंतर वृद्धि हो रही है| 1951 में हमारी जनसंख्या केवल 36 करोड़ थी| वर्तमान में यह बढ़कर 100 करोड़ से भी अधिक हो गई है| इस प्रकार, जहाँ एक ओर देश के आर्थिक विकास की दर अपेक्षाकृत धीमी है वहाँ दूसरी ओर जनसंख्या एवं श्रम शक्ति में तीव्रता से वृद्धि हो रही है| परिणामस्वरूप, इस बढ़ती हुई जनसंख्या के लिए हम रोजगार की व्यवस्था करने में असमर्थ है और बेरोजगारों की संख्या क्रमशः बढ़ रही है| जनसंख्या में अत्यधिक वृद्धि के कारण कृषि पर उसका बोझ बढ़ता जा रहा है| यह कृषि क्षेत्र में छिपी हुई अथवा अदृश्य बेरोजगारी का प्रमुख कारण है|
9. बिहार में ग्रामीण बेरोजगारी की समस्या क्यों अधिक गंभीर है? 
उत्तर:-
कृषि एवं प्राथमिक व्यवसायों में विद्यमान बेरोजगारी को ग्रामीण बेरोजगारी की संज्ञा दी जाती है| बिहार आर्थिक दृष्टि से एक पिछड़ा हुआ राज्य है| अत:, बिहार में शहरीकरण की गति अपेक्षाकृत मंद हो रही है| तथा राज्य की लगभग 90 प्रतिशत जनसंख्या ग्रामीण क्षेत्रों में निवास करती है| इस जनसंख्या का एक बड़ा भाग (लगभग 75 प्रतिशत) रोजगार एवं जीवन निर्वाह के लिए कृषि पर निर्भर है| परंतु, यहाँ की कृषि आज भी प्राचीन, परंपरागत एवं पिछड़ी हुई है तथा कृषि क्षेत्र में रोजगार कुछ विशेष मौसम में ही उपलब्ध होते हैं| अत एव, कृषि में संलग्न जनसंख्या वर्ष में लगभग चार पांच महीने पूर्णतः बेकार रहती है| कृषि पर जनभार अधिक होने के कारण बिहार में छिपी हुई या अदृश्य बेरोजगारी भी अधिक है|
10. बिहार में शहरी एवं ग्रामीण बेरोजगारी पर एक संक्षिप्त टिप्पणी लिखें|
उत्तर:-
बिहार में ग्रामीण एवं शहरी दोनों प्रकार की बेरोजगारी की भीषण समस्या वर्तमान है| इसके फलस्वरूप हमारी श्रय शक्ति का समुचित उपयोग नहीं होता, प्रतिव्यक्ति आय में गिरावट आती है और निर्धनता में वृद्धि होती है बेरोजगारी ने राज्य में लूट डकैती एवं कानून व्यवस्था जैसी कयी अन्य समस्याओं को भी जन्म दिया है| ग्रामीण बेरोजगारी का प्रमुख कारण कृषि का पिछड़ापन, इसकी सामयिक प्रकृति और कृषि पर अत्यधिक जनभार है| बिहार के शहरी क्षेत्रों में भी बेरोजगारी की समस्या वर्तमान है| तथा इसमें निरंतर वृद्धि हो रही है| इसका प्रमुख कारण राज्य के आर्थिक विकास की मंद गति है जिससे उद्योग एवं व्यापार के क्षेत्र में रोजगार के पर्याप्त अवसरों का सृजन नहीं हुआ है|



11. संपूर्ण ग्रामीण रोजगार योजना क्या है? 
उत्तर:-
संपूर्ण ग्रामीण रोजगार योजना 25 सितम्बर 2001 को प्रारंभ की गई| यह कार्यक्रम पूर्व से जारी रोजगार योजना और जवाहर ग्राम समृद्धि योजना को मिलाकर बनाया गया है| इसका उद्देश्य ग्रामीण क्षेत्रों में खाद्य सुरक्षा के साथ ही मजदूरी एवं रोजगार के अवसरों को बढ़ाने के लिए स्थायी सामुदायिक परिसंपत्तियों का निर्माण करना है| इस कार्यक्रम के अंतर्गत समाज के कमजोर वर्गों, विशेषकर महिलाओं, अनुसूचित जातियों, अनुसूचित जनजातियों तथा जोखिमपूर्ण व्यवसायों से हटाए गए बच्चों के अभिभावकों को प्राथमिकता प्रदान की जाती है| इस योजना में रोजगार में गरीबी रेखा से नीचे जीवन यापन कर रहे परिवारों को वरीयता दी जाती है|
12. स्वर्ण जयंती ग्राम स्वरोजगार योजना पर एक संक्षिप्त टिप्पणी लिखें|
उत्तर:-
अप्रैल 1999 से भारत सरकार ने स्वर्ण जयंती ग्राम स्वरोजगार योजना आरंभ की है| यह ग्रामीण के स्वरोजगार के लिए एक एकीकृत योजना है| इस योजना में समन्वित ग्रामीण विकास कार्यक्रम, राष्ट्रीय ग्रामीण युवक स्वरोजगार योजना तथा पूर्व के स्वरोजगार एवं उससे संबंद्ध अन्य सभी कार्यक्रमों का स्थान ले लिया है| इसका उद्देश्य निर्धन परिवारों को निर्धनता रेखा से ऊपर लाने के लिए उन्हें स्वसहायता समूहों में संगठित करना है| इसके लिए इस कार्यक्रम के अंतर्गत ग्रामीण क्षेत्रों में निर्धनों की क्षमता एवं कौशल तथा स्थानीय संभावनाओं के आधार पर बहुत बड़ी संख्या में ऐसे सूक्ष्म अथवा अतिलघु उद्योगों की स्थापना पर बल दिया गया है| जो दीर्घकाल तक आय सृजन में सहायक हो|
13. राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम क्या है? 
उत्तर:-
सितम्बर 2005 में भारत सरकार ने राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम किश्तों में लागू होगा| इसके अंतर्गत प्रत्येक ग्रामीण परिवार को वर्ष में 100 दिन निश्चित रोजगार प्रदान करने का प्रावधान है | पहले चरण में इसे देश के 200 सबसे पिछड़े जिलों में लागू किया गया| 2007-08 में दूसरे चरण में देश के अन्य 130 जिलों को इसमें जोड़ा गया है| सरकार का लक्ष्य 5 वर्ष में इस अधिनियम का पूरे देश में विस्तार करना है| इस योजना को कार्यान्वित करने के लिए केन्द्र सरकार द्वारा राष्ट्रीय रोजगार गारंटी कोष तथा राज्य सरकार द्वारा राज्य रोजगार गारंटी कोष की स्थापना की जाएगी| इस अधिनियम में प्रत्येक ग्रामीण परिवार को 100 दिन का अकुशल मजदूरी रोजगार प्रदान करने का प्रावधान है, अन्यथा वह दैनिक बेरोजगारी भत्ते का अधिकारी होगा|
14. भारत में ग्रामीण बेरोजगारी की प्रकृति की विवेचना कीजिए|
उत्तर:-
भारत में ग्रामीण क्षेत्रों में दो प्रकार की बेरोजगारी पायी जाती है— मौसमी बेरोजगारी और स्थायी बेरोजगारी| इसे ग्रामीण अथवा कृषि संबंधी बेरोजगारी कहते हैं| भारतीय कृषि की प्रकृति मौसमी है तथा यहाँ खास खास मौसम में ही कृषि कार्य किए जाते हैं| इसके फलस्वरूप, वर्ष में लगभग चार पांच महीने तक कृषि कार्य होते हैं तब इन लोगों को काम रहता है, लेकिन कृषि का मौसम समाप्त होते ही ये लोग बेरोजगार हो जाते हैं| इसे मौसमी बेरोजगारी कहते हैं| ग्रामीण बेरोजगारी का दूसरा स्वरूप निरंतर वर्तमान रहनेवाली स्थायी बेरोजगारी है| इस प्रकार की बेरोजगारी को छिपी हुई या अदृश्य बेरोजगारी भी कहते हैं| इस प्रकार की बेरोजगारी कृषि पर जनसंख्या के अत्यधिक बोझ के कारण उत्पन्न होती है| भारतीय कृषि में आवश्यकता से अधिक व्यक्ति लगे हुए हैं| इसके अंतर्गत श्रमिक अपने आपको कृषि कार्य में लगा हुआ समझता है| लेकिन, उसकी उत्पादकता लगभग शून्य के बराबर होती है| इस प्रकार, प्रकट रूप में श्रमिक रोजगाररत मालूम होता है, लेकिन उत्पादन में उसका कोई योगदान नहीं रहता|
15. भारत में शिक्षित बेरोजगारी की समस्या पर एक टिप्पणी लिखें|
उत्तर:-
जब समाज के शिक्षित वर्ग के लोगों को उनकी शिक्षा एवं योग्यता के अनुसार काम नहीं मिलता तो इसे शिक्षित बेरोजगारी की संज्ञा दी जाती है| इस प्रकार की बेरोजगारी मुख्यतः शहरों में पायी जाती है और प्रायः युवावर्ग के व्यक्ति इसके शिकार होते हैं| स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद भारत में शिक्षित व्यक्तियों की संख्या में बहुत तेजी से वृद्धि हुई है| परंतु, इनके लिए रोजगार के पर्याप्त अवसर उपलब्ध नहीं है और शिक्षित बेरोजगारों की संख्या बहुत अधिक नहीं है| लेकिन, इस समस्या की गंभीरता इसिलिए बढ़ जाती है कि इस प्रकार की बेरोजगारी के कारण एक निर्धन देश में इनकी शिक्षा, प्रशिक्षण आदि पर व्यय किए जानेवाले साधनों का समुचित उपयोग नहीं हो पाता| जहाँ एक ओर देश में शिक्षा का विस्तार हो रहा है| वहीं दूसरी ओर शिक्षा, प्राप्त नवयुवकों के लिए लाभप्रद रोजगार की व्यवस्था दिन प्रतिदिन एक समस्या का रूप धारण करती जा रही है| राष्ट्रीय श्रम आयोग के एक अध्ययन के अनुसार, 1951 में कुल 2.44 लाख शिक्षित व्यक्ति बेरोजगार थे, किन्तु 1993 के अंत तक इनकी संख्या बढ़कर लगभग 70 लाख हो गई थी| इनमें शिक्षित महिलाओं की संख्या अपेक्षाकृत अधिक थी| शहरी क्षेत्रों में कुल बेरोजगार व्यक्तियों का लगभग आधा भाग शिक्षित बेरोजगारी का होता है| इससे देश में शिक्षित बेरोजगारी की समस्या का सहज ही अनुमान लगाया जा सकता है|
16. भारत में बेरोजगारी के आर्थिक एवं सामाजिक प्रभावों का वर्णन करें|
उत्तर:-बेरोजगारी भारत के लिए एक गंभीर समस्या है| हमारे आर्थिक एवं सामाजिक जीवन पर इसका निम्नलिखित रूप में अत्यंत प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है|
मानवीय संसाधनों की क्षति—–
बेरोजगारी के कारण देश के मानवीय संसाधनों का लाभप्रद उपयोग नहीं होता और इस प्रकार इनकी क्षति होती है| इनके कुशल प्रयोग द्वारा आर्थिक विकास की गति को अधिक तीव्र बनाया जा सकता है|
निर्धनता में वृद्धि——
बेरोजगारी व्यक्तियों को आय का कोई साधन नहीं होता और उनकी निर्धनता बढ़ती है| वास्तव में बेरोजगारी भारत में निर्धनता का प्रमुख कारण है|
श्रमिकों का शोषण——
बेरोजगारी के कारण श्रमिकों का शोषण भी होता है| बेरोजगार होने की स्थिति में वे कम मजदूरी तथा अलाभप्रद परिस्थितियों में काम करने के लिए तैयार हो जाते हैं| इसका श्रमिकों की कार्यक्षमता पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है|
पलायन की प्रवृत्ति——
रोजगार के अवसरों के अभाव में श्रम का एक राज्य दूसरे राज्य अथवा एक देश से दूसरे देश में पलायन भी हो रहा है| अति प्रशिक्षित श्रम के पलायन से देश को बहुत अधिक क्षति होती है|
राजनैतिक अस्थायित्व—–
बेरोजगारी के कारण देश में राजनैतिक अस्थायित्व भी उत्पन्न हुआ है| बेरोजगार व्यक्तियों का प्रजातांत्रिक मूल्यों पर से विश्वास समाप्त हो जाता है और वे सरकार का विरोध करते हैं| इस प्रकार का राजनैतिक वातावरण आर्थिक विकास में बाधक सिद्ध होता है|
सामाजिक समस्याएँ—–
भ्रष्टाचार, अनैतिकता, बेईमानी आदि जैसी बुराइयाँ बेरोजगारी के ही परिणाम है| इससे समाज में अशांति एवं अव्यवस्था की स्थिति पैदा हो गई है|
17. भारत में शिक्षित बेरोजगारी के क्या कारण है? इसके निराकरण के उपाय बताइये|
उत्तर:-भारत में शिक्षित बेरोजगारी के दो प्रधान कारण है| हमारा आर्थिक नियोजन दोषपूर्ण रहा है जिससे प्रारंभ से ही मानवीय साधनों की उपेक्षा हुई है| हमारी पंचवर्षीय योजनाओं में अर्थव्यवस्था के विभिन्न क्षेत्रों में श्रमिकों की माँग एवं पूर्ति का कोई लेखा जोखा तैयार नहीं किया गया| परिणामतः, प्रतिवर्ष विद्यालयों एवं महाविद्यालयों से लाखों की संख्या में युवक डिग्रियाँ प्राप्त कर निकलते रहे हैं जिनके लिए रोजगार के उपयुक्त अवसर उपलब्ध नहीं है| भारत में शिक्षित बेरोजगारी का एक अन्य कारण हमारी दोषपूर्ण शिक्षा प्रणाली है| हमारी शिक्षा प्रणाली रोजगार प्रेरित नहीं है जिससे शिक्षित बेरोजगारी निरंतर बढ़ती जा रही है|
शिक्षित बेरोजगारी की समस्या के समाधान के लिए अग्रलिखित उपाय आवश्यक——-



शिक्षा प्रणाली में सुधार—–
शिक्षित बेरोजगारी की समस्या के समाधान के लिए शिक्षा प्रणाली में सुधार अत्यंत आवश्यक है| हमारी वर्तमान शिक्षा प्रणाली का रोजगार से कोई विशेष संबंध नहीं है|
श्रमशक्ति का नियोजन——
देश के सभी शिक्षित व्यक्तियों को रोजगार प्रदान करने के लिए श्रमशक्ति का नियोजन आवश्यक है| हमें शिक्षा की व्यवस्था करते समय श्रम बाजार की माँग को भी ध्यान में रखना होगा|
दृष्टिकोण में परिवर्तन—–
इस समस्या के समाधान के लिए शिक्षित वर्ग के दृष्टिकोण में भी परिवर्तन आवश्यक है| विकसित देशों में शारीरिक श्रम को हेय दृष्टि से नहीं देखा जाता| लेकिन, हमारे देश में शिक्षित युवा वर्ग की शारीरिक कार्य में अभिरुचि नहीं होती| उनके इस दृष्टिकोण में परिवर्तन लाना आवश्यक है|



दीर्घ उत्तरीय प्रश्न







1. बेरोजगारी क्या है? बेरोजगारी की समस्या को दूर करने के उपाय बताएं|
उत्तर:-
बेरोजगारी भारत के लिए एक गंभीर समस्या है| सामान्यतः, जब कोई व्यक्ति अपने जीवन निर्वाह के लिए किसी काम में नहीं लगा हो तो उसे बेरोजगार कहते हैं| लेकिन, यह बेरोजगारी की एक सही परिभाषा नही है| इस दृष्टि से एक आलसी व्यक्ति को भी जो अपनी इच्छा से कार्य नहीं करता, बेरोजगार कहा जाएगा| वास्तव में, इस प्रकार की स्वेच्छापूर्ण बेरोजगारी को आर्थिक बेरोजगारी की संज्ञा नहीं दी जा सकती| जब काम चाहनेवाले व्यक्तियों को इच्छा एवं योग्यता रहने पर भी मजदूरी की प्रचलित दरों पर काम नहीं मिलता तब हम इसे बेरोजगारी की स्थिति कहते हैं| यदि लोग इच्छा नहीं रहने अथवा शारीरिक या मानसिक दुर्बलता के कारण काम नहीं करते तो इसे बेरोजगारी नहीं कहेंगे| आर्थिक दृष्टि से केवल ऐसे व्यक्तियों को बेरोजगार की श्रेणी में रखा जा सकता है जिन्हें इच्छा और योग्यता रहने पर भी कोई काम नहीं मिलता| इस प्रकार, बेरोजगार व्यक्ति वे है जो अपनी इच्छा के विरुद्ध बेरोजगार है| वे काम कर सकते हैं तथा करना भी चाहते हैं, किन्तु अर्थव्यवस्था इन्हें रोजगार प्रदान करने में असमर्थ है| विश्वसनीय आंकड़ों के अभाव में भारत में बेरोजगारी की स्थिति का सही अनुमान लगाना कठिन है| राष्ट्रीय प्रतिदर्श जांच संगठन के अनुसार, 1999-2000 में हमारी कुल श्रमशक्ति का लगभग 6 प्रतिशत भाग बेरोजगार था| परंतु, वास्तविक स्थिति इससे बहुत गंभीर है| इसका कारण यह है कि बहुत से ऐसे व्यक्तियों को भी रोजगार मान लिया जाता है| जिनकी आय एवं उत्पादकता बहुत कम है| वे पूरे वर्ष काम में लगे रहते हैं, लेकिन क्षमता की दृष्टि से उनकी आय पर्याप्त नहीं होती| रोजगार के अवसरों के अभाव में बहुत से व्यक्ति ऐसे काम करने के लिए बाध्य है जो उनकी योग्यता एवं रुचि के अनुकूलन नहीं है| निर्धन व्यक्ति बेकार नहीं बैठ सकते हैं| और वे न्यून आय प्रदान करने वाले काम भी स्वीकार कर लेते हैं| इस प्रकार के व्यक्तियों का जीवन स्तर अत्यंत निम्न होता है| हमारे देश के प्राथमिक क्षेत्र में अर्द्ध बेरोजगारों की संख्या सबसे अधिक है| इस क्षेत्र में कार्यरत अधिकांश व्यक्ति स्वनियोजित होते हैं| उदाहरण के लिए, आवश्यकता नहीं होने पर भी छोटे किसानों का प्रायः संपूर्ण परिवार कृषि कार्यों में संलग्न होता है| परिणामतः कृषि क्षेत्र में अदृश्य अथवा अर्द्ध बेरोजगारी बहुत अधिक है|
2. बिहार में बेरोजगारी की समस्या क्यों अधिक गंभीर है? इसके कारणों की विवेचना करें|
उत्तर:-देश के अन्य विकसित राज्यों की अपेक्षा बिहार में बेरोजगारी की समस्या अधिक उग्र है तथा विगत वर्षों के अंतर्गत इसमें वृद्धि हुई है| इससे बिहारवासियों की निर्धनता बढ़ी है तथा राज्य में कयी अन्य सामाजिक समस्याएँ भी उत्पन्न हुई है| इसके प्रमुख कारण निम्नलिखित हैं——–
कृषि की प्रधानता——
कृषि बिहार की अर्थव्यवस्था का आधार है| गैर कृषि क्षेत्र, विशेषतया उद्योग धंधों के अविकसित होने के कारण उनमें रोजगार के बहुत कम अवसर उपलब्ध है| राज्य की लगभग 80 प्रतिशत कार्यशील जनसंख्या कृषि एवं उससे संबद्ध क्रियाकलाप में लगी हुई है| कृषि पर जनसंख्या के इस बोझ के कारण ही गाँवों में अर्द्ध बेरोजगारी की समस्या अत्यधिक गंभीर है|
कृषि का पिछड़ापन——-
बिहार में कृषि की प्रधानता होने पर भी यह अत्यंत पिछड़ी हुई अवस्था में है| समुचित जल प्रबंधन तथा शक्ति, परिवहन और विपणन संरचना के अभाव में इसका आधुनिकीकरण एवं व्यवसायीकरण संभव नहीं हुआ है| परिणामतः, राज्य अर्थव्यवस्था के इस सर्वाधिक महत्वपूर्ण क्षेत्र में रोजगार के अवसरों का विस्तार नहीं हो सका है|
औद्योगीकरण का अभाव—-
बिहार में आधुनिक उद्योगों की प्रगति बहुत धीमी हो रही है| राज्य के विभाजन के पश्चात अधिकांश खनिज संपदा एवं वृहत औद्योगिक इकाइयाँ झारखंड में चली गई|
आर्थिक विकास की मंद गति—–
देश के अन्य भाग की तुलना में बिहार के आर्थिक विकास की दर अपेक्षाकृत मंद हो रही है नीति के अभाव में बिहार की कृषि, उद्योग एवं व्यापार के क्षेत्र में रोजगार के पर्याप्त अवसरों का सृजन नहीं हुआ है|
जनसंख्या की वृद्धि—–
देश के अन्य सभी राज्यों की अपेक्षा बिहार में जनसंख्या की वृद्धि दर अधिक है| इसके फलस्वरूप बेरोजगारी और अर्द्ध बेरोजगारी की समस्या दिन प्रतिदिन अधिक उग्र होती जा रही है|
कृषि आधारित उद्योगों की अवहेलना—–
बिहार की कृषिभूमि बहुत उपजाऊ है तथा राज्य में कृषि आधारित उद्योगों के विकास की अपार संभावनाएँ है| लेकिन, राज्य सरकार की उदासीनता तथा साधनों के अभाव में इन उद्योगों का विकास नहीं हुआ है तथा उत्तर एवं मध्य बिहार की अधिकांश चीनी, जूट और कागज मिलें बंद हो चुकी है| इससे बेरोजगारों की संख्या में वृद्धि हुई है|
3. बिहार में बेरोजगारी की समस्या के समाधान के लिए क्या उपाय आवश्यक है? 
उत्तर:-बिहार में बेरोजगारी की समस्या अत्यंत गंभीर है तथा इस समस्या के समाधान के लिए निम्नलिखित उपाय आवश्यक है——–
कृषि का विकास——
कृषि बिहार की अर्थव्यवस्था का सबसे वृहत् क्षेत्र है| परंतु, कृषि के पिछड़ेपन के कारण इस क्षेत्र में मौसमी तथा अदृश्य बेरोजगारी बहुत अधिक है| बेरोजगारी की समस्या के समाधान के लिए कृषि का आधुनिकीकरण एवं व्यवसायीकरण अत्यंत आवश्यक है|
औद्योगिक विकास—-
देश के प्रमुख राज्यों में बिहार का औद्योगिक क्षेत्र सबसे छोटा और अल्पविकसित है| राज्य के कुल घरेलू उत्पाद में इस क्षेत्र का योगदान मात्र 12 प्रतिशत होता है| नये उद्योगों की स्थापना तथा पुरानी एवं रुग्ण औद्योगिक इकाइयों के पुनर्वास से रोजगार के अवसरों में वृद्धि होगी और कृषि पर जनभार कम होगा| उत्तर बिहार में चीनी, चाय एवं जूट उद्योगों के विकास द्वारा रोजगार के पर्याप्त अवसरों का सृजन हो सकता है|
ग्राम उद्योगों का विकास—–
बिहार में ग्राम उद्योगों के विकास की संभावनाएँ बहुत अधिक है| खादी एवं ग्रामोद्योग क्षेत्र राज्य के लगभग 3.45 लाख व्यक्तियों को रोजगार प्रदान करता है| इस क्षेत्र के विकास द्वारा इनमें और अधिक रोजगार की व्यवस्था की जा सकती है| सब्जी तथा फल के उत्पादन में भी बिहार देश का एक अग्रणी राज्य है| अत:, खाद्य प्रसंस्करण उद्योगों में भी रोजगार की संभावनाएँ बहुत अधिक है और बेरोजगारी की समस्या के समाधान के लिए इनका विकास आवश्यक है|
भूमि सुधार—–
बिहार में भूमि सुधार अधिनियमों का कार्यान्वयन बहुत दोषपूर्ण रहा है| भूमि सुधार अधिनियमों के प्रभावी कार्यान्वयन से कृषि अथवा ग्रामीण बेरोजगारी को दूर करने में सहायता मिलेगी|
पर्याप्त निवेश—–
अन्य राज्यों की अपेक्षा बिहार में निवेश का स्तर बहुत निम्न है| बेरोजगारी की समस्या के समाधान के लिए कृषि, उद्योग, विद्युत, जल प्रबंधन आदि जैसे अर्थव्यवस्था के महत्वपूर्ण क्षेत्रों में पर्याप्त पूंजी का निवेश आवश्यक है|
जनसंख्या का नियंत्रण—–
बिहार में जनसंख्या की वृद्धि दर राष्ट्रीय औसत से अधिक है| रोजगार के साधनों की अपेक्षा राज्य की जनसंख्या अधिक तेजी से बढ़ रही है| बेरोजगारी की समस्या के समाधान के समाधान जनसंख्या का प्रभावपूर्ण नियंत्रण भी आवश्यक है|
4. बेरोजगारी की समस्या के समाधान के लिए सरकार द्वारा चलाए जा रहे विभिन्न कार्यक्रमों की समीक्षा करें|
उत्तर:-
बेरोजगारी की समस्या के समाधान के लिए सरकार द्वारा समय समय पर अनेक कार्यक्रम चलाए गए हैं| इनमें न्यूनतम आवश्यकता कार्यक्रम, सूखाग्रस्त क्षेत्र कार्यक्रम, काम के लिए अनाज कार्यक्रम, जवाहर ग्राम समृद्धि योजना आदि महत्वपूर्ण है| वर्तमान में देश तथा राज्य में निर्धनता निवारण के लिए जो परियोजनाएँ चल रहे हैं उनमें स्वर्ण जयंती ग्राम स्वरोजगार योजना और संपूर्ण ग्रामीण रोजगार योजना सर्वाधिक महत्वपूर्ण है| स्वर्ण जयंती ग्राम स्वरोजगार योजना अप्रैल 1999 में आरंभ की गई| यह ग्रामीणों के स्वरोजगार के लिए एक स्वीकृत योजना है| इसका उद्देश्य निर्धन ग्रामीण परिवारों को बैंक ऋण एवं सरकारी अनुदान द्वारा स्व सहायता समूहों के रूप में संगठित करना है| काम के बदले अनाज की राष्ट्रीय योजना रोजगार सृजन की एक अन्य महत्वपूर्ण योजना है| यह 2004 में योजना आयोग के द्वारा देश के 150 सर्वाधिक पिछड़े जिलों में लागू किया गया था| कार्यक्रम के अंतर्गत मजदूरी का भुगतान अंशतः नकद और अनाज दोनों के रूप में किया जाता है| सितम्बर 2005 में सरकार ने राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम पास किया है जो रोजगार सृजन की नजर से अत्यधिक महत्वपूर्ण है| इस अधिनियम के अंतर्गत प्रत्येक ग्रामीण परिवार को 100 दिन का अकुशल मजदूरी रोजगार प्रदान करने का प्रावधान है|
5. बेरोजगारी क्या है? बेरोजगारी की समस्या को दूर करने के उपाय बताइये|
उत्तर:-
पहले भाग के लिए दीर्घ उत्तरीय प्रश्न संख्या एक उत्तर देखिये|
भारत में रोजगार के साधनों का विस्तार तथा बेरोजगारी की समस्या को दूर करने के लिए निम्नलिखित उपाय आवश्यक है——-
आर्थिक विकास—-
इस देश के संतुलित आर्थिक विकास के द्वारा रोजगार की मात्रा बढ़ा सकते हैं| यह बात निर्विवाद है कि रोजगार की मात्रा अंततः उत्पादक एवं पूंजीगत वस्तुओं में होनेवाले विनियोग पर निर्भर करती है| अत:, देश में नये उद्योगों की स्थापना, वर्तमान उद्योगों की उत्पादन क्षमता का विस्तार तथा भारी एवं आधारभूत उद्योगों का विकास होना चाहिए|
पूंजी निर्माण—–
उद्योगीकरण तथा आर्थिक विकास की गति को तेज करने के लिए पूंजी निर्माण आवश्यक है| अत एव, बचत को प्रोत्साहन देना बहुत जरूरी है| इसके साथ ही हमें उपर्युक्त सुविधाएँ देकर देश में विदेशी पूंजी को भी आकृष्ट करना चाहिए| विकास कार्यों के लिए पर्याप्त पूंजी उपलब्ध रहने पर ही देश में रोजगार के अतिरिक्त अवसरों का सृजन किया जा सकता है|
जनसंख्या की वृद्धि पर नियंत्रण—-
हमारे देश में बेरोजगारी की समस्या जनसंख्या की समस्या से जुड़ी हुई है| भारत की जनसंख्या में निरंतर तीव्र गति से वृद्धि हो रही है| लेकिन, रोजगार के साधनों में उस अनुपात में वृद्धि नहीं होती| परिणामस्वरूप, देश में बेरोजगारों की संख्या बढ़ रही है, अत एव, बेरोजगारी की समस्या के समाधान के लिए जनसंख्या पर नियंत्रण आवश्यक है|
कुटीर एवं लघु उद्योगों का विकास——
बेरोजगारी को दूर करने के लिए भारी उद्योग के साथ साथ देश में कुटीर एवं लघु उद्योगों का विकास अत्यंत आवश्यक है| भारत में बेरोजगारी, विशेषकर अर्द्ध बेरोजगारी का प्रभाव ग्रामीण क्षेत्रों में अधिक है| घरेलू उद्योगों के विकास द्वारा हम इस प्रकार की बेरोजगारी को दूर कर सकते हैं|
कृषि का आधुनिकीकरण——-
कृषि के क्षेत्र में वर्तमान बेरोजगारी एवं अर्द्ध बेरोजगारी को दूर करने के लिए कृषि का आधुनिकीकरण करना अत्यंत आवश्यक है|
6. भारत में बेरोजगारी के विभिन्न स्वरूपों की विवेचना करें|
उत्तर:-
भारत में बेरोजगारी का स्वरूप विकसित देशों से सर्वथा भिन्न है| भारत में बेरोजगारी के विभिन्न रूपों को हम निम्नलिखित श्रेणियों में विभक्त कर सकते हैं——–
कृषि अथवा ग्रामीण बेरोजगारी——-
भारत में कृषि अथवा ग्रामीण बेरोजगारी की समस्या अत्यंत गंभीर है| कृषि के पिछड़े होने तथा कुटीर उद्योगों के पतन के कारण गाँवों में रोजगार के पर्याप्त अवसर उपलब्ध नहीं है| इसके फलस्वरूप कृषि में संलग्न जनसंख्या का एक बड़ा भाग वर्ष में लगभग चार से पांच महीने तक पूर्णतः बेकार रहता है| जब तक कृषि कार्य होते हैं| तब तक इन लोगों को काम रहता है| लेकिन कृषि का मौसम समाप्त होते ही ये लोग बेरोजगार हो जाते हैं| इस प्रकार की बेरोजगारी को सामयिक या मौसमी बेरोजगारी कहते हैं| कृषि के क्षेत्र में आवश्यकता से अधिक व्यक्ति लगे होने के कारण छिपी हुई या अदृश्य बेरोजगारों भी पायी जाती है| इस प्रकार की बेरोजगारी को प्रच्छन्न बेरोजगारी भी कहते हैं जो दृष्टिगत नहीं होती इसके अंतर्गत श्रमिक अपने को कृषि कार्य में लगा हुआ समझता है, लेकिन उसकी उत्पादकता लगभग शून्य के बराबर होती है|
औद्योगिक बेरोजगारी——
भारत के औद्योगिक क्षेत्रों में भी बेरोजगारों की संख्या क्रमशः बढ़ रही है| इसके कयी कारण है| शहरों का विस्तार होने के फलस्वरूप ग्रामीण जनसंख्या शहरी क्षेत्रों में प्रवेश कर रही है| इन्हें काम उपलब्ध कराने के लिए रोजगार के अवसरों का अभाव है| हमारे देश के औद्योगिक विकास की गति अपेक्षाकृत मंद है| भारत में उद्योगों का स्थानीकरण भी दोषपूर्ण है| देश के सभी क्षेत्रों का समान रूप से औद्योगीकरण नहीं हुआ है| इसके फलस्वरूप औद्योगिक बेरोजगारी म निरंतर वृद्धि हो रही है|
शिक्षित बेरोजगारी——
देश में शिक्षित बेरोजगारी की समस्या आज से है जो मैट्रिक या उससे है| शिक्षित बेरोजगारी से हमारा अभिप्राय ऐसे व्यक्तियों की बेरोजगारी से है जो मैट्रिक या उससे अधिक शिक्षा प्राप्त कर चुके हैं| इस प्रकार की बेरोजगारी के कारण देश की कुशल श्रम शक्ति का सदुपयोग नहीं हो पाता तथा इनकी शिक्षा, प्रशिक्षण आदि व्यय किए जानेवाले साधनों का अपव्यय होता है| इस प्रकार, भारत में बेरोजगारी के विभिन्न रूप है| इनमें ग्रामीण क्षेत्रों में पायी जानेवाली अर्द्ध बेरोजगारी की समस्या अत्यंत गंभीर एवं संकटपूर्ण है|
7. बेरोजगारी की परिभाषा दें| भारत में बेरोजगारी के प्रमुख कारण क्या है? 
उत्तर:-
जब काम चाहनेवाले व्यक्तियों को इच्छा एवं योग्यता रहने पर भी प्रचलित मजदूरी पर काम नहीं मिलता तब इसे बेरोजगारी कहते हैं| भारत में बेरोजगारी की समस्या अत्यंत गंभीर है तथा इसके समाधान के लिए इसके कारणों की खोज आवश्यक है| हमारे देश में बेरोजगारी के प्रमुख कारण निम्नलिखित हैं——-
आर्थिक विकास की मंद गति——
देश में प्राकृतिक एवं मानवीय साधनों की प्रचुरता रहने पर भी भारतीय अर्थव्यवस्था अत्यंत पिछड़ी हुई अवस्था में है| अनेक कारणों से भारत में आर्थिक विकास की गति बहुत मंद रही है| देश के अधिकांश व्यक्तियों के लिए कृषि जीविकोपार्जन का मुख्य साधन है| लेकिन, कृषि के पिछड़े और अविकसित होने के कारण कृषि क्षेत्र में रोजगार के पर्याप्त अवसर उपलब्ध नहीं है| भारत के औद्योगिक विकास की गति भी धीमी रही है| पंचवर्षीय योजनाओं के अंतर्गत देश के उद्योगीकरण के लिए प्रयास किए गए हैं, फिर भी औद्योगिक क्षेत्र में रोजगार के बहुत कम साधन उपलब्ध हैं|
पूंजी का अभाव——
रोजगार की मात्रा में वृद्धि के लिए अधिकाधिक विनियोग आवश्यक है| लेकिन, पूंजी की कमी के कारण हम विनियोग में पर्याप्त वृद्धि करने में असमर्थ हैं| इससे कृषि एवं उद्योग दोनों ही क्षेत्रों में विकास अवरुद्ध हो जाता है तथा रोजगार के अवसरों में बहुत कम वृद्धि होती|
दोषपूर्ण नियोजन—-
दोषपूर्ण नियोजन भी भारत में बेरोजगारी का एक प्रमुख कारण है| प्रारंभ से ही हमारी पंचवर्षीय योजनाओं में रोजगारों एवं मानवीय संसाधनों की उपेक्षा की गई है| भारत की योजना प्रणाली रोजगार प्रधान नहीं रही है|
जनसंख्या में तीव्र वृद्धि——
भारत की जनसंख्या में निरंतर बहुत तीव्र गति से वृद्धि हो रही है| परिणामस्वरूप, इस बढ़ती हुई जनसंख्या के लिए हम रोजगार की व्यवस्था करने में असमर्थ हैं तथा देश में बेरोजगारों की संख्या बढ़ रही है|
दोषपूर्ण शिक्षा प्रणाली——
हमारे देश में प्रतिवर्ष व्यक्तियों की संख्या बढ़ती जा रही है, लेकिन उनके लिए रोजगार के पर्याप्त अवसर उपलब्ध नहीं है| इसका प्रधान कारण हमारी दोषपूर्ण शिक्षा प्रणाली है|
प्राकृतिक साधनों का अपूर्ण उपयोग——
भारत में प्राकृतिक संसाधनों का बहुमूल्य होने पर भी इनका पूर्ण उपयोग नहीं हो सका है| परिणामतः देश में रोजगार की पर्याप्त सुविधाएँ उपलब्ध नहीं है|
8. भारत में बेरोजगारी की समस्या को दूर करने के उपाय बताएं|
भारत में रोजगार के साधनों का विस्तार तथा बेरोजगारी की समस्या दूर करने के लिए निम्नलिखित उपाय आवश्यक है———-
आर्थिक विकास——-
हम देश के संतुलित आर्थिक विकास के द्वारा रोजगार की मात्रा बढा सकते हैं|यह बात निर्विवाद है कि रोजगार की मात्रा अंततः उत्पादक एवं पूंजी गत वस्तुओं में होनेवाले विनियोग पर निर्भर करती है| अत:, देश में नये उद्योगों की स्थापना, वर्तमान उद्योगों की उत्पादन क्षमता का विस्तार तथा भारी एवं आधारभूत उद्योगों का विकास होना चाहिए|
पूंजी निर्माण—–
उद्योगीकरण तथा आर्थिक विकास की गति को तेज करने के लिए पूंजी निर्माण आवश्यक है| अत एव, बचत को प्रोत्साहन देना बहुत जरूरी है| इसके साथ ही हमें उपयुक्त सुविधाएँ देकर देश में विदेशी पूंजी को भी आकृष्ट करना चाहिए| यह संतोष का विषय है कि सरकार की अनुकूल नीति के कारण विगत वर्षों में विदेशी पूंजी निवेश बढ़ा हैं| विकास कार्यों के लिए पर्याप्त पूंजी उपलब्ध रहने पर ही देश में रोजगार के अतिरिक्त अवसरों का सृजन किया जा सकता है|
जनसंख्या की वृद्धि पर नियंत्रण——
हमारे देश में बेरोजगारी की समस्या जनसंख्या की समस्या से जुड़ी हुई है| भारत की जनसंख्या में निरंतर तीव्र गति से वृद्धि हो रही है| लेकिन, रोजगार के साधनों में उस अनुपात में वृद्धि नहीं होती| परिणामस्वरूप, देश में बेरोजगारी की संख्या बढ़ रही है| अत एव, बेरोजगारी की समस्या के समाधान के लिए जनसंख्या पर नियंत्रण आवश्यक है|
कुटीर एवं लघु उद्योगों का विकास—–
बेरोजगारी को दूर करने के लिए भारी उद्योगों के साथ साथ देश में कुटीर एवं लघु उद्योगों का विकास अत्यंत आवश्यक है| भारत में बेरोजगारी विशेषकर अर्द्ध बेरोजगारी का प्रभाव ग्रामीण क्षेत्रों में अधिक है| घरेलू उद्योगों के विकास द्वारा हम इस प्रकार की बेरोजगारी को दूर कर सकते हैं|
कृषि का आधुनिकीकरण—–
कृषि के क्षेत्र में वर्तमान बेरोजगारी एवं अर्द्ध बेरोजगारी को दूर करने के लिए कृषि का आधुनिकीकरण करना अत्यंत आवश्यक है|

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