अति लघु उत्तरीय प्रश्न
1. प्रथम इंस्पेक्टर जनरल आफ फारेस्ट्स इन इंडिया कौन थे?
उत्तर:-डायट्रिच ब्रैन्डिस
2. इम्पिरियल फारेस्ट रिसर्च इंस्टीट्यूट, देहरादून की स्थापना किस वर्ष हुयी?
उत्तर:-1906
3. तिलका मांझी ने किस अंगरेज कलक्टर की हत्या की?
उत्तर:-आगस्टस क्लीवलैंड
4. कोल विद्रोह कहाँ से आरम्भ हुआ?
उत्तर:-छोटानागपुर (सिंहभूम के सोनपुर परगना)
5. कंध विद्रोह को किसने नेतृत्व प्रदान किया?
उत्तर:-कंध विद्रोह को चक्र विसोई ने नेतृत्व प्रदान किया|
6. बिरसा मुंडा का जन्म कब और कहाँ हुआ था?
उत्तर:-15 नवम्बर 1875 को उलिहातू गाँव में
7. धरती आबा की उपाधि किसे दी गई थी?
उत्तर:-बिरसा मुंडा
लघु उत्तरीय प्रश्न
1. भारतीय वन अधिनियम पारित करने का क्या उद्देश्य था?
उत्तर:-वनों के अधिकतम उपयोग और वन संपदा को अनावश्यक विनाश से बचाने के लिए सरकार ने 1865 में भारतीय वन अधिनियम पारित किया|
2. दिक् किन्हें कहा जाता था? उन लोगों ने जनजातीय जीवन को कैसे प्रभावित किया?
उत्तर:-जंगलों में बाहरी लोगों को दिक् कहा जाता है| दिकुओं ने जनजातियों के सामाजिक, धार्मिक, आर्थिक एवं राजनीतिक जीवन पर प्रतिकूल प्रभाव डाला| जनजातियों का जीवन जंगलों पर ही आधृत था, परंतु सरकारी नीतियों के कारण वे जंगल उत्पादों का व्यवहार करने से रोक दिए गए| वे जंगलों में न तो शिकार कर सकते थे और नहीं जलावन अथवा घरों के लिए लकड़ी ले सकते थे| इसके साथ साथ व्यापारी, महाजन और साहूकार भी आए| इन सबने मिलकर किसानों और जनजातियों का शोषण आरंभ किया| जनजातियों की पारंपरिक राजनीतिक और प्रशासनिक व्यवस्था नष्ट हो गयी| दिकुओं के संपर्क में आने से परंपरागत सामाजिक जीवन भी बिखरने लगा| इसाई मिशनरियों के आगवन से धार्मिक जीवन भी प्रभावित हुआ| जनजातियों का शारीरिक एवं आर्थिक शोषण बढ़ गया|
3. ईसाई मिशनरियों का आदिवासियों पर क्या प्रभाव पड़ा?
उत्तर:-इसाई धर्म का भी आदिवासियों पर व्यापक प्रभाव पड़ा| ईसाई मिशनरियों ने शिक्षा प्रचार और मानव कल्याण कार्यों के अतिरिक्त अपने धर्म का भी प्रसार किया| आदिवासी धर्म और संस्कृति को निंदनीय बताकर आदिवासियों का धर्मातरण भी करवाया| यह परंपरागत धार्मिक व्यवस्था पर कुठाराघात था| अत: परंपरावादी आदिवासियों ने इसका विरोध किया|
4. चुआर आंदोलन का क्या प्रभाव पड़ा?
उत्तर:-1805 में कंपनी सरकार ने जमींदारी घटवाली पुलिस व्यवस्था स्थापित की| दारोगा के रूप में गैर आदिवासियों के स्थान पर स्थानीय लोगों को नियुक्त किया गया| जंगल महाल जिला भी बनाया गया| परिणामस्वरूप 1830 तक मानभूम क्षेत्र में शांति बनी रही|
5. चेरो विद्रोह पर टिप्पणी लिखें|
उत्तर:-चेरो जनजाति तत्कालीन बिहार के पलामू क्षेत्र में निवास करती थी| यह विद्रोह चेरो राजा के अत्याचारों के खिलाफ हुआ| 1783 में चूड़ामन राय राजा बना| वह अंग्रेजी सरकार का समर्थक था| उसकी नीतियों के विरुद्ध 1800 में भूषण सिंह ने चेरो लोगों को नेतृत्व प्रदान किया एवं खुला विद्रोह कर दिया| विद्रोह को दबाने में चेरो राजा असमर्थ रहा| अतः उसने सरकारी सहायता की माँग की| सरकार ने कर्नल जोंस के अधीन सेना भेजी| दो वर्षों के संघर्ष के बाद सेना ने विद्रोह को कुचल दिया| 1802 में भूषण सिंह को गिरफ्तार कर फांसी पर लटका दिया गया|
6. तमार विद्रोह का परिचय दीजिए-
उत्तर:-यह विद्रोह 1789 को छोटानागपुर के उराँव जनजाति ने किया था| इसका मुख्य कारण जमींदारी शोषण था| यह विद्रोह करीब 1794 तक चला| यद्यपि कंपनी सरकार ने इसे जमींदारों की सहायता से कुचल दिया तथापित विद्रोह की ज्वाला शांत नहीं हुयी| उराँवों ने आगे चलकर मुंडाओं और संथालों के साथ मिलकर विद्रोह किया| यद्यपि सरकार ने छोटानागपुर में शांति व्यवस्था की स्थापना के लिए जमींदारी पुलिस बल की स्थापना तथापि इससे विशेष लाभ नहीं हुआ|
7. उड़ीसा में चक्र विसोई की क्या भूमिका था?
उत्तर:-कंध जनजाति में मरियाह प्रथा प्रचलित थी| 1837 में कंपनी सरकार ने इस प्रथा को प्रतिबन्धित करने के प्रयास किया| कंधों ने इसे अपने सामाजिक धार्मिक जीवन में सरकारी हस्तक्षेप माना| अतः वे विरोध कर उतारू हो गये| इस विरोध को चक्र विसोई ने नेतृत्व प्रदान किया| उनका घुमसार के ताराबाड़ी गाँव में हुआ था| उसने कंपनी सरकार की नीति का जोरदार विरोध किया| 1857 के विद्रोह में कंध आदिवासियों ने भी भाग लिया|
8. आदिवासियों के क्षेत्रवादी आंदोलन का क्या परिणाम हुआ?
उत्तर:- 1935 के भारत सरकार अधिनियम में ही जनजातियों के लिए शिक्षा एवं आरक्षण की व्यवस्था की गई| भारतीय संविधान की धारा 342 में जनजातियों को कमजोर वर्ग मानकर उनके लिए आरक्षण एवं अन्य सुविधाओं की व्यवस्था की गई| 1952 में नयी वन नीति बनायी गयी| इसके द्वारा वनों की रक्षा एवं आदिवासियों के अधिकारों की सुरक्षा की व्यवस्था की गयी है| आदिवासी बहुल राज्यों की स्थापना की माँग होने लगी है| उनकी माँगों पर ध्यान देते हुए भारत सरकार ने मध्य प्रदेश राज्य पुनर्गठन कर 1 नवम्बर 2000 को पृथक छत्तीसगढ़ राज्य का गठन किया| इसी प्रकार 15 नवम्बर 2000 को बिहार का पुनर्गठन कर नया झारखंड राज्य बनाया गया|
दीर्घ उत्तरीय प्रश्न
1. जनजातीय समाज एवं धर्म की विवेचना करें-
उत्तर:-भारत में जनजातियों की बहुत बड़ी संख्या है| ये भारत के विभिन्न भागों में बसी हैं-अरूणाचल प्रदेश, असम, मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़, पश्चिम बंगाल, झारखंड, तमिलनाडु, आंध्र प्रदेश, गुजरात, राजस्थान इत्यादि| भारत में सबसे बड़ी झील जनजाति है| दूसरी जनजाति गोंड है| भारत की तीसरी बड़ी जनजाति संथाल है| अन्य जनजातियों में मुंडा, ओराव , हो, संथाल है| अन्य जनजातियों में मुंडा, ओराव, हो, गोंडा, चेरो, कोल, पहाड़ियाँ तथा मील का उल्लेख किया जा सकता है| यद्यपि इन सभी जनजातियों की अपनी अपनी भाषा, संस्कृति एवं धार्मिक प्रथाएँ हैं| आदिवासी पर्व त्योहार धूम धाम से मनाते थे| उराव जतरा (मेला) का उल्लासपूर्वक आयोजन करते थे| जनजातीय समाज पर गाँव के मुखिया, जिसे संथाल माँझी, ओराव पाहन, मुंडा तथा पहाड़िया सरदार कहते हैं, का यथेष्ट प्रभाव था| आदिवासी बुरी आत्माओं और भूत प्रेतों से भयभीत होकर बैगा अथवा ओझा की शरण लेते थे| डाइनकुरी (नजर लगाना) का अंधविश्वास भी जनजातियों में व्यापक था| संथालों का मुख्य पर्व सोहराई, ओरावों का करमा तथा मुंडाओं कर सरहुल है जो चैत्र शुल्क तृतीया तिथि को मनाया जाता है|
2. जनजातियों की प्रशासनिक राजनीतिक एवं आर्थिक व्यवस्था का परिचय दें-
उत्तर:-आरंभ में आदिवासियों की राजनीतिक प्रशासनिक व्यवस्था सहज थी| शासन का विकेन्द्रीकरण किया गया था| प्रशासन की आधारशिला पंचायत थी| इसका मुख्य कार्य आपसी विवादों को सुलझाना था| पंचायत पूरे गाँव की व्यवस्था देखती थी| पंचायत पर गाँव के मुखिया का नियंत्रण रहता था| प्रत्येक जनजाति की अपनी पंचायत होती थी| संथालों में इसे परमाणिक कहा जाता था| कोल्हन क्षेत्र में 30-35 गाँवो ं के संयुक्त प्रधान को मानकी कहा जाता था| अनेक गाँवों को मिलाकर (5-30) परहा नामक प्रशासनिक इकाई का गठन किया जाता था| इसका प्रधान परहा राजा होता था| इस प्रकार, जनजातियों की प्रारंभिक प्रशासनिक राजनीतिक संरचना गाँव, पंचायत और मुखिया पर टिकी हुई थी|
आर्थिक स्थिति-
आदिवासियों को परंपरागत अर्थव्यवस्था आखेट और अस्थायी कृषि पर आश्रित थी| वे जंगलों में शिकार करते, कंद मूल, शहद इत्यादि एकत्रित करते थे| झूम खेती का प्रचलन था| बाद में जंगलों को साफ कर स्थायी खेती की प्रथा आरम्भ हुयी| साफ कर स्थायी खेती की प्रथा आरम्भ हुयी| आरम्भ में जमीन पर संपूर्ण गाँव या समुदाय का स्वामित्व था| परंतु, धीरे धीरे भूमि पर निजी अधिकार की अवधारणा उत्पन्न हुई| ज्वार, बाजरा, धान की खेती मुख्य रूप से होती थी| गाय, बैल, बकरी, मुर्गी बत्तख आदि पाले जाते थे| अनेक प्रकार के दस्तकारी अथवा कुटीर उद्योग का भी प्रचलन था जैसे पत्ता, बांस के समान बनाना, रस्सी बुनना इत्यादि| आदिवासी हाथी दांत, मसालों रबर लाह और तसर का काम करते थे एवं इनका व्यापार भी करते थे| असुर जनजाति लोहा गलाने का भी काम करती थी| मुद्रा के स्थान पर वस्तु विनिमय एवं कौड़ियों का प्रचलन था| गैर आदिवासी क्षेत्रों के संपर्क में आने से अर्थव्यवस्था में परिवर्तन आया| बाजार आधारित अर्थव्यवस्था के विकास और शहरीकरण की प्रक्रिया के कारण जनजातीय अर्थव्यवस्था परिवर्तित हो गयी|
3. औपनिवेशिक सरकार ने भारतीय वन्य जीवन के प्रति नयी क्यों अपनायी?
उत्तर:-
(क) औपनिवेशिक सरकार वनों को अनुत्पादक मानना-
औपनिवेशिक शासक जंगलों को काटकर कृषि का विस्तार करना चाहते थे जिससे बढ़ती जनसंख्या को आवास, कृषि और अनाज की सुविधा उपलब्ध करायी जा सके| कृषि के विस्तार के साथ साथ भू राजस्व की वृद्धि की भी संभावना थी| इससे सरकार की आर्थिक स्थिति सुदृढ़ होती| फलतः 19वीं शताब्दी के उत्तरार्द्ध और 20वीं शताब्दी के पूर्वार्द्ध में बड़े पैमाने पर जंगलों को काटकर कृषियोग्य भूमि का विस्तार किया गया|
(ख) ब्रिटिश साम्राज्य के आवश्यकताओं को पूरा करना-
औपनिवेशिक काल में वननाशन का दूसरा महत्वपूर्ण कारण था ब्रिटिश साम्राज्य की आवश्यकताओं को पूरा करना| ब्रिटिश सरकार अपने यहाँ की अनाज की कमी की पूर्ति भारतीय कृषि का विस्तार कम करना चाहती थी| साथ ही वह वाणिज्यिक फसलों के उत्पादन जैसे जूट, गन्ना, कपास को बढ़ावा देना चाहती थी जिनकी यूरोप में बहुत अधिक माँग थी|
(ग)ब्रिटिश जहाजरानी के लिए लकड़ी की आवश्यकता-
भारत में वननाशन का एक प्रमुख कारण था कि 19वीं शताब्दी के आरंभ तक इंगलैंड में बलूत पेड़ के जंगल तेजी से घटते जा रहे थे| इस पेड़ की लकड़ी का उपयोग जहाजरानी में किया जाता था| इसकी आपूर्ति कम होने से इंगलैंड की शाही नौसेना के आपूर्ति के लिए भीषण समस्या उठ खड़ी हुयी| भारत के जंगलों में ऐसे पर्याप्त लंबे, सीधे तने वाले कठोर और मजबूत वृक्ष थे जैसे सागवान, सख्त इत्यादि जिनका उपयोग जहाजों के निर्माण में हो सकता था| फलतः भारत में जंगलों को काटकर उसकी लकड़ी इंगलैंड को निर्यात की जाने लगी|
(घ) भारत में रेल का विस्तार-
भारत में भी औपनिवेशिक शासकों को लकड़ी की आवश्यकता थी| 19वीं शताब्दी के पांचवें दशक में भारत में रेल का आरंभ किया गया| रेल इंजन बिछाने के लिए लकड़ी के पटरों की आवश्यकता थी| अत:, जैसे जैसे रेल का विकास होता गया वैसे वैसे जंगलों की कटाई में भी तीव्रता आयी| साथ ही जिस मार्ग से रेल लाइन निकाली गई उसके इर्द गिर्द के जंगल भी काट दिये गये|
(ड़) जंगलों के स्थान पर बागवानी को बढ़ावा देने की नीति-
भारत में औपनिवेशिक काल में बड़े स्तर पर जंगलों की कटाई का एक अन्य कारण था| अंगरेजों ने अपने व्यापारिक लाभ के लिए प्राकृतिक जंगलों को काटकर वहाँ बगान लगवाने की नीति अपनायी| इन बगानों में रबर, चाय और काफी के उत्पादन को बढ़ावा दिया गया| इनकी यूरोप में बहुत अधिक माँग थी| अंगरेज व्यापारी इनका निर्यात कर धन कमाना चाहते थे| इसलिए, औपनिवेशिक ने भारत में वनों के विस्तार के स्थान पर बागवानी को बढ़ावा देने की नीति अपनायी|
4. तिलका मांझी के जीवन एवं क्रियाकलापों पर प्रकाश डालें-
उत्तर:-तिलका मांझी का जन्म 1750 में सुल्तानगंज (भागलपुर, बिहार) के तिलकपुर महीने ग्राम में हुआ था| उनके पिता का नाम साद्रा मुर्मू था| तिलका मांझी बचपन से ही कुशाग्र बुद्धि के थे| उन्हें तीर चलाने में महारत हासिल थी| वे आदिवासियों की दयनीय स्थिति देखकर खिल्लन रहा करते थे| वे कंपनी शासन और जमींदारी शोषण के प्रबल विरोधी थे| उनके विचारों से प्रभावित होकर अनेक युवक इनके साथ हो लिए| इन लोगों ने सरकार जमींदार विरोधी एक संगठन बना लिया एवं तिलका को अपना नेता एवं नायक चुनौती लिया| राजमहल पाकुड़, गोड्डा एवं दुमका के निकटवर्ती क्षेत्र में बड़ी संख्या में पहाड़ियाँ जनजाति के लोग थे| 1770 में बंगाल बिहार में भीषण दुर्भिक्ष पड़ा जिससे पहाड़ियाँ भी बुरी तरह प्रभावित हुए| इसके बावजूद जबरदस्ती मालगुजारी और जर्मनी बेदखली की प्रक्रिया चलती रही| इससे जमींदारों और लगाने वसूलने वालों के विरुद्ध प्रतिक्रिया बढी| तिलका मांझी और उनका संगठन आगे बढ़ा| जमींदारी अत्याचारों का विरोध किया जाने लगा| इससे जमींदार के मुंशी और लठैतों के अत्याचार करने के लिए दंडित किया जाने लगा| इससे जमींदारों में भय व्याप्त गया| दूसरी ओर तिलका मांझी की लोकप्रियता बढ़ती गई| उसने तिलकपुर को अपनी गतिविधियों का केंद्र बनाकर सशक्त संघर्ष आरंभ कर दिया| इसको दबाने के लिए 1778 में आगस्टस बलीवलैंड, जो झिल्ली साहब के नाम से विख्यात थे, को भागलपुर जिला का कलक्टर नियुक्त किया गया| 13 जनवरी 1784 को तिलका मांझी सड़क के किनारे एक ताड़ के वृक्ष पर चढ़कर तीर धनुष के साथ छिप गया| इसी बीच जब क्लीवलैंड घोड़ा पर सवार होकर उसके सामने से गुजरा तो तिलका ने तीर मारकर उसे घायल कर दिया| वह घोड़ा से गिर पड़ा तथा उसकी तत्काल मृत्यु हो गयी| एक आदिवासी सरदार जौराह ने धोखे से तिलका को गिरफ्तार कर भागलपुर के अधिकारियों को सौंप दिया| उसे भागलपुर के बीच चौराहा पर बरगद के पेड़ पर टांगकर सरेआम फांसी दे दी गई| तिलका मांझी की शहादत 1855-56 के संथाल हुल का प्रेरणास्रोत बन गया|
5. कोल विद्रोह के कारण एवं इसके स्वरूप का वर्णन करें-
उत्तर:-कोल विद्रोह (1831-32) आदिवासियों का जन्म आंदोलन था| इस आंदोलन का आरंभ दिक् के विरुद्ध हुआ| परंतु आगे चलकर यह राज विरोधी हो गया| यह आंदोलन भी छोटानागपुर में हुआ| इसमें मुंडा, उदास एवं अन्य जनजातियों ने भाग लिया|
कारण-
बंगाल में अंग्रेजी शासन की स्थापना के साथ ही कोलो के सामाजिक आर्थिक जीवन में महत्वपूर्ण परावर्तन आने लगा| स्थायी बंदोबस्ती के परिणामस्वरूप इस क्षेत्र में नवोदित जमींदारों (मानकी या महतो) एवं महाजनों का एक सशक्त वर्ग अपने कर्मचारियों एवं गुमाश्तों के साथ आकर बसने लगा| इन सब लोगों ने कोलों का शारीरिक एवं आर्थिक शोषण आरंभ किया| बाहरी लोगों ने आदिवासियों की स्त्रियों की इज्जत लूटनी भी आरंभ कर दी| पुलिस और न्यायालय भी दिकुओं का ही साथ देती थी| फलतः कोल आक्रोशित विद्रोह के लिए कटिबद्ध हो गये|
आन्दोलन का स्वरूप-
1831 में सिंहभूम के सोनपुर परगना से कोलों का विद्रोह आरंभ हुआ| बगावत का तात्कालिक कारण था कुछ कोल महिलाओं का अपहरण| कोलों ने विद्रोह आरंभ कर दिया| दिकुओं की हत्या की गई, उनके घरों में आग लगा दी गई एवं उनकी सम्पत्ति लूट ली गई| दिकुओं को आदिवासी क्षेत्रों से बाहर वापस जाने को कहा गया| समूचा आदिवासी क्षेत्र अशांत हो गया हत्या एवं लूट मार का आतंक व्याप्त गया| सिंहभूम, रांची, मानभूम और पलामू में भी रह विद्रोह फैल गया| आदिवासियों ने अंग्रेजों को भी अपने क्रोध का निशाना बनाया| सरकारी खज़ाना लूटा गया तथा आग लगाकर थाना कचहरी नष्ट कर दिए गए|पुलिस दारोगा एवं चौकीदारी की हत्या की गई तथा बचे हुए कर्मचारियों को भगाने पर मजबूर किया गया| सिखों एवं मूसलमानों के बागान एवं दुकान नष्ट कर दिए गए| बनियों और महाजनों का भी यही हाल हुआ| ब्राह्मण, राजपूत जैसे उच्चवर्गीय हिंदू, जुलाहे, बनिए, कर्मी, दुसाध, तेली एवं सिख कोलों के आतंक के सबसे बड़े शिकार बने| लोहार, बढई, ग्वाला आदि कोलों के निर्देश पर विद्रोह में भाग लिया|
6. संथाल विद्रोह पर एक निबंध लिखें|
उत्तर:-कोलों के बाद संथालों का व्यापक विद्रोह हुआ| अंग्रेजी सरकार के विरुद्ध 1857 के पूर्व होनेवाला यह सबसे बड़ा विद्रोह था| इस विद्रोह का प्रसार छोटानागपुर, सिंहभूम (झारखंड), संथाल परगना (बिहार) तथा वीरभूम और बांकूड़ा (बंगाल) जिलों तक था| संथाल इसे हुए अथवा मुक्ति संग्राम मानते थे|
कारण-
इनका जीवन जंगल और जमीन पर टीका हुआ था| स्थायी बंदोबस्ती के बाद संथालों के हाथ से उनकी जमीन निकलती गई| इनके साथ ही जमींदारों, महाजनों, साहूकारों और सरकारी कर्मचारियों का प्रभाव बढने लगा| संथाल इनके शोषण और अत्याचार के शिकार बन गए| महाजन दिए गए कर्ज पर 50-500℅ सूद वसुलने थे| इलाके में जब रेलवे लाइन का विस्तार होने लगा| तब ठीकदारों ने भी उनका शारीरिक और आर्थिक शोषण किया| ऐसी स्थिति में संथालों के समक्ष संघर्ष करने के अतिरिक्त अन्य कोई रास्ता नहीं था|
विद्रोह का स्वरूप एवं नेतृत्व-
1855 तक संथालों की सहनशक्ति जवाब दे गयी| चार संथाल भाइयों सिद्ध, कान्हू, चांद और भैरव ने संथालों को संगठित किया| जुलाई 1855 में संथालों का विद्रोह विधिवत् आरंभ हो गया| विलियम हंटर के अनुसार करीब बीस हजार संथाल इस संघर्ष में मारे गए| गाँव के गाँव जलाकर राख कर दिए गए| सिद्ध और कान्हू गिरफ्तार कर मार डाले गए| बचे हुए अन्य संथाल नेताओं का भी यही हाल हुआ| नेताओं की गिरफ्तारी से संथालों का मनोबल टूट गया तथा विद्रोह विफल हो गया|
संथाल विद्रोह का महत्व-
संथाल हुल विफल होकर भी निरर्थक नहीं हुआ| इसके दूरगामी परिणाम हुए| सरकार ने समझ लिया कि संथालों की उचित शिकायतों पर ध्यान दिए बिना उन पर शासन करना दुष्कर था| इसलिए सरकार ने कुछ सुधार कार्य किए|
7. बिरसा मुंडा के जीवन एवं उनके कार्यों की समीक्षा करें-
उत्तर:-बिरसा मुंडा का जन्म 15 नवम्बर 1875 को तोमड़ के निकट उलिहातू गाँव में हुआ था| उनके पिता का नाम सुगना मुंडा था| उनका बचपन गरीबी एवं कष्ट में बीता तथापि उन्होंने शिक्षा ग्रहण की| उन्होंने चाईबासा के मिशन स्कूल से शिक्षा प्राप्त की| वे शिकार करने बांसुरी बजाने तथा निशानेबाजी में भी प्रवीण थे| कुछ समय के लिए ईसाई धर्म भी अपनाया परंतु बाद में इसे छोड़ दिया| उन्होंने यज्ञोपवीत धारण किया, शाकाहारी बन गये और वैष्णव धर्म अपनाया| वे नियमित रूप से कीर्त्तन करते और लोगों को उपदेश देते| वे मुंडाओं में प्रचलित अंधविश्वासों को दूर करना चाहते थे| उन्होंने एकेश्वरवाद पर बल दिया एवं सिंगबोंगा को सर्वोच्च देवता मानकर उसकी पूजा करने को कहा| वे आदिवासियों में प्रचलित सामाजिक बुराइयों जैसे मधपान, पशुबलि आदि का अंत करना चाहते थे| उन्होंने शुद्ध आचरण एवं हृदय की शुद्धता पर बल दिया| उन्हें सम्मान से धरती आबादी कहा जाने लगा| प्रशासन ने 1895 में धोखे से बिरसा और उनके साथियों को गिरफ्तार कर लिया| दो वर्ष जेल की सजा हुई | मुंडाओं में इसकी तीखी प्रतिक्रिया हुई| नवम्बर 1897 में महारानी विक्टोरिया के शासन के हीरक जयंती के अवसर पर बिरसा एवं उनके साथियों को जेल से रिहा कर दिया| जेल से रिहा होकर बिरसा अब मुंडाओं को सशस्त्र क्रांति के लिए संगठित करने लगे| उन्होंने घोषणा की कि महारानी राज्य समाप्त हो गया है और हमारा राज्य आरंभ हो गया (अबुआ राज एटेजाना महारानी राज टुंडू) | 25 सितम्बर 1899 को क्रिसमस के दिन बिरसा मुंडा का व्यापक और हिंसक विद्रोह आरंभ हुआ| सबसे पहले ईसाई धर्म में परिवर्तित मुंडाओं, ईसाई मिशनरियों के विरुद्ध असंतोष बढ गया| पुलिस मुंडाओं के क्रोध का विशेष शिकार बनी| रांची और इसके निकटवर्ती क्षेत्र तथा संपूर्ण छोटानागपुर विद्रोह के प्रभाव में आ गया| सरकार ने बिरसा को पकड़ने के लिए 500 रुपए का इनाम घोषित किया गया| इनाम के लालच में कुछ स्थानीय लोगों ने बिरसा को 3 मार्च 1990 को पकड़वा दिया| उन्हें गिरफ्तार कर रांची जेल में रखा गया| मुकदमा के दौरान ही 9 जून 1900 को जेल में बिरसा की हैजा से मृत्यु हो गई| 1902 से 1910 के बीच रांची जिला की पैमाइश एवं बंदोबस्ती की व्यवस्था की गई| गुमला और खूंटी अनुमंडलों की स्थापना की गई|1908 में छोटानागपुर काश्तकारी कानून पारित किया गया| मुंडाओं के खूंटकट्टी अधिकार को जिनकी रक्षा के लिए बिरसा ने संघर्ष किया था, सरकार ने मान लिया| मुंडाओं को बगारी से भी मुक्ति मिल गयी| इससे मुंडाओं की स्थिति में सुधार हुआ| मुंडा आज भी बिरसा को अपना भगवान मानते हैं| घर घर में उनकी प्रशंसा में लोकगीत गाए जाते हैं|
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