खाद्य संसाधन पौधे
लघु उत्तरीय प्रश्न
1. अनाजों के उत्पादन बढ़ाने की क्या आवश्यकता है?
उत्तर:-हमारे देश की जनसंख्या जिस रफ्तार से बढ रही है, उस रफ्तार रफ्तार से खाद्य पदार्थों का उत्पादन नहीं हो पा रहा है|अभी हमारी जनसंख्या सौ करोड़ से ज्यादा है एवं यह अगर इसी गति से बढती रही तो 2020 तक हमारी आबादी लगभग 134 करोड़ हो जाएगी|इतनी बड़ी आबादी की जरूरतों को पूरा करने के लिए लगभग 241 मिलियन टन अन्न की आवश्यकता हर वर्ष पड़ेगी|लेकिन हमारे पास अन्न उत्पादन के लिए भूमि सीमित है|अत: हमें अनाजों के उत्पादन को बढाने की आवश्यकता है|
2. मौसम के आधार पर फसल कितने प्रकार के होते हैं?
उत्तर:-(क)खरीफ फसल- ऐसी फसलें जिन्हें हम वर्षा ऋतु में उगाते हैं, खरीफ फसल कहते हैं, जैसे- धान, ज्वार, बाजरा, मकई, कपास, ईख, सायोबीन, मूंगफली इत्यादि|इसे जून जुलाई में बोया जाता है और फसल की कटनी अक्टूबर के आस पास होती है|
(ख)रबी फसल- जो फसलें शीत ऋतु में उगायी जाती है उसे रबी फसल कहते हैं, जैसे- गेंहूँ, चना, तीसी मटर, सरसों, आलू, अलसी आदि|इनकी बोआई अक्टूबर माह में एवं कटनी मार्च में होती है|
(ग)ग्रीष्म फसल- दलहन (उरद, मूंग) की बोआई मार्च से जून के बीच गर्मी के महीनों में की जाती है|जिस क्षेत्र में सिंचाई की अच्छाई व्यवस्था रहती है, वहाँ धान, मकई, आलू एवं मूंगफली भी ग्रीष्म फसल की तरह लगाये जाते हैं|
3. सम्मुनत किस्मों के एक मुख्य गुण एवं एक मुख्य दोष को लिखें|
उत्तर:-सम्मुनत किस्मों के एक मुख्य गुण-
उच्च उपज- सम्मुनत किस्मों से पारम्परिक किस्मों की उपेक्षा बहुत अधिक पैदावार मिलती है|इसलिए इन किस्मों को उच्च उपज वाली किस्में या सम्मुनत प्रजातियाँ कहते हैं|
सम्मुनत किस्मों के एक मुख्य दोष-
कृषीय निवेश- सम्मुनत किस्मों के इस्तेमाल से फसल तैयार करने के लिए पारम्परिक किस्मों के मुकाबले अधिक कृषीय निवेशों की आवश्यकता होती है|उदाहरण के लिए इन किस्मों को अपेक्षाकृत अधिक उर्वरक, अधिक सिंचाई इत्यादि|
4. संकरण के लिए किस प्रकार के जनकों का चयन किया जाता है?
उत्तर:-संकरण के लिए फसलों के उपयोगी गुणों जैसे उच्च उत्पादन, उत्पादन की गुणवत्ता, उर्वरक के प्रति अनुरूपता, रोग प्रतिरोधक क्षमता आदि प्रकार के जनकों का चयन किया जाता है|
5. वृहत् पोषक क्या है और इन्हें वृहत् पोषक क्यों कहते हैं?
उत्तर:-वे तत्व जो पौधों की वृद्धि के लिए अत्यंत आवश्यक होते हैं उन्हें वृहत् तत्व कहते हैं|ये पोषक तत्व बहुत अधिक मात्रा में आवश्यक है|अत: इन्हें वृहत् पोषक तत्व कहते हैं|
6. पौधे अपना पोषक किस प्रकार प्राप्त करते हैं?
उत्तर:-पौधे पोषक तत्वों को खाद तथा उर्वरकों से प्राप्त करते हैं|
7. रासायनिक उर्वरक का उपयोग प्राकृतिक उर्वरक की तुलना में आसान क्यों है?
उत्तर:-प्राकृतिक उर्वरक में किसानों को इसने परिवहन और भण्डारण में कठिनाई होती है|साथ ही इसमें विशिष्ट पादप पोषकों की काफी कमी होती है|जिन फसलों में नाइट्रोजन, पोटाश, फास्फोरस आदि की आवश्यकता होती है|जैसे- गेहूं, धान आदि उनमें प्राकृतिक खाद्य बहुत लाभप्रद नहीं होता है, अतः रासायनिक उर्वरकों का उपयोग करना पड़ता है जो खास पोषक तत्व प्रदान करने वाले होते हैं|अतः रासायनिक उर्वरक का उपयोग प्राकृतिक उर्वरक की तुलना में आसान होता है|
8. कार्बनिक खेती में क्या होता है?
उत्तर:-खेती की वह पद्धति जिसमें रासायनिक उर्वरकों, पीड़कनाशकों तथा अन्य रसायनों का उपयोग कम से कम या बिलकुल नही कर कार्बनिक पदार्थों का उपयोग हो, कार्बनिक खेती कहलाती है|इस प्रकार की खेती में पेड़ पौधों के अपशिष्ट, जानवरों के मल मूत्र, कृषि अपशिष्ट आदि कार्बनिक पदार्थों के अपघटन पदार्थों के अपघटन के द्वारा मृदा की उर्वरता बढाई जाती है|इसमें नील हरित शैवाल का संवर्धन किया जाता है जो वायु से नाइट्रोजन गैस को ग्रहण नाइट्रोजनी यौगिकों में परिवर्तित कर जमीन की उर्वरा शक्ति बढाता है|
9. फसलों के लिए सिंचाई का क्या समझते हैं?
उत्तर:-सिंचाई कृषि की वह प्रक्रिया है जिसके द्वारा हम विभिन्न स्रोतों से समय समय पर खेतों में लगी फसलों के जल की आवश्यकता की पूर्ति करते हैं|ताकि फसल सूखने न पाये और पैदावार अच्छी और भरपूर हो|अच्छी फसल और भरपूर पैदावार के लिए उचित और सामाजिक सिंचाई परम आवश्यक है|भारतीय कृषि मानसून का जुआ है|हमारे देश में अधिकांश कृषि भूमि की सिंचाई वर्षा पर ही आधारित है|जिस वर्ष वर्षा अच्छी और समय पर हुयी तो भरपूर फसल तथा पैदावार होती है|ठीक इसके विपरीत जिस वर्ष अच्छी तथा समय पर वर्षा नहीं होती है फसल तथा पैदावार भी प्रभावित होते हैं|वर्षा की कमी के कारण उसकी सिंचाई के लिए विभिन्न साधनों का उपयोग किया जाता जिनमें कुआँ एवं नलकूप, नहर जाल, तालाब इत्यादि के जरिए सिंचाई की जाती है|अतः खेती के लिए सिंचाई बहुत ही आवश्यक है|
10. नदी जल उठाव प्रणाली में क्या होता है?
उत्तर:-नदी जल उठाव प्रणाली में उन क्षेत्रों में जहाँ नहर में जल प्रवाह पर्याप्त नहीं होता है उन क्षेत्रों के आस पास की नदियों को वहाँ से सीधे जल को खींचकर सिंचाई की जाती है|
11. मिश्रित फसल उत्पादन एवं अन्तरफसल में क्या अंतर है?
उत्तर:-मिश्रित फसल उत्पादन-
(क)फसल असफलता को कम करना इसका उद्देश्य है|
(ख) दो फसलों के बीच बोने से पहले मिला दिया जाता है|
(ग)इसमें पंक्तियाँ नहीं बनायी जाती है|
(घ)इसमें फसल विशेष में उर्वरक लगाना कठिन है|
(ड़)इसमें फसल अलग काटना एवं बिनाई संभव है|
अन्तर फसल उत्पादन-
(क)प्रति इकाई क्षेत्रफल बढाना इसका उद्देश्य है|
(ख)इसमें मिलाये नहीं पाये जाते हैं|
(ग)इसमें पंक्तियाँ बनायी जाती है|
(घ)इसमें उर्वरक आवश्यकतानुसार पंक्ति में लगाया जाता है|
(ड़)इसमें फसलों की कटाई व बिनाई अलग अलग संभव है|
12. फसल चक्रण के लिए दलहन पौधों का चुनाव क्यों होता?
उत्तर:-फसल चक्रण द्वारा दलहन फसल का चुनाव इसिलिए किया जाता है कि मृदा में पोषक तत्वों की पूर्ति रहे|क्योंकि दलहन पौधों की जड़ों में राइजोबियम जीवाणु के गाँठ मौजूद होते हैं|ये वायुमंडलीय नाइट्रोजन में स्थिर कर उन्हें मिट्टी में पुनः प्रतिस्थापित कर देते हैं, जो फसल के लिए अनिवार्य पोषक तत्व हैं|
13. फसल सुरक्षा से क्या तात्पर्य है?
उत्तर:-फसल पौधों की खेतों में खरपतवार, कीटों, जीवाणु, कवक आदि द्वारा भिन्न भिन्न प्रकार से हानि होती है|समस्त रोगाणुओं को सम्मिलित रूप से पीड़क या पेस्ट्स कहते हैं|अतः फसल पौधों को विभिन्न तरीकों से पीड़कों एवं अन्य हानिकारक जीवों से मुक्त रखने की प्रक्रिया को फसल सुरक्षा कहते हैं|
14. खेतों में खरपतवारों को फसलों से मुक्त करना क्यों जरुरी है?
उत्तर:-खेतों में खरपतवारों को फसलों से मुक्त करना अत्यंत आवश्यक है|क्योंकि इसके कारण फसल की वृद्धि पर बहुत ही प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है और पैदावार भी अपेक्षाकृत काफी घट जाती है|अतः अच्छी उपज के लिए अवस्था में ही खरपतवार को खेतों से निकाल देना चाहिए|
15. पीड़कनाशी क्या है? खेतों में इसका उपयोग करते हैं?
उत्तर:-वे विषैले रसायन जो पीड़कों को समाप्त करने या इन पर नियंत्रण के लिए उपयोग किया जाता है, पीड़कनाशी कहलाते हैं|कवकनाशी, कीटनाशी, कृन्तकनाशी सभी सम्मिलित रूप में पीड़कनाशी कहलाते हैं|पीड़कनाशी से फसलों की रोगों से सुरक्षा की जाती है|जैसे- सूक्ष्म जीव (वायरस, जीवाणु, कवक आदि) कीटपीड़क भी फसलों को काफी हानि पहुंचाते हैं|इन कीटपीड़कों को पीड़कनाशी द्वारा समाप्त किया जा सकता है|साथ ही फसलों को रोग मुक्त कर उसके बढने में मददगार होते हैं|
16. नमी और तापमान खाद्यान्नों को प्रभावित कैसे करते हैं?
उत्तर:-खाद्यान्नों में नमी की मात्रा अधिक से अधिक 14℅ होनी चाहिए|परिपक्व खाद्यान्न में 16-18% तक नमी रहती है, जिसे भण्डारण के पहले सुखाकर 14℅ से कम करना जरूरी है|अगर खाद्यान्न में नमी अधिक रह गयी तो सूक्ष्मजीवों, कवकों आदि की वृद्धि और क्रियाशीलता की गति बढ जाती है जो हानिकारक है|इससे अनाजों के वजन और अंकुरण क्षमता में कमी आती है|उत्पादन की कीमत एवं गुणवत्ता का ह्रास होता है|खाद्यान्नों को सुरक्षित भण्डारण अपेक्षाकृत कम तापमान पर होना चाहिए अन्यथा सूक्ष्मजीव एवं कीटों की वृद्धि एवं क्रियाशील बढ जाती है|फलस्वरूप खाद्यान्न अपनी गुणवत्ता खो देते हैं और मानव के उपयोग के योग्य नहीं रह जाते|अतः नमी और तापमान खाद्यान्नों के भण्डारण में अत्यंत महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं|
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