Bharti Bhawan Political Science Class-9:Chapter-1:Very Short Type Question Answer:Short Type Question Answer:Long Answer Type Question Answer:राजनीति शास्त्र:कक्षा-9:अध्याय-1:अति लघु उत्तरीय प्रश्न उत्तर:लघु उत्तरीय प्रश्न:दीर्घ उत्तरीय प्रश्न


            समकालीन विश्व में लोकतंत्र




अतिलघु उत्तरीय प्रश्न







1. जब लोकतंत्र को सैनिक शासन द्वारा उखाड़ फेंका जाता है तब लोगों की कौन सी स्वतंत्रताएं छीन ली जाती है? 
उत्तर:-राजशाही के सारे अधिकार छिन लिये जाते हैं|
2. नेपाल में लोकतंत्र की बहाली के लिए संघर्ष की एक विशेषता बताएं|
उत्तर:-लोकतंत्र की बहाली के लिए भारत के पड़ोसी राज्य नेपाल में 6 अप्रैल 2006 से सात राजनीतिक दलों के गठबंधन द्वारा जबरदस्त आंदोलन चलाया गया और इस आंदोलन को अंततः सफलता भी मिली | इसका मुख्य कारण यह था कि इस आंदोलन को जनसमर्थन प्राप्त था| लोकतंत्र की बहाली के लिए नेपाल की जनता बेचैन थी इसके लिए उसमें आक्रोश था और एक इस जनाक्रोश के सैलाब के आगे राजशाही को झुकना पड़ा| 24 अप्रैल 2006 का दिन सदा याद रहेगा, क्योंकि इसी दिन नेपाल ज्ञानेंद्र ने संसद को बहाल कर सत्ता सात राजनीतिक दलों के गठबन्धन को सौंपने की घोषणा कर दी| नेपाल में लोकतंत्र का पुनर्जन्म हुआ|
3. इस अध्याय के अध्ययन के आधार पर लोकतंत्र की विशेषताओं को बताएं|
उत्तर:-लोकतंत्र शासन का एक ऐसा रूप है जिसमें शासकों के निर्वाचन का अधिकार जनता को होता है| इसकी विशेषताएँ निम्नलिखित हैं——-
जनप्रतिनिधियों को प्रमुख निर्णय लेने का अधिकार
स्वतंत्र एवं निष्पक्ष निर्वाचन
एक व्यक्ति का एक मत
विधि का शासन
सरकार द्वारा निर्धारित सीमाओं का पालन
4. म्यांमार (वर्मा) में किनके नेतृत्व में अभी भी लोकतंत्र के लिए संघर्ष जारी है|
उत्तर:-आंग  सान सूची
5. चिली की वर्तमान राष्ट्रपति कौन है? उन्हें राष्ट्रपति के पद पर क्यों निर्वाचित किया गया? 
उत्तर:-चिली के वर्तमान राष्ट्रपति मिशेल बैशेल है| बैशेले का राष्ट्रपति पद पर निर्वाचित होना लोकतंत्र में जनता की आस्था को दर्शाता है| 
6. घाना का पुराना नाम क्या था? 
उत्तर:-घाना का पुराना नाम गोल्ड कोस्ट था|
7. नेपाल के प्रधानमंत्री का नाम बताएं|
उत्तर:माधव कुमार नेपाली
8. पोलैंड के पहले निर्वाचित राष्ट्रपति कौन हुए? 
उत्तर:-पोलैंड के पहले निर्वाचित राष्ट्रपति लेक वालेशा हुए
9. घाना के स्वतंत्रता आंदोलन के प्रमुख नेता कौन थे? 
उत्तर:-लामे एनक्रमा
10. एशिया के दो गैर लोकतांत्रिक देशों के नाम लिखिए|
उत्तर:-चीन, म्यांमार
11. पाकिस्तान के वर्तमान राष्ट्रपति कौन है? 
उत्तर:-आसिफ अली जरदारी
लघु उत्तरीय प्रश्न







1. 2006 में नेपाल में लोकतंत्र की बहाली के लिए किए गए संघर्ष का संक्षिप्त विवरण दें|
उत्तर:-लोकतंत्र की बहाली के लिए भारत के पड़ोसी राज्य नेपाल में 6 अप्रैल 2006 से सात राजनीतिक दलों के गठबंधन द्वारा जबरदस्त आन्दोलन चलाया गया और इस आंदोलन को अंततः सफलता भी मिली| इसका मुख्य कारण यह था कि इस आंदोलन को जनसमर्थन प्राप्त था| लोकतंत्र की बहाली के लिए जनता बेचैन थी| इसके लिए उसमें आक्रोश था और इस जनाक्रोश के सैलाब के आगे राजशाही को झुकना पड़ा| 24 अप्रैल 2006 का दिन सदा याद रहेगा, क्योंकि इसी दिन नेपाल नरेश ज्ञानेंद्र ने संसद को बेहाल कर सत्ता राजनीतिक दलों के गठबंधन को सौंपने की घोषणा कर दी|
2. चिली में लोकतंत्र के लिए संघर्ष का संक्षिप्त विवरण दें|
उत्तर:-दक्षिणी अमेरिका के देश में 11 सितम्बर 1973 को लोकतंत्र समाप्त कर सैनिक शासन स्थापित हो गया| चिली के तत्कालीन राष्ट्रपति आयेदे की हत्या कर शासन की बागडोर जनरल आंगस्तो पिनाशे ने हथिया ली| वह 17 वर्षों तक चिली का राष्ट्रपति बना रहा| परन्तु पिनाशे की सैनिक तानाशाही का तो अन्त होना ही था| 1988 में उसने इस प्रत्याशा में जनमत संग्रह कराने का निर्णय लिया कि जनता उसके शासन को जारी रखने के पक्ष में ही मतदान करेगी| परंतु पासा पलट गया| अपार बहुमत से जनता ने पिनाशे की सत्ता को नकार दिया| चिली की जनता अपनी लोकतांत्रिक परंपरा को भूल नहीं सकी थी और जब उसे लोकतंत्र बहाल करने का अवसर मिला तब भला वह चूक कैसे करती? अंततः चिली में लोकतंत्र की बहाली हो गई|
3. पोलैंड में लोकतंत्र की स्थापना किस प्रकार हुयी? 
उत्तर:-1980 में पोलैंड का शासन जरूजेल्स्की के नेतृत्व में चल रहा था| सम्पूर्ण पोलैंड पर पोलिश यूनाइटेड वर्कर्स पार्टी का एकछत्र आधिपत्य था| वास्तव में यह पार्टी साम्यवादी दल का ही एक महत्वपूर्ण अंग था| उस समय पूर्वी यूरोप के विभिन्न देशों पर इसी दल का शासन कायम था| पूर्वी यूरोप के अधिकांश देशों में उस समय तक इस दल को छोड़कर किसी दूसरे राजनीतिक दल को राजनीति में भाग लेने की इजाजत नहीं थी| उस समय तक लोग साम्यवादी शासन अथवा इस दल के अधिकारियों तथा पदाधिकारियों का चुनाव स्वेच्छा से नहीं कर सकते थे| साम्यवादी दल की या साम्यवादी पार्टी की सरकार की आलोचना करना उस समय तक बहुत बड़ा अपराध माना जाता था| यदि भूल से भी अथवा जान बूझकर यदि कोई साम्यवादी दल अथवा साम्यवादी सरकार की आलोचना करता था तो उसे कठोर सजा दी जाती थी और जेल की हवा खानी पड़ती थी| उस समय तक पोलैंड सोवियत संघ की साम्यवादी सरकार द्वारा नियंत्रित होता था| 14 अगस्त 1980 को पोलैंड में एक घटना घटी| वहाँ के ग्दांस्क शहर स्थित लेकिन जहाज कारखाना के मजदूरों ने हड़ताल की घोषणा कर दी| यों तो यह जहाज कारखाना सरकारी था| परंतु नियमानुसार वहाँ के कानून मजदूरों को हड़ताल की इजाजत नहीं देते थे| परंतु इन सख्त नियमों के बावजूद जहाज कारखाना के मजदूरों ने हड़ताल कर दी, जो कि वहाँ के कानूनों का घोर उल्लंघन था| मजदूरों के हड़ताल पर चले जाने का प्रधान कारण यह था कि उस जहाज कारखाना के एक क्रेन चालक महिला कर्मचारी को गलत ढंग से नौकरी से निकाल दिया गया था| कर्मचारियों की मुख्य माँग यह था कि उस महिला कर्मचारी को पुनः काम पर वापस लिया जाए| उसी जहाज कारखाने से पूर्व से निष्कासित एक इलेक्ट्रिशियन भी इस मजदूर आंदोलन में सक्रिय ढंग से कूद पड़ा| शीघ्र ही वह हड़ताली कर्मचारियों का प्रधान नेता बन गया| इस कर्मचारी नेता का नाम था—-लेक वालेशा| धीरे धीरे हड़ताल कर्मचारियों का यह आंदोलन उग्र रूप धारण कर समूचे शहर में फैल गया|  आंदोलन के जोर पकड़ने के साथ ही साथ उनकी माँगें भी बढ़ती चली गई| अब वे स्वतंत्र मजदूर संघ बनाने की माँग खुलकर करने लगे| अपनी माँगों पर जोर डालते हुए हड़ताली कर्मचारियों ने यह भी मांग रख डाली कि सभी राजनीतिक बंदियों की शीघ्र रिहाई की जाए तथा प्रेस पर लगी सेंसरशिप को समाप्त किया जाए| व्यापक स्तर पर हुए मजदूर आंदोलन के कारण विवश होकर, सरकार को हार माननी पड़ी | लेक वालेशा के कुशल नेतृत्व में सरकार के साथ मजदूरों ने ग्दांस्क शहर में एक 21 सूत्री समझौता किए| यह समझौता ग्दांस्क शहर में होने के कारण ग्दांस्क संधि या ग्दांस्क समझौता कहलाया| इस संधि के पश्चात मजदूरों को एक स्वतंत्र मजदूर संगठन बनाने की अनुमति मिल गई| अत: इस संधि के बाद पोलैंड में एक नया मजदूर संगठन बना, जिसे सोलिडरनोस्क या अंग्रेजी में सोलिडेरिटी कहा जाता है| करीब एक वर्ष के अंदर ही इस संगठन के सदस्यों की संख्या बढ़कर करीब 1 करोड़ हो गई| सरकार के कुप्रबंधन एवं भ्रष्टाचार के खिलाफ मजदूर संगठनों ने आवाज बुलंद करना पुनः आरंभ कर दिया| एक सशक्त मजदूर संगठन द्वारा उठाए गए सरकार विरोधी कदमों से जारूजेल्स्की नेतृत्व वाली सरकार घबड़ा गयी| इसके परिणामस्वरूप सरकार ने दिसम्बर 1981 में मार्शल लॉ घोषित कर दिया और हजारों मजदूरों को जेल में डाल दिया| इस समय तक सरकार की आर्थिक हालत पहले जैसी नहीं रह गई थी| 1988 में कर्मचारियों ने पुनः लेकिन वालेशा के नेतृत्व में हड़ताल प्रारंभ कर दिया| सरकार को लाचार होकर स्वतंत्र चुनाव कराने की घोषणा करनी पड़ी| 100 सीटों के लिए होनेवाली सीनेट के चुनाव में सोलिडेरिटी को 99 स्थानों पर जीत हासिल हुई और अक्टूबर 1990 में लेक वालेशा को पोलैंड का राष्ट्रपति कौन चुना गया| अत: काफी कठिन संघर्ष के बाद पोलैंड में लोकतंत्र की वापसी संभव हो सकी|
4. लोकतंत्र के विस्तार में फ्रांसीसी क्रांति की भूमिका का वर्णन करें|
उत्तर:-कभी निरंकुश राजतंत्र, अभी लोकतंत्र और कभी लोकतंत्र और कभी गणतंत्र को फ्रांस ने गले लगाया| लोकतंत्र में आस्था व्यक्त की गई तथा बड़े उत्साह के साथ लोकतंत्र की स्थापना भी हुई| परंतु, वहाँ स्थायी लोकतंत्र की स्थापना में सफलता नहीं मिल सकी | फ्रांस की कहानी ही लोकतंत्र की स्थापना करने, फिर उसे उखाड़ फेंकने, पुनः उसकी बहाली के प्रयास की कहानी है| फिर भी, यूरोप के देशों में लोकतंत्र की स्थापना में फ्रांसीसी क्रांति की भूमिका महत्वपूर्ण मानी जाती रहेगी| 
5. वीटो क्या है? वीटो का अधिकार किन किन देशों को प्राप्त है? 
उत्तर:-वीटो एक प्रकार का निषेधाधिकार है| जब सुरक्षा परिषद के किसी भी निर्णय के खिलाफ इसके स्थायी सदस्य इस अधिकार का प्रयोग करते हैं तो वह निर्णय लागू नहीं हो सकता| संयुक्त राष्ट्र के पांचों स्थायी सदस्यों—-अमेरिका, रूस, ब्रिटेन, चीन एवं फ्रांस के वीटों के अधिकार प्रदान किए गए हैं|
6. अलोकतांत्रिक राज्यों में जनता को किन कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है? उदाहरण सहित उत्तर दें|
उत्तर:-गैर लोकतांत्रिक शासन वाले चाहे वे सैनिक तंत्र हों अथवा शासन का कोई भी रूप क्यों न हो, वहाँ की जनता एवं आम नागरिकों को अनेक मुश्किलों का सामना करना पड़ता है| 11 सितम्बर 1993 को फौज ने चिली के आयेंदे सरकार का तख्ता पलट दिया| उन्हें (आयेदे) कहा गया कि वे त्याग पत्र दे दें या देश छोड़ दें| परंतु, उन्होंने ऐसा करने से इनकार कर दिया| चिली की सेना ने तत्काल राष्ट्रपति निवास को घेर कर बम बरसाने लगी| परिणामस्वरूप, इस फौजी हमले में आयेंदे की तत्काल मृत्यु हो गयी| सैनिक तख्तापलट के बाद सल्वाडोर आयेंदे के स्थान पर आगस्तो पिनाशे चिली के राष्ट्रपति बन बैठे| राष्ट्रपति पिनाशे ने पद पर बैठते ही आयेंदे सरकार के समर्थकों एवं लोकतंत्र की माँग करनेवालों पर जुल्म ढाना शुरू कर दिया| आयेंदे सरकार के अन्तर्गत वायु सेना के जनरल, अल्बर्टो बैशेल एवं अन्य वैसे फौजी अफसरों को जिन्होंने तख्तापलट का विरोध किया था, उन्हें अपनी जान से हाथ धोना पड़ा| अल्बर्टो ं बैशेले की पत्नी एवं पुत्री को भी जेल में डालकर काफी यातनाएँ दी गई| केवल इतना ही नहीं, 3 हजार से अधिक लोगों को मौत के घाट उतार दिया गया| बहुत सारे लोगों को गुम कर दिया गया, जिनका आजतक पता नहीं चला है| म्यांमार में भी लंबे समय से लोकतंत्र के लिए संघर्ष जारी है| वहाँ लोकतंत्र अधिकारों की माँग करनेवाली आंग सान सूची जेल से ही संघर्ष का नेतृत्व कर रही है| अत: स्पष्ट है कि गैर लोकतांत्रिक शासन वाले देशों में लोगों को काफी मुश्किलें का सामना करना पड़ता है|
7. विश्व स्तर पर लोकतंत्र के विस्तार के लिए अपना सुझाव दें|
उत्तर:-विश्व स्तर पर लोकतंत्र के विस्तार को वर्तमान स्थिति तक पहुँचाने में कयी चरणों से गुजरना पड़ा है| सर्वप्रथम प्राचीन यूनान के एथेंस नगर राज्य तथा भारत के कुछ क्षेत्रों में लोकतांत्रिक एवं गणतांत्रिक शासन व्यवस्था का उल्लेख मिलता है| परंतु आधुनिक लोकतंत्र का आरंभ सत्रहवीं और अठारहवीं शताब्दी में यूरोप में हुआ| 1889 की फ्रांसीसी क्रांति ने लोकतंत्र के लिए संघर्ष करने की प्रेरणा दी| इसी क्रांति ने विश्व में समानता, स्वंतत्रता और बंधुत्व का नारा बुलंद किया| फ्रांस को राजनीतिक की प्रयोगशाला कहा गया है| यहाँ सभी तरह की शासन पद्धतियों का प्रयोग हुआ|
8. लिच्छवी गणतंत्र पर एक टिप्पणी लिखें|
उत्तर:-लिच्छवी गणतंत्र की प्रशासनिक व्यवस्था बहुत सुदृढ़ एवं लोकतांत्रिक थी| प्रशासन की सुविधा हेतु अनेक विभाग बनाए गए थे| इन विभागों में सेना, वित्त तथा न्याय प्रमुख थे| सेना के प्रधान को सेनापति कहा जाता था| वित्त विभाग का भी एक प्रधान अधिकारी होता था, जिसे भांडागारिक कहा जाता था| न्याय विभाग का भी एक प्रधान अधिकारी होता था जिसे विनिश्चयामात्य कहा जाता था| राज्य की रक्षा करना प्रत्येक नागरिक का कर्तव्य था| अतः प्रत्येक युवक के लिए सैनिक शिक्षा अनिवार्य थी| न्यायलयों के दायित्व भी निर्धारित कर दिए गए थे| उस समय भी लिच्छवी गणतंत्र में दिवानी, फौजदारी तथा राजस्व न्यायलयों की व्यवस्था थी| स्थानीय समस्याओं के निदान हेतु स्थानीय स्वशासन की भी व्यवस्था थी| नगरों की शांति अव्यवस्था एवं सुरक्षा के लिए भी अधिकारी होता था जिसे नगरगुतिक कहा जाता था| अतः स्पष्ट है कि लिच्छवी गणतंत्र की प्रशासनिक व्यवस्था सुदृढ़ थी|
दीर्घ उत्तरीय प्रश्न








1. लोकतंत्र के बदलते मानचित्र पर प्रकाश डालें|
उत्तर:-नेपाल, चिली और पोलैंड में घाटी घटनाओं के आधार पर यह कह सकते हैं कि बीसवीं शताब्दी लोकतंत्र के लिए संक्रमणकाल की शताब्दी रही| इस शताब्दी में लोकतंत्र को अनेक उतार चढ़ाव का सामना करना पड़ा| यह शताब्दी लोकतंत्र के लिए चुनौतियों और संघर्ष से भरी शताब्दी सिद्ध हुई| लोकतंत्र के लिए लोगों को जन आंदोलन का सहारा लेना पड़ा| लोकतंत्र को समाप्त करने में चाहे सैनिक शासन का हाथ रहा हो, राजतंत्र का हाथ रहा हो अथवा किसी राजनीतिक दल विशेष का हाथ रहा हो, जनता को उसकी बहाली के लिए कठिन संघर्ष करना ही पड़ा है| द्वितीय विश्वयुद्ध की समाप्ति के बाद लोकतंत्र की स्थापना के लिए विभिन्न देशों में होड़ मच गई| भारतवर्ष भी द्वितीय विश्वयुद्ध की समाप्ति के बाद 1947 में स्वतंत्र हुआ और यहाँ भी लोकतान्त्रिक राज्य की स्थापना हुई| अनेक उपनिवेशों के स्वतंत्र होने का सिलसिला शुरू हुआ और लोकतंत्र की स्थापना स्वतंत्र देशों में होती चली गई| 1975 तक आते आते अनेक स्वतंत्र देशों में लोकतंत्र की स्थापना हो गयी| 2000 तक तो लोकतंत्र सर्वाधिक लोकप्रिय हो गया| 1991 में सोवियत संघ के विघटन के बाद 15 गणराज्यों में से अधिकांश ने लोकतांत्रिक व्यवस्था को गले लगाया| विश्व के अधिकांश देशों में लोकतंत्र की स्थापना की होड़ मच गयी| स्वाभाविक है कि लोकतंत्र का मानचित्र बदलता चला गया|
2. लोकतंत्र के विस्तार के मुख्य चरणों का वर्णन करें|
उत्तर:-विश्व लोकतंत्र के आरंभ एवं विस्तार की कहानी बड़ी रोचक है| प्राचीन यूनान के एथेंस नामक नगर राज्य एवं भारत के कुछ क्षेत्रों में भी लोकतान्त्रिक शासन व्यवस्था के उदाहरण मिलते हैं| परंतु आधुनिक लोकतंत्र का आरंभ यूरोप में सत्रहवीं एवं अठारहवीं सदी में हुआ| यों तो ब्रिटेन में विकास की कहानी 1688 की गौरवपूर्ण क्रांति से प्रारंभ होती है, परंतु वहाँ लोकतंत्र के विकास की गति कछुए की चाल की भांति काफी धीमी एवं क्रमिक रही| फ्रांस में लोकतंत्र की शुरुआत 1789 की फ्रांसीसी क्रांति से होती है| परंतु फ्रांस में 19 वीं शताब्दी तक उथल पुथल का दौर रहा और इसी दौर में लोकतंत्र मजबूत हुआ| लगभग फ्रांसीसी क्रांति के समय ही उत्तरी अमेरिका के कुछ उपनिवेशों ने 1776 में अपने को आजाद घोषित कर दिया| अगले कुछ ही वर्षों बाद इन्हीं उपनिवेशों ने मिलकर संयुक्त राज्य अमेरिका का गठन किया एवं 1787 से वह लोकतंत्र की राह पर चल पड़ा| प्रायः 19 वीं सदी तक लोकतंत्र के लिए होनेवाले संघर्षों के मूल विषय राजनीतिक समानता, आजादी एवं न्याय से संबंधित होते थे|1893 तक केवल न्यूजीलैंड ही विश्व में अकेला ऐसा देश था जहाँ प्रत्येक वयस्क नर नारी के लिए समान रूप से मताधिकार की व्यवस्था थी| भारत 1947 में आजाद हुआ| उस समय से भारत में लोकतंत्र निरंतर फल फूल रहा है| 1965 तक अमेरिका में भी अश्वेत लोग मताधिकार के प्रयोग से वंचित थे| पश्चिमी अफ्रीका के घाना जैसे कुछ देश अपनी आजादी के बाद लोकतांत्रिक शासन पद्धति को अपनाया तो अवश्य, परंतु उसे वे लंबे अर्से तक टिकाऊ बनाने में कामयाब नहीं हो सके| 20 वीं सदी में 1980 के बाद लोकतंत्र के विस्तार का क्रम तेजी से आगे बढा| 21 वीं सदी में भी लोकतंत्र की हवा तेज हो गयी है| हमारे पड़ोसी देश नेपाल एवं पाकिस्तान में पुनः लोकतंत्र की वापसी हो गयी है| परंतु खेद है कि आज भी म्यांमार में एक लंबे अर्से से लोकतंत्र के लिए संघर्ष जारी है|
3. विश्व स्तर पर लोकतंत्र पर एक टिप्पणी लिखें|
उत्तर:-आज तक युग अंतराष्ट्रवाद का युग है| आज हम एक विश्व, एक राज्य की कल्पना करने लगे हैं| इसके साथ ही विश्व स्तर पर लोकतान्त्रिक सरकार को भी साकार करने में जुट गए हैं| विश्व के विभिन्न देशों की तरह विश्व स्तर पर न तो कोई सरकार है और न उसके आदेश के पालन करनेवाले लोग| विश्व स्तर पर संयुक्त राष्ट्र जैसी संस्था अवश्य वर्त्तमान है जिनके 192 राज्य सदस्य है और यह संस्था लोकतांत्रिक ढंग से कार्य कर रही है| विभिन्न लोकतांत्रिक राज्यों की तरह अंतर्राष्ट्रीय संस्थाएँ लोकतांत्रिक परंपरा का निर्वाह नहीं कर रही है| जहाँ विभिन्न राष्ट्र अधिक लोकतांत्रिक बनने के प्रयास में जुटे हुए हैं, वहाँ अन्तराष्ट्रीय संस्थाएँ कम से कम लोकतांत्रिक बनने की इच्छुक है| इसका मुख्य कारण यह है कि जब विश्व में दो महाशक्तियों सोवियत संघ और संयुक्त राज्य अमेरिका में शक्ति प्रदर्शन की होड़ थी तब अंतराष्ट्रीय संगठनों में भी शक्ति संतुलन बना हुआ था| सोवियत संघ के विघटन के बाद संयुक्त राज्य अमेरिका का विश्व की एकमात्र महाशक्ति के रूप में उभरकर आने से विश्व स्तर पर लोकतंत्र का विस्तार अवरुद्ध हो गया है| अमेरिका का यह प्रभुत्व अंतर्राष्ट्रीय संस्थाओं के क्रियाकलापों को प्रभावित करने लगा है| अमेरिका का यह तर्क है कि विश्व स्तर पर लोकतंत्र के विस्तार के लिए अलोकतांत्रिक राज्यों पर अंकुश लगाना आवश्यक है| आवश्यकता पड़ने पर अलोकतांत्रिक राज्यों की तानाशाही समाप्त करने के लिए युद्ध का सहारा लेना उचित है| इराक पर अमेरिका और उसके सहयोगी राष्ट्रों के आक्रमण का उद्देश्य कभी भी लोकतंत्र की बहाली स्वीकार नहीं किया जा सकता है| विश्व स्तर पर लोकतंत्र के विस्तार के लिए उसी तरह के जन आंदोलन की आवश्यकता है जैसे नेपाल, चिली, पोलैंड आदि देशों में लोकतंत्र की बहाली के लिए हुआ| विश्व स्तर पर लोकतंत्र का विस्तार तभी संभव है जब इसे जनसमर्थन मिले और शांति का मार्ग अपनाया जाए| जिस तरह लोगों के संघर्ष एवं पहल से किसी देश में लोकतंत्र सशक्त होता है, उसी तरह वैश्विक मामलों में यह पहल भी लोगों के संघर्षों से ही मजबूत होगी और आगे बढेगी|

एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ